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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत के परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र की भागीदारी

स्रोत:BS

चर्चा में क्यों? 

भारत के प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि देश जल्द ही अपने नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलेगा। यह कदम संसद के सर्दियों के सत्र से पहले उठाया गया है, जिसमें परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया जाएगा, ताकि परमाणु क्षमता का विस्तार हो और निजी निवेश आकर्षित किया जा सके।

निजी क्षेत्र भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को कैसे मज़बूत कर सकता है?

  • भारत की महत्त्वाकांक्षी क्षमता विस्तार योजना: भारत वर्ष 2032 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को 8.8 GW से बढ़ाकर 22 GW और वर्ष 2047 तक 100 GW करने की योजना बना रहा है। लेकिन यह क्षेत्र अभी भी न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के प्रभुत्व में है, जिसके पास इन बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिये आवश्यक पूंजी, मानव संसाधन तथा निर्माण क्षमता की कमी है।
    • निजी कंपनियाँ पूंजी, कुशल कार्यबल और इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन (EPC) क्षमताओं को बढ़ा सकती है, जिससे बड़े पैमाने पर विस्तार संभव हो सके।
  • वित्तीय अंतर को कम करना: वर्ष 2047 तक 100 GW परमाणु क्षमता हासिल करने के लिये लगभग 15 लाख करोड़ रुपये का निवेश आवश्यक है, जबकि वर्ष 2025–26 के बजट में केवल 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
    • परमाणु परियोजनाओं की उच्च प्रारंभिक लागत: परमाणु परियोजनाओं के लिये अत्यधिक प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे सीमित सार्वजनिक निधियाँ एक बड़ी चुनौती बन जाती हैं। यह दीर्घकालिक पूंजी संग्रहण, वित्तीय बोझ कम करने और निधि के स्रोतों को विविध बनाने के लिये निजी निवेश की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • परियोजना कार्यान्वयन में तेज़ी लाना: कई NPCIL परियोजनाएँ, जैसे कुडांकुलम यूनिट 3–6, खरीद प्रक्रियाओं, धीमी निर्माण गति और प्रशासनिक अड़चनों के कारण लगातार विलंब का सामना कर रही हैं।
    • निजी क्षेत्र बेहतर परियोजना प्रबंधन और मज़बूत आपूर्ति-शृंखला दक्षता के माध्यम से परियोजनाओं की गति तेज़ करने में मदद कर सकता है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार को बढ़ावा देना: निजी क्षेत्र की भागीदारी उन्नत रिएक्टर डिज़ाइनों, स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) और वैश्विक सहयोगों को अपनाने में मदद कर सकती है। ये सभी परमाणु क्षमता बढ़ाने और सुरक्षा में सुधार के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • यूरेनियम आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करना: निजी कंपनियों को यूरेनियम के खनन, आयात और प्रसंस्करण की अनुमति देने से भारत की सीमित घरेलू क्षमता में सुधार होगा, सरकार-से-सरकार (G2G) समझौतों पर निर्भरता कम होगी तथा दीर्घकालिक परमाणु ईंधन सुरक्षा के लिये रणनीतिक भंडार तैयार किये जा सकेंगे।
  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा और नेट-ज़ीरो मार्ग को सशक्त बनाना: निजी क्षेत्र की भागीदारी कम-कार्बन क्षमता के विस्तार को तेज़ करती है, जिससे भारत के नेट-ज़ीरो 2070 लक्ष्यों को हासिल करने में सहायता मिलती है।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी से रिएक्टर घटकों का स्थानीयकरण बढ़ेगा, घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा और भारत वैश्विक परमाणु आपूर्ति शृंखलाओं से बेहतर तरीके से जुड़ सकेगा।

