रैपिड फायर
सुजलाम भारत शिखर सम्मेलन 2025
जल शक्ति मंत्रालय नई दिल्ली में 'सुजलाम भारत शिखर सम्मेलन 2025' (Vision for Sujalam Bharat Summit 2025) की मेजबानी करेगा, जो एकीकृत और व्यावहारिक जल सुरक्षा ढाँचा बनाने के लिये एक प्रमुख राष्ट्रीय प्रयास है।
- उत्पत्ति: इसकी परिकल्पना प्रधानमंत्री के उस दृष्टिकोण के अनुरूप की गई थी, जिसमें ऐसे शिखर सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है, जिनमें केंद्र और राज्यों के अधिकारी के साथ कनिष्ठ संवर्ग के अधिकारी भी शामिल होते हैं।
- उद्देश्य: भारत में जल सतत् को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिये साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण, क्षेत्रीय सुधारों और जल प्रशासन में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना।
- कार्यक्षेत्र: इसमें 6 महत्त्वपूर्ण विषयगत क्षेत्र शामिल हैं:
- नदियों और झरनों का पुनरुद्धार : आर्द्रभूमि पुनरुद्धार, जलग्रहण संरक्षण और सामुदायिक नदी प्रबंधन।
- ग्रे वाटर प्रबंधन: परिपत्र जल उपयोग, मूल्य निर्धारण मॉडल, प्रकृति-आधारित समाधान और सेप्टेज प्रबंधन।
- प्रौद्योगिकी-संचालित जल प्रबंधन : AI-आधारित निगरानी, सूक्ष्म सिंचाई, हानि में कमी, रिसाव का पता लगाना और सटीक कृषि।
- जल संरक्षण: जलभृत पुनर्भरण, पारंपरिक जल प्रणालियाँ और LiFE-संरेखित व्यवहार परिवर्तन।
- सतत् पेयजल आपूर्ति: जलवायु-अनुकूलन प्रणालियाँ, स्रोत स्थिरता और समुदाय-आधारित संचालन और रखरखाव।
- सामुदायिक सहभागिता: जल परिसंपत्तियों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये पंचायती राज संस्थाओं, स्वयं सहायता समूहों और स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना।
- राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की पहचान: मंत्रालय ने इनपुट को पाँच राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में समेकित किया: स्रोत स्थिरता, भूजल पुनर्भरण, आधुनिक और प्रकृति-आधारित समाधान, सामुदायिक और संस्थागत सहभागिता और अंतर-विभागीय अभिसरण ।
- महत्त्व: यह समग्र सरकारी दृष्टिकोण को अपनाता है, नीति निर्माताओं और कार्यान्वयनकर्त्ताओं को जोड़ता है ताकि रणनीति को प्रभावी कार्रवाई में बदला जा सके, जो राष्ट्र को सच्चे सुजलाम और संपोषित भारत के साझा लक्ष्य की ओर तेज़ी से अग्रसर करता है।
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और पढ़ें: स्वच्छ पेयजल के लिये भारत का ब्लूप्रिंट |
प्रारंभिक परीक्षा
भारत ने क्वांटम प्रौद्योगिकी में प्रगति की
चर्चा में क्यों?
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने IIT बॉम्बे की क्वांटम अनुसंधान प्रयोगशालाओं का दौरा किया तथा संस्थान की नई लिक्विड हीलियम सुविधा का उद्घाटन किया, जो भारत के क्वांटम विज्ञान, क्रायोजेनिक्स और उन्नत सामग्रियों के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
भारत के क्वांटम अनुसंधान में प्रमुख प्रगति क्या है?
