प्रारंभिक परीक्षा
सेमी-क्रायोजेनिक चरण के साथ LVM3
- 07 Aug 2025
- 49 min read
चर्चा में क्यों?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने LVM3 प्रक्षेपण यान की सेमी-क्रायोजेनिक प्रणोदन चरण (सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपल्शन स्टेज) से सुसज्जित पहली उड़ान के लिये वर्ष 2027 की पहली तिमाही का लक्ष्य निर्धारित किया है।
क्रायोजेनिक और सेमी-क्रायोजेनिक इंजन क्या हैं?
- क्रायोजेनिक इंजन/क्रायोजेनिक चरण: क्रायोजेनिक चरण में प्रणोदक के रूप में तरल ऑक्सीजन (LOX) और तरल हाइड्रोजन (LH2) का उपयोग किया जाता है, जिन्हें क्रमशः -183°C और -253°C पर द्रवित किया जाता है।
- इसका उपयोग GSLV जैसे प्रक्षेपण वाहनों के ऊपरी चरण में किया जाता है, जिससे उच्च दक्षता और थ्रस्ट प्राप्त होता है।
- क्रायोजेनिक्स का उपयोग MRE मशीनों ( शीतलन के लिये तरल हीलियम का उपयोग), खाद्य भंडारण और संरक्षण, विशेष प्रभाव (कृत्रिम कोहरा), पुनर्चक्रण (सामग्री पृथक्करण), जैव चिकित्सा संरक्षण (रक्त और ऊतक के नमूनों को जमाना ) तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक उपयोग के लिये सुपरकंडक्टरों को ठंडा करने में भी किया जाता है।
- भारत ने अपनी स्वयं की क्रायोजेनिक तकनीक विकसित की, जिसका पहला इंजन परीक्षण 2003 में और पहली सफल उड़ान 2014 में (GSLV-D5/GSAT-14) के माध्यम से हुआ।
- सेमी-क्रायोजेनिक इंजन: सेमी-क्रायोजेनिक प्रणोदन इंजन/चरण तरल ऑक्सीजन (LOX) और परिष्कृत हाइड्रोकार्बन ईंधन (जैसे—केरोसिन) के संयोजन का उपयोग प्रणोदकों के रूप में करता है।
- इसे भविष्य के भारी-भरकम प्रक्षेपण यानों के बूस्टर चरणों को शक्ति प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है तथा यह क्रायोजेनिक प्रणालियों की तुलना में उच्च घनत्व वाला आवेग प्रदान करता है, जिससे समग्र प्रणोदन प्रदर्शन में वृद्धि होती है। यह अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (NGLV) जैसे आगामी प्लेटफार्मों का समर्थन करेगा।
क्रायोजेनिक इंजन और सेमी-क्रायोजेनिक इंजन में अंतर:
विशेषता |
क्रायोजेनिक इंजन |
सेमी-क्रायोजेनिक इंजन |
ईंधन |
तरल हाइड्रोजन (LH₂) + तरल ऑक्सीजन (LOX) |
परिष्कृत केरोसिन (RP-1) + तरल ऑक्सीजन (LOX) |
ईंधन का तापमान |
LH₂ पर –253°C, LOX पर –183°C |
–183°C, केरोसिन कमरे के तापमान पर संग्रहीत किया जाता है |
जटिलता |
अधिक (क्योंकि अत्यधिक ठंडे LH₂ को संभालना चुनौतीपूर्ण होता है) |
कम (केरोसिन कमरे के तापमान पर स्थिर होता है) |
लागत |
महँगा (LH₂ का उत्पादन/संग्रहण महँगा, जटिल अवसंरचना) |
सस्ता (केरोसिन किफायती और सरल स्टोरेज के साथ) |
थ्रस्ट (बल) |
निम्न थ्रस्ट लेकिन उच्च विशिष्ट आवेग (स्पेस में कुशल) |
उच्च थ्रस्ट (भारी रॉकेटों को लॉन्च करने के लिये उपयुक्त) |
लाभ |
उच्च दक्षता (विशिष्ट आवेग ~450 सेकंड) - स्वच्छ उत्सर्जन (जल वाष्प) |
- उच्च थ्रस्ट-टू-वेट अनुपात - उच्च घनत्व आवेग (अधिक ईंधन संग्रहण) - लागत प्रभावी |
LVM3 प्रक्षेपण यान क्या है?