भारत का परमाणु ऊर्जा परिदृश्य

  • परमाणु ऊर्जा: यह ऊर्जा का एक रूप है जो परमाणु के नाभिक (कोर) से निकलता है, जो प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से मिलकर बना होता है।
    • यह ऊर्जा दो तरीकों से उत्पन्न की जा सकती है: विखंडन (Fission) - जब किसी परमाणु का नाभिक कई भागों में विभाजित होता है और संलयन (Fusion) - जब दो नाभिक आपस में मिलकर एक हो जाते हैं।
    • यह एक कम-कार्बन, उच्च-घनत्व ऊर्जा स्रोत है, जो बेस-लोड पावर प्रदान करता है और ऊर्जा सुरक्षा तथा सतत् विकास में योगदान देता है।
  • भारत में स्थिति: वर्ष 2025 तक भारत की वर्तमान ऊर्जा क्षमता 8.18 GW है और वर्ष 2047 तक 100 GW का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
    • वर्तमान में भारत 20 से अधिक परमाणु रिएक्टरों का संचालन करता है, जिन्हें भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) द्वारा प्रबंधित किया जाता है और दर्जनों नए परियोजनाओं की योजना बनाई गई है।
    • न्यूक्लियर एनर्जी मिशन को संघीय बजट 2025-26 में लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) के अनुसंधान और विकास (R&D) पर ध्यान केंद्रित करना है।
      • भारत का लक्ष्य वर्ष 2033 तक कम से कम पाँच स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किये गए और संचालित SMR विकसित करना है।
    • नये तकनीकी विकासों में भारत स्मॉल रिएक्टर (BSR), स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR), मोल्टन सॉल्ट रिएक्टर और उच्च तापमान गैस-कूल्ड रिएक्टर शामिल हैं।

भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी के प्रमुख अवरोध क्या हैं?

  • परमाणु दायित्व संबंधी चिंताएँ: सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLND), 2010 की धारा 17(b) ऑपरेटर को परमाणु दुर्घटना के बाद आपूर्तिकर्त्ताओं के खिलाफ ‘राइट ऑफ रिकॉर्स’ देती है, जबकि CSC प्रणाली में दायित्व केवल ऑपरेटर पर होता है।
    • यह संभावित आपूर्तिकर्त्ता दायित्व बीमा लागत बढ़ाता है और निजी क्षेत्र की भागीदारी को वित्तीय रूप से जोखिमपूर्ण बनाता है।
  • वित्तपोषण और लागत संबंधी चुनौतियाँ: केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के अनुसार, भारत में प्रेशराइज़्ड हेवी वाटर (PHW) परमाणु संयंत्र की पूंजी लागत वर्ष 2026–27 तक लगभग प्रति मेगावाट (MW) ₹14 करोड़ तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • इसके कम-कार्बन प्रोफाइल के बावजूद, परमाणु ऊर्जा को ‘नवीकरणीय’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, जिससे यह कर प्रोत्साहन और ग्रीन फाइनेंसिंग के लिये अयोग्य है, जो इसकी वित्तीय चुनौतियों को और बढ़ा देता है।
  • अस्पष्ट स्वामित्व और राजस्व मॉडल: परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 ने ऐतिहासिक रूप से निजी कंपनियों को रिएक्टर का सह-स्वामित्व या संचालन करने या परमाणु-जनित विद्युत बेचने से रोक रखा है, जिससे उनके योगदान को लेकर बड़ी अनिश्चितता उत्पन्न हुई है तथा इस क्षेत्र में निजी भागीदारी को हतोत्साहित किया गया है।
  • ईंधन आपूर्ति और प्रसंस्करण प्रतिबंध: घरेलू यूरेनियम भंडार (लगभग 76,000 टन) 30 वर्षों तक लगभग 10,000 MW क्षमता का ईंधन प्रदान कर सकते हैं, लेकिन भविष्य की आवश्यकता का केवल 25% पूरा कर सकते हैं, जिससे आयात अनिवार्य हो जाता है।
    • कानूनी प्रतिबंधों के कारण निजी कंपनियाँ यूरेनियम का खनन, आयात या प्रसंस्करण नहीं कर सकतीं, जिससे वे किसी मुख्य परियोजना इनपुट पर नियंत्रण नहीं रख सकतीं।
    • चूँकि भारत कज़ाखस्तान, कनाडा और उज़्बेकिस्तान से दीर्घकालिक यूरेनियम अनुबंधों पर काफी निर्भर है, इसलिये यदि निजी कंपनियाँ इस क्षेत्र में प्रवेश करती हैं तो उन्हें दीर्घकालिक ईंधन सुरक्षा में अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है।
  • विनियामक और सुरक्षा संबंधी प्रतिबंध: परमाणु प्रतिष्ठानों पर परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) और परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के तहत कठोर सुरक्षा तथा निरीक्षण मानक लागू होते हैं। निजी कंपनियों को विद्युत, कोयला या नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक अनुपालन बोझ का सामना करना पड़ सकता है।

भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र की क्षमता को अधिकतम करने हेतु कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?

