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डेली न्यूज़

  • 24 Feb, 2022
  • 49 min read
आंतरिक सुरक्षा

सीमा अवसंरचना और प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये: 

सीमा अवसंरचना एवं प्रबंधन, सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

सीमाओं की सुरक्षा में सीमा अवसंरचना और प्रबंधन का महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में गृह मंत्रालय ने 13,020 करोड़ रुपए की लागत से वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 तक 15वें वित्त आयोग की अवधि के दौरान "सीमा अवसंरचना और प्रबंधन" (Border Infrastructure and Management) की केंद्रीय क्षेत्र की समग्र योजना को जारी रखने की मंज़ूरी दी है।  

प्रमुख बिंदु: 

BIM योजना:

  • BIM योजना से भारत-पाकिस्तान, भारत-बांग्लादेश, भारत-चीन, भारत-नेपाल, भारत-भूटान और भारत-म्यांँमार सीमाओं को सुरक्षित करने के लिये विभिन्‍न अवसंरचना जैसे- सीमा बाड़, बॉर्डर फ्लड लाइट, तकनीकी समाधान, सीमा सड़कों और सीमा चौकियों (बीओपी)/कंपनी संचालन केंद्रों या ऑपरेटिंग बेस (Company Operating Bases (COBs) के निर्माण में काफी मदद मिलेगी।
  • यह सीमा प्रबंधन, पुलिसिंग और सीमाओं की रखवाली में सुधार के लिये सीमा के बुनियादी ढांँचे को मज़बूत करेगा।
  • पाकिस्तान के साथ भारत की 3,323 किमी. लंबी सीमा है, जिसमें लगभग 775 किमी. लंबी नियंत्रण रेखा शामिल है। भारत की कुल सीमा में बांग्लादेश के साथ 4,096 किमी., चीन के साथ 3,488 किमी., नेपाल के साथ 1,751 किमी., भूटान के साथ 699 किमी., म्यांँमार के साथ 1,643 किमी. शामिल है।

सीमाओं को सुरक्षित करने हेतु की गई अन्य पहलें:

  • जीवंत ग्राम कार्यक्रम:
    • विरल आबादी वाले सीमावर्ती गाँव सीमित संपर्क एवं बुनियादी ढाँचे के अभाव के कारण प्रायः ‘विकास के लाभ’ से वंचित रह जाते हैं। उत्तरी सीमा पर ऐसे गाँवों को बजट 2022-23 के तहत घोषित नए जीवंत ग्राम कार्यक्रम’ में कवर किया जाएगा। 
    • इन गतिविधियों में ग्रामीण बुनियादी ढाँचे का निर्माण, आवास, पर्यटन केंद्र, सड़क संपर्क, विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा का प्रावधान, दूरदर्शन एवं शैक्षिक चैनलों का प्रत्यक्ष प्रसारण और आजीविका सृजन हेतु समर्थन शामिल होगा।
    • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के करीब चीनी 'मॉडल गाँवों' का मुकाबला करने के लिये यह कदम उठाया गया है।
    • यह मौजूदा सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम का एक उन्नत संस्करण होगा।
  • सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम:
    • ‘सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ (BADP) की शुरुआत सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) के दौरान पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास और सीमावर्ती आबादी के बीच सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देने हेतु सीमावर्ती क्षेत्रों के संतुलित विकास को सुनिश्चित करने के लिये की गई थी।
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास स्थित दूरस्थ एवं दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की विशेष विकास आवश्यकताओं को पूरा करना और केंद्रीय/राज्य/BADP/स्थानीय योजनाओं के अभिसरण तथा भागीदारी दृष्टिकोण के माध्यम से आवश्यक बुनियादी ढाँचे के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों को संतृप्त करना है।
  • भारत में स्मार्ट फेंसिंग (CIBMS):
    • भारत-पाकिस्तान सीमा (10 किलोमीटर) और भारत-बांग्लादेश सीमा (61 किलोमीटर) पर व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (CIBMS) के तहत 71 किलोमीटर की दो पायलट परियोजनाएंँ पूरी हो चुकी हैं।
      • CIBMS के तहत सीमाओं पर अत्याधुनिक निगरानी तकनीकों की एक शृंखला को तैनात किया जाना शामिल है- थर्मल इमेजर्स, इन्फ्रा-रेड और लेज़र-आधारित घुसपैठ अलार्म, हवाई निगरानी हेतु एयरोस्टेट, बिना सेंसर वाले ग्राउंड सेंसर जो रडार, सोनार सिस्टम का पता लगाने में मदद कर सकते हैं, फाइबर-ऑप्टिक सेंसर तथा एक कमांड एवं कंट्रोल सिस्टम जो वास्तविक समय (Real Time) में सभी निगरानी उपकरणों से डेटा प्राप्त करने में सक्षम है।
      • बॉर्डर इलेक्ट्रॉनिकली डोमिनेटेड क्यूआरटी इंटरसेप्शन टेक्नीक (BOLD-QIT) का इस्तेमाल CIBMS के तहत असम के धुबरी ज़िले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर भी किया जा रहा है।
  • सीमा सड़क संगठन (BRO):
    • वर्ष 1960 में स्थापित यह संगठन सड़कों, पुलों, राजमार्गों, हवाई अड्डों, सुरंगों, इमारतों और ऐसी अन्य संरचनाओं सहित रक्षा बुनियादी ढांँचा प्रदान करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
    • BRO द्वारा सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के लोगों के लिये 53,600 किलोमीटर से अधिक की जीवन रेखा (सड़क) का निर्माण किया गया है।