- लिक्विड हीलियम सुविधा: यह अत्यंत निम्न तापमान क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये स्वदेशी डाइल्यूशन प्रशीतन इकाइयों की नींव रखती है और भारत की क्रायोजेनिक्स, अतिचालकता, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेंसिंग, फोटॉनिक्स, स्वास्थ्य सेवा (जैसे MRI) तथा हरित ऊर्जा में क्षमताओं को बढ़ाती है।
- क्वांटम कंप्यूटिंग अत्यंत निम्न तापमान (–272°C से नीचे) पर चलने वाले डाइल्यूशन रेफ्रिजरेटर पर निर्भर करती है और लिक्विड हीलियम सुविधा स्वदेशी इकाइयों को संभव बनाती है, जो भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- हीलियम अपने निम्न क्वथनांक (-268.93°C) पर लिक्विड हीलियम में परिवर्तित होता है, जिससे अतिचालकता, सुपरफ्लुइडिटी और क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये आवश्यक क्रायोजेनिक परिस्थितियाँ बनती हैं जो क्वांटम अनुसंधान हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- QMagPI (पोर्टेबल मैग्नेटोमीटर): QMagPI भारत का पहला पोर्टेबल मैग्नेटोमीटर है, जो अल्ट्रा-लो नैनोटेस्ला (nT) के चुंबकीय क्षेत्रों को मापता है। यह रक्षा, सामरिक क्षेत्रों, खनिज अन्वेषण और अनुसंधान के लिये उपयोगी है, जिससे भारत इस तकनीक वाले कुछ चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है।
- क्वांटम डायमंड माइक्रोस्कोप (QDM): IIT बॉम्बे द्वारा विकसित भारत का पहला स्वदेशी QDM नैनोस्केल 3D मैग्नेटिक फील्ड इमेजिंग की सुविधा प्रदान करता है। AI/ML एकीकरण के साथ यह न्यूरोसाइंस, सामग्री अनुसंधान और नेक्स्ट-जेनरेशन चिप टेस्टिंग को आगे बढ़ाता है, जिससे भारत की तकनीकी नेतृत्व क्षमता मज़बूत होती है।
- क्यू-कॉन्फोकल प्रणाली: क्यू-कॉन्फोकल प्रणाली, एक स्वदेशी रूप से विकसित कॉन्फोकल माइक्रोस्कोप है, जो रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज़ (ROS) जैसी अंतःकोशिकीय परिवर्तनों का पता लगाता है, जिससे कैंसर के प्रारंभिक चरण में निदान में सहायता मिलती है।
- कॉन्फोकल माइक्रोस्कोप एक उन्नत ऑप्टिकल उपकरण है, जो पिनहोल का उपयोग करके फोकस से बाहर की रोशनी को रोकता है, जिससे अधिक स्पष्टता और बेहतर कंट्रास्ट वाले तीव्र, उच्च-रिज़ॉल्यूशन चित्र प्राप्त होते हैं।
क्वांटम प्रौद्योगिकी क्या है?
- परिचय: क्वांटम प्रौद्योगिकी उन उन्नत तकनीकों के समूह को संदर्भित करती है जो क्वांटम यांत्रिकी के विशिष्ट सिद्धांतों जैसे सुपरपोज़िशन, एंटैंगलमेंट और क्वांटम टनलिंग का उपयोग करती हैं, ताकि ऐसे कार्य किये जा सकें जो पारंपरिक तकनीकों से असंभव या अत्यंत अलाभकारी हों।
- मुख्य सिद्धांत:
- सुपरपोज़िशन (Superposition): क्वांटम पार्टिकल (जैसे इलेक्ट्रॉन या फोटॉन) मापे जाने तक एक साथ अनेक अवस्थाओं में मौजूद रह सकते हैं।
- एंटैंगलमेंट (Entanglement): दो या अधिक क्वांटम पार्टिकल आपस में इस तरह से जुड़े हो सकते हैं कि एक पार्टिकल की अवस्था तुरंत दूसरे को प्रभावित करती है, भले ही वे दूरी पर हों।
- क्वांटम टनलिंग और कोहेरेंस (Quantum Tunneling & Coherence): पार्टिकल ऊर्जा अवरोधों को पार कर सकते हैं और अपनी सूक्ष्म क्वांटम अवस्था को बनाए रख सकते हैं, जिससे अत्यंत सटीक गणना एवं संवेदन संभव हो पाता है।
- परंपरागत बनाम क्वांटम कंप्यूटिंग: परंपरागत कंप्यूटिंग में सूचना को ‘बिट्स’ या ‘1’ और ‘0’ में प्रोसेस किया जाता है, यह प्रणाली चिरसम्मत भौतिकी का अनुसरण करती है।
- इसके विपरीत, क्वांटम कंप्यूटर क्यूबिट्स (क्वांटम बिट्स) का उपयोग करते हैं, जो परमाणु-स्तर के क्वांटम व्यवहार और प्रायिकता-आधारित सिद्धांतों का पालन करते हैं। इसी कारण वे ऐसे कार्य कर सकते हैं जो पारंपरिक, निर्धारक (Deterministic) प्रणालियों की क्षमता से परे होते हैं।