  • विधायी सुधार: परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी भागीदारी को अनुमति देने के लिये भारत को परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) में संशोधन करने और स्पष्ट स्वामित्व मॉडल स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • आपूर्तिकर्त्ता की देयता को सीमित करने और निवेशक के विश्वास को बढ़ाने हेतु परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम (CLNDA), 2010 में संशोधन और इसे पूरक क्षतिपूर्ति अभिसमय (CSC, 1997) के साथ संरेखित करना चाहिये।
    • सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025 को पेश करने की तैयारी कर रही है, जो इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • स्पष्ट PPP मॉडल विकसित करना: निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये सह-स्वामित्व, टैरिफ, जोखिम-साझाकरण तथा दीर्घकालिक विद्युत खरीद समझौतों (PPA) के लिये पारदर्शी ढाँचे स्थापित करना।
  • ईंधन सुरक्षा: कनाडा, कज़ाखस्तान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से दीर्घकालिक यूरेनियम आपूर्ति सुरक्षित करके ईंधन सुरक्षा को मज़बूत करना, साथ ही भाविनी (BHAVINI) के PFBR (प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर) जैसे थोरियम रिएक्टरों पर अनुसंधान एवं विकास (R&D) में तेज़ी लाना।
    • इसके साथ ही महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के स्थानीयकरण के लिये स्वदेशी आपूर्ति शृंखलाएँ बनाना तथा परमाणु औद्योगिक पार्क विकसित करना।
  • परियोजना निष्पादन में तेज़ी लाना: कुडनकुलम जैसी परियोजनाओं में देखी गई देरी से बचने के लिये इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन (EPC)-आधारित अनुबंधों को अपनाना, खरीद प्रणालियों में सुधार करना तथा निजी EPC फर्मों को शामिल करना।

निष्कर्ष:

भारत के परमाणु क्षेत्र को निजी अभिकर्त्ताओं के लिये खोलना इसके स्वच्छ ऊर्जा परिदृश्य को बदल सकता है, लेकिन इसकी सफलता देयता संबंधी मुद्दों को हल करने, स्वामित्व संरचनाओं को स्पष्ट करने और नियामक ढाँचे को मज़बूत करने पर निर्भर करेगी। परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025 एक बड़ा कदम है, लेकिन इस क्षेत्र का भविष्य इस बात पर टिका होगा कि नीति सुरक्षा, निवेश और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के बीच संतुलन किस प्रकार स्थापित करती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. भारत के परमाणु क्षेत्र में निजी भागीदारी को सक्षम करने के लिये, साथ ही सुरक्षा और दायित्व (Safety and Liability) की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, विधायी सुधारों की आवश्यकता का परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. परमाणु ऊर्जा क्या है? 
परमाणु ऊर्जा वह ऊर्जा है जो परमाणु के नाभिकीय  विखंडन (Fission) या संलयन (Fusion) के माध्यम से उत्सर्जित होती है, वर्तमान में सभी वाणिज्यिक विद्युतविखंडन के माध्यम से उत्पादित होती है।

2. परमाणु रिएक्टरों में मुख्य रूप से किस समस्थानिक (Isotope) का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है?
अधिकांश रिएक्टर यूरेनियम-235 (Uranium-235) का उपयोग करते हैं, जो एक विखंडनीय समस्थानिक है और प्राकृतिक यूरेनियम के 1% से भी कम का निर्माण करता है।

3. एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बिजली का उत्पादन कैसे करता है?
विखंडन से निकलने वाली गर्मी पानी को भाप में बदल देती है, जो एक जनरेटर से जुड़ी टर्बाइनों को घुमाती है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है—यह तापीय ऊर्जा संयंत्रों के समान है लेकिन संचालन से CO₂ उत्सर्जन नहीं होता है।