सीमा क्षेत्र अवसंरचना विकास संबंधी सारिणी:

पकिस्तान

चीन

बांग्लादेश

मुख्य खतरा

युद्ध, उग्रवाद, तस्करी

युद्ध

तस्करी, मानव तस्करी

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

 

सी.आई.बी.एम.एस. एक अच्छी तरह से प्रशिक्षित और बड़े ‘बोल्ड-क्यूआईटी’ के साथ निगरानी, ​​दूर-दराज़ के क्षेत्रों, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर को जोड़ने वाले एक से अधिक मार्ग

बख्तरबंद वाहन सक्षम बुनियादी ढाँचा, उच्च ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र

सी.आई.बी.एम.एस. द्वारा नदी के हिस्सों सहित पूरे क्षेत्र में बोल्ड-क्यूआईटी के साथ निगरानी

क्या कदम उठाए गए हैं?

वर्ष 2023 तक सी.आई.बी.एम.एस. वाले कुछ हिस्सों में लेह के लिये तीसरा मार्ग खोला जाएगा

दौलत बेग ओल्डी हवाई क्षेत्र कुछ पुलों और सुरंगों के साथ बख्तरबंद वाहनों के आवागमन सक्षम हैं

ब्रह्मपुत्र नदी सीमा पर निगरानी, बाकी नदियाँ अभी बाकी हैं

नेपाल

भूटान

म्याँमार

मुख्य खतरा

तस्करी, मानव तस्करी

तस्करी

युद्ध, उग्रवाद, तस्करी

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

सी.आई.बी.एम.एस. BOLD-QIT  के साथ निगरानी

भूटान-चीन सीमा तक बख्तरबंद वाहन सक्षम सड़क संपर्क

सी.आई.बी.एम.एस. उग्रवाद से निपटने के लिये बड़े और अधिक कुशल बोल्ड-क्यूआईटी के साथ निगरानी, ​​तेज़ी से सैनिकों की आवाजाही के लिये सड़कें

क्या कदम उठाए गए हैं?

नियोजन स्तर

B.R.O. इस पर कार्य कर रहा है

कुछ सड़कें मौजूद हैं। सी.आई.बी.एम.एस. नियोजन स्तर

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

एनिमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स (AVGC) सेक्टर

प्रिलिम्स के लिये:

एनिमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स (AVGC) सेक्टर।

मेन्स के लिये:

एनिमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स (AVGC) सेक्टर, इस क्षेत्र का महत्त्व तथा संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में सरकार ने ‘भारतीय बाज़ारों और वैश्विक मांग को पूरा करने हेतु घरेलू क्षमता निर्माण’ के लिये ‘एनिमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स’ (AVGC) टास्क फोर्स की स्थापना की घोषणा की है।

  • इससे पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कर्नाटक पुलिस (संशोधन) अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधानों को खारिज कर दिया था, जिसमें ऑनलाइन गैंबलिंग और कौशल-आधारित गेमिंग प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • वर्ष 2021 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने IIT-बॉम्बे के सहयोग से गेमिंग और अन्य संबंधित क्षेत्रों में उत्कृष्टता केंद्र बनाने का निर्णय लिया।

AVGC सेक्टर का क्या महत्त्व है?

  • वैश्विक मांग को पूरा करने में बड़ी भूमिका:
    • यह भारत को मेटावर्स के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाने में मदद करेगा, जिसके तहत भारतीय बाज़ार में मेटावर्स संबंधी सेवाओं की पूर्ति हो सकेगी और इससे संबंधित वैश्विक मांग को भी पूरा किया जा सकेगा।
      • ‘मेटावर्स’ 3D आभासी दुनिया का एक नेटवर्क है, जो सोशल कनेक्शन पर केंद्रित है और इसे एक सिम्युलेटेड डिजिटल वातावरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो ऑगमेंटेड रियलिटी (AR), वर्चुअल रियलिटी (VR), ब्लॉकचेन और सोशल मीडिया की अवधारणाओं के साथ वास्तविक दुनिया को सिम्युलेट करता है।
    • यह अभिकर्त्ताओं और प्लेटफाॅर्मों के लिये नए रास्ते भी खोल सकता है और साथ ही खेल कला शिक्षा को औपचारिक रूप दे सकता है क्योंकि उद्योग में अधिकांश अनुभवात्मक रूप से सीखते हैं।
  • राजस्व में योगदान:
    • वित्त वर्ष 2018-19 के अंत में लगभग 250 मिलियन गेमर्स से वर्ष 2020 के मध्य तक भारत में गेमर्स की संख्या बढ़कर लगभग 400 मिलियन हो गई।
    • यह इसे चीन के बाद दुनिया में ऑनलाइन गेमर्स का दूसरा सबसे बड़ा आधार बनाता है।
    • ऑनलाइन कैज़ुअल गेमिंग, जो कुल गेमिंग राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है, अगले चार वर्षों में लगभग 29% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने का अनुमान है और वित्त वर्ष 2025 तक 169 बिलियन रुपए तक पहुँचने का अनुमान है।
  • रोज़गार सृजन:
    • AVGC क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों की अपार संभावनाएँ हैं।
    • रोज़गार के अवसरों की यह संख्या इस पूरे क्षेत्र के लिये लगभग 70,000 से 1.2 लाख के बीच होगी। 

एवीजीसी क्षेत्र से संबंधित समस्याएँ:

