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डेली न्यूज़

  • 22 Feb, 2022
  • 70 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

किसान ड्रोन

प्रिलिम्स के लिये:

ड्रोन तकनीक।

मेन्स के लिये:

वर्ष 2022 तक किसान की आय को दोगुना करना, कृषि में ड्रोन तकनीक का उपयोग और उसके फायदे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने समग्र भारत में खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव करने हेतु 100 किसान ड्रोन की शुरुआत की है।

  • उन्होंने भारत में रासायनिक मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिये ‘ड्रोन किसान यात्रा’ की भी शुरुआत की।
    • समावेशी ड्रोन विकास सुनिश्चित करने हेतु पहली बार बजट 2022 में इस पहल की घोषणा की गई थी।
  • इससे पहले सरकार ने देश में ड्रोन के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था ताकि देश के भीतर ही ड्रोन के निर्माण को प्रोत्साहित किया जा सके (ड्रोन शक्ति योजना)।
  • जनवरी, 2022 में किसानों हेतु ड्रोन को अधिक सुलभ बनाने के उद्देश्य से ‘कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन’ (SMAM) योजना के लिये संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये गए थे।

किसान ड्रोन क्या हैं?

  • किसान ड्रोन में कीटनाशकों और पोषक तत्त्वों से भरा एक मानवरहित टैंक होता है।
  • ड्रोन में लगभग 5 से 10 किलोग्राम की उच्च क्षमता मौजूद होती है।
  • ड्रोन द्वारा सिर्फ 15 मिनट में करीब एक एकड़ ज़मीन पर 5 से 10 किलोग्राम कीटनाशक का छिड़काव किया जा सकेगा।
    • इससे समय की बचत होगी, कम मेहनत में छिड़काव समान रूप से किया जाएगा।
  • उनका उपयोग खेतों से सब्जियों, फल, मछली आदि को बाज़ारों तक ले जाने के लिये भी किया जाएगा। 
    • इन वस्तुओं की आपूर्ति कम-से-कम नुकसान के साथ सीधे बाज़ार में की जाएगी जिसमें कम समय लगेगा, परिणामस्वरूप किसानों और मछुआरों को अधिक लाभ होगा।

किसान ड्रोन के उपयोग का महत्त्व: 

  • देश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये किसान ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा।
  • फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों और पोषक तत्त्वों के छिड़काव के लिये  किसान ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • यह एक नई बढ़त क्रांति की शुरुआत करेगा क्योंकि उच्च क्षमता वाले ड्रोन का उपयोग सब्जियों, फलों, मछलियों को सीधे खेतों से बाज़ार तक ले जाने के लिये किया जाएगा।
  • भारत में ड्रोन बाज़ार के विकास से युवाओं के लिये रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न होंगे।

संबंधित चुनौतियांँ:

  • कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ ड्रोन के लाभों और किसानों की आय में वृद्धि को लेकर संशय में हैं।
    • सरकार के वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के अपने पहले वादे को पूरा करने के कोई संकेत नहीं हैं।
  • कीटनाशक एवं उर्वरक के छिड़काव से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सकती है, परंतु इसका सबसे ज़्यादा लाभ उद्योगों को होगा।

हाल के दिनों में ड्रोन के उभार का कारण:

  • कुछ समय पहले तक यह धारणा थी कि ड्रोन सशस्त्र बलों और दुश्मनों से लड़ने के लिये होते हैं।
    • हालाँकि किसान ड्रोन सुविधा ने कृषि क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा है और यह ड्रोन तकनीक के लिये मील का पत्थर साबित होगा।
  • गरुड़ एयरोस्पेस ने एक लाख ड्रोन विकसित करने का लक्ष्य रखा है, जिनका इस्तेमाल विविध उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है।
  • "स्वामित्व योजना" के तहत ड्रोन तकनीक के माध्यम से भूमि अभिलेखों का दस्तावेज़ीकरण किया जा रहा है। साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में दवाएँ, टीकों की आपूर्ति तथा इसका उपयोग फसलों पर कीटनाशक आदि के छिड़काव के लिये भी किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

शिवाजी जयंती 2022

प्रिलिम्स के लिये:

शिवाजी जयंती 

मेन्स के लिये:

छत्रपति शिवाजी की वीरता और उनके शासनकाल में प्रशासन।

चर्चा में क्यों? 

छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती हर वर्ष 19 फरवरी को उनके साहस, युद्ध रणनीति और प्रशासनिक कौशल को याद करने तथा उनकी प्रशंसा करने के लिये मनाई जाती है।

  • उन्होंने बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत के पतन के समय इस क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित किया, जिसने आगे चलकर मराठा साम्राज्य की उत्पत्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
  • वर्ष 1870 में समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने पुणे में शिव जयंती मनाने की शुरुआत की जिसे अब छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती के रूप में जाना जाता है।

Chhatrapati-Shivaji-Maharaj

प्रमुख बिंदु

छत्रपति शिवाजी महाराज से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • जन्म स्थान:
    • उनका जन्म 19 फरवरी, 1630 को वर्तमान महाराष्ट्र राज्य में पुणे ज़िले के शिवनेरी किले में हुआ था।
    • उनका जन्म एक मराठा सेनापति शाहजी भोंसले के घर हुआ था, जिनके अधिकार में बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे और सुपे की जागीरें थीं तथा उनकी माता जीजाबाई एक धर्मपरायण महिला थीं, जिनके धार्मिक गुणों का उन पर गहरा प्रभाव था।
  • आरंभिक जीवन:
    • उन्होंने वर्ष 1645 में पहली बार अपने सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया, जब किशोर उम्र में ही उन्होंने बीजापुर के अधीन तोरण किले (Torna Fort) पर सफलतापूर्वक नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
    • उन्होंने कोंडाना किले (Kondana Fort) पर भी अधिकार कर लिया। ये दोनों किले बीजापुर के आदिल शाह के अधीन थे।

महत्त्वपूर्ण युद्ध:

प्रतापगढ़ का युद्ध, 1659

  • यह युद्ध मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेनापति अफज़ल खान की सेनाओं के बीच महाराष्ट्र के सतारा शहर के पास प्रतापगढ़ के किले में लड़ा गया था।

पवन खिंड का युद्ध, 1660

  • यह युद्ध मराठा सरदार बाजी प्रभु देशपांडे और आदिलशाही के सिद्दी मसूद के बीच महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के पास (विशालगढ़ किले के आसपास) एक पहाड़ी दर्रे पर लड़ा गया।

सूरत का युद्ध, 1664

  • यह युद्ध गुजरात के सूरत शहर के पास छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल कप्तान इनायत खान के बीच लड़ा गया।

पुरंदर का युद्ध, 1665

  • यह युद्ध मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ा गया।

सिंहगढ़ का युद्ध, 1670

  • यह युद्ध महाराष्ट्र के पुणे शहर के पास सिंहगढ़ के किले पर मराठा शासक शिवाजी महाराज के सेनापति तानाजी मालुसरे और जय सिंह प्रथम के अधीन गढ़वाले उदयभान राठौड़, जो कि मुगल सेना प्रमुख थे, के बीच लड़ा गया।

कल्याण का युद्ध, 1682-83

  • इस युद्ध में मुगल साम्राज्य के बहादुर खान ने मराठा सेना को हराकर कल्याण पर अधिकार कर लिया।.

