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शासन व्यवस्था

भारत में बेरोज़गारी

  • 04 Jan 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी के प्रकार, आजीविका और उद्यम हेतु सीमांत व्यक्तियों के लिये समर्थन (मुस्कान), पीएम-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्ष और कुशल संपूर्ण हितग्राही), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), स्टार्टअप इंडिया योजना

मेन्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी के प्रकार, भारत में बेरोज़गारी के कारण और समाधान।

चर्चा में क्यों?

‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी’ (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2021 में भारत की बेरोज़गारी दर बीते  चार महीने के उच्चतम 7.9% पर पहुँच गई है।

  • ओमिक्रॉन वेरिएंट से उत्पन्न खतरे के बीच कोविड-19 के मामलों में हुई बढ़ोतरी और कई राज्यों में लागू नए प्रतिबंधों के कारण आर्थिक गतिविधि और खपत का स्तर प्रभावित हुआ है।
  • यह भविष्य में आर्थिक सुधार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • बेरोज़गारी के विषय में:
    • किसी व्यक्ति द्वारा सक्रियता से रोज़गार की तलाश किये जाने के बावजूद जब उसे काम नहीं मिल पाता तो यह अवस्था बेरोजगारी कहलाती है।
      • बेरोजगारी का प्रयोग प्रायः अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के मापक के रूप में किया जाता है।
    • बेरोज़गारी को सामान्यत: बेरोज़गारी दर के रूप में मापा जाता है, जिसे श्रमबल में शामिल व्यक्तियों की संख्या में से बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या को भाग देकर प्राप्त किया जाता है।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) किसी व्यक्ति की निम्नलिखित स्थितियों पर रोज़गार और बेरोज़गारी को परिभाषित करता है:
      • कार्यरत (आर्थिक गतिविधि में संलग्न) यानी 'रोज़गार'।
      • काम की तलाश में या काम के लिये उपलब्ध यानी 'बेरोज़गार'।
      • न तो काम की तलाश में है और न ही उपलब्ध।
      • पहले दो श्रम बल का गठन करते हैं और बेरोजगारी दर उस श्रम बल का प्रतिशत है जो बिना काम के है।
      • बेरोज़गारी दर = (बेरोज़गार श्रमिक/कुल श्रम शक्ति) × 100
  • बेरोज़गारी के प्रकार:
    • प्रच्छन्न बेरोजगारी: यह एक ऐसी घटना है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।
      • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • मौसमी बेरोज़गारी: यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।
      • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम काम होता है।
    • संरचनात्मक बेरोज़गारी: यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।
      • भारत में बहुत से लोगों को आवश्यक कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिलती है और शिक्षा के खराब स्तर के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
    • चक्रीय बेरोज़गारी: यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।
      • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी घटना है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।
    • तकनीकी बेरोज़गारी: यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है।
      • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में ऑटोमेशन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात साल-दर-साल 69% है।
    • घर्षण बेरोज़गारी: घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करता है।
      • दूसरे शब्दों में, एक कर्मचारी को एक नई नौकरी खोजने या एक नई नौकरी में स्थानांतरित करने के लिये समय की आवश्यकता होती है, यह अपरिहार्य समय की देरी घर्षण बेरोज़गारी का कारण बनती है।
      • इसे अक्सर स्वैच्छिक बेरोज़गारी के रूप में माना जाता है क्योंकि यह नौकरी की कमी के कारण नहीं होता है, बल्कि वास्तव में बेहतर अवसरों की तलाश में श्रमिक स्वयं अपनी नौकरी छोड़ देते हैं।
    • सुभेद्य रोज़गार: इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।
      • इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके कार्य का रिकॉर्ड कभी भी बनाया नहीं जाता हैं।
      • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है।
  • भारत में बेरोज़गारी का कारण:
    • सामाजिक कारक: भारत में जाति व्यवस्था प्रचलित है कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट जातियों के लिये कार्य निषिद्ध है।
      • बड़े व्यवसाय वाले बड़े संयुक्त परिवारों में बहुत से ऐसे व्यक्ति होंगे जो कोई काम नहीं करते हैं तथा परिवार की संयुक्त आय पर निर्भर रहते हैं।
    • जनसंख्या का तीव्र विकास: भारत में जनसंख्या में निरंतर वृद्धि एक बड़ी समस्या बन गई है।
      • यह बेरोज़गारी के प्रमुख कारणों में से एक है।
    • कृषि का प्रभुत्व: भारत में अभी भी लगभग आधा कार्यबल कृषि पर निर्भर है।
      • हालाँकि भारत में कृषि अविकसित है।
      • साथ ही यह मौसमी रोज़गार भी प्रदान करती है।
    • कुटीर और लघु उद्योगों का पतन: औद्योगिक विकास का कुटीर और लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
      • कुटीर उद्योगों का उत्पादन गिरने से कई कारीगर बेरोज़गार हो गए।
    • श्रम की गतिहीनता: भारत में श्रम की गतिशीलता कम है। परिवार से लगाव के कारण लोग नौकरी के लिये दूर-दराज़ के इलाकों में नहीं जाते हैं।
      • कम गतिशीलता के लिये भाषा, धर्म और जलवायु जैसे कारक भी ज़िम्मेदार हैं।
    • शिक्षा प्रणाली में दोष: पूंजीवादी दुनिया में नौकरियाँ अत्यधिक विशिष्ट हो गई हैं लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली इन नौकरियों के लिये आवश्यक सही प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान नहीं करती है।
      • इस प्रकार बहुत से लोग जो कार्य करने के इच्छुक हैं वे कौशल की कमी के कारण बेरोज़गार हो जाते हैं।