  • कोई औपचारिकता नहीं:
    • AVGC क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहा है लेकिन अच्छे प्रोग्रामर, ग्राफिक डिज़ाइनर या निर्यात प्रबंधकों के लिये एक शून्य की स्थिति है क्योंकि कोई औपचारिक गेमिंग पाठ्यक्रम मौजूद नहीं है।
  • विनियामक से संबंधित मुद्दे:
    • नियामकीय स्पष्टता इस क्षेत्र के लिये एक बड़ी समस्या बनी हुई है क्योंकि कंपनियों द्वारा कथित तौर पर जुआ खेलने के आरोप में राज्य सरकारें इनके खिलाफ न्यायालय का सहारा लेती हैं।
      • कंपनियों द्वारा इस बात का ज़ोरदार खंडन करते हुए कहा गया है कि यह 'मौके का खेल' (Games Of Chance) नहीं बल्कि 'कौशल का खेल' (Games Of Skill) है।

आगे की राह 

  • इस क्षेत्र में विनियामक स्पष्टता को सुनिश्चित करने के लिये केंद्र और राज्य की समान भागीदारी की आवश्यकता है।
  • टास्क फोर्स को इस तरह के पहलुओं पर गौर करना चाहिये जैसे कि क्षमताओं का निर्माण कैसे किया जाए, भविष्य में क्षमता निर्माण हेतु इसे शिक्षा प्रणालियों में किस प्रकार शामिल किया जाए।
  • इस क्षेत्र में शिक्षा को औपचारिक रूप देने के तरीके खोजना आवश्यक है, ताकि देश में एनिमेटर, डिज़ाइनर और ऐसे लोग हों जो भारत से उन खेलों के निर्माण तथा उनके वातावरण निर्मित कर सकें।

स्रोत: द हिंदू 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

2023 के जी20 शिखर सम्मेलन के लिये सचिवालय

प्रिलिम्स के लिये:

G20 और उसके सदस्य, G20 देशों का स्थान।

मेन्स के लिये:

G20 का महत्त्व, G20 में भारत की भूमिका, भारत को शामिल करने वाले समूह और समझौते और/या भारत के हितों को प्रभावित करना।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक सचिवालय बनाने की प्रक्रिया को गति प्रदान की, जो वर्ष 2023 में G20 शिखर सम्मेलन के आयोजन से संबंधित मामलों की देख-रेख करेगा।

  • भारत 1 दिसंबर, 2022 से 30 नवंबर, 2023 तक अध्यक्ष के रूप में इस अंतर्राष्ट्रीय निकाय का संचालन करेगा, जिसमें यहाँ आयोजित होने वाले G20 शिखर सम्मेलन का नेतृत्व किया जाएगा।
  • सचिवालय फरवरी 2024 तक कार्य करेगा। यह बहुपक्षीय मंचों पर वैश्विक मुद्दों को लेकर भारत के नेतृत्व के लिये ज्ञान और विशेषज्ञता सहित दीर्घकालिक क्षमता निर्माण को भी सक्षम बनाएगा।
  • इंडोनेशिया ने दिसंबर, 2021 में G20 की अध्यक्षता की।

G20:

  • G20 समूह विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रतिनिधि, यूरोपियन यूनियन एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है।
  • G20 समूह के पास स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं होता। 
  • G20 समूह दुनिया की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को एक साथ लाता है। यह वैश्विक व्यापार का 75%, वैश्विक निवेश का 85%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% तथा विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
  • G20 समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
  • प्रत्येक G20 देश का प्रतिनिधित्व उसके शेरपा करते हैं; जो अपने-अपने देश के नेता की ओर से योजना, मार्गदर्शन, क्रियान्वयन आदि करते हैं।
    • वर्तमान वाणिज्य और उद्योग मंत्री भारत के वर्तमान "G20 शेरपा" हैं।

G20-Members

G20 का विकास:

  • वैश्विक वित्तीय संकट (2007-08) ने प्रमुख संकट प्रबंधन और समन्वय निकाय के रूप में G20 की प्रतिष्ठा को मज़बूत किया।
  • अमेरिका, जिसने 2008 में G20 की अध्यक्षता की थी, ने वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक को राष्ट्राध्यक्षों तक बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप पहला G20 शिखर सम्मेलन हुआ।
  • वाशिंगटन डीसी, लंदन और पिट्सबर्ग में आयोजित शिखर सम्मेलनॉ ने कुछ सबसे टिकाऊ वैश्विक सुधारों हेतु परिदृश्य तैयार किया:
    • इसमें कर चोरी और परिहार से निपटने के प्रयास में राज्यों को ब्लैकलिस्ट करना, हेज फंड और रेटिंग एजेंसियों पर सख्त नियंत्रण का प्रावधान करना, वित्तीय स्थिरता बोर्ड को वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लिये एक प्रभावी पर्यवेक्षी और निगरानी निकाय बनाना, असफल बैंकों के लिये सख्त नियमों का प्रस्ताव करना, सदस्यों को व्यापार आदि में नए अवरोध लगाने से रोकना आदि शामिल हैं।
  • कोविड-19 की दस्तक तक G20 अपने मूल मिशन से भटक चुका था तथा G20 के मूल लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाया।
    • G20 ने जलवायु परिवर्तन, नौकरियों और सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों, असमानता, कृषि, प्रवास, भ्रष्टाचार, आतंकवाद के वित्तपोषण, मादक पदार्थों की तस्करी, खाद्य सुरक्षा एवं पोषण, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों जैसे मुद्दों को शामिल करने तथा सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अपने एजेंडे को विस्तृत कर खुद को फिर से स्थापित किया।
  • हाल के दिनों में G20 के सदस्यों ने महामारी के बाद सभी प्रतिबद्धताएँ पूरी की हैं, लेकिन यह बहुत कम है।
    • अक्तूबर 2020 में रियाद शिखर सम्मेलन में उन्होंने चार स्तंभों- महामारी से लड़ना, वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवधानों को संबोधित करना और वैश्विक सहयोग बढ़ाने को प्राथमिकता दी।
    • 2021 में इटली ने कोविड-19 का मुकाबला करने, वैश्विक अर्थव्यवस्था में रिकवरी को तीव्र करने और अफ्रीका में सतत् विकास को बढ़ावा देने जैसे विषयों के लिये G-20 विदेश मंत्रियों की बैठक की मेज़बानी की।
  • लाखों लोगों की मौत के बावजूद G20 के सदस्यों ने विकासशील देशों को टीकों के निर्माण के लिये कानूनी समर्थन देने से इनकार कर दिया।

