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डेली न्यूज़

  • 31 Aug, 2022
  • 72 min read
सामाजिक न्याय

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु योजना

प्रिलिम्स के लिये:

विमुक्त,घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT), संबंधित आयोग और समितियाँ, विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिये विकास और कल्याण बोर्ड (DWBDNC),  DNT के लिये योजनाएँ।

मेन्स के लिये:

अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, भारत में गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों की स्थिति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, SEED (विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों के आर्थिक सशक्तीकरण की योजना) के तहत लाभ प्राप्त करने के लिये केवल 402 ऑनलाइन आवेदन प्राप्त हुए हैं।

  • सरकार के पास उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, 1400 समुदायों के 10 करोड़ जनसंख्या इन समूहों से संबंधित हैं।

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु योजना (SEED):

  • परिचय:
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा फरवरी 2022 में विमुक्त/घुमंतू/अर्द्ध-घुमंतू (SEED) समुदायों के आर्थिक सशक्तिकरण की योजना शुरू की गई थी।
    • इसका उद्देश्य इन छात्रों को मुफ्त प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग प्रदान करना, परिवारों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना, साथ ही आजीविका पहल के माध्यम से इन समुदायों के समूहों का उत्थान करना एवं आवास के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • घटक:
    • इन समुदायों के छात्रों को सिविल सेवा, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, MBA आदि जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये मुफ्त कोचिंग।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के प्रधानमंत्री आवास योजना (PMJAY) के माध्यम से स्वास्थ्य बीमा।
    • आय सृजन हेतु आजीविका
    • आवास (प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से)।
  • विशेषताएँ:

विमुक्त , घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ:

  • ये सबसे सुभेद्य और वंचित समुदाय हैंं।
  • विमुक्त ऐसे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम से शुरू होने वाली कानूनों की एक शृंखला के तहत 'जन्मजात अपराधी' के रूप में 'अधिसूचित' किया गया था।
    • इन अधिनियमों को स्वतंत्र भारत सरकार द्वारा वर्ष 1952 में निरस्त कर दिया गया और इन समुदायों को ‘विमुक्त’ कर दिया गया था।
  • इनमें से कुछ समुदाय जिन्हें विमुक्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, वे भी खानाबदोश थे।
    • खानाबदोश और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो हर समय एक ही स्थान पर रहने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
  • ऐतिहासिक रूप से घुमंतू और विमुक्त जनजातियों की कभी भी निजी भूमि या घर के स्वामित्व तक पहुँच नहीं थी।
  • जबकि अधिकांश विमुक्त समुदाय, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में वितरित हैं, वहीं कुछ विमुक्त समुदाय SC, ST या OBC श्रेणियों में से किसी में भी शामिल नहीं हैं।
  • आज़ादी के बाद से गठित कई आयोगों और समितियों ने इन समुदायों की समस्याओं का उल्लेख किया है।
    • इनमें संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में गठित आपराधिक जनजाति जाँच समिति, 1947 भी शामिल है।
    • वर्ष 1949 की अनंतशयनम् आयंगर समिति (इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम को निरस्त किया गया था)।
    • काका कालेलकर आयोग (जिसे पहला अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग भी कहा जाता है) का गठन वर्ष 1953 में किया गया था।
    • वर्ष 1980 में गठित मंडल आयोग ने भी इस मुद्दे पर कुछ सिफारिशें की थीं।
    • संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिये राष्ट्रीय आयोग (NCRWC), 2002 ने भी माना था कि विमुक्त समुदायों को अपराध प्रवण के रूप में गलत तरीके से कलंकित किया गया है और कानून-व्यवस्था एवं सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा शोषण के अधीन किया गया है।
      • NCRWC की स्थापना न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में हुई थी।
  • एक अनुमान के अनुसार, दक्षिण एशिया में विश्व की सबसे बड़ी यायावर/खानाबदोश आबादी (Nomadic Population) निवास करती है।
    • भारत में लगभग 10% आबादी विमुक्त और खानाबदोश है।
    • जबकि विमुक्त जनजातियों की संख्या लगभग 150 है, खानाबदोश जनजातियों की आबादी में लगभग 500 विभिन्न समुदाय शामिल हैं।

DNT के संबंध में विकासात्मक प्रयास :

  • पृष्ठभूमि:
    • तत्कालीन सरकार द्वारा वर्ष 2006 में विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिये एक राष्ट्रीय आयोग (De-notified, Nomadic and Semi-Nomadic Tribes- NCDNT) का गठन किया गया था।
      • इसकी अध्यक्षता बालकृष्ण सिदराम रेन्के (Balkrishna Sidram Renke) द्वारा की गयी  इस आयोग ने वर्ष 2008 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
      • आयोग के अनुसार “यह विडंबना है कि ये जनजातियाँ किसी तरह हमारे संविधान निर्माताओं के ध्यान से वंचित रही हैं।
      • वे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विपरीत संवैधानिकअधिकारों से वंचित हैं।
      • रेन्के आयोग ने वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर उनकी जनसंख्या लगभग 10.74 करोड़ होने का अनुमान लगाया था।
    • इदाते आयोग:
      • राष्ट्रीय आयोग का गठन वर्ष 2015 में श्री भीकू रामजी इदाते की अध्यक्षता में किया गया था।
      • इस आयोग को विभिन्न राज्यों में इन समुदायों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों में इन समुदायों की पहचान और उचित सूची बनाने का कार्य सौंपा गया था ताकि इन समुदायों के विकास हेतु एक व्यवस्थित दृष्टिकोण का विकास किया जा सके।
      • इस आयोग की सिफारिश के आधार पर, भारत सरकार ने वर्ष 2019 में विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिये विकास और कल्याण बोर्ड ( Development And Welfare Board For Denotified, Nomadic, And Semi-Nomadic Communities- DWBDNC) की स्थापना की।
  • DNT के लिये योजनाएँ:
    • DNT के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति:
      • यह केंद्रीय प्रायोजित योजना वर्ष 2014-15 में विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT) के उन छात्रों के कल्याण हेतु शुरू की गई थी, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं।
    • DNT बालकों और बालिकाओं हेतु छात्रावासों के निर्माण संबंधी नानाजी देशमुख योजना:
      • वर्ष 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना, राज्य सरकारों/ केंद्रशासित प्रदेशों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू की गई है।
    • वर्ष 2017-18 से "अन्य पिछड़े वर्गों (OBCs) के कल्याण के लिये काम कर रहे स्वैच्छिक संगठन को सहायता" योजना का विस्तार DNT के लिये भी किया गया।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

सामुदायिक वन संसाधन अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

सामुदायिक वन संसाधन, आरक्षित वन, संरक्षित वन, अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान।

मेन्स के लिये:

सामुदायिक वन संसाधन अधिकार और मान्यता का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

छत्तीसगढ़ के मुंगेली ज़िले के चार गाँवों के निवासियों को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) प्राप्त हुआ है।