4. परमाणु ईंधन चक्र (Nuclear Fuel Cycle) क्या है?
यह औद्योगिक प्रक्रियाओं का क्रम है: यूरेनियम खनन, संवर्द्धन, ईंधन निर्माण, ईंधन का रिएक्टर में उपयोग, खर्च हो चुके ईंधन का भंडारण, पुनर्संसाधन या निपटान।

5. यूरेनियम संवर्द्धन क्यों आवश्यक है?
प्राकृतिक यूरेनियम में केवल 0.7% U-235 होता है, जो निरंतर विखंडन के लिये अपर्याप्त है; संवर्द्धन U-235 की सांद्रता को 3-5% तक बढ़ाता है, जो रिएक्टर ईंधन के लिये आवश्यक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’ के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का

(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का 

(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा

(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और भयों की विवेचना कीजिये। (2018)

प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये । भारत में तीव्र प्रजनक रिएक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है? (2017)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीनोम-संपादित फसलों के प्रति भारत की नीति में बदलाव

प्रिलिम्स के लिये: आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM), जीनोम-संपादित, आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC), CRISPR-Cas9, सिकल सेल एनीमिया, जीन संपादन तकनीक

मेन्स के लिये: भारत में जीनोम-संपादित (GE) फसलों का समर्थन करने वाली नीतियाँ, जीनोम संपादन और उसकी विशेषताओं के बारे में, जीन संपादन और आनुवंशिक संशोधन के बीच अंतर तथा आनुवंशिक संशोधन की तुलना में जीन संपादन का महत्त्व।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों की प्रगति वर्ष 2006 के बाद से रुक गई है, क्योंकि Bt कपास के अलावा किसी भी नई फसल को वाणिज्यिक स्वीकृति नहीं मिली है। इसके विपरीत जीनोम-संपादित (GE) फसलें तेज़ी से विकसित हो रही हैं और इन्हें नियामक समर्थन भी प्राप्त हो रहा है।

  • हाल ही में दो जीनोम-संपादित (GE) चावल की किस्मों (सांबा महासूरी और MTU-1010) को रिलीज़ के लिये मंज़ूरी दी गई है, और एक GE सरसों उन्नत परीक्षण चरण में है। यह भारत के कृषि जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक बड़े नीतिगत बदलाव का संकेत देता है।

हाल की कौन-सी नीतिगत और वैज्ञानिक प्रगतियाँ भारत में जीनोम-संपादित (GE) फसल अनुसंधान को आगे बढ़ा रही हैं?

  • सरलीकृत विनियमन: जीनोम-संपादित (GE) पौधों में विदेशी DNA नहीं होता, इसलिये वे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के कड़े बायोसेफ्टी नियमों से मुक्त हैं। इसके विपरीत, GM फसलों के लिये फील्ड ट्रायल, बीज उत्पादन या वाणिज्यिक रिलीज़ हेतु आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की मंज़ूरी आवश्यक होती है।
    • जीनोम-संपादित (GE) फसलों को मंज़ूरी के लिये केवल संस्थागत बायोसुरक्षा समिति की स्वीकृति की आवश्यकता होती है, जिसे केवल यह पुष्टि करनी होती है कि संपादित पौधे में कोई विदेशी DNA नहीं है।
  • GE फसल अनुसंधान के लिये वित्तीय बढ़ावा: सरकार ने GE फसल अनुसंधान और प्रजनन हेतु  वित्तीय सहायता बढ़ा दी है (2023-24 के बजट में 500 करोड़ रुपये आवंटित किये गए) और GE फसलों को परंपरागत फसलों के बराबर माना जाने लगा है।
  • स्वदेशी जीन-एडिटिंग उपकरण का अनावरण: ICAR के वैज्ञानिकों ने एक देशी जीनोम-संपादन प्लेटफ़ॉर्म पेश किया, जिससे CRISPR-Cas9 जैसी विदेशी और पेटेंट-प्रधान तकनीकों पर निर्भरता कम की जा सके।
    • यह प्रणाली TnpB नामक प्रोटीन का उपयोग करती है, जो CRISPR में सामान्यतः प्रयुक्त Cas9 प्रोटीन की तुलना में काफी छोटा (लगभग एक-तिहाई आकार का) है।
    • यह उपकरण भारतीय शोधकर्त्ताओं के लिये पेटेंट-फ्री है, जिससे जीन संपादन सस्ता और अधिक सुलभ हो जाता है। इसका छोटा आकार इसे वायरल वेक्टर के माध्यम से पौधों की कोशिकाओं में आसानी से पहुँचाने में भी मदद करता है, जिससे जटिल टिशू कल्चर प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं रहती।
  • मानव संसाधन क्षमता निर्माण: बायोटेक्नोलॉजी विभाग (DBT) और इंडो-यूएस साइंस एंड टेक्नोलॉजी फोरम (IUSSTF) ने जीनोम इंजीनियरिंग/एडिटिंग टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव (GETIN) की शुरुआत की है।
    • यह कार्यक्रम भारतीय वैज्ञानिकों को अमेरिका के प्रमुख प्रयोगशालाओं में काम करने के लिये विदेशी फेलोशिप प्रदान करता है, जिससे सीधा ज्ञान हस्तांतरण सुनिश्चित होता है।

