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डेली न्यूज़

  • 28 Feb, 2022
  • 45 min read
भारतीय इतिहास

वीर सावरकर

प्रिलिम्स के लिये:

वीर सावरकर, मॉर्ले-मिंटो सुधार (भारतीय परिषद अधिनियम 1909), अभिनव भारत सोसाइटी, इंडिया हाउस, फ्री इंडिया सोसाइटी, हिंदू महासभा।

मेन्स के लिये:

स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर की भूमिका। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को उनकी पुण्य तिथि (26 फरवरी) पर श्रद्धांजलि दी गई।

Veer-Savarkar

प्रमुख बिंदु 

वीर सावरकर के बारे में: 

  • जन्म: इनका जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के भागुर ग्राम में हुआ था।
  • संबंधित संगठन और कार्य:
    • उन्होंने अभिनव भारत सोसाइटी नामक एक भूमिगत सोसाइटी (Secret Society) की स्थापना की।
    • सावरकर यूनाइटेड किंगडम गए और इंडिया हाउस (India House) तथा फ्री इंडिया सोसाइटी (Free India Society) जैसे संगठनों से जुड़े।
    • वे वर्ष 1937 से 1943 तक हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे।
    • सावरकर ने 'द हिस्ट्री ऑफ द वार ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस' नामक एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने 1857 के सिपाही विद्रोह में इस्तेमाल किये गए छापामार युद्ध (Guerilla Warfare) के तरीकों (Tricks) के बारे में लिखा था।
    • उन्होंने 'हिंदुत्व: हिंदू कौन है?' पुस्तक भी लिखी।
  • मुकदमे और सज़ा:
    • वर्ष 1909 में उन्हें मॉर्ले-मिंटो सुधार (भारतीय परिषद अधिनियम 1909) के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
    • 1910 में क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस के साथ संबंधों के लिये गिरफ्तार किया गया।
    • सावरकर पर एक आरोप नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के लिये उकसाने का था और दूसरा भारतीय दंड संहिता 121-ए के तहत राजा (सम्राट) के खिलाफ साजिश रचने का था।
    • दोनों मुकदमों में सावरकर को दोषी ठहराया गया और 50 वर्ष के कारावास की सज़ा सुनाई गई, जिसे काला पानी भी कहा जाता है, उन्हें वर्ष 1911 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सेलुलर जेल ले जाया गया।

अभिनव भारत सोसाइटी (यंग इंडिया सोसाइटी):

  • यह वर्ष 1904 में विनायक दामोदर सावरकर और उनके भाई गणेश दामोदर सावरकर द्वारा स्थापित एक भूमिगत सोसाइटी (Secret Society) थी।
  • प्रारंभ में नासिक में मित्र मेला के रूप में स्थापित समाज कई क्रांतिकारियों और राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं के साथ भारत तथा लंदन के विभिन्न हिस्सों में शाखाओं से जुड़ा था।

इंडिया हाउस:

  • इसकी स्थापना श्यामजी किशन वर्मा ने वर्ष 1905 में लंदन में की थी।
  • इसे लंदन में भारतीय छात्रों के बीच राष्ट्रवादी विचारों को बढ़ावा देने के लिये खोला गया था।

फ्री इंडिया सोसाइटी:

  • सावरकर वर्ष 1906 में लंदन गए। उन्होंने जल्द ही इटैलियन राष्ट्रवादी ग्यूसेप माज़िनी (सावरकर ने माज़िनी की जीवनी लिखी थी) के विचारों के आधार पर फ्री इंडिया सोसाइटी की स्थापना की।

हिंदू महासभा:

  • अखिल भारत हिंदू महासभा (Akhil Bharat Hindu Mahasabha) भारत के सबसे पुराने संगठनों में से एक है, इसका गठन वर्ष 1907 में हुआ था। प्रतिष्ठित नेताओं ने वर्ष 1915 में अखिल भारतीय आधार पर इस संगठन का विस्तार किया।
  • इस संगठन की स्थापना करने वाले और अखिल भारतीय सत्रों की अध्यक्षता करने वाले प्रमुख व्यक्तित्वों में पंडित मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, वीर विनायक दामोदर सावरकर आदि शामिल थे।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सीटी वैल्यू में परिवर्तनशीलता

प्रिलिम्स के लिये:

वायरल लोड, सीटी वैल्यू, आरटी-पीसीआर टेस्ट।

मेन्स के लिये:

आरटी-पीसीआर टेस्ट में सीटी वैल्यू का महत्त्व और इसकी परिवर्तनशीलता के कारक।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानकीकृत प्रवीणता परीक्षण सामग्री का उपयोग करते हुए अमेरिका में 700 प्रयोगशालाओं के एक सर्वेक्षण के तहत 14 चक्रों द्वारा सीटी (साइकिल थ्रेशोल्ड) वैल्यू में परिवर्तनशीलता पाई गई है।

