ध्यान दें:





डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन के साथ विकास और प्रतिद्वंद्विता में संतुलन

  • 18 Jul 2025
  • 132 min read

यह एडिटोरियल 17/07/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Jaishankar in China: A cooperative Beijing is desirable, but a less uncooperative one is India’s best bet” पर आधारित है। यह लेख विदेश मंत्री जयशंकर की यात्रा के माध्यम से गलवान के बाद भारत-चीन संबंधों के सावधानीपूर्वक नवीनीकरण को दर्शाता है, जिसमें व्यापार में प्रगति लेकिन सीमा पर तनाव की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

दुर्लभ मृदा खनिज, एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक, कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा, सौर ऊर्जा, वास्तविक नियंत्रण रेखा, शियाओकांग, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

मेन्स के लिये:

भारत के विकास पथ को आगे बढ़ाने में भारत-चीन सहयोग का रणनीतिक महत्त्व, भारत-चीन की प्रभावी वार्ता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे।

वर्ष 2020 के गलवान गतिरोध के बाद भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की चीन की पहली यात्रा दोनों देशों के राजनयिक संबंधों को नई नींव पर पुनः स्थापित करने के प्रयासों का संकेत देती है। दुर्लभ मृदा खनिजों के निर्यात प्रतिबंधों जैसे तात्कालिक व्यापारिक मुद्दों का शीघ्र समाधान किया जा सकता है, लेकिन मूलभूत सीमा प्रश्न अभी भी अनसुलझा और उपेक्षित है। भारत के सामने एक सैन्य रूप से श्रेष्ठ पड़ोसी के साथ संबंध बनाने की चुनौती है, साथ ही आंतरिक रूप से सवयं को मज़बूत करना और मूल हितों की रक्षा करना भी। उभरते हुए कार्यढाँचे का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ‘मतभेद विवाद न बनें, और न ही प्रतिस्पर्द्धा कभी संघर्ष में परिवर्तित हो।"

भारत के विकास पथ को आगे बढ़ाने में भारत-चीन सहयोग का रणनीतिक महत्त्व क्या है?