- अनुप्रयोग:
- फार्मास्यूटिकल्स: क्वांटम कंप्यूटर आणविक व्यवहार का अनुकरण कर सकते हैं, जिससे जीवनरक्षक औषधियों और उपचारों के विकास को गति प्रदान की जा सकती है। यह प्रोटीन फोल्डिंग के अध्ययन में सहायता करता है तथा अल्ज़ाइमर और पार्किंसंस जैसे रोगों के उपचार में इसके संभावित अनुप्रयोग हैं।
- आपदा प्रबंधन: क्वांटम अनुप्रयोगों से सुनामी, सूखा, भूकंप और बाढ़ का पूर्वानुमान अधिक संभव हो सकता है। क्वांटम प्रौद्योगिकी के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से संबंधित आँकड़ों के एकत्रीकरण को बेहतर तरीके से सुव्यवस्थित किया जा सकता है।
- सुरक्षित संचार: चीन के मिसियस जैसे क्वांटम उपग्रह अत्यंत सुरक्षित संचार संभव बनाते हैं, जो सैन्य उपयोग और साइबर सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- क्वांटम क्रिप्टोग्राफी: यह सैद्धांतिक रूप से अभाजनीय एंक्रिप्शन बनाकर साइबर सुरक्षा को सुदृढ़ बनाती है तथा संवेदनशील डेटा को भविष्य के क्वांटम कंप्यूटरों की डिक्रिप्शन क्षमताओं से सुरक्षित रखती है।
- राष्ट्रीय क्वांटम मिशन: यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य क्वांटम टेक्नोलॉजी के अनुसंधान, विकास और अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करना है। यह मिशन वित्तीय वर्ष 2023–24 से 2030–31 तक संचालित होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. क्वांटम टेक्नोलॉजी क्या है?
क्वांटम तकनीक क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों—जैसे सुपरपोज़िशन, एंटैंगलमेंट और टनलिंग—का उपयोग करती है, ताकि ऐसे कार्य किये जा सकें जो पारंपरिक (क्लासिकल) तकनीकों की क्षमता से परे हों।
2. क्यू-कॉन्फोकल सिस्टम हेल्थकेयर में कैसे योगदान देता है?
यह कोशिकाओं के भीतर होने वाले परिवर्तनों—जैसे रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज़ (ROS) का पता लगाती है, जिससे कैंसर के शुरुआती चरण में निदान और बीमारियों पर शोध संभव हो पाता है।
3. राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) क्या है?
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया (2023–24 से 2030–31 तक) यह कार्यक्रम रणनीतिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में क्वांटम अनुसंधान, विकास और अनुप्रयोगों को बढ़ावा देता है।
सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. ‘क्यूबिट (Qubit)’ शब्द का उल्लेख निम्नलिखित में से कौन-से एक प्रसंग में होता है? (2022)
(a) क्लाउड सेवाएँ
(b) क्वांटम संगणन
(c) दृश्य प्रकाश संचार प्रौद्योगिकियाँ
(d) बेतार संचार प्रौद्योगिकियाँ
उत्तर: (b)
रैपिड फायर
नेल्ली नरसंहार पर तिवारी आयोग की रिपोर्ट
वर्ष 1983 का नेल्ली नरसंहार, जो असम आंदोलन (1979–1985) के दौरान हुआ था, असम सरकार द्वारा तिवारी आयोग की रिपोर्ट जारी किये जाने के बाद एक बार फिर सार्वजनिक रूप से चर्चा में आ गया है, जिसने इस त्रासदी पर नए तथ्य उजागर किये हैं।
- आयोग के अनुसार, यह घटना रोकी जा सकती थी, परंतु देरी से की गई कार्रवाई, उपलब्ध खुफिया सूचनाओं की अनदेखी और प्रशासनिक तालमेल की कमी ने हालात को बिगड़ने दिया, जिसके परिणामस्वरूप हिंसा बेकाबू हो गई।
असम आंदोलन
- परिचय: असम आंदोलन, जो मूल असमिया सांस्कृतिक, भाषाई एवं राजनीतिक पहचान खोने की आशंकाओं से प्रेरित था, का मुख्य उद्देश्य अवैध प्रवासियों मुख्यतः बांग्लादेश से आए लोगों की पहचान करना और उन्हें बाहर निकालना था।
- यह ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) द्वारा संचालित किया गया था और इसका ध्यान तीन D पर केंद्रित था: वर्ष 1951 के बाद आए प्रवासियों की पहचान करना (Detecting), उनके नाम मतदाता सूची से हटाना (Deleting) और उन्हें भारत से निर्वासित करना (Deporting)।