  • यहाँ तक ​​कि एक ही प्रयोगशाला में एक ही परीक्षण के भीतर अलग-अलग टारगेट जीन हेतु सीटी वैल्यू 3 चक्रों तक भिन्न हो सकते हैं और अलग-अलग प्रयोगशालाओं में एक ही टारगेट जीन के लिये 12 चक्र तक भिन्न हो सकते हैं।

सीटी वैल्यू में परिवर्तनशीलता का कारण: 

  • गतिशील उपाय और तीव्रता से विकसित:
    • निदान के समय कम सीटी मान का मतलब यह नहीं है कि यह अगले दिन भी कम रहेगा।
    • इसी तरह संक्रमण के दौरान बहुत जल्दी किया गया स्वाब एक उच्च सीटी वैल्यू प्रकट कर सकता है, जिसे एक या दो दिन बाद दोहराया जाने पर, कम सीटी मान प्राप्त हो सकता है।
    • इस कारण से यह संभव है कि सीटी वैल्यू रोग की गंभीरता के साथ विश्वसनीय रूप से सह संबद्ध नहीं हैं और रोग संबंधी भविष्यवाणी करने में कोई भूमिका नहीं निभाती है (फिर भी यह आमतौर पर परीक्षणों और दवाओं को निर्धारित करने के एक कारक के रूप में उपयोग की जाती है)।
  • तकनीकी और तार्किक कारकों का प्रभाव:
    • जिस तरह से नमूने एकत्र किये जाते हैं, नमूने का प्रकार, वह माध्यम जिसमें स्वाब ले जाया जाता है, नमूने के संग्रह और प्रसंस्करण के बीच का समय अंतराल। ये सब मौजूद वायरल आनुवंशिक सामग्री की मात्रा और बाद में सीटी वैल्यू को प्रभावित कर सकते हैं।

आरटी-पीसीआर परीक्षण और सीटी वैल्यू: 

  • आरटी-पीसीआर परीक्षण:
    • रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (Reverse Transcription Polymerase Chain Reaction-RT-PCR) परीक्षण यदि सकारात्मक है तो स्वाब (Swab) एकत्र किया जाता है और पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction- PCR) किट का उपयोग करके एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid- RNA) परीक्षण  किया जाता है। जब यह परिलक्षित होता है तो डीएनए (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) में परिवर्तित कर दिया जाता है।
    • प्रवर्द्धन (Amplification) इस मामले में यह डीएनए की आनुवंशिक सामग्री की कई प्रतिकृतियाँ बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
      • यह वायरस की उपस्थिति का पता लगाने के लिये परीक्षण की क्षमता में सुधार करता है।
    • प्रवर्द्धन चक्रीय शृंखला के माध्यम से होता है- एक की संख्या दो में और दो की संख्या चार में बदल जाती है, इसी तरह यह कई चक्रों के बाद वायरल लोड को निर्धारित करती है।
  • सीटी वैल्यू:
    • सीटी, साइकिल थ्रेशोल्ड (Cycle Threshold) का संक्षिप्त रूप है।
    • सीटी वैल्यू उन चक्रों की संख्या को संदर्भित करती है जिसके बाद वायरस का पता लगाया जा सकता है।
    • यदि चक्र की अधिक संख्या में आवश्यकता होती है, तो इसका अर्थ है कि जब चक्र की संख्या कम होगी तो वायरस को निर्धारित करना मुश्किल होगा।
    • सीटी वैल्यू जितनी कम होगी, वायरल लोड उतना ही अधिक होगा क्योंकि कम चक्रों के साथ वायरस को देखा जाता है।
    • इससे यह पता चलता है कि लक्षणों की शुरुआत के समय रोग की गंभीरता की तुलना में सीटी वैल्यू एक मज़बूत संबंध स्थापित करती है।  

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वायरल लोड:

  • संक्रमित व्यक्ति के रक्त में मौजूद वायरस केआनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material) आमतौर पर आरएनए (RNA) की मात्रा को संदर्भित करते हैं।
  • इसे प्रति मिलीलीटर रक्त में मौजूद वायरल कणों (Viral Particles) की कुल संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • रक्त में अधिक वायरल लोड का मतलब है कि वायरस अपनी प्रतिकृति (Replicating) बना रहा है और संक्रमण को बढ़ा रहा है।
  • एक उच्च वायरल लोड वाले संक्रमित व्यक्ति में अधिक वायरस कणों के निर्मित होने की संभावना होती है,जिसे "वायरल शेडिंग" (Viral Shedding) के रूप में जाना जाता है।

स्रोत: द हिंदू 


शासन व्यवस्था

ऑपरेशन गंगा

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का इवैक्यूएशनऑपरेशन/निकासीअभियान।

मेन्स के लिये:

यूक्रेन-रूस संघर्ष तथा यूक्रेन और रूस में भारत के हित, भारत पर संघर्ष के निहितार्थ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत सरकार ने 'ऑपरेशन गंगा' (Operation Ganga) नाम से एक 'बहु-आयामी' पहल शुरू की है।

