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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 12 May, 2025
  • 24 min read
रैपिड फायर

संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत आत्मरक्षा खंड

स्रोत: पी.आर

चर्चा में क्यों ?

पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत ने आत्मरक्षा में ऑपरेशन सिंदूर चलाया था, जिससे भारत की प्रतिक्रिया के औचित्य और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत आत्मरक्षा के अधिकार के अनुच्छेद 51 के साथ इसके संरेखण पर सवाल उठ रहे हैं । 

संयुक्त राष्ट्र चार्टर में अनुच्छेद 51 क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर आम तौर पर अनुच्छेद 2(4) के तहत बल के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाता है, जो सदस्य राज्यों को किसी भी राज्य की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ बल का उपयोग करने से रोकता है, सिवाय अनुच्छेद 51 द्वारा अनुमत आत्मरक्षा के मामलों को छोड़कर।
  • इसके तहत, आत्मरक्षा की अनुमति केवल "सशस्त्र हमले" के बाद ही दी जाती है और इसके लिये दो सिद्धांतों का पालन करना होता है: आवश्यकता (हमले का जवाब देने के लिये बल का प्रयोग आवश्यक होना चाहिये) और आनुपातिकता (प्रतिक्रिया, हमले को रोकने के लिये आवश्यक बल से अधिक नहीं होनी चाहिये)।
  • चार्टर राज्य के आचरण और राज्य द्वारा प्रायोजित बल प्रयोग को नियंत्रित करता है। हालाँकि, निकारागुआ बनाम अमेरिका मामले (1986) में, ICJ ने माना कि अनुच्छेद 51 के तहत सशस्त्र हमले में अल-कायदा जैसे गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं द्वारा किये गए कृत्य शामिल हैं, अगर वे "किसी राज्य द्वारा या उसकी ओर से" किये गए हों।
  • भारत ने इस हमले के लिये पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित और समर्थित आतंकवादियों को ज़िम्मेदार ठहराया तथा आवश्यकतानुसार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अधिकांश सदस्यों को जानकारी देकर अनुच्छेद 51 के तहत अपने कर्तव्य को आंशिक रूप से पूरा किया।

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अनविलिंग ऑर अनएबल डॉक्ट्रिन संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 से कैसे संबंधित है?

  • यह सिद्धांत एक राज्य को तब आत्मरक्षा में बल प्रयोग की अनुमति देता है जब किसी अन्य राज्य की सीमा में सक्रिय गैर-राज्य अभिकर्त्ता (NSA) के विरुद्ध वह राज्य स्वयं कार्रवाई करने में असमर्थ या अनिच्छुक हो, और यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अंतर्गत एक अपवाद के रूप में लागू होता है।
    • अमेरिका ने इस सिद्धांत का प्रयोग वर्ष 2011 में पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन के विरुद्ध की गई सैन्य कार्रवाई में किया था, किंतु रूस और चीन ने इस पर आलोचना करते हुए कहा कि यह राज्य की संप्रभुता और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को कमज़ोर करता है।
  • भारत की स्थिति: फरवरी 2021 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की आरिया फॉर्मूला बैठक में, भारत ने इस सिद्धांत के उपयोग के लिये तीन शर्तें निर्धारित कीं:
    • गैर-राज्य अभिकर्त्ता ने बार-बार राज्य पर हमला किया हो।
    • मेज़बान राज्य उस खतरे को निष्क्रिय करने के लिये इच्छुक न हो।
    • मेज़बान राज्य सक्रिय रूप से उस गैर-राज्य अभिकर्त्ता का समर्थन या प्रायोजन करता हो।
  • पहलगाम हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान पर निष्क्रियता का आरोप लगाया और "अनविलिंग ऑर अनएबल" डॉक्ट्रिन के उपयोग का संकेत दिया।

और पढ़ें: पहलगाम आतंकवादी हमला और सिंधु जल संधि का निलंबन


प्रारंभिक परीक्षा

फैटी लिवर के उपचार के लिये सेमाग्लूटाइड

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि सेमाग्लूटाइड (जो ओज़ेम्पिक और वेगोवी जैसी वज़न घटाने और मधुमेह की दवाओं में प्रयुक्त होता है) फैटी लिवर डिज़ीज़ के उपचार में भी प्रभावी है, जिसे मेटाबॉलिक डिसफंक्शन एसोसिएटेड स्टीटोहेपेटाइटिस (MASH) के नाम से भी जाना जाता है।

सेमाग्लूटाइड क्या है?

