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डेली न्यूज़

  • 25 Feb, 2022
  • 43 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन कैप्चर और यूटिलाइज़ेशन टेक्नोलॉजीज़

प्रिलिम्स के लिये:

CCUS टेक्नोलॉजीज, पेरिस समझौता।

मेन्स के लिये:

CCUS टेक्नोलॉजी एवं इसके अनुप्रयोग, वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन, पर्यावरण क्षरण, संरक्षण।

चर्चा में क्यों? 

रेडबौड विश्वविद्यालय द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, अधिकांश कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइज़ेशन एंड स्टोरेज (Carbon Capture and Utilisation and Storage- CCUS) टेक्नोलॉजीज़ जो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित कर इसे ईंधन या अन्य मूल्यवान उत्पादों में परिवर्तित करती है, वर्ष 2050 तक विश्व को शुद्ध शून्य उत्सर्जन/नेट ज़ीरो  एमिशन (Net Zero Emissions) के लक्ष्य तक पहुंँचाने में विफल हो सकती हैं।

  • अध्ययन में बताया गया है कि इन प्रणालियों में से अधिकांश ऊर्जा गहन हैं जिसके परिणामस्वरूप उत्पन्न उत्पाद वातावरण में CO2 का उत्सर्जन कर सकते हैं।
  • 'नेट ज़ीरो उत्सर्जन' से तात्पर्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHGs) उत्पादन और वायुमंडल के बाह्य क्षेत्र के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच एक समग्र संतुलन प्राप्त करना है।

प्रमुख बिंदु 

CCUS के बारे में:

  • कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन और स्टोरेज (CCUS) में फ्लू गैस (चिमनियों या पाइप से निकलने वाली गैसें) और वातावरण से CO2 को हटाने के तरीकों एवं प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है। इसके बाद CO2 को उपयोग करने के लिये उसका पुनर्चक्रण तथा सुरक्षित और स्थायी भंडारण विकल्पों का निर्धारण किया जाता है।
  •  CO2 को CCUS का उपयोग करके ईंधन (मीथेन और मेथनॉल), रेफ्रिजरेंट और निर्माण संबंधित सामग्री में परिवर्तित किया जाता है।
    • संचय की गई गैस का उपयोग सीधे आग बुझाने वाले यंत्रों, फार्मा, खाद्य और पेय उद्योगों के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में भी किया जाता है।
  • CCUS प्रौद्योगिकियाँ नेट ज़ीरो लक्ष्यों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, जिसमें भारी उद्योगो से उत्सर्जित कार्बन से निपटने और वातावरण से कार्बन को हटाने से संबंधित कुछ समाधान शामिल है।
  • CCUS को वर्ष 2030 तक देशों को अपने उत्सर्जन को आधा करने तथा वर्ष 2050 तक नेट ज़ीरो के लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण उपकरण माना जाता है।
    • यह ग्लोबल वार्मिंग को 2 °C (डिग्री सेल्सियस) तक सीमित रखने के लिये पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु महत्त्वपूर्ण है, साथ ही पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर 1.5 डिग्री सेल्सियस के लिये बेहतर भूमिका निभा सकती है।

CCUS के अनुप्रयोग:

  • जलवायु परिवर्तन को कम करना:  CO2 उत्सर्जन की दर को कम करने के लिये वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और ऊर्जा कुशल प्रणालियों को अपनाने के बावजूद जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को सीमित करने के लिये वातावरण में CO2  की संचयी मात्रा को कम करने की आवश्यकता है।
  • कृषि: ग्रीनहाउस वातावरण में फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये पौधों और मिट्टी जैसे बायोजेनिक स्रोतों से CO2  का संचय किया जा सकता है।
  • औद्योगिक उपयोग: पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुकूल निर्माण सामग्री के लिये स्टील निर्माण प्रक्रिया का एक औद्योगिक उपोत्पाद (स्टील स्लैग के साथ CO2  का संयोजन)।
  • बढ़ी हुई तेल रिकवरी: CCU प्रौद्योगिकी का उपयोग पहले से ही भारत में किया जा रहा है। उदाहरण के लिये ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन ने CO2  को इंजेक्ट करके एन्हांस्ड ऑयल रिकवरी (EOR) हेतु इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

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सीसीयूएस से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • महँगा: कार्बन कैप्चर में सॉर्बेंट्स का विकास शामिल है जो प्रभावी रूप से ग्रिप गैस या वातावरण में मौजूद CO2 के संयोजन से हो सकता है, यह अपेक्षाकृत महँगी प्रक्रिया है।
  • पुनर्नवीनीकृत CO2 की कम मांग: CO2 को व्यावसायिक महत्त्व के उपयोगी रसायनों में परिवर्तित करना या CO2 का उपयोग तेल निष्कर्षण या क्षारीय औद्योगिक कचरे के उपचार के लिये करना, इस ग्रीनहाउस गैस के मूल्य में वृद्धि कर देगा।
  • CO2 की विशाल मात्रा की तुलना में मांग सीमित है, इसे वातावरण से हटाने की आवश्यकता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों को कम किया जा सके।

