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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    संघ सरकार के समक्ष विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा मुख्य चुनौती के रूप में उपस्थित है। उपरोक्त परिस्थिति के संदर्भ में विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की माँगों की व्यवहार्यता का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    18 Oct, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग का व्यावहारिक परीक्षण कीजिये।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भूमिका लिखिये
    • विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे को स्पष्ट कीजिये।
    • इस संदर्भ में वर्तमान विवाद का उल्लेख कीजिये।
    • विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग का व्यवहारिक परीक्षण कीजिये।
    • निष्कर्ष दीजिये।

    स्वतंत्रता के समय देश के अलग-अलग राज्यों की भौगोलिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भारी असमानता थी। एक तरफ वे राज्य थे जो सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बेहतर थे तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे पिछड़े राज्य थे जहाँ सरकारी योजनाओं को पहुँचाना तक कठिन था। ऐसी परिस्थिति में भारत सरकार ने विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की अवधारणा को मंज़ूरी प्रदान की। लेकिन वर्तमान में विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग को लेकर संसदीय कार्यवाही का स्थगन बेहद चर्चित व गंभीर विषय बना हुआ है। इस संदर्भ में विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की वर्तमान मांगों का व्यावहारिक परीक्षण किया जाना अतिआवश्यक हो जाता है।

    • विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा प्राप्त होने के पश्चात् राज्यों की केंद्रीय सहायता में वृद्धि हो जाती है। सामान्य राज्यों को केंद्र से 70 फीसदी कर्ज़ के रूप में तथा 30 फीसदी मदद के तौर पर प्राप्त होता है। वहीं, विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा प्राप्त करने के पश्चात् 10 फीसदी कर्ज़ के तौर पर तथा 90 फीसदी वित्तीय मदद बतौर अनुदान प्राप्त होती है। इसके अलावा, इन विशेष राज्यों को कर या शुल्क संबंधी रियायतें भी प्राप्त होती हैं जिससे इन राज्यों में पूंजी निवेश के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है। फलस्वरूप रोज़गार के नए अवसरों का सृजन भी होता है।
    • वर्तमान में विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग को लेकर आंध्र प्रदेश के सांसद संसदीय कार्यवाही के कामकाज में अवरोध पैदा करते हैं। आंध्र प्रदेश के अतिरिक्त बिहार, ओडिशा, गोवा व राजस्थान जैसे राज्य भी विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग को लगातार उठाते रहते हैं। ध्यातव्य है कि क्षेत्रीय दलों द्वारा अपनी क्षेत्रीय राजनीति में लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रेरित होकर विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग को उठाई जाती रही है। वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार के पास भी संसाधनों की उपलब्धता तथा वितरण को लेकर सीमित अवसर ही विद्यमान हैं।
    • चौदहवें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आलोक में केंद्र सरकार राज्यों की विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग को नहीं मान सकती क्योंकि चौदहवें वित्त आयोग (2015-16 से लागू) की सिफारिशों के लागू होने के बाद से राज्यों की हिस्सेदारी में वृद्धि हो गई है। अब केंद्र के कर संग्रह में से राज्यों की हिस्सेदारी 32 फीसदी से बढ़ाकर 42 फीसदी कर दी गई है। अत: राज्यों की विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग को मानना अब अव्यावहारिक हो गया है। संघ सरकार द्वारा चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों को मानते हुए राज्यों को पर्याप्त संसाधनों का आवंटन किया जा रहा है, फिर भी कुछ राज्यों द्वारा अपनी क्षेत्रीय राजनीति की महत्त्वाकांक्षाओं को संतुष्ट करने के उद्देश्य से विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे की मांग को रखा जाता है तथा अपनी मांगों को मनवाने के लिये संसदीय कार्यवाही में अवरोध उत्पन्न किया जाता है, जो कि पूर्णतया अव्यावहारिक है।

    निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि विशेष श्रेणी राज्य के दर्जे की मांग व उसे माना जाना न केवल राजकोष पर अतिरिक्त भार को बढ़ाएगा बल्कि यह एक विकृत राजनीति को भी जन्म देगा। अत: आवश्यक है कि राज्यों में विद्यमान संसाधनों के वैज्ञानिक उपयोग को बढ़ावा दिया जाए तथा उनके आर्थिक एवं औद्योगिक ढाँचे को मज़बूत किया जाए।

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