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सर्वोच्च न्यायालय का पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी पर रोक लगाने वाला फैसला वापस

  • 21 Nov 2025
  • 85 min read

प्रिलिम्स के लिये: सर्वोच्च न्यायालय, पर्यावरणीय मंज़ूरी (एनवायर्नमेंटल क्लीयरेंस), एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट, PARIVESH

मेन्स के लिये: भारत में न्यायिक समीक्षा और पर्यावरण शासन, एहतियाती सिद्धांत बनाम विकासात्मक अनिवार्यताऍं

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

2:1 के फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2025 के वनशक्ति निर्णय को रद्द कर दिया, जिसने पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरियों (एक्स पोस्ट फैक्टो या रेट्रोस्पेक्टिव एनवायर्नमेंटल क्लीयरेंस- ECs) पर प्रतिबंध लगाया था। न्यायालय के अनुसार, इस प्रतिबंध को जारी रखना ‘गंभीर नुकसान’ पहुँचा सकता था, जो सार्वजनिक निवेश के हज़ारों करोड़ रुपये को जोखिम में डाल सकता है।

  • यह निर्णय इस आशंका पर आधारित था कि पूर्वव्यापी मंज़ूरी देने से पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने वालों को कानूनी प्रक्रियाओं से बच निकलने का अवसर मिल जाता, जिससे पर्यावरण संरक्षण के प्रयास कमज़ोर पड़ते।

पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी क्या है?

  • तात्पर्य: वे मंज़ूरियाँ जो तब दी जाती हैं जब कोई परियोजना बिना अनिवार्य पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) प्राप्त किये ही निर्माण, विस्तार या संचालन शुरू कर चुकी होती है। 
  • उद्देश्य: दुर्लभ, असाधारण मामलों के लिये अभिप्रेत है, लेकिन अक्सर डेवलपर्स को पहले से ही अवैध रूप से किये गए कार्य को ‘वैध’ करने की अनुमति देकर उल्लंघनों को नियमित करने के लिये उपयोग किया जाता है।
  • कानूनी ढाँचा: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 और वर्ष 1994 तथा 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचनाएँ पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी के सिद्धांत पर आधारित हैं, जिसके तहत प्रमुख औद्योगिक और निर्माण परियोजनाओं को उनके पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन और अनुमोदन के बाद ही शुरू करने की आवश्यकता होती है।
  • पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी पर सर्वोच्च न्यायालय का वनशक्ति निर्णय, 2025: वनशक्ति निर्णय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी वर्ष 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन (OM) को रद्द कर दिया, जो पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी की अनुमति देता था।
    • न्यायालय ने कहा कि पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी देना गंभीर रूप से अवैध है तथा पर्यावरण कानूनों की मूल भावना के खिलाफ है, क्योंकि यह पूर्व सावधानी सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जिसके अनुसार पर्यावरणीय नुकसान को पहले ही रोकना आवश्यक है, बाद में नहीं।
      • इसने परियोजनाओं को बिना अनुमोदन के शुरू करने देने के प्रयासों की आलोचना की तथा केंद्र को भविष्य में पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी की अनुमति देने वाली कोई भी अधिसूचना जारी करने से रोक दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी पर 2025 वनशक्ति जजमेंट को क्यों वापस लिया?

  • बड़े पीठ द्वारा पुनर्विचार की आवश्यकता: मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने माना कि वनशक्ति निर्णय आवश्यक तथ्यों/पूर्व निर्णयों की अनदेखी करते हुए दिया गया (per incuriam) था, क्योंकि इसमें समान पीठ द्वारा दिये गए पहले के महत्त्वपूर्ण फैसलों को नज़रअंदाज़ किया गया। इनमें शामिल हैं—डी, स्वामी (2021): जिसमें विशेष परिस्थितियों में पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) की अनुमति दी गई थी तथा एलेम्बिक फार्मास्युटिकल्स (2020): जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी ECs को हतोत्साहित किया था, लेकिन फिर भी उन्हें आर्थिक दंड लगाकर वैध ठहराया गया था।
    • इस विवाद के कारण इस मुद्दे पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करना आवश्यक है।
  • अनुपातिकता का सिद्धांत: अदालत ने कहा कि सख्त पूर्व-स्वीकृति प्रवर्तन ऐसे परिणाम नहीं पैदा करने चाहिये, जिससे सार्वजनिक हित को नुकसान पहुँचे।
    • भारी दंड और पालन-पोषण के उपाय पहले से मौजूद हैं, जो उल्लंघनों को रोकने हेतु पर्याप्त हैं और इसके लिये ध्वस्तीकरण की आवश्यकता नहीं है।
  • विकास की व्यावहारिक वास्तविकताएँ: कई परियोजनाएँ पर्यावरण मंज़ूरी (EC) के बिना शुरू हुईं, यह जानबूझकर उल्लंघन नहीं, बल्कि प्रक्रियात्मक देरी के कारण था।
    • पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी, जो केवल कुछ दुर्लभ मामलों में ही उपयोग की जाती है, चल रही परियोजनाओं को बिना अनावश्यक पुनर्निर्माण के अनुपालन में लाने में मदद करती है।
    • अदालत ने स्पष्ट किया कि ये असाधारण हैं, नियमित नहीं और इनके साथ कड़े दंड होना आवश्यक है।

