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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    आपकी राय में भारत जैसे आधुनिक, लोकतांत्रिक व कल्याणकारी राज्य में सरकार एक अच्छी सेवा प्रदाता कैसे बन सकती है?

    23 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    वर्तमान में शासन-प्रणाली की कुशलता व सफलता इस बात से आंकी जाती है कि वह अपने नागरिकों को विभिन्न सेवाएँ कितने प्रभावी व बेहतर तरीके से प्रदान करती है। उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण से पूर्व अधिकांश सेवाओं के मामले में राज्य एकमात्र सेवा-प्रदात्ता था, इसीलिये उपभोक्ताओं का कोई खास महत्त्व नहीं था। किंतु, उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण के पश्चात् निजी क्षेत्र ने सेवा प्रदायगी के मामलों में बेहतर मानक स्थापित किये हैं। सूचना व संचार तकनीकी के विकास, सूचना के अधिकार, सिविल सोसाइटी आंदोलनों एवं सोशल मीडिया के कारण अब सरकार पर भी पारदर्शिता रखने, उत्तरदायित्व निभाने व अच्छी गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ प्रदान करने का दबाव बढ़ा है। लोक प्रशासन की नई आवधारणाएँ तथा स्वेच्छातंत्रवादी विचारक तो राज्य को सेवा-प्रदाता के रूप में ही परिभाषित करने लगे हैं।

    ऐसे में, मेरी राय में निम्नलिखित उपाय अपनाकर एक सरकार अच्छी सेवा प्रदाता बन सकती है-

    • व्यक्तियों को उपभोक्ताओं के रूप में तथा खुद को सेवा-प्रदाता के रूप में देखना न कि स्वयं को मालिक व उपभोक्ताओं को प्रजा समझना।
    • अगर सेवा प्रदायन में कमियाँ हैं, तो लोगों को उसका विरोध करने का पर्याप्त अधिकार दिया जाना चाहिये।
    • सिटीजन रिपोर्ट कार्ड की व्यवस्था लागू की जानी चाहिये। इसके अंतर्गत जो नागरिक किसी कार्यालय से सेवा प्राप्त करते हैं, उनके फीड बैंक के आधार पर कर्मचारियों का मूल्यांकन होता है तथा वेतन वृद्धि जैसे लाभ दिये जाते हैं।
    • जहाँ तक संभव हो सके बहुत सारी सेवाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध होनी चाहिये, ताकि न्यूनतम समय खर्च करके नागरिक सेवाएँ प्राप्त कर सकें।
    • सूचना तकनीक का प्रभावी उपयोग करते हुए शहर के सभी स्थानों पर कियोस्क लगाए जाएँ ताकि बहुत सी सेवाएँ हर समय, हर जगह उपलब्ध हों।
    • सभी विभागों को सिटीजन चार्टर की व्यवस्था प्रभावी तरीके से लागू करनी चाहिये। निजी क्षेत्र की तरह, जहाँ तक संभव हो नागरिकों को उनके घर पर ही सेवा प्राप्त करने का विकल्प मिलना चाहिये।
    • प्रत्येक सेवा के मामले में प्रतिस्पर्धा की स्थिति हो जिसमे पूर्ण निजीकरण, सीमित निजीकरण या सरकारी संगठनों के बीच प्रतिस्पर्धा के मॉडल्स का प्रयोग किया जा सकता है। नागरिकों को अधिकार हों कि वे जब चाहें सेवा-प्रदाता को बदल सकें। सेवा प्रदाताओं के मूल्यांकन का एक प्रमुख आधार यह हो कि कितने नागरिकों ने उसकी सेवा को छोड़ा तथा कितने नागरिकों ने किसी और की सेवा को छोड़कर उसे चुना।
    • सरकार के लिये संभव नहीं है कि वह हर सेवा, हर व्यक्ति तक पहुँचा सके, इसलिये निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करना जरूरी है।
    • उपभोक्ता अधिकारों से संबंधित कानूनों, नियमों तथा विनियमों का अधिकतम प्रचार करना, उपभोक्ता अदालतों तक सीधी पहुँच बनाना, जिसमें किसी वकील या मध्यस्थ की आवश्यकता न पड़़ती हो। 

    इस प्रकार भारत जैसा लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य अपने नागरिकों की अपेक्षाओं पर बेहतर तरीके से खरा उतर सकता है।

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