आगे की राह

  • कार्बन के भंडारण के लिये कोई भी व्यवहार्य प्रणाली प्रभावी एवं लागत प्रतिस्पर्द्धी, दीर्घकालिक भंडारण के रूप में स्थिर एवं पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिये।
  • देशों को उन चुनिंदा तकनीकों पर ज़ोर देना चाहिये, जो अधिक निवेश आकर्षित कर सकती हैं।
  • कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइज़ेशन के माध्यम से उत्पादित मेथनॉल जैसे सिंथेटिक ईंधन के साथ पारंपरिक ईंधन को प्रतिस्थापित करना केवल तभी एक सफल शमन रणनीति होगी, जब CO2  को कैप्चर करने और इसे सिंथेटिक ईंधन में बदलने के लिये स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग किया जाएगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

वर्ष 2022-23 के बजट में बच्चों की हिस्सेदारी

प्रिलिम्स के लिये:

पोषण 2.0, पीएम ई-विद्या, 'वन क्लास, वन टीवी चैनल' प्रोग्राम, एकीकृत बाल विकास योजना, एनएफएचएस- 5 सर्वे के निष्कर्ष।

मेन्स के लिये:

भारत में बच्चों की स्थिति और उनसे संबंधित मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता, इस दिशा में सरकारों द्वारा उठाए गए कदम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा किये गए विश्लेषण के मुताबिक, बीते 11 वर्षों के मुकाबले इस वर्ष देश में बच्चों को बजट में आवंटन का सबसे कम हिस्सा प्राप्त हुआ है।

  • केंद्र सरकार द्वारा बच्चों के लिये बजट बनाने की शुरुआत पहली बार वर्ष 2008 में बाल बजट विवरण के प्रकाशन के साथ हुई थी। इसके बाद कई राज्यों ने भी इस कार्य को शुरू किया है।

बच्चों से संबंधित बजट में क्या शामिल है?

  • परिचय:
    • वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में बच्चों के लिये कुल आवंटन 92,736.5 करोड़ रुपए है, जबकि पिछले बजट में 85,712.56 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था।
      • यद्यपि यह निरपेक्ष रूप से 8.19% की वृद्धि है, किंतु यह केंद्रीय बजट में कुल व्यय में वृद्धि के अनुपात में नहीं है।
      • बच्चों के लिये बजट का हिस्सा इस वित्तीय वर्ष (2022-23) के लिये केंद्रीय बजट का केवल 2.35% है, यह 0.11% की कमी को दर्शाता है, जो कि पिछले 11 वर्षों में बच्चों के लिये आवंटित सबसे कम धनराशि है।
  • क्षेत्रवार विश्लेषण:
    • बाल स्वास्थ्य के लिये:
      • बाल स्वास्थ्य के लिये आवंटन में 6.08% की कमी की गई है।
      • सबसे महत्त्वपूर्ण बाल स्वास्थ्य योजनाओं में से एक, NRHM-RCH फ्लेक्सी पूल में 8.22% की कमी हुई है।
        • यह फ्लेक्सी पूल राज्यों की स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने के साथ-साथ प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल एवं किशोर स्वास्थ्य (RMNCH+A) की ज़रूरतों को पूरा करता है।
    • बाल विकास कार्यक्रम के लिये:
      • अगले वित्त वर्ष के लिये आवंटन में 10.97% की गिरावट देखी गई है, जो 17,826.03 करोड़ रुपए है। इनमें पूरक पोषण और आंगनवाड़ी (डे केयर) सेवाएँ शामिल हैं।
        • महिलाओं और बच्चों को एकीकृत लाभ प्रदान करने वाली पोषण 2.0 जैसी योजनाओं को इस वर्ष कोई अतिरिक्त धनराशि आवंटित नहीं हुई।
        • वर्ष 2022-23 में प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (पीएम पोषण) कार्यक्रम के लिये 10,234 करोड़ रुपए का अनुमानित बजट स्वीकृत किया गया है। पिछले वर्ष संशोधित अनुमान 10,234 करोड़ रुपए था।
          • इस योजना को पहले 'विद्यालयों में मध्याह्न भोजन राष्ट्रीय कार्यक्रम' के रूप में जाना जाता था और इसमें 6 से 14 वर्ष की आयु तक के स्कूली बच्चों को गर्म पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता था।
    • बाल शिक्षा के लिये:
      • बाल शिक्षा के लिये बजट का हिस्सा चालू वित्त वर्ष में 1.74% से केवल 0.3% अंक की मामूली वृद्धि के साथ अगले वित्त वर्ष के लिये 1.73% हो गया है।
      • बजट में घोषित 'वन क्लास, वन टीवी चैनल' कार्यक्रम बच्चों के लिये सीखने का एक कठिन तरीका है।
        • पीएम ई-विद्या के 'वन क्लास, वन टीवी चैनल' कार्यक्रम का विस्तार 12 से 200 टीवी चैनलों तक किया जाएगा।
    • बच्चों के संरक्षण और कल्याण के लिये:
      • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को मिशन वात्सल्य के अंतर्गत बच्चों की सुरक्षा एवं कल्याण योजनाओं के लिये 1,472.17 करोड़ रुपए आवंटित किये गए।
        • यह इस वित्त वर्ष की तुलना में 65% अधिक है, लेकिन योजना के पुनर्गठन से पहले 2019-2020 में 15,000 करोड़ रुपए के आवंटन से कम है। 

