प्रारंभिक परीक्षा
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) प्रक्रिया
चर्चा में क्यों?
वित्त मंत्रालय ने विभिन्न राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण (NCLT) बेंचों पर मामलों के प्रवेश और समाधान में हो रही देरी की समीक्षा के बाद बैंकों से आग्रह किया है कि वे दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को तेज़ और अधिक प्रभावी बनाने के लिये एक अधिक रणनीतिक और समन्वित दृष्टिकोण अपनाएँ, ताकि समय-सीमा में सुधार हो और मूल्य वसूली बेहतर हो सके।
दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) प्रक्रिया क्या है?
- दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC): वर्ष 2016 में अधिनियमित और टी.के विश्वनाथन की शोधन अक्षमता कानून सुधार समिति (2015) की सिफारिशों के आधार पर, IBC ने भारत में कॉर्पोरेट समस्या को हल करने के लिये एक एकीकृत, समयबद्ध और ऋणदाता-संचालित ढाँचा स्थापित किया।
- इसे तब शुरू किया गया था जब गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) बढ़ रही थीं और पुराने तंत्र जैसे SARFAESI, लोक अदालतें अप्रभावी और धीमी साबित हो रही थीं।
- IBC यह सुनिश्चित करता है कि जब कोई व्यवसाय "रुग्ण" हो जाता है और अपने ऋणों का भुगतान न कर सके, तो लेनदार समाधान (पुनर्गठन, नए मालिकों को बिक्री) या परिसमापन के माध्यम से जल्दी से मूल्य वसूल कर सकते हैं।
- इसका मुख्य उद्देश्य परिसंपत्ति मूल्य की हानि को रोकना, स्वस्थ ऋण चक्र को बनाए रखना तथा अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिये फंसी हुई पूंजी को मुक्त करना है।
- नियामक प्राधिकरण: भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI), IBC, 2016 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय, जो भारत में दिवाला संबंधी समाधान के लिये नियम और विनियम तैयार करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- इसमें वित्त मंत्रालय, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक के सदस्य शामिल हैं।
- न्याय निर्णय प्राधिकरण: IBC में, कॉर्पोरेट व्यक्तियों के लिये न्याय निर्णय प्राधिकरण NCLT है, जबकि व्यक्तियों और फर्मों के लिये, यह ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) है।
- वित्तीय ऋणदाताओं की समिति (COC): यह IBC, 2016 के तहत एक निर्णय लेने वाली संस्था है। यह मुख्यतः वित्तीय ऋणदाताओं से बनी होती है और इसका प्रमुख कार्य कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) में शामिल कॉर्पोरेट डेब्टर के लिये प्रस्तावित समाधान योजनाओं का मूल्यांकन करना, उन्हें मंज़ूरी देना या अस्वीकृत करना है।
IBC प्रक्रिया
- दिवालियापन की प्रक्रिया: कोई भी वित्तीय ऋणदाता, परिचालन लेनदार या डेब्टर डिफ़ॉल्ट होने पर दिवालियापन के लिये आवेदन कर सकता है।
- NCLT द्वारा स्वीकृति: NCLT 14 दिनों के भीतर आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार कर देता है। स्वीकृति मिलने के बाद, औपचारिक CIRP शुरू हो जाती है।
- IRP की नियुक्ति: NCLT कंपनी का नियंत्रण लेने, परिसंपत्तियों को सुरक्षित करने और वित्तीय डेटा एकत्र करने के लिये एक अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) की नियुक्ति करता है।
- CoC का गठन: IRP वित्तीय ऋणदाताओं की समिति (CoC) का गठन करता है, जो कंपनी के पुनरुद्धार या बिक्री पर निर्णय लेती है तथा IRP को बनाए रख सकती है या प्रतिस्थापित कर सकती है।
