ध्यान दें:





डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

भारत के उच्च शिक्षा मॉडल पर पुनर्विचार

  • 17 Jul 2025
  • 31 min read

यह एडिटोरियल 15/07/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Fixing higher education: Research quality, soft skills gap, and NEP 2020 reforms” लेख पर आधारित है। यह लेख भारत की उच्च शिक्षा के समक्ष उपस्थित गंभीर चुनौतियों, जैसे: अकादमिक स्तरों में गिरावट, सॉफ्ट स्किल्स की कमी और बढ़ती व्यवसायीकरण प्रवृत्ति को केंद्र में लाता है।

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस योजना, DIKSHA (नॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग), उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी, लैंगिक समानता सूचकांक, सकल नामांकन अनुपात

मेन्स के लिये:

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में प्रमुख विकास, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है, जहाँ उसे अकादमिक अनुशासन के क्षय, सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षण की कमी और बढ़ती व्यावसायिकीकरण की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पहले यह व्यवस्था सुदृढ़ बुनियादी सिद्धांतों और निर्देशित मेंटॉरशिप पर आधारित थी, पर आज अनेक संस्थान गुणवत्ता एवं उद्देश्य की जगह रैंकिंग व राजस्व को प्राथमिकता देने लगे हैं। हालाँकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 एक प्रगतिशील ढाँचा प्रस्तुत करती है, लेकिन इसका असमान कार्यान्वयन चिंताएँ उत्पन्न करता है। इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिये एक रणनीतिक पुनर्निर्देशन आवश्यक है, जो आधारभूत उत्कृष्टता, नैतिक नेतृत्व और संस्थागत सत्यनिष्ठा पर आधारित हो।

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में प्रमुख विकास क्या हैं?  

  • राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (SPU) का विस्तार और समावेशी अभिगम: उच्च शिक्षा नेटवर्क के विस्तार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (SPU) के विकास के माध्यम से महत्त्वपूर्ण रूप से प्रदर्शित हुई है, जो शिक्षा को अधिक सुलभ बनाने के लिये केंद्रीय बन गए हैं, विशेष रूप से वंचित और ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • कुल छात्र नामांकन में 81% का योगदान देने वाले SPU, उच्च शिक्षा तक पहुँच में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण हैं तथा लाखों छात्रों, विशेषकर वंचित समुदायों के छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं।
    • ये विश्वविद्यालय अब 3.25 करोड़ से अधिक छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, जो एक समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के वर्ष 2035 तक नामांकन को दोगुना करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के अनुरूप है।
  • शोध प्रकाशन और वैश्विक मान्यता में पर्याप्त वृद्धि: भारत के शोध परिदृश्य में एक क्रांतिकारी वृद्धि देखी गई है, जिसमें वैश्विक शोध में देश का योगदान वर्ष 2017 के 3.5% से बढ़कर वर्ष 2024 में 5.2% हो गया है।
    •  इस शोध वृद्धि का प्रमुख कारण IIT जैसे संस्थानों की सक्रिय भूमिका है, जो देश के कुल शोध प्रकाशनों का 24% से अधिक योगदान देते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीयकरण और वैश्विक सहयोग: भारत अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, जैसा कि इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस योजना जैसी पहलों से स्पष्ट है, जो चुनिंदा संस्थानों को अधिक स्वायत्तता और वित्त पोषण प्रदान करती है। 
    • इस पहल का उद्देश्य भारतीय विश्वविद्यालयों को वैश्विक अभिजात वर्ग में लाना है, जिससे उनकी रैंकिंग बढ़ेगी और शैक्षणिक सहयोग बढ़ेगा। 
    • इसके अतिरिक्त, संकाय साझाकरण, संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रमों और छात्र सहयोग के माध्यम से अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ भारत की बढ़ती साझेदारियाँ, सीमा पार ज्ञान-साझाकरण के माहौल को बढ़ावा दे रही हैं। 
    • IIT मद्रास जंजीबार कैम्पस जैसी पहलों में भारत को वैश्विक शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में एक प्रमुख अग्रणी के रूप में स्थापित करने की क्षमता है।
  • डिजिटलीकरण और ऑनलाइन शिक्षा: DIKSHA (नॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग) और राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी जैसी पहलों से प्रेरित डिजिटल शिक्षा में वृद्धि, भारत की उच्च शिक्षा में एक महत्त्वपूर्ण विकास का प्रतीक है।
    • इन डिजिटल प्लेटफॉर्मों ने लाखों छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षण संसाधनों तक अभिगम प्राप्त करने में सक्षम बनाया है, विशेष रूप से महामारी के दौरान और भौतिक बुनियादी अवसंरचना में अंतराल को समाप्त कर दिया है।
    • हाइब्रिड लर्निंग मॉडल की ओर कदम बढ़ाने से छात्रों को अपनी गति से ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिल रही है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता और अभिगम में सुधार हो रहा है।
  • लैंगिक समानता और समावेशिता में प्रगति: भारत ने उच्च शिक्षा में लैंगिक समानता प्राप्त करने में उल्लेखनीय प्रगति की है, लैंगिक समानता सूचकांक (GPI), 2011-12 में 0.87 से बढ़कर सत्र 2021-22 में 1.01 हो गया है। 
    • यह उपलब्धि उच्च शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये किये जा रहे ठोस प्रयासों को दर्शाती है, जिसमें अधिक महिलाएँ (भारत के STEM स्नातकों में 43% महिलाएँ हैं) पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों जैसे इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में दाखिला ले रही हैं। 
    • इसके अलावा, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) सहित सीमांत समुदायों में नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिससे भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की समावेशिता में सुधार हुआ है। 
