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राष्ट्रीय शिक्षा नीति और उच्च शिक्षा

  • 31 Jul 2021
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 30/07/2021 को ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘How NEP can transform higher education in India’’ पर आधारित है। इसमें भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों की समस्याओं पर चर्चा के साथ इस दिशा में विचार किया गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ऐसे संस्थानों के लिये किस तरह ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकती है।

भारत में वर्तमान में 1,000 से अधिक उच्च शिक्षण संस्थान (HEI) मौजूद हैं , जिनमें राष्ट्रीय महत्त्व के 150 से अधिक संस्थान शामिल हैं। समय के साथ ये वैज्ञानिक अनुसंधान का केंद्र भी बन गए हैं। उच्च शिक्षा संस्थानों ने पिछले दशक में शोधों की संख्या और उनकी गुणवत्ता दोनों में ही लगातार वृद्धि प्रदर्शित की है। 

वर्तमान में भारत कुल शोध प्रकाशनों के मामले में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है और कुल शोध प्रकाशनों में इसकी हिस्सेदारी 5.31 प्रतिशत है। शिक्षा, ज्ञान सृजन (अनुसंधान एवं विकास) और नवाचार—इन तीन पहलुओं में से पहले दो पहलुओं में भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों ने सापेक्षिक रूप से बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन नवाचार के मामले में वे पीछे रहे हैं। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) से अपेक्षित है कि यह उच्च शिक्षा संस्थानों को "समस्या की तलाश में समाधान" के बजाय "समस्याओं के समाधान" पर कार्य करने लिये प्रेरित कर भारत में उच्च शिक्षा के परिदृश्य को रूपांतरित कर देगा।

भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों की समस्याएँ

नामांकन: 

  • उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) रिपोर्ट 2019-20 के अनुसार, भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन अनुपात (GER) मात्र 27.1% है जो विकसित देशों के साथ ही अन्य विकासशील देशों की तुलना में बहुत कम है।     
  • विद्यालय स्तर पर नामांकन में वृद्धि के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों की आपूर्ति देश में शिक्षा की बढ़ती माँग को पूरा करने में अपर्याप्त है।

गुणवत्ता:

  • उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुनिश्चित करना वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
  • भारत में बड़ी संख्या में कॉलेज और विश्वविद्यालय UGC यानी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम शर्तों को पूरा करने में असमर्थ हैं।

राजनीतिक हस्तक्षेप:

  • उच्च शिक्षा के प्रबंधन में राजनेताओं का बढ़ता दखल उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता को खतरे में डालता है।
  • इसके अलावा, विभिन्न अभियानों में संलग्न छात्र शिक्षा संबंधी अपने उद्देश्यों को भूल जाते हैं और राजनीति में अपना कॅरियर विकसित करना शुरू कर देते हैं।

आधारभूत संरचना और सुविधाओं की बदतर स्थिति: 

  • भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के लिये बदतर बुनियादी ढाँचा एक और चुनौती है, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संचालित संस्थानों में अवसंरचना तथा भौतिक सुविधाओं की स्थिति अच्छी नहीं है।
  • शिक्षकों की कमी और योग्य शिक्षकों को आकर्षित करने तथा उन्हें बनाए रखने की राज्य शिक्षा प्रणाली की असमर्थता ने कई वर्षों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मार्ग में चुनौतियाँ खड़ी की हैं।
  • उच्च शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक रिक्तियों के बावजूद बड़ी संख्या में नेट/पीएचडी उम्मीदवार बेरोज़गार बने हुए हैं।

अपर्याप्त शोध: 

  • उच्च शिक्षा संस्थानों में शोध/अनुसंधान पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
  • संसाधनों एवं सुविधाओं की कमी है और छात्रों के मार्गदर्शन हेतु सक्षम शिक्षकों की संख्या भी सीमित है।
  • अधिकांश शोधार्थी फेलोशिप से वंचित हैं या उन्हें समय पर फेलोशिप प्रदान नहीं की जा रही है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके शोध को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त, अनुसंधान केंद्रों और उद्योगों के साथ भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों का समन्वय कमज़ोर है।

कमज़ोर शासन संरचना: 

  • भारतीय शिक्षा प्रबंधन अति-केंद्रीकरण, नौकरशाही संरचनाओं और उत्तरदायित्व, पारदर्शिता एवं व्यावसायिकता की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

उच्च शिक्षा संस्थानों के संदर्भ में नई शिक्षा नीति की संभावनाएँ:

  • राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (National Research Foundation- NRF): भारतीय शिक्षा जगत पारंपरिक रूप से प्रासंगिकता और वितरण पर अधिक बल दिये बिना ही अनुसंधान एवं विकास पर केंद्रित रहा है। राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना से उम्मीद है कि शिक्षा जगत को मंत्रालयों और उद्योगों के साथ संयुक्त किया जा सकेगा तथा स्थानीय आवश्यकताओं के लिये प्रासंगिक अनुसंधान का वित्तपोषण किया जा सकेगा।  
    • NRF के ढाँचे के अंतर्गत प्रत्येक सरकारी मंत्रालय (चाहे वह केंद्रीय मंत्रालय हो या राज्य का मंत्रालय) द्वारा अनुसंधान के लिये अलग-अलग वित्त आवंटित किया जाना अपेक्षित है।
    • इसलिये, NRF से उम्मीद की जा रही है कि यह शोधकर्त्ताओं के समक्ष सुपरिभाषित समस्याएँ प्रस्तुत करेगी है, ताकि वे लक्ष्य-उन्मुख और समयबद्ध तरीके से उनका समाधान ढूँढ सकें।
  • बहु-विषयक विश्वविद्यालय: उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रौद्योगिकी विकास क्षमता को उजागर करने के लिये हमारे संस्थानों को न केवल अपने दायरे और प्रस्तुतियों में बहु-विषयक बनने की आवश्यकता है, बल्कि आपस में सहयोग करना भी ज़रूरी है।     
    • विषयों, संस्कृतियों (अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों) और दृष्टिकोण (शैक्षणिक-उद्योग सहयोग) के संदर्भ में "असमान" विचारों को एक साथ लाना समय की आवश्यकता है।
    • NEP में परिकल्पित बहु-विषयक विश्वविद्यालय शोधकर्त्ताओं की रचनात्मक क्षमता पर बल देंगे।
  • मौजूदा उच्च शिक्षा संस्थानों का उन्नयन: वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात (GER) को मौजूदा 27% से बढ़ाकर 50% करने के लक्ष्य के साथ भारत को न केवल नए उच्च शिक्षा संस्थान और विश्वविद्यालय खोलने होंगे बल्कि मौजूदा उच्च शिक्षा संस्थानों का उन्नयन भी करना होगा।  
    • इस व्यापक विस्तार के लिये न केवल अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी बल्कि एक नए शासन मॉडल की भी आवश्यकता होगी।
    • NEP उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये श्रेणीबद्ध स्वायत्तता प्राप्त करने की इच्छा रखती है। समय के साथ, स्वतंत्र बोर्ड पूर्व छात्रों एवं शिक्षा क्षेत्र, अनुसंधान एवं उद्योग के विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों का प्रबंधन करेंगे।
  • उच्च शिक्षा संस्थानों का वित्तपोषण: नई शिक्षा नीति से बड़ी मात्रा में वित्तपोषण प्राप्त होने की उम्मीद है। उच्च शिक्षा के लिये पहली बार सरकार ने शिक्षा के मद में सकल घरेलू उत्पाद के 6% के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में बजट आवंटन का वादा किया है।   
    • यह उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये आमूलचूल परिवर्तनकारी या ‘गेम चेंजर’ साबित होगा।
  • सही जगह ध्यान केंद्रित करना: NEP 2020 के तहत, भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान ‘3Is’ (Interdisciplinary research, Industry connect and Internationalisation) पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो हमारे संस्थानों को वैश्विक मानकों तक ले जाने के तीन आवश्यक स्तंभ हैं।  
    • अब तक, भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में अंतर्राष्ट्रीय विविधता का अभाव रहा है और वे मुख्य रूप से स्थानीय बने रहे हैं; उन्होंने केवल भारतीय शिक्षकों को बहाल किया है तथा केवल घरेलू प्रतिभाओं को ही प्रशिक्षित किया है।
    • प्रतिष्ठित भारतीय संस्थानों में अंतर्राष्ट्रीय संकाय और छात्रों की कमी भारतीय संस्थानों की खराब रैंकिंग का एक प्रमुख कारण रही है।
    • NEP ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये बाहर निकलने और विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय परिसरों की स्थापना कर सकने के तंत्र को सक्षम किया है। इससे न केवल उनकी अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति में वृद्धि होगी बल्कि वैश्विक स्तर पर उनके प्रति धारणाओं में भी सुधार होगा।

निष्कर्ष

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 एक अच्छी नीति है क्योंकि यह शिक्षा प्रणाली को समग्र, लचीला, बहु-विषयक और 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने पर लक्षित है। नीति की मंशा कई मायनों में आदर्श प्रतीत होती है, लेकिन निश्चय ही इसकी सफलता इसके कुशल कार्यान्वयन पर निर्भर होगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों के समक्ष विद्यमान समस्याओं की चर्चा कीजिये और परीक्षण कीजिये कि नई शिक्षा नीति किस प्रकार भारतीय उच्च शिक्षा में परिवर्तन लाएगी।

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