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कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देना

  • 13 May 2025
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चावल, गेहूँ, कपास, सोयाबीन, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), GM फसलें, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, PM-किसान, कुपोषण, मोनोकल्चर, मानसून, कदन्न, दलहन, तिलहन, बागवानी फसलें, भावांतर भुगतान योजना (PDPS), किसान उत्पादक संगठन, एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH)

मेन्स के लिये:

चावल और गेहूँ की कृषि से संबंधित चिंताएँ, भारत में कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिये अपनाए जाने वाले उपाय।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत में कृषि प्रवृत्तियाँ यह दर्शाती हैं कि चावल और गेहूँ की कृषि का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है, जिसका मुख्य कारण सहायक नीतियाँ, बेहतर किस्मों का विकास और विश्वसनीय उपज है, जबकि अन्य फसलों में कम लाभ और मूल्य अस्थिरता के कारण रकबे में उतार-चढ़ाव देखा जाता है।

भारत की कृषि प्रवृत्तियाँ क्या हैं?

  • गेहूँ और चावल: चावल की कृषि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, विशेष रूप से पंजाब में (वर्ष 2015-16 से वर्ष 2024-25 के बीच 29.8 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 32.4 लाख हेक्टेयर) और तेलंगाना में (10.5 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 47 लाख हेक्टेयर)।
    • मध्य प्रदेश में भी गेहूँ और चावल का रकबा क्रमशः वर्ष 2015-16 से वर्ष 2024-25 के बीच 59.1 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 78.1 लाख हेक्टेयर और 20.2 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 38.7 लाख हेक्टेयर हो गया है।
  • कपास: पंजाब में कपास की कृषि में भारी गिरावट की गई है, जो वर्ष 2015-16 में 3.4 लाख हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2024-25 में केवल 1 लाख हेक्टेयर रह गई है।
    • तेलंगाना में वर्ष 2020-21 में 23.6 लाख हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2024-25 में 18.1 लाख हेक्टेयर रह गया है।
  • चना: मध्य प्रदेश में चने का क्षेत्र वर्ष 2015-16 में 30.2 लाख हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2024-25 में 20.1 लाख हेक्टेयर रह गया है।
  • सोयाबीन: मध्य प्रदेश में सोयाबीन का क्षेत्र वर्ष 2015-16 में 59.1 लाख हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2024-25 में 57.8 लाख हेक्टेयर रह गया, जबकि ऊँची कीमतों के कारण यह वर्ष 2020-21 में 66.7 लाख हेक्टेयर के शिखर पर पहुँच गया था।

Crops_in_India

किसानों के बीच चावल और गेहूँ सबसे अधिक पसंदीदा फसलें क्यों हैं?