  • निजी विश्वविद्यालयों में वृद्धि: भारत में निजी विश्वविद्यालयों में उल्लेखनीय विस्तार हुआ है, सत्र 2011-12 और 2021-22 के दौरान नामांकन में 497% की वृद्धि हुई है। 
    • निजी संस्थानों में यह वृद्धि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों पर दबाव को कम करने में सहायता कर रही है और छात्रों को शैक्षिक अवसरों की एक व्यापक शृंखला प्रदान कर रही है।
    • यह विकास भारत के उच्च शिक्षा परिदृश्य में विविधता लाने और उच्च शिक्षा की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि, इस विकास के साथ-साथ शिक्षा की क्षमता और गुणवत्ता को लेकर चिंताएँ भी जुड़ी हैं। 
  • वित्तीय निवेश और बुनियादी अवसंरचना का उन्नयन: उच्च शिक्षा बुनियादी अवसंरचना में भारत का बढ़ता निवेश, जैसा कि उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEFA) जैसी पहलों के माध्यम से देखा गया है, परिसर की सुविधाओं और शैक्षणिक संसाधनों में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • इन निवेशों का उद्देश्य बढ़ती हुई छात्र जनसंख्या को सहायता प्रदान करने के लिये प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और डिजिटल बुनियादी अवसंरचना को उन्नत करना है। 
    • वर्ष 2021 में, भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.57% उच्च शिक्षा (तृतीयक) के लिये आवंटित किया, जो सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने के लिये NEP- 2020 के आह्वान को पूरा करने की दिशा में एक कदम है।
      • हालाँकि, इस क्षेत्र में सतत् विकास के लिये बुनियादी अवसंरचना में निरंतर निवेश महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • विस्तार में गुणवत्ता बनाम मात्रा की दुविधा: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली का तेज़ी से विस्तार हुआ है, लेकिन यह प्रायः गुणवत्ता की कीमत पर हुआ है। 
    • बढ़ती हुई छात्र संख्या को समायोजित करने के दबाव के कारण कक्षाएँ भीड़-भाड़ वाली हो गई हैं, योग्य शिक्षकों की कमी हो गई है तथा शैक्षणिक मानकों में गिरावट आ गई है। 
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2021 में 1,043 विश्वविद्यालयों में से 600 और 40,000 से अधिक कॉलेजों में से 25,000 मान्यता प्राप्त नहीं थे। 
      • हालाँकि नामांकन में 21% की वृद्धि हुई है, लेकिन बुनियादी अवसंरचना और संकाय विकास में पिछड़ गए हैं, जिससे उच्च शिक्षा की वास्तविक क्षमता कम हो गई है।
  • संकाय की कमी और अपर्याप्त व्यावसायिक विकास: भारत में अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों में संकाय की भारी कमी बनी हुई है, जिससे शिक्षा और अनुसंधान की गुणवत्ता में बाधा आ रही है। 
    • IIT और IIM जैसे अग्रणी संस्थानों में क्रमशः 40% एवं 31% रिक्तियाँ हैं, जो एक प्रणालीगत समस्या को दर्शाती हैं। 
    • प्रशासनिक बाधाओं के कारण संकाय की भर्ती में विलंब हो रहा है, जबकि कई पद रिक्त रह गए हैं, जिससे विश्वविद्यालयों को अंशकालिक या अनुबंध कर्मचारियों पर निर्भर (जैसा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में देखा गया है) रहना पड़ रहा है। 
      • यह कमी नवाचार, अनुसंधान और व्यक्तिगत मार्गदर्शन को बाधित करती है, जिससे छात्रों के परिणामों की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • अभिगम में असमानता और क्षेत्रीय असमानताएँ: भारत में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक अभिगम असमान बनी हुई है तथा क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ भी बहुत अधिक हैं। 
    • सत्र 2021-22 में सकल नामांकन अनुपात बढ़कर 28.4% होने के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों, आर्थिक रूप से वंचित समूहों और कुछ राज्यों के छात्र अभी भी सीमित अवसरों से जूझ रहे हैं। 
    • उदाहरण के लिये, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में नामांकन की संख्या सबसे अधिक है तथा वे बिहार व ओडिशा जैसे राज्यों को पीछे छोड़ देते हैं।
      • अभिगम में यह असमानता न केवल नामांकन दरों को प्रभावित करती है, बल्कि राष्ट्रीय विकास में न्यायसंगत भागीदारी को भी सीमित करती है।
