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डेली न्यूज़

  • 26 Feb, 2022
  • 36 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

उचित और लाभकारी मूल्य (FRP)

प्रिलिम्स के लिये:

उचित और लाभकारी मूल्य (FRP), गन्ना।

मेन्स के लिये:

कृषि मूल्य निर्धारण, भारतीय अर्थव्यवस्था में चीनी उत्पादन, गन्ना उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार द्वारा एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया गया जो चीनी मिलों को दो चरणों में मूलभूत उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price- FRP) का भुगतान करने की अनुमति प्रदान करेगा।

प्रमुख बिंदु 

सरकार द्वारा जारी प्रस्ताव में बदलाव:

  • पहली किश्त का भुगतान गन्ने की डिलीवरी के 14 दिनों के भीतर करना होगा और यह ज़िले की औसत वसूली (Average Recovery Of The District) के अनुसार होगा।
  • अंतिम वसूली की गणना के बाद मिल बंद होने के 15 दिनों के भीतर मिल द्वारा किसानों को दूसरी किस्त का भुगतान किया जाएगा,जिसमें उत्पादित चीनी और 'बी हेवी' (B Heavy) या 'सी' शीरे (‘C’ Molasses) से उत्पादित इथेनॉल को ध्यान में रखकर भुगतान किया जाएगा।
  • इस प्रकार पिछले सीज़न के FRP पर निर्भर रहने के बजाय किसानों को मौजूदा सीज़न की वसूली के अनुसार भुगतान किया जाएगा।

महाराष्ट्र में किसानों के विरोध का कारण:

  • किसानों का तर्क है कि इस पद्धति से उनकी आय प्रभावित होगी तथा FRP का भुगतान किश्तों में किया जाएगा जिसमें काफी अंतर विद्यमान होगा, साथ ही उसमें पूर्व की तरह बैंक ऋण और अन्य खर्चों का भुगतान शामिल होने की उम्मीद है।
  • किसानों को एकमुश्त धनराशि की आवश्यकता ज़्यादातर मौसम की शुरुआत (अक्तूबर-नवंबर) में होती है क्योंकि उनका अगला फसल चक्र इसी पर निर्भर करता है।

FRP के बारे में: 

  • FRP सरकार द्वारा घोषित मूल्य है जिस पर मिलें किसानों से खरीदे गए गन्ने का भुगतान कानूनी रूप से करने के लिये बाध्य हैं।
    • मिलों के पास किसानों के साथ समझौते के लिये हस्ताक्षर करने का एक विकल्प है, जो मिलों द्वारा किसानों को किश्तों में FRP का भुगतान करने की अनुमति प्रदान करता है।
    • भुगतान में देरी पर 15% तक प्रतिवर्ष ब्याज लग सकता है और चीनी आयुक्त (Sugar Commissioner) मिलों की संपत्तियों को संलग्न कर राजस्व वसूली के तहत बकाया के रूप में अदत्त  एफआरपी (Unpaid FRP) की वसूली कर सकते हैं। 
  • देश भर में FRP का भुगतान आवश्यक वस्तु अधिनियम (EAC), 1955 के तहत जारी गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 द्वारा नियंत्रित होता है, जो गन्ने की डिलीवरी की तारीख के 14 दिनों के भीतर भुगतान को अनिवार्य करता है।
  • यह कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश के आधार निर्धारित तथा आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा घोषित किया जाता है।
    • CACP कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का एक संबद्ध कार्यालय है। यह एक सलाहकार निकाय है, अतः इसकी सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।
    • CCEA की अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
  • FRP गन्ना उद्योग के पुनर्गठन को लेकर रंगराजन समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।

FRP की घोषणा हेतु प्रमुख कारक:

  • गन्ना उत्पादन की लागत।
  • वैकल्पिक फसलों से उत्पादकों की वापसी और कृषि वस्तुओं की कीमतों की सामान्य प्रवृत्ति।
  • उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर चीनी की उपलब्धता।
  • चीनी उत्पादकों द्वारा बेची गई चीनी का मूल्य।
  • गन्ने से उत्पादित चीनी की मात्रा।
  • उप-उत्पादों की बिक्री से होने वाली प्राप्ति अर्थात् गुड़, खोई और उन पर आरोपित मूल्य।
  • गन्ना उत्पादकों के लिये जोखिम और मुनाफे के कारण उचित मार्जिन।

