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ध्यान दें:

प्रिलिम्स फैक्ट्स

रैपिड फायर

भारत की विनिमय दर प्रणाली क्रॉल-जैसी व्यवस्था के रूप में वर्गीकृत

स्रोत: FE

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत की वास्तविक (de facto) विनिमय दर प्रणाली को ‘स्थिर (stabilised)’ प्रणाली से बदलकर ‘क्रॉल-जैसी व्यवस्था (crawl-like arrangement)’ के रूप में पुनः वर्गीकृत किया है।

  • क्रॉल-जैसी व्यवस्था का अर्थ है कि विनिमय दर कम-से-कम छह महीनों तक किसी निर्धारित प्रवृत्ति (ट्रेंड) के आसपास लगभग 2% के दायरे में बनी रहती है। जिसका अर्थ है कि यह पूरी तरह से अस्थिर नहीं है।
    • एक प्रबंधित तिरती (मैनेज्ड फ्लोटिंग) विनिमय दर बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है तथा इसमें स्वतंत्र रूप से उतार-चढ़ाव होता रहता है, जबकि एक स्थिर विनिमय दर सरकार या केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित और अनुरक्षित की जाती है।
      • भारत वर्तमान में प्रबंधित तिरती विनिमय दर प्रणाली का उपयोग करता है, जहाँ RBI बाज़ार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को प्रबंधित करने के लिये हस्तक्षेप करता है, जबकि बाज़ार को सामान्य प्रवृत्ति निर्धारित करने की अनुमति प्रदान करता है।
  • यह वर्गीकरण IMF के समझौता अनुच्छेदों और विनिमय व्यवस्थाओं के अनुच्छेद IV निगरानी पर आधारित है, जो मुद्रा की वास्तविक गति और एक विशिष्ट विनिमय दर पथ के प्रति नीति प्रतिबद्धता का आकलन करता है।
    • क्रॉल जैसी व्यवस्था IMF के ‘क्रॉलिंग पेग’ से थोड़ी भिन्न होती है। जबकि क्रॉलिंग पेग में परिभाषित संकेतकों (जैसे मुद्रास्फीति अंतर) के आधार पर छोटे, पूर्व-घोषित समायोजन शामिल होते हैं, क्रॉल जैसी व्यवस्था को IMF द्वारा विनिमय दर के वास्तविक व्यवहार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, भले ही कोई औपचारिक क्रॉलिंग नीति घोषित न की गई हो।
  • IMF के समझौता अनुच्छेद: वर्ष 1944 में संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में अपनाए गए, ये संगठन के संस्थापक चार्टर के रूप में कार्य करते हैं तथा भारत सहित 190 सदस्य देशों द्वारा इनका अनुसमर्थन किया गया है।
    • वे IMF के उद्देश्य, शासन संरचना, सदस्य दायित्वों और संचालन के नियमों को परिभाषित करते हैं, जिनमें विशेष आहरण अधिकार भी शामिल हैं। 
    • इन अनुच्छेदों में IMF के प्रमुख कार्यों जैसे वैश्विक मौद्रिक निगरानी, ​​ज़रूरतमंद देशों को ऋण देना और तकनीकी सहायता प्रदान करना आदि का प्रावधान है।

और पढ़ें: भारत की वित्तीय प्रणाली पर IMF की रिपोर्ट


रैपिड फायर

भारत-इंडोनेशिया रक्षा मंत्रियों की तीसरी वार्ता

स्रोत: AIR

भारत के रक्षा मंत्री ने इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री सजाफ्री सजामसोएद्दीन के साथ तीसरे भारत-इंडोनेशिया रक्षा मंत्री वार्ता की सह-अध्यक्षता की। इस वार्ता में क्षेत्रीय सुरक्षा घटनाक्रमों की समीक्षा के अलावा, बहुपक्षीय मुद्दों और द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को मज़बूत करने के लिये नई संभावनाओं पर भी बातचीत हुई। जिससे दोनों देशों के रक्षा संबंधों को दिये जाने वाले रणनीतिक महत्त्व को और बल मिलता है।

मुख्य परिणाम:

  • भारत-प्रशांत सहयोग: भारत और इंडोनेशिया ने स्वतंत्र और खुले भारत-प्रशांत के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि की तथा भारत-प्रशांत पर आसियान दृष्टिकोण और भारत की भारत-प्रशांत महासागर पहल के बीच संरेखण पर ध्यान दिया। 
    • उन्होंने समुद्री जागरूकता, साइबर तथा हिंद महासागर रिम एसोसिएशन जैसे बहुपक्षीय निकायों के माध्यम से सहयोग को गहरा करने पर सहमति व्यक्त की।
  • रक्षा और उद्योग सहयोग: इंडोनेशिया ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त अनुसंधान और विकास, प्रमाणन सामंजस्य तथा आपूर्ति शृंखला संबंधों को मज़बूत करने के लिये एक संयुक्त रक्षा उद्योग सहयोग समिति की स्थापना में भारत के प्रस्ताव का स्वागत किया।
    • सैन्य-से-सैन्य संलग्नता: भारत और इंडोनेशिया ने सुपर गरुड़ शील्ड, गरुड़ शक्ति अभ्यास, पूर्व समुद्र शक्ति अभ्यास और आगामी वायु युद्धाभ्यास सहित भूमि, समुद्री और वायु सेनाओं में संयुक्त अभ्यासों में प्रगति पर प्रकाश डाला।
  • भारत-इंडोनेशिया संबंध: 
    • इंडो-पैसिफिक में इंडोनेशिया की रणनीतिक स्थिति, मलक्का, सुंडा और लोंबोक जलडमरूमध्य जैसे महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों की देखरेख, इसे समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय व्यापार प्रवाह के लिये एक आवश्यक साझेदार बनाती है।
    • भारत और इंडोनेशिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में 38.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो उनके आर्थिक संबंध को रेखांकित करता है।
    • 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ब्रह्मोस मिसाइल सौदे और रक्षा सहयोग के विस्तार जैसी संभावनाएँ दोनों देशों के बीच मज़बूत होते आर्थिक और सामरिक संबंधों को दर्शाती हैं।

और पढ़ें: भारत-इंडोनेशिया संबंध


रैपिड फायर

केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) को भंग करने से जुड़े किसी भी कदम पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस समिति को केवल उसकी अनुमति से ही समाप्त किया जा सकता है। यह निर्णय तब आया जब इसकी भूमिकाएँ राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के साथ ओवरलैप होने को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गईं।

  • कैबिनेट सचिवालय ने कहा कि अब जबकि NGT मज़बूत और पूर्ण रूप से कार्यशील है, इसलिये CEC की आवश्यकता की समीक्षा की जानी चाहिये। उसने पर्यावरण मंत्रालय से इस मुद्दे को विधि आयोग के पास भेजने को भी कहा।

केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC)

  • परिचय: इसे वर्ष 2002 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर टी.एन. गोदावर्मन केस (1995) के तहत बनाया गया था। वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर जारी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की अधिसूचना के माध्यम से इसे वैधानिक दर्जा दिया गया।
  • अधिदेश: CEC पर्यावरण, वन और वन्यजीव मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन की निगरानी करती है, क्षेत्रीय निरीक्षण करती है तथा स्वतंत्र तथ्य-जाँच रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को प्रस्तुत करती है।
    • यह गैर-अनुपालन वाले मामलों की समीक्षा करती है, अतिक्रमण हटाने और प्रतिपूरक वनीकरण जैसे मुद्दों की निगरानी करती है तथा प्रभावित व्यक्तियों की याचिकाओं पर विचार करके न्यायालय के पर्यावरणीय पर्यवेक्षण को सक्षम बनाती है।
  • गठन: CEC (केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति) में एक अध्यक्ष, तीन विशेषज्ञ सदस्य (प्रत्येक पर्यावरण, वन, वन्यजीव से एक-एक) और एक सदस्य सचिव शामिल होते हैं, जो MoEFCC (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) द्वारा नियुक्त सिविल सेवक होते हैं।
  • प्रभाव: CEC की रिपोर्टों ने गोवा के पहले टाइगर रिज़र्व (महादेई वन्यजीव अभयारण्य), सरिस्का टाइगर रिज़र्व में पर्यटन विनियमन, हैदराबाद के काँचा गचिबोवली में वृक्षों की कटाई और अरावली में खनन जैसे मुद्दों में सर्वोच्च न्यायालय की सहायता की है।

CEC बनाम NGT की भूमिका

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT): NGT अधिनियम, 2010 के तहत स्थापित NGT एक अर्ध-न्यायिक अधिकरण (quasi-judicial tribunal) है जो जल अधिनियम 1974, वायु अधिनियम 1981, वन संरक्षण अधिनियम 1980 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 जैसे कानूनों के तहत मूल आवेदनों की सुनवाई करता है।
  • जबकि NGT विवादों का न्यायनिर्णयन करता है, वहीं CEC (केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति) सीधे सर्वोच्च न्यायालय को तकनीकी, तथ्यात्मक और अनुपालन-केंद्रित सहायता प्रदान करती है।

