आपदा प्रबंधन
भारत में आपदा प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि
- 06 Oct 2025
- 148 min read
यह एडिटोरियल 06/10/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “India’s direction for disaster resilience” पर आधारित है। यह लेख भारत के राहत-केंद्रित से जोखिम-न्यूनीकरण-केंद्रित आपदा प्रबंधन की ओर बदलाव को दर्शाता है, जिसमें ₹2.28 लाख करोड़ के आवंटन, आपदा मित्र जैसी समुदाय-आधारित पहलों और प्रकृति-आधारित समाधानों पर प्रकाश डाला गया है, जो भारत को जलवायु-प्रतिरोधी बुनियादी अवसंरचना में वैश्विक अग्रणी बनाते हैं।
प्रिलिम्स के लिये: 15वाँ वित्त आयोग, आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर प्रधानमंत्री का दस सूत्री एजेंडा, चक्रवात बिपरजॉय, मानवीय सहायता और आपदा राहत, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन, FloodWatch, मौसम, मेघदूत, आपदा प्रबंधन (संशोधन) अधिनियम, 2025, दक्षिण ल्होनक झील GLOF
मेन्स के लिये: आपदा प्रबंधन में भारत की प्रमुख प्रगति, भारत की प्रतिरोधक क्षमता और तैयारी को कमज़ोर करने वाली प्रमुख आपदा चुनौतियाँ।
भारत कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है, जिसके लिये केवल आपदा के पश्चात राहत कार्यों तक सीमित न रहकर एक व्यापक आपदा प्रबंधन रणनीति की आवश्यकता है। 15वें वित्त आयोग ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये ₹2.28 लाख करोड़ आवंटित करके एक क्रांतिकारी बदलाव किया है। सरकार ने प्रकृति-आधारित समाधान को अपनाया है, पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित की हैं तथा सामुदायिक समुत्थानशीलता विकसित करने के लिये विशिष्ट स्वयंसेवी नेटवर्क बनाए हैं। ‘आधुनिक अग्नि सुरक्षा’ के उन्नयन, लाखों ‘आपदा मित्रों’ के प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से भारत आपदा पूर्व तैयारी को ज़मीनी स्तर पर संस्थागत रूप दे रहा है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर प्रधानमंत्री का दस सूत्री एजेंडे द्वारा निर्देशित यह बहुआयामी दृष्टिकोण, भारत को जलवायु-अनुकूल अवसंरचना विकास में वैश्विक अग्रणी बनाता है।
आपदा प्रबंधन में भारत ने कौन-सी प्रमुख प्रगति की है?
- चक्रवात जनित मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी: भारत ने अग्रिम पूर्व चेतावनी और सावधानीपूर्वक निकासी प्रोटोकॉल का लाभ उठाकर प्रमुख चक्रवातों के लिये लगभग शून्य हताहत लक्ष्य प्राप्त करने में अभूतपूर्व सफलता प्रदर्शित की है।
- यह परिणाम प्रभाव-आधारित पूर्वानुमान (IBF) में निरंतर सुधार और अंतिम-बिंदु प्रसार के लिये सामान्य चेतावनी प्रोटोकॉल (CAP) के प्रभावी उपयोग का प्रत्यक्ष परिणाम है।
- उदाहरण के लिये, जब वर्ष 2023 में चक्रवात बिपरजॉय ने गुजरात तट पर दस्तक दी, तो 1,00,000 से अधिक लोगों और पशुओं को सक्रिय रूप से निकालने से शून्य मानव एवं पशु हताहत सुनिश्चित हुए।
- NDRF का व्यावसायिकीकरण और वैश्विक भूमिका: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) एक अत्यधिक पेशेवर, बहु-कुशल और तेज़ी से तैनाती योग्य विशिष्ट बचाव एवं प्रतिक्रिया इकाई के रूप में विकसित हुआ है, जिसने महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मान्यता अर्जित की है।
- फरवरी 2023 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद तुर्की और सीरिया में 'ऑपरेशन दोस्त' के लिये NDRF की त्वरित, समन्वित एवं सफल तैनाती ने मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) में भारत की क्षमता को उजागर किया।
