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कृषि

वैश्विक दलहन सम्मेलन

  • 21 Feb 2024
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड, ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन, शीर्ष दाल उत्पादक राज्य, न्यूनतम समर्थन मूल्य, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)-दलहन, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) योजना, मूल्य स्थिरीकरण निधि

मेन्स के लिये:

भारत में दलहन उत्पादन की स्थिति, भारत में दलहन उत्पादन से संबंधित चिंताएँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India Ltd- NAFED) और ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन (GPC) द्वारा संयुक्त रूप से वैश्विक दलहन सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का आयोजन वार्षिक रूप से किया जाता है, जिसमें मुख्य रूप से दलहन उत्पादक, संसाधक तथा व्यापारी भाग लेते हैं।

  • भारत ने वर्ष 2027 तक दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसमें कृषि में वृद्धि और कृषकों को नई किस्म के बीजों की आपूर्ति कराने पर पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन क्या है?

  • वैश्विक दलहन महापरिसंघ (ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन- GPC) दलहन उद्योग मूल्य शृंखला के सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें उत्पादक, शोधकर्त्ता, रसद आपूर्तिकर्त्ता, व्यापारी, निर्यातक और आयातक के साथ-साथ विभिन्न सरकारी निकाय, बहुपक्षीय संगठन, संसाधक/प्रोसेसर, कैनर्स और उपभोक्ता शामिल हैं।
    • इसमें 24 राष्ट्रीय संघ और 500 से अधिक निजी क्षेत्र के सदस्य शामिल हैं।
  • यह दुबई में स्थित है और इसे दुबई मल्टी कमोडिटी सेंटर (DMCC) द्वारा लाइसेंस प्राप्त है।

भारत में दलहन उत्पादन की स्थिति क्या है?

  • परिचय: भारत विश्व में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (विश्व खपत का 27%) तथा आयातक (14%) है।
    • खाद्यान्न के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में दलहन की हिस्सेदारी लगभग 20% है तथा देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसका योगदान लगभग 7-10% है।
  • शीर्ष दलहन उत्पादक राज्य: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक।
  • मुख्य किस्में: दलहन का उत्पादन संपूर्ण कृषि वर्ष में किया जाता है।
    • रबी फसलों को बुवाई के दौरान हल्की ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, वानस्पतिक से लेकर फली बनने तक ठंडी जलवायु की और परिपक्वता/कटाई के दौरान गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
    • खरीफ दलहनी फसलों को बुवाई से लेकर कटाई तक उनके पूरे जीवनकाल के दौरान गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
      • रबी सीज़न की दलहन (कुल उत्पादन में 60% से अधिक योगदान): चना, चना (बंगाल चना), मसूर, अरहर।
      • खरीफ सीज़न की दलहन: मूंग (हरा चना), उड़द (काला चना), तूर (अरहर दाल)।

  • प्रमुख निर्यात गंतव्य (2022-23): बांग्लादेश, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और नेपाल।
  • महत्त्व:
    • पोषण संबंधी पावरहाउस: दालें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर होती हैं, जो मनुष्य के आहार को आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान करती हैं।
    • मृदा संवर्द्धन: ये फसलें मृदा में नाइट्रोजन को स्थिर करती हैं, उर्वरता में सुधार करती हैं और अपनी फलीदार प्रकृति के कारण सिंथेटिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करती हैं।
    • जलवायु स्मार्ट फसल: दलहन सूखा-सहिष्णु (जल-गहन) फसलें हैं और कई अन्य फसलों की तुलना में इनमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है, जो स्थिरता में योगदान देता है।
    • फसल स्वास्थ्य और चक्रण: फसल चक्र में दालों को शामिल करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है, रोग चक्र कम होता है और खरपतवारों को कम करता है, जिससे स्वस्थ कृषि प्रणालियों को बढ़ावा मिलता है।
  • संबंधित चिंताएँ:
    • उपज में अंतर: अन्य प्रमुख उत्पादकों की तुलना में भारत में दालों की कम उत्पादकता, जिससे मांग को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भरता होती है।
    • दलहन फसलों पर ध्यान न देना: चावल व गेहूँ की खेती पर विशेष ज़ोर देने के कारण दालों के लिये अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास और बुनियादी ढाँचा तैयार हुआ।
    • उच्च आयात निर्भरता: भारत को अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिये सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद कुछ दालों का आयात करने की आवश्यकता है, जिससे आत्मनिर्भरता प्रभावित हो रही है।
  • संबंधित सरकारी पहल:

NAFED क्या है?

  • भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India Limited- NAFED) की स्थापना 2 अक्तूबर, 1958 को गांधी जयंती के दिन पर की गई थी। 
  • यह भारत में कृषि उपज के विपणन सहकारी समितियों का एक शीर्ष संगठन है।
    • यह वर्तमान में प्याज, दलहन और तिलहन जैसे कृषि उत्पादों के सबसे बड़े खरीददारों में से एक है।

आगे की राह 

  • द्वितीय हरित क्रांति की ओर बढ़ना: स्थानीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल प्रमाणित अधिक उपज वाली, रोग प्रतिरोधी दलहन किस्मों की उपलब्धता को सुविधाजनक बनाना।
    • किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीजों की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये बीज बैंकों, सामुदायिक बीज प्रणालियों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना, जो दलहन उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
  • उत्पाद विविधीकरण और मूल्य संवर्द्धन: बाज़ार तक पहुँच बढ़ाने और नए उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिये दाल के आटे, स्नैक्स एवं प्रोटीन सप्लीमेंट जैसे मूल्य वर्द्धित उत्पादों का विकास करना।
  • व्यापक किसान सहायता कार्यक्रम: दलहन किसानों के लिये व्यापक सहायता कार्यक्रम लागू करना, जिसमें ऋण, बीमा कवरेज और विस्तार सेवाओं तक पहुँच शामिल है।
    • किसानों को सामूहिक रूप से सशक्त बनाने और बाज़ार में उनकी मोल-भाव की शक्ति को बढ़ाने के लिये किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organisations- FPO) को मज़बूत करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में दालों के उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)  

  1. उड़द की खेती खरीफ और रबी दोनों फसलों में की जा सकती है।
  2. कुल दाल उत्पादन का लगभग आधा भाग केवल मूँग का होता है।
  3. पिछले तीन दशकों में, जहाँ खरीफ दालों का उत्पादन बढ़ा है, वहीं रबी दालों का उत्पादन घटा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1   
(b) केवल 2 और 3   
(c) केवल 2   
(d) 1, 2 और 3  

उत्तर: (a)  


मेन्स: 

प्रश्न.1 शस्यन तंत्र में धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के लिये क्या-क्या मुख्य कारण हैं? तंत्र में फसलों की उपज के स्थिरीकरण में शस्य  विविधीकरण किस प्रकार मददगार होता है? (2017) 

प्रश्न.2 दलहन की कृषि के लाभों का उल्लेख कीजिये जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र के द्वारा वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष घोषित किया गया था। (2017)

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