  • पुराना पाठ्यक्रम और उद्योग के साथ तालमेल का अभाव: भारत के उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम की प्रायः यह कहकर आलोचना की जाती है कि यह पुराना है और तेज़ी से विकसित हो रहे रोज़गार बाज़ार के साथ संगत नहीं है।
    • संस्थानों में जो पढ़ाया जाता है और उद्योग द्वारा अपेक्षित कौशल के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर मौजूद है। 
    • देश के केवल 51.25% युवा ही रोज़गार योग्य माने जाते हैं (आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24), जो शैक्षणिक परिणाम और बाज़ार की मांग के बीच असंतुलन को दर्शाता है। 
      • AI, ML और डेटा साइंस पर बढ़ते ज़ोर को पाठ्यक्रम संशोधनों में प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है, फिर भी केवल कुछ संस्थानों ने ही उद्योग-उन्मुख कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू किया है।
  • अनुसंधान में अंतराल और नवाचार का अभाव: भारत ने अनुसंधान उत्पादन में प्रगति की है, लेकिन अनुसंधान की गुणवत्ता और नवाचार के मामले में देश अभी भी वैश्विक मानकों से पीछे है। 
    • वैश्विक प्रकाशनों में भारत का अनुसंधान योगदान वर्ष 2017 में 3.5% से बढ़कर वर्ष 2024 में 5.2% हो गया, हालाँकि, अनुसंधान व्यय सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.7% है, जो अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में देखे गए 2-3% बेंचमार्क से बहुत कम है।
    • कई संस्थानों में अनुसंधान खंडित है और गुणवत्ता या सामाजिक प्रभाव के बजाय प्रायः मात्रा (प्रकाशन) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे नवाचार में वैश्विक अग्रणी के रूप में भारत की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • प्रशासनिक हस्तक्षेप और शासन संबंधी मुद्दे: अत्यधिक सरकारी नियंत्रण और प्रशासनिक हस्तक्षेप ने भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर दिया है। 
    • NEP- 2020 में अधिक स्वायत्तता की मांग के बावजूद, कई संस्थान राजनीतिक नियुक्तियों और प्रशासनिक लालफीताशाही से काफी प्रभावित हैं।
    • हाल के मुद्दे, जैसे कुलपतियों और संकाय सदस्यों की विवादास्पद नियुक्ति प्रक्रिया, प्रणालीगत शासन संबंधी खामियों को उजागर करते हैं। 
      • सत्ता का केंद्रीकरण प्रायः अकुशलता को जन्म देता है तथा नवाचार और शैक्षणिक स्वतंत्रता को बाधित करता है।
  • अपर्याप्त अंतर्राष्ट्रीयकरण और प्रतिभा का बहिर्गमन: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करने में संघर्ष करना पड़ा है।
    • यद्यपि वर्ष 2025 में विदेश में अध्ययन करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 1.8 मिलियन तक पहुँच गई है, फिर भी भारत में केवल 46,000 विदेशी छात्र ही नामांकित हैं।
    • यह भारतीय संस्थानों की वैश्विक अपील में एक महत्त्वपूर्ण अंतर को दर्शाता है, जो प्रायः संकाय गुणवत्ता, बुनियादी अवसंरचना और शैक्षणिक प्रतिष्ठा के मामले में अंतर्राष्ट्रीय समकक्षों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में विफल रहते हैं। 
      • प्रतिभा का यह बहिर्गमन ‘प्रतिभा पलायन’ में भी योगदान देता है, क्योंकि भारतीय छात्र विदेशों में बेहतर अवसरों की तलाश करते हैं, जिससे देश की मानव पूंजी और भी कम हो जाती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य और छात्र तनाव: भारत की प्रतियोगी प्रवेश परीक्षा-आधारित प्रणाली ने छात्रों में तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को तीव्र कर दिया है।
    • भारत में दर्ज आत्महत्याओं में से 35% से अधिक 15-24 आयु वर्ग में होती हैं, जिसमें शैक्षणिक दबाव एक प्रमुख कारण है। 
    • रटने पर आधारित शिक्षा प्रणाली एवं तीव्र प्रतिस्पर्द्धा पर ध्यान केंद्रित करने से यह समस्या और बढ़ जाती है, जिससे छात्रों में थकान और भावनात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है।
      • एक स्वस्थ शैक्षिक वातावरण बनाने के लिये शैक्षणिक मूल्यांकन में सुधार और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के प्रयास आवश्यक हैं।

