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डेली न्यूज़

  • 23 Feb, 2022
  • 37 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, UNEP, वनाग्नि, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जैव विविधता हानि, ग्रीनहाउस गैसें, बिजली, सवाना पारिस्थितिकी तंत्र।

मेन्स के लिये:

पर्यावरणीय मुद्दे, पर्यावरण प्रदूषण एवं गिरावट को संबोधित करने में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने ‘नॉइज़, ब्लेज़ एंड मिसमैच्स’ नाम से अपनी वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट जारी की है।

  • इस रिपोर्ट को ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा की बैठक से 10 दिन पहले जारी किया गया है।
  • यह फ्रंटियर्स रिपोर्ट तीन पर्यावरणीय मुद्दों की पहचान कर उनके समाधान के उपाय प्रदान करती है ताकि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण एवं जैव विविधता के नुकसान के संकट को संबोधित किया जा सके। इन पर्यावरणीय मुद्दों में शामिल हैं- शहरी ध्वनि प्रदूषण, वनाग्नि और फेनोलॉजिकल बदलाव। 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP): 

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) 5 जून, 1972 को स्थापित एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
    • यह पर्यावरणीय चिंता के उभरते मुद्दों की पहचान करने और उन पर ध्यान आकर्षित करने की दिशा में कार्य करता है।
  • कार्य: यह वैश्विक पर्यावरण एजेंडा निर्धारित करता है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देता है तथा वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक वक्ता के रूप में कार्य करता है।
  • प्रमुख रिपोर्ट: उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, एडेप्टेशन गैप रिपोर्ट, ग्लोबल एन्वायरनमेंट आउटलुक, फ्रंटियर्स, इन्वेस्ट इन हेल्दी प्लैनेट।
  • प्रमुख अभियान: बीट पॉल्यूशन, UN75, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।
  • मुख्यालय: नैरोबी, केन्या।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA):

  • यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का शासी निकाय है।
  • यह पर्यावरण पर विश्व स्तरीय सर्वोच्च निर्णयन निकाय है।
  • यह वैश्विक पर्यावरण नीतियों के लिये प्राथमिकताएँ निर्धारित करने और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण हेतु द्विवार्षिक बैठक करता है।
  • इसका गठन जून 2012 में सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान किया गया था, जिसे ‘रियो+20’ भी कहा जाता है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • शहरी ध्वनि प्रदूषण:
    • सड़क यातायात, रेलवे या अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण अवांछित, लंबी और उच्च-स्तरीय ध्वनियाँ मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
    • यातायात के कारण होने वाली झुंझलाहट और नींद की गड़बड़ी के परिणामस्वरूप बहुत कम उम्र में गंभीर हृदय रोग एवं चयापचय संबंधी विकार हो सकते हैं तथा अधिकतर व्यस्त सड़कों के निकट रहने वाले बुजुर्ग और हाशिये के समुदायों को प्रभावित करते हैं।
  • वनाग्नि:
    • वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सांद्रता एवं वनाग्नि के जोखिमकारी घटकों में वृद्धि के कारण आग की अधिक खतरनाक मौसमी स्थिति की प्रवृत्ति बढ़ने की संभावना होती है।
    • जलवायु परिवर्तन अत्यधिक वनाग्नि को प्रेरित कर तापमान में वृद्धि कर सकता है।
      • इस तरह की चरम घटनाएँ मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये विनाशकारी हैं।
    • सवाना पारिस्थितिकी तंत्र में वनाग्नि भी अधिक आम हो गई है, जो सवाना पारिस्थितिकी तंत्र में एक-चौथाई प्रजातियों को प्रभावित करती है।
    • वनाग्नि, वायु प्रदूषण के लिये भी उत्तरदायी है।
      • सितंबर 2021 में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, वनाग्नि से संबंधित प्रदूषण और इसके प्रभाव के कारण होने वाली मानव मृत्यु के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध है।
    • इतिहास को देखने से पता चलता है कि जंगल की आग शायद ही कभी नम-उष्णकटिबंधीय जंगलों में फैलती है लेकिन वनों की कटाई और वन विखंडन के कारण वन अब अधिक संवेदनशील हो गए हैं।
  • फेनोलॉजिकल बदलाव:
    • पौधे और जानवर स्थलीय, जलीय एवं समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में तापमान, दिन की लंबाई या वर्षा का उपयोग इस बात के संकेत के रूप में करते हैं कि फल कब आएंगे या पलायन कब करना है।
    • जलवायु परिवर्तन इन प्राकृतिक आवर्तनों को बाधित करता है क्योंकि यह पौधों और जानवरों को प्रकृति के साथ ताल-मेल से दूर करता है, जिसके परिणामस्वरूप असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिये शाकभक्षियों की तुलना में पौधों के जीवन चक्र में तेज़ी से परिवर्तन।
      • फेनोलॉजी जीवन चक्र चरणों की अवधि है, जो पर्यावरण कारकों द्वारा संचालित होती है, साथ ही यह इस तथ्य पर भी निर्भर करता है कि एक पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर क्रिया करने वाली प्रजातियाँ किस प्रकार बदलती परिस्थितियों का सामना करती हैं।

