इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी अधिनियम, 2006 वन संबंधी कानूनों में आंशिक सुधार कर परंपरागत वनवासी समुदायों के अधिकारों को विधिक मान्यता प्रदान करता है? अपने मत की पुष्टि हेतु ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करें।

    29 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    भूमिका:


    अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी अधिनियम, 2006 के तहत दीर्घकालीन उपयोग के लिये ज़िम्मेदारी, जैव-विविधता का संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखना तथा वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों की जीविका तथा खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करते समय वनों की संरक्षण व्यवस्था को सुदृढ़ करना भी शामिल है।

    विषय-वस्तु


    विषय-वस्तु के पहले भाग में इस अधिनियम के तहत प्रदान किये गए अधिकारों पर चर्चा करेंगे-

    • स्वामित्वाधिकार: जनजाति या वनवासियों द्वारा खेती की जा रही भूमि पर उनका स्वामित्व होगा, परंतु भूमि की अधिकतम सीमा 4 हेक्टेयर तक होगी।
    • उपयोग संबंधी अधिकार: गौण वन उत्पादों (स्वामित्व सहित), चारागाह क्षेत्रों, चारागाही मार्गों आदि के उपयोग का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • राहत और विकास संबंधी अधिकार: वन संरक्षण हेतु प्रतिबंधों के अध्ययन, अवैध ढंग से उन्हें हटाने या बलपूर्वक विस्थापित करने के मामले में पुनर्वास और बुनियादी सुविधाओं का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • वन प्रबंधन संबंधी अधिकार: वन और वन्यजीवों के संरक्षण के लिये प्रबंधन संबंधी अधिकारों का भी प्रावधान है।

    वन अधिकार की संभावनाएँ

    • इसमें वन एवं लोगों के बीच संबंध और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिये वन प्रशासन में परिवर्तन लाने की क्षमता है।
    • इससे लोकतांत्रिक और समुदाय आधारित वन प्रशासन के लिये अवसर उपलब्ध होगा।
    • आजीविका सुरक्षा, गरीबी दूर करने और विकास के क्षमता निर्माण में भी यह सहायक है।
    • वन अधिकार अधिनियम को विकास कार्यक्रमों, जैसे मनरेगा और इंदिरा आवास योजना के साथ जोड़कर महत्त्वपूर्ण अवसर उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
    • वन अधिकार अधिनियम खाद्य सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभाता है। फसल खराब होने से खाद्य पदार्थों की अनुपलब्धता के समय यह पर्याप्त पोषण और ‘सेफ्टी नेट’ उपलब्ध कराता है।
    • वन अधिकार अधिनियम लैंगिक समानता पर भी बल देता है। इसमें यह प्रावधान है कि व्यक्ति के वन अधिकारों के लिये भू-स्वामित्व पति-पत्नी दोनों के संयुक्त नाम से या परिवार के एकल मुखिया के नाम से जारी होगा चाहे वह महिला हो या पुरुष हो।
    • वन संबंधी विषयों का लोकतांत्रिकरण-वन अधिकार अधिनियम, ग्राम सभा को निर्णय लेने का अधिकार देता है।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम इस अधिनियम के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करेंगे-

    • राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर वन अधिकार अधिनियम की क्षमता प्राप्त करने में मुख्य बाधा है।
    • इस कार्य की निगरानी करने के लिये जनजातीय कार्य मंत्रालय के पास पर्याप्त स्टाफ एवं संसाधन की कमी है।
    • वन अधिकार अधिनियम को लागू करने के लिये अलग से बजट का प्रावधान नहीं किया गया है।
    • अनेक राज्यों द्वारा जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा जारी किये गए स्पष्टीकरणों और दिशा-निर्देशों की अनदेखी भी की जाती है।
    • ग्राम सभा के कानूनी अधिकारों को कम किया जाना भी इसके सुचारू क्रियान्वयन में बाधा बनता है।
    • खनन जैसे उद्योगों के लिये वनों की कटाई, संरक्षित क्षेत्रों से उन्हें हटाने जैसे कार्य, उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रयासों और आजीविका के लिये गंभीर बनते हैं।

    निष्कर्ष


    अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

    भारत के वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आजीविका और गरिमा के लिये यह अधिनियम एक साधन बन सकता है। इसके लिये आवश्यक है कि सरकार वन अधिकारियों पर नियंत्रण रखे एवं नोडल जनजातीय विभागों को सुदृढ़ करे। साथ ही

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2