- CDRI के माध्यम से समुत्थानशील अवसंरचना का संस्थागतकरण: भारत ने आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) का नेतृत्व करके आपदा समुत्थानशीलता में अपने वैश्विक नेतृत्व को सुदृढ़ किया है, जिसमें अब 40 से अधिक देश शामिल हैं, जो विकास योजना में समुत्थानशीलता को मुख्यधारा में ला रहे हैं।
- यह पहल राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) जैसी प्रमुख परियोजनाओं में जोखिम मूल्यांकन को एकीकृत करके घरेलू कार्रवाई में परिणत हो रही है।
- CDRI के दूरसंचार विभाग (DoT) के साथ हालिया सहयोग से 0.77 मिलियन से अधिक दूरसंचार टावरों के लिये एक आपदा जोखिम और समुत्थानशीलता आकलन अवसंरचना तैयार हुआ है, जिससे आपदाओं के दौरान महत्त्वपूर्ण संचार नेटवर्क की निरंतरता सुनिश्चित होती है।
- प्रौद्योगिकी-संचालित पूर्व चेतावनी प्रणालियों में वृद्धि: AI/ML, GIS मैपिंग और CAP प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों के एकीकरण ने पूर्वानुमान को अत्यधिक विस्तृत बना दिया है, जिससे पारंपरिक मौसम चेतावनियों का विस्तार अब क्षेत्र-विशिष्ट, प्रभाव-आधारित चेतावनियों तक हो गया है।
- फ्लडवॉच, मौसम, मेघदूत, KISAN और दामिनी (आकाशीय तड़ित/ बिजली गिरने पर) जैसे मोबाइल ऐप्लीकेशन नागरिकों एवं किसानों को वास्तविक काल में, कार्रवाई योग्य चेतावनियाँ प्रदान करते हैं, जिससे समुदायों की आपदा-पूर्व तैयारी की क्षमता में वृद्धि हुई है।
- देश में भूकंपीय प्रेक्षण केंद्रों (seismic observatories) का जाल वर्ष 2014 में जहाँ 80 केंद्रों तक सीमित था, वह वर्ष 2025 के प्रारंभ तक बढ़कर 168 हो गया है। इस विस्तार ने भूकंप-संवेदनशील क्षेत्रों में निगरानी और त्वरित चेतावनी की क्षमता को उल्लेखनीय रूप से सुदृढ़ किया है।
- बढ़ी हुई वित्तीय तैयारी और आवंटन में सुदृढ़ता: आपदा प्रबंधन के लिये वित्तीय कार्यढाँचे को अब अधिक संगठित और सक्षम बनाया गया है। त्वरित प्रतिक्रिया तथा दीर्घकालिक न्यूनीकरण, दोनों के लिये समर्पित व पर्याप्त वित्तीय संसाधनों का आवंटन किया गया है, जिससे आपदा प्रबंधन तंत्र की तैयारी और कार्यक्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) के लिये कुल आवंटन वर्ष 2014-2024 की अवधि के लिये तेज़ी से बढ़ाकर ₹1.24 लाख करोड़ कर दिया गया, जबकि पिछले दशक में यह लगभग ₹38,000 करोड़ था।
- इसके अतिरिक्त, एक पर्याप्त निधि के साथ एक राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष का निर्माण बड़े पैमाने पर, पूर्व-निर्धारित बुनियादी अवसंरचना के कार्यों और न्यूनीकरण परियोजनाओं के वित्तपोषण की दिशा में एक प्रतिबद्ध बदलाव को रेखांकित करता है।
- शहरी स्तर पर विधायी और शासन सुधार: आपदा प्रबंधन (संशोधन) अधिनियम, 2025 जैसे हालिया विधायी प्रस्तावों का उद्देश्य स्थानीय शासन को अनिवार्य बनाकर शहरी कमज़ोरियों और संस्थागत कमियों को दूर करना है।
- संशोधित अधिनियम में राज्य की राजधानियों और नगर निगमों वाले प्रमुख शहरों के लिये एक ‘शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ की स्थापना की परिकल्पना की गई है।
- यह कदम नगर आयुक्तों को जोखिम-सूचित शहरी नियोजन को लागू करने तथा शहर स्तर पर स्थानीय आपदा प्रबंधन योजनाएँ तैयार करने के लिये सशक्त बनाने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
भारत की आपदा-प्रतिरोधी क्षमता और तैयारी को कमज़ोर करने वाली प्रमुख आपदा चुनौतियाँ क्या हैं?
- संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्रों में जलवायु-प्रेरित आपदाएँ: हिमालयी क्षेत्र लगातार बढ़ते खतरों के प्रति संवेदनशील होता जा रहा है, जहाँ एक चरम मौसमी घटना कई द्वितीयक आपदाओं को जन्म देती है, जिससे स्थानीय क्षमता पर भारी असर पड़ता है।
- यह बढ़ती जलवायु परिवर्तनशीलता और अनियंत्रित बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के कारण है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में वर्ष 2023 की घटनाओं पर एक IIT-R अध्ययन में पाया गया कि क्लाउडबर्स्ट (बादल फटने) जैसी प्रत्येक प्राथमिक घटना, भूस्खलन एवं फ्लैश फ्लड (आकस्मिक बाढ़) जैसे 2.3 द्वितीयक खतरों को जन्म देती है।
- इसके अलावा, अक्तूबर 2023 में सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र का एक उदाहरण है।
- यह बढ़ती जलवायु परिवर्तनशीलता और अनियंत्रित बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के कारण है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में वर्ष 2023 की घटनाओं पर एक IIT-R अध्ययन में पाया गया कि क्लाउडबर्स्ट (बादल फटने) जैसी प्रत्येक प्राथमिक घटना, भूस्खलन एवं फ्लैश फ्लड (आकस्मिक बाढ़) जैसे 2.3 द्वितीयक खतरों को जन्म देती है।
- शहरी शासन और बुनियादी अवसंरचना की विफलता: तीव्र, अनियोजित शहरीकरण ने प्राकृतिक जल निकासी को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप लगातार शहरी बाढ़ और भारी आर्थिक नुकसान हुआ है, जो शासन एवं समुत्थानशील बुनियादी अवसंरचना की योजना में विफलता को दर्शाता है।
- अकुशल विनियमन प्रवर्तन के कारण, भारत की 80% से अधिक आबादी ऐसे ज़िलों में रहती है जो अत्यधिक जल-मौसम आपदाओं के प्रति अत्यधिक सुभेद्य हैं।
- एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगलुरु को तेज़ी से हो रहे रियल एस्टेट विकास से क्षतिग्रस्त जल निकासी नेटवर्क को पुनःस्थापित करने के लिये लगभग 28 अरब रुपये ($339 मिलियन) की आवश्यकता हो सकती है क्योंकि बार-बार आने वाली बाढ़ से IT हब में काम और जीवन बाधित होने का खतरा है।
- संस्थागत अति-केंद्रीकरण और बुनियादी स्तर पर कमियाँ: आपदा प्रबंधन प्रयास अति-केंद्रीकृत और प्रायः प्रतिक्रियात्मक बने रहते हैं, जिनमें कार्यात्मक स्वायत्तता, तकनीकी क्षमता तथा ज़िला एवं स्थानीय स्तर पर धन आपूर्ति अपर्याप्त होती है।
- आपदा के बाद NDRF (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष) और SDRF (राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष) से धन वितरण में विलंब एवं जटिलताएँ समय पर पुनर्प्राप्ति व प्रभावी राहत में गंभीर रूप से बाधा डालती हैं।
- पूर्व चेतावनी प्रणालियों में तकनीकी कमियाँ: पूर्व चेतावनी प्रणालियों में प्रायः गैर-चक्रवाती, स्थानीयकृत और तेज़ी से विकसित हो रहे खतरों के लिये आवश्यक विस्तृत जानकारी एवं लास्ट-माइल कनेक्टिविटी का अभाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप सामुदायिक प्रतिक्रिया में विलंब होता है।
- अनुमान है कि भारत के 72% ज़िले भीषण बाढ़ की चपेट में हैं, लेकिन केवल 25% ज़िलों में ही नदी-स्तर पर बाढ़ पूर्वानुमान केंद्र कार्यरत हैं।
- मज़बूत, स्थानीयकृत पूर्व चेतावनी प्रणालियों का अभाव आपदाओं के दौरान हुई बड़ी संख्या में हताहतों एवं बुनियादी अवसंरचना के नुकसान का एक प्रमुख कारण था।
- गंभीर सामाजिक-आर्थिक कमज़ोरी: पहले से मौजूद सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ और गरीबी आपदा के प्रभाव को बहुत हद तक बढ़ा देती हैं, क्योंकि कमज़ोर आबादी को कम से कम टिकाऊ आवास एवं सुरक्षा संजाल के साथ उच्च जोखिम वाली, सीमांत भूमि पर रहने के लिये विवश होना पड़ता है।
- भारत में, हाल ही में आई भीषण हीट-वेव्स और बाढ़ ने दैनिक मज़दूरों एवं निचले इलाकों में रहने वाले अनौपचारिक बस्तियों के निवासियों को असमान रूप से प्रभावित किया है, जिनके पास अनुकूलन संसाधनों का अभाव है।
