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शासन व्यवस्था

वर्ष 2022-23 के बजट में बच्चों की हिस्सेदारी

  • 25 Feb 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पोषण 2.0, पीएम ई-विद्या, 'वन क्लास, वन टीवी चैनल' प्रोग्राम, एकीकृत बाल विकास योजना, एनएफएचएस- 5 सर्वे के निष्कर्ष।

मेन्स के लिये:

भारत में बच्चों की स्थिति और उनसे संबंधित मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता, इस दिशा में सरकारों द्वारा उठाए गए कदम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा किये गए विश्लेषण के मुताबिक, बीते 11 वर्षों के मुकाबले इस वर्ष देश में बच्चों को बजट में आवंटन का सबसे कम हिस्सा प्राप्त हुआ है।

  • केंद्र सरकार द्वारा बच्चों के लिये बजट बनाने की शुरुआत पहली बार वर्ष 2008 में बाल बजट विवरण के प्रकाशन के साथ हुई थी। इसके बाद कई राज्यों ने भी इस कार्य को शुरू किया है।

बच्चों से संबंधित बजट में क्या शामिल है?

  • परिचय:
    • वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में बच्चों के लिये कुल आवंटन 92,736.5 करोड़ रुपए है, जबकि पिछले बजट में 85,712.56 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था।
      • यद्यपि यह निरपेक्ष रूप से 8.19% की वृद्धि है, किंतु यह केंद्रीय बजट में कुल व्यय में वृद्धि के अनुपात में नहीं है।
      • बच्चों के लिये बजट का हिस्सा इस वित्तीय वर्ष (2022-23) के लिये केंद्रीय बजट का केवल 2.35% है, यह 0.11% की कमी को दर्शाता है, जो कि पिछले 11 वर्षों में बच्चों के लिये आवंटित सबसे कम धनराशि है।
  • क्षेत्रवार विश्लेषण:
    • बाल स्वास्थ्य के लिये:
      • बाल स्वास्थ्य के लिये आवंटन में 6.08% की कमी की गई है।
      • सबसे महत्त्वपूर्ण बाल स्वास्थ्य योजनाओं में से एक, NRHM-RCH फ्लेक्सी पूल में 8.22% की कमी हुई है।
        • यह फ्लेक्सी पूल राज्यों की स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने के साथ-साथ प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल एवं किशोर स्वास्थ्य (RMNCH+A) की ज़रूरतों को पूरा करता है।
    • बाल विकास कार्यक्रम के लिये:
      • अगले वित्त वर्ष के लिये आवंटन में 10.97% की गिरावट देखी गई है, जो 17,826.03 करोड़ रुपए है। इनमें पूरक पोषण और आंगनवाड़ी (डे केयर) सेवाएँ शामिल हैं।
        • महिलाओं और बच्चों को एकीकृत लाभ प्रदान करने वाली पोषण 2.0 जैसी योजनाओं को इस वर्ष कोई अतिरिक्त धनराशि आवंटित नहीं हुई।
        • वर्ष 2022-23 में प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (पीएम पोषण) कार्यक्रम के लिये 10,234 करोड़ रुपए का अनुमानित बजट स्वीकृत किया गया है। पिछले वर्ष संशोधित अनुमान 10,234 करोड़ रुपए था।
          • इस योजना को पहले 'विद्यालयों में मध्याह्न भोजन राष्ट्रीय कार्यक्रम' के रूप में जाना जाता था और इसमें 6 से 14 वर्ष की आयु तक के स्कूली बच्चों को गर्म पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता था।
    • बाल शिक्षा के लिये:
      • बाल शिक्षा के लिये बजट का हिस्सा चालू वित्त वर्ष में 1.74% से केवल 0.3% अंक की मामूली वृद्धि के साथ अगले वित्त वर्ष के लिये 1.73% हो गया है।
      • बजट में घोषित 'वन क्लास, वन टीवी चैनल' कार्यक्रम बच्चों के लिये सीखने का एक कठिन तरीका है।
        • पीएम ई-विद्या के 'वन क्लास, वन टीवी चैनल' कार्यक्रम का विस्तार 12 से 200 टीवी चैनलों तक किया जाएगा।
    • बच्चों के संरक्षण और कल्याण के लिये:
      • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को मिशन वात्सल्य के अंतर्गत बच्चों की सुरक्षा एवं कल्याण योजनाओं के लिये 1,472.17 करोड़ रुपए आवंटित किये गए।
        • यह इस वित्त वर्ष की तुलना में 65% अधिक है, लेकिन योजना के पुनर्गठन से पहले 2019-2020 में 15,000 करोड़ रुपए के आवंटन से कम है। 