जीनोम संपादन क्या है?

  • परिचय: जीनोम संपादन (Genome Editing) उन तकनीकों के समूह को कहा जाता है, जो वैज्ञानिकों को किसी जीव के DNA को सटीक रूप से संशोधित करने की अनुमति देती हैं, जैसे कि विशिष्ट जीनोम स्थानों पर जीन जोड़ना, हटाना या बदलना
    • यह काम CRISPR-Cas9, TALENs, और Zinc Finger Nucleases जैसी उन्नत तकनीकों के माध्यम से किया जाता है।
  • कार्य प्रणाली: हालाँकि कई जीनोम-संपादन उपकरण मौजूद हैं, सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला CRISPR-Cas9 है। CRISPR-Cas9 के काम करने की एक सरल उपमा इस प्रकार है:
    • सर्च फंक्शन (CRISPR):  यह एक RNA का टुकड़ा है (जो DNA का अणुगत समकक्ष होता है) और इसे जीनोम में एक विशिष्ट, अद्वितीय अनुक्रम को खोजने और उससे जुड़ने के लिये प्रोग्राम किया जाता है।
    • कैंची (Cas9): यह एक एंज़ाइम है जो अणुगत कैंची के रूप में कार्य करता है। जब CRISPR सही स्थान का पता लगा लेता है तो Cas9 DNA की डबल हेलिक्स की दोनों स्ट्रैंड्स को उस सटीक बिंदु पर काट देता है
    • एडिटिंग फंक्शन (कोशिका की मरम्मत प्रणाली): DNA कट जाने के बाद, कोशिका का प्राकृतिक मरम्मत तंत्र सक्रिय हो जाता है। वैज्ञानिक इस प्रक्रिया का उपयोग करके निम्न कार्य कर सकते हैं:
      • जीन को डिसेबल करना: सेल कट को ठीक से रिपेयर नहीं करता, जिससे टारगेट जीन असरदार तरीके से ‘ब्रेक’ हो जाता है और बंद हो जाता है।
      • जीन को सुधारना: वैज्ञानिक संतुलित (स्वस्थ) DNA का एक टेम्पलेट प्रदान कर सकते हैं। कोशिका इस टेम्पलेट का उपयोग करके कटे हुए DNA की मरम्मत करती है, सही अनुक्रम को शामिल करती है और उत्परिवर्तन को सुधार देती है।
      • नया जीन डालना: कटे हुए स्थान पर DNA का एक नया खंड डाला जा सकता है, जिससे नई कार्यक्षमता जोड़ी जाती है।

