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राजस्थान

राजस्थान में वनों की कटाई

  • 18 Jul 2025
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जयपुर के डोल का बाध वन और बारां के शाहाबाद संरक्षण रिज़र्व में वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिये हज़ारों वृक्षों को काटने की राज्य सरकार की कार्रवाई पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है।

  • सरकार की यह कार्रवाई राज्य की हरित प्रतिबद्धताओं और चल रहे 'हरियालो राजस्थान' वृक्षारोपण अभियान के सीधे विपरीत है।

मुख्य बिंदु

  • डोल का बाध वन:
    • यह दक्षिण जयपुर में 100 एकड़ का एक दुर्लभ हरा-भरा क्षेत्र है, जिसमें खेजड़ी के वृक्षों सहित लगभग 2,500 वृक्ष हैं
    • यह क्षेत्र 80 से अधिक पक्षी प्रजातियों का आश्रयस्थल है तथा तापमान नियंत्रण और भूजल पुनर्भरण में सहायक है।
    • यह बढ़ते प्रदूषण और शहरी विस्तार के बीच जयपुर के लिये एक महत्त्वपूर्ण "ग्रीन लंग" (हरित फेफड़ा) के रूप में कार्य करता है।
    • वनों की कटाई का कारण: इस वन भूमि पर प्रधानमंत्री यूनिटी मॉल और वाणिज्यिक ब्लॉकों के निर्माण का प्रस्ताव।
    • सार्वजनिक प्रतिक्रिया: क्षेत्र को जैवविविधता पार्क घोषित करने की मांग।
  • शाहाबाद संरक्षण रिज़र्व:
    • परिचय: यह क्षेत्र राजस्थान के सबसे सघन वनों में से एक है, जो बारां में स्थित है तथा कुनो राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश) को मुकुंदरा हिल्स और रणथंभौर (राजस्थान) से जोड़ने वाला एक महत्त्वपूर्ण वन्यजीव गलियारा है।
    • चिंता: यह गलियारा बाघों और चीता प्रजातियों की आवाजाही तथा आनुवंशिक विविधता के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है एवं इसमें कोई भी बाधा चीता पुनर्प्रस्थापन परियोजना की सफलता को संकट में डाल सकती है।
    • वनों की कटाई का कारण: एक निजी बिजली संयंत्र के लिये 1.19 लाख से अधिक वृक्षों की कटाई प्रस्तावित।

कुनो राष्ट्रीय उद्यान

  • स्थिति: यह मध्य प्रदेश में स्थित है तथा कुनो वन्यजीव प्रभाग का एक हिस्सा है।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: कुनो क्षेत्र में विशिष्ट करधई, खैर और सालै वनों के साथ-साथ विस्तृत घास के मैदान पाए जाते हैं। आर्द्रता के प्रति संवेदनशील करधई वृक्ष पार्क के लचीलापन को दर्शाता है।
  • वन्यजीव महत्त्व: यह चीता और शेर पुनर्प्रस्थापन प्रयासों के लिये एक प्रमुख स्थल है।
  • संरक्षण निहितार्थ: यह क्षेत्र प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रारंभ की गई चीता पुनर्प्रस्थापन परियोजना में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व

  • स्थिति: यह दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में, कोटा से लगभग 50 किमी दूर, चंबल नदी के पूर्वी तट पर स्थित है।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: इसे पूर्व में दर्रा वन्यजीव अभयारण्य के नाम से जाना जाता था और यह कोटा के महाराजा का शाही शिकार क्षेत्र हुआ करता था।
  • संरक्षित स्थिति: इसे वर्ष 2004 में मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया, जो लगभग 200 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। 
    • इसमें दर्रा, चंबल और जसवंत सागर वन्यजीव अभयारण्यों को शामिल किया गया है।
  • टाइगर रिज़र्व का दर्जा: इसे वर्ष 2013 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की स्वीकृति के बाद राजस्थान का तीसरा टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
  • पारिस्थितिकीय भूमिका: चंबल नदी और इसकी सहायक नदियाँ इस क्षेत्र में आवासीय विविधता तथा जल सुरक्षा को सहारा प्रदान करती हैं।
  • वन्यजीव महत्त्व: वर्तमान में यह रणथंभौर से लाए गए चार बाघों का निवास है, जो बाघों की आबादी विस्तार और भूदृश्य-स्तर संरक्षण में सहायक है।

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान

  • स्थान: दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िले में स्थित, जयपुर से लगभग 130 किमी. दूर।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: उत्तरी भारत के सबसे बड़े और सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यानों में से एक, जो अपनी समृद्ध जैवविविधता तथा सुंदर परिदृश्यों के लिये जाना जाता है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: पूर्व में जयपुर के महाराजाओं का शाही शिकारगाह, वर्तमान यह एक प्रमुख वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र के रूप में स्थापित है।
  • वन्यजीव आकर्षण: रॉयल बंगाल टाइगर को देखने के लिये एक प्रमुख गंतव्य, जो दुनिया भर से वन्यजीव फोटोग्राफरों और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है।
  • पर्यटन: रणथंभौर की विरासत, वन्य क्षेत्र और वन्य जीवन का मिश्रण इसे पारिस्थितिकी पर्यटन तथा विरासत पर्यटन दोनों के लिये एक प्रमुख आकर्षण बनाता है।

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