  • MSP पर खरीद: सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर चावल और गेहूँ की लगभग गारंटीकृत खरीद सुनिश्चित करती है, जिससे मूल्य स्थिरता और आय आश्वासन मिलता है, जिससे ये बिना न्यूनतम समर्थन मूल्यवाली फसलों की तुलना में कम जोखिमपूर्ण हो जाती हैं।
  • सिंचाई समर्थन: चावल और गेहूँ मुख्य रूप से सिंचाई पर आधारित फसलें हैं, जिससे वर्षा पर निर्भरता कम होती है और उपज का जोखिम घटता है। नहरों और भूमिगत जल तक पहुँच होने से इनकी कृषि अधिक विश्वसनीय बन जाती है।
  • सतत् आनुवंशिक सुधार: दोनों फसलें मज़बूत सार्वजनिक अनुसंधान समर्थन से लाभान्वित होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च उपज देने वाली, रोग प्रतिरोधक और जलवायु के अनुकूल किस्मों का विकास संभव हो पाया है।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने  CRISPR-Cas का उपयोग करके कमला नामक आनुवंशिक रूप से संपादित सांबा महसूरी चावल तैयार किया है, जो प्रति पैनिकल 450-500 दाने उत्पन्न करता है (जबकि पेरेंट में 200-250 दाने होते हैं), 5.37-9 टन/हेक्टेयर उपज देता है और 130 दिनों में पक जाता है (15-20 दिन पहले) तथा यह संवर्द्धित जड़ बायोमास के माध्यम से जल व उर्वरकों का संरक्षण करता है।
    • ICAR के वैज्ञानिकों ने चावल की किस्म कॉटनडोरा सन्नालू (MTU-1010) में सूखा और नमक सहिष्णुता (DST) जीन को संपादित करने के लिये CRISPR(क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट्स)-CAS का उपयोग किया, जिससे पूसा DST चावल 1 का निर्माण हुआ, जो अजैविक तनाव प्रतिरोध को सीमित करने वाले जीन को अप्रभावी कर ऊष्मा, लवणता व जल तनाव के प्रति अधिक सहनशील है।
    • गेहूँ में, कल्याण सोना और सोनालिका जैसी हरित क्रांति किस्मों ने न केवल उपज में उल्लेखनीय वृद्धि की (प्रति हेक्टेयर 1-1.5 टन से 3.8 टन तक), बल्कि रोगों एवं पर्यावरणीय तनावों के प्रति प्रतिरोध में भी सुधार किया। 
    • इसके विपरीत, कपास, तिलहन और दालों जैसी फसलों में BT कपास (वर्ष 2002-06) के बाद से सीमित अनुसंधान एवं विकास के साथ कोई बड़ी GM सफलता नहीं देखी गई है, जिसके परिणामस्वरूप उपज में स्थिरता, अस्थिर लाभ एवं कृषि में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।
  • उच्च मांग और स्थिर बाज़ार: चावल और गेहूँ, निरंतर घरेलू एवं वैश्विक मांग वाले मुख्य खाद्य पदार्थ, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), मध्याह्न भोजनकल्याणकारी योजनाओं में उपयोग किये जाते हैं, जिससे स्थिर बिक्री सुनिश्चित होती है।
  • नीति एवं अवसंरचना पूर्वाग्रह: खरीद अवसंरचना (जैसे मंडियाँ और भंडारण ) अन्य फसलों की तुलना में अनाज के लिये बेहतर विकसित है और ऋण माफी सब्सिडी अक्सर मुख्य फसलों के पक्ष में होती है।
    • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-किसान) और उर्वरक सब्सिडी जैसी सरकारी योजनाएँ चावल एवं गेहूँ उत्पादन को समर्थन देती हैं।

चावल और गेहूँ पर अत्यधिक ध्यान देने के क्या परिणाम होंगे?

  • पोषण संबंधी कमियाँ: चावल और गेहूँ पर अत्यधिक निर्भरता पोषण संबंधी विविधता को सीमित करती है, क्योंकि वे मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट होते हैं जिनमें कम प्रोटीन एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्व होते हैं, जो कुपोषण (जैसे प्रोटीन लोहे की कमी) में योगदान करते हैं।
  • मृदा क्षरण: चावल के लिये जल का अत्यधिक उपयोग, रासायनिक उर्वरकों के साथ मिलकर, मृदा लवणता और पोषक तत्त्वों के असंतुलन में योगदान देता है, जिससे धीरे-धीरे मृदा स्वास्थ्य खराब हो जाता है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2030 तक लवणता प्रभावित क्षेत्र 6.7 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 11 मिलियन हेक्टेयर हो जाएगा
  • जल की कमी: चावल की कृषि में जल की अधिक खपत और अत्यधिक भूजल निष्कर्षण के कारण जल संसाधनों पर दबाव पड़ता है, जिससे कृषि की स्थिरता को खतरा होता है।
    • पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में भूजल की कमी एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है, जहाँ निष्कर्षण दर क्रमशः 66, 51 एवं 34% पुनर्भरण दर से अधिक हो गई है
  • बाज़ार विकृतियाँ: MSP प्रणाली एकल कृषि को बढ़ावा देकर और अधिक लाभदायक या टिकाऊ फसलों की उपेक्षा करके बाज़ार को विकृत कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक उत्पादन, असंवहनीय प्रथाएँ एवं मूल्य में उतार-चढ़ाव होता है
    • उदाहरण के लिये, दालों, तिलहनों और कदन्न की उपेक्षा से आयात पर निर्भरता बढ़ती है (उदाहरण के लिये, 60% खाद्य तेल का आयात किया जाता है)।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: चावल और गेहूँ के प्रति नीति एवं खरीद पूर्वाग्रह से सिंचित उत्तर-पश्चिमी राज्यों को लाभ मिलता है, जबकि विविध फसल प्रतिरूप वाले वर्षा आधारित तथा आदिवासी क्षेत्रों को इससे वंचित रखा जाता है।
  • एकल-फसल जोखिम: फसल विविधता में कमी से कीटों, बीमारियों और जलवायु प्रकोप के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये, व्हीट ब्लास्ट रोग एक फफूंद संक्रमण है जो मैग्नापोर्थे ओराइज़े ट्रिटिकम (MOT) नामक कवक के कारण होता है, जो मुख्य रूप से गेहूँ की फसलों को प्रभावित करता है।

फसल विविधीकरण के संबंध में भारत की क्या पहल हैं?