CRISPR

  • मुख्य अनुप्रयोग: इस तकनीक के संभावित उपयोग बहुत व्यापक हैं और कई क्षेत्रों में फैले हुए हैं:
    •  दवाइयाँ:
      • जीन थेरेपी: आधारभूत आनुवंशिक उत्परिवर्तन को सुधारकर सिकल सेल एनीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस और हंटिंग्टन रोग जैसी आनुवंशिक बीमारियों का उपचार या इलाज करना।
      • कैंसर का उपचार: रोगी की अपनी प्रतिरक्षा कोशिकाओं (CAR-T cells) को संशोधित करना ताकि वे कैंसर कोशिकाओं को बेहतर तरीके से पहचानना और उन पर हमला करना
      • वायरल रोग: रोगी की कोशिकाओं के भीतर वायरल DNA जैसे कि HIV को काटने और निष्क्रिय करने की रणनीतियाँ विकसित करना।
    • कृषि:
      • फसल सुधार: ऐसी फसलें उगाना जो अधिक पौष्टिक हों, सूखा-रोधी हों या कीड़ों और बीमारियों से बचाने वाली हों, जिससे पेस्टीसाइड की आवश्यकता कम हो।
      • पशुधन प्रजनन: बीमारियों के प्रति बेहतर प्रतिरोधक क्षमता वाले जानवरों को विकसित करना।
    • मूल शोध: वैज्ञानिक जीनोम एडिटिंग का उपयोग करके प्रयोगशाला जानवरों (जैसे चूहों) में जीन को ‘knock out’ करते हैं, ताकि यह समझा जा सके कि वे जीन क्या कार्य करते हैं। यह हमें जीवविज्ञान और रोगों के मूलभूत सिद्धांतों को समझने में मदद करता है।

दो जीनोम-संपादित (GE) चावल की किस्में — सांबा महासूरी जिसमें 19% अधिक उपज है और MTU-1010 जिसमें खारे और क्षारीय मिट्टी में बेहतर सहिष्णुता है — ने वर्ष 2023–24 में परीक्षण पूर्ण कर लिया है

  • एक जीनोम-संपादित (GE) सरसों की किस्म, जिसमें कैनोला-गुणवत्ता वाले लक्षण, कम तीखापन और प्रमुख कवक रोगजनकों व कीटों के प्रति प्रतिरोध है, दूसरे वर्ष के परीक्षण चरण में है।

जीन संपादन आनुवंशिक संशोधन से किस प्रकार भिन्न है?

विशेषताएँ

जीन संपादन (GE)

आनुवंशिक संशोधन (GM)

मुख्य प्रक्रिया

CRISPR-Cas जैसे आणविक उपकरणों का उपयोग करके जीव के अपने जीन का सटीक संपादन

किसी असंबंधित प्रजाति (जैसे, किसी जीवाणु से पादप में) से विजातीय जीन को प्रवेश कराना।

आनुवंशिक सामग्री

अंतिम उत्पाद में कोई विजातीय DNA शेष नहीं रहता; यह ट्रांसजीन-मुक्त होता है।

विजातीय DNA (ट्रांसजीन) को शामिल किया जाता है जो अंतिम उत्पाद में रहता है।

भारत में विनियमन

GEAC से छूट; विजातीय DNA न होने की पुष्टि के लिये केवल संस्थागत जैव सुरक्षा समिति की मंजूरी की आवश्यकता है।

इसके लिये GEAC अनुमोदन और व्यापक, बहु-मौसमी जैव सुरक्षा परीक्षणों की आवश्यकता होती है।

अनुमोदन/जारीकरण में लगने वाला समय

सुव्यवस्थित नियमों के कारण यह अधिक तीव्र है।

मंद,क्योंकि कठोर तथा दीर्घकालिक जैवसुरक्षा आकलनों के कारण प्रक्रिया प्रायः एक दशक से भी अधिक समय ले लेती है।

भारत में उदाहरण

GE सांबा महासूरी चावल (19% अधिक उपज), GE MTU-1010-1010 चावल (लवण सहिष्णु), GE सरसों (परीक्षणाधीन)।

बीटी कॉटन (इसमें कीट प्रतिरोध के लिये बैसिलस थुरिंजिएंसिस का एक जीन होता है)।

फसलों में आनुवंशिक संशोधन की तुलना में जीन संपादन का महत्त्व क्यों बढ़ रहा है?