संगमनेर का युद्ध, 1679

  • यह युद्ध मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ा गया। यह आखिरी युद्ध था जिसमें मराठा राजा शिवाजी लड़े थे।
  • मुगलों के साथ संघर्ष:
    • मराठों ने अहमदनगर के पास और वर्ष 1657 में जुन्नार में मुगल क्षेत्र पर छापा मारा।
    • औरंगज़ेब ने नसीरी खान को भेजकर छापेमारी का जवाब दिया, जिसने अहमदनगर में शिवाजी की सेना को हराया था।
    • शिवाजी ने वर्ष 1659 में पुणे में शाइस्ता खान (औरंगज़ेब के मामा) और बीजापुर सेना की एक बड़ी सेना को हराया।
    • शिवाजी ने वर्ष 1664 में सूरत के मुगल व्यापारिक बंदरगाह को अपने कब्ज़े में ले लिया।
    • जून 1665 में शिवाजी और राजा जय सिंह प्रथम (औरंगज़ेब का प्रतिनिधित्व) के बीच पुरंदर की संधि (Treaty of Purandar) पर हस्ताक्षर किये गए।
      • इस संधि के अनुसार, मराठों को कई किले मुगलों को देने पड़े और शिवाजी, औरंगज़ेब से आगरा में मिलने के लिये सहमत हुए। शिवाजी अपने पुत्र संभाजी को भी आगरा भेजने के लिये तैयार हो गए।

शिवाजी की गिरफ्तारी:

  • जब शिवाजी वर्ष 1666 में आगरा में मुगल सम्राट से मिलने गए, तो मराठा योद्धा को लगा कि औरंगज़ेब ने उनका अपमान किया है जिससे वे दरबार से बाहर आ गए।
  • जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर बंदी बना लिया गया। शिवाजी और उनके पुत्र का आगरा से भागने की कहानी आज भी प्रामाणिक नहीं है।
  • इसके बाद वर्ष 1670 तक मराठों और मुगलों के बीच शांति बनी रही।
  • मुगलों द्वारा संभाजी को दी गई बरार की जागीर उनसे वापस ले ली गई थी।
  • इसके जवाब में शिवाजी ने चार महीने की छोटी सी अवधि में मुगलों के कई क्षेत्रों पर हमला कर उन्हें वापस ले लिया।
  • शिवाजी ने अपनी सैन्य रणनीति के माध्यम से दक्कन और पश्चिमी भारत में भूमि का एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया।
  • प्राप्त उपाधि:
    • उन्होंने छत्रपति, शाककार्ता, क्षत्रिय कुलवंत और हिंदव धर्म धारक की उपाधि धारण की।
    • शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य समय के साथ बड़ा होता गया और 18वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रमुख भारतीय शक्ति बन गया।
  • मृत्यु:
    • वर्ष 1680 में रायगढ़ में शिवाजी का निधन हो गया और रायगढ़ किले में उनका अंतिम संस्कार किया गया।

शिवाजी के अधीन कैसा प्रशासन था?

  • केंद्रीय प्रशासन:
    • इसकी स्थापना शिवाजी द्वारा प्रशासन की सुदृढ़ व्यवस्था के लिये की गई थी जो प्रशासन की दक्कन शैली से काफी प्रेरित थी।
    • अधिकांश प्रशासनिक सुधार अहमदनगर में मलिक अंबर (Malik Amber) के सुधारों से प्रेरित थे।
    • राज्य का सर्वोच्च प्रमुख राजा होता था जिसे 'अष्टप्रधान' के नाम से जाना जाने वाले आठ मंत्रियों के एक समूह द्वारा शासन कार्य में सहायता प्रदान की जाती थी।
    • पेशवा, जिसे मुख्य प्रधान के रूप में भी जाना जाता है, मूल रूप से राजा शिवाजी की सलाहकार परिषद का नेतृत्व करता था।
  • राजस्व प्रशासन:
    • शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसे रैयतवाड़ी प्रणाली से बदल दिया तथा वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की स्थिति में परिवर्तन किया, जिन्हें देशमुख, देशपांडे, पाटिल एवं कुलकर्णी के नाम से जाना जाता था।
    • शिवाजी उन मीरासदारों (Mirasdar) का कड़ाई से पर्यवेक्षण करते थे जिनके पास भूमि पर वंशानुगत अधिकार थे।
    • राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली (Kathi System) से प्रेरित थी, जिसमें भूमि के प्रत्येक टुकड़े को रॉड या काठी द्वारा मापा जाता था।
    • चौथ और सरदेशमुखी आय के अन्य स्रोत थे।
      • चौथ कुल राजस्व का 1/4 भाग था जिसे गैर-मराठा क्षेत्रों से मराठा आक्रमण से बचने के बदले में वसूला जाता था।
      • यह आय का 10 प्रतिशत होता था जो अतिरिक्त कर के रूप में था और यह प्रायः साम्राज्य के बाहर लगाया जाता था।
  • सैन्य प्रशासन:
    • शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना का गठन किया।
    • सामान्य सैनिकों को भुगतान नकद में किया जाता था, लेकिन प्रमुख और सैन्य कमांडर को जागीर अनुदान (सरंजम या मोकासा) के माध्यम से भुगतान किया जाता था।
    • मराठा सेना में इन्फैंट्री सैनिक, घुड़सवार, नौसेना आदि शामिल थे।