उच्च शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • संकाय भर्ती और विकास कार्यक्रमों को मज़बूत करना: भारत को सभी विश्वविद्यालयों और संस्थानों में उच्च गुणवत्ता वाले संकाय की भर्ती को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • इसमें न केवल नियुक्ति में प्रशासन संबंधी विलंब को कम करना शामिल है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि संकाय विकास कार्यक्रम मज़बूत हों, जिनमें नियमित कार्यशालाएँ, अंतर्राष्ट्रीय फेलोशिप और अनुसंधान सहयोग के अवसर शामिल हों। 
    • उच्च शिक्षा के लिये एक राष्ट्रीय केंद्रीकृत भर्ती निकाय प्रक्रिया को मानकीकृत कर सकता है, जिससे पारदर्शिता और योग्यता सुनिश्चित हो सकेगी। 
      • इसके अतिरिक्त, संकाय को अत्याधुनिक अनुसंधान और नवाचार में संलग्न करने के लिये प्रोत्साहन देने से शैक्षणिक उत्कृष्टता का पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हो सकेगा।
  • कौशल विकास के लिये उद्योग-अकादमिक सहयोग: उच्च शिक्षा संस्थानों और उद्योगों के बीच गहन, अधिक संरचित साझेदारी स्थापित करना कौशल अंतर को न्यूनतम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रम में व्यावहारिक उद्योग इंटर्नशिप, प्रशिक्षुता और लाइव परियोजना कार्य को एकीकृत करना चाहिये। 
    • परिसरों के भीतर समर्पित नवाचार केंद्र या ‘उद्योग-सहयोग प्रकोष्ठ’ बनाने से यह सुनिश्चित होगा कि छात्रों को प्रासंगिक, वास्तविक दुनिया के कौशलों में प्रशिक्षित किया जाए।
      • उद्योग विशेषज्ञों के साथ नियमित परामर्श से पाठ्यक्रम की विषय-वस्तु को बाज़ार की बदलती जरूरतों के अनुरूप बनाने में सहायता मिल सकती है, जिससे स्नातकों को रोज़गार के लिये अधिक योग्य बनाया जा सकता है।
  • समालोचनात्मक चिंतन को बढ़ावा देने के लिये पाठ्यक्रम में सुधार: उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में समालोचनात्मक चिंतन, समस्या-समाधान और अंतःविषयक शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में मौलिक बदलाव की आवश्यकता है।
    • सख्त, अनुशासन-विशिष्ट दृष्टिकोण को लचीलेपन से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये, जिससे छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों से पाठ्यक्रम चुनने की अनुमति मिल सके, जिसमें मानविकी, विज्ञान और तकनीकी विषयों का मिश्रण हो, जैसा कि NEP- 2020 द्वारा परिकल्पित है। 
    • विभिन्न विषयों में सहयोगात्मक शिक्षण को प्रोत्साहित करके, विद्यार्थियों की दृष्टि व्यापक होगी तथा वे ऐसे कौशल प्राप्त कर सकते हैं जिन्हें विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों में अपनाया जा सके।
  • अनुसंधान-संचालित शिक्षा और वित्तपोषण को बढ़ावा देना: सरकार को विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाना चाहिये तथा अनुदान प्रदान करना चाहिये, जिससे संकाय व छात्रों को नवीन एवं प्रभावशाली अनुसंधान में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
    • संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के लिये अधिक विश्वविद्यालय-उद्योग साझेदारियाँ स्थापित करने से राष्ट्रीय और वैश्विक चुनौतियों का समाधान हो सकता है तथा अनुसंधान परिणामों की प्रासंगिकता बढ़ सकती है।
    • इसके अतिरिक्त, अनुसंधान के व्यावसायीकरण के लिये एक स्पष्ट मार्ग तैयार करना, जैसे कि अनुसंधान पार्क और इनक्यूबेटर स्थापित करना, उद्योगों को अधिक नवाचार एवं ज्ञान हस्तांतरण की अनुमति देगा।
  • डिजिटल अवसंरचना और हाइब्रिड लर्निंग मॉडल को बढ़ाना: डिजिटल युग की मांगों को पूरा करने के लिये, विश्वविद्यालयों को अत्याधुनिक डिजिटल अवसंरचना में निवेश करना चाहिये जो ऑनलाइन शिक्षण, अनुसंधान और सहयोग का समर्थन करता हो। 
    • पारंपरिक अधिगम-शिक्षण वाली शिक्षा को ऑनलाइन संसाधनों के साथ संयोजित करने वाला एक आदर्श हाइब्रिड शिक्षण मॉडल होना चाहिये, जिससे दूरदराज़ के क्षेत्रों सहित विविध पृष्ठभूमि के छात्रों को उच्च-गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा मिल सके।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि प्रौद्योगिकी एकीकरण प्रभावी और समावेशी हो, छात्रों एवं संकाय दोनों के लिये डिजिटल साक्षरता में निवेश आवश्यक है।
  • वैश्विक सहयोग और अंतर्राष्ट्रीयकरण को प्रोत्साहित करना: भारत को शीर्ष वैश्विक विश्वविद्यालयों के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिये, जिससे ड्यूअल डिग्री प्रोग्राम, संकाय विनिमय पहल और अनुसंधान साझेदारी की अनुमति मिल सके।