  • व्यापक प्रयोज्यता: GE मौजूदा जीनों में अत्यंत सटीक संशोधन को सक्षम बनाता है - उन्हें निष्क्रिय करने, संशोधित करने अथवा सक्रिय करने - ताकि बेहतर पोषण, दीर्घ निधानी-आयु और जलवायु लचीलापन जैसे जटिल लक्षण विकसित किये जा सकें, जबकि GM मुख्य रूप से सरल लक्षण जैसे कि शाकनाशी सहिष्णु या कीट प्रतिरोध (जैसे, बीटी विषाक्त पदार्थ ) को जोड़ने के लिये प्रभावी रहा है।
  • उत्कृष्ट स्थानीय किस्मों को बेहतर बनाने की क्षमता: GE मौजूदा स्थानीय किस्मों में सुधार करने में सक्षम बनाता है, जैसे साँबा महसूरी चावल को उसके पाक गुणों में परिवर्तन किये बिना उपज बढ़ाने के लिये उसमें संशोधन करना, जबकि GM नई ट्रांसजेनिक नस्लें उत्पन्न करता है जिनमें स्थानीय अनुकूलन की कमी हो सकती है।
  • व्यापक सामाजिक स्वीकृति: GE विजातीय जीनों को जोड़े बिना प्राकृतिक उत्परिवर्तन की नकल करता है , जिससे इसे कम सार्वजनिक विरोध का सामना करना पड़ता है और इसे शायद ही कभी आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) के रूप में लेबल किया जाता है, जबकि GM को वैश्विक विवाद का सामना करना पड़ता है और इसे प्रायः "फ्रेंकेनफूड" के रूप में लांछित किया जाता है ।
  • गति और दक्षता: GE विशिष्ट गुणों (जैसे सूखा-सहिष्णु, उच्च उपज) हेतु जीनों का प्रत्यक्ष संपादन कर एक ही पीढ़ी में नयी फसल किस्मों के तीव्र विकास की सुविधा देता है; जबकि GM धीमी प्रक्रिया है, जिसमें विजातीय जीनों को सम्मिलित करने और परखने हेतु बार-बार परीक्षण और त्रुटि-आधारित पद्धति पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • तीव्र व्यावसायीकरण: GE फसलें ट्रांसजीन-मुक्त होती हैं और उन पर अल्प विनियमन लागू होता है, जिससे प्रयोगशाला से खेत तक तेज़ी से संक्रमण संभव होता है, जबकि GM फसलें विजातीय जीनों के कारण कठोर, दीर्घ और महँगी जैव सुरक्षा जाँच से गुजरती हैं, जिससे व्यावसायीकरण में विलंब होती है।

जीन संपादन से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं तथा इसके लिये आगे की संधारणीय राह क्या है?

प्रमुख मुद्दे

प्रमुख चुनौतियाँ और जोखिम

प्रस्तावित आगे की राह

नीतिपरक & नैतिक

मुख्य चिंता ह्यूमन जर्मलाइन में स्थायी परिवर्तन की है, जो “डिज़ाइनर बेबीज़” के निर्माण तथा सामाजिक असमानता को और बढ़ाने जैसी आशंकाएँ उत्पन्न करती है।

इसके लिये क्लिनिकल जर्मलाइन एडिटिंग पर रोक लगाने और सार्वजनिक विचार-विमर्श को बढ़ावा देने के लिये एक मजबूत अंतर्राष्ट्रीय सहमति और वैश्विक नैतिक ढाँचे की स्थापना की आवश्यकता है।

सुरक्षा और प्रभावकारिता

एक प्रमुख तकनीकी चुनौती "ऑफ-टारगेट इफेक्ट" का जोखिम है, जहाँ अनपेक्षित उत्परिवर्तन होते हैं, और "मोज़ेकिज्म" का जोखिम है, जहाँ संपादन कोशिकाओं में एक समान नहीं होते हैं।


इससे अधिक सटीकता हेतु निरंतर तकनीकी परिष्करण तथा नैदानिक परीक्षणों में कठोर एवं दीर्घकालिक सुरक्षा-जाँच की अनिवार्यता उत्पन्न होती है।

सामाजिक एवं समानता

यह उच्च जोखिम बना रहता है कि अत्यधिक लागत एक आनुवंशिक विभाजन उत्पन्न कर देगी, जिसमें केवल संपन्न वर्ग ही पहुँच प्राप्त कर सकेगा तथा परिणामस्वरूप आनुवंशिक भेदभाव की सम्भावना बढ़ जाएगी।