  • आर्थिक विकास और व्यापारिक संबंध: भारत-चीन सहयोग भारत के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि चीन इसके सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक बना हुआ है।
    • राजनीतिक तनावों के बावजूद, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार सत्र 2023-24 में 118.4 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिससे चीन अमेरिका से आगे भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
    • इस व्यापार में दूरसंचार घटक, औषधि सामग्री और उन्नत प्रौद्योगिकी घटक जैसे महत्त्वपूर्ण आयात शामिल हैं, जो भारत के विनिर्माण और डिजिटल क्षेत्रों के लिये आवश्यक हैं।
  • प्रौद्योगिकी अंतरण और विनिर्माण: चीन का तकनीकी प्रभुत्व, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में, भारत के औद्योगिक आधार को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दे सकता है।
    • भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने में तेज़ी लाने के लिये चीन की उन्नत आपूर्ति शृंखला और विनिर्माण क्षमताएँ अपरिहार्य हैं।
    • वर्ष 2023 में, भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों के लिये PLI योजनाएँ शुरू कीं, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद, घरेलू विनिर्माण में विकास की धीमी गति सेमीकंडक्टर उत्पादन और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे प्रमुख क्षेत्रों में चीनी निवेश एवं विशेषज्ञता की अत्यंत आवश्यकता की ओर संकेत करती है।
    • चीन ने भारत के 30 अग्रणी उद्यमों और स्टार्ट-अप्स (1 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य की उद्यमशीलता पहल) में से 18 में निवेश किया है।
      • वर्ष 2015 से 2020 के दौरान भारतीय स्टार्टअप्स में चीनी निवेश का कुल मूल्य लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • अवसंरचना और संपर्क वृद्धि: भारत में अवसंरचना विकास की आवश्यकता के लियर चीन के साथ घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता है, विशेष रूप से रेलवे, सड़क और शहरी विकास में।
    • वर्तमान में, भारत चीन के नेतृत्व वाले एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक में इसका सबसे बड़ा उधारकर्त्ता और लगभग 7.5% वोटिंग पॉवर के साथ दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक है।
      • वर्ष 2016 से 2022 के दौरान AIIB द्वारा स्वीकृत 202 परियोजनाओं में से, भारत सबसे अधिक (39) परियोजनाओं की मेज़बानी करता है।
    • सीमा पार कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा जैसी परियोजनाओं पर चीनी सहयोग दर्शाता है कि दोनों पक्ष क्षेत्रीय संपर्क पर सहयोग कर सकते हैं।
  • पर्यावरण और जलवायु सहयोग: भारत और चीन जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय मुद्दों पर सार्थक सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं, जो दोनों देशों के सतत् विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • हाल के वर्षों में, दोनों देशों ने वैश्विक पर्यावरणीय चिंताओं के समाधान की तात्कालिकता के मूल्य को पहचाना है, जहाँ चीन नवीकरणीय ऊर्जा निवेश में अग्रणी है और भारत अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को आगे बढ़ा रहा है।
    • सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी में चीन का नेतृत्व भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करना है।
      • हरित प्रौद्योगिकी में चीन का भारी निवेश भारत के परिवर्तन में सहायक हो सकता है, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों और सौर ऊर्जा अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में।
  • रणनीतिक आर्थिक वियोजन और आपूर्ति शृंखला लचीलापन: वैश्विक व्यापार और प्रौद्योगिकी आपूर्ति शृंखलाओं से जुड़े भू-राजनीतिक तनावों ने आर्थिक लचीलापन सुनिश्चित करने में भारत-चीन सहयोग के महत्त्व को रेखांकित किया है।
    • भारत और चीन दोनों वैश्विक आपूर्ति शृंखला के अभिन्न अंग हैं, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और दुर्लभ मृदा खनिजों जैसे क्षेत्रों में।
    • जैसे-जैसे विश्व भू-राजनीतिक कारकों, जैसे: अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के संभावित वियोजन की ओर बढ़ रही है, भारत का चीन के साथ सहयोग किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से जुड़े जोखिमों को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
      • चीन के उन्नत विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र और तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाकर, भारत अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता ला सकता है, जिससे पश्चिमी देशों पर अत्यधिक निर्भरता के जाल में फँसे बिना, अर्द्धचालक और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
  • ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय संसाधन प्रबंधन: एशिया में ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य, विशेष रूप से तेल, प्राकृतिक गैस एवं नवीकरणीय ऊर्जा के संबंध में, भारत और चीन के बीच जटिल अंतर-निर्भरताओं द्वारा तेज़ी से आकार ले रहा है।
    • दोनों देश ऊर्जा संसाधनों के प्रमुख उपभोक्ता हैं, फिर भी उन्हें वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव और बदलती भू-राजनीतिक शक्ति गतिशीलता के बीच स्थिर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • भारत और चीन सीमा पार ऊर्जा ग्रिड, हिंद महासागर में संसाधन अन्वेषण और यहाँ तक कि परमाणु, सौर एवं पवन जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों में संयुक्त निवेश जैसे क्षेत्रों में सहयोगी परियोजनाओं के माध्यम से इस क्षेत्र में सतत् ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सहयोग कर सकते हैं।
  • भू-रणनीतिक प्रभाव और बहुपक्षीय जुड़ाव: भारत-चीन सहयोग दोनों देशों के लिये विशेष रूप से बदलती वैश्विक शक्ति गतिशीलता के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भू-रणनीतिक महत्त्व रखता है। 
    • दो प्रमुख एशियाई शक्तियों के रूप में, उनके संबंध हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भविष्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
    • भारत और चीन के बीच सहयोगात्मक जुड़ाव दोनों देशों को G20, BRICS और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में बेहतर प्रभाव प्रदान कर सकता है।

