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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न . विधायी निगरानी और नीतिगत जवाबदेही सुनिश्चित करने में संसदीय समितियों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    20 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संक्षेप में बताएँ कि संसदीय समितियाँ क्या हैं और उनका महत्त्व क्या है।
    • संसदीय समितियों के कार्यों का परीक्षण करके उनकी भूमिका का परीक्षण कीजिये।
    • उपर्युक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय: भारतीय विधायिका के कार्य संचालन में संसदीय समितियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विधेयकों और सरकारी व्यय की विस्तृत जाँच के लिये एक आवश्यक तंत्र प्रदान करती हैं। संविधान के अनुच्छेद 105 और 118 के तहत गठित ये समितियाँ संसद को प्रभावी निगरानी रखने और कार्यपालिका को उत्तरदायी ठहराने में सक्षम बनाती हैं। व्यापक रूप से, संसदीय समितियों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है — स्थायी समितियाँ (स्थायी प्रकृति की) और अस्थायी समितियाँ (अस्थायी प्रकृति की)।

    मुख्य भाग:

    विधायी निगरानी और जवाबदेही:

    • वित्तीय निगरानी: लोक लेखा समिति (PAC) और प्राक्‍कलन समिति जैसी प्रमुख समितियाँ सरकारी व्यय की जाँच करती हैं, पारदर्शिता और राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करती हैं। PAC, जिसकी अध्यक्षता विपक्ष के सदस्य द्वारा की जाती है, यह सरकारी खातों का ऑडिट तथा वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करती है।
      • PAC ने वर्ष 2010-11 के आसपास 2G स्पेक्ट्रम आवंटन मामले की जाँच की और 2G लाइसेंसों के आवंटन में गंभीर प्रक्रियात्मक अनियमितताओं, पारदर्शिता की कमी और मानदंडों के उल्लंघन को उजागर किया।
    • विधायी विशेषज्ञता: समितियाँ विधेयकों और नीतियों की जानकारीपूर्ण, तकनीकी जाँच के लिये एक मंच प्रदान करती हैं। समितियों को भेजे गए विधेयकों का बाहरी हितधारकों और विशेषज्ञों से सलाह लेकर गहन अध्ययन किया जाता है, जिससे व्यापक विश्लेषण सुनिश्चित होता है।
      • नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 की जाँच के लिये एक संयुक्त संसद समिति (JPC) का गठन किया गया था, जिसे बाद में वर्ष 2019 में अधिनियमित किया गया।
    • एक लघु-संसद के रूप में कार्य: समितियाँ संसद की पार्टी संरचना को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से प्रतिबिंबित करती हैं, जिससे द्विदलीय विचार-विमर्श संभव होता है। यह राजनीतिक ध्रुवीकरण को कम करता है तथा एक गोपनीय, मीडिया-प्रभावित वातावरण में सहमति-निर्माण की सुविधा प्रदान करता है।
      • संसद और कार्यपालिका के बीच साझाकरण के अंतर को कम कर, समितियाँ विधायी गुणवत्ता और शासन की प्रतिक्रियाशीलता में सुधार करती हैं।
    • कार्यपालिका पर जवाबदेही और नियं त्रण: यद्यपि समितियों की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं, वे एक सार्वजनिक अभिलेख तैयार करती हैं और सरकार पर विवादास्पद प्रावधानों या प्रशासनिक चूकों पर पुनर्विचार के लिए नैतिक दबाव डालती हैं।
      • गोपनीयता स्पष्ट और निष्पक्ष चर्चा को प्रोत्साहित करती है तथा पक्षपात से दूर प्रभावी निगरानी को बढ़ावा देती है।

    चुनौतियाँ

    आगे की राह

    समितियों को विधेयक भेजने में कमी (16वीं लोकसभा में 25% बनाम 15वीं लोकसभा में 71% )।

    समितियों को अधिक संसाधनों, कानूनी शक्तियों और अधिकारियों को तलब करने की क्षमता देकर सशक्त बनाया जाए।

    विस्तृत जाँच के लिये विधेयकों को समितियों को अनिवार्य रूप से भेजने की व्यवस्था लागू करना

    विलंबित रिपोर्ट और प्रवर्तन तंत्र का अभाव।

    बैठकों का सीधा प्रसारण और रिपोर्टों का व्यापक प्रकाशन करके पारदर्शिता को बढ़ावा देना।

    राजनीतिक हस्तक्षेप

    आम सहमति बनाने और राजनीतिक संघर्षों को कम करने के लिये द्वि-दलीय संस्कृति को बढ़ावा देना।

    कम जन जागरूकता और सीमित मीडिया कवरेज़

    समिति प्रक्रियाओं में नागरिक समाज, विशेषज्ञों और हितधारकों की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

    निष्कर्ष:

    संसदीय समितियाँ भारत के लोकतांत्रिक शासन के लिये अपरिहार्य हैं, संस्थागत सुधारों और संवर्द्धित पारदर्शिता के माध्यम से वर्तमान चुनौतियों का समाधान संसदीय लोकतंत्र को मज़बूत करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को बहाल और बढ़ा सकता है।

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