  • सेमाग्लूटाइड: सेमाग्लूटाइड एक ग्लूकागॉन-से मिलता-जुलता पेप्टाइड-1 (GLP-1) रिसेप्टर एगोनिस्ट है। इसका मुख्य रूप से उपयोग टाइप 2 मधुमेह और मोटापे के प्रबंधन में किया जाता है।
    • सेमाग्लूटाइड GLP-1 नामक हार्मोन की क्रिया की नकल करता है, जो भोजन के बाद इंसुलिन स्राव को बढ़ाकर, ग्लूकागॉन के स्राव को रोककर तथा गैस्ट्रिक एंप्टींग (पाचन प्रक्रिया के दौरान पेट से आँतों में भोजन के जाने की गति) को धीमा करके रक्त शर्करा के स्तर को घटाने में सहायता करता है।
  • दुष्प्रभाव: सेमाग्लूटाइड से जुड़े सामान्य दुष्प्रभावों में मतली, उल्टी, दस्त, कब्ज़ और पेट में असहजता शामिल हैं।
    • यह उन व्यक्तियों के लिये निषिद्ध (चिकित्सकीय रूप से अनुशंसित नहीं) है जिनके व्यक्तिगत या पारिवारिक इतिहास में मेडुलरी थायरॉयड कैंसर या मल्टीपल एंडोक्राइन न्यूप्लेसिया टाइप 2 रहा हो।

नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ क्या है?

  • फैटी लिवर डिज़ीज़: फैटी लिवर डिज़ीज़ (हेपेटिक स्टीएटोसिस) यकृत कोशिकाओं में अत्यधिक वसा के जमा होने की स्थिति है।
    • यह स्थिति तब होती है जब वसा यकृत कोशिकाओं (हेपाटोसाइट्स) के 5% से अधिक हो जाती है, जिससे यकृत की कार्यप्रणाली और चयापचय प्रभावित होते हैं।
    • यह दो प्रकार का होता है — नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (NAFLD) और एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (AFLD)
  • नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (NAFLD) या मेटाबॉलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टीएटोटिक लिवर डिज़ीज़ (MASLD): मेटाबॉलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टीएटोटिक लिवर डिज़ीज़ (MASLD), जिसे पहले नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (NAFLD) के रूप में जाना जाता था, ऐसी स्थिति है जिसमें अत्यधिक एल्कोहल सेवन के बिना ही यकृत में वसा जमा हो जाती है, और समय के साथ यह गंभीर यकृत क्षति का कारण बन सकती है।
    • भारत में इसकी विद्यमानता अनुमानतः 9% से 32% के बीच है।
    • MASLD के 4 चरण:
      • नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर (NAFL): इसमें यकृत (लिवर) में वसा जमा हो जाती है लेकिन इससे कोई नुकसान या सूजन नहीं होती। जिससे सामान्यतः बढ़े हुए यकृत के कारण असुविधा होती है।
      • नॉन-एल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस (NASH) या मेटाबोलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टीटोहेपेटाइटिस (MASH): यह एक अधिक गंभीर अवस्था है, जिसमें यकृत में सूजन, ऊतक क्षति (फाइब्रोसिस/स्कैरिंग) होती है और यह हृदय व गुर्दे की समस्याओं से जुड़ी होती है। लगभग 25% मामलों में यह सिरोसिस या यकृत कैंसर तक बढ़ सकता है।  
      • फाइब्रोसिस: दीर्घकालिक सूजन के कारण यकृत में घाव बन जाते हैं, जिससे इसकी कार्य करने की क्षमता प्रभावित होती है।   
      • सिरोसिस: सबसे गंभीर अवस्था जिसमें यकृत पर स्थायी निशान पड़ जाते हैं, सिकुड़ जाता है और यकृत के खराब होने के साथ कैंसर की संभावना हो जाती है।