भारत-चीन की प्रभावी वार्ता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • सीमा विवाद और सैन्यीकरण: अनसुलझा सीमा मुद्दा भारत और चीन के बीच प्रभावी वार्ता में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।
    • कई दौर की सैन्य वापसी वार्ताओं के बावजूद, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर, विशेषकर पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में, तनाव बना हुआ है।
    • शियाओकांग या ‘वेल-ऑफ विलेज’ चीन की रणनीतिक सीमावर्ती अवसंरचना परियोजना का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य अपनी सीमांत उपस्थिति को मज़बूत करना है। भारत भी चीन की बढ़ती सैन्य उपस्थिति का मुकाबला करने के लिये सड़कों और निगरानी प्रणालियों जैसे अवसंरचना विकास में भारी निवेश कर रहा है।
      • स्थायी समाधान का अभाव द्विपक्षीय संबंधों में एक बुनियादी गतिरोध उत्पन्न करता है।
  • पाकिस्तान के साथ चीन की रणनीतिक साझेदारी: पाकिस्तान के साथ चीन के गहरे होते संबंध भारत के साथ उसके संबंधों को (विशेषकर सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव के संदर्भ में) जटिल बनाते हैं।
    • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और बीज़िंग व इस्लामाबाद के बीच सैन्य सहयोग को भारत के रणनीतिक हितों के लिये एक सीधी चुनौती के रूप में देखा गया है।
    • मई 2025 में, पहलगाम आतंकवादी हमले के दौरान चीन ने पाकिस्तान के रुख का समर्थन किया, जिससे भारत की सुरक्षा चिंताओं पर पाकिस्तान के साथ उसके गठबंधन का संकेत मिला। 
      • पाकिस्तान चीनी सैन्य और आर्थिक सहायता पर अत्यधिक निर्भर है और भारत इसे संबंधों को सामान्य बनाने में एक बाधा के रूप में देखता है, विशेषकर जब चीन संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों का बचाव करता है।

  • व्यापार असंतुलन और आर्थिक निर्भरता: भारत और चीन के बीच बढ़ता व्यापार घाटा एक गंभीर मुद्दा है जो रचनात्मक वार्ता में बाधा डाल रहा है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में, चीन से भारत का आयात कुल 101.7 बिलियन डॉलर था, जो इसके 16.67 बिलियन डॉलर के निर्यात से कहीं अधिक था, जिससे 99.2 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ।
    • ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों के माध्यम से निर्भरता कम करने के प्रयासों के बावजूद, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, सक्रिय फार्मास्यूटिकल्स और दूरसंचार घटकों जैसे महत्त्वपूर्ण आयातों के लिये चीन पर निर्भर बना हुआ है।
      • यह आर्थिक असंतुलन भारत की सौदाकारी शक्ति को सीमित करता है और असंतोष को बढ़ावा देता है, विशेषकर जब भारत चीनी आर्थिक प्रभाव के प्रति अपनी भेद्यता को कम करने की कोशिश कर रहा है।
  • चीन की विस्तारवादी नीतियाँ और क्षेत्रीय प्रभाव: हिंद महासागर में चीन की आक्रामक नीतियाँ और उसकी बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) भारत-चीन संबंधों को और जटिल बना रही हैं।
    • दक्षिण एशिया, विशेषकर श्रीलंका, नेपाल और मालदीव में चीन की बढ़ती सैन्य एवं आर्थिक उपस्थिति को लेकर भारत की चिंताएँ बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा को उजागर करती हैं।
    • पाकिस्तान (ग्वादर), श्रीलंका (हंबनटोटा) और म्याँमार (क्याउकप्यू) के प्रमुख बंदरगाहों पर चीन का नियंत्रण भारत के लिये एक घेरेबंदी की स्थिति उत्पन्न करता है।
      • यह क्षेत्रीय शक्ति संघर्ष व्यापक भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को रेखांकित करता है, जहाँ चीन प्रायः भारत के रणनीतिक हितों की कीमत पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करता है।
    • यारलुंग त्सांगपो पर चीन की प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना भारत के लिये 'वाटर बम' का खतरा उत्पन्न करती है, जिससे चिंताएँ बढ़ रही हैं और कार्रवाई की माँग हो रही है।

