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दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) प्रक्रिया

  • 27 Nov 2025
  • 55 min read

स्रोत: ET

चर्चा में क्यों? 

वित्त मंत्रालय ने विभिन्न राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण (NCLT) बेंचों पर मामलों के प्रवेश और समाधान में हो रही देरी की समीक्षा के बाद बैंकों से आग्रह किया है कि वे दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को तेज़ और अधिक प्रभावी बनाने के लिये एक अधिक रणनीतिक और समन्वित दृष्टिकोण अपनाएँ, ताकि समय-सीमा में सुधार हो और मूल्य वसूली बेहतर हो सके।

दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) प्रक्रिया क्या है?

  • दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC): वर्ष 2016 में अधिनियमित और टी.के विश्वनाथन की शोधन अक्षमता कानून सुधार समिति (2015) की सिफारिशों के आधार पर, IBC ने भारत में कॉर्पोरेट समस्या को हल करने के लिये एक एकीकृत, समयबद्ध और ऋणदाता-संचालित ढाँचा स्थापित किया।
    • इसे तब शुरू किया गया था जब गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) बढ़ रही थीं और पुराने तंत्र जैसे SARFAESI, लोक अदालतें अप्रभावी और धीमी साबित हो रही थीं।
    • IBC यह सुनिश्चित करता है कि जब कोई व्यवसाय "रुग्ण" हो जाता है और अपने ऋणों का भुगतान न कर सके, तो लेनदार समाधान (पुनर्गठन, नए मालिकों को बिक्री) या परिसमापन के माध्यम से जल्दी से मूल्य वसूल कर सकते हैं
    • इसका मुख्य उद्देश्य परिसंपत्ति मूल्य की हानि को रोकना, स्वस्थ ऋण चक्र को बनाए रखना तथा अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिये फंसी हुई पूंजी को मुक्त करना है।
  • नियामक प्राधिकरण: भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI), IBC, 2016 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय, जो भारत में दिवाला संबंधी समाधान के लिये नियम और विनियम तैयार करने के लिये ज़िम्मेदार है।  
    • इसमें वित्त मंत्रालय, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक के सदस्य शामिल हैं।
  • न्याय निर्णय प्राधिकरण: IBC में, कॉर्पोरेट व्यक्तियों के लिये न्याय निर्णय प्राधिकरण NCLT है, जबकि व्यक्तियों और फर्मों के लिये, यह ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) है।
  • वित्तीय ऋणदाताओं की समिति (COC): यह IBC, 2016 के तहत एक निर्णय लेने वाली संस्था है। यह मुख्यतः वित्तीय ऋणदाताओं से बनी होती है और इसका प्रमुख कार्य कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) में शामिल कॉर्पोरेट डेब्टर के लिये प्रस्तावित समाधान योजनाओं का मूल्यांकन करना, उन्हें मंज़ूरी देना या अस्वीकृत करना है।

IBC प्रक्रिया

  • दिवालियापन की प्रक्रिया: कोई भी वित्तीय ऋणदाता, परिचालन लेनदार या डेब्टर डिफ़ॉल्ट होने पर दिवालियापन के लिये आवेदन कर सकता है।
  • NCLT द्वारा स्वीकृति: NCLT 14 दिनों के भीतर आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार कर देता है। स्वीकृति मिलने के बाद, औपचारिक CIRP शुरू हो जाती है।
  • IRP की नियुक्ति: NCLT कंपनी का नियंत्रण लेने, परिसंपत्तियों को सुरक्षित करने और वित्तीय डेटा एकत्र करने के लिये एक अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) की नियुक्ति करता है।
  • CoC का गठन: IRP वित्तीय ऋणदाताओं की समिति (CoC) का गठन करता है, जो कंपनी के पुनरुद्धार या बिक्री पर निर्णय लेती है तथा IRP को बनाए रख सकती है या प्रतिस्थापित कर सकती है।
  • समाधान योजना: समाधान योजनाएँ आमंत्रित की जाती हैं, उनका मूल्यांकन किया जाता है तथा CoC द्वारा 66% मतों से अनुमोदित किया जाता है, ऐसा न होने पर, परिसमापन किया जाता है।
  • NCLT अनुमोदन: अनुमोदित योजना को अंतिम मंज़ूरी के लिये NCLT को प्रस्तुत किया जाता है, जिससे यह सभी हितधारकों के लिये बाध्यकारी हो जाती है।
  • समय-सीमा: CIRP को 330 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिये, जिससे तेजी से वसूली सुनिश्चित होगी और मूल्य क्षरण को रोका जा सकेगा।

प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस (PPIRP)