बच्चों के लिये बजट संबंधी मुद्दे:

  • मात्र वार्षिक लेखा अभ्यास:
    • केंद्र सरकार द्वारा बच्चों के लिये बजट बनाना केवल एक वार्षिक लेखांकन अभ्यास तक सीमित रह गया है, जबकि बाल बजट विवरण (CBS) का प्रकाशन सभी विभागों में प्रासंगिक बजट शीर्षों को मिलाकर किया गया है।
      • यह अकेले बच्चों की विशेष ज़रूरतों के प्रति उत्तरदायी रहने के मूल उद्देश्य को पूरा करने के लिये बहुत कम है।
  • राज्य सरकारों में ज़िम्मेदारी की कमी:
    • बच्चों के लिये कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं को लागू करने हेतु मुख्य रूप से ज़िम्मेदार होने के कारण राज्य सरकारें इस अभ्यास को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
      • लेकिन उनके द्वारा भी बच्चों के लिये अधिक प्रभावी ढंग से योजना बनाने और हस्तक्षेप हेतु एक उपकरण के बजाय इसे एक लेखांकन ज़िम्मेदारी के रूप में माना जाता है।
  • मानकीकरण का अभाव:
    • इसके अलावा सरकारी संस्थाओं के बीच संबंधित बाल बजट विवरण (CBS) की रिपोर्टिंग हेतु मानदंडों के मानकीकरण की कमी है।

भारत में बच्चों की स्थिति:

  • हाल ही में NFHS-5 के सर्वेक्षण में बाल स्वास्थ्य और पोषण पर मिश्रित तस्वीर सामने आई है।
    • एक तरफ इसके बाल मृत्यु दर में कमी, पोषण संकेतकों के स्तर में सुधार जैसे स्टंटिंग और वेस्टिंग आदि निश्चित सकारात्मक पहलू हैं। 
    • दूसरी ओर इस दौर में बच्चों में एनीमिया की घटनाएँ NFHS 4 में 58.6% से बढ़कर 67.1% के खतरनाक स्तर पर पहुँच गई हैं, प्रमुख विशेषज्ञों का कहना है कि SDG लक्ष्य 2030 को पूरा करने के लिये और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
  • ASER सर्वेक्षण निष्कर्ष:
    • लगातार ASER सर्वेक्षणों ने बताया है कि वर्ष 2020 और 2021 के बीच स्कूल में नामांकित बच्चों के अनुपात में कोई सुधार नहीं हुआ है और इस संबंध में राज्यों के बीच बहुत अधिक परिवर्तनशीलता है।
  • कोविड-19 का प्रभाव:
    • कोविड-19 ने बच्चों को विविध तरीकों से प्रभावित किया है चाहे वे शारीरिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक या सामाजिक प्रभाव हों, इसमें शामिल हैं- संक्रमण या प्रवास, पारिवारिक संकट, दोस्तों से अलगाव, सीखने की प्रक्रिया में बाधा, पर्यावरण, स्वयं या परिवार के सदस्यों का अस्पताल में भर्ती होना, कार्य में  वयस्कों की भूमिका या फिर विवाह।
    • कोविड-19 ने भारत में बच्चों की शिक्षा, पोषण और विकास तथा बाल संरक्षण तक उनकी पहुंँच को गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया था।

आगे की राह 

  • क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों से संबंधित हस्तक्षेपों पर कार्य करने वाले सरकारी अधिकारियों का उन्मुखीकरण न केवल CBS में रिपोर्टिंग के लिये बल्कि उन्हें योजनाओं को पुनः बेहतर ढंग से डिज़ाइन करने तथा नियमित आधार पर उनकी प्रगति की निगरानी करने में सक्षम बनाने हेतु भी महत्त्वपूर्ण है।
  • परिव्ययों को बेहतर परिणामों में परिवर्तित करने हेतु बच्चों के लिये बजट का एक परिणाम अभिविन्यास आवश्यक है।
  • CBS में रिपोर्टिंग संरचना को मानकीकृत करने की तत्काल आवश्यकता है तथा केंद्र सरकार CBS को जवाबदेही का एक प्रभावी साधन बनाने के लिये राज्यों और विशेषज्ञों के परामर्श से इसके लिये एक विस्तृत ढांँचा विकसित कर सकती है।
  • संबंधित मंत्रालयों द्वारा बाल संबंधित योजनाओं की नियमित निगरानी और लेखापरीक्षा की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू  

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