और पढ़ें: राष्ट्रीय हरित अधिकरण


प्रारंभिक परीक्षा

सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना

स्रोत: PIB

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज 7 हजार 280 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय से सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना को स्वीकृति दी। यह 7,280 करोड़ रुपये की सात वर्षीय योजना है, जिसका उद्देश्य भारत में रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (REPM) की घरेलू उत्पादन क्षमता विकसित करना है।

सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • परिचय: इस योजना का उद्देश्य भारत में 6,000 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) एकीकृत REPM विनिर्माण क्षमता स्थापित करना है। 
    • यह योजना संपूर्ण मूल्य-शृंखला एकीकरण का समर्थन करती है, इसमें दुर्लभ मृदा ऑक्साइड को धातुओं में, धातुओं को मिश्र धातुओं में और मिश्र धातुओं को REPM में परिवर्तित करना शामिल है।
    • इससे भारत को अपना पहला घरेलू REPM विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने में मदद मिलेगी, जिससे बाहरी खामियाँ कम होंगी।
  • प्रोत्साहन संरचना: वित्तीय पैकेज में पाँच वर्षों में बिक्री से जुड़े प्रोत्साहन के रूप में 6,450 करोड़ रुपये और पूंजीगत सब्सिडी के रूप में 750 करोड़ रुपये शामिल हैं ।
    • इन प्रोत्साहनों का उद्देश्य प्रमुख निवेशकों को आकर्षित करना, बड़े पैमाने पर उत्पादन को बढ़ावा देना और भारत में निर्मित दुर्लभ मृदा चुंबकों की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना है।
  • लाभार्थी आवंटन: 6,000 MTPA की कुल विनिर्माण क्षमता वैश्विक प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से चुने गए पाँच लाभार्थियों के बीच वितरित की जाएगी।
    • प्रत्येक लाभार्थी को 1,200 MTPA तक प्राप्त हो सकता है, जिससे संतुलित भागीदारी और मज़बूत औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित होगी।
    • योजना की कुल अवधि कार्य सौंपे जाने की तिथि से 7 वर्ष की होगी। इसमें एकीकृत REPM विनिर्माण इकाई स्थापित करने के लिये 2 वर्ष की अवधि तथा REPM की बिक्री पर प्रोत्साहन राशि वितरण के लिये 5 वर्ष शामिल हैं।
    • यह चरणबद्ध दृष्टिकोण बुनियादी ढाँचे के निर्माण और निरंतर उत्पादन के लिये पर्याप्त समय सुनिश्चित करता है।
  • आवश्यकता: भारत में रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (REPM) की मांग वर्ष 2030 तक दोगुनी हो जाएगी, फिर भी देश भारी मात्रा में आयात पर निर्भर है तथा वर्ष 2024-25 में 53,000 मीट्रिक टन से अधिक आयात करेगा।
    • चीन द्वारा आपूर्ति शृंखला को नियंत्रित करने और निर्यात नियमों को कड़ा करने के कारण, भारतीय ईवी और ऑटो निर्माताओं को देरी, आपूर्ति अनिश्चितता, उच्च लागत और उत्पादन जोखिम का सामना करना पड़ा। 
    • इन चुनौतियों के कारण उद्योग जगत ने समर्थन की मांग की, जिससे आयात पर निर्भरता कम करने तथा तकनीकी आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये घरेलू REPM विनिर्माण महत्त्वपूर्ण हो गया। 
    • यह योजना घरेलू उद्योगों के लिये REPM आपूर्ति शृंखला स्थापित करने के साथ ही देश की नेट ज़ीरो 2070 प्रतिबद्धता को भी बल देगी। यह वर्ष 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप, भारत के सतत् लक्ष्यों के साथ विनिर्देश होगा ।

रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (REPMs) क्या हैं?