  • PPIRP (प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस) एक तीव्र, किफायती दिवालियापन तंत्र है, जिसे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये लागू किया गया है।
  • यह MSMEs की वित्तीय संकट में मदद के लिये, विशेष रूप से COVID-19 महामारी के बाद, दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2021 के माध्यम से लॉन्च किया गया था।
  • MSMEs के लिये PPIRP के तहत, ऋणदाताओं और मौजूदा मालिक न्यायालय के बाहर सहमति से व्यवसाय को स्वीकृत खरीदार (तीसरे पक्ष या संबंधित पक्ष) को बेच सकते हैं।
  • यह तंत्र वर्तमान में 1 करोड़ रुपये तक के डिफॉल्ट के लिये उपलब्ध है और इसे आरंभ होने के 120 दिनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य है।

भारत में परिसंपत्ति वसूली के लिये नियामक प्रावधान:

  • SARFAESI अधिनियम, 2002: वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (SARFAESI अधिनियम, 2002) एक प्रमुख कानून है, जो सुरक्षित ऋणदाताओं (मुख्य रूप से बैंकों और वित्तीय संस्थानों) को न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना बकाया राशि वसूलने का अधिकार देता है।
  • यह अधिनियम बैंकों को परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARC) और प्रतिभूतिकरण कंपनियों को बढ़ावा देकर NPA की कुशलतापूर्वक वसूली करने में सक्षम बनाता है।
  • परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARC): यह एक ऐसी विशिष्ट वित्तीय संस्था होती है जो बैंकों से ऋणों को आपसी सहमति से तय मूल्य पर खरीदती है और बाद में उन ऋणों या उनसे जुड़ी प्रतिभूतियों की वसूली स्वयं करती है।
  • ARC की अवधारणा नरसिम्हन समिति-II (1998) द्वारा प्रस्तुत की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप SARFAESI अधिनियम, 2002 के अंतर्गत ARC की स्थापना हुई।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
IBC का उद्देश्य एक एकीकृत, समयबद्ध और ऋणदाता-प्रधान ढाँचा प्रदान करना है, जिससे कॉर्पोरेट संकट का समाधान हो सके, परिसंपत्ति मूल्य संरक्षित रहे और ऋण चक्र स्वस्थ रूप से चलता रहे।

2. IBC के तहत निर्णायक (Adjudicating) और नियामक (Regulatory) निकाय कौन-कौन से हैं?
दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) बोर्ड (IBBI) इस प्रक्रिया को विनियमित करता है, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी मामलों का निपटान करता है, जबकि व्यक्ति/फर्म से जुड़े मामलों का निपटान DRT द्वारा किया जाता है।

3. कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ॉल्यूशन प्रक्रिया (CIRP) कब शुरू होती है और न्यूनतम डिफॉल्ट सीमा क्या है?
CIRP की शुरुआत वित्तीय ऋणदाता, परिचालन लेनदार या स्वयं देनदार द्वारा डिफॉल्ट होने पर की जा सकती है, दिए गए संदर्भ के अनुसार न्यूनतम डिफॉल्ट सीमा ₹1 करोड़ है।

4. MSMEs के लिये प्री-पैक इन्सॉल्वेंसी रेज़ॉल्यूशन प्रक्रिया (PPIRP) क्या है और इसकी समय सीमा क्या है?
PPIRP एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें MSMEs के लिये न्यायालय के बाहर, ऋणदाताओं की स्वीकृति से व्यवसाय की बिक्री या पुनर्गठन किया जा सकता है (जहाँ डिफॉल्ट सीमा ₹1 करोड़ तक है)। इस प्रक्रिया को 120 दिनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य है ताकि वसूली तेज़ी से हो सके।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा हाल ही में समाचारों में आए 'दबावयुक्त परिसंपत्तियों के धारणीय संरचना पद्धति (स्कीम फॉर सस्टेनेबल स्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड एसेट्स/S4A)' का सर्वोत्कृष्ट वर्णन करता है? (2017)

(a) यह सरकार द्वारा निरूपित विकासपरक योजनाओं की पारिस्थितिकीय कीमतों पर विचार करने की पद्धति है।

(b) यह वास्तविक कठिनाइयों का सामना कर रही बड़ी कॉर्पोरेट इकाइयों की वित्तीय संरचना के पुनर्संरचन के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक की स्कीम है।

(c) यह केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के बारे में सरकार की विनिवेश योजना है।

(d) यह सरकार द्वारा हाल ही में क्रियान्वित 'इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड' का एक महत्त्वपूर्ण उपबंध है।

उत्तर: (b)

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