- परिणाम: यह अशांति अंततः वर्ष 1985 के असम समझौते तक पहुँची, जिसे केंद्र सरकार, राज्य सरकार और आंदोलन के नेताओं द्वारा हस्ताक्षरित किया गया। असम समझौते की मुख्य धाराएँ इस प्रकार थीं:
- इसने आधिकारिक रूप से 25 मार्च, 1971 को अवैध विदेशी व्यक्तियों की पहचान हेतु अंतिम तिथि के रूप में निर्धारित किया।
- 1 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को विदेशी माना जाएगा और उनके नाम 10 वर्षों के लिये मतदाता सूची से हटाए जाएंगे तथा इसके बाद उनके नागरिकता संबंधी सभी अधिकार बहाल कर दिये जाएंगे।
- 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों का पता लगाया जाएगा और उन्हें देश से बाहर (डीपोर्ट) किया जाएगा।
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और पढ़ें: नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A |
रैपिड फायर
ऑपरेशन सागर बंधु
भारत ने चक्रवात दितवाह के कारण श्रीलंका में आई भीषण बाढ़ और भूस्खलन के बाद तात्कालिक मानवीय सहायता पहुँचाने के लिये ऑपरेशन सागर बंधु शुरू किया है।
- चक्रवात दितवाह एक उष्णकटिबंधीय तूफान है, जो दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी के ऊपर तेज़ी से बना।
- दितवाह नाम यमन द्वारा उत्तर हिंद महासागर के चक्रवातों की क्षेत्रीय नामकरण प्रणाली के तहत दिया गया था।
- ऑपरेशन सागर बंधु: भारत ने राहत सामग्री भेजने के लिये INS विक्रांत, INS उदयगिरि और एक IAF C-130J विमान का उपयोग किया, जिसमें तंबू, कंबल, खाद्य सामग्री, स्वच्छता किट और तिरपाल शामिल थे।
- भारत ने भारतीय महासागर क्षेत्र में लगातार एक प्रथम प्रत्युत्तरकर्त्ता की भूमिका निभाई है, विशेषकर श्रीलंका के लिये। इसने वर्ष 2021 में MV एक्सप्रेस पर्ल शिप में लगी आग के दौरान सहायता प्रदान की थी तथा वर्ष 2016 में रोआनू चक्रवात के समय भी सहायता उपलब्ध कराई थी।
- यह मिशन भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति और विज़न MAHASAGAR के अनुरूप है, जो हिंद महासागर क्षेत्र में एक विश्वसनीय फर्स्ट रिस्पॉन्डर के रूप में भारत की भूमिका को और मजबूत करता है।
- भारत ने मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) में स्वयं को एक वैश्विक फर्स्ट रिस्पॉन्डर के रूप में स्थापित किया है। नेपाल में ऑपरेशन मैत्री, इंडोनेशिया में ऑपरेशन समुद्र मैत्री और तुर्की व सीरिया में ऑपरेशन दोस्त जैसे अभियानों के माध्यम से भारत ने अंतर्राष्ट्रीय संकटों के दौरान तेज़ और प्रभावी सहायता प्रदान की है।
- द्विपक्षीय और क्षेत्रीय HADR अभ्यास—जैसे BIMSTEC देशों के साथ PANEX-21 और ASEAN देशों के साथ समन्वय- 22—भारत की नेतृत्व भूमिका को और सुदृढ़ करते हैं। ये अभ्यास क्षेत्रीय आपदा तैयारी, समन्वय और राहत क्षमता को मज़बूत बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
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और पढ़ें: भारत-श्रीलंका संबंध |
प्रारंभिक परीक्षा
मंगल ग्रह के नक्शे में 7 नए भारतीय नामों को मंज़ूरी
चर्चा के क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने केरल-आधारित शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रस्तावित मंगल ग्रह की भौगोलिक विशेषताओं के लिये 7 नए भारतीय नामों को मंज़ूरी दे दी है। इनमें 3.5 अरब वर्ष पुराने एक क्रेटर को भू-वैज्ञानिक एम. एस. कृष्णन के नाम पर रखा गया है, साथ ही उसके आसपास की भू-आकृतियों को केरल के स्थानों—वलियामाला, थुंबा, बेकल, वर्कला और पेरियार के नाम दिये गए हैं।
मंगल ग्रह के किन भू-आकृतियों का नाम भारतीय स्थानों और व्यक्तित्वों के नाम पर रखा गया है?