    • विदेशी संकाय और शोधकर्त्ताओं को भारतीय संस्थानों के साथ जुड़ने के लिये प्रोत्साहित करने से शैक्षणिक प्रतिबद्धता बढ़ेगी तथा पाठ्यक्रम का अंतर्राष्ट्रीयकरण होगा। 
    • यह अंतर्राष्ट्रीय अनुभव न केवल भारतीय विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा, बल्कि छात्रों को वैश्विक परिप्रेक्ष्य प्राप्त करने में भी सहायता करेगा, जिससे उनकी रोज़गार क्षमता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
  • शिक्षा तक पहुँच में समावेशिता और समानता को बढ़ाना: यह सुनिश्चित करने के लिये कि उच्च शिक्षा वास्तव में समावेशी बने, भारत को सीमांत समुदायों के छात्रों, महिलाओं और दिव्यांगजनों को समर्थन देने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
    • इसमें छात्रवृत्ति योजनाएँ, मार्गदर्शन कार्यक्रम और दिव्यांग छात्रों के लिये बेहतर बुनियादी अवसंरचना शामिल है। 
    • विश्वविद्यालयों को लक्षित सहायता प्रणालियाँ प्रदान करके STEM क्षेत्रों में वंचित समूहों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये तथा सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान अभिगम सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • उद्यमशीलता की मानसिकता और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: उच्च शिक्षा संस्थानों में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने वाले पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने से छात्रों को अपने विचारों को स्टार्टअप में बदलने में सहायता मिल सकती है। 
    • विश्वविद्यालयों को इन्क्यूबेशन केंद्र स्थापित करने चाहिये, प्रारंभिक वित्तपोषण उपलब्ध कराना चाहिये तथा नवाचार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये मार्गदर्शन कार्यक्रम उपलब्ध कराने चाहिये। 
      • छात्रों को जागृति यात्रा जैसी पहलों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये।
    • व्यवसाय विकास के लिये समर्पित संसाधनों के साथ-साथ उद्यमिता को पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में एकीकृत करके, संस्थान ऐसे स्नातक तैयार कर सकते हैं जो न केवल रोज़गार अभ्यर्थी हों, बल्कि रोज़गार सृजक भी हों तथा अर्थव्यवस्था में अधिक महत्त्वपूर्ण तरीके से योगदान दे सकें।
  • वित्तीय सहायता और किफायती शिक्षा मॉडल का विस्तार: उच्च शिक्षा की उच्च लागत को समायोजित करना समाज के सभी वर्गों के लिये अभिगम सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • सरकार और निजी क्षेत्र को वित्तीय सहायता प्रणालियाँ बनाने के लिये सहयोग करना चाहिये, जैसे आय-आधारित ऋण पुनर्भुगतान योजनाएँ। 
    • इसके अलावा, विश्वविद्यालयों को "अभी अध्ययन करें, बाद में भुगतान करें" जैसी नवीन योजनाओं का अभिनिर्धारण करना चाहिये, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सभी के लिये अधिक किफायती और सुलभ हो सके।

निष्कर्ष: 

भारत के उच्च शिक्षा परिदृश्य को सही मायने में बदलने के लिये, सुधारों को विस्तार से आगे बढ़कर गुणवत्ता, समावेशिता और प्रासंगिकता पर केंद्रित होना चाहिये। जैसा कि कोठारी आयोग ने उचित ही बल दिया था, “शिक्षा को सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम होना चाहिये।” 

कुशल संकाय, उत्कृष्ट शोध, उद्योग संबंधों और एथिकल गवर्नेंस के माध्यम से इस दृष्टिकोण को पुनर्जीवित करने से यह सुनिश्चित होगा कि उच्च शिक्षा राष्ट्रीय प्रगति एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा का वाहक बने।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 जैसे महत्त्वपूर्ण विस्तार और नीतिगत सुधारों के बावजूद, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली गुणवत्ता, समानता एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के मुद्दों से जूझ रही है। प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिये और उच्च शिक्षा को राष्ट्रीय विकास के उत्प्रेरक के रूप में बदलने के लिये एक रोडमैप का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
  3. पंचम अनुसूची
  4. षष्ठ अनुसूची
  5. सप्तम अनुसूची

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5 

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) 

प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

close
Share Page
images-2
images-2