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कृषि

वित्त वर्ष 2024 में भारत का दलहन आयात 6 वर्ष के उच्चतम स्तर पर

  • 22 Apr 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दलहनी फसलें, (PM-AASHA), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), हिडन हंगर

मेन्स के लिये:

भारत के दलहन उत्पादन और आयात के वर्तमान रुझान, भारत के दलहन आयात से संबंधित मुद्दे और संबंधित सरकारी पहल।

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

वित्त वर्ष 2024 में भारत का दलहन आयात 84% बढ़कर छह वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। इस उछाल का कारण देश में दलहनों का कम उत्पादन और लाल मसूर तथा पीली मटर पर आयात शुल्क माफ करने का सरकार का निर्णय है।

भारत में दलहन की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • भारत में दलहन उत्पादन की स्थिति: 
    • भारत विश्वभर में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (विश्व खपत का 27%) और आयातक (14%) है। 
    • खाद्यान्न क्षेत्र में दलहन की हिस्सेदारी लगभग 20% है और देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसका योगदान लगभग 7% -10% है।
    • मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक शीर्ष पाँच दलहन उत्पादक राज्य हैं।

  • दलहन आयात में भारत की स्थिति: 
    • भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 4.65 मिलियन मीट्रिक टन दलहन का आयात किया (वर्ष 2022-23 में 2.53 मिलियन टन से अधिक), जो वर्ष 2018-19 के बाद सबसे अधिक है।
      • मूल्य के संदर्भ में दलहन का आयात 93% बढ़कर 3.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
    • विशेष रूप से कनाडा से लाल मसूर का आयात दोगुना होकर यह 1.2 मिलियन टन हो गया।
    • दिसंबर के बाद से शुल्क-मुक्त आयात के कारण रूस और तुर्किये से पीली मटर के आयात में वृद्धि दर्ज की गई है।
    • भारत सहित दक्षिण एशियाई देश आमतौर पर कनाडा, म्याँमार, ऑस्ट्रेलिया, मोज़ाम्बिक और तंज़ानिया से दलहन का आयात करता है।
  • दलहन:
    • आवश्यक तापमान: 20-27°C के बीच
    • आवश्यक वर्षा: लगभग 25-60 सेमी.
    • मृदा का प्रकार: बलुई-दोमट मृदा
    • शाकाहारी भोजन में ये प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं।
    • दलहनी फसलें होने के कारण अरहर को छोड़कर ये सभी फसलें वायु में मौजूद नाइट्रोजन को अवशोषित करके मृदा की उर्वरता बनाए रखने में सहायता करती हैं। इसलिये इन्हें अधिकतर अन्य फसलों के साथ चक्रानुक्रम में उगाया जाता है।
    • दलहन की कृषि वर्ष भर की जाती है।
    • रबी दालें (60% से अधिक योगदान): चना, बंगाली चना, मसूर, अरहर।
      • रबी फसलों को बुआई के दौरान हल्की ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, वनस्पति से लेकर फली बनने तक ठंडी जलवायु और परिपक्वता/कटाई के दौरान गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
    • खरीफ दालें: मूँग (हरा चना), उड़द (काला चना), तूर (अरहर दाल)।
      • खरीफ दलहनी फसलों को बुआई से लेकर कटाई तक गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।

Major_Pulses_Producing_States

भारत में दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये क्या पहलें की गई हैं?

  • दलहन पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM):
    • कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के नेतृत्व में NFSM-दलहन पहल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख सहित 28 राज्यों तथा 2 केंद्रशासित प्रदेशों में संचालित है।
    • NFSM-दलहन के तहत प्रमुख हस्तक्षेप:
      • विभिन्न हस्तक्षेपों के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से किसानों को सहायता।
      • फसल प्रणाली का प्रमाणन (Cropping System Demonstrations) 
      • बीज उत्पादन और HYV/संकर का वितरण।
      • इसके अतिरिक्त दलहन के लिये 150 बीज केंद्रों की स्थापना ने गुणवत्तापूर्ण दलहन बीजों की उपलब्धता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना:
    • इस व्यापक अम्ब्रेला योजना (वर्ष 2018 में लॉन्च) में तीन घटक शामिल हैं:
      • मूल्य समर्थन योजना (PSS): इस योजना के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर पूर्व-पंजीकृत किसानों से खरीद की जाती है।
      • मूल्य कमी भुगतान योजना (PDPS): इस योजना के तहत मूल्य अंतर के लिये किसानों को मुआवज़ा प्रदान किया जाता है।
      • निजी खरीद स्टॉकिस्ट योजना (PPSS): यह योजना खरीद में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करती है।
  • अनुसंधान एवं विविधता के विकास में ICAR की भूमिका:
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) अनुसंधान और विकास प्रयासों के माध्यम से दलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ICAR निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित करती है:
      • दालों पर बुनियादी और रणनीतिक अनुसंधान।
      • राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ सहयोगात्मक अनुप्रयुक्त अनुसंधान।
      • स्थान-विशिष्ट उच्च उपज वाली किस्मों और उत्पादन पैकेज का विकास।
      • वर्ष 2014 से वर्ष 2023 की अवधि के दौरान देश भर में व्यावसायिक खेती के लिये दालों की प्रभावशाली 343 उच्च उपज वाली किस्मों और संकर बीज को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की गई है।

दलहन आयात पर भारत की निर्भरता के पीछे क्या कारण हैं?