  • बहुपक्षीय मंचों पर चीन का आक्रामक रुख: बहुपक्षीय मंचों पर चीन का बढ़ता प्रभाव, जो प्रायः भारत के हितों के विपरीत होता है, दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाता है।
    • भारत की दावेदारी को व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिलने के बावजूद, चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता पाने के भारत के प्रयासों में बाधा डाली है। 
    • इसके अलावा, चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र में अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग (विशेषकर आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर) पाकिस्तान को बचाने के लिये किया गया है।
      • इन कार्रवाइयों से भारत में यह धारणा सुदृढ़ हुई है कि चीन उसकी वैश्विक आकांक्षाओं को कमज़ोर कर रहा है, जिससे प्रभावी संवाद मुश्किल हो रहा है क्योंकि दोनों देश क्षेत्रीय एवं वैश्विक प्रभाव के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
  • असंगत कूटनीतिक दृष्टिकोण और अविश्वास: भारत और चीन के बीच एक बुनियादी मुद्दा निरंतर कूटनीतिक जुड़ाव का अभाव तथा दोनों देशों के दृष्टिकोणों में लगातार बदलाव से बढ़ता अविश्वास है।
    • जहाँ भारत शांति और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के सम्मान पर आधारित समाधान का आह्वान करता है, वहीं चीन प्रायः सीमा मुद्दे को कम महत्त्व देता है तथा व्यापार एवं आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • चीन के कई पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद चल रहे हैं और यहाँ तक कि उन देशों के साथ भी तनाव है जिनकी सीमा सीधे चीन से नहीं लगती, जिससे भारत के लिये रणनीतिक अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है।
    • मुख्य मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण में निरंतर भिन्नता संदेह को बढ़ावा देती है और सार्थक सहयोग को कमज़ोर करती है।

चीन के साथ सहयोग बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • सीमा प्रबंधन और विश्वास-निर्माण पर केंद्रित संवाद: भारत को सीमा प्रबंधन पर समर्पित एवं निरंतर वार्ता के माध्यम से चीन के साथ अपने राजनयिक संबंधों को और प्रगाढ़ करना चाहिये।
    • ‘कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता’ और ‘परामर्श एवं समन्वय कार्य तंत्र’ (WMCC) जैसे मौजूदा तंत्रों का विस्तार करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति एवं सौहार्द बना रहे।
    • इसमें अधिक गश्त-मुक्त क्षेत्र बनाना, संकट प्रबंधन प्रोटोकॉल स्थापित करना और गलतफहमी या तनाव बढ़ने से बचने के लिये सैन्य प्रतिष्ठानों के बीच वास्तविक काल संचार चैनल स्थापित करना शामिल होगा।
  • व्यापार विविधीकरण के माध्यम से आर्थिक जुड़ाव: भारत को द्विपक्षीय व्यापार कार्यढाँचों पर वार्ता करके चीन के साथ अधिक संतुलित व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना चाहिये जो कच्चे माल से परे निर्यात में विविधता लाने, प्रौद्योगिकी एवं उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों को बढ़ावा देने पर केंद्रित हों।
    • इसके अलावा, भारत सुरक्षा से समझौता किये बिना 5G और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे उच्च-तकनीकी उद्योगों में घरेलू क्षमताओं का निर्माण करने के लिये चीन की तकनीकी विशेषज्ञता का रणनीतिक रूप से उपयोग कर सकता है।
  • लोगों के बीच संबंधों और सांस्कृतिक कूटनीति को मज़बूत करना: सांस्कृतिक और जन-जन समन्वय दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • भारत को चीन के साथ राजनयिक और शैक्षणिक सहयोग बढ़ाना चाहिये, सहयोगात्मक अनुसंधान, शैक्षणिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों एवं सांस्कृतिक पहलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • शैक्षणिक संस्थानों द्वारा संयुक्त परियोजनाओं, कला उत्सवों और पर्यटन पहलों में भागीदारी जैसी नरम कूटनीति पर ज़ोर देने से अविश्वास कम हो सकता है तथा आपसी समझ विकसित हो सकती है।
  • क्षेत्रीय विकास और संपर्कता के लिए संयुक्त पहल: भारत को चीन के साथ क्षेत्रीय सहयोग पहलों का अभिनिर्धारण करना चाहिये जो विशेष रूप से दक्षिण एशिया में बुनियादी अवसंरचना के विकास एवं संपर्कता पर केंद्रित हों।
    • सीमा पार परिवहन गलियारों, ऊर्जा ग्रिडों और स्वच्छ ऊर्जा साझेदारियों जैसी पारस्परिक रूप से लाभकारी परियोजनाओं में भाग लेकर, भारत रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए चीन की विशेषज्ञता एवं वित्तपोषण का लाभ उठा सकता है।
  • रणनीतिक सुरक्षा उपायों के साथ प्रौद्योगिकी और नवाचार साझेदारी: भारत को क्वांटम कंप्यूटिंग, नवीकरणीय ऊर्जा और जैव प्रौद्योगिकी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में संयुक्त अनुसंधान और विकास (R&D) उपक्रमों में चीन को शामिल करना चाहिये, साथ ही संवेदनशील प्रौद्योगिकियों की सुरक्षा के लिये सुदृढ़ सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने चाहिये।
    • पारदर्शिता और बौद्धिक संपदा सुरक्षा के साथ नवाचार के लिये सहयोगात्मक ढाँचे की स्थापना, भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किये बिना चीन की तकनीकी प्रगति से लाभान्वित करने में सक्षम बनाएगी।
  • पर्यावरण सहयोग और संयुक्त हरित पहल: भारत वैश्विक पर्यावरणीय पहलों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने एवं नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन के क्षेत्र में, संयुक्त रूप से सहयोग करके चीन के साथ सहयोग बढ़ा सकता है।
    • कार्बन न्यूनीकरण प्रौद्योगिकियों, इलेक्ट्रिक वाहनों एवं सौर ऊर्जा विकास पर संयुक्त परियोजनाओं की शुरुआत करके दोनों देश सतत् विकास में अग्रणी बन सकते हैं। हरित प्रौद्योगिकी पर अपने प्रयासों को समन्वित करके, भारत और चीन द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत कर सकते हैं, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा कर सकते हैं तथा वैश्विक पर्यावरण नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं, साथ ही इस प्रक्रिया में राष्ट्रीय हितों की रक्षा भी कर सकते हैं।
  • डिजिटल कूटनीति और साइबर सुरक्षा सहयोग: डिजिटल बुनियादी अवसंरचना और साइबर सुरक्षा के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए, भारत को चीन के साथ सुरक्षित डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण पर केंद्रित सहयोगात्मक कार्यढाँचे की शुरुआत करनी चाहिये।
    • द्विपक्षीय साइबर सुरक्षा संवाद मंच बनाकर, दोनों देश डेटा गोपनीयता, साइबर अपराध और महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना की सुरक्षा जैसे मुद्दों का समाधान कर सकते हैं।
    • साथ ही, भारत को अपनी डिजिटल संप्रभुता की सुरक्षा के प्रति सतर्क रहना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि साइबरस्पेस में कोई भी सहयोग राष्ट्रीय सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करे।