- समाधान योजना: समाधान योजनाएँ आमंत्रित की जाती हैं, उनका मूल्यांकन किया जाता है तथा CoC द्वारा 66% मतों से अनुमोदित किया जाता है, ऐसा न होने पर, परिसमापन किया जाता है।
- NCLT अनुमोदन: अनुमोदित योजना को अंतिम मंज़ूरी के लिये NCLT को प्रस्तुत किया जाता है, जिससे यह सभी हितधारकों के लिये बाध्यकारी हो जाती है।
- समय-सीमा: CIRP को 330 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिये, जिससे तेजी से वसूली सुनिश्चित होगी और मूल्य क्षरण को रोका जा सकेगा।
प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस (PPIRP)
- PPIRP (प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस) एक तीव्र, किफायती दिवालियापन तंत्र है, जिसे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये लागू किया गया है।
- यह MSMEs की वित्तीय संकट में मदद के लिये, विशेष रूप से COVID-19 महामारी के बाद, दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2021 के माध्यम से लॉन्च किया गया था।
- MSMEs के लिये PPIRP के तहत, ऋणदाताओं और मौजूदा मालिक न्यायालय के बाहर सहमति से व्यवसाय को स्वीकृत खरीदार (तीसरे पक्ष या संबंधित पक्ष) को बेच सकते हैं।
- यह तंत्र वर्तमान में 1 करोड़ रुपये तक के डिफॉल्ट के लिये उपलब्ध है और इसे आरंभ होने के 120 दिनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य है।
भारत में परिसंपत्ति वसूली के लिये नियामक प्रावधान:
- SARFAESI अधिनियम, 2002: वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (SARFAESI अधिनियम, 2002) एक प्रमुख कानून है, जो सुरक्षित ऋणदाताओं (मुख्य रूप से बैंकों और वित्तीय संस्थानों) को न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना बकाया राशि वसूलने का अधिकार देता है।
- यह अधिनियम बैंकों को परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARC) और प्रतिभूतिकरण कंपनियों को बढ़ावा देकर NPA की कुशलतापूर्वक वसूली करने में सक्षम बनाता है।
- परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARC): यह एक ऐसी विशिष्ट वित्तीय संस्था होती है जो बैंकों से ऋणों को आपसी सहमति से तय मूल्य पर खरीदती है और बाद में उन ऋणों या उनसे जुड़ी प्रतिभूतियों की वसूली स्वयं करती है।
- ARC की अवधारणा नरसिम्हन समिति-II (1998) द्वारा प्रस्तुत की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप SARFAESI अधिनियम, 2002 के अंतर्गत ARC की स्थापना हुई।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
IBC का उद्देश्य एक एकीकृत, समयबद्ध और ऋणदाता-प्रधान ढाँचा प्रदान करना है, जिससे कॉर्पोरेट संकट का समाधान हो सके, परिसंपत्ति मूल्य संरक्षित रहे और ऋण चक्र स्वस्थ रूप से चलता रहे।
2. IBC के तहत निर्णायक (Adjudicating) और नियामक (Regulatory) निकाय कौन-कौन से हैं?
दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) बोर्ड (IBBI) इस प्रक्रिया को विनियमित करता है, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी मामलों का निपटान करता है, जबकि व्यक्ति/फर्म से जुड़े मामलों का निपटान DRT द्वारा किया जाता है।
3. कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ॉल्यूशन प्रक्रिया (CIRP) कब शुरू होती है और न्यूनतम डिफॉल्ट सीमा क्या है?
CIRP की शुरुआत वित्तीय ऋणदाता, परिचालन लेनदार या स्वयं देनदार द्वारा डिफॉल्ट होने पर की जा सकती है, दिए गए संदर्भ के अनुसार न्यूनतम डिफॉल्ट सीमा ₹1 करोड़ है।