सरकार द्वारा हाल की पहल

आगे की राह

  • श्रम गहन उद्योगों को बढ़ावा देना: भारत में खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा और जूते, लकड़ी के निर्माता और फर्नीचर, कपड़ा तथा परिधान एवं वस्त्र जैसे कई श्रम गहन विनिर्माण क्षेत्र हैं।
    • रोज़गार सृजित करने हेतु प्रत्येक उद्योग के लिये व्यक्तिगत रूप से डिज़ाइन किये गए विशेष पैकेजों की आवश्यकता होती है।
  • उद्योगों का विकेंद्रीकरण: औद्योगिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण आवश्यक है ताकि हर क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिल सके।
    • ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण लोगों के प्रवास को कम करने में मदद मिलेगी जिससे शहरी क्षेत्र की नौकरियों पर दबाव कम होगा।
  • राष्ट्रीय रोज़गार नीति का मसौदा तैयार करना: एक राष्ट्रीय रोज़गार नीति (एनईपी) की आवश्यकता है जिसमें बहुआयामी हस्तक्षेपों का एक समूह शामिल हो जिसमें कई नीति क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले सामाजिक और आर्थिक मुद्दों की एक पूरी शृंखला शामिल हो, न कि केवल श्रम और रोज़गार के क्षेत्र।
    • राष्ट्रीय रोज़गार नीति के अंतर्निहित सिद्धांतों में शामिल हो सकते हैं:
      • कौशल विकास के माध्यम से मानव पूंजी में वृद्धि करना।
      • औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में सभी नागरिकों के लिये पर्याप्त संख्या में अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों का सृजन करना।
      • श्रम बाज़ार में सामाजिक एकता और समानता को मज़बूत करना।
      • सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों में सुसंगतता और अभिसरण
      • उत्पादक उद्यमों में प्रमुख निवेशक बनने के लिये निजी क्षेत्र का समर्थन करना।
      • अपनी आय में सुधार करने के लिये अपनी क्षमताओं को मज़बूत करके स्वरोज़गार करने वाले व्यक्तियों का समर्थन करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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