मुख्य परीक्षा
भारत के निजी पूंजीगत व्यय का पुनर्निर्देशन
- 11 Oct 2025
- 68 min read
चर्चा में क्यों?
बढ़ते वैश्विक टैरिफ और अस्थिर बाह्य मांग आर्थिक स्थिरता के लिये घरेलू बाज़ारों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता को रेखांकित करती है, जिससे भारतीय निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय (Capex) पर ध्यान केंद्रित हो जाता है।
पूंजीगत व्यय (Capex)
- परिचय: कैपेक्स (Capital Expenditure) का आशय ऐसी धनराशि से है जो भौतिक परिसंपत्तियों- जैसे संपत्ति, उपकरण या प्रौद्योगिकी- अर्जित करने, उन्नत करने या बनाए रखने पर व्यय की जाती है। यह दीर्घकालिक निवेश होता है, जिसे परिसंपत्ति के रूप में दर्ज किया जाता है और समय के साथ मूल्यह्रास (Depreciates) के अधीन होता है। उदाहरणों में मशीनरी की खरीद और सुविधाओं का आधुनिकीकरण शामिल हैं।
- परिचालन व्यय (Opex), जो व्यवसाय के दैनिक संचालन लागतों को दर्शाता है, के विपरीत कैपेक्स उन महत्त्वपूर्ण निवेशों को कहते हैं जो दीर्घकालिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किये जाते हैं।
- भारत सरकार अपने वार्षिक बजट के माध्यम से पूंजीगत व्यय का आवंटन करती है, जिसे वित्त मंत्री प्रस्तुत करते हैं।
- वित्त वर्ष 2025-26 के लिये GDP के 3.1% के अनुरूप ₹11.21 लाख करोड़ के पूंजीगत व्यय का प्रावधान किया गया है।
- महत्त्व: कैपेक्स उच्च गुणक प्रभाव के कारण आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सहायक उद्योगों को प्रोत्साहित करता है, रोज़गार सृजित करता है तथा श्रम उत्पादकता को बढ़ाता है।
- एक प्रतिचक्रीय राजकोषीय साधन के रूप में, कैपेक्स अर्थव्यवस्था को स्थिर करता है तथा परिसंपत्ति सृजन के माध्यम से दीर्घकालिक राजस्व सृजन का समर्थन करता है।
- यह ऋण चुकौती द्वारा देनदारियों को घटाने में भी सहायक होता है तथा निजी निवेश को उत्प्रेरित कर सतत् आर्थिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत में घरेलू पूंजीगत व्यय का विकास
- उदारीकरण-पूर्व: अंतर्मुखी नीतियों और संरक्षित घरेलू बाज़ारों के तहत व्यवसाय बढ़ रहे थे एवं असाधारण लाभ अर्जित रहे थे।
- उदारीकरण के बाद (1990 का दशक): संचित धन ने भारतीय कंपनियों को वैश्विक स्तर पर विस्तार करने, विदेशी संस्थाओं का अधिग्रहण करने तथा बहुराष्ट्रीय परिचालन स्थापित करने में सक्षम बनाया।
- वर्तमान संदर्भ: बढ़ती टैरिफ बाधाओं के कारण बाह्य मांग में आने वाले गतिरोध, आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये सरकार-व्यापार सहयोग को और अधिक बढ़ाने के लिये प्रेरित कर रहे हैं, क्योंकि मौजूदा सार्वजनिक निवेश तथा नीतिगत सुधार अपर्याप्त साबित हो रहे हैं।
भारत में निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय के रुझान क्या हैं?
- पूंजीगत व्यय में समग्र वृद्धि: वित्त वर्ष 2021-22 और वित्त वर्ष 2024-25 के बीच निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय (Capex) में 66.3% की वृद्धि हुई, लेकिन वित्त वर्ष 2025-26 में इसमें 25.5% की गिरावट आने की उम्मीद है।
- निवेश की प्रकृति: वित्त वर्ष 2025 में लगभग 49.6% उद्यमों ने आय सृजन के लिये, 30.1% ने उन्नयन के लिये और 2.8% ने विविधीकरण के लिये निवेश किया।
- क्षेत्रीय वितरण: विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी सबसे अधिक 43.8% रही, इसके बाद सूचना एवं संचार की हिस्सेदारी 15.6% तथा परिवहन एवं भंडारण की हिस्सेदारी 14% रही।
- सकल अचल संपत्तियों (GFA) में वृद्धि: निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र में प्रति उद्यम औसत सकल अचल संपत्ति (GFA) वर्ष 2022-23 और वर्ष 2023-24 के बीच 27.5% बढ़ी।
भारत के विकास को बनाए रखने में घरेलू पूंजीगत व्यय क्या भूमिका हो सकती है?