- LVM3 इसरो का सबसे शक्तिशाली, अधिक भार वाला, 3-चरणीय प्रक्षेपण यान है, जिसे पहले जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Mk III (GSLV Mk III) के नाम से जाना जाता था।
- इसकी पहली प्रायोगिक उड़ान दिसंबर 2014 में हुई थी और यह 4000 किलोग्राम तक के पेलोड को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में प्रक्षेपित करने में सक्षम है।
- 3 चरण:
- प्रथम चरण: दो S200 ठोस स्ट्रैप-ऑन बूस्टर कोर के किनारों से जुड़े होते हैं, जिनमें ठोस प्रणोदक के रूप में हाइड्रॉक्सिल-टर्मिनेटेड पॉलीब्यूटाडाइन (HTPB) का उपयोग किया जाता है।
- दूसरा चरण (कोर चरण): L110 द्रव चरण, ड्यूल विकास इंजनों द्वारा संचालित होता है, जिसमे ईंधन के रूप में असममित डाइमिथाइलहाइड्राजीन (UDMH) और नाइट्रोजन टेट्रोक्साइड (N₂O₄) का प्रयोग किया जाता है।
- तीसरा चरण (उच्च चरण): C25 क्रायोजेनिक चरण, CE20 इंजन द्वारा संचालित, प्रणोदक के रूप में तरल हाइड्रोजन (LH₂) तथा तरल ऑक्सीजन (LOX) का उपयोग किया जाता है।
- LVM3 प्रक्षेपण यान में प्रमुख उन्नयन:
- LVM3 उन्नयन में L110 तरल चरण को SC120 सेमी-क्रायोजेनिक चरण से प्रतिस्थापित किया गया है, जो SE2000 इंजन (200 टन थ्रस्ट) द्वारा संचालित होता है। इस इंजन में परिष्कृत केरोसीन (RP-1) और तरल ऑक्सीजन (LOX) का उपयोग किया जाता है।
- इसके साथ ही C25 क्रायोजेनिक चरण की क्षमता को बढ़ाकर 32 टन कर दिया गया है। यह सुधार GTO (जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट) पेलोड क्षमता को लगभग 5,200 किलोग्राम तक बढ़ाता है, लॉन्च लागत को लगभग 25% तक कम करता है तथा पर्यावरणीय सुरक्षा को बेहतर बनाता है।
- यह उन्नयन भारत की भविष्य की उपग्रह मिशनों के लिये भारी-लिफ्ट क्षमता को बढ़ावा देता है तथा ISRO की अगली पीढ़ी के लॉन्च योजनाओं के साथ मेल खाता है।
इसरो के LVM3 रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित प्रमुख मिशन कौन-से हैं?
मिशन का नाम |
लॉन्च वर्ष |
पेलोड / उद्देश्य |
टिप्पणी |
LVM-3/CARE मिशन |
2014 |
क्रू मॉड्यूल ऐट्मस्फेरिक रि-एंट्री एक्सपेरिमेंट (CARE) |
एक्सपेरिमेंटल सबऑर्बिटल फ्लाइट, पुनःप्रवेश का परीक्षण |
LVM3-D1 / GSAT-19 मिशन |
2017 |
पहली कक्षा परीक्षण उड़ान |
|
LVM3-D2 / GSAT-29 मिशन |
2018 |
GSAT-29 संचार उपग्रह |
भारी संचार उपग्रह प्रक्षेपण का प्रदर्शन |
LVM3-M1 / चंद्रयान-2 |
2019 |
चंद्रयान-2 ऑर्बिटर, लैंडर, और रोवर |
|
LVM3-M2 / OneWeb इंडिया-1 |
2022 |
36 OneWeb Gen-1 उपग्रह (निम्न पृथ्वी कक्षा, LEO) |
OneWeb इंडिया-1 मिशन |
LVM3-M3 / OneWeb इंडिया-2 |
2023 |
36 OneWeb Gen-1 उपग्रह (LEO) |
|
LVM3-M4 / चंद्रयान-3 |
2023 |
चंद्रयान-3 लूनार लैंडर और रोवर |
भारत का तीसरा चंद्रयान मिशन |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
- PSLV से वे उपग्रह प्रमोचित किये जाते हैं, जो पृथ्वी संसाधनों की मोनिटरिंग में उपयोगी हैं जबकि GSLV को मुख्यतः संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
- PSLV द्वारा प्रमोचित उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर रहते प्रतीत होते हैं जैसा कि पृथ्वी के एक विशिष्ट स्थान से देखा जाता है।
- GSLV Mk III एक चार स्टेज वाला प्रमोचन वाहन है, जिसमें प्रथम और तृतीय चरणों में ठोस रॉकेट मोटरों का तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरणों में द्रव रॉकेट इंजनों का प्रयोग होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) 1 और 2
(d) केवल 3
उत्तर: (a)