विपरीत दृष्टिकोण (Dissenting View): न्यायमूर्ति उज्जल भुय्यन (Justice Ujjal Bhuyan) ने तर्क दिया कि यह रिकॉल सावधानी के सिद्धांत को कमज़ोर करता है और उल्लंघन करने वालों को पुरस्कृत करता है। उन्होंने एक्स पोस्ट फैक्टो पर्यावरण मंज़ूरी (ECs) को पर्यावरण न्यायशास्त्र के लिये घातक बताया और इसे अनुच्छेद 21 (स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार) और अनुच्छेद 51A(g) (प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा का कर्तव्य) से जोड़कर देखा। हालाँकि अंततः बहुमत का दृष्टिकोण ही लागू हुआ।

सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों की समीक्षा करने का अधिकार (अनुच्छेद 137)

  • संवैधानिक प्रावधान: सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका अनुच्छेद 137 के तहत दायर की जा सकती है, जो न्यायालय को अपने ही फैसलों या आदेशों की समीक्षा करने और स्पष्ट त्रुटियों को सुधारने या न्याय के विकार को रोकने का अधिकार देती है।
  • क्यूरेटिव पिटीशन (Curative Petition): रूपा अशोक हुर्रा (2002) के मामले में इसे प्रस्तुत किया गया था। यह अंतिम न्यायिक उपाय है और केवल तब दायर की जा सकती है जब समीक्षा याचिका खारिज हो जाए
    • यह अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में लागू होती है, जैसे न्यायिक पक्षपात, प्रक्रियात्मक अन्याय या प्रक्रिया का दुरुपयोग और अंतिम निर्णय के बाद भी न्याय सुनिश्चित करने का काम करती है।

भारत में पर्यावरणीय मंज़ूरी क्या है?

  • परिचय: भारत में कुछ विकास और औद्योगिक परियोजनाओं के लिये पर्यावरण मंज़ूरी (EC) एक अनिवार्य स्वीकृति प्रक्रिया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये परियोजनाएँ पर्यावरण या स्थानीय समुदायों को नुकसान न पहुँचाए।
    • यह कानूनी आवश्यकता है, जो पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत लागू होती है और इसे मुख्यतः 1994 और 2006 के EIA अधिसूचना द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • पर्यावरण मंज़ूरी (EC) की आवश्यकता वाली परियोजनाएँ: कोई भी परियोजना जो पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में स्थित हो (जैसे राष्ट्रीय उद्यान, बायोस्फीयर रिज़र्व, मैंग्रोव, जनजातीय क्षेत्र, तटीय क्षेत्र), उसे श्रेणी की परवाह किये बिना EC की आवश्यकता होती है।
    • EIA 2006 के तहत, 39 से अधिक प्रकार की गतिविधियों के लिये पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) अनिवार्य है और परियोजनाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
      • श्रेणी A: केंद्रीय स्तर पर MoEFCC द्वारा मंज़ूर की जाने वाली परियोजनाएँ।
      • श्रेणी B: राज्य स्तर पर राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (SEIAA) द्वारा मंज़ूर की जाने वाली परियोजनाएँ।
  • मुख्य चरण: प्रक्रिया की शुरुआत EIA अध्ययन से होती है (जहाँ आवश्यक हो), इसके बाद सार्वजनिक सुनवाई की जाती है ताकि समुदाय की चिंताओं को समझा जा सके।
    • इसके बाद विशेषज्ञ समिति रिपोर्ट और स्थल निरीक्षण के माध्यम से परियोजना का मूल्यांकन करती हैं और मंज़ूरी या अस्वीकृति की सिफारिश करती हैं।
    • अंतिम निर्णय 120 दिनों के भीतर जारी किया जाता है और यह पर्यावरण मंज़ूरी (EC) पाँच वर्षों के लिये वैध होती है।
  • चिंताएँ और सीमाएँ: सार्वजनिक परामर्श अक्सर सार्थक भागीदारी की बजाय केवल औपचारिकता बनकर रह जाता है।
    • EIA प्रक्रिया कभी-कभी स्थानीय समुदायों द्वारा उठाए गए मुद्दों को शामिल करने में असफल रहती है।
    • हालिया प्रावधानों के अनुसार, “अनुकूल न होने वाली परिस्थितियों” में सार्वजनिक सुनवाई (Public Hearings) को छोड़ना संभव है, जो जाँच और संतुलन को कमज़ोर कर सकता है।

भारत पर्यावरण संरक्षण और विकास की आवश्यकताओं के बीच प्रभावी संतुलन कैसे स्थापित कर सकता है?