रिपोर्ट की सिफारिशें

  • स्वदेशी अग्नि प्रबंधन तकनीकों को अपनाना।
  • संवेदनशील समूहों को शामिल करके प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण के बजाय एक निवारक दृष्टिकोण वनाग्नि को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।
  • अग्निशमन क्षमताओं को बढ़ाना और सामुदायिक लचीलापन-निर्माण कार्यक्रमों को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।
  • लंबी दूरी के मौसम पूर्वानुमान पर ध्यान देना आवश्यक है।
  • रिमोट-सेंसिंग क्षमताओं जैसे- उपग्रहों और रडार के साथ-साथ डेटा हैंडलिंग पर ध्यान देना ज़रूरी है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


सामाजिक न्याय

पीएम-केयर्स स्कीम फॉर चिल्ड्रन

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम केयर्स स्कीम फॉर चिल्ड्रन, आयुष्मान भारत योजना, पीएम ई-विद्या, मनोदर्पण, कोविड-केयर, सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) व्यय।

मेन्स के लिये:

बच्चों पर कोविड-19 का प्रभाव, इस दिशा में उठाए गए कदम, बच्चों से संबंधित मुद्दे, शिक्षा, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने पीएम-केयर्स स्कीम फॉर चिल्ड्रन की वैधता को 28 फरवरी, 2022 तक बढ़ा दिया है, यह पहले 31 दिसंबर, 2021 तक वैध थी।

PM-CARES-Scheme

पीएम-केयर्स स्कीम फॉर चिल्ड्रन:

  • परिचय:
    • यह योजना 29 मई, 2021 को उन बच्चों की सहायता करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने माता-पिता या कानूनी अभिभावक/दत्तक माता-पिता को खो दिया था।
      • देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों में अनाथ (10,094) तथा जिन्होंने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया (1,36,910) और परित्यक्त (488) बच्चे शामिल हैं, जिनकी कुल संख्या 1,47,492 है।
      • लिंग के आधार पर देखें तो इन 1,47,492 बच्चों में लगभग 76,508 लड़के, 70,980 लड़कियाँ और चार ट्रांसजेंडर शामिल हैं।
    • इस योजना का उद्देश्य बच्चों की निरंतर व्यापक देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करना, स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना, शिक्षा के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाना और 23 वर्ष की आयु तक वित्तीय सहायता प्रदान कर आत्मनिर्भर बनाना है।
  • योजना की विशेषताएँ:
    • 10 लाख रुपए का कोष:
      • इनमें से प्रत्येक बच्चे को पीएम केयर फंड से 10 लाख रुपए की राशि आवंटित की जाएगी। 
      • इस कोष का उपयोग 18 वर्ष की आयु के बाद अगले पाँच वर्षों तक उच्च शिक्षा की अवधि के दौरान बच्चों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये मासिक वित्तीय सहायता/छात्रवृत्ति हेतु किया जाएगा और 23 वर्ष की आयु पूरी करने पर व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक उपयोग के लिये उसे एकमुश्त के रूप में कोष की राशि मिलेगी।
    • बच्चों की शिक्षा
      • छोटे बच्चों की शिक्षा का खर्च केंद्रीय विद्यालयों और निजी स्कूलों में उच्चतर माध्यमिक स्तर तक प्रवेश के माध्यम से वहन किया जाएगा।
      • इन बच्चों को उनकी उच्च शिक्षा के दौरान ट्यूशन फीस या शैक्षिक ऋण के बराबर छात्रवृत्ति या आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाएगी, जहाँ ऋण पर ब्याज का भुगतान पीएम-केयर्स फंड द्वारा किया जाएगा।
    • स्वास्थ्य बीमा:
      • आयुष्मान भारत योजना के तहत ऐसे सभी बच्चों को एक लाभार्थी के रूप में नामांकित किया जाएगा, जिसमें 5 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा कवर शामिल होगा। 
      • ऐसे बच्चों के 18 वर्ष के होने तक प्रीमियम राशि का भुगतान पीएम-केयर्स फंड द्वारा किया जाएगा।