बच्चों के लिये बजट संबंधी मुद्दे:

  • मात्र वार्षिक लेखा अभ्यास:
    • केंद्र सरकार द्वारा बच्चों के लिये बजट बनाना केवल एक वार्षिक लेखांकन अभ्यास तक सीमित रह गया है, जबकि बाल बजट विवरण (CBS) का प्रकाशन सभी विभागों में प्रासंगिक बजट शीर्षों को मिलाकर किया गया है।
      • यह अकेले बच्चों की विशेष ज़रूरतों के प्रति उत्तरदायी रहने के मूल उद्देश्य को पूरा करने के लिये बहुत कम है।
  • राज्य सरकारों में ज़िम्मेदारी की कमी:
    • बच्चों के लिये कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं को लागू करने हेतु मुख्य रूप से ज़िम्मेदार होने के कारण राज्य सरकारें इस अभ्यास को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
      • लेकिन उनके द्वारा भी बच्चों के लिये अधिक प्रभावी ढंग से योजना बनाने और हस्तक्षेप हेतु एक उपकरण के बजाय इसे एक लेखांकन ज़िम्मेदारी के रूप में माना जाता है।
  • मानकीकरण का अभाव:
    • इसके अलावा सरकारी संस्थाओं के बीच संबंधित बाल बजट विवरण (CBS) की रिपोर्टिंग हेतु मानदंडों के मानकीकरण की कमी है।

भारत में बच्चों की स्थिति:

  • हाल ही में NFHS-5 के सर्वेक्षण में बाल स्वास्थ्य और पोषण पर मिश्रित तस्वीर सामने आई है।
    • एक तरफ इसके बाल मृत्यु दर में कमी, पोषण संकेतकों के स्तर में सुधार जैसे स्टंटिंग और वेस्टिंग आदि निश्चित सकारात्मक पहलू हैं। 
    • दूसरी ओर इस दौर में बच्चों में एनीमिया की घटनाएँ NFHS 4 में 58.6% से बढ़कर 67.1% के खतरनाक स्तर पर पहुँच गई हैं, प्रमुख विशेषज्ञों का कहना है कि SDG लक्ष्य 2030 को पूरा करने के लिये और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
  • ASER सर्वेक्षण निष्कर्ष:
    • लगातार ASER सर्वेक्षणों ने बताया है कि वर्ष 2020 और 2021 के बीच स्कूल में नामांकित बच्चों के अनुपात में कोई सुधार नहीं हुआ है और इस संबंध में राज्यों के बीच बहुत अधिक परिवर्तनशीलता है।
  • कोविड-19 का प्रभाव:
    • कोविड-19 ने बच्चों को विविध तरीकों से प्रभावित किया है चाहे वे शारीरिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक या सामाजिक प्रभाव हों, इसमें शामिल हैं- संक्रमण या प्रवास, पारिवारिक संकट, दोस्तों से अलगाव, सीखने की प्रक्रिया में बाधा, पर्यावरण, स्वयं या परिवार के सदस्यों का अस्पताल में भर्ती होना, कार्य में  वयस्कों की भूमिका या फिर विवाह।
    • कोविड-19 ने भारत में बच्चों की शिक्षा, पोषण और विकास तथा बाल संरक्षण तक उनकी पहुंँच को गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया था।

आगे की राह 

  • क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों से संबंधित हस्तक्षेपों पर कार्य करने वाले सरकारी अधिकारियों का उन्मुखीकरण न केवल CBS में रिपोर्टिंग के लिये बल्कि उन्हें योजनाओं को पुनः बेहतर ढंग से डिज़ाइन करने तथा नियमित आधार पर उनकी प्रगति की निगरानी करने में सक्षम बनाने हेतु भी महत्त्वपूर्ण है।
  • परिव्ययों को बेहतर परिणामों में परिवर्तित करने हेतु बच्चों के लिये बजट का एक परिणाम अभिविन्यास आवश्यक है।
  • CBS में रिपोर्टिंग संरचना को मानकीकृत करने की तत्काल आवश्यकता है तथा केंद्र सरकार CBS को जवाबदेही का एक प्रभावी साधन बनाने के लिये राज्यों और विशेषज्ञों के परामर्श से इसके लिये एक विस्तृत ढांँचा विकसित कर सकती है।
  • संबंधित मंत्रालयों द्वारा बाल संबंधित योजनाओं की नियमित निगरानी और लेखापरीक्षा की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू  