  • धमतरी ज़िले में उदंती- सीतानदी टाइगर रिज़र्व के बाद अचानकमार CFRR प्राप्त करने वाला छत्तीसगढ़ का दूसरा बाघ अभयारण्य बन गया।

सामुदायिक वन संसाधन

  • सामुदायिक वन संसाधन (CFR) क्षेत्र सामान्य वन भूमि है जिसे किसी विशेष समुदाय द्वारा स्थायी उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से आरक्षित और संरक्षित किया गया है।
  • समुदाय द्वारा इसका उपयोग गाँव की पारंपरिक और प्रथागत सीमा के भीतर उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच एवं ग्रामीण समुदायों के मामले में परिदृश्य के मौसमी उपयोग के लिये किया जाता है।
  • प्रत्येक CRF क्षेत्र में समुदाय और उसके पड़ोसी गांँवों द्वारा मान्यता प्राप्त पहचान योग्य स्थलों की एक प्रथागत सीमा होती है।
  • इसमें किसी भी श्रेणी के वन - राजस्व वन, वर्गीकृत और अवर्गीकृत वन, डीम्ड वन, ज़िला समिति भूमि (DLC), आरक्षित वन, संरक्षित वन, अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान आदि शामिल हो सकते हैं।

सामुदायिक वन संसाधन अधिकार:

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (आमतौर पर वन अधिकार अधिनियम या FRA के रूप में संदर्भित), 2006 की धारा 3 (1)(i) के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार सामुदायिक वन संसाधनों को "संरक्षण, पुन: उत्पन्न या संरक्षित या प्रबंधित" करने के अधिकार की मान्यता प्रदान करते हैं।
  • ये अधिकार समुदाय को वनों के उपयोग के लिये स्वयं और दूसरों के लिये नियम बनाने की अनुमति देते हैं तथा इस तरह FRA की धारा 5 के तहत अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं।
  • CFR अधिकार, धारा 3 (1)(b) और 3(1)(c) के तहत सामुदायिक अधिकारों (CR) के साथ, जिसमें निस्तार अधिकार (रियासतों या ज़मींदारी आदि में पूर्व उपयोग किये जाने वाले) और गैर-लकड़ी वन उत्पादों पर अधिकार शामिल हैं, समुदाय की स्थायी आजीविका सुनिश्चित करते हैं।
  • एक बार जब CFRR को किसी समुदाय के लिये मान्यता दी जाती है, तो वन का स्वामित्त्व वन विभाग के बजाय ग्राम सभा केनियंत्रण में आ जाता है।
  • प्रभावी रूप से ग्राम सभा वनों के प्रबंधन के लिये नोडल निकाय बन जाती है।
  • ये अधिकार ग्राम सभा को सामुदायिक वन संसाधन सीमा के भीतर वन संरक्षण और प्रबंधन की स्थानीय पारंपरिक प्रथाओं को अपनाने का अधिकार देते हैं।
  • छत्तीसगढ़ दूसरा राज्य है जिसने राष्ट्रीय उद्यान यानी कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर CFRR अधिकारों को मान्यता दी है।
  • वर्ष 2016 में ओडिशा सरकार ने सर्वप्रथम, सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान के अंदर सामुदायिक वन संसाधनों (CFR) को मान्यता प्रदान की थी।

सामुदायिक वन संसाधनों (CFR) का महत्त्व:

  • वनों पर इन समुदायों के प्रथागत अधिकारों में कटौती के कारण वन-आश्रित समुदायों के साथ हुए "ऐतिहासिक अन्याय" की भूल को सुधारने के उद्देश्य से वर्ष 2008 में वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act-FRA) में लागू हुआ।
  • यह समुदाय के कानूनी रूप से वन भूमि को धारण करने विशेष रूप से जिसे इन समुदायों ने खेती और निवास के लिये उपयोग किया है, वन संसाधनों के उपयोग, प्रबंधन तथा संरक्षण के अधिकार को मान्यता प्रदान करता है।
  • यह वनों की स्थिरता और जैव विविधता के संरक्षण में वनवासियों की अभिन्न भूमिका को भी रेखांकित करता है।
  • राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और बाघ अभयारण्यों जैसे संरक्षित वनों के अंदर इसका अधिक महत्त्व है क्योंकि पारंपरिक निवासी अपने ज्ञान का उपयोग कर संरक्षित वनों के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर कौन-सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (2021)

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय मामलों के मंत्रालय

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, जिसे वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के रूप में भी जाना जाता है, वन संसाधनों में रहने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देता है।
  • अधिनियम में खेती और निवास जो आमतौर पर व्यक्तिगत अधिकारों के रूप में होते हैं; और सामुदायिक अधिकार जैसे चराई, मछली पकड़ना एवं जंगलों में जल निकायों तक पहुँच, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) के लिये आवास अधिकार आदि के अधिकार शामिल हैं।
  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और निपटान अधिनियम, 2013 में उचित मुआवज़े और पारदर्शिता के अधिकार के संयोजन के साथ, FRA आदिवासी आबादी को पुनर्वास और उनके लिये उचित बंदोबस्त के बिना बेदखली से रक्षा करता है।
  • जनजातीय मामलों के मंत्रालय के तहत अधिनियम के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों के अनुसार विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं को लागू किया जाता है।
  • अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मोबाइल बैंकिंग को साइबर खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल भुगतान, साइबर सुरक्षा खतरा, कंप्यूटर वायरस, डेटा उल्लंघन, डिनायल ऑफ़ सर्विस (Denial of Service- DoS), ट्रोजन, मैलवेयर।

मेन्स के लिये:

साइबर हमले और उसके प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन के अनुसार बड़ी संख्या में लोग डिजिटल रूप में भुगतान कर रहे हैं इसी क्रम में स्मार्टफोन के माध्यम से उनके बैंक या बैंक खातों के मध्य अंतःक्रिया (Interactions) में वृद्धि हुई है।

  • डिजिटल भुगतान में वृद्धि, मोबाइल उपकरणों पर साइबर हमलों के खतरे के बढ़ने की आशंका को भी जन्म देता है।

साइबर खतरे:

  • परिचय:
    • साइबर या साइबर सुरक्षा खतरा एक दुर्भावनापूर्ण कार्य है जो डेटा को व्यक्तिगत डेटा के साथ छेड़छाड़ करता है, उसकी चोरी करता है या सामान्य रूप से डिजिटल प्रक्रिया को बाधित कने का प्रयास करता है। इसमें कंप्यूटर वायरस, डेटा ब्रीच, डिनायल ऑफ सर्विस (DoS) अटैक और अन्य कारक शामिल हैं।
  • विभिन्न प्रकार:
    • मैलवेयर: दुर्भावनापूर्ण सॉफ़्टवेयर के लिये प्रयोग किया जाने वाला संक्षिप्त शब्द ‘मैलवेयर’ किसी भी प्रकार के सॉफ्टवेयर को संदर्भित करता है जिसे किसी एकल कंप्यूटर, सर्वर या कंप्यूटर नेटवर्क को हानि पहुँचाने के लिये डिज़ाइन किया गया है। रैंसमवेयर, स्पाई वेयर, वर्म्स, वायरस और ट्रोजन मैलवेयर का प्रमुख प्रकार हैं।
    • फिशिंग: यह भ्रामक ई-मेल और वेबसाइटों का उपयोग करके व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करने का का एक तरीका है।
    • डिनायल ऑफ सर्विस अटैक: एक डिनायल-ऑफ-सर्विस (DoS) अटैक एक मशीन या नेटवर्क को बंद करने के लिये किया जाने वाला अटैक है, जिससे इच्छित उपयोगकर्त्ताओं के लिये उस सेवा तक पहुँच बाधित हो जाती है। DoS हमले लक्षित सेवा पर नेटवर्क/सर्वर ट्रैफिक को दिखाकर या प्रेरित करने वाली जानकारी भेजकर किये जाते हैं।
    • मैन-इन-द-मिडिल (Man-in-the-middle-MitM) अटैक, जिसे ईव्सड्रॉपिंग अटैक के रूप में भी जाना जाता है, ऐसा तब होता हैं जब हमलावर खुद को दो-पक्षीय लेनदेन में सम्मिलित करते हैं इस क्रम में जब हमलावर नेटवर्क/सर्वर में बाधा डालते हैं, इसी दौरान वे डेटा को फिल्टर और उसकी चोरी कर सकते हैं।
    • सोशल इंजीनियरिंग एक ऐसा हमला है जो आम तौर पर संरक्षित संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने के लिये उपयोगकर्त्ताओं की सुरक्षा प्रक्रियाओं को तोड़ने के लिये अप्रत्यक्ष रूप से मानव संपर्क पर निर्भर करता है।

मोबाइल बैंकिंग पर साइबर खतरों से संबंधित मुद्दे:

  • साइबर हमलों में वृद्धि:
    • साइबर सुरक्षा फर्म कास्परस्की (Kaspersky) का एक अध्ययन एशिया प्रशांत क्षेत्र में एंड्रॉयड और iOS उपकरणों पर साइबर हमले में वृद्धि की चेतावनी देता है, क्योंकि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं का उपयोग करते हैं।
    • ट्रोजन और मैलवेयर का उपयोग:
      • कास्परस्की के अनुसार, मोबाइल बैंकिंग ट्रोजन खतरनाक मैलवेयर हैं जो लोगों को मैलवेयर इंस्टॉल करने के लिये लुभाते हैं तथा एप्लीकेशन को वैध ऐप के रूप में दिखाकर इसके द्वारा मोबाइल उपयोगकर्त्ताओं के बैंक खातों से पैसे चुराये जा सकते हैं।
      • उदाहरण के लिये मोबाइल बैंकिंग ट्रोजन, जिसे एनबीस (Anubis) कहा जाता है, वर्ष 2017 से उपयोगकर्त्ताओं को लक्षित कर रहा है।
        • इसने रूस, तुर्की, भारत, चीन, कोलंबिया, फ्राँस, जर्मनी, अमेरिका, डेनमार्क और वियतनाम में उपयोगकर्त्ताओं को प्रभावित किया है।
    • क्रियाविधि:
      • अपराधी गूगल प्ले पर वैध दिखने वाले और उच्च-रैंकिंग वाले दुर्भावनापूर्ण ऐप्स, स्मिशिंग (एसएमएस के माध्यम से भेजे गए फिशिंग संदेश) एवं एक अन्य मोबाइल बैंकिंग ट्रोजन बियानलियन मैलवेयर के माध्यम से डिवाइस को प्रभावित कर सकते हैं।
        • रोमिंग मेंटिस (Roaming Mantis) मोबाइल बैंकिंग उपयोगकर्त्ताओं को लक्षित करने वाला एक अन्य मैलवेयर है।
          • यह एंड्रॉयड उपकरणों पर हमला करता है और स्मिशिंग के माध्यम से डोमेन नेम सिस्टम (Domain Name Systems-DNS) को दुर्भावनापूर्ण कोड प्रसारित है।
  • पारस्परिकता (Interoperability) का मुद्दा:
    • चूंकि गूगल पे, पेटीएम, फोन पे, स्क्वायर, पेपैल और अली पे जैसे विभिन्न भुगतान प्लेटफार्मों ने मोबाइल बैंकिंग को अपनाकर उपभोक्ता के बैंकिंग व्यवहार में बदलाव लाया है।
      • परिणामस्वरूप, उन्होंने अपने लाभ के लिये भुगतान विधि को स्थायी रूप से बदल दिया है।
    • क्लोज्ड लूप पेमेंट सिस्टम (Closed Loop Payment System-CLPS):
      • ये प्लेटफ़ॉर्म एक क्लोज्ड लूप पेमेंट सिस्टम के आधार पर कार्य कर रहे हैं, जहाँ एक गूगल पे उपयोगकर्त्ता भुगतान प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से दूसरे बैंक खाते में पैसा भेज सकता है।
        • इसका संचालन वीज़ा और मास्टरकार्ड के संचालन के समान हैं क्योंकि वे भुगतान लेनदेन को केवल अपने नेटवर्क में ही संचालित करतें हैंं।
    • व्यापार मॉडल में परिवर्तन:
      • यह आंशिक रूप से नियामकों द्वारा संचालित होता है जो खुले, मानकीकृत प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं, ये मंच बाधाओं को कम करते हैं।
      • कुछ देश पहले से ही भुगतान मंच प्रदाताओं को अपने व्यवसाय मॉडल बदलने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं।
        • उदाहरण के लिये, चीन ने अपनी इंटरनेट कंपनियों को अपनी प्रतिद्वंद्वी फर्मों को अपने प्लेटफॉर्म/मंच पर लिंक और भुगतान सेवाओं की पेशकश करने का आदेश दिया है।
        • भारत में सभी लाइसेंस प्राप्त मोबाइल भुगतान प्लेटफॉर्म वॉलेट के बीच अंतर-संचालन प्रदान करने में सक्षम एक नए कानून की आवश्यकता है।
      • नियामकों द्वारा भुगतान प्लेटफॉर्म को अंतर-संचालन को बढ़ावा ऐसे समय में दिया जा रहा है जब तकनीकी विशेषज्ञों की मांग बैंकिंग उद्योग में गंभीर चिंता का विषय है।
  • सुरक्षा विशेषज्ञों की कमी:
    • अपनी डिजिटल आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये बैंकों द्वारा आवश्यक प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, डेटा और सुरक्षा विशेषज्ञों की कमी को छिपाया जाता हैं।
  • पर्याप्त साइबर सुरक्षा नीति का अभाव:
    • पर्याप्त साइबर सुरक्षा की कमी और बैंकिंग में प्रतिभा की कमी संभावित रूप से उपयोगकर्त्ता उपकरणों पर साइबर हमलों में और वृद्धि का कारण बन सकती है।
      • जब तक इस समस्या का समाधान नहीं किया जाता है, तब तक भुगतान करने के लिये मोबाइल डिवाइस का उपयोग करते समय सतर्क रहने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • फोन को अप-टू-डेट रखने और नियमित रूप से रीबूट करने जैसी डिजिटल तरीकों का उपयोग किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, उपभोक्ता यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे अपने फोन का उपयोग बैंकिंग के लिये तभी करें जब डिवाइस सुरक्षित VPN से जुड़ा हो (VPN "वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क" को संदर्भित करता है और सार्वजनिक नेटवर्क का उपयोग करते समय संरक्षित नेटवर्क कनेक्शन स्थापित करने के अवसर प्रदान करता है) और iOS 16 उपयोगकर्त्ता लॉकडाउन मोड को चालू कर सकते हैं क्योंकि यह डिवाइस की कार्यक्षमता को सीमित करता है एवं इसे किसी भी संभावित मैलवेयर से बचाता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रीलिम्स