  • फसल पद्धति में बदलाव: 
    • परंपरागत रूप से भारत में किसान दलहन के साथ फसल चक्र अपनाते हैं। हालाँकि विगत दशकों में निम्नलिखित कारणों से चावल तथा गेहूँ जैसी जल-गहन फसलों की खेती में बदलाव आया है।
      • चावल तथा गेहूँ मुख्य भारतीय खाद्यान्न हैं, जिनकी खपत एवं मांग में वृद्धि हुई है।
      • MSP में उत्पादन की औसत लागत पर उच्च लाभ के साथ विशिष्ट वस्तुओं की गारंटीकृत खरीद सरकारी प्रोत्साहन के उदाहरण हैं।
      • कुछ क्षेत्रों में बेहतर सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता।
  • कम लाभप्रदता: 
    • खाद्यान्नों की तुलना में दलहन प्राय: प्रति हेक्टेयर कम लाभ प्रदान करती हैं जो किसानों को इनके उत्पादन को लेकर हतोत्साहित करता है, विशेषकर उपजाऊ एवं सिंचित भूमि पर।
  • जलवायु चुनौतियाँ
    • अनियमित वर्षा एवं सूखा दलहन उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, जो आमतौर पर वर्षा आधारित फसलें हैं।
  • सीमित तकनीकी प्रगति
    • खाद्यान्न एवं नकदी फसलों की तुलना में दलहनों में अनुसंधान एवं  विकास तथा रोगों एवं कीटों के प्रति संवेदनशीलता अधिक होती है।

दलहन के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के क्या उपाय हैं? 

  • घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना:
    • दलहनों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करना जो चावल तथा गेहूँ जैसी अन्य फसलों के प्रति प्रतिस्पर्द्धी होती हैं।

    • बीज, उर्वरक एवं दलहनों के लिये विशिष्ट अन्य कृषि आदानों हेतु सब्सिडी प्रदान करना।
    • मौसम के उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये फसल बीमा योजनाएँ लागू करना।
  • फसल चक्र को बढ़ावा देना: 
    • मृदा स्वास्थ्य एवं सतत् कृषि हेतु फसल चक्र के दीर्घकालिक लाभों पर प्रकाश डालते हुए किसानों को दलहनों को अपनी फसल प्रणाली में पुनः शामिल करने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • अधिक उपज देने वाली प्रजातियाँ विकसित करना:
    • विभिन्न क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुकूल सूखा प्रतिरोधी, अधिक उपज देने वाली दलहन किस्मों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
    • किसानों को प्रशिक्षण एवं विस्तार कार्यक्रमों के माध्यम से इन उन्नत किस्मों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • सिंचाई अवसंरचना में सुधार:
    • दलहन की कृषि हेतु उपयुक्त क्षेत्रों, विशेषकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना।
    • जल संरक्षण के लिये ड्रिप सिंचाई जैसी जल-कुशल सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना।
  • कीमतों में उतार-चढ़ाव को कम करना:
    • फसल कटाई के बाद होने वाली हानि को कम करने और साथ ही पूरे वर्ष मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु दलहनों की भंडारण सुविधाओं में सुधार करना।
    • सुव्यवस्थित आपूर्ति शृंखला प्रबंधन: परिवहन लागत को कम करने एवं बिचौलियों द्वारा मूल्य में हेर-फेर को कम करने के लिये आपूर्ति शृंखला की दक्षता में वृद्धि करना।
  • वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों को बढ़ावा देना: 
    • दाल, कदन्न और साथ ही अंडे जैसे प्रोटीन युक्त विकल्पों की खपत को बढ़ावा देकर आहार विविधीकरण (हिडन हंगर को समाप्त करना) को प्रोत्साहित करना।

NAFED क्या है?

  • भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ लिमिटेड की स्थापना 2 अक्तूबर, 1958 को गांधी जयंती के शुभ अवसर पर की गई थी।
  • यह बहु-राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम के तहत पंजीकृत है।
  • यह भारत में कृषि उपज के विपणन हेतु सहकारी समितियों का एक शीर्ष संगठन है।
  • यह वर्तमान में प्याज़, दालें एवं तिलहन जैसे कृषि उत्पादों के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. दलहन के आयात पर भारत की निर्भरता के संबंध में वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिये। दलहन उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता से संबंधित चुनौतियों एवं संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में दालों के उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)  

  1. उड़द की खेती खरीफ और रबी दोनों फसलों में की जा सकती है। 
  2. कुल दाल उत्पादन का लगभग आधा भाग केवल मूँग का होता है। 
  3. पिछले तीन दशकों में जहाँ खरीफ दालों का उत्पादन बढ़ा है, वहीं रबी दालों का उत्पादन घटा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1   
(b) केवल 2 और 3   
(c) केवल 2   
(d) 1, 2 और 3  

उत्तर: (a)  


मेन्स: 

प्रश्न. जल इंजीनियरी और कृषि-विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019)

प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017)

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