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  • एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज़ (AFLD): AFLD, जिसे एल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस भी कहा जाता है, अत्यधिक अल्कोहल के सेवन (पुरुषों में ≥ 40 ग्राम/दिन, महिलाओं में ≥ 20 ग्राम/दिन) के कारण होता है, जिससे यकृत में वसा जमा होने लगती है।
    • यकृत में अल्कोहल के चयापचय (मेटाबोलिज्म) से विषाक्त यौगिक बनते हैं जो यकृत की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं, सूजन को बढ़ाते हैं और शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर देते हैं।
  • फैटी लिवर रोग का उपचार: प्राथमिक उपचार आहार, व्यायाम या दवा के माध्यम से वज़न कम करना है।
    • GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट: ये दवाएँ आंतों के हार्मोन को नियंत्रित करके भूख और वसा भंडारण को नियंत्रित करती हैं, जिससे वज़न कम करने में सहायता मिलती है।
    • रेस्मेटिरोम: यह थायरॉइड हार्मोन आधारित दवा है जो विशेष रूप से यकृत वसा को लक्षित करती है, हालाँकि यह महंगी है।
    • FGF21 दवाएँ: ये दवाएँ वसा संचय को कम करने और चयापचय स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिये वसा ऊतकों को लक्षित करती हैं।
    • टिर्ज़ेपेटाइड: एक दोहरी क्रिया वाली दवा जो वज़न घटाने में सहायता करती है, मधुमेह प्रबंधन में सहायता करती है और स्लीप एपनिया के उपचार में संभावित लाभ दर्शाती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है?

(a) यकृतशोध B विषाणु HIV की तरह ही संचरित होता है।
(b) यकृतशोध C का टीका होता है, जबकि यकृतशोध B का कोई टीका नहीं होता।
(c) सार्वभौम रूप से यकृतशोध B और C विषाणुओं से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या HIV से संक्रमित लोगों की संख्या से कई गुना अधिक है।
(d) यकृतशोध B और C विषाणुओं से संक्रमित कुछ व्यक्तियों में अनेक वर्षों तक इसके लक्षण दिखाई नहीं देते।

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा रोग टैटू गुदवाने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है? (2013) 

  1. चिकनगुनिया  
  2.   हेपेटाइटिस बी  
  3.   HIV-एड्स 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b)


रैपिड फायर

भीमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया 

भीमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (BWS) के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र में लोगों के अतिक्रमण ने संरक्षणवादियों के बीच गंभीर चिंता उत्पन्न कर दी है, जिससे क्षेत्र के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है।

  • पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास के बफर क्षेत्र (10 किमी तक) हैं, जिन्हें अनावश्यक मानवीय गतिविधियों को कम करने हेतु घोषित किया गया है तथा राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (वर्ष 2002-2016) के अनुसार पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित किया गया है।
    • निषिद्ध वाणिज्यिक खनन, प्रदूषणकारी उद्योग, प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ, आरा मिल, लकड़ी का वाणिज्यिक उपयोग आदि।
    • विनियमित : वृक्षों की कटाई, होटल/रिसॉर्ट का निर्माण, वाणिज्यिक जल उपयोग, कीटनाशक आधारित कृषि आदि।
    • अनुमति प्राप्त : पारंपरिक खेती, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकियों का उपयोग 
  • भीमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य: BWS कर्नाटक के बेलगाम ज़िले में गोवा की सीमा के पास स्थित है। यह पश्चिमी घाट में फैला हुआ है और दिसंबर 2011 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।
    • इसका नाम भीमगढ़ किले के नाम पर रखा गया है, जिसे शिवाजी ने 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली सेनाओं से बचाव के लिये बनवाया था।
    • यहाँ वेलवेट फ्रंटेड नटहैच, मालाबार ग्रे हॉर्नबिल, इंपीरियल पिजन, एमराल्ड पिजन और दुर्लभ मालाबार ट्रोगोन सहित विविध जीव पाए जाते है।
      • इसे बारापेडे गुफाओं में पाए जाने वाले रॉटन फ्री-टेल्ड बैट के एकमात्र ज्ञात प्रजनन स्थल के रूप में जाना जाता है।
    • इस अभयारण्य में वज्रपोहा जलप्रपात शामिल है और यह महादयी नदी के जलग्रहण क्षेत्र का हिस्सा है। 