प्रश्न. हाल ही में कभी-कभी समाचारों में आने वाले शब्द 'वानाक्राई, पेट्या और इंटर्नलब्लू' निम्नलिखित में से किससे संबंधित हैं (2018)

(a) एक्सोप्लैनेट
(b) क्रिप्टोकरेंसी
(c) साइबर हमले
(d) मिनी उपग्रह

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • रैंसमवेयर दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर (या मैलवेयर) का एक रूप है। एक बार जब यह कंप्यूटर में प्रवेश कर लेता है, तो यह आमतौर पर डेटा तक पहुँच कर उपयोगकर्त्ताओं को नुकसान पहुँचाता है। भुगतान करने पर डेटा तक पहुँच बहाल करने का वादा करते हुए हमलावर पीड़ित से फिरौती की मांग करते है।
  • 'वानाक्राई, पेट्या और इंटर्नलब्लू' कुछ रैनसम वेयर हैं, जिन्होंने बिटकॉइन (क्रिप्टोकरेंसी) में फिरौती के भुगतान की मांग की थी। अतः विकल्प (c) सही है।

मैन्स

प्रश्न. साइबर हमले के संभावित खतरों की एवं इसे रोकने के लिये सुरक्षा ढाँचे की विवेचना कीजिये। (मेन्स-2017)

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

विष्णुगढ़ पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

विष्णुगढ़ पीपलकोटी जल विद्युत परियोजन, अलकनंदा नदी, गंगा, उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजन, जलवायु परिवर्तन।

मेन्स के लिये:

हिमालय में जलविद्युत परियोजनाओं के लिये चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक उत्तराखंड में अलकनंदा नदी पर निर्माणाधीन विष्णुगढ़ पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना (Vishnugad Pipalkoti Hydro Electric Project-VPHEP) से पर्यावरणीय क्षति की जाँच करने के लिये सहमत हो गया है।

  • पैनल ने 83 स्थानीय समुदायों की शिकायतों को स्वीकार करने के बाद जाँच के अनुरोध पर विचार किया है।

अलकनंदा नदी

  • यह गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है।
  • इसका उद्गम उत्तराखंड के संतोपंथ ग्लेशियर से होता है।
  • यह देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती है जिसके बाद इसे गंगा कहा जाता है।
  • इसकी मुख्य सहायक नदियाँ मंदाकिनी, नंदाकिनी और पिंडार नदियाँ हैं।
  • अलकनंदा प्रणाली चमोली, टिहरी और पौड़ी ज़िलों के कुछ हिस्सों तक विस्तृत है।
  • बद्रीनाथ का हिंदू तीर्थस्थल और प्राकृतिक झरना तप्त कुंड अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।
  • इसके मूल में सतोपंथ झील त्रिकोणीय झील है जो 4402 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसका नाम हिंदू त्रिमूर्ति भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के नाम पर रखा गया है।
  • पंच प्रयाग: उत्तराखंड में पाँच स्थल जहाँ पाँच नदियाँ अलकनंदा नदी में विलीन हो जाती हैं, अंततः पवित्र नदी गंगा को पंच प्रयाग कहा जाता है (हिंदी में, 'पंच' का अर्थ पाँच और 'प्रयाग' का अर्थ संगम होता है)।
    • सबसे पहले, अलकनंदा विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा नदी से मिलती है, वहीं नंदाकिनी नदी से नंदप्रयाग और फिर पिंडर नदी से कर्णप्रयाग में मिलती हैं। यह रुद्रप्रयाग में नंदाकिनी नदी के साथ मिलती है तथा देवप्रयाग पर अंतिम रूप से भागीरथी नदी में मिल जाती है।

uttarakhand

शिकायतें:

  • परियोजना से हाट गाँव में प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर को नष्ट हो जाएगा।
    • मंदिर स्थानीय लोगों के लिये एक सांस्कृतिक स्रोत संसाधन है और उनकी आजीविका का साधन है।
  • ग्रामीणों ने दावा किया कि बाँध से मलबा गिरने से मंदिर की दीवारों की वास्तुकला को खतरा है, जो एक प्राचीन विरासत स्थल है।
    • स्थानीय लोगों ने लक्ष्मी नारायण मंदिर के साथ एक पवित्र बंधन होने का दावा किया, जिसे कथित तौर पर 19 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था।
  • निवासियों को उनके गांँव से जबरन विस्थापित किया जा रहा है।
    • कुछ स्थानीय लोग जिन्होंने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया और दूसरी जगह चले गए, उन्हें उनके घरों से हटा दिया गया, जबकि कुछ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
  • परियोजना में जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं के कारण होने वाली आपदाओं को भी ध्यान में नहीं रखा है।
  • वर्ष 2013 में केदारनाथ में बादल फटने और वर्ष 2021 की चमोली आपदा को भी नजरअंदाज कर दिया गया था।

VPHEP:

  • 444-मेगावाट VPHEP का निर्माण टिहरी हाइड्रोपावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा किया जा रहा है, जो आंशिक रूप से केंद्र के स्वामित्त्व वाला उद्यम है।
  • परियोजना मुख्य रूप से विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित है और वर्ष 2011 में स्वीकृत की गई थी
  • जलविद्युत परियोजना को 922 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से 30 जून, 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • परियोजना उत्तराखंड के चमोली जिले के हेलंग गांँव के पास अलकनंदा नदी में एक छोटा जलाशय बनाने के लिये 65 मीटर का डायवर्जन बाँध बनाएगी।

उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाएँ:

  • टिहरी चरण 2: भागीरथी नदी पर 1000 मेगावाट
  • तपोवन विष्णुगढ़: धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट
  • विष्णुगढ़ पीपलकोटी: अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट
  • सिंगोली भटवारी: मंदाकिनी नदी पर 99 मेगावाट
  • फटा भुयांग: मंदाकिनी नदी पर 76 मेगावाट
  • मध्यमहेश्वर: मध्यमहेश्वर गंगा पर 15 मेगावाट
  • कालीगंगा 2: कालीगंगा नदी पर 6 मेगावाट

हिमालय में जलविद्युत परियोजनाओं के विकास में विद्यमान चुनौतियाँ:

