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भारतीय विरासत और संस्कृति

देवायतनम: मंदिर वास्तुकला पर सम्मेलन

  • 26 Feb 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व धरोहर स्थल, वेसर, नागर और द्रविड़ वास्तुकला।

मेन्स के लिये:

भारतीय विरासत एवं संस्कृति, मंदिर वास्तुकला।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने कर्नाटक के ‘हम्पी’ में भारत के मंदिर वास्तुकला पर एक अनूठे सम्मेलन ‘देवायतनम’ का उद्घाटन किया।

  • इसे ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के हिस्से के रूप में संस्कृति मंत्रालय के भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 25-26 फरवरी को आयोजित किया जा रहा है।
  • हम्पी के मंदिरों को पहले से ही यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में उनकी भव्यता, शानदार वास्तुकला के लिये शामिल किया गया है।
    • भारत के 40 यूनेस्को विश्व धरोहर शिलालेखों में से लगभग 10 विभिन्न स्थापत्य शैली, पैटर्न और समरूपता में हिंदू मंदिर हैं।
    • वर्ष 2021 में तेलंगाना के मुलुगु ज़िले में रुद्रेश्वर मंदिर (जिसे रामप्पा मंदिर भी कहा जाता है) को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है।

सम्मेलन का महत्त्व:

  • यह सम्मेलन भारतीय मंदिरों, कला एवं वास्तुकला की भव्यता पर चर्चा, विचार-विमर्श और दुनिया में उनके प्रसार के लिये एक मंच प्रदान करता है।
  • यह प्रधानमंत्री की समग्र दृष्टि के अनुरूप है और 5V’s पर आधारित है, अर्थात्- विकास, विरासत, विश्वास,, ज्ञान, जो हमें विश्वगुरु बनने की ओर ले जा सकते।
  • ‘देवायतनम’ यानी भगवान का घर न केवल पूजा एवं अनुष्ठान करने का स्थान होता है, बल्कि शिक्षा, ललित कला, संगीत, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अनुष्ठान और परंपराओं या समाज को आकार देने वाली गतिविधियों का केंद्र भी है।
  • हाल के दिनों में सरकार ने मंदिर को किस प्रकार बढ़ावा दिया है?
  • केंद्र सरकार ने बेलूर और सोमनाथपुर के होयसल मंदिरों को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची हेतु प्रस्तावित किया है।
  • अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाया जा रहा है।
  • लगभग 250 वर्षों के बाद भारत की आध्यात्मिक राजधानी- काशी का कायाकल्प किया गया है और भक्तों के लिये सुविधाएँ तथा बेहतर बुनियादी अवसंरचना मौजूद है।
  • तेलंगाना राज्य ने 2 बड़े पत्थर के नक्काशीदार मंदिरों का निर्माण किया है जिनकी लागत 1,000 करोड़ रुपए है।
  • बेहतर बुनियादी अवसंरचना और विश्व स्तरीय सुविधाओं के माध्यम से मौजूदा आध्यात्मिक स्थानों को भक्तों के लिये सुलभ बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • पर्यटन के बुनियादी ढांँचे को सुविधाजनक बनाने व आध्यात्मिक स्थानों पर बेहतर पहुंँच और अनुभव प्रदान करने के लिये प्रसाद और स्वदेश दर्शन योजना हेतु लगभग 7,000 करोड़ रुपए के बजट की कल्पना की गई है।

भारतीय मंदिरों का क्या महत्त्व है?

  • भारतीय मंदिर कला, ज्ञान, संस्कृति, आध्यात्मिकता, नवाचार और शिक्षा के केंद्र रहे हैं।
  • भारत में मंदिरों की स्थापना की तीन प्रमुख शैलियाँ रही हैं जिन्हें नागर, द्रविड़ और वेसर के नाम से जाना जाता है।
    • देवगढ़ का दशावतार मंदिर नागर शैली में निर्मित है। यह शैली हिमालय और विंध्य पहाड़ों के बीच प्रचलित है।
    • कांची में कैलासनाथर का मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है, जिसे कृष्णा और कावेरी नदी की भूमि पर विकसित किया गया है।
    • पापनाथ मंदिर वेसर शैली का एक उदाहरण है जो वेसर, नागर और द्रविड़ शैली का मिश्रित रूप है।
  • एक हिंदू मंदिर में कला और विज्ञान का संयोजन होता है जिसमें शिल्प शास्त्र, वास्तु शास्त्र, ज्यामिति और समरूपता शामिल होती है।
  • मंदिर एकता, अखंडता और सभ्यता को बढ़ावा देते हैं।