G20 प्रेसीडेंसी के लिये भारत की तैयारी:

  • भारत ने G20 के संस्थापक सदस्य के रूप में दुनिया भर में सबसे कमज़ोर लोगों को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिये मंच का उपयोग किया है।
    • लेकिन बेरोज़गारी दर में वृद्धि और घरेलू क्षेत्र में गरीबी के कारण इसके लिये प्रभावी ढंग से नेतृत्त्व करना मुश्किल है।
  • भारत ने G20 देशों के बीच ऐसा एकमात्र देश होने का मज़बूत उदाहरण स्थापित किया है, जो 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के मामले में वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में अपने वादे को पूरा करने की दिशा में अन्य G20 देशों की तुलना में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
  • समवर्ती रूप से भारत-फ्राँस के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की सफलता को चित्रित करने में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका अक्षय ऊर्जा में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने की दिशा में संसाधन जुटाने में एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप के रूप में विश्व स्तर पर प्रशंसित है।
  • इसके अलावा 'आत्मनिर्भर भारत' पहल के दृष्टिकोण से वैश्विक प्रतिमान में ‘नए भारत’ के लिये एक परिवर्तनकारी भूमिका की उम्मीद है, जो कोवड-19 महामारी के बाद विश्व अर्थव्यवस्था और वैश्विक आपूर्ति शृंखला के एक महत्त्वपूर्ण व विश्वसनीय स्तंभ के रूप में उभरेगा। 
  • आपदारोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन का भारत का प्रयास, जिसमें अन्य देशों के अलावा G20 देशों में से भी नौ देश शामिल हैं, वैश्विक विकास प्रक्रिया में नेतृत्व के नए आयाम प्रदान करता है।

आगे की राह

  • G20 को स्वच्छ छवि वाले वैश्विक नेताओं की आवश्यकता है। वर्ष 2022 में भारत के अध्यक्ष बनने के साथ ही उसके पास बहुपक्षवाद में दुनिया के विश्वास को बहाल करने का अवसर है।
  • अमेरिका के साथ उभरती अर्थव्यवस्थाओं को समान वैक्सीन रोलआउट और पेटेंट छूट को G20 की नंबर एक प्राथमिकता बनाना चाहिये।
  • G20 को अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे- IMF, OECD, WHO, विश्व बैंक और WTO के साथ साझेदारी को मज़बूत करना चाहिये और उन्हें प्रगति की निगरानी का कार्य सौंपना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

‘क्वांटम की’ वितरण प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

‘क्वांटम की’ वितरण प्रौद्योगिकी, क्वांटम टेक्नोलॉजी और इसके अनुप्रयोग, क्यूबिट्स।

मेन्स के लिये:

‘क्वांटम की’ वितरण प्रौद्योगिकी और इसके लाभ तथा आवश्यकताएँ, क्वांटम प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली के वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम ने देश में पहली बार उत्तर प्रदेश में प्रयागराज और विंध्याचल के बीच 100 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर ‘क्वांटम की’ वितरण लिंक (Quantum Key Distribution link) का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया।

  • इस सफलता के साथ देश ने सैन्य ग्रेड संचार सुरक्षा कुंजी पदानुक्रम बूटस्ट्रैपिंग के लिये सुरक्षित कुंजी हस्तांतरण की स्वदेशी तकनीक का प्रदर्शन किया है।
  • इससे पहले चीन के उपग्रह मिसियस ने दुनिया के सबसे सुरक्षित संचार लिंक को स्थापित करने के लिये प्रकाश कणों को पृथ्वी पर भेजा था।

‘क्वांटम की’ वितरण प्रौद्योगिकी:

  • QKD, जिसे क्वांटम क्रिप्टोग्राफी भी कहा जाता है, सुरक्षित संचार विकसित करने का एक तंत्र है।
  • यह गुप्त कुंजियों को वितरित करने और साझा करने का एक तरीका प्रदान करता है जो क्रिप्टोग्राफ़िक प्रोटोकॉल के लिये आवश्यक हैं।
    • क्रिप्टोग्राफी सुरक्षित संचार तकनीकों का अध्ययन है जो केवल प्रेषक और संदेश के इच्छित प्राप्तकर्त्ता को इसकी सामग्री देखने की अनुमति देता है।
    • क्रिप्टोग्राफिक एल्गोरिदम और प्रोटोकॉल सिस्टम को सुरक्षित रखने के लिये आवश्यक हैं, खासकर जब इंटरनेट जैसे अविश्वसनीय नेटवर्क के माध्यम से संचार होता है।
  • डेटा-एन्क्रिप्शन के लिये उपयोग किये जाने वाले पारंपरिक क्रिप्टोसिस्टम गणितीय एल्गोरिदम की जटिलता पर निर्भर करते हैं, जबकि क्वांटम संचार द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा भौतिकी के नियमों पर आधारित होती है।

