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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘‘संतोष प्राप्ति में नहीं, बल्कि प्रयास में होता है। पूरा प्रयास पूर्ण विजय है।’’ इस कथन की प्रासंगिकता व विभिन्न घटनाओं के संदर्भ में व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)

    04 Nov, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    इंदिरा गांधी का यह कथन आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है। यह कथन स्वयं में इतिहास, वर्तमान और भविष्य को संजोए हुए है।

    ‘संतोष प्राप्ति में नहीं’ पक्ष इतिहास की व्याख्या करता है अर्थात्, जिसने भी अपने ध्येय की प्राप्ति कर लिया है उसने संतोष भी प्राप्त कर लिया है, यह आवश्यक नहीं है। जैसे- अशोक की कलिंग विजय ने साम्राज्य विस्तार की नीतियों में तो लाभ पहुँचाया लेकिन मन के स्तर पर तीव्र असंतोष को जन्म दिया।

    इसी प्रकार ‘पूरा प्रयास’ हमारे वर्तमान के संदर्भ को स्पष्ट करता है कि किसी भी कार्य के लिये किये गए प्रयास में पूरे मनोयोग, नैतिकता आदि का समावेश होना चाहिये जो संतोष की प्राप्ति हेतु अहम है। उदाहरण के लिये लक्ष्मीबाई द्वारा अंग्रेज़ों के विरुद्ध अभियान अंतिम पराजय के बावजूद अपने प्रयासों के कारण प्रसिद्ध है।

    तत्पश्चात् भविष्य की पूर्ण विजय से तात्पर्य, किये गए प्रयास के प्रति संतोष की स्थिति है और यही वास्तविक अर्थों में विजय है।

    • वर्तमान के संदर्भ में देखें तो हाल ही में जुलाई 2019 में प्रक्षेपित ‘चंद्रयान-2’ मिशन की वास्तविक सफलता इसके पीछे की गई मेहनत, नैतिक उद्देश्य थी जिसने वैज्ञानिकों के साथ-साथ सभी भारतीयों को रोवर की सॉफ्ट-लैंडिंग की असफलता के स्थान पर आगामी मानव-मिशन की सफलता की ओर बढ़ने के प्रति आशान्वित किया।
    • शिक्षा के स्तर पर देखें तो सफलता का वास्तविक उद्देश्य केवल शत-प्रतिशत साक्षरता दर प्राप्त कर लेना ही नहीं है बल्कि इसके पीछे निहित उद्देश्य सर्वांगीण-विकास की प्राप्ति है। साक्षरता दर की प्राप्ति हमें उस संतोष की ओर नहीं ले जा सकती जो व्यक्ति के मानसिक विकास, अधिकारों एवं कर्त्तव्य के प्रति चेतना और जीवन के वास्तविक मूल्यों की प्राप्ति में अंतर्निहित संतोष में है।
    • एक नीति-निर्माता तथा उसे लागू करने वाले लोकसेवक के लिये संतोष, नीति को बना देना या उसे पूरे ज़िले में लागू कर देना मात्र ही नहीं है बल्कि उसकी बेहतर पहुँच, व्रियान्वयन के लिये की गई कोशिशें और अवरोधों को दूर करने हेतु किये गए नीतिगत प्रयास सही मायने में संतोष है।
    • इंदिरा गांधी का यह कथन युवाओं को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला है जिसके अनुसार प्रयास का आधार ऐसा हो कि उससे पूर्ण विजय प्राप्त हो सके। आज के भौतिकवादी युग में पूर्ण विजय का अर्थ केवल किसी परीक्षा को पास कर लेना, अधिकाधिक धन की प्राप्ति और किसी ऊँचे पद को प्राप्त कर लेने आदि तक ही सीमित हो गया है जिसने मानसिक स्तर पर एक अधूरेपन को उभारा है और यह तय है कि हर अधूरापन अपने साथ किसी असंतुलन को समाहित किये रहता है।
    • आज यही असंतुलन अनेक समस्याओं का कारण है। आत्महत्या, मानसिक विकार, व्यक्तिगत-व्यवसायिक संबंधों में तनाव आदि इसी असंतुलन के कड़वे फल है जो हमारी सभ्यता की जड़ों में कड़वाहट घोलने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
    • इन असंतुलन को संतुलित करने में सबसे महत्त्वपूर्ण है कि प्रयासों के स्तर पर नैतिकता, संतोष, मनोयोगों का समावेश उचित रूप में हो जिससे व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक आदि सभी पक्षों की उन्नति के स्तर पर संतुलित विकास संबद्ध एक स्वच्छ परिवेश का निर्माण संभव हो सके। इसी स्वच्छ परिवेश के धरातल पर पूरे प्रयास से प्राप्त की गई विजय या पराजय की स्थिति ही वास्तविक पूर्ण विजय है जो वर्तमान के साथ सुनहरे भविष्य का निर्माण करेगी।

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