भारत में कृषि विविधीकरण को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • नीतिगत एवं संस्थागत सुधार: सुनिश्चित खरीद के अंतर्गत कदन्न (मिलेट्स), दलहन, तिलहन और बागवानी फसलों को शामिल करने के लिये MSP कवरेज का विस्तार करना।
  • जलवायु-अनुकूल फसलों को बढ़ावा देना: राष्ट्रीय कदन्न मिशन के माध्यम से कदन्न (ज्वार, बाजरा, रागी) को प्रोत्साहित करना, दलहन और तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देना तथा फलों, सब्जियों एवं फूलों की कृषि के लिये एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) का विस्तार करना। 
  • बाजार संबंधों को मज़बूत करना: बेहतर मूल्य प्राप्ति के लिये राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) का विस्तार करना, कॉर्पोरेट भागीदारी (जैसे, ITC की "ई-चौपाल") के माध्यम से अनुबंध कृषि और कृषि स्टार्टअप को बढ़ावा देना तथा मसालों एवं जैविक उपज जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों के निर्यात संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करना।
  • अवसंरचना एवं प्रौद्योगिकी सहायता: शीघ्र खराब होने वाले उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिये पीएम किसान संपदा योजना के अंतर्गत कोल्ड चेन, गोदामों और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के माध्यम से फसल-उपरान्त सहायता प्रदान करना।
  • वित्तीय सहायता उपाय: विविध फसलों को शामिल करने के लिये पीएम फसल बीमा योजना (PMFBY) का विस्तार करना तथा गैर-अनाज फसलों और कृषि प्रसंस्करण के लिये कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना।
    • आधुनिक कृषि तकनीकों के लिये स्किल इंडिया और किसान ड्रोन के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • क्षेत्र-विशिष्ट रणनीतियाँ: पंजाब-हरियाणा में भूजल तनाव को कम करने के लिये कपास, मक्का और कृषि वानिकी को अपनाना; पूर्वी भारत में बाढ़ प्रतिरोधी चावल की किस्मों तथा जलीय कृषि को बढ़ावा देना, वर्षा आधारित क्षेत्रों में कदन्न एवं दलहनों के साथ शुष्क भूमि कृषि पर ध्यान केंद्रित करना। 

निष्कर्ष

भारत में MSP और सिंचाई सहायता द्वारा चावल एवं गेहूँ की कृषि पर ध्यान केंद्रित करना पोषण, पर्यावरण व बाजार असंतुलन को उत्पन्न कर रहा है। नीतिगत सुधारों, जलवायु-अनुकूल फसलों और बेहतर अवसंरचना के माध्यम से कृषि में विविधता लाने से कृषि को बनाए रखने तथा कृषि आय एवं खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के साथ-साथ इन मुद्दों को हल करने में सहायता मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में कृषि विविधीकरण को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न: जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-

  1. भारत में ‘जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)’ दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
  2.  सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आई.ए.आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय प्राँस में है।
  3.  भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी.), सी.जी.आई.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2            
(b)  केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर:(d)


प्रश्न 2. ‘जलवायु-अनुकूली कृषि के लिये वैश्विक सहबन्ध’ (ग्लोबल एलायन्स फॉर क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) (GACSA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. GACSA, 2015 में पेरिस में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन का एक परिणाम है।
  2.  GACSA में सदस्यता से कोई बन्धनकारी दायित्व उत्पन्न नहीं होता।
  3.  GACSA के निर्माण में भारत की साधक भूमिका थी।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3    
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3   
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 


मेन्स

प्रश्न. जल इंजीनियरिंग और कृषि विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019)

प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है?  (2017)

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