FRP का भुगतान:

  •  FRP का भुगतान गन्ने से प्राप्त चीनी पर आधारित है।. 
    • चीनी सीज़न 2021-22 के लिये 10% की बेस रिकवरी पर FRP 2,900 रुपए प्रति टन तय किया गया है।
  • चीनी की रिकवरी (Sugar Recovery) उत्पादित चीनी तथा गन्ने की पेराई के अनुपात के बराबर होती है, जिसे प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • रिकवरी जितनी अधिक होगी, FRP उतना ही अधिक होगा तथा चीनी का उत्पादन अधिक होगा।

गन्ना (Sugarcane):

  • तापमान : उष्ण और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 डिग्री सेल्सियस के बीच।
  • वर्षा : लगभग 75-100 सेमी.।
  • मिट्टी का प्रकार : गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी।
  • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य : उत्तर प्रदेश> महाराष्ट्र> कर्नाटक> तमिलनाडु> बिहार।
  • ब्राज़ील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • इसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक सभी प्रकार की मृदा में उगाया जा सकता है, क्योंकि इसके लिये अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • इसमें बुवाई से लेकर कटाई तक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है।
  • यह चीनी, गुड़, खांडसारी और राब का मुख्य स्रोत है।
  • चीनी उद्योग को समर्थन देने हेतु सरकार की दो पहलें हैं- चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता योजना (SEFASU) और जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति गन्ना उत्पादन योजना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विश्व इतिहास

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती

प्रिलिम्स के लिये:

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती, आर्य समाज।

मेन्स के लिये:

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती और उनका योगदान, महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व, आर्य समाज के मार्गदर्शक सिद्धांत।

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2022 में महर्षि दयानंद सरस्वती 26 फरवरी को मनाई जा रही है।

  • पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के अनुसार, दयानंद सरस्वती का जन्म फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को हुआ था।

Maharishi-Dayanand-Saraswati

महर्षि दयानंद सरस्वती:

  • जन्म:
    • स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के टंकारा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता यशोधाबाई और लालजी तिवारी रूढ़िवादी ब्राह्मण थे।
    • मूल नक्षत्र के दौरान पैदा होने के कारण उन्हें पहले मूल शंकर तिवारी नाम दिया गया था।
    • सत्य की खोज में वे पंद्रह वर्ष (1845-60) तक तपस्वी के रूप में भटकते रहे।
    • दयानंद के विचार उनकी प्रसिद्ध कृति सत्यार्थ प्रकाश में प्रकाशित हुए थे।
  • समाज के लिये योगदान:
    • वह एक भारतीय दार्शनिक, सामाजिक नेता और आर्य समाज के संस्थापक थे।
      • आर्य समाज वैदिक धर्म का एक सुधार आंदोलन है और वह वर्ष 1876 में "भारत भारतीयों के लिये" के रूप में स्वराज का आह्वान करने वाले पहले व्यक्ति थे।
    • वह एक स्व-प्रबोधित व्यक्ति और भारत के महान नेता थे जिन्होंने भारतीय समाज पर व्यापक प्रभाव छोड़ा। 
    • उनके द्वारा आर्य समाज की पहली इकाई की स्थापना औपचारिक रूप से 1875 में मुंबई (तब बॉम्बे) में की गई थी और बाद में इसका मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया था।
    • उनके एक अखंड भारत के दृष्टिकोण में वर्गहीन और जातिविहीन समाज (धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर) तथा विदेशी शासन से मुक्त भारत शामिल था, जिसमें आर्य धर्म सभी का सामान्य धर्म हो।
    • उन्होंने वेदों से प्रेरणा ली और उन्हें 'भारत के युग की चट्टान', ‘हिंदू धर्म का अचूक और सच्चा मूल बीज’ माना। उन्होंने "वेदों की ओर लौटो" का नारा दिया।
    • उन्होंने चतुर्वर्ण व्यवस्था की वैदिक धारणा प्रस्तुत की इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति के वर्ण  का निर्धारण उसकी जाति के अनुसार नहीं बल्कि उसके द्वारा पालन किये जाने वाले व्यवसाय के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र के रूप में पहचाना जाता था।
  • शिक्षा प्रणाली में योगदान:
    • उन्होंने शिक्षा प्रणाली में पूरी तरह से बदलाव की शुरुआत की और उन्हें आधुनिक भारत के दूरदर्शी लोगों में से एक माना जाता है।
    • स्वामी दयानंद सरस्वती के दृष्टिकोण को साकार करने के लिये वर्ष 1886 में डीएवी (दयानंद एंग्लो वैदिक) स्कूल अस्तित्व में आए।
    • पहला डीएवी स्कूल लाहौर में स्थापित किया गया और महात्मा हंसराज इसके प्रधानाध्यापक थे।