- पेरियार घाटी: यह मंगल ग्रह की एक घाटी है जिसका नाम केरल की सबसे लंबी नदी पेरियार के नाम पर रखा गया है, जो पश्चिमी घाट से अरब सागर तक प्रवाहित होती है।
- वर्कला क्रेटर: इसका नाम वर्कला समुद्र तट के नाम पर रखा गया है, जो भू-वैज्ञानिक रूप से अद्वितीय चट्टानों के लिये जाना जाता है। ये चट्टानें जारोसाइट (Jarosite) से समृद्ध हैं। जारोसाइट एक ऐसा खनिज है जो मंगल ग्रह पर भी पाया गया है, जो वर्कला समुद्र तट को एक महत्त्वपूर्ण मंगल ग्रह का अनुरूप स्थल बनाता है।
- बेकल क्रेटर: इसका नाम कासरगोड में ऐतिहासिक बेकल किले के नाम पर रखा गया है, जो अरब सागर के किनारे स्थित 17वीं सदी का एक पुराना समुद्री किला है।
- बेकल किला केलाडी नायक वंश, मैसूर के हैदर अली और फिर अंग्रेज़ों के हाथों में रहा।
- थुंबा क्रेटर: मंगल ग्रह पर इस क्रेटर का नाम थुंबा के नाम पर रखा गया है। यह वह जगह है जहाँ 1962 में थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग सेंटर स्थापित हुआ था और इसे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का शुरुआती स्थान माना जाता है, जहाँ से इसरो (ISRO) ने अपने पहले रॉकेट लॉन्च किये थे।
- वलियामाला क्रेटर: मंगल ग्रह पर इस क्रेटर का नाम वलियामाला के नाम पर रखा गया है। यह वह स्थान है जहाँ भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) स्थित है, जो अंतरिक्ष की पढ़ाई और रिसर्च के लिये भारत का सबसे मुख्य संस्थान है।
- कृष्णन क्रेटर: इसका नाम भारत के अग्रणी भूविज्ञानी और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पहले भारतीय निदेशक एम.एस. कृष्णन के सम्मान में रखा गया है।
- मंगल ग्रह के ज़ैंथे टेरा (Xanthe Terra) क्षेत्र में स्थित क्रेटर लगभग 3.5 अरब वर्ष पुराना होने का अनुमान है। यह प्राचीन हिमनदों और नदीय गतिविधियों के साक्ष्यों के संरक्षण के लिये वैज्ञानिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- कृष्णन प्लेनस: यह एक मैदान है जो कृष्णन क्रेटर के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसका नाम भी एम.एस. कृष्णन के सम्मान में रखा गया है। यह भूवैज्ञानिक रूप से बड़े क्रेटर से जुड़ा हुआ है।
नोट: वर्ष 2024 में अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) द्वारा प्रस्तावित तीन नामों को IAU ने मंज़ूरी दी थी, जिनमें भू-भौतिकीविद् देवेंद्र लाल के नाम पर रखा गया लाल क्रेटर और क्रमशः उत्तर प्रदेश और बिहार के कस्बों के नाम पर रखे गए दो छोटे क्रेटर मुरसान और हिलसा शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त मंगल ग्रह पर गंगा के नाम पर भी भौगोलिक विशेषताएँ हैं। हालाँकि इसका प्रस्ताव भारत द्वारा नहीं दिया गया था।
मंगल ग्रह की सतह की विशेषताओं का नामकरण किस प्रकार किया जाता है तथा इस प्रक्रिया को कौन-से दिशा-निर्देश नियंत्रित करते हैं?