नागर और द्रविड़ शैली के मंदिरों में अंतर:

नागर या उत्तर भारतीय मंदिर शैली: 

  • विशेषताएँ:
    • उत्तर भारत में एक पत्थर के चबूतरे पर पूरे मंदिर का निर्माण होना आम बात है जिसकी सीढ़ियाँ ऊपर तक जाती हैं।
    • इसके अलावा दक्षिण भारत के विपरीत उत्तर भारत में निर्मित मंदिरों में आमतौर पर विस्तृत चारदीवारी या प्रवेश द्वार नहीं होते हैं।
    • जबकि शुरुआती मंदिरों में सिर्फ एक मीनार या शिखर होता था, बाद में इनकी संख्या एक से अधिक हो गई।
    • गर्भगृह का निर्माण हमेशा सबसे ऊंँचे शिखर के नीचे होता है।
  • उप विभाजन:
    • शिखर के आकार के आधार पर नागर शैली के मंदिरों को कई उपखंडों में विभाजित किया गया है।
    • भारत के विभिन्न हिस्सों में मंदिर के लिये अलग-अलग नाम हैं। हालांँकि साधारण शिखर का सबसे सामान्य नाम जो आधार से वर्गाकार होता है और जिसकी दीवारें शीर्ष पर एक बिंदु पर अंदर की ओर वक्र या ढलानदार होती हैं, उसे 'लैटिना' या रेखा-प्रसाद प्रकार का शिकारा (Rekha-Prasada Type Of Shikara) कहा जाता है।
    • नागर क्रम में दूसरा प्रमुख प्रकार का स्थापत्य रूप फमसाना (Phamsana) है, जो लैटिना की तुलना में व्यापक और छोटा होता है।
      • इनकी छतें कई स्लैब में निर्मित होती हैं, जो धीरे-धीरे इमारत के केंद्र में एक बिंदु तक बढ़ती जाती हैं,ये लैटिना के विपरीत तेज़ी से बढ़ते ऊँचे टावरों की तरह दिखती हैं।
    • नागर भवनों के तीसरे मुख्य उप-प्रकार को आमतौर पर वल्लभी कहा जाता है।
      • ये एक छत के साथ आयताकार इमारतें हैं जो एक गुंबददार कक्ष में प्रदर्शित होती हैं।
  • उदाहरण:
    • खजुराहो मंदिर समूह, सूर्य मंदिर, कोणार्क, मोढेरा में सूर्य मंदिर, गुजरात और ओसियन मंदिर, गुजरात।

द्रविड़ या दक्षिण भारतीय मंदिर शैली:

  • विशेषताएँ:
    • नागर मंदिर के विपरीत द्रविड़ मंदिर परिसर की दीवार के भीतर संलग्न होते हैं।
    • मंदिर के सामने की दीवार पर एक मुख्य प्रवेश द्वार बनाया जाता है जिसे गोपुरम कहते हैं।
    • मंदिर का आकार एक पिरामिड की तरह होता है जिसके उपरी भाग को तमिलनाडु में विमान कहा जाता है।
    • परिसर के भीतर एक बड़ा जलाशय या मंदिर का तालाब भी प्रायः पाया जाता है।
    • सहायक मंदिर या तो मुख्य मंदिर की मीनार के भीतर समाहित होते हैं, या मुख्य मंदिर के बगल में अलग-अलग छोटे मंदिरों के रूप में स्थित होते हैं।
    • भूमि के विशाल क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाले ये मंदिर समृद्ध प्रशासनिक केंद्र बन गए।
  • उपखंड:
    • जिस तरह मुख्य प्रकार के नागर मंदिरों के कई उपखंड हैं, उसी तरह द्रविड़ मंदिरों के भी उपखंड हैं।
    • ये मूल रूप से पाँच अलग-अलग आकृतियों के हैं:
      • वर्ग, जिसे आमतौर पर कुटा कहा जाता है
      • आयताकार या (शाला, अयातश्र)
      • अण्डाकार, जिसे गज-प्रतिष्ठा या हाथी समर्थित, या जिसे वृत्तायता भी कहा जाता है।
      • वृत्ताकार या वृत्ता
      • अष्टकोणीय या अष्टास्त्र।
    • उदाहरण:
      • कांचीपुरम, तंजावुर या तंजौर, मदुरै और कुंभकोणम तमिलनाडु के सबसे प्रसिद्ध मंदिर शहर हैं।

स्रोत- पी.आई.बी.

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