‘पीएम केयर्स’ फंड क्या है?

  • सरकार ने कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न किसी भी प्रकार की आपातकालीन या संकटपूर्ण स्थिति से निपटने हेतु ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष’ (PM CARES) की स्थापना की है।
  • पीएम-केयर्स फंड एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। अन्य सदस्यों के रूप में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं। 
  • यह कोष सूक्ष्म-दान को सक्षम बनाता है यानी इसमें राशि की सीमा निर्धारित नहीं की गई है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग योगदान करने में सक्षम होते हैं।
  • यह कोष आपदा प्रबंधन क्षमताओं को मज़बूत करने एवं नागरिकों की सुरक्षा हेतु अनुसंधान को प्रोत्साहित करेगा।
  • पीएम-केयर्स फंड में किया गया योगदान ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ (CSR) के रूप में योग्य है।

कोविड के दौरान सरकार द्वारा बच्चों के लिये की गईं अन्य पहलें: 

  • बाल स्वराज कोविड-केयर:
    • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने देखभाल एवं सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों के लिये एक ऑनलाइन ट्रैकिंग पोर्टल ‘बाल स्वराज (कोविड-केयर)’ तैयार किया है।
    • यह उन बच्चों की ऑनलाइन ट्रैकिंग और डिजिटल रीयल टाइम मॉनीटरिंग के उद्देश्य से बनाया गया है, जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है।
  • पीएम ई-विद्या:
    • 17 मई, 2020 को ‘पीएम ई-विद्या’ नामक एक व्यापक पहल को आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था, जो शिक्षा के लिये मल्टी-मोड एक्सेस को सक्षम करने हेतु डिजिटल/ऑनलाइन/ऑन-एयर शिक्षा से संबंधित सभी प्रयासों को एकीकृत करता है।
    • इसे कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों की शिक्षा के उद्देश्य से ‘वन नेशन वन डिजिटल’ प्लेटफॉर्म के तहत लॉन्च किया गया था।
  • मनोदर्पण:
    • इसका उद्देश्य कोविड-19 के समय में छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण हेतु मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।

स्रोत: पी.आई.बी.


आंतरिक सुरक्षा

मणिपुर में विद्रोह

प्रिलिम्स के लिये:

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA), मणिपुर में उग्रवाद का उदय।

मेन्स के लिये:

उत्तर-पूर्व विद्रोह और इसकी पृष्ठभूमि, चुनौतियाँ एवं समाधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि वह इस क्षेत्र में स्थायी शांति लाने हेतु मणिपुर में उग्रवादी समूहों के साथ बातचीत करने के लिये तैयार है।

  • मणिपुर में विद्रोह का उदय वर्ष 1964 में ‘यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट’ (UNLF) के गठन के साथ हुआ, जो अभी भी सबसे दुर्जेय उग्रवादी संगठनों में से एक है।