और पढ़ें: कर्नाटक के पश्चिमी घाट में आक्रामक प्रजातियाँ और खाद्य संकट


रैपिड फायर

स्वार्थचालित कीमत

स्रोत: द हिंदू

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने विशेष रूप से ई-कॉमर्स और त्वरित वाणिज्य प्लेटफार्मों को लक्षित करते हुए, स्वार्थचालित कीमत को विनियमित करने हेतु उत्पादन विनियम, 2025 की लागत का निर्धारण अधिसूचित किया है।

  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत परिभाषित, स्वार्थचालित कीमत से उस कीमत पर माल का विक्रय या सेवाओं की व्यवस्था करना अभिप्रेत है, जो प्रतिस्पर्द्धा को कम करने या प्रतिस्पर्द्धीयों को समाप्त करने की दृष्टि से माल के उत्पादन या सेवा की व्यवस्था की उस कीमत से कम हो जो विनिमयों द्वारा अवधारित की जाए।
    • एक बार जब प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ कमज़ोर हो जाती हैं या समाप्त हो जाती हैं, तो कंपनी आमतौर पर अपने घाटे की भरपाई करने और बाज़ार नियंत्रण (एकाधिकार) को सुदृढ़ करने के लिये कीमतें बढ़ा देती है।
  • नए नियमों ने वर्ष 2009 के नियमों को प्रतिस्थापित कर दिया है, जिसमें बाज़ार मूल्य को बेंचमार्क के रूप में हटा दिया गया है तथा कुल लागत को पुनः परिभाषित किया गया है, जिसमें अधिक स्पष्टता के लिये मूल्यह्रास को शामिल किया गया है तथा वित्तपोषण उपरिव्ययों (दैनिक व्यवसाय व्यय) को बाहर रखा गया है।
    • यह क्षेत्र-अज्ञेय (तटस्थ), मामला-दर-मामला दृष्टिकोण का उपयोग करता है, जो गतिशील डिजिटल बाज़ारों के लिये बेहतर अनुकूल है।
  • CCI एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने, प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने और उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिये की गई है।

प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं से संबंधित शब्द

उत्पादक संघ

मूल्य निर्धारण और उत्पादन को विनियमित करने के लिये स्वतंत्र व्यवसायों या देशों के संघ (आमतौर पर अवैध)।

विलय

विलय से कम्पनियाँ एक इकाई में एकीकृत हो जाती हैं, जिससे संभावित रूप से प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है और विनियामक जाँच की आवश्यकता पड़ती है।

मूल्य निर्णय

एक ही उत्पाद/सेवा के लिये अलग-अलग ग्राहकों से अलग-अलग कीमत वसूलना।

मूल्य निर्धारण समझौते

प्रतिस्पर्धी अपने उत्पादों/सेवाओं के लिये एक निश्चित मूल्य निर्धारित करने पर सहमत हो जाते हैं, जिससे प्रतिस्पर्द्धा समाप्त हो जाती है और कीमतें बढ़ जाती हैं।

और पढ़ें: बाज़ार एकाधिकार और प्रतिस्पर्द्धा विरोधी प्रथाएँ


रैपिड फायर

साओला

स्रोत: डाउन टू अर्थ

वैज्ञानिकों ने संरक्षण में सहायता के लिये साओला (Pseudoryx nghetinhensis) के जीनोम का मैपिंग किया है और पाया है कि यह प्रजाति 5,000 से 20,000 वर्ष पहले दो आबादियों में विभाजित हो गई थी, जो कि अंतिम हिमनदी अधिकतम (लगभग 20,000 वर्ष पहले) के दौरान और उसके बाद आवास परिवर्तनों के साथ मेल खाती है। वियतनाम में कृषि विस्तार ने आबादी को और अलग-थलग कर दिया।