QKD की दो मुख्य श्रेणियाँ:

  • तैयार और माप प्रोटोकॉल: 
    • यह अज्ञात क्वांटम की अवस्थाओ को मापने पर केंद्रित है। इस प्रकार के प्रोटोकॉल का उपयोग ईव्सड्रॉपिंग (Eavesdropping) के साथ-साथ संभावित रूप से कितना डेटा इंटरसेप्ट किया गया, का पता लगाने के लिये किया जा सकता है।
  •  इंटेंगलमेंट’ आधारित प्रोटोकॉल:
    • यह क्वांटम राज्यों पर केंद्रित है जिसमें दो वस्तुएँ एक साथ जुड़ी होती हैं, एक संयुक्त क्वांटम राज्य बनाती हैं।
    •  इंटेंगलमेंट’ का अर्थ है कि एक वस्तु का माप दूसरे को प्रभावित करता है। इस पद्धति में यदि कोई छिपकर बात करने वाला पहले से विश्वसनीय नोड तक पहुँचकर कुछ बदलाव करता है तो इसका पता अन्य शामिल पक्षों को चल जाएगा।

‘क्वांटम की’ वितरण कैसे कार्य करता है?

  • QKD में एन्क्रिप्शन कुंजियों को ऑप्टिकल फाइबर में 'Qubits' (या क्वांटम बिट्स) के रूप में भेजा जाता है।
    • क्यूबिट्स (Qubits) - बाइनरी सिस्टम में बिट्स के बराबर।
    • ऑप्टिकल फाइबर अन्य माध्यमों की तुलना में लंबी दूरी और तेज़ी से अधिक डेटा संचारित करने में सक्षम हैं। यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
  • QKD कार्यान्वयन के लिये वैध उपयोगकर्त्ताओं के बीच परस्पर क्रिया की आवश्यकता होती है। इन इंटरैक्शन को प्रमाणित करने की आवश्यकता होती है। यह कार्य विभिन्न क्रिप्टोग्राफिक माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है।
    • QKD उन दो उपयोगकर्त्ताओं को अनुमति देता है जो शुरू में एक लंबी गुप्त कुंजी गुप्त बिट्स की एक सामान्य यादृच्छिक स्ट्रिंग उत्पन्न करने के लिये साझा नहीं करते हैं, जिसे गुप्त कुंजी (Secret Key) कहा जाता है।
  • अंततः QKD एक प्रमाणित संचार चैनल का उपयोग कर सकता है और इसे एक सुरक्षित संचार चैनल में बदल सकता है।
  • इसे इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यदि कोई अज्ञात इकाई ट्रांसमिशन को पढ़ने की कोशिश करती है, तो यह क्यूबिट्स में हलचल उत्पन्न कर देता है, जो फोटॉन पर एन्कोडेड होते हैं।
  • इससे ट्रांसमिशन त्रुटियाँ उत्पन्न होंगी, जिससे वैध अंतिम-उपयोगकर्त्ताओं को तुरंत सूचित किया जाएगा।

Quantum-Key

QKD की आवश्यकता:

  • QKD वर्तमान संचार नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों द्वारा परिवहन किये जा रहे डेटा की सुरक्षा के लिये क्वांटम कंप्यूटिंग में तेज़ी से प्रगति एवं खतरे को दूर करने हेतु आवश्यक है।
    • क्वांटम प्रौद्योगिकियों को मोटे तौर पर चार वर्टिकल में विभाजित किया जा सकता है- क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम संचार, क्वांटम सेंसर और क्वांटम सामग्री।
  • यह प्रौद्योगिकी क्वांटम सूचना के क्षेत्र में विभिन्न स्टार्ट-अप और छोटे व मध्यम उद्यमों को सक्षम करने में उपयोगी होगी।
  • यह सुरक्षा एजेंसियों को स्वदेशी प्रौद्योगिकी अवसंरचना के साथ एक उपयुक्त क्वांटम संचार नेटवर्क की योजना बनाने में सक्षम बनाएगा।
  • एन्क्रिप्शन सुरक्षित होता है और इसका मुख्य कारण फोटॉन के माध्यम से डेटा परिवर्तन का तरीका है।
    • एक फोटॉन को पूरी तरह से कॉपी नहीं किया जा सकता है और इसे मापने का कोई भी प्रयास इसमें हस्तक्षेप करता है। इसका मतलब है कि डेटा को इंटरसेप्ट की कोशिश करने वाले व्यक्ति को उसके द्वारा छोड़े गए निशान के आधार पर खोजा जा सकता है।