  • यूक्रेन से भारतीयों को सुरक्षित निकालने में सहायता हेतु एक समर्पित ट्विटर हैंडल 'ओपगंगा हेल्पलाइन' (OpGanga Helpline) की भी घोषणा की गई है।
  • रूसी सेना द्वारा हाल ही में हमलों का सिलसिला शुरू करने के बाद यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के साथ ही रूस और यूक्रेन के बीच वर्तमान में तनाव और बढ़ गया है।

Ukraine

ऑपरेशन गंगा:

  • यह उन सभी भारतीय नागरिकों को वापस लाने के लिये एक निकासी मिशन है जो वर्तमान में यूक्रेन में फंसे हुए हैं।
    • यूक्रेन में छात्रों समेत करीब 20,000 भारतीय फँसे थे।
    • अब तक एयर इंडिया की तीन उड़ानों द्वारा यूक्रेन से 900 से अधिक भारतीयों को सुरक्षित भारत वापस लाया जा चुका है।
  • भारतीय निकासी उड़ानें रोमानिया और हंगरी जैसे पड़ोसी देशों से संचालित हो रही हैं।
  • भारत सरकार द्वारा रोमानिया, हंगरी, पोलैंड और स्लोवाकिया की सीमाओं में फँसे भारतीयों को निकालने की सुविधा भी प्रदान की जा रही है।

भारत द्वारा चलाए गए निकासी अभियान:

  • ऑपरेशन गंगा (2022):
    • यह वर्तमान में यूक्रेन में फँसे सभी भारतीय नागरिकों को वापस लाने के लिये एक निकासी मिशन हैं।
    • हाल ही में रूसी सेना द्वारा हमलों की एक शृंखला शुरू करने के बाद तथा यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के साथ ही वर्तमान में रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ गया है।
  • वंदे भारत (2020):
    • कोरोनावायरस के कारण वैश्विक यात्रा पर प्रतिबंध होने से विदेश में फंसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने हेतु ‘वंदे भारत मिशन’ चलाया गया है।
    • इस मिशन के तहत कई चरणों में 30 अप्रैल, 2021 तक लगभग 60 लाख भारतीयों को वापस लाया गया।
  • ऑपरेशन समुद्र सेतु (2020):
    • यह कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय नागरिकों को विदेशों से घर वापस लाने के राष्ट्रीय प्रयास के हिस्से के रूप में एक नौसैनिक अभियान था।
    • इसके तहत 3,992 भारतीय नागरिकों को समुद्र के रास्ते उनकी मातृभूमि में सफलतापूर्वक वापस लाया गया।
    • भारतीय नौसेना के जहाज़ जलाश्व (लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक), ऐरावत, शार्दुल तथा मगर (लैंडिंग शिप टैंक) ने इस ऑपरेशन में भाग लिया, जो 55 दिनों तक चला और इसमें समुद्र द्वारा 23,000 किमी. से अधिक की यात्रा शामिल थी।
  • ब्रसेल्स से निकासी (2016):
    • मार्च 2016 में बेल्जियम ज़ेवेंटेम में ब्रसेल्स हवाई अड्डे पर तथा मध्य ब्रुसेल्स में मालबीक मेट्रो स्टेशन पर एक आतंकवादी हमले की चपेट में आ गया था।
    • इसके तहत जेट एयरवेज की फ्लाइट से 28 क्रू मेंबर्स समेत कुल 242 भारतीयों को भारत लाया गया।
  • ऑपरेशन राहत (2015):
    • वर्ष 2015 के यमन संकट के दौरान भारतीय सशस्त्र बल द्वारा शुरू किये गए ऑपरेशन राहत  के अंतर्गत यमन से 41 देशों के 960 विदेशी नागरिकों के साथ 4640 से अधिक भारतीय नागरिकों को निकाला गया था।
    • यह अभियान वायु मार्ग और समुद्र मार्ग दोनों से संचालित किया गया था।
  • ऑपरेशन मैत्री (2015):
    • वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप में बचाव और राहत अभियान के रूप में ऑपरेशन मैत्री का संचालन भारत सरकार और भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा किया गया था।
    • भारतीय सशस्त्र बलों ने लगभग 5,188 लोगों को निकाला था, जबकि लगभग 785 विदेशी पर्यटकों को पारगमन वीज़ा प्रदान किया गया था।
  • ऑपरेशन सुरक्षित घर वापसी (2011):
    • इसे भारत सरकार ने 26 फरवरी, 2011 को लीबियाई गृहयुद्ध में फँसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिये शुरू किया था।
      • इस ऑपरेशन में लगभग 15,000 नागरिकों को बचाया गया था। 
    • इसमें भारतीय नौसेना और एयर इंडिया द्वारा वायु मार्ग और समुद्र मार्ग दोनों का उपयोग किया गया था।
  • ऑपरेशन सुकून (2006):
    • जुलाई 2006 में जैसे ही इज़रायल और लेबनान में सैन्य संघर्ष में शुरू हुआ, भारत ने ऑपरेशन सुकून शुरू करके अपने वहाँ फँसे हुए नागरिकों को बचाया, जिसे अब 'बेरूत सीलिफ्ट' के नाम से जाना जाता है।
    • यह 'डनकर्क' निकासी के बाद से सबसे बड़ा नौसैनिक बचाव अभियान था।
    • टास्क फोर्स ने 19 जुलाई और 1 अगस्त, 2006 के बीच कुछ नेपाली और श्रीलंकाई नागरिकों सहित लगभग 2,280 लोगों को निकाला था।
  • कुवैत एयरलिफ्ट (1990):
    • वर्ष 1990 में जब 700 टैंकों से लैस 1,00,000 इराकी सैनिकों ने कुवैत पर हमला किया, तब शाही और अति विशिष्ट व्यक्ति सऊदी अरब भाग गए थे।
    • वहीं आम जनता के जीवन को जोखिम में डाला दिया गया।
      • कुवैत में फँसे लोगों में 1,70,000 से अधिक भारतीय थे।
    • भारत ने निकासी अभियान शुरू किया, जिसमें 1,70,000 से अधिक भारतीयों को एयरलिफ्ट किया गया और भारत वापस लाया गया।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूसी बैंकों को SWIFT से बाहर किया गया