Manipur

मणिपुर में उग्रवाद के बढ़ने का कारण:

  • ज़बरन विलय: मणिपुर में अलगाववादी विद्रोह का उदय मुख्य रूप से मणिपुर के भारत संघ के साथ "ज़बरन" विलय को लेकर कथित असंतोष और बाद में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने में देरी के कारण हुआ।
    • मणिपुर के तत्कालीन साम्राज्य का  विलय 15 अक्तूबर, 1949 को भारत में कर दिया गया था, परंतु इसे वर्ष 1972 में राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
  • उग्रवाद का उदय: बाद के वर्षों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कंगलेईपाक (प्रीपैक), कंगलेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी), और कांगले यावोल कन्ना लुप (केवाईकेएल) सहित कई उग्रवादी संगठनों का गठन हुआ। 
    • घाटी के ये संगठन स्वतंत्र मणिपुर की मांग कर रहे हैं।
  • ‘ग्रेटर नगालिम’ की मांग का व्यापक प्रभाव: नगालैंड में नगा आंदोलन मणिपुर के पहाड़ी ज़िलों में फैल गया, जिसमें एनएससीएन-आईएम ने "नगालिम" (ग्रेटर नगालैंड) के लिये दबाव बनाते हुए इसे नियंत्रित किया, जिसे घाटी में मणिपुर की ‘प्रादेशिक अखंडता’ के लिये "खतरे" के रूप में माना जाता है।
  • वेली-हिल्स कान्फ्लिक्ट: मणिपुर के भौगोलिक क्षेत्र का नौ-दस प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी है जो बहुत कम आबादी वाला क्षेत्र है, जबकि राज्य की अधिकांश आबादी घाटी में केंद्रित है। 
    • इंफाल घाटी में मेतेई समुदाय बहुसंख्यक है, जबकि आसपास के पहाड़ी ज़िलों में नगा और कुकी रहते हैं।
  • नगा-कुकी संघर्ष: 1990 के दशक की शुरुआत में नगा और कुकी के बीच जातीय संघर्ष ने कई कुकी विद्रोही समूहों का गठन किया, जिन्होंने अब कुकी राज्य से एक अलग क्षेत्रीय परिषद की अपनी मांग का त्याग कर दिया है।
    • उग्रवाद के कारण जेलियांग्रोंग यूनाइटेड फ्रंट ( Zeliangrong United Front- ZUF), पीपुल्स यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ( People’s United Liberation Front- PULF) और अन्य छोटे समूहों जैसे छोटे संगठनों का गठन हुआ।.

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • सैन्य कार्रवाई:
    • AFSPA: वर्ष 1980 में केंद्र ने पूरे मणिपुर को "अशांत क्षेत्र" घोषित किया और उग्रवादी गतिविधियों को दबाने के लिये विवादास्पद सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (AFSPA) लागू किया जो आज तक लागू है।
    • ऑपरेशन ऑल क्लियर: असम राइफल्स और सेना द्वारा पहाड़ी इलाकों में ‘’ऑपरेशन ऑल क्लियर" (Operation All Clear) चलाया गया जिससे अधिकांश उग्रवादियों के ठिकानों को निष्प्रभावी कर दिया गया था जिनमें से कई उग्रवादी संघठन घाटी में स्थानांतरित हो गए थे।
  • युद्धविराम समझौता:
    • वर्ष 1997 में NSCN-IM ने भारत सरकार के साथ युद्धविराम समझौता किया, जबकि उनके बीच शांति वार्ता अभी भी जारी है।
    • दो मुख्य समूहों कुकी नेशनल ऑर्गनाइज़ेशन (Kuki National Organisation- KNO) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (United People’s Front- UPF) के तहत कुकी संगठनों ने भी 22 अगस्त, 2008 में भारत व मणिपुर की सरकारों के साथ त्रिपक्षीय सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (Suspension of Operation- SoO) समझौते पर हस्ताक्षर किये।
    • हालाँकि उनके कई छोटे संगठनों ने राज्य सरकार के साथ एसओओ (SoO) समझौता किया है, जिसने ऐसे समूहों के लिये पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किया है।
    • हालाँकि यूएनएलएफ (UNLF), पीएलए (PLA), केवाईकेएल (KYKL) आदि जैसे प्रमुख घाटी-आधारित आतंकवादी संगठन (मेइती समूह) अभी तक बातचीत के लिये एक साथ नहीं आए हैं।