स्रोत: पी.आई.बी.


कृषि

लैवेंडर की खेती

प्रिलिम्स के लिये:

लैवेंडर की खेती, लैवेंडर, अरोमा मिशन।

मेन्स के लिये:

लैवेंडर की खेती और इसका महत्त्व, कृषि मूल्य निर्धारण, कृषि संसाधन।

चर्चा में क्यों?

CSIR-IIIM’s के अरोमा मिशन के तहत 'लैवेंडर की खेती (Lavender Cultivation)' बैंगनी क्रांति के एक हिस्से के रूप में रामबन ज़िले (जम्मू कश्मीर) में शुरू की जाएगी।

बैंगनी क्रांति:

  • परिचय:
    • बैंगनी या लैवेंडर क्रांति 2016 में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) अरोमा मिशन के माध्यम से शुरू की गई थी।
    • जम्मू और कश्मीर के लगभग सभी 20 ज़िलों में लैवेंडर की खेती की जाती है।
    • मिशन के तहत पहली बार लैवेंडर के पौधे मुफ्त में दिये गए, जबकि इससे पहले लैवेंडर की खेती करने वाले किसानों से 5-6 रुपए प्रति पौधा लिया जाता था।
  • उद्देश्य:
    • आयातित सुगंधित तेलों से घरेलू किस्मों की ओर बढ़ते हुए घरेलू सुगंधित फसल आधारित कृषि अर्थव्यवस्था का समर्थन करना।
  • उत्पाद:
    • मुख्य उत्पाद लैवेंडर का तेल है जो कम-से-कम 10,000 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बिकता है।
    • लैवेंडर जल जो लैवेंडर के तेल से अलग होता है, अगरबत्ती बनाने के लिये प्रयोग किया जाता है।
    • हाइड्रोसोल, जो फूलों से आसवन के बाद बनता है, साबुन और फ्रेशनर बनाने के लिये उपयोग किया जाता है।
  • महत्त्व:
    • यह वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की नीति के अनुरूप है।
    • यह नवोदित किसानों और कृषि उद्यमियों को आजीविका के साधन प्रदान करने में मदद करेगा और स्टार्ट-अप इंडिया अभियान को बढ़ावा देगा, साथ ही इस क्षेत्र में उद्यमिता की भावना को बढ़ावा देगा।
      • बैंगनी क्रांति से तकरीबन 500 से अधिक युवाओं ने लाभ उठाया और अपनी आय को कई गुना बढ़ाया था।

अरोमा मिशन:

  • उद्देश्य: अरोमा मिशन का उद्देश्य अरोमा (सुगंध) उद्योग एवं ग्रामीण रोज़गार के विकास को बढ़ावा देने के लिये कृषि, प्रसंस्करण और उत्पाद विकास में वांछित हस्तक्षेप के माध्यम से अरोमा (सुगंध) क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाना है।
    • यह मिशन ऐसे आवश्यक तेलों के लिये सुगंधित फसलों की खेती को बढ़ावा देगा, जिनकी अरोमा (सुगंध) उद्योग में काफी अधिक मांग है।
    • यह मिशन भारतीय किसानों और अरोमा (सुगंध) उद्योग को ‘मेन्थॉलिक मिंट’ जैसे कुछ अन्य आवश्यक तेलों के उत्पादन और निर्यात में वैश्विक प्रतिनिधि बनने में मदद करेगा। 
    • इसका उद्देश्य उच्च लाभ, बंजर भूमि के उपयोग और जंगली एवं पालतू जानवरों से फसलों की रक्षा करके किसानों को समृद्ध बनाना है।
  • अरोमा मिशन चरण- I और II:
    • पहले चरण के दौरान CSIR ने 6000 हेक्टेयर भूमि पर खेती करने में मदद की और देश भर के 46 आकांक्षी ज़िलों को कवर किया। इसके अलावा 44,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया गया।
    • 9 फरवरी, 2021 को CSIR ने अरोमा मिशन का दूसरा चरण शुरू किया जिसमें 45,000 से अधिक कुशल मानव संसाधनों को शामिल करने का प्रस्ताव है और इससे देश भर में 75,000 से अधिक किसान परिवारों को लाभ होगा।
  • नोडल एजेंसी:
    • नोडल प्रयोगशाला सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय और सुगंधित पौधे संस्थान (CSIR-CIMAP), लखनऊ है।
  • इच्छित परिणाम:
    • लगभग 5500 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को सुगंधित नकदी फसलों की कैप्टिव खेती के तहत लाना, विशेष रूप से पूरे देश में वर्षा सिंचित/निम्नीकृत भूमि को लक्षित करना।
    • पूरे देश में किसानों/उत्पादकों को मूल्यवर्द्धन के लिये तकनीकी और ढांँचागत सहायता प्रदान करना।
    • किसानों/उत्पादकों हेतु लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी बाय-बैक मकेनिज़्म (Buy-Back Mechanisms) को विकसित करना।
    • वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था में उनके एकीकरण के लिये आवश्यक तेलों और सुगंध सामग्री का मूल्यवर्द्धन।

स्रोत: पी.आई.बी. 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

फास्ट रेडियो बर्स्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पुणे में ‘नेशनल सेंटर ऑफ रेडियो एस्ट्रोफिज़िक्स’ (NCRA-TIFR) और अमेरिका में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के खगोलविदों ने एक ‘फास्ट रेडियो बर्स्ट’ (FRB) की मेज़बान आकाशगंगा से परमाणु हाइड्रोजन गैस के वितरण का मानचित्रण करने हेतु ‘विशालकाय मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप’ (GMRT) का उपयोग किया।

‘फास्ट रेडियो बर्स्ट’ क्या है?