भारतीय इतिहास

लचित बोरफूकन

प्रिलिम्स के लिये:

लचित बोरफुकन, अहोम साम्राज्य।

मेन्स के लिये:

अहोम साम्राज्य, मध्यकालीन भारतीय इतिहास।

चर्चा में क्यों?

देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शुक्रवार को गुवाहाटी में 17वीं शताब्दी के एक महान और वीर योद्धा लचित बोरफूकन की 400वीं जयंती समारोह का उद्घाटन करेंगे।

  • इससे पहले प्रधानमंत्री ने 17वीं शताब्दी के अहोम साम्राज्य (Ahom Kingdom) के सेनापति लचित बोरफूकन (Lachit Borphukan) को भारत की "आत्मनिर्भर सेना का प्रतीक" कहा था।

लचित बोरफूकन:

  • लचित बोरफूकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। इन्होंने वर्ष 1671 में हुए सराईघाट के युद्ध (Battle of Saraighat) में अपनी सेना का प्रभावी नेतृत्व किया, जिससे असम पर कब्ज़ा करने का मुगल सेना का प्रयास विफल हो गया था।
  • इन्होंने भारतीय नौसैनिक शक्ति को मज़बूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा दी।
  • राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लचित बोरफूकन स्वर्ण पदक (The Lachit Borphukan Gold Medal) प्रदान किया जाता है।
    • इस पदक को रक्षाकर्मियों हेतु बोरफुकन की वीरता से प्रेरणा लेने और उनके बलिदान का अनुसरण करने के लिये वर्ष 1999 में स्थापित किया गया था।
  • 25 अप्रैल, 1672 को इनका निधन हो गया।

सराईघाट का युद्ध:

  • सराईघाट का युद्ध (Battle of Saraighat) वर्ष 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra) नदी के तट पर लड़ा गया था।
  • इसे एक नदी पर होने वाली सबसे बड़ी नौसैनिक लड़ाई के रूप में जाना जाता है, जिसमें मुगल सेना की हार और अहोम सेना की जीत हुई।

अहोम साम्राज्य:

  • संस्थापक: 
    • छोलुंग सुकफा (Chaolung Sukapha) 13वीं शताब्दी के अहोम साम्राज्य के संस्थापक थे, जिन्होंने छह शताब्दियों तक असम पर शासन किया था। अहोम शासकों का इस भूमि पर नियंत्रण वर्ष 1826 की यांडाबू की संधि (Treaty of Yandaboo) होने तक था।
  • राजनीतिक व्यवस्था: 
    • अहोमों ने भुइयाँ (ज़मींदारों) की पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त कर एक नया राज्य बनाया।
    • अहोम राज्य बंधुआ मज़दूरों (Forced Labour) पर निर्भर था। राज्य में इस प्रकार की मज़दूरी करने वालों को पाइक (Paik) कहा जाता था।
  • समाज:
    • अहोम समाज को कुल/खेल (Clan/Khel) में विभाजित किया गया था। एक कुल/खेल का सामान्यतः कई गाँवों पर नियंत्रण होता था।
    • अहोम साम्राज्य के लोग अपने आदिवासी देवताओं की पूजा करते थे, फिर भी उन्होंने हिंदू धर्म और असमिया भाषा को स्वीकार किया।
      • हालांँकि अहोम राजाओं ने हिंदू धर्म अपनाने के बाद अपनी पारंपरिक मान्यताओं को पूरी तरह से नहीं छोड़ा।
    • अहोम लोगों का स्थानीय लोगों के साथ विवाह के चलते उनमें असमिया संस्कृति को आत्मसात करने की प्रवृत्ति देखी गई।

कला और संस्कृति: 

  • अहोम राजाओं ने कवियों और विद्वानों को भूमि अनुदान दिया तथा रंगमंच को प्रोत्साहित किया।
  • संस्कृत के महत्त्वपूर्ण कृतियों का स्थानीय भाषा में अनुवाद किया गया।
  • बुरंजी (Buranjis) नामक ऐतिहासिक कृतियों को पहले अहोम भाषा में फिर असमिया भाषा में लिखा गया।

सैन्य रणनीति:

  • अहोम राजा सेना का सर्वोच्च सेनापति भी होता था। युद्ध के समय सेना का नेतृत्व राजा स्वयं करता था और पाइक राज्य की मुख्य सेना थी।
    • पाइक दो प्रकार के होते थे- सेवारत और गैर-सेवारत। गैर-सेवारत पाइकों ने एक स्थायी मिलिशिया (Militia) का गठन किया, जिन्हें खेलदार (Kheldar- सैन्य आयोजक) द्वारा थोड़े ही समय में इकट्ठा किया जा सकता था।
    • अहोम सेना की टुकड़ी में पैदल सेना, नौसेना, तोपखाने, हाथी, घुड़सवार सेना और जासूस शामिल थे। युद्ध में इस्तेमाल किये जाने वाले मुख्य हथियार- तलवार, भाला, बंदूक, तोप, धनुष और तीर थे।
    • अहोम राजा युद्ध अभियानों से पहले अपने दुश्मनों की युद्ध रणनीतियों को जानने के लिये उनके शिविरों में जासूस भेजते थे।
    • अहोम सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध (Guerilla Fighting) में विशेषज्ञता प्राप्त थी। ये सैनिक दुश्मनों को अपने देश की सीमा में प्रवेश करने देते थे, फिर उनके संचार को बाधित कर उन पर सामने और पीछे से हमला कर देते थे।
    • कुछ महत्त्वपूर्ण किले: चमधारा, सराईघाट, सिमलागढ़, कलियाबार, कजली और पांडु।
    • उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी पर नाव का पुल (Boat Bridge) बनाने की तकनीक भी सीखी थी।
    • इन सबसे ऊपर अहोम राजाओं के लिये नागरिकों और सैनिकों के बीच आपसी समझ तथा रईसों के बीच एकता ने हमेशा मज़बूत हथियारों के रूप में काम किया।

Ahom

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


शासन व्यवस्था

एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के लिये राष्ट्रीय रणनीति

प्रिलिम्स के लिये:

3डी प्रिंटिंग और इसका उपयोग'।

मेन्स के लिये:

एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के लिये राष्ट्रीय रणनीति, 3डी प्रिंटिंग, 'मेक इन इंडिया', आत्मनिर्भर भारत अभियान।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी (Additive Manufacturing Policy) के लिये राष्ट्रीय रणनीति की घोषणा की गई है।

प्रमुख बिंदु

नीति की मुख्य विशेषताएंँ:

  • इस नीति का लक्ष्य अगले तीन वर्षों के भीतर वैश्विक योज्य निर्माण में भारत की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 5% करना और सकल घरेलू उत्पाद में 1 बिलियन अमेंरिकी डाॅलर की हिस्सेदारी करना है।
  • इसके अलावा इसका उद्देश्य सामग्री, मशीन और सॉफ्टवेयर के लिये 50 भारत विशिष्ट तकनीकों को विकसित करना, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के लिये 100 नए स्टार्टअप, 500 नए उत्पाद और कम-से-कम 1 लाख नए कुशल श्रमिकों को प्रशिक्षित करना है।
  • यह नीति 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के सिद्धांतों के अनुरूप है जो उत्पादन प्रतिमान में तकनीकी परिवर्तन के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगी।

3डी प्रिंटिंग:

  • 3डी प्रिंटिंग के बारे में: 3डी प्रिंटिंग को एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के रूप में भी जाना जाता है जो प्लास्टिक और धातुओं जैसी सामग्रियों का उपयोग कर कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइन पर परिकल्पित उत्पादों को वास्तविक त्रि-आयामी वस्तुओं में परिवर्तित करती है।
    • 3D प्रिंटिंग सबट्रेक्टिव मैन्युफैक्चरिंग के विपरीत है जिसका उपयोग धातु या प्लास्टिक के एक टुकड़े को काटने/खोखला करने के लिये किया जाता है, जैसे- एक मिलिंग मशीन।
  • तकनीकियों का प्रतिच्छेदन: एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग डिजिटल विनिर्माण की अगली पीढ़ी है जो कंप्यूटिंग इलेक्ट्रॉनिक्स, इमेजिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) के उभरते क्षेत्रों, पैटर्न की पहचान के प्रतिच्छेदन की अनुमति देती है तथा इससे बौद्धिक संपदा और निर्यात के अवसर पैदा होंगे।
  • संभावित प्रभाव: एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (Additive Manufacturing) में डिजिटल प्रक्रियाओं, संचार, इमेजिंग, आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग के माध्यम से भारत के विनिर्माण और औद्योगिक उत्पादन परिदृश्य में क्राँति लाने की अपार संभावनाएँ हैं।
    • इस क्षेत्र में स्टार्टअप्स की अपार संभावनाएँ है।
  • उपयोग: 3डी प्रिंटिंग का पारंपरिक रूप से प्रोटोटाइपिंग (Prototyping) के लिये उपयोग किया जाता रहा है। 3D प्रिंटिंग में कृत्रिम उपकरण, स्टेंट, डेंटल क्राउन, ऑटोमोबाइल के पुर्जे और उपभोक्ता वस्तुएँ आदि बनाने की बहुत गुंज़ाइश है।