QKD से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • QKD तंत्र का मौजूदा अवसंरचना में एकीकरण:
    • QKD हेतु एक आदर्श बुनियादी ढाँचे को लागू करना वर्तमान में कठिन है।
    • QKD सैद्धांतिक रूप में पूरी तरह से सुरक्षित है, लेकिन व्यवहार में एकल फोटॉन डिटेक्टरों जैसे उपकरणों में खामियाँ कई सुरक्षा कमज़ोरियाँ पैदा करती हैं।
  • वह दूरी जिसमें फोटॉन यात्रा करते हैं:
    • आधुनिक फाइबर ऑप्टिक केबल आमतौर पर एक सीमा तक सीमित होते हैं कि वे एक फोटॉन को कितनी दूर तक ले जा सकते हैं। सामान्य तौर पर यह रेंज 100 किमी. से ऊपर देखी जाती है।
  • QKD का प्रयोग:
    • QKD पहले से ही स्थापित संचार के पारंपरिक रूप से प्रमाणित चैनल पर निर्भर करता है। 
      • इसका मतलब यह है कि भाग लेने वाले उपयोगकर्त्ताओं में से एक ने संभवतः पहले से ही एक सममित कुंजी का आदान-प्रदान किया है, जिससे पर्याप्त स्तर की सुरक्षा पैदा हो गई है।
      • एक अन्य उन्नत एन्क्रिप्शन मानक का उपयोग करके QKD के बिना एक सिस्टम को पहले से ही पर्याप्त रूप से सुरक्षित बनाया जा सकता है। 
    • जैसे-जैसे क्वांटम कंप्यूटर का उपयोग अधिक होता जा रहा है, यह संभावना बनी रहती है कि एक हमलावर क्वांटम कंप्यूटिंग की वर्तमान एन्क्रिप्शन विधियों में घुसपैठ करने की क्षमता का उपयोग कर सकता है, जिससे QKD अधिक प्रासंगिक हो जाता है।

आगे की राह

  • क्वांटम प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोगों को विकसित करने में शामिल स्टार्ट-अप्स और बिग टेक निगमों की शक्ति का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • अगले 10-15 वर्षों के लिये एक व्यापक रणनीति विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। जिसमें यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि संसाधनों का गलत आवंटन न हो और जो प्रयास किये गए हैं, वे उन प्रमुख क्षेत्रों में केंद्रित हैं जो आर्थिक और रणनीतिक लाभ प्रदान करते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

परम प्रवेग, सुपरकंप्यूटर, नेशनल सुपरकंप्यूटिंग मिशन, नेशनल नॉलेज नेटवर्क (NKN)।

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन, सूचना प्रोद्योगिकी और कंप्यूटर, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) ने सुपरकंप्यूटर 'परम प्रवेग' स्थापित किया। इसकी सुपरकंप्यूटिंग क्षमता 3.3 पेटाफ्लॉप्स है।

  • इसे सरकार के राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन के तहत स्थापित किया गया है।
  • राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन का उद्देश्य शक्तिशाली कंप्यूटरों के विकास और निर्माण का स्वदेशीकरण करना है।

सुपरकंप्यूटर क्या है?

  • सुपरकंप्यूटर एक ऐसा कंप्यूटर है, जो वर्तमान में किसी भी कंप्यूटर की उच्चतम परिचालन दर के आसपास या उससे अधिक गति से कार्य करता है।
  • ‘पेटाफ्लॉप्स’ (PETAFLOP) एक सुपरकंप्यूटर की प्रसंस्करण गति का माप है और इसे प्रति सेकंड एक हज़ार ट्रिलिय’न फ्लोटिंग पॉइंट ऑपरेशन के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
    • FLOPS (फ्लोटिंग पॉइंट ऑपरेशंस प्रति सेकंड) का उपयोग आमतौर पर कंप्यूटर के प्रोसेसर के प्रदर्शन को मापने के लिये किया जाता है।
    • फ्लोटिंग-पॉइंट एन्कोडिंग का उपयोग करके बहुत लंबी संख्याओं को अपेक्षाकृत आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
  • इसका उपयोग सामान्यत: ऐसे वैज्ञानिक तथा अभियांत्रिकी अनुप्रयोगों हेतु किया जाता है जो वृहद डेटाबेस के नियंत्रण अथवा बड़ी मात्रा में संगणात्मक (या दोनों) कार्यों में संलग्न होते हैं। 
    • जैसे- मौसम पूर्वानुमान, जलवायु मोडलिंग, बायोलॉजी, परमाणु ऊर्जा सिमुलेशन, बिग डेटा विश्लेषण, आपदा सिमुलेशन और प्रबंधन आदि।
  • विश्व स्तर पर चीन के पास सर्वाधिक सुपरकंप्यूटर हैं और यह दुनिया में शीर्ष स्थान पर है, इसके बाद अमेरिका, जापान, फ्राँस, जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम का स्थान है।
  • भारत का पहला सुपरकंप्यूटर परम 8000 था।
  • परम शिवाय, स्वदेशी रूप से असेंबल किया गया पहला सुपरकंप्यूटर, IIT (BHU) में स्थापित किया गया था, इसके बाद IIT-खड़गपुर, IISER, पुणे, JNCASR, बंगलूरू और IIT कानपुर में क्रमशः परम शक्ति, परम ब्रह्मा, परम युक्ति, परम संगणक को स्थापित किया गया था।
  • वर्ष 2020 में परम सिद्धि, हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग-आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (HPC-AI) सुपरकंप्यूटर ने दुनिया के शीर्ष 500 सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर सिस्टम में 62वें स्थान पर वैश्विक रैंकिंग हासिल की।

राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन:

