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वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश
- 17 Sep 2025
- 58 min read
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है, यह चिंता जताते हुए कि यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, प्रशासनिक शक्तियों और वक्फ बोर्डों पर गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व के माध्यम से समुदाय की स्वायत्तता को कमज़ोर करता है तथा मौजूदा वक्फ संपत्तियों एवं परोपकार पर प्रभाव डाल सकता है।
वक्फ अधिनियम, 1995 क्या है?
- वक्फ अधिनियम, 1995, भारत में एक केंद्रीय अधिनियम है जो वक्फ संपत्तियों, धार्मिक या चैरिटेबल/परोपकारी उद्देश्यों के लिये मुस्लिम कानून के तहत संपत्ति के दान के बेहतर प्रशासन, प्रबंधन तथा संरक्षण के लिये प्रावधान करता है।
- यह इन संपत्तियों की निगरानी के लिये राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर वक्फ बोर्डों की स्थापना करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये संपत्तियाँ अपने निर्धारित उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाएँ तथा पारदर्शी एवं कानूनी तरीके से प्रबंधित की जाएँ।
- वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 UMEED (एकीकृत वक्फ प्रबंधन, अधिकारिता, दक्षता और विकास अधिनियम), वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करता है।
- वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के मुख्य प्रावधान:
- ट्रस्ट का बहिष्कार: यदि मुस्लिम द्वारा बनाए गए ट्रस्ट अन्य धर्मार्थ कानूनों के अंतर्गत शासित हैं तो वे कानूनी रूप से वक्फ से अलग माने जाएंगे।
- उत्तराधिकार अधिकारों का संरक्षण: महिलाओं और बच्चों को उनकी वैध विरासत प्राप्त करनी चाहिये, इससे पहले कि संपत्ति वक्फ बन जाएँ।
- जनजातीय भूमि का संरक्षण: यह संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूचियों के तहत जनजातीय समुदायों की भूमि पर वक्फ की स्थापना पर प्रतिबंध लगाता है।
- अपील तंत्र: उच्च न्यायालय वक्फ न्यायाधिकरण के निर्णयों के खिलाफ अपील सुन सकता है।
- वित्तीय सुधार: वक्फ बोर्डों में अनिवार्य योगदान 7% से घटाकर 5% कर दिया गया है।
- आय लेखा परीक्षा: 1 लाख रुपए से अधिक वार्षिक आय वाली वक्फ संस्थाएँ सरकार द्वारा अनिवार्य लेखा परीक्षा के अधीन हैं।
- वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के मुख्य प्रावधान:
वक्फ बोर्ड
- वक्फ बोर्ड एक विधिक इकाई है जो संपत्ति अर्जित कर सकती है, उसे धारण कर सकती है, हस्तांतरित कर सकती है और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
- यह वक्फ संपत्तियों (धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिये समर्पित संपत्ति) का प्रबंधन करता है, खोई हुई संपत्तियों की वसूली करता है और हस्तांतरणों (बिक्री, उपहार, बंधक, विनिमय, पट्टा) को कम से कम दो-तिहाई बोर्ड अनुमोदन के साथ मंज़ूरी देता है।
- केंद्रीय वक्फ परिषद (CWC) अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत एक सांविधिक निकाय है, जो राज्य वक्फ बोर्डों की देख-देख और सलाह देता है।
वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के प्रमुख विवादास्पद प्रावधान क्या हैं और इस पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख क्या है?
