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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    गरीबी, बेरोज़गारी तथा समावेशी विकास के बीच अंतर्संबंधों का विश्लेषण करते हुए इन चुनौतियों से निपटने हेतु नीतिगत उपायों पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)

    20 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत गरीबी, बेरोजगारी और समावेशी विकास के साथ कीजिये।
    • गरीबी, बेरोज़गारी और समावेशी विकास के बीच संबंध का वर्णन कीजिये।
    • इन चुनौतियों से निपटने के लिये नीतिगत उपायों का उल्लेख कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    गरीबी एक बहुआयामी घटना है, जिसमें न केवल आय की कमी बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और बुनियादी सुविधाओं की कमी भी शामिल है, जबकि बेरोज़गारी उस स्थिति को संदर्भित करती है, जहाँ काम करने के इच्छुक व्यक्तियों को उपयुक्त रोज़गार के अवसर नहीं मिल पाते हैं।

    मुख्य भाग:

    गरीबी, बेरोज़गारी और समावेशी विकास के बीच अंतर्संबंध:

    • गरीबी और बेरोज़गारी का संबंध:
      • बेरोज़गारी का उच्च स्तर व्यक्तियों की आय-सृजन के अवसरों तक पहुँच को सीमित करके गरीबी में योगदान देता है।
      • इसके विपरीत, गरीबी शिक्षा और कौशल विकास तक पहुँच को प्रतिबंधित करके गरीबी के चक्र को बढ़ाकर बेरोज़गारी को कायम रख सकती है।

    Poverty

    • समाधान के रूप में समावेशी विकास:
      • समावेशी विकास गरीबी उन्मूलन और बेरोज़गारी उन्मूलन के लिये एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है।
      • रोज़गार के अवसर उत्पन्न करके, विशेष रूप से कृषि, विनिर्माण और सेवाओं जैसे उच्च श्रम तीव्रता वाले क्षेत्रों में समावेशी विकास व्यक्तियों को गरीबी के जाल से बचने में सक्षम बनाता है।
    • सामाजिक बहिष्कार और बेरोजगारी:
      • जाति, लिंग और जातीयता जैसे कारकों के परिणामस्वरूप होने वाला सामाजिक बहिष्कार, हाशिये पर रहने वाले समूहों के बीच बेरोज़गारी को बढ़ाता है।
      • समावेशी विकास नीतियों को सकारात्मक कार्रवाई को बढ़ावा देने, शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करने और श्रम बाज़ार में भेदभावपूर्ण प्रथाओं को खत्म करके इन संरचनात्मक बाधाओं को दूर करना आवश्यक है।

    गरीबी, बेरोज़गारी को संबोधित करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ:
    समाज कल्याण कार्यक्रम:

    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): गरीबी और बेरोज़गारी को कम करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिनों की गारंटीकृत मज़दूरी रोज़गार प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP): गरीबी कम करने के लिये बुज़ुर्गो, विधवाओं और विकलांगों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM): विविध और लाभकारी स्व-रोज़गार एवं मजदूरी रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा देकर गरीबी को कम करना है।
    • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): इसने सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना, स्थायी आजीविका बनाने और विभिन्न क्षेत्रों में गरीबी को कम करने की सुविधा प्रदान की है।

    कौशल विकास पहल:

    • कौशल भारत मिशन: वर्ष 2022 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को विभिन्न कौशल में प्रशिक्षित करने, रोज़गार क्षमता बढ़ाने और बेरोज़गारी कम करने का लक्ष्य है।
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): देश भर में युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करती है, जिससे रोज़गार के बेहतर अवसर मिलते हैं।
      • केरल की कुदुम्बश्री पहल ने कौशल विकास एवं सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाया है, जिससे राज्य में गरीबी और बेरोज़गारी दर में काफी कमी आई है।
    • समावेशी विकास को बढ़ावा देना:
      • वित्तीय समावेशन: जन धन योजना जैसी पहल का उद्देश्य गरीबों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने, उन्हें बचत करने, निवेश करने और ऋण तक पहुँचने में सक्षम बनाना है।
      • बुनियादी ढाँचा विकास: ग्रामीण और अविकसित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे में सुधार से नौकरियाँ उत्पन्न हो सकती हैं तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे गरीबों को लाभ होगा।
    • श्रम सुधार:
      • मज़दूरी पर श्रम संहिता, 2019: न्यूनतम मज़दूरी और मज़दूरी का समय पर भुगतान सुनिश्चित करता है, श्रमिकों के जीवन स्तर में सुधार करता है तथा गरीबी को कम करता है।
      • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020: इसका उद्देश्य श्रम कानूनों को सरल बनाना और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना है, जिससे संभावित रूप से रोज़गार सृजन में वृद्धि होगी।

    निष्कर्ष:

    गरीबी, बेरोज़गारी और समावेशी विकास आपस में जुड़ी हुई चुनौतियाँ हैं, जिनके प्रभावी शमन के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इन चुनौतियों से निपटने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये कौशल विकास, सामाजिक कल्याण, वित्तीय समावेशन एवं बुनियादी ढाँचे के विकास को लक्षित करने वाले नीतिगत उपाय महत्त्वपूर्ण हैं।

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