4. MSMEs के लिये प्री-पैक इन्सॉल्वेंसी रेज़ॉल्यूशन प्रक्रिया (PPIRP) क्या है और इसकी समय सीमा क्या है?
PPIRP एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें MSMEs के लिये न्यायालय के बाहर, ऋणदाताओं की स्वीकृति से व्यवसाय की बिक्री या पुनर्गठन किया जा सकता है (जहाँ डिफॉल्ट सीमा ₹1 करोड़ तक है)। इस प्रक्रिया को 120 दिनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य है ताकि वसूली तेज़ी से हो सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा हाल ही में समाचारों में आए 'दबावयुक्त परिसंपत्तियों के धारणीय संरचना पद्धति (स्कीम फॉर सस्टेनेबल स्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड एसेट्स/S4A)' का सर्वोत्कृष्ट वर्णन करता है? (2017)
(a) यह सरकार द्वारा निरूपित विकासपरक योजनाओं की पारिस्थितिकीय कीमतों पर विचार करने की पद्धति है।
(b) यह वास्तविक कठिनाइयों का सामना कर रही बड़ी कॉर्पोरेट इकाइयों की वित्तीय संरचना के पुनर्संरचन के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक की स्कीम है।
(c) यह केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के बारे में सरकार की विनिवेश योजना है।
(d) यह सरकार द्वारा हाल ही में क्रियान्वित 'इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड' का एक महत्त्वपूर्ण उपबंध है।
उत्तर: (b)
रैपिड फायर
HAMMER प्रिसिज़न-गाइडेड वेपन
भारत और फ्राँस ने भारत में हाईली एजाइल मॉड्यूलर म्यूनिशन एक्सटेंडेड रेंज (Highly Agile Modular Munition Extended Range- HAMMER) सिस्टम के उत्पादन के लिये एक संयुक्त उद्यम सहयोग समझौते (JVCA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
HAMMER
- परिचय: यह फ्राँसीसी सफ्रान इलेक्ट्रॉनिक्स एंड डिफेंस द्वारा विकसित एक सटीक-निर्देशित हवा से ज़मीन पर मार (प्रिसिजन-गाइडेड एयर-टू-ग्राउंड वेपन) करने वाला हथियार है।
- यह मॉड्यूलर गाइडेंस + प्रोपल्शन किट का उपयोग करके बिना निर्देशित बमों को सटीक प्रहार करने वाले हथियारों में परिवर्तित करता है।
- मुख्य विशेषताएँ: इसकी स्टैंड-ऑफ रेंज 70 किमी तक है, जो शत्रुतापूर्ण वायु रक्षा क्षेत्रों के बाहर से हमला करने में सक्षम है।
- GPS-निषेधित या इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की स्थिति में भी उच्च सटीकता बनाए रखता है।
- स्थिर और गतिशील लक्ष्यों के विरुद्ध प्रभावी।
- परिचालन उपयोग: भारत ने इसे ऑपरेशन सिंदूर के दौरान प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया।
- भारत के लिये महत्त्व: इससे भारत की सटीक हमला करने की क्षमता और गहन आक्रामक क्षमता में वृद्धि होगी।
- यह दुश्मन की वायु रक्षा सीमा में प्रवेश किए बिना स्टैंड-ऑफ स्ट्राइक्स (दूरी से प्रहार) करने में सक्षम बनाता है।
- स्वदेशीकरण 60% तक बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक और मैकेनिकल दोनों प्रकार के घटक शामिल होंगे।
- यह भारत–फ्राँस रक्षा साझेदारी को भी मज़बूत करता है, जिसमें फाइटर जेट इंजन विकास और राफेल मरीन की खरीद जैसे क्षेत्रों में सहयोग शामिल है।
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और पढ़ें: ऑपरेशन सिंदूर |
रैपिड फायर
भारत 2030 कॉमनवेल्थ गेम्स की मेज़बानी करेगा
भारत के प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को बधाई दी क्योंकि भारत ने शताब्दी कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG) 2030 की मेज़बानी की बोली जीत ली है, और अहमदाबाद (जिसे अमदावाद भी कहा जाता है) CWG 2030 की मेज़बानी करेगा।
- परिचय: CWG विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मल्टी-स्पोर्ट्स इवेंट है (ओलंपिक खेलों के बाद), जिसमें 71 देशों और क्षेत्रों के एथलीट भाग लेते हैं, जिनमें से अधिकांश पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश रहे हैं।”
- CWG की अवधारणा कनाडाई खेल लेखक मेलविल मार्क्स रॉबिनसन की सोच थी।
- CWG का विचार वर्ष 1911 के इंटर-एम्पायर चैम्पियनशिप्स से उत्पन्न हुआ, जो लंदन में किंग जॉर्ज V के राज्याभिषेक के लिये आयोजित फेस्टिवल ऑफ एम्पायर के दौरान हुआ था।
- पहला आधिकारिक CWG, जिसे उस समय ब्रिटिश एम्पायर गेम्स कहा जाता था, वर्ष 1930 में कनाडा के हैमिल्टन में आयोजित किया गया था।
- कनाडाई एथलीट गॉर्डन स्मॉलकॉम्ब ने कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रिपल जम्प में पहला स्वर्ण पदक जीता।