  • मार्च 2015 में सात वर्षों की अवधि (वर्ष 2015-2022) के लिये 4,500 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से ‘राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन’ की घोषणा की गई थी। इस मिशन के अंतर्गत 70 से अधिक उच्च प्रदर्शन वाले सुपरकंप्यूटरस के माध्यम से एक विशाल सुपरकंप्यूटिंग ग्रिड स्थापित कर देश भर के राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों और R&D संस्थाओं को सशक्त बनाने की परिकल्पना की गई है।
    • NKN परियोजना का उद्देश्य एक मज़बूत भारतीय नेटवर्क स्थापित करना है जो सुरक्षित और विश्वसनीय कनेक्टिविटी प्रदान करने में सक्षम होगा।
  • यह मिशन सरकार के 'डिजिटल इंडिया' और 'मेक इन इंडिया' दृष्टिकोण का समर्थन करता है।
  • मिशन को संयुक्त रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा संचालित किया जा रहा है।
    • इसे सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग (C-DAC), पुणे और आईआईएससी, बंगलूरू द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • मिशन की योजना तीन चरणों में बनाई गई थी:
    • चरण I- इसमें सुपर कंप्यूटरों को असेंबल करना शामिल है।
    • चरण II- देश के भीतर कुछ घटकों के निर्माण पर विचार करना।
    • चरण III- इसके अंतर्गत सुपरकंप्यूटर भारत द्वारा डिज़ाइन किया गया है।
  • इस पायलट सिस्टम में 'रुद्र' नामक एक स्वदेशी रूप से विकसित सर्वर प्लेटफॉर्म का परीक्षण किया जा रहा है, जिसमें त्रिनेत्र नामक इंटर-नोड संचार भी विकसित किया गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

ड्राफ्ट इंडिया डेटा एक्सेसिबिलिटी एंड यूज़ पॉलिसी 2022

प्रिलिम्स के लिये:

डेटा एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी, हाई वैल्यू डेटा, इंडिया डेटा ऑफिस, डेटा प्रोटेक्शन लॉ।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, साइबर सुरक्षा, संचार प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर, डेटा एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी एवं इसकी चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने "ड्राफ्ट इंडिया डेटा एक्सेसिबिलिटी एंड यूज़ पॉलिसी, 2022" शीर्षक से एक नीति प्रस्ताव जारी किया।

  • इस मसौदे में उल्लिखित नीतिगत उद्देश्य प्राथमिक रूप से वाणिज्यिक प्रकृति के हैं। इसका उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के डेटा का उपयोग करने की भारत की क्षमता को मौलिक रूप से बदलना है।
  • इससे पहले इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन की अध्यक्षता वाली एक सरकारी समिति ने सुझाव दिया था कि भारत में उत्पन्न गैर-व्यक्तिगत डेटा को विभिन्न घरेलू कंपनियों और संस्थाओं को उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिये।

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ड्राफ्ट डेटा एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी के प्रस्ताव का कारण:

  • डेटा में वृद्धि: नागरिक डेटा का उत्पादन अगले दशक में तेज़ी से बढ़ने और भारत की 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था की आधारशिला बनने की उम्मीद है।
  • डेटा दोहन के लाभ: राष्ट्रीय आर्थिक सर्वेक्षण, 2019 ने सरकारी डेटा दोहन के व्यावसायिक लाभों को प्रदर्शित किया है।
    • निजी क्षेत्र को व्यावसायिक उपयोग के लिये चुनिंदा डेटाबेस तक पहुँच प्रदान की जा सकती है।
  • नीति का अभाव: नीति की पृष्ठभूमि में आने वाले डेटा साझाकरण और उपयोग में मौज़ूदा बाधाओं को रेखांकित करता है।
    • इसमें नीति निगरानी एवं डेटा साझा करने के प्रयासों को लागू करने हेतु एक निकाय की अनुपस्थिति, डेटा साझा करने के लिये तकनीकी उपकरणों व मानकों की अनुपस्थिति, उच्च मूल्य वाले डेटासेट की पहचान तथा लाइसेंसिंग एवं मूल्यांकित ढाँचे शामिल हैं।
  • उच्च मूल्य डेटा को अनलॉक करना: अर्थव्यवस्था में डेटा के उच्च मूल्य को अनलॉक करने के लिये एक रास्ता, सरकार के डेटा को इंटरऑपरेबल बनाने और डेटा कौशल एवं संस्कृति की स्थापना के लिये अनुकूल व मज़बूत शासन रणनीतिक को इंगित करता है।

ड्राफ्ट डेटा एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी के प्रमुख प्रस्ताव:

  • भारत डेटा कार्यालय: दस्तावेज़ सरकार और अन्य हितधारकों के बीच डेटा एक्सेस और साझाकरण को सुव्यवस्थित व एकीकृत करने के लिये एक भारत डेटा कार्यालय (India Data Office) की स्थापना का प्रस्ताव करता है।
    • यह उच्च-मूल्य वाले डेटासेट के लिये ढाँचे को परिभाषित करने, डेटा तथा मेटाडेटा मानकों को अंतिम रूप देने के साथ ही नीति कार्यान्वयन की समीक्षा करेगा।
    • प्रत्येक मंत्रालय या विभाग में मुख्य डेटा अधिकारियों की अध्यक्षता में डेटा प्रबंधन इकाइयाँ होनी चाहिये, जो इस नीति के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु IDO के साथ मिलकर काम करेंगी।
  • कवरेज: केंद्र सरकार और अधिकृत एजेंसियों द्वारा उत्पन्न, निर्मित, एकत्र या संग्रहीत सभी डेटा और जानकारी पॉलिसी द्वारा कवर की जाएगी। ये उपाय राज्य सरकारें भी अपना सकती हैं।
  • प्रतिबंधित डेटा: सभी सरकारी डेटा तब तक खुला और साझा करने योग्य होगा जब तक कि वह डेटासेट की नकारात्मक सूची के अंतर्गत नहीं आता।
    • डेटासेट की नकारात्मक सूची के अंतर्गत वर्गीकृत डेटा को संबंधित मंत्रालय या विभाग द्वारा परिभाषित किया जाएगा और इसे केवल विश्वसनीय उपयोगकर्त्ताओं के साथ ही साझा किया जाएगा।
  • डेटा टूलकिट: डेटा साझाकरण और प्रकाशन से जुड़े जोखिम का आकलन एवं प्रबंधन करने में सहायता हेतु सभी मंत्रियों या विभागों को डेटा-साझाकरण टूलकिट प्राप्त होगा।
    • यह फ्रेमवर्क डेटा अधिकारियों को यह निर्धारित करने में सहायता करेगा कि क्या डेटा सेट रिलीज़ हेतु योग्य है या फिर इसे प्रतिबंधित साझाकरण या नकारात्मक सूची में रखा जाना चाहिये।
  • मौजूदा कानूनों के अनुरूप: डेटा उस एजेंसी/विभाग/मंत्रालय/इकाई की संपत्ति बना रहेगा, जिसने इसे उत्पन्न/एकत्र किया है। इस नीति के तहत डेटा तक पहुँच भारत सरकार के किसी भी अधिनियम और लागू नियमों का उल्लंघन नहीं होगा।
    • इस नीति के कानूनी फ्रेमवर्क को डेटा को कवर करने वाले विभिन्न अधिनियमों और नियमों के साथ जोड़ा जाएगा।