भारत के लिये संभावनाएँ:

  • बड़ी पूंजी निवेश की आवश्यकता को खत्म करना: इससे संबंधित मशीनें सस्ती होती हैं, साथ ही इन्वेंट्री के लिये अधिक  जगह की ज़रूरत नहीं होती है।
    • इस प्रकार जम्प-स्टार्टिंग मैन्युफैक्चरिंग को बड़ी पूंजी की आवश्यकता हेतु भारी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता है, साथ ही पारंपरिक छोटे एवं मध्यम उद्यमों को आसानी से अनुकूलित कर उच्च प्रौद्योगिकी निर्माण की ओर ले जाया जा सकता है।
  • भारत की आईटी शक्ति का लाभ उठाना: मौजूदा समय में भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग काफी बेहतर स्थिति में है और कनेक्टिविटी बढ़ाने की योजना 'डिजिटल इंडिया' के हिस्से के रूप में अच्छी तरह से परिचालित हो रही है।
    • यह छोटे शहरों में एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग सुविधाओं के निर्माण और प्रमुख शहरों के बाहर औद्योगिक विकास को बढ़ावा देगा।
  • समान गुणवत्ता मानक: एक समान उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखना कहीं अधिक आसान है, क्योंकि पूरी प्रणाली सामान रूप से कार्य करती है और किसी भी प्रकार की असेंबलिंग की आवश्यकता नहीं होती है।

संबद्ध चुनौतियाँ:

  • मानकों का अभाव: चूँकि 3D प्रिंटिंग एक विशिष्ट और नया डोमेन है, इसलिये कोई वैश्विक योग्यता एवं प्रमाणन मानदंड मौजूद नहीं हैं।
  • प्रयोग संबंधी असमंजसता: एक अन्य और महत्त्वपूर्ण चुनौती अलग-अलग उद्योगों एवं सरकारी मंत्रालयों को अपने संबंधित क्षेत्र में एक नई तकनीक के तौर पर 3D प्रिंटिंग को अपनाने हेतु प्रेरित करना है, क्योंकि इस नई तकनीक को आम लोगों के बीच जगह बनाने में समय लगेगा।
  • रोज़गार में कमी का खतरा: कई जानकार यह कहते हुए इस तकनीक का विरोध करते हैं कि इससे चिकित्सा उपकरण या एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अत्यधिक कुशल श्रमिकों की नौकरियों पर खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
  • उच्च लागत: यद्यपि इस तकनीक में प्रिंटिंग की लागत काफी कम होती है, किंतु एक 3D प्रिंटर बनाने हेतु प्रयोग होने वाले उपकरणों की लागत काफी अधिक होती है। इसके अलावा इस प्रकार के उत्पादों की गुणवत्ता और वारंटी भी एक चिंता का विषय है, जिसके कारण कई कंपनियाँ उत्पादन के लिये 3D प्रिंटिंग के प्रयोग में संकोच करती हैं।
  • क्षेत्र विशिष्ट चुनौतियाँ: भारत समेत संपूर्ण विश्व में 3D प्रिंटिंग उत्पादों का सबसे बड़ा उपभोक्ता मोटर वाहन उद्योग है, जो कि वर्तमान में BS-VI उत्सर्जन मानकों और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे बदलावों का सामना कर रहा है। इसकी वजह से नए वाहनों के निर्माण की गति धीमी हो गई है, इसलिये 3D प्रिंटिंग उत्पादों की मांग भी काफी कम हो गई है।

आगे की राह

  • शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देना: हमारे प्रमुख इंजीनियरिंग कालेजों में विनिर्माण मशीनों और विधियों पर अनुसंधान में तेज़ी लाने और उत्पाद डिज़ाइन केंद्रों के गठन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ताकि उत्पादों को भारतीय पर्यावरण और उपभोक्ताओं के अनुरूप बनाया जा सके।
  • सरकारी सहायता की आवश्यकता: छोटे शहरों में विनिर्माण को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये सरकारी सहायता की आवश्यकता है और आईटी उद्योग को ऐसे प्लेटफॉर्म एवं मार्केटप्लेस बनाने पर काम करने की आवश्यकता है जो उपभोक्ता मांगों, उत्पाद डिज़ाइनरों व निर्माताओं को एक सहज तरीके से जोड़ता हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

P-8I पेट्रोल विमान

प्रिलिम्स के लिये:

P-8I पेट्रोल विमान, COMCASA समझौता।

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका रक्षा संबंध।

चर्चा में क्यों?

