प्रारंभिक परीक्षा
फैटी लिवर के उपचार के लिये सेमाग्लूटाइड
- 12 May 2025
- 8 min read
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि सेमाग्लूटाइड (जो ओज़ेम्पिक और वेगोवी जैसी वज़न घटाने और मधुमेह की दवाओं में प्रयुक्त होता है) फैटी लिवर डिज़ीज़ के उपचार में भी प्रभावी है, जिसे मेटाबॉलिक डिसफंक्शन एसोसिएटेड स्टीटोहेपेटाइटिस (MASH) के नाम से भी जाना जाता है।
सेमाग्लूटाइड क्या है?
- सेमाग्लूटाइड: सेमाग्लूटाइड एक ग्लूकागॉन-से मिलता-जुलता पेप्टाइड-1 (GLP-1) रिसेप्टर एगोनिस्ट है। इसका मुख्य रूप से उपयोग टाइप 2 मधुमेह और मोटापे के प्रबंधन में किया जाता है।
- सेमाग्लूटाइड GLP-1 नामक हार्मोन की क्रिया की नकल करता है, जो भोजन के बाद इंसुलिन स्राव को बढ़ाकर, ग्लूकागॉन के स्राव को रोककर तथा गैस्ट्रिक एंप्टींग (पाचन प्रक्रिया के दौरान पेट से आँतों में भोजन के जाने की गति) को धीमा करके रक्त शर्करा के स्तर को घटाने में सहायता करता है।
- दुष्प्रभाव: सेमाग्लूटाइड से जुड़े सामान्य दुष्प्रभावों में मतली, उल्टी, दस्त, कब्ज़ और पेट में असहजता शामिल हैं।
- यह उन व्यक्तियों के लिये निषिद्ध (चिकित्सकीय रूप से अनुशंसित नहीं) है जिनके व्यक्तिगत या पारिवारिक इतिहास में मेडुलरी थायरॉयड कैंसर या मल्टीपल एंडोक्राइन न्यूप्लेसिया टाइप 2 रहा हो।
नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ क्या है?
- फैटी लिवर डिज़ीज़: फैटी लिवर डिज़ीज़ (हेपेटिक स्टीएटोसिस) यकृत कोशिकाओं में अत्यधिक वसा के जमा होने की स्थिति है।
- यह स्थिति तब अस्वस्थ हो जाती है जब वसा यकृत कोशिकाओं (हेपाटोसाइट्स) के 5% से अधिक हो जाती है, जिससे यकृत की कार्यप्रणाली और चयापचय प्रभावित होते हैं।
- यह दो प्रकार का होता है — नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (NAFLD) और एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (AFLD)।
- नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (NAFLD) या मेटाबॉलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टीएटोटिक लिवर डिज़ीज़ (MASLD): मेटाबॉलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टीएटोटिक लिवर डिज़ीज़ (MASLD), जिसे पहले नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (NAFLD) के रूप में जाना जाता था, ऐसी स्थिति है जिसमें अत्यधिक एल्कोहल सेवन के बिना ही यकृत में वसा जमा हो जाती है, और समय के साथ यह गंभीर यकृत क्षति का कारण बन सकती है।
- भारत में इसकी प्रचलिता अनुमानतः 9% से 32% के बीच है।
- MASLD के 4 चरण:
- नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर (NAFL): इसमें यकृत (लिवर) में वसा जमा हो जाती है लेकिन इससे कोई नुकसान या सूजन नहीं होती। जिससे सामान्यतः बढ़े हुए यकृत के कारण हल्की असुविधा होती है।
- नॉन-अल्कोहोलिक स्टीटोहेपेटाइटिस (NASH) या मेटाबोलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टीटोहेपेटाइटिस (MASH): यह एक अधिक गंभीर अवस्था है, जिसमें यकृत में सूजन, ऊतक क्षति (फाइब्रोसिस/स्कैरिंग) होती है और यह हृदय व गुर्दे की समस्याओं से जुड़ी होती है। लगभग 25% मामलों में यह सिरोसिस या यकृत कैंसर तक बढ़ सकता है।
- फाइब्रोसिस: दीर्घकालिक सूजन के कारण यकृत में घाव बन जाते हैं, जिससे इसकी कार्य करने की क्षमता प्रभावित होती है।
- सिरोसिस: सबसे गंभीर अवस्था जिसमें यकृत पर स्थायी निशान पड़ जाते हैं, सिकुड़ जाता है और यकृत की विफलता या कैंसर की संभावना हो जाती है।
- अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज़ (AFLD): AFLD, जिसे ऐल्कोहॉलिक स्टीटोहेपेटाइटिस भी कहा जाता है, अत्यधिक अल्कोहल के सेवन (पुरुषों में ≥ 40 ग्राम/दिन, महिलाओं में ≥ 20 ग्राम/दिन) के कारण होता है, जिससे यकृत में वसा जमा होने लगती है।
- यकृत में अल्कोहल के चयापचय (मेटाबोलिज्म) से विषाक्त यौगिक बनते हैं जो यकृत की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं, सूजन को बढ़ाते हैं और शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर देते हैं।
- फैटी लिवर रोग का उपचार: प्राथमिक उपचार आहार, व्यायाम या दवा के माध्यम से वजन कम करना है।
- GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट: ये दवाएँ आंतों के हार्मोन को नियंत्रित करके भूख और वसा भंडारण को नियंत्रित करती हैं, जिससे वजन कम करने में सहायता मिलती है।
- रेस्मेटिरोम: यह थायरॉइड हार्मोन आधारित दवा है जो विशेष रूप से यकृत वसा को लक्षित करती है, हालाँकि यह महंगी है।
- FGF21 दवाएँ: ये दवाएँ वसा संचय को कम करने और चयापचय स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिये वसा ऊतकों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
- टिर्ज़ेपेटाइड: एक दोहरी क्रिया वाली दवा जो वजन घटाने में सहायता करती है, मधुमेह प्रबंधन में सहायता करती है और स्लीप एपनिया के उपचार में संभावित लाभ दर्शाती है।
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