- 2024 की एक रिपोर्ट में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने चेतावनी दी है कि विश्व भर में 70% से ज़्यादा श्रमिकों को अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने का खतरा है।
- इसमें आगे कहा गया है कि भारत को हीट-वेव्स के कारण होने वाली उत्पादकता हानि से अनुमानित 100 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
- छोटे व्यवसायों और निर्माण श्रमिकों, किसानों, रेहड़ी-पटरी वालों एवं खाद्य वितरण भागीदारों जैसे अनौपचारिक श्रमिकों को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ा।
- भवन संहिताओं और भूमि उपयोग का अपर्याप्त प्रवर्तन: राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC), 2016 का अकुशल प्रवर्तन और जोखिम-प्रवण क्षेत्रों में अवैज्ञानिक भूमि-उपयोग नियोजन, संरचनात्मक भेद्यता को बढ़ाता है, विशेष रूप से भूकंपीय क्षेत्रों एवं बाढ़ के मैदानों में।
- भारत का लगभग 59% भू-भाग (सभी राज्यों को शामिल करते हुए) विभिन्न तीव्रता के भूकंपों के लिये प्रवण है, फिर भी पुरानी इमारतों के लिये सख्त पुनर्निर्माण नीतियों का अभाव एवं अनौपचारिक निर्माण प्रथाएँ मृत्यु के जोखिम को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा देती हैं।
- घनी आबादी वाले महानगरों में इमारतों के ढहने का जोखिम पुराना है, जो अकुशल नियामक निगरानी को रेखांकित करता है।
- प्रतिक्रियात्मक, राहत-केंद्रित दृष्टिकोण बनाम शमन: वर्ष 2005 के बाद भारत के आपदा प्रबंधन ढाँचे में यद्यपि नीतिगत परिवर्तन हुए हैं, तथापि इसकी प्राथमिकता अब भी आपदा-पश्चात राहत प्रतिक्रिया और पुनर्वास पर अधिक केंद्रित है, न कि आपदा-पूर्व सक्रिय जोखिम न्यूनीकरण या दीर्घकालिक शमन हेतु संरचनात्मक एवं पारिस्थितिक निवेशों पर।
- वर्ष 2023 में भारत को प्राकृतिक आपदाओं से लगभग 12 अरब डॉलर (1 लाख करोड़ रुपये से अधिक) की आर्थिक हानि हुई, जो यह संकेत करती है कि सुरक्षात्मक तटबंधों, आपदा-रोधी अवसंरचना तथा तटीय पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन जैसी पूर्व-निवारक पहलों में निवेश अब भी अपर्याप्त है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर भारतीय प्रधानमंत्री का दस सूत्री एजेंडा:
- विकास के सभी क्षेत्रों में आपदा जोखिम प्रबंधन सिद्धांतों को एकीकृत करना।
- असुरक्षित परिवारों से लेकर उद्यमों और राष्ट्र स्तर तक, सभी के लिये व्यापक जोखिम कवरेज सुनिश्चित करना।
- आपदा जोखिम प्रबंधन में महिला नेतृत्व और सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना।
- प्राकृतिक आपदाओं और आपदा जोखिमों की गहन समझ के लिये वैश्विक जोखिम मानचित्रण में निवेश करना।
- आपदा जोखिम प्रबंधन की प्रभावशीलता और दक्षता में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- आपदा-संबंधी अध्ययन, नीति मूल्यांकन और समुदाय आधारित समाधान पर कार्य करने के लिये विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों का सहयोगी नेटवर्क स्थापित करना।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रयासों का समर्थन करने के लिये सोशल मीडिया और मोबाइल तकनीकों का उपयोग करना।
- सामुदायिक स्तर पर आपदा-रोधी क्षमता बढ़ाने के लिये स्थानीय क्षमताओं और पहलों को सुदृढ़ करना।
- सीखे गये अनुभवों को भविष्य की नीतियों में शामिल करने के लिये प्रत्येक आपदा के बाद व्यवस्थित अध्ययन और समीक्षा की प्रक्रिया विकसित करना।
- वैश्विक समुत्थानशीलता सुनिश्चित करने के लिये साझा संसाधनों और ज्ञान का उपयोग कर वैश्विक स्तर पर आपदा प्रतिक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय समन्वय और एकजुटता को सुदृढ़ करना।
आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया में सुधार के लिये भारत को कौन-से उपाय लागू करने चाहिये?