  • स्थिरता में कमी:
    • ग्लेशियरों के अपने स्थान से खिसकने तथा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पर्वतीय ढलानों की स्थिरता में कमी आने और ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं उनके क्षेत्रफल में वृद्धि होने का अनुमान लगाया है।
      • पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से वातावरण में शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन उत्पन्न होती है, जो ग्लोबल वार्मिंग को और अधिक बढ़ा देती है।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन ने मौसम के अनिश्चित पैटर्न से बर्फबारी और वर्षा में वृद्धि हुई है।
    • बर्फ का थर्मल प्रोफाइल (Thermal Profile) बढ़ रहा है, जिसका अर्थ है कि बर्फ का तापमान जो -6 से -20C० तक होता था, अब यह घटकर -2C० हो गया है, अर्थात् अब -2C० के तापमान पर बर्फ पिघलने की प्रवृत्ति बढ़ गई ।
  • आपदाओं की बारंबारता में वृद्धि:
    • बादलों के फटने की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है तथा तीव्र वर्षा और हिमस्खलन के साथ इस क्षेत्र के निवासियों के जीवन और आजीविका की हानि का जोखिम बढ़ गया है।

आगे की राह:

  • यह अनुशंसा की जाती है कि हिमालयी क्षेत्र में 2,200 मीटर की ऊँचाई से अधिक किसी भी प्रकार के जलविद्युत परियोजना का विकास नहीं किया जाना चाहिये।
  • जनसंख्या वृद्धि और आवश्यक औद्योगिक और बुनियादी ढाँचे के विकास को ध्यान में रखते हुए, सरकार को जलविद्युत के विकास के संबंध में गंभीर कदम उठाना चाहिये जो अर्थव्यवस्था के सतत् विकास के लिये आवश्यक है, परंतु इस विकास क्रम में पर्यावर्णीय मुद्दों का समाधान भी निहित होना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. टिहरी जलविद्युत परिसर निम्नलिखित में से किस नदी पर स्थित है? (2008)

(a) अलकनंदा
(b) भागीरथी
(c) धौलीगंगा
(d) मंदाकिनी

उत्तर: (b)


प्रश्न. तपोवन और विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजनाएँ कहाँ स्थित हैं? (2008)

(a) मध्य प्रदेश
(b) उत्तर प्रदेश
(c) उत्तराखंड
(d) राजस्थान

उत्तर: (c)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत के कोयला क्षेत्र की हरित पहल

प्रिलिम्स के लिये:

शुद्ध शून्य उत्सर्जन, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), पेरिस समझौता, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन योजना, वाहन स्क्रैपिंग नीति, वैश्विक EV30@30 अभियान, UNFCCC COP26, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन, प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT)।

मेन्स के लिये:

भारत के कोयला क्षेत्र की हरित पहल, भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को प्राप्त करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए आवश्यक कदम।

चर्चा में क्यों?

कोयला मंत्रालय ने कोयला कंपनियों के लिये वर्ष 2022-23 के दौरान कोयला क्षेत्रों में और इसके आसपास के क्षेत्रों में 2400 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को हरित आवरण (ग्रीन कवर) के तहत लाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।

  • वर्ष 2022-23 में 50 लाख से अधिक पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है।

हरित पहल

  • चिह्नित क्षेत्र:
    • चिह्नित क्षेत्रों में कोयला कंपनियों के पुनः प्राप्त खनन क्षेत्र और राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा उपलब्ध कराये गये पट्टेदार से बाहर के क्षेत्र शामिल हैं।
  • उपलब्धि:
    • अब तक कोयला खनन क्षेत्रों में हरित अभियान व्यापक है और 15 अगस्त, 2022 तक लगभग 1000 हेक्टेयर भूमि को ब्लॉक पौधरोपण, एवेन्यू पौधरोपण, घास के मैदान निर्माण, बाँस वृक्षारोपण और उच्च तकनीक खेती के माध्यम से कवर किया जा चुका है।
    • उदाहरण: तमिलनाडु में NLCIL के खदान-1 भूमि-सुधार क्षेत्र में धान के खेत और नारियल का बागान एवं मध्य प्रदेश के सिंगरौली में NCL के निगाही क्षेत्र में बायो-रिक्लेमेशन (निम्नीकृत मृदा को उत्पादक भूमि में परिवर्तित करना)।
  • महत्त्व:
    • वनरोपण मानवजनित गतिविधियों से क्षतिग्रस्त भूमि को फिर से उपयुक्त बनाने का एक प्रामाणिक तरीका है और यह खनन कार्य समाप्त हो चुके क्षेत्र के संतोषजनक पुनर्वास को प्राप्त करने के लिये आवश्यक है।
    • कोयला क्षेत्र की हरित पहल वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बराबर अतिरिक्त कार्बन संचय करने के लिये भारत की राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) की प्रतिबद्धता का समर्थन करती है।
    • हरित पहल कोयला खनन के असर को कम करने में मदद करता है, मृदा के कटाव को रोकता है, जलवायु को स्थिर करता है, वन्य जीवन को संरक्षित करता है और वायु एवं जल की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
      • वैश्विक स्तर पर, यह कार्बन की मात्रा में कमी लाने के माध्यम से जलवायु परिवर्तन की गति को कम करता है और इसके परिणामस्वरूप क्षेत्र का आर्थिक विकास भी होता है।
    • भारतीय कोयला उद्योग का लक्ष्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की मांग को पूरा करने के लिये कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित करना और पर्यावरण पर खनन के प्रभाव को कम करते हुए स्थानीय निवासियों के लिये जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।

भारत के संशोधित NDC

  • परिचय:
    • उत्सर्जन तीव्रता:
      • भारत अब वर्ष 2005 के स्तर से सकल घरेलू उत्पाद (GDP की प्रति इकाई उत्सर्जन) की उत्सर्जन तीव्रता में कम-से-कम 45% की कमी करने के लिये प्रतिबद्ध है।
      • मौजूदा लक्ष्य के तहत 33% – 35% की कमी करना था।
    • विद्युत उत्पादन:
      • भारत यह सुनिश्चित करने का भी प्रयास कर रहा है कि वर्ष 2030 में स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का कम से कम 50% गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों पर आधारित हो।
        • यह वर्तमान के 40% लक्ष्य से अधिक है।
  • अन्य NDC:
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाना।
    • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करना।
    • वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करना।

india-s-climate-targets

जलवायु परिवर्तन की दिशा में भारत की पहल:

  • परिवहन क्षेत्र में सुधार:
  • इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास हेतु भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
  • सरकारी योजनाओं की भूमिका:
  • निम्न-कार्बन संक्रमण में उद्योगों की भूमिका:
    • भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र पहले से ही जलवायु चुनौती को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, ग्राहकों और निवेशकों की बढ़ती जागरूकता के साथ-साथ नियामक और प्रकटीकरण आवश्यकताओं को बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।
  • हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन:
    • हरित ऊर्जा संसाधनों के माध्यम से हाइड्रोजन के उत्पादन पर ध्यान देना।
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Achieve and Trade-PAT):
    • PAT ऊर्जा गहन उद्योगों की ऊर्जा दक्षता में सुधार हेतु लागत प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये एक बाज़ार आधारित तंत्र है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2017 में लागू हुआ था।
  2. समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2Cº या 1.5Cº से अधिक न हो।
  3. विकसित देशों ने ग्लोबल वार्मिंग में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने हेतु वर्ष 2020 से सालाना 1000 अरब डॉलर की मदद के लिये प्रतिबद्ध हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: b

व्याख्या:

  • पेरिस समझौते को दिसंबर 2015 में पेरिस, फ्राँस में COP21 में पार्टियों के सम्मेलन (COP) द्वारा संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के माध्यम से अपनाया गया था।
  • समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2C० या 1.5C० से अधिक न हो। अत: कथन 2 सही है।
  • पेरिस समझौता 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ, जिसमें वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को अनुमानित 55% तक कम करने के लिये अभिसमय हेतु कम-से-कम 55 पार्टियों ने अनुसमर्थन, , अनुमोदन या परिग्रहण स्वीकृति प्रदान की थी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त समझौते का उद्देश्य अपने स्वयं के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये देशों की क्षमता को मज़बूत करना है।
  • पेरिस समझौते के लिये सभी पक्षों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के माध्यम से अपने सर्वोत्तम प्रयासों को आगे बढ़ाने और आने वाले वर्षों में इन प्रयासों को मज़बूत करने की आवश्यकता है। इसमें यह भी शामिल है कि सभी पक्ष अपने उत्सर्जन और उनके कार्यान्वयन प्रयासों पर नियमित रूप से रिपोर्ट करें।
  • समझौते के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करने और पार्टियों द्वारा आगे की व्यक्तिगत कार्रवाइयों को सूचित करने के लिये प्रत्येक 5 साल में एक वैश्विक समालोचना भी होगा।
  • वर्ष 2010 में कानकुन समझौतों के माध्यम से विकसित देशों को विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष संयुक्त रूप से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के लक्ष्य हेतु प्रतिबद्ध किया।
  • इसके अलावा वे इस बात पर भी सहमत हुए कि वर्ष 2025 से पहले पेरिस समझौते के लिये पार्टियों की बैठक के रूप में सेवारत पार्टियों का सम्मेलन प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से एक नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य निर्धारित करेगा। अत: कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

सहकर्मियों का दबाव

मेन्स के लिये:

समाज के विभिन्न वर्गों पर सहकर्मियों के दबाव का प्रभाव

सहकर्मियों के दबाव का तात्पर्य:

  • परिचय:
    • सहकर्मी दबाव वह प्रक्रिया है जिसमें एक ही समूह के व्यक्ति, समूह में दूसरों को ऐसे व्यवहार या गतिविधि में शामिल होने के लिये प्रभावित करते हैं जिसमें वे अन्यथा संलग्न नहीं हो सकते हैं।
      • एक सहकर्मी कोई भी व्यक्ति हो सकता है जो आपके समान सामाजिक समूहों या मंडलियों से संबंधित हो और जिसका आप पर किसी प्रकार का प्रभाव हो।
    • सहकर्मी दबाव या प्रभाव तब होता है जब कोई व्यक्ति ऐसा कुछ करता है, जिसके माध्यम से वह अपने सहकर्मियों के मध्य या किसी समूह में अपनी प्रतिष्ठा अथवा स्वीकृति बढ़ाना चाहता है।
    • सहकर्मी प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है।
    • सहकर्मीयों के प्रभाव का अच्छी तरह से सामना करने का अर्थ है अपने होने और अपने समूह के साथ तालमेल बिठाने के बीच सही संतुलन बनाना।
  • प्रभाव:
    • सकारात्मक:
      • सकारात्मक सहकर्मी प्रभाव उन साथियों को संदर्भित कर सकते हैं जो रचनात्मक परिणामों को प्रेरित करते हैं, नैतिक समर्थन प्रदान करते हैं, हमें जीवन में अच्छा करने के लिये प्रेरित करते हैं, पढ़ने या पाठ्येतर गतिविधियों में रुचि को प्रोत्साहित करते हैं, हमेशा हमें कुछ नया सिखाते हैं और सबसे बढ़कर, हमारी सीमाओं का सम्मान करते हैं
    • नकारात्मक:
      • सहकर्मी दबाव के इस रूप में किसी की पसंद या मूल्यों का उपहास करना, उन्हें अपने सिद्धांतों के विरुद्ध काम करने के लिये मज़बूर करना, बुरी आदतों या यहाँ तक कि अप्रिय कृत्यों जैसे चोरी करना, धोखा देना, शराब और ड्रग्स में लिप्त होना, कक्षाएँ छोड़ना,अनुचित गतिविधियों के लिये इंटरनेट का उपयोग करना या अन्य जोखिम भरा व्यवहार शामिल हो सकता है। ।
  • कारण:
    • समूह में शामिल होने के लिये।
    • अस्वीकृति से बचने और सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करने के लिये।
    • हार्मोनल विसंगतियाँ।
    • व्यक्तिगत/सामाजिक भ्रम और/अथवा चिंता।
    • पारिवारिक देखभाल में संरचनागत कमी।

सहकर्मी दबाव का युवाओं पर प्रभाव:

  • एक युवा व्यक्ति का अकादमिक प्रदर्शन, शैक्षिक विकल्प और कॅरियर (कोई अपने सपनों के कॅरियर को छोड़ सकता है और उसके दोस्त जो कर रहे हैं उसका अनुसरण कर सकता है), एकाग्रता का स्तर, और समग्र व्यक्तित्व और व्यवहार साथियों के दबाव के कारण बदल सकता है।
  • ये सभी नकारात्मक प्राथमिक (Peer) प्रभावों के संचयी प्रभाव के अलावा हैं।
  • विकासवादी सिद्धांतकार एरिक एरिकसन के अनुसार, "जब साथियों के बीच समानता होती है, तो यह हमें सुरक्षा की भावना प्रदान करता है," जो पहचान बनाम पहचान भ्रम के संकट (Crisis of Identity vs Identity Confusion) का कारण बनता है।
  • युवा अपने दोस्तों के लिये अपनी सोच, अभिवक्ति , ड्रेसिंग, व्यवहार और अन्य विकल्पों को संशोधित करते हैं। अपने व्यक्तित्त्व को बेहतर के बजाय, वे किसी और की तरह बनने की कोशिश करते हैं।
  • वे यह समझने में विफल रहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है और किसी और का अनुकरण करने का प्रयास कम आत्म-सम्मान प्रकट कर सकता है।

