दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:


डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

भारत में श्रम अधिकारों का सुदृढ़ीकरण

  • 13 Oct 2025
  • 78 min read

प्रिलिम्स के लिये: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम

मेन्स के लिये: भारत में श्रम अधिकार और औद्योगिक सुरक्षा, श्रम विधियों के प्रवर्तन में चुनौतियाँ, अनौपचारिक क्षेत्र और सामाजिक सुरक्षा उपाय

स्रोत: द हिंदू  

चर्चा में क्यों?

तेलंगाना में सिगाची इंडस्ट्रीज़ में हुए रिएक्टर विस्फोट और वर्ष 2025 में औद्योगिक क्षेत्र में बड़ी संख्या में हुई दुर्घटनाओं से औद्योगिक सुरक्षा मानकों और समय के साथ श्रम सुरक्षा के अप्रभावी होने को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं, जिससे भारत में श्रमिकों के अधिकारों के हनन पर पुनः विचार-विमर्श शुरू हो गया है।

भारत में औद्योगिक क्षेत्रों में बढ़ती दुर्घटनाओं के क्या कारण हैं?

  • लापरवाही और लागत में कटौती: कार्य नियोजक प्रायः रखरखाव की अनदेखी करते हैं, पुरानी मशीनों का उपयोग करते हैं और सुरक्षा जाँचों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिसके कारण बहुधा औद्योगिक दुर्घटनाएँ होती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र की दुर्घटनाएँ बहुत कम मामलों में ही आकस्मिक होती हैं और सामान्यतया नियोजकों द्वारा लापरवाही करने, सुरक्षा में कम निवेश करने, या निम्न वेतन के कारण श्रमिकों को लंबे समय तक और उच्च दबाव में कार्य करने के लिये विवश करने के कारण होती हैं।
  • प्रशिक्षण और सुरक्षा प्रणालियों का अभाव: श्रमिकों को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं किया जाता है और कई कार्यस्थलों पर अलार्म, सुरक्षा उपकरण या आपातकालीन सुविधाओं का अभाव होता है, जिसके कारण उपकरणों को अनुचित रूप से उपयोग में लाया जाता है और संकट के दौरान अनुक्रिया करने में देरी होती है।
  • सिगाची इंडस्ट्रीज़ में, रिएक्टर कथित तौर पर बिना किसी अलार्म या हस्तक्षेप के अनुमेय तापमान से दोगुने तापमान पर संचालित था, जो सुरक्षा में गंभीर खामियों को दर्शाता है।
  • कार्याधिक्य और थकान: लंबे समय तक कार्य करने और कार्य के अधिक दबाव से परिसंकटमय कार्य परिवेश में गलतियों की संभावना बढ़ जाती है।
  • अप्रभावी विधि प्रवर्तन: अनियमित निरीक्षण और अप्रभावी प्रवर्तन से असुरक्षित प्रथाएँ जारी रहती हैं।
  • अपंजीकृत श्रमिक: अनौपचारिक श्रमिकों के पास रिकॉर्ड, विधिक सुरक्षा और प्रतिकर का अभाव होता है, जिससे उनकी सुभेद्यता बढ़ जाती है।
  • बीमा का दावा करने के लिये जानबूझकर की गई कार्रवाई: कुछ दुर्घटनाओं में बीमा भुगतान प्राप्त करने के लिये उसमें हेरफेर की जाती है या उसे अतिरंजित कर दर्शाया जाता है, जिससे कार्यस्थल पर वास्तविक सुरक्षा प्रथाओं की पर्याप्त रिपोर्टिंग नहीं होती है।

भारत में श्रमिकों के अधिकारों के विनियमन संबंधी प्रमुख श्रम कानून कौन-से हैं?