  • पूर्व पर्यावरण स्वीकृति (EC) अनुपालन को सुदृढ़ करना: अनुमोदन से पहले कठोर पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA), लोक सुनवाई और वैज्ञानिक मूल्यांकन को अनिवार्य रूप से लागू करना।
  • निगरानी हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: सैटेलाइट मॉनिटरिंग एवं PARIVESH जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म तथा राष्ट्रीय भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)-आधारित उल्लंघन पोर्टल का उपयोग बढ़ाएँ, ताकि परियोजनाओं की निगरानी की जा सके और अवैध निर्माण रोका जा सके।
  • प्रदूषणकर्त्ता-भुगतान सिद्धांत + पुनर्स्थापन उपाय लागू करना: कड़े दंड लागू करना और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन को अनिवार्य करना जैसे प्रतिपूरक वनीकरण निधि (CAMPA), राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के दिशा-निर्देशों के तहत पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति (EC) और प्रदूषणकर्त्ता-भुगतान सिद्धांत का उपयोग।
  • हरित अवसंरचना को बढ़ावा देना: स्मार्ट सिटी मिशन, राष्ट्रीय सौर मिशन जैसी योजनाओं के माध्यम से सतत् अवसंरचना का विस्तार करना और कम-कार्बन गतिशीलता को प्रोत्साहित करना।
  • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: ग्राम सभाओं, वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के तहत परामर्श तथा पर्यावरण स्वीकृति प्रक्रिया में लोक सुनवाई को अधिक पारदर्शी बनाकर जनभागीदारी को सुदृढ़ करना।

निष्कर्ष

वनशक्ति निर्णय की पुनः समीक्षा यह दर्शाती है कि एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाओं को बाधित किये बिना अनुपालन को लागू करता है। आगे बढ़ते हुए, पारदर्शी EC प्रक्रियाएँ, कठोर दंड और सामुदायिक भागीदारी वास्तव में सतत् विकास प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण होंगे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के पर्यावरण न्यायशास्त्र में सावधानी के सिद्धांत और प्रदूषण फैलाने वाले को भुगतान करने के सिद्धांत की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. एक्स पोस्ट फैक्टो एनवायर्नमेंटल क्लियरेंस (ECs) क्या हैं?
एक्स पोस्ट फैक्टो EC वे स्वीकृतियाँ हैं जो किसी परियोजना के पहले ही शुरू हो जाने के बाद दी जाती हैं, जबकि अनिवार्य पूर्व-स्वीकृति नहीं ली गई होती है।

2. भारत में ECs किन कानूनों द्वारा नियंत्रित होती हैं?
पर्यावरणीय स्वीकृति पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 और EIA अधिसूचनाओं (1994, 2006) द्वारा नियंत्रित होती है।

3. कौन-से व्यावहारिक सुधार पूर्व तारीख से दी जाने वाली स्वीकृतियों पर निर्भरता कम कर सकते हैं?
पूर्व EC प्रक्रियाओं को सरल बनाना, सैटेलाइट और डिजिटल मॉनिटरिंग (PARIVESH/GIS) को सशक्त करना, पर्यावरणीय पुनर्स्थापन बॉण्ड अनिवार्य करना, समय पर लोक सुनवाई सुनिश्चित करना और अवैध निर्माण को रोकने के लिये प्रदूषणकर्त्ता-भुगतान सिद्धांत के तहत कड़े दंड लागू करना।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है। 
  2. भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1                       
(b)  केवल 2
(c)  1 और 2 दोनों 
(d)  न तो 1 और न ही 2

उत्तर:(c)


मेन्स 

प्रश्न. सरकार द्वारा किसी परियोजना को अनुमति देने से पूर्व, अधिकाधिक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन किये जा रहे हैं। कोयला गर्त-शिखरों (पिटहेड्स) पर अवस्थित कोयला-अग्नित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2014)

प्रश्न. पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2020 का मसौदा मौजूदा  EIA अधिसूचना, 2006 से कैसे भिन्न है? (2020)

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