  • साओला: इसे प्रायः "एशियाई यूनिकॉर्न" कहा जाता है, यह सबसे दुर्लभ बड़े स्थलीय स्तनधारियों में से एक है और बोविड वंश (bovid genus) से संबंधित है। इसका शरीर गहरे रंग का, मृग जैसा होता है, जिसमें कोमल फर, सफेद चेहरे के निशान और दोनों लिंगों में लंबे, समांतर सींग पाए जाते हैं। 
    • लाओ भाषा में "साओला" का अर्थ है "spinning wheel posts" अर्थात् चरखे के स्तंभ के समान, जो इसके सींगों के आकार को संदर्भित करता है। 
  • आवास और अस्तित्व के खतरे: साओला वियतनाम और लाओस के बीच अन्नामाइट पर्वत शृंखला के कुहासे से ढके ऊँचे वन क्षेत्रों में पाया जाता है।
    • इसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त (IUCN स्थिति) के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा यह मुख्य रूप से आवास की हानि एवं अवैध शिकार के कारण खतरे में है।
  • व्यवहार: साओला दिनचर (दैनिक समय में सक्रिय) होने के साथ शाकाहारी (पर्णभक्षी) होते हैं।
    • ये ज़्यादातर अकेले रहते हैं, हालाँकि 2-3 साओलों के छोटे समूह भी देखे गए हैं। नर प्रादेशिक होते हैं और चट्टानों तथा वनस्पतियों पर अपनी मैक्सिलरी ग्रंथियों के स्राव द्वारा अपने क्षेत्र को चिह्नित करते हैं।
  • जनन: मादा की गर्भधारण अवधि 7-8 महीने की होती है। वन क्षेत्र में साओला का जीवनकाल 8-11 वर्ष होने का अनुमान है।

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और पढ़ें: बिश्नोई, काला हिरण और चिंकारा


रैपिड फायर

कैलाश मानसरोवर यात्रा को जोड़ने वाले भू-रणनीतिक दर्रे

स्रोत: द हिंदू

भारत ने कैलाश मानसरोवर यात्रा (KMY) की पुनः शुरुआत की घोषणा की, जो वर्ष 2020 में चीन द्वारा कोविड-19 और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) तनाव के कारण 5 वर्ष के लिये रोक दी गई थी। KMY वर्ष 1981 से संचालन में है।

  • KMY: KMY विदेश मंत्रालय (भारत) द्वारा चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) में कैलाश पर्वत (6,638 मीटर) और मानसरोवर झील (4,600 मीटर) के लिये आयोजित एक तीर्थयात्रा है।
  • आधिकारिक परिचालन मार्ग (वर्ष 2025 तक): 
    • लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड): यह मानसरोवर (सीमा से 50 किमी) जाने का सबसे छोटा मार्ग है, लेकिन कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इसकी यात्रा 200 किमी तक हो जाती है।
      • यह वर्ष 1992 में चीन के साथ व्यापार के लिये खोली गई पहली भारतीय सीमा चौकी था, इसके बाद शिपकी ला (1994) और नाथू ला (2006) खोली गई।
  • नाथू ला दर्रा (सिक्किम): 1,500 किमी. का यह पूर्णतः वाहन योग्य मार्ग (यह विश्व की सबसे ऊंची वाहन योग्य सड़कों में से एक है) 2015 में खोला गया; तीर्थयात्रियों के लिए आसान है, इसमें चढ़ाई की आवश्यकता नहीं है।   
    • नाथू ला दर्रा (सिक्किम): यह 1,500 किमी. का पूर्णतः मोटर वाहन योग्य मार्ग है (यह विश्व की सबसे ऊँचे मोटर वाहन योग्य सड़कों में से एक है) जिसे वर्ष 2015 में तीर्थयात्रियों के लिये खोल दिया गया है तथा इसमें पैदल यात्रा/ट्रैकिंग की आवश्यकता नहीं है।
      • नाथू ला सिक्किम को चीन के TAR से जोड़ता है और प्राचीन सिल्क रोड का हिस्सा है।
  • कैलाश पर्वत: कैलाश पर्वत, तिब्बत में स्थित एक हीरे के आकार की काले रंग की शिला शिखर, हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन धर्मों के लिये पवित्र है तथा यह प्रमुख एशियाई नदियों जैसे ब्रह्मपुत्र, सतलुज, सिंधु एवं कर्णाली का स्रोत है।

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और पढ़ें: कैलाश मानसरोवर यात्रा


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