  • कारखाना अधिनियम, 1948: यह कार्य दशाओं, मशीनरी रखरखाव, सुरक्षा मानकों, कार्य समय, विश्राम अवकाश, कैंटीन और क्रेच संबंधी विषयों के विनियमन से संबंधित है।
    • इसमें अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये निरीक्षण और प्रवर्तन के प्रावधान शामिल हैं।
    • सुरक्षा मानदंडों का सुदृढ़ीकरण करने के लिये इसमें वर्ष 1976 और वर्ष 1987 में, भोपाल गैस त्रासदी के बाद संशोधन किया गया था।
  • कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923: इसके अंतर्गत कार्यस्थल पर घायल या मृत श्रमिकों को प्रतिकर प्रदान किया जाता है।
  • कर्मचारी राज्य बीमा (ESI) अधिनियम, 1948: इसमें अस्वस्थता, प्रसूति या रोज़गार से संबंधित क्षति  की स्थिति में कर्मचारियों को स्वास्थ्य बीमा, चिकित्सा देखभाल और नकद लाभ प्रदान किया जाता है।
  • मज़दूरी संदाय अधिनियम, 1936 और न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948: इसमें समय पर और उचित भुगतान का प्रावधान किया गया है।
  • औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947: इसके अंतर्गत कार्य से पर्यवसान, काम बंदी और विवाद समाधान के संबंध में श्रमिकों के अधिकारों के संरक्षण का प्रावधान किया गया है।
  • उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा (OSHWC) संहिता, 2020: इसके अंतर्गत 13 पूर्व श्रम कानूनों का एक ही ढाँचे में समेकन किया गया। OSHWC संहिता का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा को विनियमित करना है, हालाँकि इसका पूर्ण कार्यान्वयन अभी लंबित है।

Labour_Laws ILO_Conventions

भारत में श्रमिकों के अधिकारों के संरक्षण संबंधी कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • विधिक सुरक्षा उपायों का प्रणालीगत क्षरण: अनुकूलनशीलता और व्यापार में सुगमता की आड़ में श्रम सुरक्षा प्रभावित हुई है, जिससे प्रवर्तन तंत्र अप्रभावी हो गया है।
    • उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र के 2015 के स्व-प्रमाणन नियम से कारखानों को स्वतंत्र निरीक्षणों को दरकिनार करने का अवसर प्राप्त हुआ, जिससे वैधानिक सुरक्षा प्रावधान प्रभावित हुए।
  • अनौपचारिकता और सुभेद्यता का सामान्यीकरण: नियोक्ताओं द्वारा बिना अन्वेक्षा के नियोजित करने, कार्य से मुक्त करने और श्रमिकों से कार्य करवाने के विवेकाधिकार को बढ़ावा देने वाले नीतिगत बदलावों से अनौपचारिक नियोजन बढ़ गया है, जिससे श्रमिक अपंजीकृत और विधिक या सामाजिक सुरक्षा से वंचित रह गए हैं।
    • शिवकाशी के पटाखा कारखानों में अधिकांश संविदा श्रमिक बिना औपचारिक रिकॉर्ड के कार्य करते हैं, जिससे दुर्घटना का प्रतिकर अनियमित और विलंबित हो जाता है।
  • आर्थिक लाभों में लैंगिक अपवर्जन: कार्यस्थल अधिकारों का अप्रभावी प्रवर्तन महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करता है, उनकी भागीदारी को बाधित करता है और लैंगिक अपवर्जन को बनाए रखता है।
  • कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व की कमी: अपर्याप्त निरीक्षण और स्व-प्रमाणन के कारण नियोक्ता लापरवाही के लिये आपराधिक या वित्तीय रूप से उत्तरदायी नहीं रह जाते हैं।
    • उदाहरण के लिये, एन्नोर कोयला-संचालन संयंत्र दुर्घटना जैसी औद्योगिक आपदाओं में स्पष्ट खामियों के बावजूद संरचनात्मक विफलताओं के लिये कानूनी कार्रवाई न्यूनतम रही।
  • दीर्घकालिक आर्थिक और उत्पादकता प्रभाव: असुरक्षित और शोषणकारी कार्य दशाएँ उत्पादकता को कम करती हैं। अनौपचारिक व्यापार श्रमिकों की आय 5 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा है, जो राष्ट्रीय औसत 11 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा का लगभग आधा है, जिससे भारत के विकसित भारत 2047 के लक्ष्य असाध्य रहने की असंभावना रहती है।

भारत श्रमिक अधिकारों का किस प्रकार सुदृढ़ीकरण कर सकता है और सुरक्षा में सुधार ला सकता है?