सरकारों को भेदभाव के विरुद्ध नीतिगत सुरक्षा-उपाय लागू करने तथा न्यायसंगत लाभ सुनिश्चित करने के लिये सुलभ पहुँच के उपयुक्त मॉडल विकसित करने चाहिये।

विनियामकीय और शासन

एक महत्त्वपूर्ण बाधा अंतरराष्ट्रीय विनियमन का वर्तमान असमान ढाँचा है, जो अनैतिक अथवा असुरक्षित प्रक्रियाओं हेतु “रेगुलेटरी हैवेन” उत्पन्न कर सकता है।

इसका समाधान प्रौद्योगिकी के विकास और उपयोग की निगरानी के लिये सामंजस्यपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मानकों और अनुकूल राष्ट्रीय ढाँचे के निर्माण में निहित है।

पारिस्थितिक

वन्य आबादी में संशोधनों के प्रसार हेतु “जीन ड्राइव” के उपयोग से पारिस्थितिक तंत्रों पर अवांछित और अपरिवर्तनीय प्रभावों का जोखिम उत्पन्न होता है।

किसी भी अनुप्रयोग के लिये सीमित वातावरण में चरणबद्ध परीक्षण, मज़बूत पारिस्थितिक मॉडलिंग और आनुवंशिक उत्क्रमण तंत्र के विकास की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष

भारत रणनीतिक रूप से अवरुद्ध GM फसलों से हटकर तीव्र जीनोम संपादन की ओर बढ़ रहा है, इसकी सटीकता, तीव्र नियामक प्रक्रिया और स्थानीय किस्मों को बेहतर बनाने की क्षमता का लाभ उठा रहा है। इस नीतिगत बदलाव का उद्देश्य जलवायु-अनुकूल कृषि और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना है, तथा GE को भारत की भावी कृषि-जैव प्रौद्योगिकी क्रांति की आधारशिला के रूप में स्थापित करना है ।

दृष्टि मेंस प्रश्न:

प्रश्न. भारतीय कृषि में जीनोम संपादन (GE) के महत्त्व और यह आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों से किस प्रकार भिन्न है, इस पर चर्चा कीजिये। भारत में GE फसल अनुसंधान को सुगम बनाने वाले नियामक और वैज्ञानिक विकास का विश्लेषण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. जीनोम-संपादित (GE) फसलें क्या हैं?
GE फसलें वे पादप हैं जिनके मूल जीन को CRISPR-Cas जैसे उपकरणों का उपयोग करके सटीक रूप से संशोधित किया जाता है, जिससे ट्रांसजीन-मुक्त, उन्नत किस्में उत्पन्न होती हैं।

2. हाल ही में भारत में कौन-सी GE फसलें विकसित की गई हैं?
साँबा महसूरी चावल (19% उपज वृद्धि), MTU-1010 चावल (लवण-सहिष्णु), और कम तीक्ष्ण, रोगज़नक़-प्रतिरोधी सरसों उन्नत परीक्षणों के अंतर्गत हैं।

3. जीनोम संपादन आनुवंशिक संशोधन (GM) से किस प्रकार भिन्न है?
GE विद्यमान जीनों को बिना किसी बाह्य DNA के संपादित करता है, जबकि GM असंबद्ध प्रजातियों से ट्रांसजीनों को शामिल करता है; GE को कम विनियमन का सामना करना पड़ता है तथा यह तेज़ी से व्यावसायीकरण की अनुमति देता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स

प्रश्न1. भारत में कृषि के संदर्भ में, प्रायः समाचारों में आने वाले 'जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सीक्वेंसिंग)' की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?

1. विभिन्न फ़सली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है।

2. यह तकनीक, फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है।

3. इसका प्रयोग, फसलों में पोषी-रोगाणु संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1,2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. प्रायः समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019)

(a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आण्विक कैंची

(b) रोगियों में रोगजनकों की ठीक-ठीक पहचान के लिये प्रयुक्त जैव संवेदक

(c) एक जीन जो पादपों को पीड़क-प्रतिरोधी बनाताहै

(d) आनुवंशिकतः रूपांतरित फसलों में संश्लेषित होने वाला एक शाकनाशी पदार्थ

उत्तर: (a)


मेंस

प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होगीं? (2021)


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