जयपुर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 7 अक्तूबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

वर्ष 2050 तक 90% मृदा क्षरण की चेतावनी-UNESCO

  • 12 Jul 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

यूनेस्को, बायोस्फीयर रिज़र्व कार्यक्रम, मरुस्थलीकरण, खाद्य एवं कृषि संगठन, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, बॉन चैलेंज

मेन्स के लिये:

भारत में मृदा स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियाँ, मृदा क्षरण से संबंधित मुद्दे, संरक्षण

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मोरक्को के अगादीर में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के महानिदेशक ने अपने 194 सदस्य देशों से मृदा संरक्षण और पुनर्वास में सुधार करने का आग्रह किया, संगठन ने चेतावनी दी है कि वर्ष 2050 तक ग्रह की 90% तक मृदा क्षरण हो सकता है।

  • यह चिंताजनक भविष्यवाणी वैश्विक जैवविविधता और मानव जीवन के लिये एक बड़े संकट को उज़ागर करती है।

वैश्विक मृदा क्षरण पर यूनेस्को की अंतर्दृष्टि क्या है?

  • मृदा क्षरण की वर्तमान स्थिति: यूनेस्को ने कहा है कि मरुस्थलीकरण के विश्व एटलस के अनुसार, 75% मृदा क्षरण पहले ही हो चुका है, जिसका सीधा असर 3.2 बिलियन लोगों पर पड़ रहा है। मौजूदा रुझान के अनुसार वर्ष 2050 तक इसका असर 90% तक बढ़ सकता है।
  • विश्व मृदा स्वास्थ्य सूचकांक: यूनेस्को मृदा की गुणवत्ता माप और तुलना को मानकीकृत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ एक 'विश्व मृदा स्वास्थ्य सूचकांक' स्थापित करेगा।
    • इससे क्षरण या सुधार और संवेदनशील क्षेत्रों में रुझानों की पहचान करने में सहायता मिलेगी, जिसका उद्देश्य मृदा प्रबंधन प्रथाओं के मूल्यांकन में सुधार करना है।
  • स्थायी मृदा प्रबंधन हेतु पायलट कार्यक्रम: यूनेस्को अपने बायोस्फीयर रिज़र्व कार्यक्रम द्वारा समर्थित दस प्राकृतिक स्थलों में स्थायी मृदा और भूदृश्य प्रबंधन के लिये एक पायलट कार्यक्रम शुरू करेगा।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य प्रबंधन विधियों का मूल्यांकन और सुधार करना तथा विश्व भर में सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम: यूनेस्को सदस्य सरकारी एजेंसियों, स्वदेशी समुदायों और संरक्षण संगठनों को मृदा-संरक्षण उपकरणों तक पहुँच के लिये प्रशिक्षित करेगा।

मृदा क्षरण क्या है?