आगे की राह

  • इस तथ्य को स्वीकार करना कि प्रत्येक बच्चा अद्वितीय है:
    • सबसे पहले हमें इस तथ्य को समझने की ज़रूरत है कि साथियों का दबाव बाहरी कारक नहीं है।
    • यह हमारे आत्म-सम्मान की कमी के कारण हमारे मस्तिष्क द्वारा निर्मित एक डर है, जिसे अगर महसूस किया जाए तो हमें यह सोचने की अनुमति नहीं होगी कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचेंगे।
    • माता-पिता को इस तथ्य को स्वीकार करने की आवश्यकता है कि प्रत्येक बच्चा अद्वितीय है और यहाँ वे उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये नहीं है।
      • उन्हें बच्चे के व्यक्तित्त्व का पोषण करने की आवश्यकता है। तभी आने वाली पीढ़ियाँ साथियों के दबाव से मुक्त होंगी।
  • गलत संगत से दूरी:
    • खतरनाक व्यवहार को प्रोत्साहित करने वाले साथियों से दूर रहना सबसे अच्छा है। इसके बजाय, उन बच्चों के साथ समय बिताना समझदारी है जो साथियों के दबाव का विरोध करते हैं या अवांछित गतिविधियों में लिप्त होने से इनकार करते हैं।
    • ऐसे मित्र खोजें जो एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करते हों और उन मित्रों से दूर रहना अच्छा है जो एक बुरे प्रभाव वाले हैं।
  • दृढ़ बनना:
    • व्यक्ति को पता होना चाहिये कि जब कुछ अनुचित हो, या जब वह असहज या असुरक्षित महसूस करे तो 'नहीं' कैसे कहें।
    • बड़ों के साथ इस बारे में बात करना जिस पर माता-पिता शिक्षक या स्कूल काउंसलर की तरह भरोसा किया जा सकता है, मददगार हो सकता है।
    • इसलिये खुले और ईमानदार संचार को प्रोत्साहित करना अनिवार्य है।
      • इस तरह बच्चों को चर्चा करने और यह बताने में आसानी होगी कि चीजें बहुत दूर जाने से वे कैसा महसूस करते हैं।
    • साथ ही माता-पिता को अपने बच्चों को मुखर होना और किसी भी अनुचित परिस्थिति का विरोध करना सिखाना चाहिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. जीवन, कार्य, अन्य व्यक्तियों एवं समाज के प्रति हमारी अभिवृतियाँ आमतौर पर अनजाने में परिवार एवं उस सामाजिक परिवेश के द्वारा रुपित हो जाती हैं, जिसमें हम बड़े होते हैं। अनजाने में नागरिकों के लिये अवांछनीय होते हैं। (मेन्स-2016)

(a) आज के शिक्षित भारतीयों में विद्यमान ऐसे अवांछनीय मूल्यों की विवेचना कीजिये।
(b) ऐसी अवांछनीय अभिवृत्तियों को कैसे बदला जा सकता है तथा लोक सेवाओं के लिए आवश्यक समझे जाने वाले सामाजिक-नैतिक मूल्यों को आकांक्षी तथा कार्यरत लोक सेवकों में किस प्रकार संवर्धित किया जा सकता है?

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

यूनिफॉर्म बोर्ड परीक्षाओं हेतु नियामक

प्रिलिम्स के लिये:

‘परख’ (Performance Assessment, Review, and Analysis of Knowledge for Holistic Development- PARAKH), NCERT, राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र (NAS), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020।

मेन्स के लिये:

एकल नियामक परख का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर छात्रों के आकलन हेतु एक बेंचमार्क ढाँचा तैयार करने हेतु एक राष्ट्रीय नियामक प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा और समग्र विकास के लिये ज्ञान का विश्लेषण(PAREKH) स्थापित करने की योजना बना रही है।

परख:

  • परिचय:
    • यह एक प्रस्तावित नियामक है जो NCERT की एक घटक इकाई के रूप में कार्य करेगा और इसे राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) और राज्य उपलब्धि सर्वेक्षण जैसे आवधिक शिक्षण परिणाम परीक्षण आयोजित करने का भी कार्य सौंपा जाएगा।
    • इसमें भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा प्रणाली की गहरी समझ रखने वाले प्रमुख मूल्यांकन विशेषज्ञ शामिल होंगे।
    • यह अंततः राष्ट्रीय स्तर पर और जहाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो, सभी रूपों में सीखने के मूल्यांकन का समर्थन करने के लिये सभी मूल्यांकन-संबंधित सूचनाओं और विशेषज्ञता के लिये राष्ट्रीय एकल-खिड़की स्रोत बन बनेगा।
  • उद्देश्य:
    • समान मानदंड और दिशानिर्देश:
      • भारत के सभी मान्यता प्राप्त स्कूल बोर्डों के लिये छात्र मूल्यांकन और निर्धारण हेतु मानदंड, मानक और दिशानिर्देश निर्धारित करना,
    • मूल्यांकन पैटर्न बढ़ाना:
      • यह 21वीं सदी की कौशल आवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में अपने मूल्यांकन पैटर्न को बदलने के लिये स्कूल बोर्डों को प्रोत्साहित करेगा,
    • मूल्यांकन में असमानता कम करना:
      • यह राज्य और केंद्रीय बोर्डों में एकरूपता लाएगा जो वर्तमान में मूल्यांकन के विभिन्न मानकों का पालन करते हैं, जिससे अंकों में व्यापक असमानताएंँ पैदा होती हैं।
    • बेंचमार्क आकलन:
      • बेंचमार्क मूल्यांकन ढांँचा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में निहित मुद्दों को संबोधित करेगा।
  • सुझाव:
    • दो बार आयोजित करें बोर्ड परीक्षाएँ:
      • विभिन्न राज्यों ने वर्ष में दो बार बोर्ड परीक्षा आयोजित करने के NEP के प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिसमें छात्रों को उनके स्कोर में सुधार करने में मदद करने के लिये भी शामिल है।
    • गणित के लिये दो प्रकार की परीक्षाएँ:
      • गणित पर दो प्रकार के प्रश्न पत्र- एक मानक परीक्षा, और दूसरा उच्च स्तरीय योग्यता का परीक्षण करने के प्रस्ताव के संबंध में राज्य बोर्ड भी सहमत हैं।
  • महत्त्व:
    • डर में कमी:
      • यह छात्रों के बीच गणित के डर को कम करने और सीखने को प्रोत्साहित करने में मदद करेगा।
    • कॉलेज प्रवेश में असमानता को दूर करना:
      • यह CBSE स्कूलों में अपने साथियों की तुलना में कॉलेज प्रवेश के दौरान कुछ राज्य बोर्डों के छात्रों के नुकसान की समस्या से निपटने में मदद करेगा।
    • अभिनव मूल्यांकन:
      • यह स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर परीक्षण की विधि, संचालन, विश्लेषण और रिपोर्टिंग के लिये तकनीकी मानकों को विकसित और कार्यान्वित करेगा।