  • पहले ‘फास्ट रेडियो बर्स्ट’ को वर्ष 2007 में खोजा गया था और तभी से वैज्ञानिक इसके मूल स्रोत को खोजने की दिशा में काम कर रहे हैं।
  • FRB रेडियो तरंगों के चमकदार विस्फोट होते हैं (रेडियो तरंगें बदलते चुंबकीय क्षेत्रों के साथ खगोलीय पिंडों द्वारा उत्पन्न की जाती हैं) जिनकी अवधि मिलीसेकंड-स्केल में होती है, जिसके कारण उनका पता लगाना और आकाश में उनकी स्थिति निर्धारित करना मुश्किल होता है।
  • ये असाधारण घटनाएँ एक सेकंड के हज़ारवें हिस्से में उतनी ही ऊर्जा उत्पन्न करती हैं जितनी कि सूर्य एक वर्ष में करता है। 
  • यह पता लगाना कि ये विस्फोट कहाँ से और विशेष रूप से किस आकाशगंगा से उत्पन्न होते हैं, इसे निर्धारित करने में यह बात महत्त्वपूर्ण है कि किस प्रकार की खगोलीय घटनाएंँ ऊर्जा की इतनी तीव्र चमक को उत्पन्न करती हैं।
  • सबसे प्रसिद्ध रेडियो बर्स्ट में से एक FRB20180916B है।
    • FRB को वर्ष 2018 में खोजा गया और यह हमसे केवल 500 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर एक अन्य आकाशगंगा में है।
    • FRB अब तक का सबसे नज़दीकी है और इसका एक बर्स्ट पैटर्न है जिसका हर 16 दिनों में दोहराव होता है जिसमें चार दिन बर्स्ट और 12 दिन इसके सापेक्षित रूप से शांत होने में लगते हैं। यह पूर्वानुमेयता (Predictability) इसे शोधकर्त्ताओंके अध्ययन हेतु एक आदर्श वस्तु बनाती है।

अध्ययन के महत्त्वपूर्ण बिंदु: 

  • FRB (FRB20180916B) मेज़बान आकाशगंगा का हाल ही में विलय हुआ है और इस विलय की घटना के कारण FRB सबसे बड़े पैमाने पर बनने वाला तारा है।
  • मेज़बान आकाशगंगा में निहित परमाणु हाइड्रोजन गैस पास की आकाशगंगाओं की तुलना में दस गुना अधिक थी लेकिन इतनी अधिक परमाणु हाइड्रोजन गैस के बावजूद इसमें तारों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी। इस प्रकार यह इंगित करता है कि हाल ही में दो आकाशगंगाओं के बीच संभावित विलय के बाद अधिशेष हाइड्रोजन गैस को प्राप्त/अधिग्रहण किया गया था।

जायंट मीटर-वेव रेडियो टेलीस्कोप (GMRT):

  • GMRT 45 मीटर व्यास के पूरी तरह से संचालित तीस परवलयिक रेडियो दूरबीनों की एक शृंखला है। यह टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (NCRA-TIFR) के नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिज़िक्स द्वारा संचालित है।
  • GMRT एक स्वदेशी परियोजना है। इसका डिज़ाइन 'स्मार्ट' अवधारणा पर आधारित है।
  • यह रेडियो स्पेक्ट्रम के मीटर तरंगदैर्ध्य भाग पर कार्य करता है क्योंकि भारत में स्पेक्ट्रम के इस हिस्से में मानव निर्मित रेडियो हस्तक्षेप काफी कम है और कई उत्कृष्ट खगोल भौतिकी समस्याएँ हैं जिनका मीटर तरंगदैर्ध्य पर सबसे अच्छा अध्ययन किया जाता है।
  •  GMRT पुणे की अवस्थिति हेतु कई महत्त्वपूर्ण मानदंडों को पूरा करता है जैसे कम ध्वनि वाले मानव निर्मित रेडियो, अच्छे संचार की उपलब्धता, औद्योगिक, शैक्षिक एवं अन्य बुनियादी ढाँचे।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यूक्रेन के विद्रोही इलाकों को स्वतंत्र क्षेत्रों के रूप में मान्यता

प्रिलिम्स के लिये:

यूक्रेन और उसके पड़ोसी, यूक्रेन संकट, रूस, डोनेट्स्क ( Donetsk), लुहान्स्क (Luhansk), मिन्स्क (Minsk) समझौते, ओएससीई (OSCE), नाटो।

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत के हित पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, यूक्रेन संकट तथा इसके भू-राजनीतिक प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की आशंका से उत्पन्न तनाव को समाप्त करने के लिये पश्चिम देशों की ओर से किये गए आह्वान के बावजूद रूस ने पूर्वी यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्रों- डोनेट्स्क और लुहान्स्क को स्वतंत्र क्षेत्रों के रूप में मान्यता दी है।