आर्य समाज के बारे में: 

  • आर्य समाज का उद्देश्य वेदों (सबसे पुराने हिंदू धर्मग्रंथ) को सत्य के रूप में फिर से स्थापित करना है। उन्होंने वेदों में बाद की अभिवृद्धि को खारिज कर दिया और अपनी व्याख्या में अन्य वैदिक विचारों को भी शामिल किया।
    • वर्ष 1920 और 1930 के दशक की शुरुआत में कई मुद्दों पर तनाव बढ़ गया। मुस्लिम "मस्जिद से पहले संगीत", गौ रक्षा आंदोलन और आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन से नाराज़ थे।
  • आर्य समाज का प्रभाव  पश्चिमी और उत्तरी भारत में अधिक रहा है।
  • आर्य समाज में मूर्ति पूजा का विरोध, पशु बलि, श्राद्ध (पूर्वजों की ओर से अनुष्ठान), जन्म के आधार पर जाति का निर्धारण न कि योग्यता के आधार पर, अस्पृश्यता, बाल विवाह, तीर्थयात्रा, पुजारी पद्धति और मंदिर प्रसाद की पूजा का विरोध किया जाता है।
  • यह वेदों की अचूकता, कर्म सिद्धांत (पिछले कर्मों का संचित प्रभाव) और संसार (मृत्यु व पुनर्जन्म की प्रक्रिया), गाय की पवित्रता, संस्कारों के महत्त्व (व्यक्तिगत संस्कार) की प्रभावशीलता को कायम रखता है। तथा अग्नि के लिये  वैदिक यज्ञों की प्रभावकारिता एवं सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों की पुष्टि करता है।
  • आर्य समाज द्वारा महिला शिक्षा के उत्थान के साथ ही अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किया गया। विधवाओं के लिये मिशन, अनाथालय व घरों का निर्माण, स्कूलों तथा कॉलेजों का एक नेटवर्क स्थापित किया और अकाल राहत व चिकित्सा कार्य किये गए।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया 


शासन व्यवस्था

गोबर-धन संयंत्र: SBM-U का दूसरा चरण

प्रिलिम्स के लिये:

SBM-U का दूसरा चरण, बायोरेमेडिएशन।

मेन्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने इंदौर में ‘गोबर-धन’ (बायो-CNG) प्लांट’ का उद्घाटन किया है, इसका उद्देश्य लाखों टन उस अपशिष्ट को हटाना है, जो हज़ारों एकड़ भूमि पर कब्ज़ा कर रहा है और वायु एवं जल प्रदूषण के कारण कई बीमारियों को जन्म दे रहा है।

  • इसे स्वच्छ भारत मिशन (SBM-U 2.0) के दूसरे चरण के तहत स्थापित किया गया है।
  • यह प्लांट ‘ज़ीरो लैंडफिल मॉडल’ पर आधारित है। इसके अतिरिक्त इस परियोजना के कई पर्यावरणीय लाभ मिलने की भी उम्मीद है, जैसे- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, उर्वरक के रूप में जैविक खाद के साथ हरित ऊर्जा प्रदान करना आदि।

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0:

  • परिचय:
    • बजट 2021-22 में घोषित SBM-U 2.0, SBM-U का दूसरा चरण है।
    • सरकार शौचालयों के माध्यम से मल और सेप्टेज के सुरक्षित निपटान की कोशिश कर रही है।
      • शहरी भारत को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाने और नगरपालिका के ठोस कचरे का 100% वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से  2 अक्तूबर, 2014 को SBM-U का पहला चरण शुरू किया गया था। यह अक्तूबर 2019 तक चला।
    • इसे 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2021 से 2026 तक पाँच वर्षों में लागू किया जाएगा।
    • इस मिशन को ‘अपशिष्ट से धन’ और ‘परिपत्र अर्थव्यवस्था’ के व्यापक सिद्धांतों के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • लक्ष्य:
    • यह कचरे का स्रोत पर पृथक्करण, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक और वायु प्रदूषण में कमी, निर्माण एवं विध्वंस गतिविधियों से कचरे का प्रभावी ढंग से प्रबंधन तथा सभी डंप साइट्स के बायोरेमेडिएशन पर केंद्रित है।
    • इस मिशन के तहत सभी प्रकार के अपशिष्ट जल को जल निकायों में छोड़ने से पहले ठीक से उपचारित किया जाएगा तथा सरकार द्वारा अधिकतम पुन: उपयोग को प्राथमिकता देने का प्रयास किया जा रहा है।
  • मिशन के परिणाम:
    • सभी वैधानिक शहर ODF+ द्वारा प्रमाणित किये जाएंगे (पानी, रखरखाव और स्वच्छता के साथ शौचालयों पर केंद्रित)।
    • 1 लाख से कम आबादी वाले सभी वैधानिक शहर ODF++ द्वारा प्रमाणित किये जाएंगे (कीचड़ और कीचड़ के प्रबंधन के साथ शौचालयों पर केंद्रित)।
    • 1 लाख से कम आबादी वाले सभी वैधानिक शहरों का 50% से अधिक जल प्रमाणित हो जाएगा।
    • कचरा मुक्त शहरों के लिये MoHUA के कचरा मुक्त शहरों का स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल के अनुसार, सभी वैधानिक शहरों को कम-से-कम 3-स्टार कचरा मुक्त रेटिंग प्रदान की जाएगी।
    • सभी पुरानी डंप साइट्स का जैवोपचारण किया जाएगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय विरासत और संस्कृति

देवायतनम: मंदिर वास्तुकला पर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व धरोहर स्थल, वेसर, नागर और द्रविड़ वास्तुकला।

मेन्स के लिये:

भारतीय विरासत एवं संस्कृति, मंदिर वास्तुकला।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने कर्नाटक के ‘हम्पी’ में भारत के मंदिर वास्तुकला पर एक अनूठे सम्मेलन ‘देवायतनम’ का उद्घाटन किया।

  • इसे ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के हिस्से के रूप में संस्कृति मंत्रालय के भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 25-26 फरवरी को आयोजित किया जा रहा है।
  • हम्पी के मंदिरों को पहले से ही यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में उनकी भव्यता, शानदार वास्तुकला के लिये शामिल किया गया है।
    • भारत के 40 यूनेस्को विश्व धरोहर शिलालेखों में से लगभग 10 विभिन्न स्थापत्य शैली, पैटर्न और समरूपता में हिंदू मंदिर हैं।
    • वर्ष 2021 में तेलंगाना के मुलुगु ज़िले में रुद्रेश्वर मंदिर (जिसे रामप्पा मंदिर भी कहा जाता है) को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है।

सम्मेलन का महत्त्व:

  • यह सम्मेलन भारतीय मंदिरों, कला एवं वास्तुकला की भव्यता पर चर्चा, विचार-विमर्श और दुनिया में उनके प्रसार के लिये एक मंच प्रदान करता है।
  • यह प्रधानमंत्री की समग्र दृष्टि के अनुरूप है और 5V’s पर आधारित है, अर्थात्- विकास, विरासत, विश्वास,, ज्ञान, जो हमें विश्वगुरु बनने की ओर ले जा सकते।
  • ‘देवायतनम’ यानी भगवान का घर न केवल पूजा एवं अनुष्ठान करने का स्थान होता है, बल्कि शिक्षा, ललित कला, संगीत, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अनुष्ठान और परंपराओं या समाज को आकार देने वाली गतिविधियों का केंद्र भी है।
  • हाल के दिनों में सरकार ने मंदिर को किस प्रकार बढ़ावा दिया है?
  • केंद्र सरकार ने बेलूर और सोमनाथपुर के होयसल मंदिरों को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची हेतु प्रस्तावित किया है।
  • अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाया जा रहा है।
  • लगभग 250 वर्षों के बाद भारत की आध्यात्मिक राजधानी- काशी का कायाकल्प किया गया है और भक्तों के लिये सुविधाएँ तथा बेहतर बुनियादी अवसंरचना मौजूद है।
  • तेलंगाना राज्य ने 2 बड़े पत्थर के नक्काशीदार मंदिरों का निर्माण किया है जिनकी लागत 1,000 करोड़ रुपए है।
  • बेहतर बुनियादी अवसंरचना और विश्व स्तरीय सुविधाओं के माध्यम से मौजूदा आध्यात्मिक स्थानों को भक्तों के लिये सुलभ बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • पर्यटन के बुनियादी ढांँचे को सुविधाजनक बनाने व आध्यात्मिक स्थानों पर बेहतर पहुंँच और अनुभव प्रदान करने के लिये प्रसाद और स्वदेश दर्शन योजना हेतु लगभग 7,000 करोड़ रुपए के बजट की कल्पना की गई है।

भारतीय मंदिरों का क्या महत्त्व है?

  • भारतीय मंदिर कला, ज्ञान, संस्कृति, आध्यात्मिकता, नवाचार और शिक्षा के केंद्र रहे हैं।
  • भारत में मंदिरों की स्थापना की तीन प्रमुख शैलियाँ रही हैं जिन्हें नागर, द्रविड़ और वेसर के नाम से जाना जाता है।
    • देवगढ़ का दशावतार मंदिर नागर शैली में निर्मित है। यह शैली हिमालय और विंध्य पहाड़ों के बीच प्रचलित है।
    • कांची में कैलासनाथर का मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है, जिसे कृष्णा और कावेरी नदी की भूमि पर विकसित किया गया है।
    • पापनाथ मंदिर वेसर शैली का एक उदाहरण है जो वेसर, नागर और द्रविड़ शैली का मिश्रित रूप है।
  • एक हिंदू मंदिर में कला और विज्ञान का संयोजन होता है जिसमें शिल्प शास्त्र, वास्तु शास्त्र, ज्यामिति और समरूपता शामिल होती है।
  • मंदिर एकता, अखंडता और सभ्यता को बढ़ावा देते हैं।

नागर और द्रविड़ शैली के मंदिरों में अंतर:

नागर या उत्तर भारतीय मंदिर शैली: 

  • विशेषताएँ:
    • उत्तर भारत में एक पत्थर के चबूतरे पर पूरे मंदिर का निर्माण होना आम बात है जिसकी सीढ़ियाँ ऊपर तक जाती हैं।
    • इसके अलावा दक्षिण भारत के विपरीत उत्तर भारत में निर्मित मंदिरों में आमतौर पर विस्तृत चारदीवारी या प्रवेश द्वार नहीं होते हैं।
    • जबकि शुरुआती मंदिरों में सिर्फ एक मीनार या शिखर होता था, बाद में इनकी संख्या एक से अधिक हो गई।
    • गर्भगृह का निर्माण हमेशा सबसे ऊंँचे शिखर के नीचे होता है।
  • उप विभाजन:
    • शिखर के आकार के आधार पर नागर शैली के मंदिरों को कई उपखंडों में विभाजित किया गया है।
    • भारत के विभिन्न हिस्सों में मंदिर के लिये अलग-अलग नाम हैं। हालांँकि साधारण शिखर का सबसे सामान्य नाम जो आधार से वर्गाकार होता है और जिसकी दीवारें शीर्ष पर एक बिंदु पर अंदर की ओर वक्र या ढलानदार होती हैं, उसे 'लैटिना' या रेखा-प्रसाद प्रकार का शिकारा (Rekha-Prasada Type Of Shikara) कहा जाता है।
    • नागर क्रम में दूसरा प्रमुख प्रकार का स्थापत्य रूप फमसाना (Phamsana) है, जो लैटिना की तुलना में व्यापक और छोटा होता है।
      • इनकी छतें कई स्लैब में निर्मित होती हैं, जो धीरे-धीरे इमारत के केंद्र में एक बिंदु तक बढ़ती जाती हैं,ये लैटिना के विपरीत तेज़ी से बढ़ते ऊँचे टावरों की तरह दिखती हैं।
    • नागर भवनों के तीसरे मुख्य उप-प्रकार को आमतौर पर वल्लभी कहा जाता है।
      • ये एक छत के साथ आयताकार इमारतें हैं जो एक गुंबददार कक्ष में प्रदर्शित होती हैं।
  • उदाहरण:
    • खजुराहो मंदिर समूह, सूर्य मंदिर, कोणार्क, मोढेरा में सूर्य मंदिर, गुजरात और ओसियन मंदिर, गुजरात।