विमान निर्माता कंपनी बोइंग ने भारतीय नौसेना को 12वाँ P-8I लंबी दूरी का समुद्री गश्ती विमान (P-8I Long-range MaritimePatrol Aircraft) सौंपा है। वर्ष 2016 में चार अतिरिक्त विमानों की आपूर्ति के लिये रक्षा मंत्रालय द्वारा हस्ताक्षरित वैकल्पिक अनुबंध के तहत यह चौथा विमान है

P-8I विमान:

  • यह एक लंबी दूरी का समुद्री गश्ती एवं पनडुब्बी रोधी युद्धक विमान है।
  • यह P-8A पोसाइडन विमान का एक प्रकार है जिसे बोइंग कंपनी ने अमेरिकी नौसेना के पुराने P-3 बेड़े के प्रतिस्थापक के रूप में विकसित किया है।
  • P-8I विमान 907 किमी. प्रति घंटे की अधिकतम गति और 1,200 समुद्री मील से अधिक की दूरी तक के ऑपरेटिंग रेंज के साथ खतरों का पता लगा सकता है और आवश्यकता पड़ने पर भारतीय तटों के आसपास पहुँचने से पहले इन खतरों को अप्रभावी कर देता है।
  • वर्ष 2009 में भारतीय नौसेना P-8I विमान के लिये पहली अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक बनी।
    • नौसेना ने वर्ष 2009 में 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे के तहत आठ P-8I खरीदे थे। ये विमान तमिलनाडु के अरक्कोनम में स्थित 312A नेवल एयर स्क्वाड्रन का हिस्सा हैं।
    • वर्ष 2016 में नौसेना ने 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के सौदे में चार और P-8I के लिये वैकल्पिक खंड का प्रयोग किया।
    • इसके अलावा मई 2021 में अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत को छह अतिरिक्त P-8I विमानों और संबंधित उपकरणों की संभावित बिक्री की मंज़ूरी दी।
    • एन्क्रिप्टेड संचार प्रणालियों के साथ छह P-8I तैनात किये जाएंगे, क्योंकि भारत ने अमेरिका के साथ संचार संगतता और सुरक्षा समझौते (COMCASA) के मूलभूत समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

भारत-अमेरिका रक्षा संबंध:

  • यह प्रस्तावित बिक्री अमेरिका-भारत रणनीतिक संबंधों को मज़बूती प्रदान करने में मदद करता है।
    • अमेरिका के लिये हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता, शांति एवं आर्थिक प्रगति की दिशा में भारत एक महत्वपूर्ण शक्ति बना हुआ है। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका से रक्षा खरीद दोनों देशों के बीच बढ़ते संबंधों का एक अभिन्न अंग है। 
    • भारत-अमेरिका के बीच रक्षा व्यापार वर्ष 2008 में लगभग शून्य था जो वर्ष 2020 में लगभग 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, इसने दोनों देशों के बीच प्रमुख नीति उन्नयन में मदद की।
  • वर्ष 2016 में अमेरिका ने भारत को एक “मेजर डिफेंस पार्टनर” नामित किया था। वर्ष 2018 में अमेरिका ने सामरिक व्यापार प्राधिकरण-1 (STA-1) के तहत भारत को नाटो सहयोगी देश और ऑस्ट्रेलिया, जापान तथा दक्षिण कोरिया के समान रक्षा प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्रदान की है।

संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA):

  • संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) अमेरिका और भारत के संचार सुरक्षा उपकरणों के हस्तांतरण के लिये एक कानूनी ढाँचा है जो उनकी सेनाओं के बीच " इंटरऑपरेबिलिटी या अंत:संचालन" की सुविधा और संभवतः डेटा लिंक सुरक्षा के लिये अन्य सेनाओं के साथ अमेरिका-आधारित तंत्र का उपयोग करेगा।
  • यह उन चार मूलभूत समझौतों में से एक है जो अमेरिका के सहयोगी और करीबी पार्टनर देशों को उच्च क्षमता तकनीक एवं सेनाओं के बीच अंत:संचालन की सुविधा का संकेत देता है। 
  • यह संचार और सूचना पर सुरक्षा ज्ञापन समझौते (CISMOA) का एक भारत-विशिष्ट संस्करण है।
  • मिलिट्री इन्फाॅर्मेशन एग्रीमेंट ऑफ जनरल सिक्योरिटी (GSOMIA)
    • यह सेनाओं को उनके द्वारा इकट्ठी की गई खुफिया जानकारी साझा करने की अनुमति देता है।
    • इस पर भारत ने वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किये।
  • वर्ष 2016 में भारत द्वारा लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) पर हस्ताक्षर किये गए।
    • यह दोनों देशों को ईंधन भरने और पुनःपूर्ति हेतु एक-दूसरे की निर्दिष्ट सैन्य सुविधाओं तक पहुंँच की अनुमति देता है।
  • संचार और सूचना सुरक्षा समझौता ज्ञापन (CISMOA): COMCASA समझौता, CISMOA का संचार और सूचना से संबंधित भारत-विशिष्ट संस्करण है। इस पर भारत ने वर्ष 2018 में हस्ताक्षर किये।
  • बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (BECA): BECA भारत और अमेरिकी सैनिकों को एक-दूसरे के साथ भू-स्थानिक जानकारी और उपग्रह डेटा साझा करने की अनुमति देगा। BECA पर भारत ने वर्ष 2020 में हस्ताक्षर किये।