प्रिलिम्स के लिये:

सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT), सिस्टम फॉर ट्रांसफर ऑफ फाइनेंशियल मैसेज, क्रिप्टोकरेंसी।

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह और समझौते, यूक्रेन पर रूस का युद्ध, रूस पर प्रतिबंधों का प्रभाव, स्विफ्ट और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूक्रेन पर रूस के हमले के विरोध में अमेरिका और यूरोपीय आयोग ने कुछ रूसी बैंकों को ‘सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) मैसेजिंग सिस्टम’ से बाहर करने के लिये एक संयुक्त बयान जारी किया।

  • इस कार्रवाई के पीछे का इरादा रूस को अंतर्राष्ट्रीय  वित्तीय प्रणाली से अलग करना है।
  • रूस के खिलाफ यह कार्रवाई अभी केवल आंशिक रूप से लागू की गई है, इसके तहत केवल कुछ रूसी बैंकों को कवर किया गया है।
  • इसे पूरे देश में प्रतिबंध के रूप में विस्तारित करने के विकल्प को अमेरिका और उसके सहयोगी आगे बढ़ने वाले कदम के रूप में अभी रोक रहे हैं।

क्‍या है 'स्विफ्ट'?

  • स्विफ्ट विश्वसनीय मैसेजिंग प्लेटफॉर्म प्रदान करता है जो वित्तीय संस्थानों को धन हस्तांतरण जैसे वैश्विक मौद्रिक लेन-देन के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  • जबकि स्विफ्ट वास्तविक रूप से रुपए का लेन-देन नहीं करता है, यह 200 से अधिक देशों में 11,000 से अधिक बैंकों को सुरक्षित वित्तीय संदेश सेवाएँ प्रदान करके लेन-देन की जानकारी को सत्यापित करने के लिये एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।
    • अधिकांश विश्व व्यापार स्विफ्ट के माध्यम से वित्तीय संदेश भेजने के साथ होता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1973 में हुई थी तथा यह बेल्जियम में स्थित है।
  • यह बेल्जियम के अलावा कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, स्वीडन, स्विट्ज़रलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे 11 औद्योगिक देशों के केंद्रीय बैंकों की देखरेख करता है।
    • भारत की वित्तीय प्रणाली की पहुँच स्विफ्ट तक है।
  • स्विफ्ट से पहले अंतर्राष्ट्रीय फंड ट्रांसफर के लिये संदेश पुष्टिकरण का एकमात्र विश्वसनीय माध्यम टेलेक्स (Telex) था।
    • कम गति, सुरक्षा चिंताओं और एक मुफ्त संदेश प्रारूप जैसे कई मुद्दों के कारण इसे बंद कर दिया गया था।

रूस पर इसका प्रभाव:

  • रूस अपने प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों के व्यापार, विशेष रूप से अपने तेल एवं गैस निर्यात के भुगतान हेतु स्विफ्ट प्लेटफॉर्म पर अधिक निर्भर है।
    • यह रूस के केंद्रीय बैंक की संपत्ति को फ्रीज कर देगा, जिससे रूस अपने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग युद्ध से संबंधित गतिविधियों के लिये नहीं कर पाएगा।
    • इसके अलावा, रूस के केंद्रीय बैंक पर यह प्रतिबंध इसके प्रभाव को सीमित करने के लिये रूस को अपने विदेशी मुद्रा जमा का प्रयोग करने से भी रोकेगा।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि केवल कुछ रूसी बैंकों को लक्षित करने का उद्देश्य प्रतिबंधों को आगे और मज़बूत करने के एक विकल्प को खुला रखना है।
    • यह भी परिकल्पना की गई है कि इन प्रतिबंधों का रूस पर अधिकतम संभव प्रभाव पड़ेगा, लेकिन यूरोपीय कंपनियों पर उनके गैस आयात के भुगतान हेतु रूसी बैंकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • इसके कारण रूसी मुद्रा बाज़ार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • इससे पहले केवल एक देश ‘स्विफ्ट’ (SWIFT) से अलग हुआ था- ईरान। इसके परिणामस्वरूप उसे अपने विदेशी व्यापार का एक-तिहाई नुकसान हुआ था।

