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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सरकार द्वारा नागरिकता कानूनों में बदलाव हेतु प्रस्तावित ‘नागरिकता (संशोधन) बिल-2016’ शरणार्थियों के अधिकारों की पहचान एवं उनके संरक्षण में किस सीमा तक सहायक हो सकता है? तर्कपूर्ण उत्तर दें। (250 शब्द)

    20 May, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    ♦ प्रस्तावित नागरिकता संशोधन बिल-2016 द्वारा किये गए प्रमुख बदलाव।

    ♦ बदलावों का शरणार्थियों के अधिकार की पहचान एवं उसके संरक्षण के संदर्भ में मूल्यांकन।

    हल करने का दृष्टिकोण

    ♦ भारत में शरणार्थी समस्या को संक्षेप में बताते हुए उत्तर की शुरुआत करें।

    ♦ नागरिकता संशोधन बिल-2016 द्वारा किये गए प्रमुख बदलावों का उल्लेख करें।

    ♦ इन बदलावों का मूल्यांकन करते हुए, आगे क्या होना चाहिये इस पर सुझाव भी दें।

    ♦ अंत में निष्कर्ष लिखें।

    भारत आज़ादी के बाद से शरणार्थी समस्या का सामना करता आ रहा है। पड़ोसी देशों में घटित होने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण वहाँ के लोग भारत में अवैध अप्रवासी या शरणार्थी के रूप में आते रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं तिब्बती शरणार्थी, बंग्लादेशी शरणार्थी, श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी, पाकिस्तान के शरणार्थी तथा रोहिंग्या आदि। लेकिन भारत सरकार की किसी राष्ट्रीय शरणार्थी नीति के अभाव में शरणार्थियों के अधिकारों की पहचान एवं उनके संरक्षण को लेकर प्रश्न उठते रहे है। सरकार द्वारा नागरिकता कानूनों में बदलाव हेतु प्रस्तावित नागरिकता संशोधन बिल 2016 के प्रमुख बदलाव निम्नलिखित हैं:

    • पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान से आए धार्मिक अल्पसंख्यक (हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी एवं ईसाई) समुदाय से संबंध रखने वाले अवैध अप्रवासियों को नागरिकता ग्रहण करने के योग्य बनाता है।
    • देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिये निवास योग्य पात्रता को 11 साल से घटाकर 6 साल कर दिया गया।
    • विदेशी भारतीय नागरिक (OCI) कार्डधारक के रजिस्ट्रेशन को भारत सरकार के किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर कैंसिल करने का प्रावधान किया गया है। पहले यह प्रावधान कुछ निश्चित मामलों के ही संदर्भ में था।
    • वस्तुत: यह प्रस्तावित बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान से आए धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के अवैध अप्रवासियों या शरणार्थियों के अधिकारों की पहचान करता है तथा उन्हें संरक्षित करता है। इस दृष्टि से यह सराहनीय प्रयास है।

    लेकिन इस बिल में शरणार्थियों की समस्या का समग्रता में समाधान करने का प्रयास नहीं किया गया है, जैसे:

    • यह उपर्युक्त तीनों देशों से संबंध रखने वाले मुस्लिम समुदाय या नास्तिक विचारधारा वालों के मामले में भेदभाव करता है। यह संविधान के अनुच्छेद-14 के समता के अधिकार का उल्लंघन करता है। उदाहरण के लिये पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान को कई प्रकार के उत्पीड़न एवं भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
    • इस बिल में 1970 के दशक में श्रीलंका से आए भारतीय मूल के तमिल शरणार्थियों के अधिकारों का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। ये शरणार्थी आज भी अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद कानून के अभाव में अच्छे रोज़गार से पाने से वांचित रह जाते हैं।
    • हाल के समय में म्याँमार से आए उत्पीड़ित रोहिंग्या शरणार्थियों के अधिकारों के बारे में कोई बात नहीं की गई है।

    वस्तुत: भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन एवं 1967 के प्रोटोकाल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है। इसलिये कन्वेंशन में परिभाषित शरणार्थी अधिकारों एव उसके संरक्षण के लिये भारत पर कोई बाध्यता नहीं है। अत: भारत ने अलग-अलग मामलों में शरणार्थी अधिकारों को सुनिश्चित किया है।

    समग्रता में शरणार्थियों के अधिकारों की पहचान एवं उनके सरंक्षण के संदर्भ में निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

    • मानवता के नाते शरणार्थियों के अधिकारों एवं उनकी सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिये। उच्चतम न्यायालय ने भी खुदीराम बोस बनाम अरुणाचल प्रदेश मामले में शरणार्थी सुरक्षा के महत्त्व पर ज़ोर दिया था।
    • भारत में वसुधैव कुटुम्बकम् की ऐतिहासिक परम्परा रही है, अत: भारत को संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर कर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप एक राष्ट्रीय शरणार्थी नीति बनानी चाहिये।
    • शरणार्थी समस्या एक वैश्विक समस्या है, अत: इसका समाधान सभी राष्ट्रों द्वारा मिलकर करने का प्रयास किया जाना चाहिये।

    निष्कर्षत: कह सकते हैं कि प्रस्तावित नागरिकता संशोधन बिल-2016 शरणार्थियों के अधिकारों की पहचान एवं उनके सरंक्षण को टुकड़ों में देखता है, इसका समग्रता में समाधान करने के लिये एक राष्ट्रीय शरणार्थी नीति बनानी होगी।

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