मणिपुर में शांति बहाल करने में चुनौतियाँ:

  • परस्पर विरोधी मांगें: केंद्र सरकार का उग्रवादी संगठनों के साथ शांतिपूर्ण समाधान का दृष्टिकोण प्रतिकूल साबित हुआ है।
    • चूँकि कई संगठनों की मांगें एक-दूसरे से टकराती हैं, जिससे एक समूह के साथ कोई भी पारंपरिक समझौता दूसरे समूहों द्वारा आंदोलन का कारण बन जाता है।
  • प्रॉक्सी ग्रुपिंग: यह देखते हुए कि विद्रोही समूहों के साथ शांति वार्ता चल रही है, समूहों के लिये एक अन्य गुट द्वारा सशस्त्र विद्रोह को केवल नाम में बदलाव या एक नया समूह बनाकर जारी रखने की प्रवृत्ति रही है।
  • राजनेता-विद्रोहियों का गठजोड़: राजनेताओं और विद्रोहियों तथा अपराधियों के बीच गठजोड़ राज्य के संकट को बढ़ाता है।
    • कुछ संगठन आपराधिक गैंगस्टर के रूप में कार्य करते हैं जो ज़बरन वसूली, अपहरण और अनुबंध हत्याओं में लिप्त हैं।
    • बहरहाल, उपद्रवी अशांति का फायदा उठाते हैं और खुद को विद्रोही बताकर धन की उगाही करते हैं।
    • इसके अलावा राजनीतिक दलों द्वारा विवादों को बढ़ाकर वोट बैंक के लिये लाभ हासिल करने हेतु अधिकांश सुरक्षा मुद्दों का राजनीतिकरण किया जाता है।
  • सीमावर्ती राज्य: मणिपुर वन वातावरण के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा वाला एक सीमावर्ती राज्य होने के नाते विद्रोही संगठनों के प्रशिक्षण, हथियार और आवश्यक रसद के लिये बाहरी देशों पर निर्भरता जैसी सीमा पार गतिविधियों से प्रभावित है।

आगे की राह

  • सुशासन: राज्य में पारदर्शी सरकार, निष्पक्ष न्याय प्रणाली, कानून का शासन और अस्पतालों, स्कूलों, पुलिस थानों आदि जैसी न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं के प्रावधान के माध्यम से राज्य में सुशासन स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • घाटी और पहाड़ियों दोनों क्षेत्रों में राज्य के समग्र विकास के लिये धन के उचित वितरण के साथ राजनीतिक ईमानदारी आवश्यक है।
    • इसके बाद सरकार, अर्द्ध-सरकारी एवं निजी उद्यमिता भागीदारी के माध्यम से आर्थिक विकास किया जाना चाहिये।
  • सीमा प्रबंधन: किसी भी प्रकार की आतंकवाद विरोधी नीति/संचालन शुरू करने से पहले भारत-म्याँमार अंतर्राष्ट्रीय सीमा के उचित प्रबंधन की आवश्यकता है।
  • लोगों के साथ जुड़ाव: राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करने के लिये मणिपुर के विविध समुदायों के समग्र भारत के साथ परस्पर जुड़ाव को और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिये।
    • इसके लिये गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), महिला संघों, खेल एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

वितरित नवीकरणीय ऊर्जा हेतु नीतिगत मसौदा

प्रिलिम्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्त करने हेतु योजनाएँ और कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, चुनौतियाँ और लक्ष्य प्राप्त करने हेतु पहलें।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने 14 फरवरी, 2022 को वितरित नवीकरणीय ऊर्जा (DRE) आजीविका अनुप्रयोगों हेतु एक मसौदा नीति ढाँचा जारी किया है।