रूस की प्रतिक्रिया:

  • रूस SPFS (सिस्टम फॉर ट्रांसफर ऑफ फाइनेंसियल मेसेजेज़ ) जैसे विकल्पों पर काम कर रहा है, जो कि रूस के सेंट्रल बैंक द्वारा विकसित वित्तीय संदेश हस्तांतरण प्रणाली है।
  • रूस, चीन के साथ भी सहयोग कर रहा है, जो स्विफ्ट हेतु एक संभावित चुनौती होगी।
    • रूस अपनी प्रणाली को चीन के ‘क्रॉस-बॉर्डर इंटर-बैंक पेमेंट सिस्टम’ (CIPS) के साथ एकीकृत करने की योजना बना रहा है।

स्विफ्ट (SWIFT) के अन्य वैश्विक विकल्प:

  • रिपल (Ripple) जैसी वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियांँ एक विकल्प के रूप में इंटरलेज़र प्रोटोकॉल (क्रिप्टोकरेंसी के पीछे एक ही तकनीक) के आधार पर अपने मंच की पेशकश कर रही हैं।
  • सीमा पार प्रेषण हेतु क्रिप्टोकरेंसी एक और तरीका है। रूस एक 'डिजिटल' रूबल पर भी कार्य कर रहा है जो अभी तक लॉन्च नहीं हुई है।

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  • प्रतिबंधों का भारत पर प्रभाव:
    • वर्ष 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद रक्षा और अन्य आयात को जारी रखने के उद्देश्य से भारत ने रूस के साथ रुपया-रूबल व्यापार व्यवस्था (Rupee-Rouble Trade Arrangement) में साझेदारी की।
    • वर्ष 2018 में एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया जहांँ भारतीय आयातकों ने हीरे के आयात हेतु रूबल (रूस की मुद्रा) में भुगतान किया। 
    • ये भुगतान रूस के सर्बैंक (Sberbank) की भारतीय शाखा को किये गए। यह एसबीआई और केनरा बैंक का एक संयुक्त उद्यम (द कमर्शियल इंडो बैंक) है, जो रूस में भारतीयों की मदद करने में सक्षम है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूसी आक्रमण की निंदा का संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव

प्रिलिम्स के लिये:

यूक्रेन और उसके पड़ोसी, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, रूस, यूक्रेन, वीटो पावर, एलएसी, क्वाड।

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, वैश्विक समूह, अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते, भारत एवं उसके पड़ोसी, भारत के हित में देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, संकल्प पर भारत का रुख

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अमेरिका और अल्बानिया द्वारा लाए गए मसौदा प्रस्ताव पर मतदान किया जिसमें रूसी आक्रमण की निंदा करने की मांग की गई तथा यूक्रेन से रूसी सेना की तत्काल वापसी के साथ हिंसा को रोकने का आह्वान किया गया था।

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प्रस्ताव के बारे में:

  • परिषद द्वारा प्रस्ताव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
  • प्रस्ताव "यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता की कड़ी निंदा करता है" और यह फैसला करता है कि रूस "यूक्रेन के खिलाफ बल प्रयोग को तुरंत बंद कर दे तथा संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य देश के खिलाफ किसी भी तरह की गैरकानूनी धमकी या बल प्रयोग न करे।"
    • इसने संयुक्त राष्ट्र अध्याय VII को लागू किया, जो यूक्रेन में रूसी सैनिकों के खिलाफ बल के उपयोग को अधिकृत करता है।
  • इसमें रूस से "यूक्रेन के डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों की स्थिति से संबंधित निर्णय को तुरंत और बिना शर्त वापस लेने" की भी बात कही गई है।
  • फरवरी के महीने के बाद से सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और अध्यक्ष के लिये कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ है तथा रूस द्वारा अपने वीटो का इस्तेमाल किया गया है।
  • प्रस्ताव के पक्ष में 11 मत मिले, जबकि तीन देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया जिसमें चीन और भारत शामिल हैं।

वर्तमान संकट पर भारत का रुख:

  • यूक्रेन में हालिया घटनाक्रम से भारत काफी चिंतित है। भारत ने दोनों देशों से आग्रह किया है कि हिंसा और शत्रुता को तत्काल समाप्त करने हेतु सभी प्रयास किये जाने चाहिये।
  • मतभेदों और विवादों को निपटाने के लिये संवाद ही एकमात्र रास्ता है, चाहे वह इस समय कितना भी कठिन क्यों न हो। यह खेद की बात है कि कूटनीति का रास्ता छोड़ दिया गया। 
  • इसके साथ ही भारत ने रूस के खिलाफ वोट करने को लेकर पश्चिम  देशों के दवाब के साथ-साथ रूस का समर्थन करने के दबाव के मध्य अपना संतुलन साधने में कामयाबी हासिल की है।
    • इससे पहले जनवरी 2022 में भारत ने यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा करने के लिये अपने वोट से परहेज किया और रूस के वैध सुरक्षा हितों के लिये अपने समर्थन का भी संकेत दिया।
  • भारत सभी पक्षों के साथ संपर्क में है तथा संबंधित पक्षों से बातचीत करने का आग्रह कर रहा है।

भारत की दुविधा:

  • विश्व भू-राजनीति में इस निर्णायक स्थिति में भारत की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षा दोनों पक्षों की दोस्ती और रणनीतिक साझेदारी से जुड़ी हुई है। 
  • रूस रक्षा हथियारों का भारत का सबसे बड़ा और समय-परीक्षणित (Time Tested) आपूर्तिकर्त्ता देश है। रूस की चीन के साथ नज़दीकी के बावजूद रुसी वायु रक्षा प्रणाली  S-400 ने भारत की रक्षा क्षमताओं को मज़बूती प्रदान की है। 
  • जून 2020 में भारत के रक्षा मंत्री द्वारा उस समय रूस का दौरा किया गया जब वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीनी सेना की भारतीय सेना के साथ टकराव की गंभीर स्थिति बनी हुई थी तथा रूस UNSC में सभी मुद्दों पर भारत का समर्थन करता है।
  • वही दूसरी ओर भारत की संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक गहरी साझेदारी है जिसमें रक्षा समझौते, व्यापार और निवेश, प्रौद्योगिकी, भारतीय प्रवासी एवं दोनों देशों के लोगों के बीच आपस संपर्क शामिल है। 
    • अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिये हर साल हज़ारों छात्र भारत से अमेरिका जाते हैं।
  • यूरोप के साथ भी ऐसा ही है। इसके अतिरिक्त, फ्राँस P-5 (स्थायी पाँच) में से एक के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का एक महत्त्वपूर्ण मित्र देश है। भारत को इन सभी मित्रों की ज़रूरत है, क्योंकि वे LAC पर चीन की कार्यवाहियों से निपटने में मददगार हो सकते हैं।

मौजूदा समय की आवश्यकता:

  • भारत के लिये चीन की विस्तारवाद नीति के परिणामों और अफगानिस्तान में अमेरिका की सैन्य अनुपस्थिति के कारण उत्पन्न स्थिति से निपटना काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • एशिया में चीन के रणनीतिक और भू-आर्थिक खतरे से निपटने हेतु भारत को अमेरिका एवं रूस दोनों की आवश्यकता है।
  • यदि भारत-रूस की साझेदारी एशिया में ज़मीनी स्तर पर महत्त्वपूर्ण है, तो हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के समुद्री विस्तारवाद का मुकाबला करने के लिये ‘क्वाड’ (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत) के बीच गठबंधन अनिवार्य है।
  • वर्तमान में चीन का मुकाबला करने की अनिवार्यता भारतीय विदेश नीति की आधारशिला बनी हुई है और यूक्रेन में रूस की कार्रवाई पर भारत की स्थिति सहित सभी अन्य मामले इसी घटक से प्रभावित रहे हैं।
  • भारत की विदेश नीति को लेकर इस बात पर बहस चल रही है कि भारत अपनी तटस्थता और पश्चिम के पक्ष में होने के परिणामों से क्या हासिल कर सकता है अथवा क्या खो सकता है।
  • यह भी तर्क है कि वर्तमान में पश्चिमी देश, भारत से अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि उन्हें भारत के बाज़ारों की आवश्यकता है और एक लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिति काफी मज़बूत है, क्योंकि वे चीन को नियंत्रित करने के लिये भागीदारों की तलाश कर रहे हैं और भारत यह भूमिका अदा कर सकता है।
  • लेकिन इस यथार्थवादी स्थिति में एक अंतर्निहित संघर्ष भी मौजूद है, जिसके मुताबिक, यद्यपि दुनिया के एक हिस्से में नियमों के उल्लंघन को लेकर वार्ताएँ की जा रही है, जबकि दूसरे हिस्से में इसी प्रकार के उल्लंघन को लेकर कोई बात नहीं हो रही है।
  • ऐसे में भारत को अपनी स्थिति पर लगातार विचार करना चाहिये, क्योंकि समीकरणों के बदलने से भारत में भी बदलाव आना स्वाभाविक है, खासकर यदि यूक्रेन में मौतों का आँकड़ा और अधिक बढ़ता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