- ज़मीनी स्तर पर आपदा प्रशासन को अनिवार्य और सशक्त बनाना: ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (DDMA) को विधायी रूप से सुदृढ़ किया जाना चाहिये, जिससे स्थानीय आपदा प्रबंधन के लिये पूर्ण कार्यात्मक स्वायत्तता, समर्पित विशेषज्ञ कर्मचारी और सीमित बजटीय शक्तियाँ सुनिश्चित हों।
- इसके लिये सभी पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के लिये बहु-आपदा-विशिष्ट ग्राम और वार्ड-स्तरीय आकस्मिक योजनाओं की तैयारी को कानूनी रूप से अनिवार्य, समयबद्ध अनुपालन उपाय बनाना होगा।
- विकेंद्रीकरण को व्यावहारिक रूप देने के लिये यह आवश्यक है कि राज्य आपदा न्यूनीकरण कोष (SDMF) का एक निश्चित प्रतिशत ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (DDMA) को स्थानीय जोखिम-न्यूनन परियोजनाओं जैसे: जल-निकासी प्रणाली की सफाई, संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण आदि के लिये विशेष उपयोग हेतु हस्तांतरित किया जाये। इससे केंद्रीय नीतिगत गतिहीनता पर नियंत्रण किया जा सकेगा तथा स्थानीय स्तर पर सशक्त एवं प्रत्युत्तरक्षम आपदा प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा।
- राष्ट्रीय आपदा-रोधी क्षमता और अंकेक्षण कार्यढाँचा तैयार करना: एक व्यापक राष्ट्रीय आपदा-रोधी क्षमता अंकेक्षण कार्यढाँचे को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये, जिसके अंतर्गत सभी प्रमुख सार्वजनिक अवसंरचना (पावर ग्रिड, राजमार्ग, रेलवे पुल) के लिये प्रत्येक तीन वर्ष में एक स्वतंत्र, बहु-आपदा जोखिम आकलन और संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण (Structural retrofitting) योजना को अनिवार्य रूप से लागू किया जाए।
- इस कार्यढाँचे में अवसंरचना विकास (जैसे: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन में) के लिये केंद्र और राज्य के वित्तपोषण को सख्त आपदा-प्रतिरोधी निर्माण संहिताओं से जोड़ा जाना चाहिये, गैर-अनुपालन पर दंड लगाया जाना चाहिये तथा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि सभी नए निर्माण कार्य उच्च भूकंपीय एवं बाढ़-प्रतिरोधी मानकों का पालन करें।
- वित्तीय और शहरी नियोजन में जलवायु-जोखिम को एकीकृत करना: सभी पंचवर्षीय विकास और शहरी मास्टर प्लान का एक अनिवार्य घटक जोखिम-सूचित बजट बनाकर आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को राष्ट्रीय और राज्य वित्तीय नियोजन में पूरी तरह से शामिल किया जाना चाहिये।
- इसमें बाढ़ क्षेत्र क्षेत्रीकरण विनियमों को गैर-परक्राम्य कानूनी उपकरण के रूप में लागू करना, उच्च जोखिम वाली अनौपचारिक बस्तियों को गैर-विकास क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत करना और प्राकृतिक आपदा बफर के रूप में कार्य करने के लिये शहरी आर्द्रभूमि और मैंग्रोव को पुनर्स्थापित करने जैसे: प्रकृति-आधारित समाधानों (NbS) में रणनीतिक रूप से निवेश करना शामिल है।
- अति-स्थानीय, बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणाली (MHEWS) का विकास: वर्तमान पूर्व चेतावनी मॉडल को अति-स्थानीय MHEWS में परिवर्तित किया जाना चाहिये, जो फ्लैश फ्लड (आकस्मिक बाढ़), तीव्र वर्षा और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs) जैसे तीव्र-प्रारंभिक, स्थानीयकृत खतरों के लिये प्रभाव-आधारित पूर्वानुमान देने में सक्षम हो।
- इसके लिये हिमालय और पश्चिमी घाट जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में IoT-सक्षम माइक्रो-सेंसर (नदी के स्तर, मृदा की नमी और ढाल स्थिरता के लिये) के एक बेहतर नेटवर्क की बड़े पैमाने पर, समयबद्ध तैनाती की आवश्यकता है, जो जियो-टैगिंग सटीकता के साथ सीधे व्यक्तिगत मोबाइल फोन पर कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (CAP) के माध्यम से लास्ट-माइल अलर्ट सुनिश्चित करता है।
- निजी क्षेत्र और सामुदायिक वृद्धि क्षमता का संस्थागतकरण: आपदा प्रबंधन चक्र में निजी क्षेत्र के व्यवस्थित एकीकरण के लिये एक औपचारिक तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये, जो केवल कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) से आगे बढ़कर बड़ी फर्मों को पूर्व-चिह्नित, विशिष्ट वृद्धि क्षमता (जैसे: भारी मशीनरी, ड्रोन बेड़े, आपातकालीन रसद) में योगदान करने के लिये कानूनी रूप से अनिवार्य बनाता है।