- पहले संस्करण के बाद से, यह गेम्स हर चार साल में आयोजित होते रहे हैं, सिवाय वर्ष 1942 और 1946 के, और 1978 में इन्हें औपचारिक रूप से कॉमनवेल्थ गेम्स नाम दिया गया।
- प्रशासक संस्था: कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन (CGF) गेम्स के निर्देशन और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।
- भारत और CWG: भारत ने अंतिम बार कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में नई दिल्ली में आयोजित किया था, जहाँ उसने अपने अब तक के सर्वोत्तम प्रदर्शन के साथ 101 पदक जीते, जिनमें 38 स्वर्ण पदक शामिल थे, और कुल मिलाकर दूसरा स्थान प्राप्त किया।
- इससे पहले का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मैनचेस्टर 2002 में था, जहाँ भारत ने 69 पदक जीते थे, जिनमें 30 स्वर्ण पदक शामिल थे।
रैपिड फायर
भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त होंगे अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र और निर्वाचन सहायता संस्थान के अध्यक्ष
भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) वर्ष 2026 के लिये अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र और निर्वाचन सहायता संस्थान (International IDEA) के अध्यक्ष का पद संभालने वाले हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र और निर्वाचन सहायता संस्थान (International IDEA): यह एक अंतर-सरकारी संगठन (IGO) है, जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में हुई थी और इसका स्पष्ट उद्देश्य विश्वभर में स्थायी लोकतंत्र को समर्थन प्रदान करना है।
- अंतर्राष्ट्रीय IDEA को संयुक्त राष्ट्र में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है और इसका सचिवालय स्टॉकहोम, स्वीडन में स्थित है।
- मिशन और विज़न: इसका मिशन विश्वभर में सतत् लोकतंत्र को आगे बढ़ाना, बढ़ावा देना और उसकी रक्षा करना है तथा इसका विज़न एक ऐसे विश्व की कल्पना करता है जहाँ हर व्यक्ति समावेशी और मज़बूत लोकतंत्रों में जीवन व्यतीत करे।
- मुख्य कार्य: यह चार प्रमुख तरीकों से कार्य करता है—ज्ञान का सृजन (knowledge production), क्षमता निर्माण (capacity development), नीति-समर्थन (advocacy) और संवाद व परामर्श तैयार करना (convening dialogues)।
- मुख्य फोकस क्षेत्र (वर्कस्ट्रीम्स): इसका कार्य छह विषयगत क्षेत्रों के आसपास संगठित है।
- सदस्यता: इसमें 35 सदस्य देश शामिल हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान पर्यवेक्षक (ऑब्ज़र्वर) हैं। भारत इसका संस्थापक सदस्य है।
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और पढ़ें: डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2022 |
रैपिड फायर
सूर्यकिरण XIX – 2025
भारत–नेपाल संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘सूर्यकिरण XIX - 2025’ के 19वें संस्करण का आयोजन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में सैन्य सहयोग को और गहरा करने के उद्देश्य से किया गया।
- सूर्यकिरण: यह संयुक्त अभ्यास वर्ष 2011 में पहली बार शुरू हुआ था। इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र अधिदेश के अध्याय VII के तहत उप-पारंपरिक अभियानों का अभ्यास करना है, जो शांति स्थापना और संघर्ष-प्रबंधन मिशनों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- प्रशिक्षण क्षेत्रों में जंगल युद्ध, पर्वतीय क्षेत्रों में आतंकवाद-रोधी अभियानों, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR), चिकित्सा प्रतिक्रिया, पर्यावरण संरक्षण और एकीकृत भू-विमानन अभियानों अभियानों को शामिल किया गया है।
- 19वें संस्करण में मानव रहित हवाई प्रणाली (UAS), ड्रोन-आधारित ISR, AI-सक्षम निर्णय मदद उपकरण, मानव रहित लॉजिस्टिक वाहन और बख्तरबंद सुरक्षा प्लेटफॉर्म जैसी उभरती तकनीकों का एकीकरण किया गया है।
भारत-नेपाल रक्षा संबंध
- सैन्य संबंध: 1816 की सुगौली संधि, नेपाल के गोरखा प्रमुखों और ब्रिटिश भारतीय सरकार के बीच एक समझौता, ने एंग्लो-नेपाली युद्ध (1814-16) को समाप्त कर दिया तथा भारतीय (तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय) सेना में नेपाली भर्ती का मार्ग प्रशस्त किया।
- शांति और मैत्री संधि 1950: शांति और मैत्री संधि 1950 ने आर्थिक भागीदारी, संपत्ति स्वामित्त्व, व्यापार, निवास और आवागमन में एक दूसरे के नागरिकों को राष्ट्रीय व्यवहार प्रदान किया।
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और पढ़ें: भारत-नेपाल सहयोग को मज़बूत करना |