विश्व एनजीओ दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व एनजीओ दिवस, गैर-सरकारी संगठन।

मेन्स के लिये:

भारतीय लोकतंत्र में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका, एनजीओ से संबंधित मुद्दे, एनजीओ के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ और आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

प्रतिवर्ष 27 फरवरी को पूरी दुनिया में ‘विश्व एनजीओ दिवस’ का आयोजन किया जाता है।

  • भारत में 30 लाख से अधिक गैर-सरकारी संगठन (NGOs) मौजूद हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं और सामाजिक परिवर्तन लाने में सूत्रधार, उत्प्रेरक या भागीदार की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

विश्व एनजीओ दिवस का इतिहास:

  • 17 अप्रैल 2010 को ‘IX बाल्टिक-सी एनजीओ फोरम’ के 12 सदस्य देशों द्वारा औपचारिक रूप से मान्यता दिये जाने के बाद ‘विश्व एनजीओ दिवस’ ने अपना आधिकारिक दर्जा ग्रहण किया।
    • वर्ष 2012 में फोरम के अंतिम वक्तव्य संकल्प के माध्यम से इस दिवस को अपनाया।
  • हालाँकि इस दिन को आधिकारिक तौर पर वर्ष 2010 में मान्यता दी गई थी, लेकिन वर्ष 2014 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘विश्व एनजीओ दिवस’ मनाया गया था।
  • इस दिवस के आयोजन का प्रमुख श्रेय ब्रिटेन के एक सामाजिक उद्यमी ‘मार्सिस लायर्स स्काडमैनिस’ को दिया जाता है, जिन्होंने वर्ष 2014 में ‘विश्व एनजीओ दिवस’ का उद्घाटन किया था।
  • दुनिया भर में गैर-सरकारी संगठनों के बेहतरीन योगदान के विषय में जागरूकता फैलाने और सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के अथक प्रयासों का सम्मान करने हेतु इस दिवस की कल्पना की गई थी।

भारतीय लोकतंत्र में ‘गैर-सरकारी संगठनों’ की भूमिका:

  • अंतराल को कम करना:
    • गैर-सरकारी संगठन सरकार के कार्यक्रमों में कमियों को दूर करने का प्रयास करते हैं और राज्य की परियोजनाओं से प्रायः अछूते रह गए लोगों के वर्गों तक पहुँचते हैं। उदाहरण के लिये प्रवासी कामगारों को कोविड-19 संकट में सहायता प्रदान करना।
    • वर्तमान परिदृश्य में, जब भारत अभी भी कोविड-19 का मुकाबला कर रहा है, गैर-लाभकारी संगठन ज़मीनी स्तर पर बेहतर काम कर रहे हैं और संवेदनशील वर्गों को राहत प्रदान करने हेतु सरकार के प्रयासों को पूरा करने के लिये अथक प्रयास कर रहे हैं, साथ ही वे सबसे कमज़ोर समुदायों के लिये टीकाकरण अभियान में भी सक्रिय रूप से संलग्न हैं।
    • ये गैर-सरकारी संगठन गतिविधियों में तेज़ी लाने पर भी ध्यान देते हैं जैसे-
      • गरीबी उपशमन, जल, पर्यावरण, महिला अधिकार और साक्षरता से संबंधित मुद्दे।
      • वे स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आजीविका आदि लगभग सभी क्षेत्र हेतु कार्य करते हैं।
  • अधिकार संबंधी भूमिका:
    •  समाज में कोई भी बदलाव लाने के लिये सामुदायिक-स्तर के संगठन और स्वयं सहायता समूह महत्त्वपूर्ण हैं।
    • अतीत में ऐसे ज़मीनी स्तर के संगठनों को बड़ी NGO और अनुसंधान एजेंसियों के साथ सहयोग से सक्षम किया गया है जिनकी विदेशी फंडिंग तक पहुँच है।
  • दबाव समूह के रूप में कार्य करना: 
    • ऐसे राजनीतिक गैर-सरकारी संगठन भी हैं जो सरकार की नीतियों और कार्यों के लिये जनता की राय जुटाते हैं।
    • इस तरह के NGO जनता को शिक्षित करने और सार्वजनिक नीति पर दबाव बनाने में सक्षम हैं, वे लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण दबाव समूहों के रूप में कार्य करते हैं।
  • सहभागी शासन में भूमिका: 
  • सामाजिक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना:
    • सामाजिक अंतर-मध्यस्थता के रूप में समाज में परिवर्तन के वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये प्रचलित सामाजिक परिवेश के भीतर सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण को बदलने के आवश्यकता है।
      • भारतीय संदर्भ में जहाँ लोग अभी भी अंधविश्वास, आस्था, विश्वास और रीति-रिवाज में फँसे हुए हैं, वहाँ NGO उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं और लोगों में जागरूकता पैदा करते हैं।

NGO के समक्ष चुनौतियाँ:

  • विश्वसनीयता में कमी: 
    • पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई संगठनों ने मुहिम शुरू की है जो गरीबों की मदद करने के लिये काम करने का दावा करते हैं।
    • एक गैर-सरकारी संगठन होने की आड़ में ये NGO अक्सर दानदाताओं से पैसे लेते हैं और मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों में भी शामिल होते हैं।
  • पारदर्शिता की कमी:
    • भारत में गैर-सरकारी संगठनों की अनुपातहीन संख्या और इस क्षेत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही की कमी स्पष्ट रूप से एक ऐसा मुद्दा है जिसमें सुधार की आवश्यकता है।
      • इसके अलावा गैर-सरकारी संगठनों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को नज़रअंदाज किया जाता है। पूर्व में कई गैर-सरकारी संगठनों को धन की हेराफेरी में लिप्त पाए जाने के बाद काली सूची में डाल दिया गया था।
  • धन की कमी:
    • कई गैर सरकारी संगठनों को अपने काम के लिये पर्याप्त और सतत् रूप से धन जुटाना मुश्किल लगता है। उपयुक्त दाताओं तक पहुँच प्राप्त करना इस चुनौती का एक प्रमुख घटक है।
    • इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए), 2010 के पंजीकरण को रद्द कर दिया था।
      • एफसीआरए लाइसेंस के निलंबन का मतलब है कि एनजीओ अब धनदाताओं से वर्तमान में तब तक विदेशी धन प्राप्त नहीं कर सकते हैं, जब तक कि गृह मंत्रालय द्वारा जाँच नहीं की जाती है। विदेशी धन प्राप्त करने हेतु संघों और गैर सरकारी संगठनों के लिये एफसीआरए अनिवार्य है।
  • सामरिक योजना का अभाव:
    • कई गैर-सरकारी संगठन एक समेकित, रणनीतिक योजना की कमी से ग्रस्त हैं जो कि उनकी गतिविधियों और मिशन को सफलता प्रदान करती है, इसके अभाव में वे वित्तीय सहायता को प्रभावी ढंग से जुटाने और पूंजीकरण करने में असमर्थ हो जाते हैं।
  • खराब शासन और नेटवर्किंग:
    • कई गैर-सरकारी संगठनों में इस समझ की कमी है कि उनके पास एक बोर्ड क्यों होना चाहिये और इसे कैसे स्थापित किया जाए।
    • खराब या अव्यवस्थित नेटवर्किंग एक और बड़ी चुनौती है क्योंकि यह पुनः किये गए प्रयासों, समय का अभाव, परस्पर विरोधी रणनीतियों और अनुभव से सीखने में असमर्थता का कारण बन सकता है।
    • कई NGOs मौजूदा तकनीकों का अधिकतम उपयोग नहीं करते हैं जो बेहतर संचार और नेटवर्किंग की सुविधा प्रदान कर सकते हैं। 
  • सीमित क्षमता:
    • NGOs में अक्सर अपने मिशन को लागू करने और पूरा करने हेतु तकनीकी एवं संगठनात्मक क्षमता की कमी होती है, जबकि कुछ ही NGOs क्षमता निर्माण हेतु प्रशिक्षण में निवेश करने के इच्छुक या सक्षम होते हैं।
    • क्षमता निर्माण में कमी धन उगाहने की क्षमता, शासन, नेतृत्व और तकनीकी क्षेत्रों को प्रभावित करती है।
  • विकास हेतु दृष्टिकोण:
    • कई NGOs स्थानीय स्तर पर लोगों और संस्थानों को सशक्त बनाने के बजाय बुनियादी ढांँचे के निर्माण व सेवाएंँ प्रदान करने के माध्यम से विकास हेतु ‘हार्डवेयर दृष्टिकोण’ (Hardware Approach) का समर्थन करते हैं।

आगे की राह 

  • भारत वर्ष 2030 तक SDGs के लिये प्रतिबद्ध है तथा इसके लिये सतत् विकास के साथ विकास को आगे  बनाए रखने हेतु एक दीर्घकालिक रणनीति महत्त्वपूर्ण है।
  • हालांँकि यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि दीर्घकालिक रणनीति की सफलता न केवल लघु या मध्यम अवधि की विकास रणनीतियों को लागू करने से सीखे गए अनुभवों पर निर्भर करती है बल्कि विभिन्न क्षेत्रों और सरकार के सहयोग और समन्वय पर भी निर्भर करती है। 
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण नए कौशल प्रदान करने में मदद कर सकता है। NGOs तब कर्मचारियों को अधिक आसानी से प्रशिक्षित कर सकते हैं और आगे आने वाली चुनौतियों का सामना करने हेतु संगठन के भीतर आवश्यक कौशल विकसित कर सकते हैं।
  • भ्रष्ट NGOs को विनियमित करना आवश्यक है, हालांँकि विदेशी योगदान पर अत्यधिक विनियमन जो ज़मीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू करने में सहायक होते हैं NGOs के कामकाज को प्रभावित कर सकते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


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