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  • 30 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    भारत में पर्यावरण आंदोलन कोई नई परिघटना नहीं है। देश में हुए प्रमुख पर्यावरण आंदोलनों पर चर्चा कीजिये। इसके अलावा, पर्यावरण आंदोलनों से जुड़े आर्थिक एवं इनके अस्तित्व/पहचान से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण:

    • भारत के प्रमुख पर्यावरण आंदोलनों पर प्रकाश डालिये।
    • पर्यावरण आंदोलनों से जुड़े विभिन्न आर्थिक एवं इनके अस्तित्व/पहचान से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • एक उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • पर्यावरण आंदोलन एक प्रकार का सामाजिक आंदोलन है जिसमें व्यक्ति, समूह एवं विभिन्न गठबंधन शामिल होते हैं जो पर्यावरण संरक्षण में एक आम रुचि का अनुभव करते हैं तथा पर्यावरण नीतियों और प्रथाओं में परिवर्तन लाने के लिये कार्य करते हैं।
    • भारत में पर्यावरण आंदोलन की उत्पत्ति बीसवीं सदी की शुरुआत में देखी जा सकती है जब लोगों द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान वन संसाधनों के व्यावसायीकरण के खिलाफ विरोध किया गया था।

    प्रारूप:

    भारत में प्रमुख पर्यावरण आंदोलन

    • बिश्नोई आंदोलन: इस आंदोलन का नेतृत्व अमृता देवी द्वारा किया गया जिसमें लगभग 363 लोगों ने वनों की सुरक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दी। यह अपनी तरह का प्रथम आंदोलन था जिसमे वृक्षों के संरक्षण के लिये लोगों द्वारा पेड़ों को गले लगाने की रणनीति को सहजता से अपनाया गया।
    • चिपको आंदोलन: यह वर्ष 1973 में संपन्न एक अहिंसक आंदोलन था जिसका उद्देश्य पेड़ों की सुरक्षा और संरक्षण करना था परंतु जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। आंदोलन का नाम 'चिपको' शब्द 'आलिंगन'के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
    • नर्मदा बचाओ आंदोलन: यह आंदोलन नर्मदा नदी घाटी परियोजना के खिलाफ है जिसमे वार्ता के दौरान कई मुद्दों पर आपत्ति की गई है जैसे- विस्थापन जोखिम और पुनर्वास से संबंधित प्रावधान, पर्यावरणीय प्रभाव और स्थिरता से संबंधित मुद्दें/ परियोजना के वित्तीय निहितार्थ, नागरिक स्वतंत्रता के बलपूर्वक निष्कासन और नियमों का उल्लंघन, नदी घाटी योजना तथा प्रबंधन इत्यादि से संबंधित मुद्दे।
    • अप्पिको आंदोलन: अप्पिको आंदोलन भारत में वन-आधारित पर्यावरण आंदोलनों में से एक है।आंदोलन पश्चिमी घाटों में कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ ज़िले में हुआ। आंदोलन द्वारा पूरे पश्चिमी घाट में ग्रामीणों के वाणिज्यिक और औद्योगिक हितों के लिये उनके द्वारा जंगलों के दोहन के कारण उत्पन्न पर्यावरणीय खतररों के बारे में जागरूकता पैदा की गई जो उनकी जीविका का मुख्य स्रोत था।
    • साइलेंट वैली मूवमेंट: केरल में साइलेंट वैली मूवमेंट कुद्रेमुख परियोजना के तहत कुंतीपुझा नदी पर एक पनबिजली बांँध के निर्माण के विरुद्ध था।
    • टिहरी बांँध विवाद: यह हाल के वर्षों में सबसे अधिक प्रचलित पर्यावरणीय आंदोलनों में से एक है।आंदोलन के प्रमुख मुद्दों में क्षेत्र की भूकंपीय संवेदनशीलता, टिहरी शहर के साथ वन क्षेत्रों का जलमग्न होना इत्यादि शामिल हैं।
    • ये सभी पर्यावरणीय आंदोलन मुख्य रूप से पारिस्थितिकी चिंताओं के खिलाफ थे जैसे- पहले से ही खत्म हो चुके प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक दोहन, बड़े बांँधों का निर्माण इत्यादि।
      • हालाँकि पर्यावरणीय चिंताओं सहित इन पर्यावरणीय आंदोलनों के साथ आर्थिक और पहचान से संबंधित मुद्दे भी जुड़े हुए थे।

    आर्थिक मुद्दे:

    • ग्रामीण लोग जलाऊ लकड़ी, चारा और अन्य दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जंगलों पर निर्भर हैं। गरीब ग्रामीणों द्वारा आजीविका प्राप्त करने के लिये लकड़ी बेचने की गतिविधियों को सरकार द्वारा राजस्व प्राप्ति के स्रोत के विरुद्ध माना गया।
    • ढांँचागत विकास की आवश्यकता ने कई विदेशी लॉगिंग कंपनियों को वनों की तरफ आकर्षित किया जो विशाल वन संसाधनों पर नजर गड़ाए हुए थे। इन कंपनियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों पर ग्रामीणों के नियंत्रण को मानने से इनकार कर दिया गया जिस पर वे भोजन और ईंधन दोनों के लिये निर्भर थे।
    • गांँवों और वन क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर बाढ़, जिसका प्रमुख कारण वाणिज्यिक उपयोग हेतु वृक्षों का कटान करना और बड़े बांँधों के निर्माण में कुप्रबंधन जो कि ग्रामीणों के विस्थापन का कारण बना जिसके चलते उन्हें अपनी आजीविका के साधनों से हाथ धोना पड़ा।

    अस्तित्व/पहचान से संबंधित मुद्दे:

    • ग्रामीणों द्वारा स्वयं को सुरक्षित रखने के लिये जंगल को महत्त्व दिया गया एवं उनका विचार था कि उनका अस्तित्व और उनकी पहचान जंगल से घनिष्ठ रूप से जुड़ीं हुई है। वे वाणिज्यिक हितों के कारण उन पर हुए अत्याचार एवं पहाड़ की ढलानों पर वृक्षों की कटाई के मध्य के संबंध को बेहतर तरीके से समझने में सक्षम थे।
    • पूरी तरह से खेती, पशुधन और बच्चों की संरक्षक होने के कारण महिलाओं को बाढ़ और भूस्खलन के कारण सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा।
    • पर्यावरण आंदोलन में शामिल नेताओं द्वारा अपने संदेशों के माध्यम से उनसे प्रत्यक्ष अपील की गई।
    • महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया में पुरुषों के सामान राजनीतिक गतिविधियों में कोई हिस्सेदारी प्रदान नहीं की गई। इन आंदोलनों ने उन्हें अपनी चिंताओं को उठाने तथा अपने अधिकारों के लिये लड़ने का अवसर प्रदान किया गया।
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