  • REPMs वे उच्च-प्रदर्शन वाले मैग्नेट हैं जो दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे समेरियम (Sm), नियोडिमियम (Nd), प्रसीओडिमियम (Pr), डिस्प्रोसियम (Dy) और सीरियम (Ce) से बनाए जाते हैं।
    • फेराइट या AlNiCo मैग्नेट की तुलना में REPMs में काफी अधिक ऊर्जा घनत्व, उच्च कोअर्सिविटी, छोटे आकार में अधिक चुंबकीय शक्ति, और उच्च-परिशुद्धता एवं उच्च-शक्ति वाले अनुप्रयोगों में उत्कृष्ट प्रदर्शन मिलता है।
    • इसी कारण ये हाई-एफिशिएंसी मोटर्स और मिनीचुराइज्ड डिवाइसेस के लिये अनिवार्य हैं।
  • सिंटर REPM: ये सिंटरिंग प्रक्रिया से बनाए जाते हैं, जिसमें दुर्लभ मृदा मिश्रधातु के बारीक पाउडर को उच्च दबाव से कंप्रेस किया जाता है और फिर उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे वह सघन, मज़बूत चुंबकीय ढाँचे में बदल जाता है।
    • सिंटर्ड NdFeB (नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन) और SmCo (समेरियम-कोबाल्ट) मैग्नेट आज के समय में सबसे शक्तिशाली वाणिज्यिक परमानेंट मैग्नेट हैं तथा हाई-एफिशिएंसी इलेक्ट्रिक मोटर्स तथा उन्नत तकनीकी अनुप्रयोगों में आवश्यक हैं।
  • भारत के EV पारिस्थितिकी तंत्र के लिये REMPS का महत्त्व: रेयर अर्थ मैग्नेट, विशेष रूप से NdFeB प्रकार, ईवी ट्रैक्शन मोटर्स, स्टीयरिंग, ब्रेकिंग और अन्य घटकों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो दक्षता, विद्युत् उत्पादन और बैटरी रेंज में सुधार करते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: REPM विनिर्माण योजना का उद्देश्य क्या है?
इस योजना का उद्देश्य 6,000 MTPA क्षमता वाले सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स के लिये एक एकीकृत घरेलू इकोसिस्टम स्थापित करना है, ताकि आयात पर निर्भरता कम हो और EV, रक्षा तथा हाई-टेक सेक्टर के लिये सुरक्षित आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।

प्रश्न 2: लाभार्थियों का चयन और क्षमता आवंटन किस प्रकार किया जाएगा?
पाँच लाभार्थियों का चयन वैश्विक प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रक्रिया (Global Competitive Bidding) के माध्यम से किया जाएगा।
प्रत्येक लाभार्थी को अधिकतम 1,200 MTPA क्षमता आवंटित की जा सकती है, जिससे संतुलित भागीदारी और औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित होगी।

प्रश्न 3: भारत के लिये घरेलू REPM निर्माण रणनीतिक रूप से क्यों महत्त्वपूर्ण है?
यह योजना वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं (विशेषकर चीन) पर अत्यधिक निर्भरता से उत्पन्न सप्लाई-चेन जोखिमों को कम करती है।
साथ ही यह EV मोटर्स, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा क्षेत्रों के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण इनपुट्स की सुरक्षित उपलब्धता सुनिश्चित करती है और तकनीकी आत्मनिर्भरता को आगे बढ़ाती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे दुर्लभ मृदा धातु’ कहते हैं की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

1- चीन, जो इन तत्त्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

2- चीन, ऑस्ट्रेलिया कनाडा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाये जाते हैं।

3- दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॅानिक सामानों के निर्माण में आवश्यक है इन तत्त्वों की माँग बढती जा रही है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रारंभिक परीक्षा

महात्मा ज्योतिबा फुले और उनके प्रमुख सामाजिक सुधार

स्रोत: News on AIR

चर्चा में क्यों?

महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि 28 नवंबर को मनाई गई, जिसमें उन्हें एक अग्रणी समाज सुधारक के रूप में स्मरण किया गया जिन्होंने शिक्षा को स्थायी सामाजिक परिवर्तन का मूल प्रेरक माना।

महात्मा ज्योतिबा फुले ने भारत के सामाजिक सुधार आंदोलन में किस प्रकार योगदान दिया?

