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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूसी आक्रमण की निंदा का संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव

  • 28 Feb 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

यूक्रेन और उसके पड़ोसी, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, रूस, यूक्रेन, वीटो पावर, एलएसी, क्वाड।

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, वैश्विक समूह, अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते, भारत एवं उसके पड़ोसी, भारत के हित में देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, संकल्प पर भारत का रुख

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अमेरिका और अल्बानिया द्वारा लाए गए मसौदा प्रस्ताव पर मतदान किया जिसमें रूसी आक्रमण की निंदा करने की मांग की गई तथा यूक्रेन से रूसी सेना की तत्काल वापसी के साथ हिंसा को रोकने का आह्वान किया गया था।

Ukraine_Russia

प्रस्ताव के बारे में:

  • परिषद द्वारा प्रस्ताव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
  • प्रस्ताव "यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता की कड़ी निंदा करता है" और यह फैसला करता है कि रूस "यूक्रेन के खिलाफ बल प्रयोग को तुरंत बंद कर दे तथा संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य देश के खिलाफ किसी भी तरह की गैरकानूनी धमकी या बल प्रयोग न करे।"
    • इसने संयुक्त राष्ट्र अध्याय VII को लागू किया, जो यूक्रेन में रूसी सैनिकों के खिलाफ बल के उपयोग को अधिकृत करता है।
  • इसमें रूस से "यूक्रेन के डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों की स्थिति से संबंधित निर्णय को तुरंत और बिना शर्त वापस लेने" की भी बात कही गई है।
  • फरवरी के महीने के बाद से सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और अध्यक्ष के लिये कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ है तथा रूस द्वारा अपने वीटो का इस्तेमाल किया गया है।
  • प्रस्ताव के पक्ष में 11 मत मिले, जबकि तीन देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया जिसमें चीन और भारत शामिल हैं।

वर्तमान संकट पर भारत का रुख:

  • यूक्रेन में हालिया घटनाक्रम से भारत काफी चिंतित है। भारत ने दोनों देशों से आग्रह किया है कि हिंसा और शत्रुता को तत्काल समाप्त करने हेतु सभी प्रयास किये जाने चाहिये।
  • मतभेदों और विवादों को निपटाने के लिये संवाद ही एकमात्र रास्ता है, चाहे वह इस समय कितना भी कठिन क्यों न हो। यह खेद की बात है कि कूटनीति का रास्ता छोड़ दिया गया। 
  • इसके साथ ही भारत ने रूस के खिलाफ वोट करने को लेकर पश्चिम  देशों के दवाब के साथ-साथ रूस का समर्थन करने के दबाव के मध्य अपना संतुलन साधने में कामयाबी हासिल की है।
    • इससे पहले जनवरी 2022 में भारत ने यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा करने के लिये अपने वोट से परहेज किया और रूस के वैध सुरक्षा हितों के लिये अपने समर्थन का भी संकेत दिया।
  • भारत सभी पक्षों के साथ संपर्क में है तथा संबंधित पक्षों से बातचीत करने का आग्रह कर रहा है।

भारत की दुविधा:

  • विश्व भू-राजनीति में इस निर्णायक स्थिति में भारत की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षा दोनों पक्षों की दोस्ती और रणनीतिक साझेदारी से जुड़ी हुई है। 
  • रूस रक्षा हथियारों का भारत का सबसे बड़ा और समय-परीक्षणित (Time Tested) आपूर्तिकर्त्ता देश है। रूस की चीन के साथ नज़दीकी के बावजूद रुसी वायु रक्षा प्रणाली  S-400 ने भारत की रक्षा क्षमताओं को मज़बूती प्रदान की है। 
  • जून 2020 में भारत के रक्षा मंत्री द्वारा उस समय रूस का दौरा किया गया जब वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीनी सेना की भारतीय सेना के साथ टकराव की गंभीर स्थिति बनी हुई थी तथा रूस UNSC में सभी मुद्दों पर भारत का समर्थन करता है।
  • वही दूसरी ओर भारत की संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक गहरी साझेदारी है जिसमें रक्षा समझौते, व्यापार और निवेश, प्रौद्योगिकी, भारतीय प्रवासी एवं दोनों देशों के लोगों के बीच आपस संपर्क शामिल है। 
    • अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिये हर साल हज़ारों छात्र भारत से अमेरिका जाते हैं।
  • यूरोप के साथ भी ऐसा ही है। इसके अतिरिक्त, फ्राँस P-5 (स्थायी पाँच) में से एक के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का एक महत्त्वपूर्ण मित्र देश है। भारत को इन सभी मित्रों की ज़रूरत है, क्योंकि वे LAC पर चीन की कार्यवाहियों से निपटने में मददगार हो सकते हैं।

मौजूदा समय की आवश्यकता:

  • भारत के लिये चीन की विस्तारवाद नीति के परिणामों और अफगानिस्तान में अमेरिका की सैन्य अनुपस्थिति के कारण उत्पन्न स्थिति से निपटना काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • एशिया में चीन के रणनीतिक और भू-आर्थिक खतरे से निपटने हेतु भारत को अमेरिका एवं रूस दोनों की आवश्यकता है।
  • यदि भारत-रूस की साझेदारी एशिया में ज़मीनी स्तर पर महत्त्वपूर्ण है, तो हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के समुद्री विस्तारवाद का मुकाबला करने के लिये ‘क्वाड’ (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत) के बीच गठबंधन अनिवार्य है।
  • वर्तमान में चीन का मुकाबला करने की अनिवार्यता भारतीय विदेश नीति की आधारशिला बनी हुई है और यूक्रेन में रूस की कार्रवाई पर भारत की स्थिति सहित सभी अन्य मामले इसी घटक से प्रभावित रहे हैं।
  • भारत की विदेश नीति को लेकर इस बात पर बहस चल रही है कि भारत अपनी तटस्थता और पश्चिम के पक्ष में होने के परिणामों से क्या हासिल कर सकता है अथवा क्या खो सकता है।
  • यह भी तर्क है कि वर्तमान में पश्चिमी देश, भारत से अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि उन्हें भारत के बाज़ारों की आवश्यकता है और एक लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिति काफी मज़बूत है, क्योंकि वे चीन को नियंत्रित करने के लिये भागीदारों की तलाश कर रहे हैं और भारत यह भूमिका अदा कर सकता है।
  • लेकिन इस यथार्थवादी स्थिति में एक अंतर्निहित संघर्ष भी मौजूद है, जिसके मुताबिक, यद्यपि दुनिया के एक हिस्से में नियमों के उल्लंघन को लेकर वार्ताएँ की जा रही है, जबकि दूसरे हिस्से में इसी प्रकार के उल्लंघन को लेकर कोई बात नहीं हो रही है।
  • ऐसे में भारत को अपनी स्थिति पर लगातार विचार करना चाहिये, क्योंकि समीकरणों के बदलने से भारत में भी बदलाव आना स्वाभाविक है, खासकर यदि यूक्रेन में मौतों का आँकड़ा और अधिक बढ़ता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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