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एक राज्य विभाग में लोक सूचना अधिकारी (PIO) के पद पर तैनात IAS अधिकारी ऋतिका, RTI अनुरोधों के निपटान में व्यापक कुप्रबंधन के कारण बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रही हैं। नागरिक लगातार शिकायत कर रहे हैं कि सूचना देने में विधिक समय-सीमा से अधिक विलंब किया जा रहा है, सूचनाएँ अधूरी हैं या मनमाने ढंग से छूट (Exemption) के आधार पर अस्वीकार की जा रही हैं। कई RTI आवेदन सार्वजनिक खरीद, पर्यावरणीय मंज़ूरी और निधि उपयोग से संबंधित हैं, जिससे भ्रष्टाचार एवं प्रशासनिक अस्पष्टता की चिंताएँ बढ़ रही हैं।
ऋतिका के बार-बार स्मरण कराने और फॉलो-अप करने के बावजूद, लंबित RTI प्रकरणों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। विभाग के कुछ वरिष्ठ अधिकारी समयबद्ध अनुपालन से बचने का परोक्ष दबाव बना रहे हैं क्योंकि उन्हें आशंका है कि सूचनाओं के खुलासे से कुछ अनियमितताएँ उजागर हो सकती हैं और प्रभावशाली ठेकेदारों या राजनीतिक संरक्षण प्राप्त व्यक्तियों की संलिप्तता सामने आ सकती है। कुछ कनिष्ठ अधिकारी भी यह भय व्यक्त कर चुके हैं कि यदि वे RTI अधिनियम का सख्ती से पालन करेंगे तो उन्हें उत्पीड़न, स्थानांतरण या न्यायिक मामलों का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी ओर, नागरिक समाज संगठन तथा मीडिया संस्थान पारदर्शिता, समयबद्ध सूचना-प्रदान और सार्वजनिक उत्तरदायित्व की माँग कर रहे हैं।
राज्य सरकार, संभावित नकारात्मक प्रचार और राजनीतिक परिणामों को ध्यान में रखते हुए, ऋतिका को परोक्ष रूप से यह निर्देश दे रही है कि वह “अनावश्यक खुलासों से बचें” और विभागीय समरसता बनाए रखें। साथ ही, केंद्रीय सूचना आयोग एवं स्थानीय न्यायालय RTI अनुपालन पर सक्रिय निगरानी रखे हुए हैं तथा विलंब व आंशिक सूचनाओं के विरुद्ध कुछ जनहित याचिकाएँ (PILs) भी दायर की जा चुकी हैं।
प्रश्न:
A. इस स्थिति में ऋतिका के सामने कौन-सी नैतिक दुविधाएँ हैं?
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
B. उसके लिये उपलब्ध विकल्पों और उनके संभावित परिणामों का मूल्यांकन कीजिये।
C. प्रशासनिक उत्तरदायित्व और नागरिक-केंद्रित शासन के आधार पर ऋतिका के लिये सबसे उपयुक्त कार्रवाई प्रस्तावित कीजिये।
D. पारदर्शिता और सहभागी शासन सुनिश्चित करते हुए, RTI कार्यान्वयन में सुधार, लंबित मामलों को कम करने तथा अधिकारियों को प्रतिशोध से बचाने के लिये दीर्घकालिक प्रणालीगत सुधारों का प्रस्ताव कीजिये।