  • विधिक सुरक्षा उपायों का सुदृढ़ीकरण: OSHWC संहिता, 2020 का पूर्ण प्रभावी कार्यान्वन करने और कार्यस्थल सुरक्षा, सभ्य कार्य और सामाजिक सुरक्षा पर ILO के अभिसमयों के साथ श्रम नीतियों को संरेखित किये जाने की आवश्यकता है।
  • औपचारिकीकरण और सामाजिक सुरक्षा: श्रम सुविधा पोर्टल के माध्यम से अनौपचारिक श्रमिकों का डिजिटल पंजीकरण करना और उन्हें पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और सवेतन अवकाश सहित सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज में एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है।
  • कौशल विकास और सुरक्षा प्रशिक्षण: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) और स्किल इंडिया मिशन के माध्यम से क्षेत्र-विशिष्ट सुरक्षा और कौशल कार्यक्रमों का कार्यान्वन किया जाना चाहिये।
    • नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित मिशन डिजिटल श्रमसेतु का और अधिक तेज़ी से कार्यान्वयन किया जाना चाहिये।
    • उच्च जोखिम वाले उद्योगों में अनुपालन और खतरों पर नज़र रखने के लिये #AIforAll के तहत AI-सक्षम निगरानी और पूर्वानुमान टूल का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • लैंगिक-समावेशी उपाय कार्यस्थल पर बाल देखभाल सुविधाओं, प्रसूति लाभ अधिनियम, 1961 के अंतर्गत प्रसूति लाभ और अनौपचारिक क्षेत्रों में महिलाओं के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से महिला कार्यबल की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) अनुपालन: व्यवसायों के बीच पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन (ESG) मानदंडों के पालन को प्रोत्साहित करना।
    • कॉर्पोरेट CSR रणनीतियों में श्रमिक कल्याण संबंधी विचारों को एकीकृत करना।
  • सामूहिक कार्रवाई और सुरक्षा संस्कृति को बढ़ावा देना: सामूहिक रूप से सौदा करने, श्रमिक प्रतिनिधित्व और सूचना प्रदाता संरक्षण को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
    • श्रमिक सुरक्षा को लागत के बजाय एक निवेश मानते हुए "सुरक्षा-प्रथम" औद्योगिक संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • डेटा-संचालित निगरानी: लक्षित नीतिगत हस्तक्षेपों को सक्षम बनाते हुए और लापरवाही की रोकथाम कर अनुपालन, दुर्घटना दर और सामाजिक सुरक्षा कवरेज पर नज़र रखने के लिये राष्ट्रीय डैशबोर्ड स्थापित करना चाहिये।

निष्कर्ष

  • श्रमिक अधिकारों के संरक्षण के लिये सुदृढ़ कानून, सामाजिक सुरक्षा, कौशल प्रशिक्षण, लैंगिक समावेशन, कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व और आँकड़ों पर आधारित निगरानी आवश्यक हैं। इन पर ध्यान देने से श्रमिकों की सुरक्षा होगी, उत्पादकता में वृद्धि होगी और विकसित भारत 2047 में योगदान बढ़ेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में श्रम अधिकारों का प्रणालीगत रूप से कमज़ोर होना और अप्रभावी प्रवर्तन किस प्रकार इन्हें प्रभावित करता है और कौन-से सुधारों से इन कमियों का समाधान किया जा सकता है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत में कार्यस्थल दुर्घटनाओं के मुख्य कारण क्या हैं?
पुरानी मशीनें, अनुपयुक्त सुरक्षा प्रणालियाँ, अत्यधिक कार्य, अपंजीकृत श्रमिक और अप्रभावी विधि प्रवर्तन।

2. भारत में औद्योगिक श्रमिकों की सुरक्षा के लिये कौन-से कानून हैं?
प्रमुख कानूनों में कारखाना अधिनियम 1948, उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा (OSHWC) संहिता, 2020, कर्मकार प्रतिकर अधिनियम 1923, ESI अधिनियम 1948, मज़दूरी संदाय अधिनियम 1936 और न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम 1948 शामिल हैं।

3. OSHWC संहिता, 2020 से श्रमिक सुरक्षा नियमों में किस प्रकार सुधार हुआ है?
इसमें सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशाओं को सुव्यवस्थित करने के लिये 13 श्रम कानूनों को एकीकृत किया गया है, हालाँकि इसका पूर्ण कार्यान्वयन अभी लंबित है।

4. श्रमिक अधिकारों और औद्योगिक सुरक्षा में सुधार के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
विधिक सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करना, अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक बनाना, कौशल प्रशिक्षण, लैंगिक समावेशन, कॉर्पोरेट जवाबदेही और AI-सक्षम निगरानी।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2017)

  1. कारखाना अधिनियम, 1881 को औद्योगिक मज़दूरों की मज़दूरी तय करने और मज़दूरों को ट्रेड यूनियन बनाने की अनुमति देने के उद्देश्य से पारित किया गया था।  
  2. एन.एम. लोखंडे ब्रिटिश भारत में श्रमिक आंदोलन के आयोजन में अग्रणी थे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. “मेक इन इंडिया कार्यक्रम की सफलता कौशल भारत कार्यक्रम और क्रांतिकारी श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।" तार्किक तर्कों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)

close
Share Page
images-2
images-2