  • इसका उद्देश्य देश में विशेष रूप से उन ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत और वितरित नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना है, जहाँ बिजली की कम या पहुँच नहीं है।

मसौदा नीति ढाँचे के प्रावधान: 

  • प्रगति की निगरानी हेतु समिति:
    • MNRE ने DRE परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी के लिये एक समिति बनाने का प्रस्ताव रखा है, जिसकी बैठक प्रत्येक छह महीने में कम-से-कम एक बार होगी।
    • समिति के भीतर, प्रत्येक सदस्य मंत्रालय अंतर-मंत्रालयी सहयोग के लिये संपर्क अधिकारी को नामित करेगा।
  • DRE-संचालित समाधानों का डिजिटल कैटलॉग:
    • MNRE जागरूकता बढ़ाने के लिये विभिन्न हितधारकों द्वारा उपयोग किये जाने वाले DRE-संचालित समाधानों का एक डिजिटल कैटलॉग उपलब्ध कराएगा।

नए ढाँचे में उल्लिखित मुख्य उद्देश्य:

  • बाज़ार-उन्मुख पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम करना।
  • अंतिम उपयोगकर्त्ता के लिये आसान वित्त को सक्षम करके DRE-आधारित आजीविका समाधानों को अपनाना।
  • उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के विकास और प्रबंधन को प्रोत्साहित करना।
  • नवाचार के साथ-साथ अनुसंधान और विकास के माध्यम से प्रभावी DRE आजीविका अनुप्रयोगों का विकास करना।
  • उच्च क्षमता वाले आजीविका उत्पादों के लिये ऊर्जा दक्षता मानकों की स्थापना करना। 
  • मुख्य ग्रिड के साथ-साथ हाइब्रिड मोड में संचालित मिनी/माइक्रो-ग्रिड द्वारा संचालित अनुप्रयोगों का उपयोग करना।

वितरित अक्षय ऊर्जा का महत्व:

  • डीआरई (DRE) और इसके डाउनस्ट्रीम एप्लीकेशन न केवल भारत के जलवायु और ऊर्जा पहुँच लक्ष्यों को पूरा करने का अवसर प्रदान करते हैं, बल्कि वित्तीय निवेशकों को आकर्षक रिटर्न भी प्रदान करते हैं।
  • यह भारत की कच्चे तेल पर आयात-निर्भरता को कम करने के साथ-साथ लंबे समय में आर्थिक विकास और रोज़गार सृजित करने का मार्ग भी प्रदान करता है।
  • इसके अलावा मौजूदा नीति और वित्तीय अंतराल को संबोधित करने से न केवल सरकारी खर्च पर कार्यक्रमों के बेहतर लक्ष्यीकरण तथा ज़ोखिम-प्रतिरक्षा की अनुमति मिलेगी, बल्कि पूंजी को कुशलता से पुनर्नवीनीकरण करने की अनुमति मिलेगी जिससे प्रभाव और परिमाण दोनों में वृद्धि होगी।

DRE से संबंधित मुद्दे:

  • प्रौद्योगिकी का अभाव: 
    • अपनी आजीविका में अक्षय ऊर्जा का उपयोग करने के लिये लोगों को प्रौद्योगिकी और वित्तपोषण तक पहुंँच की आवश्यकता होती है जो भारत में अधिकांश ग्रामीण परिवारों के पास उपलब्ध नहीं है, जबकि छोटे पैमाने पर अक्षय ऊर्जा-आधारित आजीविका अनुप्रयोगों को लागू करने के लिये कई प्रौद्योगिकी विकल्प मौजूद हैं।
    • गांँवों में स्थानीय समुदायों को अक्सर इन नवाचारों हेतु अग्रिम भुगतान करना मुश्किल होता है।
  • महिलाओं के समक्ष भिन्न  चुनौती:
    • जब संपत्ति हासिल करने की बात आती है तो माइक्रोबिज़नेस, कम लोगों वाले समूह और महिलाओं को अलग प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। परिणामस्वरूप व्यवसाय जो परिचालन व्यय-आधारित वित्तीय मॉडल पर आधारित होते हैं, जैसे- भुगतान, या लीजिंग, क्रेडिट सुविधा के लिये पात्र हो सकते हैं।
  • अन्य:
    • उचित वित्तपोषण चैनलों की कमी, उपभोक्ता जागरूकता, उपभोक्ता सामर्थ्य और गुणवत्ता वाले उत्पाद/मानक भारत में डीआरई के सामने आने वाली कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