  • परिचय: वे उन्नीसवीं सदी के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता, चिंतक और लेखक थे जिन्होंने अपना जीवन जाति-व्यवस्था को चुनौती देने और वंचितों को सशक्त बनाने के लिये समर्पित किया, जिनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, शूद्र तथा महिलाएँ शामिल थीं।
    • थॉमस पेन की “राइट्स ऑफ मैन” पढ़ने के बाद फुले का दृष्टिकोण बदला, जिसने उन्हें सामाजिक न्याय और समानता के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता के लिये प्रेरित किया।
  • प्रमुख योगदान:
    • जाति विरोधी आंदोलन: फुले ने वर्ष 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जाति-आधारित भेदभाव का मुकाबला करना और ब्राह्मणवादी वर्चस्व को चुनौती देना था।
      • इस संगठन ने दीनबंधु समाचार पत्र और लोक नाटकों जैसे माध्यमों से अपना संदेश प्रसारित किया।
    • शैक्षिक क्रांति: वर्ष 1848 में, फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभाई और पुणे में तात्यासाहेब भिड़े के आवास में भारत का पहला लड़कियों का विद्यालय स्थापित किया।
      • सावित्रीबाई भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं। उन्होंने वर्ष 1855 में मज़दूरों, किसानों और महिलाओं के लिये रात्रि विद्यालय भी शुरू किये।
    • साहित्यिक योगदान: फुले ने अपने क्रांतिकारी विचारों को प्रभावशाली कृतियों के माध्यम से व्यक्त किया:
      • तृतीय रत्न: यह एक कुनबी (निम्न जाति) महिला, एक ब्राह्मण और एक टीकाकार के बीच संवाद है, जो ब्राह्मणों की चतुराई को उजागर करता है।
      • गुलामगिरी: जाति उत्पीड़न की तुलना दासप्रथा से करता है।
      • शेतकऱ्याचा असूड: किसानों के शोषण को उजागर करता है।
      • सार्वजनिक सत्य धर्म: तर्कसंगत धार्मिक विचार को बढ़ावा देता है।
      • छत्रपति शिवाजी राजे भोसले यांचे पोवाड़ा: शिवाजी की पुनर्व्याख्या एक गैर-ब्राह्मण नेता के रूप में करता है।
    • प्रगतिशील विचारधाराएँ: उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया, विशेषकर विधवा-पुनर्विवाह का और विधवाओं व अनाथों के लिये आश्रय-गृह स्थापित किये। उन्होंने 1857 के विद्रोह की आलोचना एक उच्च-जाति सत्ता संघर्ष के रूप में की।
      • उन्होंने नाईयों की हड़ताल आयोजित करके उन्हें विधवा महिलाओं के सिर मुँडवाने से इनकार करने के लिये राजी किया (यह एक अपमानजनक उच्च जाति परंपरा थी)।
      • उन्होंने पारंपरिक पदानुक्रमों को विघटित करने की संभावना के कारण ब्रिटिश शासन का भी समर्थन किया और सामाजिक सुधार के साथ-साथ आर्थिक सशक्तीकरण की वकालत की।
      • ज्योतिराव फुले ने अपनी रचना 'सत्सार' में पंडिता रमाबाई के ईसाई धर्म अपनाने का समर्थन किया।
  • विरासत: उन्हें वर्ष 1888 में सामाजिक कार्यकर्त्ता विट्ठलराव कृष्णाजी वांडेकर द्वारा उनके असाधारण योगदानों के लिये महात्मा की उपाधि दी गई, जिसने डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जैसे भविष्य के नेताओं को प्रेरित किया और भारत में जाति विरोधी आंदोलनों की नींव रखी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. महात्मा ज्योतिबा फुले कौन थे?
 19वीं शताब्दी के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता, चिंतक और लेखक, जिन्होंने जाति-भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया और शिक्षा, समानता तथा महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया।

2. फुले ने महिलाओं की शिक्षा में कैसे योगदान दिया?
सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर उन्होंने वर्ष 1848 में पुणे में भारत का पहला कन्या विद्यालय स्थापित किया और बाद में वंचित समुदायों के लिये रात्रि विद्यालय शुरू किये।

3. सत्यशोधक समाज का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
वर्ष 1873 में स्थापित सत्यशोधक समाज का उद्देश्य जाति-आधारित भेदभाव और ब्राह्मणवादी प्रभुत्व का विरोध करना तथा शोषित जातियों में सामाजिक समानता और तर्कसंगत विचार को बढ़ावा देना था।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. सत्य शोधक समाज ने संगठित किया (2016)

(a) बिहार में आदिवासियों के उन्नयन का एक आंदोलन

(b) गुजरात में मंदिर-प्रवेश का एक आंदोलन

(c) महाराष्ट्र में एक जाति-विरोधी आंदोलन

(d) पंजाब में एक किसान आंदोलन 

उत्तर: (c)


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