- नामकरण प्रस्ताव: अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) वैज्ञानिकों, संस्थाओं और मिशन टीमों से नामकरण प्रस्ताव आमंत्रित करता है, जिसमें नाम की उत्पत्ति, चित्र, निर्देशांक, विशेषता प्रकार (Feature Type) और वैज्ञानिक महत्त्व जैसे विवरण मांगे जाते हैं।
- प्रत्येक प्रस्ताव में यह संक्षिप्त औचित्य शामिल होना चाहिये कि वह विशेषता (Feature) उस नाम की हकदार क्यों है।
मंगल ग्रह की विशेषताओं के नामकरण के लिये दिशा-निर्देश:
- बड़े क्रेटर (>50 किमी): इनका नाम आधारभूत योगदान देने वाले दिवंगत वैज्ञानिकों के नाम पर रखा गया है।
- छोटे क्रेटर (<100,000 जनसंख्या वाले शहर): दुनिया भर के छोटे शहरों/गाँवों के नाम पर रखे गए हैं।
- नाम निम्नलिखित होने चाहिये: सांस्कृतिक या ऐतिहासिक दृष्टि से प्रासंगिक, उच्चारण में आसान, गैर-आपत्तिजनक, अद्वितीय, बिना किसी दोहराव वाला, गैर-राजनीतिक
- IAU: पेरिस में मुख्यालय वाला अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) खगोलीय पिंडों और ग्रहों की विशेषताओं के नामकरण के लिये वैश्विक प्राधिकरण है, जो अनुसंधान, शिक्षा एवं मानकीकृत नामकरण के माध्यम से खगोल विज्ञान को बढ़ावा देता है।
- नामकरण संबंधी निर्णय ग्रह प्रणाली नामकरण कार्य समूह (WGPSN) द्वारा लिये जाते हैं।
मंगल ग्रह से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: मंगल सूर्य से चौथा ग्रह है और इसका वायुमंडल पतला, ठंडा और धूल भरा है। इसे लाल ग्रह कहा जाता है क्योंकि इसकी सतह पर लोहे से समृद्ध धूल ऑक्सीकृत होकर लाल रंग देती है।
- मंगल ग्रह की त्रिज्या लगभग पृथ्वी के आधे आकार की तरह है।
- मंगल ग्रह का एक दिन (सोल) लगभग 24.6 घंटे का होता है और एक मंगल वर्ष लगभग 687 पृथ्वी दिन लंबा होता है।
- चंद्रमा: मंगल के दो छोटे चंद्रमा फोबोस (Phobos) और डेमोस (Deimos) हैं। मार्स के पास कोई वलय नहीं हैं, लेकिन अगर फोबोस टूट जाए तो इसके चारों ओर वलय बन सकते हैं।
- सतह: यह सोलर सिस्टम के सबसे बड़े ज्वालामुखी ओलंपस मॉन्स और सबसे बड़ी घाटी वैलेस मैरिनेरिस का आवास है।
- वायुमंडल मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) से बना है (95%), और इसमें नाइट्रोजन और आर्गन भी मौजूद हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. IAU क्या है और ग्रहों के खास नामों को कौन मंज़ूरी देता है?
अंतर्राष्ट्रीय खगोल संघ (IAU) खगोलीय नामकरण का वैश्विक प्राधिकरण है; नामों को इसके प्लैनेटरी सिस्टम नामकरण कार्यसमूह (WGPSN) द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है और गैज़ेटियर ऑफ प्लैनेटरी नोमेनक्लेचर में प्रकाशित किया जाता है।
2. कृष्णन क्रेटर का नाम एम.एस. कृष्णन के नाम पर क्यों रखा गया?
बड़े और प्रमुख क्रेटर (50 किमी से बड़े) का नाम उन मृत वैज्ञानिकों के सम्मान में रखा जाता है जिन्होंने मूलभूत योगदान दिया हो; कृष्णन क्रेटर (≈77 किमी) भूविज्ञानी एम. एस. कृष्णन के अग्रणी कार्यों के सम्मान में नामित किया गया है।
3. छोटे मंगल ग्रह के क्रेटर का नाम शहरों के नाम पर रखने के लिये क्या क्राइटेरिया तय करते हैं?
छोटे क्रेटर का नाम कस्बों/गाँवों (जनसंख्या ≲1,00,000) के नाम पर रखा जा सकता है; नाम राजनीतिक रूप से निष्पक्ष, उच्चारण में आसान, सांस्कृतिक रूप से अर्थपूर्ण, अपमानजनक न होने वाले और अनोखे होने चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
इसरो द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान
- को मंगल ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है।
- के कारण अमेरिका के बाद मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला भारत दूसरा देश बना।
- ने भारत को अपने अंतरिक्ष यान को अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की परिक्रमा करने में सफल होने वाला एकमात्र देश बना दिया।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)