आगे की राह

  • अंतिम-उपयोगकर्त्ता और कॉर्पोरेट वित्तपोषण: वित्तीय संस्थान ऐसे वित्तपोषण विकल्प विकसित करने पर विचार कर सकते हैं जिनमें संपार्श्विक की आवश्यकता नहीं होती है। अन्य राज्य नोडल एजेंसियाँ ​​जैसे- राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को वित्तीय सहायता देने के लिये अपने मौजूदा संस्थागत ढाँचे का उपयोग कर सकती हैं।
  • अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम आजीविका दोनों को ध्यान में रखना: अपस्ट्रीम आजीविका स्थानीय विनिर्माण और तकनीकी सेवा प्रदाताओं को DRE सिस्टम को डिज़ाइन, स्थापित और बनाए रखने के लिये प्रभावित करती है। 
  • जागरूकता को बढ़ावा देना: जागरूकता अभियान अंतिम उपयोगकर्त्ताओं और वित्तपोषकों द्वारा इन उत्पादों के प्रति विश्वास और उन्हें अपनाने में मदद करेंगे, क्योंकि ये प्रौद्योगिकियाँ कई उपभोक्ताओं के लिये नई हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-फ्राँस विदेश मंत्रियों की बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

दक्षिण चीन सागर, नीली अर्थव्यवस्था, भारत-फ्राँस सैन्य अभ्यास, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन।

मेन्स के लिये:

भारत-फ्राँस संबंधों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने अपने फ्राँसीसी समकक्ष के साथ बातचीत की।

  • दोनों नेताओं ने भारत-यूरोपीय संघ संबंध, अफगानिस्तान की स्थिति, भारत-प्रशांत रणनीति, दक्षिण चीन सागर विवाद, ईरान परमाणु समझौते और यूक्रेन संकट सहित कई क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की।

FRANCE

बैठक की मुख्य विशेषताएँ: 

  • इंडो-पैसिफिक पार्क साझेदारी: दोनों देश ‘इंडो-पैसिफिक पार्क पार्टनरशिप’ के लिये इंडो-फ्रेंच कॉल को संयुक्त रूप से लॉन्च करने पर सहमत हुए।
    • इस साझेदारी का उद्देश्य प्रमुख ‘इंडो-पैसिफिक’ सार्वजनिक और निजी प्राकृतिक पार्क प्रबंधकों के इस क्षेत्र के अनुभवों और विशेषज्ञता के एकीकरण और उसे साझा करके संरक्षित क्षेत्रों के स्थायी प्रबंधन द्वारा इस क्षेत्र में क्षमता निर्माण करना है।
  • ब्लू इकॉनमी और ओशन गवर्नेंस पर भारत-फ्रांँस रोडमैप: दोनों पक्षों द्वारा "ब्लू इकॉनमी और ओशन गवर्नेंस पर भारत-फ्रांँस रोडमैप" को भी अपनाया गया।
    • रोडमैप का उद्देश्य संस्थागत, आर्थिक, ढांँचागत और वैज्ञानिक सहयोग के माध्यम से ब्लू इकॉनमी के क्षेत्र में साझेदारी को बढ़ाना है।
  • भारत-यूरोपीय संघ के मध्य संबंधों को मज़बूत करना: दोनों देश फ्रेंच प्रेसीडेंसी के तहत भारत-यूरोपीय संघ के मध्य संबंधों की मज़बूती पर भी सहमत हुए, साथ ही मुक्त व्यापार और निवेश समझौतों पर बातचीत शुरू करने तथा भारत-ई.यू. कनेक्टिविटी साझेदारी पर भी सहमति व्यक्त की गई।
  • बहुपक्षवाद को सुदृढ़ बनाना: दोनों पक्षों द्वारा परस्पर सरोकार के मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के साथ समन्वय करने पर भी सहमति व्यक्त की गई।
  • रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करना: दोनों देशों के मंत्री रणनीतिक साझेदारी को और अधिक मज़बूत करने पर सहमत हुए, विशेष रूप से व्यापार और निवेश, रक्षा एवं सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, अनुसंधान व नवाचार, ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में।
  • लोगों के बीच संपर्क को सुगम बनाना: खेल के क्षेत्र में एक संयुक्त घोषणा पर सहमति व्यक्त की गई, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क को और अधिक सुविधाजनक बनाना है।
    • संबंधित अधिकारियों के बीच लोक प्रशासन और प्रशासनिक सुधारों पर लंबे समय से चल रहे सहयोग को मज़बूत करना।