  • परिभाषा: मृदा क्षरण को मृदा स्वास्थ्य स्थिति में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र की अपने लाभार्थियों को वस्तुओं और सेवाएँ प्रदान करने की क्षमता कम हो जाती है। इसमें मृदा की गुणवत्ता में जैविक, रासायनिक और भौतिक क्षरण शामिल है।
    • मृदा क्षरण में कई तरह की प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जो मृदा स्वास्थ्य और इसके पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर ठीक से काम करने की क्षमता को कम करती हैं।
    • यह भूमि क्षरण की LADA (शुष्क भूमि में भूमि क्षरण आकलन) परिभाषा का अनुसरण करता है, जो क्षरण प्रक्रियाओं की जटिलता और विभिन्न हितधारकों द्वारा उनके व्यक्तिपरक मूल्यांकन पर प्रकाश डालता है।
    • यह क्षरण कार्बनिक पदार्थों की हानि, मृदा की उर्वरता में गिरावट, संरचनात्मक क्षति, अपरदन और लवणता, अम्लता या क्षारीयता में प्रतिकूल परिवर्तनों के माध्यम से प्रकट हो सकता है। इसमें विषैले रसायनों, प्रदूषकों या अत्यधिक बाढ़ से होने वाला संदूषण भी शामिल है।
  • मृदा निम्नीकरण की वर्तमान स्थिति: विश्व की लगभग 33% मृदा मध्यम से अधिक निम्नीकृत हैं। यह निम्नीकरण निर्धनता एवं खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त क्षेत्रों को असमान रूप से प्रभावित करती है, जिसमें 40% निम्नीकृत मृदा अफ्रीका में है।
    • वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 12 मिलियन हेक्टेयर कृषि मृदा निम्नीकरण के कारण नष्ट हो जाती है।
    • राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण तथा भूमि उपयोग योजना के अनुसार, भारत में 146.8 मिलियन हेक्टेयर अर्थात् लगभग 30% मृदा निम्नीकृत हो चुकी है।
      • इसमें से लगभग 29% समद्र में नष्ट हो जाती है, 61% एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित हो जाती है तथा 10% जलाशयों में जमा हो जाती है।
  • कारण: मृदा का निम्नीकरण विभिन्न कारकों के कारण हो सकता है जैसे भौतिक कारक, वर्षा, सतही अपवाह, बाढ़, हवा का कटाव और जुताई। 
    • जैविक कारकों में पौधें एवं मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं जो मृदा की गुणवत्ता को कम करती हैं, जबकि रासायनिक कारकों में क्षारीयता, अम्लीयता या जलभराव के कारण पोषक तत्त्वों में कमी शामिल है।
      • हरित क्रांति ने खाद्य उत्पादन को बढ़ावा दिया, लेकिन मृदा का अत्यधिक निम्नीकरण भी  हुआ।
    • तीव्र शहरीकरण और विकास परियोजनाओं के कारण भूमि का रूपांतरण हुआ।
    • जब वनों और फसलों को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये हटा दिया जाता है, तो वनों की कटाई मृदा के खनिजों को समाप्त करके मृदा की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। नदियों में औद्योगिक अपशिष्ट तथा अनुपचारित सीवेज के निर्वहन से भारी धातु युक्त, विषाक्त जल निर्मित होता है जिससे मृदा गुणवत्ता में कमी हो जाती है।
      • खनन गतिविधियाँ, जैसे कि ओपनकास्ट खनन, भूजल स्तर को बिगाड़ती हैं, मृदा एवं जल को दूषित करती हैं और साथ ही स्थानीय वनस्पतियों एवं जीवों को नष्ट करती हैं। कई राज्यों ने प्रदूषण कानूनों को लागू नहीं किया, जिससे उद्योगों को कृषि भूमि पर विषाक्त अपशिष्ट को डंप करने की अनुमति प्राप्त हो जाती है।
  • प्रभाव: निम्नीकृत होती मृदा के कारण खाद्य उत्पादन में कमी आती है, खाद्य असुरक्षा बढ़ती है तथा पारिस्थितिकी तंत्र में कमी भी होती हैं।
    • मृदा निम्नीकरण भी एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है, जो कार्बन भंडार पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन को प्रभावित करता है।

नोट: 

  • भूमि निम्नीकरण का दायरा मृदा अपरदन और मृदा निम्नीकरण दोनों की तुलना में अधिक व्यापक है। इसमें जैविक, जल-संबंधी, सामाजिक तथा आर्थिक सेवाओं सहित वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान करने हेतु पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता में सभी नकारात्मक परिवर्तन शामिल हैं।
  • मरुस्थलीकरण से तात्पर्य शुष्क भूमि वाले क्षेत्रों में भूमि निम्नीकरण या भूमि की ऐसी अपरिवर्तनीय स्थिति में परिवर्तन से है, जहाँ उसे उसके मूल उपयोग के लिये पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता।

मृदा प्रबंधन से संबंधित पहल क्या हैं?