नीति संबंधी समस्याएँ:

  • गोपनीयता: भारत में कोई डेटा सुरक्षा कानून नहीं है जो गोपनीयता के उल्लंघन और अनुचित रूप से डेटा संग्रह हेतु जवाबदेही निर्धारित करता हो तथा इस संबंध में उपाय प्रदान करता हो।
    • यह अंतर-विभागीय डेटा साझाकरण गोपनीयता से संबंधित चिंताओं को प्रस्तुत करता है, क्योंकि स्वतंत्र सरकारी डेटा पोर्टल जिसमें सभी विभागों का डेटा शामिल है, के परिणामस्वरूप 360 डिग्री प्रोफाइल का निर्माण हो सकता है और राज्य प्रायोजित जन निगरानी को सक्षम बनाया जा सकता है।
      • इस नीति में कानूनी जवाबदेही और स्वतंत्र नियामक निरीक्षण की कमी है।
      • यह नीति अज्ञात डेटा की पुन: पहचान हेतु वैज्ञानिक विश्लेषण और स्वचालित उपकरणों की उपलब्धता पर विचार करने में भी विफल रही है।
    • व्यक्तिगत डेटा की अधिक मात्रा के साथ डेटा का व्यावसायिक मूल्य बढ़ता है। एक मार्गदर्शक कानून की अनुपस्थिति इस नीति को गोपनीयता में राज्य के हस्तक्षेप की वैधता को पूरा करने में सक्षम नहीं होने की ओर ले जाती है, जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गोपनीयता निर्णय के अपने ऐतिहासिक अधिकार (केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामला 2017 ) में रखा था।
  • पारदर्शिता: ‘ओपन डेटा’ संबंधी परिभाषा को अपनाते समय यह नीति अपने नागरिकों के प्रति सरकार की पारदर्शिता प्रदान करने के उसके मूल सिद्धांत से भटक जाती है।
    • पारदर्शिता के बारे में केवल एक ही बार विवरण दिया गया है और इस तरह के डेटा साझाकरण से जवाबदेही व निवारण की मांगों को सुनिश्चित करने में कैसे मदद मिलेगी, इसका बहुत कम उल्लेख है या कोई उल्लेख नहीं है।
  • विकृत राजस्व उद्देश्य: दूसरा मुद्दा यह है कि नीति संसद को दरकिनार कर देती है क्योंकि यह बड़े पैमाने पर डेटा साझा करने और संवर्द्धन पर विचार करती है जिसे सार्वजनिक धन से वहन किया जाएगा।
    • इसके अलावा कार्यालयों का गठन, मानकों का निर्धारण जो न केवल केंद्र सरकार पर लागू हो सकते है, बल्कि जिनके लिये राज्य सरकारों और उनके द्वारा प्रशासित योजनाओं पर भी विधायी विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है।
  • संघवाद: नीति भले ही यह दर्शाती है कि राज्य सरकारें "नीति के कुछ हिस्सों को अपनाने के लिये स्वतंत्र" होंगी, यह निर्दिष्ट नहीं करती है कि ऐसी स्वतंत्रता कैसे प्राप्त की जाएगी।
    • यह प्रासंगिक हो जाता है कि डेटा साझा करने या वित्तीय सहायता के लिये एक पूर्व शर्त के रूप में केंद्र सरकार द्वारा विशिष्ट मानक निर्धारित किये जाते हैं।
    • इस पर भी कोई टिप्पणी नहीं की गई है कि क्या राज्यों से एकत्र डेटा को केंद्र सरकार द्वारा बेचा जा सकता है और क्या इससे होने वाली आय को राज्यों के साथ साझा किया जाएगा।
  • प्रमुख अवधारणाओं के लिये परिभाषाओं पर स्पष्टता का अभाव: नीति द्वारा शुरू की गई नई अवधारणाओं को अस्पष्ट तरीके से परिभाषित किया गया है जो उनकी गलत व्याख्या के लिये प्रस्तुत करती है।
    • यह नीति उन 'उच्च-मूल्य वाले डेटासेट' की एक अलग श्रेणी बनाती है जिसे वह शासन और नवाचार के लिये आवश्यक मानती है, की पहुँच में तेज़ी आएगी।
    • हालाँकि इस नीति में कहीं भी श्रेणी को संक्षिप्त रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


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