- निजी निवेश का अभिवर्द्धन: भारत का बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 12.6% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है, जो वैश्विक औसत (3.9%) से कहीं अधिक है। ऐसे में, भारतीय कंपनियाँ घरेलू अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिये घरेलू अवसरों में अधिक निवेश कर सकती हैं।
- भारतीय कंपनियों को अपने रिकॉर्ड स्तर के उच्च कॉर्पोरेट लाभ का उपयोग निजी निवेश और पूँजीगत व्यय बढ़ाने के लिये करना चाहिये, जो सरकारी प्रोत्साहनों के अनुरूप हो।
- पारिश्रमिक में मध्यम वृद्धि का सुनिश्चय: भारतीय व्यवसायों में आय असमानता का निवारण करने के लिये 15 वर्षों के उच्चतम कॉर्पोरेट लाभ (2023-24) के बावजूद स्थिर पारिश्रमिक का समाधान करने की क्षमता है।
- चूँकि वास्तविक पारिश्रमिक वृद्धि 7% (वित्त वर्ष 2025) से घटकर 6.5% (वित्त वर्ष 2026) होने का अनुमान है, इसलिये कंपनियों को एक सकारात्मक विकास चक्र को बनाए रखने के लिये औपचारिक क्षेत्रों, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में, संविदाकरण को कम करने और श्रमिकों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- अनुसंधान एवं विकास में निवेश: भारतीय कंपनियों को अपने अनुसंधान एवं विकास (R&D) व्यय में वृद्धि करनी चाहिये, जो वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.64% है, जबकि चीन में यह 2.1% है।
- निजी क्षेत्र का कुल अनुसंधान एवं विकास में केवल 36% का योगदान है- जो अमेरिका, चीन और दक्षिण कोरिया के लगभग 70% से काफी कम है- इसलिये कंपनियों को अल्पकालिक रिटर्न पर ध्यान केंद्रित न कर मूलभूत अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जो दीर्घकालिक उत्पादकता लाभ के लिये आवश्यक है।
निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
- संस्थागत तंत्र और ऋण समर्थन को सशक्त बनाना: बड़े निजी निवेशों के लिये त्वरित अनुमोदन सुनिश्चित करने हेतु प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग ग्रुप (PMG) का पुनर्गठन किया जाए।
- MSME के लिये आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) का विस्तार किया जाए और मध्यम आकार के निर्माताओं को समान समर्थन प्रदान किया जाए।
- प्रारंभिक चरण के औद्योगिक और तकनीकी निवेशों को प्रोत्साहित करने के लिये स्टार्टअप्स के लिये क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS) का उपयोग किया जाए।
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का विस्तार: रक्षा निर्माण और प्रिसिजन इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों के लिये PLI योजनाएँ शुरू की जाएँ।
- निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये PLI वितरण में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित की जाए।
- कर और नियामक ढाँचे में सुधार: मशीनरी और संयंत्र निवेश पर त्वरित मूल्यह्रास लाभ को पुनः पेश किया जाए या बढ़ाया जाए।
- निर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (2022) को तेज़ी से लागू किया जाए ताकि लॉजिस्टिक्स लागत कम की जा सके।
- निवेशों का जोखिम कम करना: सड़कों, बिजली और रेलवे जैसे क्षेत्रों में निजी पूंजी आकर्षित करने एवं जोखिम साझा करने के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT) तथा रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REIT) को बढ़ावा दिया जाए।
निष्कर्ष
भारत की विकास गति बनाए रखने के लिये घरेलू पूंजी का निवेश बढ़ाने, उचित वेतन सुनिश्चित करने और अनुसंधान एवं विकास (R&D) को सुदृढ़ करने हेतु प्रयोग किया जाना चाहिये, ताकि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच एक सशक्त, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप वृद्धि सुनिश्चित की जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. घरेलू मांग में निरंतर वृद्धि भारत की आर्थिक सुदृढ़ता के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस मांग को प्रोत्साहित करने में भारतीय व्यवसायों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. वर्तमान में भारत में घरेलू निजी निवेश बढ़ाने की आवश्यकता क्यों है?
रिकॉर्ड-उच्च कॉर्पोरेट मुनाफे और सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद, निजी पूंजीगत व्यय (capex) कमज़ोर बना हुआ है, जबकि बाहरी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वैश्विक औसत से कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है।
2. भारत की अनुसंधान एवं विकास (R&D) पारिस्थितिकी में मुख्य चुनौती क्या है?
भारत का सकल R&D व्यय केवल GDP का 0.64% है और निजी क्षेत्र का योगदान मात्र 36% है, जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले बहुत कम है। इसके अलावा, इसमें दीर्घकालिक आधारभूत अनुसंधान के बजाय अल्पकालिक रिटर्न पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
3. भारत की अर्थव्यवस्था के लिये मध्यम वेतन वृद्धि सुनिश्चित करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
वेतन वृद्धि खपत और समग्र मांग को बनाए रखती है; वर्ष 2023–24 में कॉर्पोरेट मुनाफा 15 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुँचा, जबकि वास्तविक वेतन वृद्धि FY25 में 7% से गिरकर FY26 में 6.5% होने का अनुमान है, जिससे घरेलू मांग कमज़ोर होने का जोखिम बढ़ सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करतीं, यदि (2018)
(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यातों की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं।
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (GDP) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)