- साथ ही, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों (SHG) की दस लाख महिलाओं को प्रमाणित, प्रथम-प्रतिक्रिया मनो-सामाजिक सहायता और बुनियादी आघात देखभाल प्रदाताओं के रूप में प्रशिक्षित करने हेतु 'आपदा सखी' पहल को सुदृढ़ किया जाना चाहिये, ताकि आपदा के बाद तेज़ी से उबरने के लिये मौजूदा सामाजिक पूंजी का लाभ उठाया जा सके।
- आपदा स्वास्थ्य और मनो-सामाजिक तत्परता को सुदृढ़ करना: एक समर्पित आपदा स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये, जिसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) को NDMA के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये ताकि सार्वभौमिक टेलीमेडिसिन एवं मोबाइल मेडिकल यूनिट क्षमताएँ सुनिश्चित की जा सकें जो आपदा के तुरंत बाद भी कार्यात्मक रहें।
- इसमें सुभेद्य ज़िलों में विशेष आघात और गंभीर देखभाल केंद्र स्थापित करना और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों सहित सभी स्वास्थ्य कर्मचारियों को मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा (PFA) में प्रशिक्षण अनिवार्य करना शामिल है ताकि बचे लोगों के तत्काल और दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बोझ को कम किया जा सके।
- महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना के लिये तकनीकी-कानूनी अनुपालन लागू करना: सभी आपदा सुरक्षा मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये एक सख्त तकनीकी-विधिक व्यवस्था लागू की जानी चाहिये, विशेष रूप से भूकंपीय क्षेत्र III, IV और V में वर्ष 2005 से पहले के सभी महत्त्वपूर्ण सरकारी भवनों, स्कूलों एवं अस्पतालों में भूकंपीय पुनर्निर्माण को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
- इस अनुपालन की निगरानी एक नवगठित राष्ट्रीय आपदा सुरक्षा निरीक्षणालय द्वारा की जानी चाहिये, जिसे गैर-अनुपालन वाली बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये भारी जुर्माना एवं ‘ Stop Work (कार्य रोको)’ आदेश जारी करने का अधिकार हो, जिससे डेवलपर्स एवं सरकारी एजेंसियों के लिये सुरक्षा एक विधिक और वित्तीय दायित्व बन जाए।
निष्कर्ष:
भारत ने तकनीकी नवाचार, सामुदायिक सहभागिता और संस्थागत सुदृढ़ीकरण के माध्यम से आपदा जोखिम न्यूनीकरण में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। अति-स्थानीय पूर्व चेतावनी प्रणालियों से लेकर समुत्थानशील बुनियादी अवसंरचना तक, बहुआयामी दृष्टिकोण, प्रतिक्रियात्मक राहत से सक्रिय तैयारी की ओर बदलाव को दर्शाता है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क के साथ अपनी रणनीतियों को संरेखित करके, भारत शिक्षा, क्षमता निर्माण एवं जोखिम-सूचित विकास योजना पर बल देता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. हाल के वर्षों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन में भारत द्वारा की गई प्रगति का आकलन कीजिये। उन चुनौतियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये जो समुत्थानशीलता और तैयारी को लगातार कमज़ोर कर रही हैं। भारत आपदा शिक्षा, सामुदायिक तैयारी एवं जोखिम-सूचित विकास को और सुदृढ़ करने के लिये अपनी रणनीतियों को सेंडाई फ्रेमवर्क के साथ किस-प्रकार संरेखित कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)
मेन्स:
प्रश्न 1. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020)
प्रश्न 2. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये उसके खतरे को परिभाषित करने के लिये भेद्यता एक अत्यावश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिये। (2019)
प्रश्न 3. भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी.आर.आर.) के लिये 'सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-2030)' हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात् किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप 'ह्योगो कार्रवाई प्रारूप, 2005' से किस प्रकार भिन्न है? (2018)