स्रोत: द हिंदू 


जैव विविधता और पर्यावरण

सस्टेनेबल सिटीज़ इंडिया कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

सस्टेनेबल सिटीज़ इंडिया प्रोग्राम, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स (NIUA), वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, स्मार्ट सिटीज़ मिशन, अटल मिशन फॉर अर्बन रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT)।

मेन्स के लिये:

शहरीकरण, संरक्षण, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF)और शहरी मामलों के राष्ट्रीय संस्थान (एनआईयूए) द्वारा संयुक्त रूप से डिज़ाइन किये गए 'सस्टेनेबल सिटीज़ इंडिया प्रोग्राम' पर सहयोग करने हेतु एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गए।

  • यह पहल भारत द्वारा COP26 में जलवायु शमन प्रतिक्रिया के रूप में वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो की भारत की प्रतिबद्धता के बाद की गई है।

'सस्टेनेबल सिटीज़ इंडिया प्रोग्राम' के प्रमुख बिंदु:

  • इसका उद्देश्य शहरों के ऊर्जा, परिवहन तथा पर्यावरणीय क्षेत्रों में डीकार्बोनाइजेशन समाधान प्रदान  कर एक सक्षम वातावरण का निर्माण करना है।
  • WEF और NIUA दो वर्षों में WEF की ‘सिटी स्प्रिंट प्रक्रिया’ तथा ‘टूलबॉक्स ऑफ सॉल्यूशंस’ के तहत पाँच से सात भारतीय शहरों को डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये अनुकूलित करेंगे।
    • सिटी स्प्रिंट प्रक्रिया (City Sprint Process): यह बहु-क्षेत्रीय, बहु-हितधारक कार्यशालाओं की एक शृंखला है, जिसमें व्यापार, सरकार और नागरिक समाज के प्रमुखों को शामिल किया जाता है, विशेष रूप से स्वच्छ विद्युतीकरण व वितरण के माध्यम से डीकार्बोनाइजेशन को सक्षम बनाने हेतु इसका क्रियान्वयन किया जाता है। 
    • टूलबॉक्स ऑफ सॉल्यूशंस (Toolbox of Solutions): यह एक डिजिटल प्लेटफार्म है, जिसमें स्वच्छ विद्युतीकरण, दक्षता तथा स्मार्ट बुनियादी ढांँचे के 200 से अधिक उदाहरण मौजूद हैं और इसके लिये दुनिया भर के 110 से अधिक शहरों में इमारतों, ऊर्जा प्रणालियों एवं गतिशीलता के मामलों का अध्ययन किया गया है। 

डीकार्बोनाइज़ेशन की आवश्यकता:

  • विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत जैसे घनी आबादी वाले देश जो कृषि पर अत्यधिक निर्भर हैं, विशेष रूप से जलवायु असुरक्षा की चपेट में हैं। 
    • शहरों में डीकार्बोनाइज़ेशन ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का एक वास्तविक अवसर है और भारत के शहर इस लक्ष्य तक पहुंँचने में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं।
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का नेट ज़ीरो कार्बन का मकसद सिटीज़ मिशन, स्वच्छ विद्युतीकरण और वितरण हेतु एक सक्षम वातावरण निर्मित करना है।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य ऊर्जा, पर्यावरण और परिवहन क्षेत्रों में अंतर को पाटने के लिये  सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ावा देना है। 

शहरी मामलों के राष्ट्रीय संस्थान (NIUA):

  • वर्ष 1976 में स्थापित शहरी मामलों का राष्ट्रीय संस्थान (National Institute of Urban Affairs-NIUA) शहरी नियोजन और विकास पर भारत का प्रमुख राष्ट्रीय थिंक टैंक है।
  • शहरी क्षेत्र में अत्याधुनिक अनुसंधान और प्रसार के लिये एक केंद्र के रूप में एनआईयूए तेज़ी से शहरीकरण करने वाले भारत की चुनौतियों का अभिनव समाधान प्रदान कर भविष्य के अधिक समावेशी और सतत् शहरों हेतु मार्ग प्रशस्त करना चाहता है।

भारत सरकार द्वारा शहरी विकास हेतु शुरू की गई प्रमुख पहलें:

स्रोत: पी.आई.बी.


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