द्रविड़ या दक्षिण भारतीय मंदिर शैली:

  • विशेषताएँ:
    • नागर मंदिर के विपरीत द्रविड़ मंदिर परिसर की दीवार के भीतर संलग्न होते हैं।
    • मंदिर के सामने की दीवार पर एक मुख्य प्रवेश द्वार बनाया जाता है जिसे गोपुरम कहते हैं।
    • मंदिर का आकार एक पिरामिड की तरह होता है जिसके उपरी भाग को तमिलनाडु में विमान कहा जाता है।
    • परिसर के भीतर एक बड़ा जलाशय या मंदिर का तालाब भी प्रायः पाया जाता है।
    • सहायक मंदिर या तो मुख्य मंदिर की मीनार के भीतर समाहित होते हैं, या मुख्य मंदिर के बगल में अलग-अलग छोटे मंदिरों के रूप में स्थित होते हैं।
    • भूमि के विशाल क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाले ये मंदिर समृद्ध प्रशासनिक केंद्र बन गए।
  • उपखंड:
    • जिस तरह मुख्य प्रकार के नागर मंदिरों के कई उपखंड हैं, उसी तरह द्रविड़ मंदिरों के भी उपखंड हैं।
    • ये मूल रूप से पाँच अलग-अलग आकृतियों के हैं:
      • वर्ग, जिसे आमतौर पर कुटा कहा जाता है
      • आयताकार या (शाला, अयातश्र)
      • अण्डाकार, जिसे गज-प्रतिष्ठा या हाथी समर्थित, या जिसे वृत्तायता भी कहा जाता है।
      • वृत्ताकार या वृत्ता
      • अष्टकोणीय या अष्टास्त्र।
    • उदाहरण:
      • कांचीपुरम, तंजावुर या तंजौर, मदुरै और कुंभकोणम तमिलनाडु के सबसे प्रसिद्ध मंदिर शहर हैं।

स्रोत- पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूस और यूक्रेन का इतिहास

प्रिलिम्स के लिये:

रूस और यूक्रेन की भौगोलिक स्थिति, स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रमंडल (CIS)।

मेन्स के लिये:

रूस-यूक्रेन संघर्ष, भारत के हितों पर देशों की नीतियों एवं राजनीति का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस ने यूक्रेन के दो क्षेत्रों को स्वतंत्र गणराज्यों के रूप में मान्यता दी थी, जो कि अपरिहार्य युद्ध का संकेत था।

  • अपनी युद्ध घोषणा के दौरान रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन को बिना किसी इतिहास या पहचान वाले देश के रूप में वर्णित किया है, जिसे पूर्णतः पूर्ववर्ती सोवियत संघ (USSR) के हिस्से को अलग करके बनाया गया था।
  • यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों से सांस्कृतिक, भाषायी और पारिवारिक संबंध साझा करते रहे हैं।

यूक्रेन का प्रारंभिक इतिहास:

  • तकरीबन एक सहस्राब्दी पूर्व वर्तमान यूक्रेन ‘कीवयाई रूस’ के केंद्र में था।
  • कीवयाई रूस, पूर्वी एवं उत्तरी यूरोप के पूर्वी स्लाव, बाल्टिक और फिनिक लोगों का एक संघ था, जिसकी राजधानी कीव थी।
    • आधुनिक यूक्रेन, रूस और बेलारूस सभी का सांस्कृतिक इतिहास ‘कीवयाई रूस’ में मौजूद हैं।
  • 10वीं और 11वीं शताब्दी में कीवयाई रूस अपने सबसे बड़े आकार पर पहुँच गया।
  • 13वीं शताब्दी के मध्य में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के पतन के कारण व्यापार में आई गिरावट की वजह से ‘कीवयाई रूस’ काफी कमज़ोर हो गया और और अंततः 'मंगोल गोल्डन होर्डे के हमले के कारण पूरी तरह से बिखर गया, जिसके बाद अंत में 1240 में ‘कीवयाई रूस’ को बर्खास्त कर दिया गया।
    • बाइज़ेंटाइन साम्राज्य, जिसे बाइज़ेंटियम भी कहा जाता है, रोमन साम्राज्य का पूर्वी भाग था तथा कॉन्स्टेंटिनोपल/क़ुस्तुंतुनिया (आधुनिक इस्तांबुल) में स्थित था, साम्राज्य के पश्चिमी आधे हिस्से के पतन के बाद भी यह उसका हिस्सा बना रहा।
    • ‘गोल्डन होर्डे’ स्थायी मंगोलों का एक समूह था जिन्होंने 1240 से 1502 तक रूस, यूक्रेन, कज़ाखस्तान, माल्डोवा और काकेशस पर शासन किया था।
  • 15वीं शताब्दी की शुरुआत में पूर्व ‘कीवान रस’ के बड़े हिस्से को लिथुआनिया के बहु-नृजातीय ‘ग्रैंड डची’ में शामिल किया गया था।
  • वर्ष 1569 में ल्यूबेल्स्की संघ, पोलैंड ,लिथुआनिया के ‘ग्रैंड डची’ पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल बनाने के लिये एक साथ आए, जो उस समय यूरोप के सबसे बड़े देशों में से एक था।
  • इस घटना के लगभग एक सदी बाद आधुनिक यूक्रेनी राष्ट्रीय पहचान की शुरुआत का पता लगाया जा सकता है।

यूक्रेन:

  • भौगौलिक स्थिति: यूक्रेन, पूर्वी यूरोप में स्थित एक देश है। इसकी राजधानी कीव है, जो उत्तर-मध्य यूक्रेन में नीपर नदी (Dnieper River) के तट पर स्थित है। यूक्रेन की सीमा उत्तर में बेलारूस, पूर्व में रूस, आज़ोव का सागर और दक्षिण में काला सागर, दक्षिण-पश्चिम में माल्डोवा व रोमानिया तथा पश्चिम में हंगरी, स्लोवाकिया एवं पोलैंड से लगती है। सुदूर दक्षिण-पूर्व में यूक्रेन को केर्च जलडमरूमध्य (Kerch Strait) द्वारा रूस से अलग किया गया है, जो आज़ोव सागर को काला सागर से जोड़ता है।
    • यह रूस के बाद यूरोप का सबसे बड़ा देश है, जिसका क्षेत्रफल 6,03,550 वर्ग किमी. या महाद्वीप का लगभग 6% है।

  • जनसांख्यिकी: जुलाई 2021 में यूक्रेन की जनसंख्या 43.7 मिलियन आंकी गई थी। इसमें से 77.8% यूक्रेनी नृजातीयता और 17.3% रूसी नृजातीयता से संबंधित थी। यूक्रेनी और रूसी भाषियों की आबादी क्रमशः 67.5% और 29.6% थी।
  • अर्थव्यवस्था: सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के मामले में यूक्रेन यूरोप का सबसे गरीब देश है। यहाँ लौह अयस्क और कोयले के भंडार मौजूद हैं और यह मक्का, सूरजमुखी तेल, लौह उत्पादों और गेहूँ का निर्यात करता है।
  • भारत के साथ संबंध: एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत, यूक्रेन का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
    • यूक्रेन के सूरजमुखी तेल का प्रमुख निर्यातक भारत है, इसके बाद अकार्बनिक रसायन, लोहा और इस्पात, प्लास्टिक व रसायन हैं।
    • भारत से यूक्रेन को प्रमुख आयात फार्मास्युटिकल उत्पाद हैं।

यूक्रेन और रूस:

  • 18वीं शताब्दी में रूस की महारानी कैथरीन द ग्रेट (1762-96) ने पूरे जातीय यूक्रेन के क्षेत्र को रूसी साम्राज्य में मिला लिया था।
  • रूसीकरण की ज़ारिस्ट नीति द्वारा यूक्रेनवासी सहित जातीय पहचान और भाषाओं का दमन किया गया।
  • रूसी साम्राज्य के भीतर हालाँकि कई यूक्रेनियन समृद्धि और महत्त्व के पदों पर पहुँच गए तथा बड़ी संख्या में रूस के अन्य हिस्सों में बस गए।
  • प्रथम विश्व युद्ध में 3.5 मिलियन से अधिक यूक्रेनवासियों ने रूसी साम्राज्य के पक्ष में लड़ा तथा एक छोटी संख्या ने ऑस्ट्रो-हंगेरियन के साथ ज़ार की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
  • यूक्रेन का USSR का हिस्सा बनना: प्रथम विश्व युद्ध के कारण ज़ार साम्राज्य और ओटोमन साम्राज्य दोनों का अंत हो गया।
    • मुख्य रूप से कम्युनिस्ट के नेतृत्त्व वाले यूक्रेनी राष्ट्रीय आंदोलन का उदय हुआ जिससे कई छोटे यूक्रेनी राज्य उभरे।
    • वर्ष 1917 की अक्तूबर क्रांति में बोल्शेविकों के सत्ता में आने के कई महीनों बाद एक स्वतंत्र यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक की घोषणा की गई, लेकिन सत्ता के विभिन्न दावेदारों के बीच गृहयुद्ध जारी रहा, जिसमें यूक्रेनी गुट, अराजकतावादी, जार साम्राज्य और पोलैंड शामिल थे।
    • वर्ष 1922 में यूक्रेन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (USSR) संघ का हिस्सा बन गया।

USSR के पतन के बाद यूक्रेन की स्थिति:

  • वर्ष 1991 में USSR को समाप्त कर दिया गया था।
  • यूक्रेन में आज़ादी की मांग कुछ वर्ष पहले से बढ़ रही थी तथा वर्ष 1990 में 300,000 से अधिक यूक्रेनवासियों ने स्वतंत्रता के समर्थन में एक मानव शृंखला बनाई।
    • इसके बाद ग्रेनाइट की क्रांति हुई जब यूक्रेन के छात्रों ने यूएसएसआर के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर न करने की मांग की।
  • 24 अगस्त, 1991 में राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को हटाने और कम्युनिस्टों को सत्ता में बहाल करने के लिये तख्तापलट की विफलता के बाद यूक्रेन की संसद ने देश की स्वतंत्रता हेतु अधिनियम को अपनाया।
    • इसके बाद संसद के प्रमुख लियोनिद क्रावचुक यूक्रेन के पहले राष्ट्रपति चुने गए।
  • दिसंबर 1991 में बेलारूस, रूस और यूक्रेन के नेताओं ने औपचारिक रूप से सोवियत संघ की सदस्यता त्याग कर स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (CIA) का गठन किया।
  • हालांँकि यूक्रेन की संसद वेरखोव्ना राडा (Verkhovna Rada) ने कभी भी परिग्रहण (Accession) की पुष्टि नहीं की, इसलिये यूक्रेन कानूनी रूप से कभी भी CIS का सदस्य नहीं था।

रूस-यूक्रेन संघर्ष का हालिया इतिहास:

  • वर्ष 2014 में रूस ने जल्दबाजी में जनमत संग्रह के बाद क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर दिया। यह एक ऐसा कदम था जिसने पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थित अलगाववादियों और सरकारी बलों के बीच लड़ाई शुरू कर दी।
  • हाल ही में यूक्रेन द्वारा उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) से संगठन की सदस्यता ग्रहण करने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का आग्रह किया गया।
  • रूस द्वारा इस तरह के कदम को "रेड लाइन" घोषित किया गया और अमेरिका के नेतृत्व वाले इस सैन्य गठबंधन का अपनी देश की सीमा के करीब विस्तार के परिणामों को लेकर चिंता व्यक्त की।
  • यह रूस और यूक्रेन के बीच वर्तमान युद्ध का कारण बना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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