निष्कर्ष:

भारत-चीन संबंध चार 'C' — संघर्ष (Conflict), प्रतिस्पर्द्धा (Competition), सहयोग (Cooperation) और नियंत्रण (Containment) के नाज़ुक संतुलन से आकार लेते हैं। जैसा कि विदेश मंत्री जयशंकर ने उचित ही कहा है, "भारत और चीन के बीच स्थिर और रचनात्मक संबंध न केवल हमारे, बल्कि पूरे विश्व के लिए लाभकारी हैं।" 

सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने जटिल संबंधों को आगे बढ़ाते हुए, दोनों देश आर्थिक विकास, क्षेत्रीय सुरक्षा और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे एक अधिक संतुलित एवं बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में योगदान मिल सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. संघर्ष, प्रतिस्पर्द्धा, सहयोग और नियंत्रण के संदर्भ में भारत-चीन संबंधों की उभरती गतिशीलता का विश्लेषण कीजिये। भारत को चीन के साथ अपने भविष्य के संबंधों को किस प्रकार देखना चाहिये?

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016) 

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: (d) 


मेन्स 

प्रश्न 1. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) को चीन की अपेक्षाकृत अधिक विशाल 'एक पट्टी एक सड़क' पहल के एक मूलभूत भाग के रूप में देखा जा रहा है। सी.पी.ई.सी. का एक संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिये और भारत द्वारा उससे किनारा करने के कारण गिनाइये। (2018)

close
Share Page
images-2
images-2