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समर्थित प्रावधान:
- परिसीमा अधिनियम की प्रयोज्यता: वक्फ अधिनियम, 1995 ने परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुप्रयोग को विशेष रूप से बाहर रखा था, जो वक्फ को बिना किसी समय सीमा के अपनी संपत्तियों पर अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुमति देता था।
- वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 :इस छूट को समाप्त कर देता है और कानूनी दावों को निर्दिष्ट अवधि के भीतर दायर करना अनिवार्य बनाता है।
- न्यायालय ने इस प्रावधान को बरकरार रखा तथा कहा कि यह पहले के भेदभाव को ठीक करता है।
- वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 :इस छूट को समाप्त कर देता है और कानूनी दावों को निर्दिष्ट अवधि के भीतर दायर करना अनिवार्य बनाता है।
- "उपयोग द्वारा वक्फ" का उन्मूलन: पहले, यदि भूमि लंबे समय तक मुस्लिम धार्मिक/धार्मिक उद्देश्यों के लिये उपयोग में लाई जाती थी तो उसे बिना पंजीकरण के भी वक़्फ़ माना जा सकता था। वर्ष 2025 संशोधन अधिनियम ने दुरुपयोग का हवाला देते हुए "उपयोग द्वारा वक्फ" की अवधारणा को समाप्त कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को बरकरार रखा कि इसका दुरुपयोग सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के लिये किया गया है तथा इस पर रोक लगाने का प्रथम दृष्टया कोई कारण नहीं पाया गया।
- परिसीमा अधिनियम की प्रयोज्यता: वक्फ अधिनियम, 1995 ने परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुप्रयोग को विशेष रूप से बाहर रखा था, जो वक्फ को बिना किसी समय सीमा के अपनी संपत्तियों पर अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुमति देता था।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोके गए प्रावधान:
- पाँच साल का नियम मुस्लिमों के लिये: संशोधित अधिनियम के अनुसार, कोई वक्फ केवल उस व्यक्ति द्वारा स्थापित किया जा सकता है, जिसने कम-से-कम पाँच वर्षों तक इस्लाम का अभ्यास किया हो।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को स्थगित कर दिया है, क्योंकि सरकार द्वारा स्पष्ट नियम बनाए जाने तक धार्मिक अभ्यास की जाँच का कोई तंत्र नहीं है।
- ज़िला कलेक्टरों के अधिकार (धारा 3C): संशोधित अधिनियम के अनुसार, ज़िला कलेक्टर अपनी जाँच के दौरान किसी वक्फ संपत्ति को सरकारी संपत्ति घोषित कर सकते हैं (जाँच की अवधि के दौरान उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में नहीं माना जाएगा)।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है, इसे मनमाना और शक्तियों का पृथक्करण का उल्लंघन बताते हुए, क्योंकि संपत्ति विवादों का निर्णय केवल ट्रिब्यूनल (अधिकरणों) या न्यायालयों द्वारा किया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, जाँच की अवधि में वक्फ संपत्तियों का दर्जा यथावत रहेगा, उन पर कब्ज़ा नहीं हटाया जा सकेगा और वक्फ ट्रिब्यूनल के अंतिम निर्णय तक किसी नए तृतीय पक्ष को अधिकार नही दिया जाएगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है, इसे मनमाना और शक्तियों का पृथक्करण का उल्लंघन बताते हुए, क्योंकि संपत्ति विवादों का निर्णय केवल ट्रिब्यूनल (अधिकरणों) या न्यायालयों द्वारा किया जाना चाहिये।
- वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व: इस अधिनियम ने वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में बड़ी संख्या में गैर-मुसलमानों को शामिल करने की अनुमति दी है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर रोक:
- केंद्रीय वक्फ परिषद (22 सदस्य) में 4 से अधिक गैर-मुसलमान नहीं होंगे।
- राज्य वक्फ बोर्ड (11 सदस्य) में 3 से अधिक गैर-मुसलमान नहीं होंगे।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर रोक:
- पाँच साल का नियम मुस्लिमों के लिये: संशोधित अधिनियम के अनुसार, कोई वक्फ केवल उस व्यक्ति द्वारा स्थापित किया जा सकता है, जिसने कम-से-कम पाँच वर्षों तक इस्लाम का अभ्यास किया हो।
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में प्रमुख न्यायिक निर्णय:
- बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य, 1987: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर राष्ट्रगान उनकी धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन करता है तो छात्रों को उसे गाने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।
- इस निर्णय ने स्थापित किया कि व्यक्ति को उन गतिविधियों में भाग लेने से इंकार करने का अधिकार है जो उसकी धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध हों, बशर्ते कि उससे सार्वजनिक व्यवस्था भंग न हो।
- शायरा बानो बनाम भारत संघ, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने एक साथ तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया, क्योंकि यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और लैंगिक न्याय सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह अनुच्छेद 25 के तहत एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
- डॉ. महेश विजय बेडेकर बनाम महाराष्ट्र, 2016: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि लाउडस्पीकर का उपयोग एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और इसे अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) या अनुच्छेद 19(1)(a) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष:
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 सुधारों का लक्ष्य रखता है, लेकिन यह स्वायत्तता और अधिकारों को लेकर गंभीर चिंताएँ भी उत्पन्न करता है। सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश संवैधानिक सुरक्षा उपायों के साथ सुधार प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक संतुलित करने का प्रयास करता है। आगे की राह पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने पर केंद्रित होनी चाहिये, साथ ही समुदायों के बीच धार्मिक स्वतंत्रता और विश्वास की भावना को भी बनाए रखना चाहिये।
और पढ़ें: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 |
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का उद्देश्य वक्फ प्रशासन का आधुनिकीकरण किस प्रकार करना है तथा इसके समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं? |
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
मेन्स:
प्रश्न: भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? विवेचना कीजिये। (2018)