आगे की राह

  • परख समान अवसर पैदा करता है और विभिन्न राज्य बोर्डों के बीच असमानता को कम करता है तथा आगे शिक्षा के लिये समावेशी, भागीदारी एवं समग्र दृष्टिकोण की सुविधा प्रदान करना है, जो क्षेत्र के अनुभवों, अनुभवजन्य अनुसंधान, हितधारक प्रतिक्रिया के साथ-साथ सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखे गए सबक को ध्यान में रखता है।
  • यह शिक्षा के प्रति अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर प्रगतिशील बदलाव है।
    • निर्धारित संरचना बच्चे की क्षमता, संज्ञानात्मक विकास के चरणों के साथ-साथ सामाजिक और शारीरिक जागरूकता को पूरा करने में मदद करेगी।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रीलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम के अनुसार, राज्य में शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिये पात्र होने के लिये व्यक्ति को संबंधित राज्य शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित न्यूनतम योग्यता रखने की आवश्यकता होगी।
  2. RTE अधिनियम के अनुसार, प्राथमिक कक्षाओं को पढ़ाने के लिये, एक उम्मीदवार को राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद के दिशानिर्देशों के अनुसार आयोजित शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है।
  3. भारत में 90% से अधिक शिक्षक शिक्षा संस्थान सीधे राज्य सरकारों के अधीन हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के तहत केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित शैक्षणिक प्राधिकरण ने कक्षा I के लिये शिक्षक के रूप में नियुक्ति हेतु में पात्र होने के लिये कक्षा। -VIII तक न्यूनतम शैक्षिक और व्यावसायिक योग्यता निर्धारित की है, जो राज्य सरकारों के अंतर्गत आने वाले स्कूलों सहित प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने वाले सभी स्कूलों पर लागू होते हैं। शिक्षक के रूप में नियुक्ति योग्य होने के लिये उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) उत्तीर्ण करनी होगी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • TET, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार उपयुक्त राज्य सरकार द्वारा आयोजित की जाती है। अत: कथन 2 सही है।
  • वर्ष 2012 में गठित वर्मा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 90% शिक्षक निकाय निजी थे। अत: कथन 3 सही नहीं है।

मेन्स:

प्र. शिक्षा कोई निषेधाज्ञा नहीं है, यह एक व्यक्ति और सामाजिक परिवर्तन के सर्वांगीण विकास के लिये एक प्रभावी और व्यापक उपकरण है। उपरोक्त कथन के आलोक में नई शिक्षा नीति, 2020 का परीक्षण करें। (2020)

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

विशेष विवाह अधिनियम, 1954

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 21, सर्वोच्च न्यायालय।

मेन्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954, निजता का अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें युगल को अपनी शादी से 30 दिन पहले शादी करने के अपने इरादे की घोषणा करने के लिये एक नोटिस देने की आवश्यकता होती है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्त्ता अब पीड़ित पक्ष नहीं है क्योंकि उसने पहले ही SMA के तहत अपनी शादी कर ली थी।

याचिका में मांग:

  • याचिका ने SMA के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि इन प्रावधानों के तहत युगल को शादी की तारीख से 30 दिन पहले जनता से आपत्तियाँ आमंत्रित करने के लिये नोटिस देना होता है।
  • ये प्रावधान समानता के अधिकार पर अनुच्छेद 14 के साथ-साथ धर्म, नस्ल, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव के निषेध पर अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करते हैं क्योंकि ये आवश्यकताएँ पर्सनल लॉ में अनुपस्थित हैं।

प्रावधानों को चुनौती:

  • SMA की धारा 5 के तहत शादी करने वाले युगल को शादी की तारीख से 30 दिन पहले विवाह अधिकारी को नोटिस देना होता है।
  • याचिका में धारा 6 से धारा 10 तक के प्रावधानों को खत्म करने की मांग की गई है।
    • धारा 6 में ऐसी सूचना की आवश्यकता होती है जिसे विवाह अधिकारी द्वारा अनुरक्षित विवाह सूचना पुस्तिका में दर्ज किया जाता है, जिसका निरीक्षण “किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जो उसका निरीक्षण करना चाहता है।”
    • धारा 7 आपत्ति दर्ज करने की प्रक्रिया प्रदान करती है।
    • धारा 8 आपत्ति दर्ज कराने के बाद की जाने वाली जाँच प्रक्रिया को निर्दिष्ट करती है।
  • याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक जाँच के लिये सुभेद्य बनाते हैं।
  • इसलिये, ये प्रावधान व्यक्तिगत जानकारी और उसकी पहुँच पर नियंत्रण रखने के अधिकार को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाते हैं।
  • युगल के व्यक्तिगत विवरण को सभी के लिये सुलभ बनाकर, विवाह के निर्णय लेने के अधिकार को राज्य द्वारा बाधित किया जा रहा है।
  • इन सार्वजनिक नोटिसों का इस्तेमाल असामाजिक तत्त्वों ने शादी करने वाले युगलों को परेशान करने के लिये भी किया है।
  • ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ विवाह अधिकारियों ने कानून के सीमा से बाहर जाकर युगल के माता-पिता को इस प्रकार के नोटिस भेजे हैं, जिसके कारण लड़की को उसके माता-पिता द्वारा उसके घर पर ही बंधक की तरह रखा गया ।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954:

  • परिचय:
    • भारत में विवाह संबंधित व्यक्तिगत कानूनों- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955; मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954, या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकृत किये जा सकते हैं।
    • इसके अंतर्गत यह सुनिश्चित करना न्यायपालिका का कर्तव्य है कि पति और पत्नी दोनों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत की संसद का एक अधिनियम है जिसमें भारत और विदेशों में सभी भारतीय नागरिकों के लिये विवाह का प्रावधान है, चाहे दोनों पक्षों द्वारा किसी भी धर्म या आस्था का पालन किया जाए।
    • जब कोई व्यक्ति इस कानून के तहत विवाह करता है तो विवाह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा नहीं बल्कि विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित होता है।
  • विशेषताएँ:
    • दो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों को शादी के बंधन में एक साथ आने की अनुमति देता है।
    • जहाँ पति या पत्नी या दोनों में से कोई हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं है, वहाँ विवाह के अनुष्ठापन तथा पंजीकरण दोनों के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है।
    • एक धर्मनिरपेक्ष अधिनियम होने के कारण यह व्यक्तियों को विवाह की पारंपरिक आवश्यकताओं से मुक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रावधान:
    • पूर्व सूचना:
      • अधिनियम की धारा 5 के अनुसार यदि युगल को विवाह से कोई आपत्ति है, तो वह अगले 30 दिनों की अवधि में इसके विरुद्ध सूचना दर्ज करा सकता है।
    • पंजीकरण:
      • सार्वजनिक नोटिस जारी करने और आपत्तियाँ आमंत्रित करने के लिये दस्तावेज जमा करने के उपरांत दोनों पक्षों को उपस्थित होना आवश्यक है।
      • उपजिलाधिकारी द्वारा उस अवधि के दौरान प्राप्त होने वाली किसी भी आपत्ति का निर्णय करने के बाद नोटिस की तिथि के 30 दिन बाद पंजीकरण किया जाता है।
      • पंजीकरण की तिथि पर दोनों पक्षों को तीन गवाहों के साथ उपस्थित होना आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू


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