भारत-फ्राँस सामरिक संबंध:

  • पृष्ठभूमि: जनवरी 1998 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद फ्राँस उन पहले देशों में से एक था जिसके साथ भारत ने ‘रणनीतिक साझेदारी’ पर हस्ताक्षर किये थे।
    • वर्ष 1998 में परमाणु हथियारों के परीक्षण के भारत के फैसले का समर्थन करने वाले बहुत कम देशों में से फ्राँस एक था।
    • वर्तमान में फ्राँस आतंकवाद और कश्मीर से संबंधित मुद्दों पर भारत का सबसे विश्वसनीय भागीदार बनकर उभरा है।
  • रक्षा सहयोग: दोनों देशों के बीच मंत्रिस्तरीय रक्षा वार्ता आयोजित की जाती है।
    • तीनों सेनाओं द्वारा नियमित समयांतराल पर रक्षा अभ्यास किया जाता है; अर्थात्
      • अभ्यास शक्ति (स्थल सेना)
      • अभ्यास वरुण (नौसेना)
      • अभ्यास गरुड़ (वायु सेना)
    • हाल ही में भारतीय वायु सेना (IAF) में फ्रेंच राफेल बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान को शामिल किया गया है।
    • भारत ने वर्ष 2005 में एक प्रौद्योगिकी-हस्तांतरण व्यवस्था के माध्यम से भारत के मझगाँव डॉकयार्ड में छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण के लिये फ्राँसीसी कंपनी के साथ अनुबंध किया।
    • दोनों देशों ने पारस्परिक ‘लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट’ (Logistics Support Agreement- LSA)  के प्रावधान के संबंध में समझौते पर भी हस्ताक्षर किये।
  • द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक संबंध: भारत-फ्राँस प्रशासनिक आर्थिक और व्यापार समिति (AETC) द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर बाज़ार पहुँच के मुद्दों के समाधान में तेज़ी लाने के तरीकों का आकलन करने तथा खोजने के लिये एक उपयुक्त ढाँचा प्रदान करती है।
  • वैश्विक एजेंडा: जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, नवीकरणीय ऊर्जा, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और डिजिटल प्रौद्योगिकी आदि:
    • जलवायु परिवर्तन को सीमित करने और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के विकास के लिये संयुक्त प्रयास किये गए हैं।
    • दोनों देश साइबर सुरक्षा और डिजिटल प्रौद्योगिकी पर एक रोडमैप पर सहमत हुए हैं।

आगे की राह 

  • फ्राँस वैश्विक मुद्दों पर यूरोप के साथ गहरे जुड़ाव का मार्ग भी खोलता है, यह स्थिति इस क्षेत्र में विशेषकर ब्रेक्ज़िट (BREXIT) के कारण अनिश्चितता के बाद उत्पन्न हुई।
  • यह संभवना व्यक्त की गई है कि फ्राँस, जर्मनी और जापान जैसे अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी वैश्विक मंच पर भारत के प्रभाव के लिये कहीं अधिक प्रभावी साबित होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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