  • वैश्विक: 
    • वैश्विक मृदा भागीदारी (GSP): वर्ष 2012 में स्थापित GSP का उद्देश्य वैश्विक एजेंडे में मृदा को प्राथमिकता देना और टिकाऊ मृदा प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
      • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) द्वारा आयोजित इस साझेदारी का उद्देश्य उत्पादक मृदाओं के लिये मृदा प्रशासन को बढ़ाना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं शमन तथा सभी के लिये सतत् विकास सुनिश्चित करना है।
    • विश्व मृदा दिवस: स्वस्थ मृदा के महत्त्व के संबंध में जागरूकता बढ़ाने और टिकाऊ मृदा प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये यह प्रतिवर्ष 5 दिसंबर को मनाया जाता है। इसे आधिकारिक तौर पर 68वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा 2013 द्वारा अपनाया गया था, जिसने 5 दिसंबर, 2014 को पहला आधिकारिक विश्व मृदा दिवस घोषित किया।
    • बॉन चैलेंज: इसका वैश्विक लक्ष्य वर्ष 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर क्षरित एवं वनविहीन भू-क्षेत्र को पुनःस्थापित करना तथा वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भू-क्षेत्र को पुनःस्थापित करना है।
      • इसे जर्मनी सरकार और अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) द्वारा वर्ष 2011 में लॉन्च किया गया था, इस चैलेंज ने वर्ष 2017 में प्रतिज्ञाओं के लिये 150 मिलियन हेक्टेयर की सीमा को पार कर लिया।
    • भूमि क्षरण तटस्थता (LDN): मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण को रोकना और उसकी स्थिति को उलटना है।
      • LDN को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहाँ भूमि संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता विशिष्ट समय तथा स्थान के भीतर स्थिर या बढ़ती रहती है तथा पारिस्थितिकी तंत्र, खाद्य सुरक्षा एवं मानव कल्याण को समर्थन प्रदान करती है:
    • सतत् विकास लक्ष्य 15: 2030 एजेंडा के लक्ष्य 15 का उद्देश्य स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के सतत् उपयोग की रक्षा, पुनर्स्थापना और संवर्द्धन करना, वनों का स्थायी प्रबंधन करना, मरुस्थलीकरण से निपटना, भूमि क्षरण को रोकना और उलटना तथा जैवविविधता की हानि को रोकना है।
    • कृषि मृदाओं का पुनः कार्बनीकरण (RECSOIL): इसका नेतृत्व FAO द्वारा किया गया था और इसका उद्देश्य टिकाऊ मृदा प्रबंधन (SSM) प्रथाओं के माध्यम से मृदा कार्बनिक कार्बन (SOC) को बढ़ाकर वैश्विक कृषि मृदाओं को कार्बन मुक्त करना है।
  • भारत:

आगे की राह 

  • पुनर्योजी कृषि: यह फसल चक्र, कवर क्रॉपिंग और कम जुताई जैसी प्रथाओं के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करने पर केंद्रित है। ये विधियाँ मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाती हैं, जल प्रतिधारण में सुधार करती हैं और जैवविविधता को बढ़ाती हैं।
  • मृदा संरचना और उर्वरता में सुधार के लिये बायोचार, खाद तथा अन्य जैविक संशोधनों का विकास तथा उपयोग करना।
  • कृषि वानिकी को बढ़ावा देना: कृषि परिदृश्य में पेड़ों और झाड़ियों को एकीकृत करना। कृषि वानिकी न केवल मिट्टी के कटाव को रोकती है बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है।
  • मूल्यांकन और मानचित्रण: मृदा स्वास्थ्य निगरानी के मानकीकरण पर एक वैश्विक डेटाबेस बनाएँ, इससे प्रगति पर बेहतर नज़र रखने और लक्षित हस्तक्षेपों को सुविधाजनक बनाने में मदद मिलेगी।
  • हरित अवसंरचना: शहरी नियोजन में हरित छतों, बायोस्वाल और शहरी पार्कों को एकीकृत करना। इससे वर्षा जल का रिसाव कम होगा, अपवाह कम होगा और स्वस्थ मिट्टी के क्षेत्र बनेंगे।
  • शहरी कृषि या हरित स्थानों के लिये परित्यक्त औद्योगिक स्थलों को पुनः प्राप्त करना और सुधारना, जिससे मृदा पुनर्जनन को बढ़ावा मिले।
  • जैविक उपचार: प्रदूषित मिट्टी में प्रदूषकों को तोड़ने या बेअसर करने के लिये सूक्ष्मजीवों और पौधों का उपयोग करें, जिससे प्राकृतिक मिट्टी उपचार को बढ़ावा मिले।
  • फाइटोमाइनिंग: उन विशिष्ट पौधों के उपयोग का पता लगाएँ जो दूषित मिट्टी से धातुओं को अवशोषित और संचित कर सकते हैं, जिससे प्राकृतिक उपचार का दृष्टिकोण प्राप्त हो सके।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

राष्ट्रव्यापी 'मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' का उद्देश्य है:

  1. सिंचाई के तहत कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करना।
  2. बैंकों को मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर किसानों को दिये जाने वाले ऋणों की मात्रा का आकलन करने में सक्षम बनाना।
  3. खेत में उर्वरकों के अतिप्रयोग को रोकना।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस.) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2