  • इसने उन्हें सैन्य सहायता प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त किया, यह पश्चिम को एक सीधी चुनौती है जो यह आशंका पैदा करता है कि रूस यूक्रेन पर आक्रमण कर सकता है।
  • पिछले कुछ हफ्तों में तनाव चरम पर है क्योंकि रूस ने शीत युद्ध के बाद से सबसे खराब संकटों में से एक के रूप में यूक्रेन की सीमाओं पर 1,50,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है।
  • इस घोषणा ने मिन्स्क में हस्ताक्षरित वर्ष 2015 के शांति समझौते को तोड़ दिया, जिसमें यूक्रेनी अधिकारियों को विद्रोही क्षेत्रों में व्यापक स्व-शासन की पेशकश करने की आवश्यकता थी।

रूस का रुख: 

  • इसने मौज़ूदा संकट के लिये उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) को ज़िम्मेदार ठहराया और अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन को रूस के लिये एक संभावित खतरा बताया।
  • आरोप लगाया कि यूक्रेन को रूस की ऐतिहासिक भूमि विरासत में मिली थी और सोवियत संघ के पतन के बाद पश्चिम द्वारा रूस को शामिल करने के लिये इस्तेमाल किया गया था।
  • वह चाहता है कि पश्चिमी देश यह गारंटी दें कि नाटो यूक्रेन और अन्य पूर्व सोवियत देशों को सदस्य के रूप में शामिल होने की अनुमति नहीं देगा।
  • इसने गठबंधन से यूक्रेन में हथियारों की तैनाती रोकने और पूर्वी यूरोप से अपनी सेना वापस लेने की भी मांग की है।
    • पश्चिमी देशों ने इस मांग को खारिज कर दिया है।

Ukrain

संकट की पृष्ठभूमि: 

  • यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों के सांस्कृतिक, भाषायी और पारिवारिक संबंध साझा करते हैं।
    • रूस और यूक्रेन में कई समूहों के लिये देशों की साझा विरासत एक भावनात्मक मुद्दा है जिसका चुनावी और सैन्य उद्देश्यों के लिये प्रयोग किया जाता है।
  • सोवियत संघ के हिस्से के रूप में यूक्रेन रूस के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था और रणनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण था।
  • पूर्वी यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र) वर्ष 2014 से रूसी समर्थक अलगाववादी आंदोलन का सामना कर रहा है। यह आंदोलन क्रीमिया में रूसी सैन्य हस्तक्षेप के बाद तब शुरू हुआ जब यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप (Crimean Peninsula) पर कब्ज़ा कर लिया गया।
  • अप्रैल माह में रूस समर्थक विद्रोहियों ने पूर्वी यूक्रेन क्षेत्र पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया (रूस ने उन्हें हाइब्रिड युद्ध के माध्यम से समर्थन दिया) और मई 2014 में, डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों में विद्रोहियों ने यूक्रेन से स्वतंत्रता की घोषणा करने हेतु एक जनमत संग्रह आयोजित किया।
  • तब से यूक्रेन के भीतर मुख्य रूप से रूसी भाषी क्षेत्रों (जहाँ 70% से अधिक लोग रूसी बोलते हैं) में विद्रोहियों और यूक्रेनी बलों के बीच गोलाबारी और संघर्ष जारी है, जिसमें लगभग 14,000 से अधिक लोगों की जान चली गई, साथ ही इसके कारण लगभग 1.5 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  • अक्तूबर 2021 के बाद तब से गोलाबारी काफी तेज़ हो गई है, जब रूस ने यूक्रेन के साथ सीमाओं पर सैनिकों को तैनात करना शुरू किया था।
  • यदि डोनबास क्षेत्र में स्थिति बिगड़ती है, तो युद्ध की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता है। युद्ध के प्रकोप को रोकने का एक तरीका यह होगा कि ‘मिन्स्क समझौतों’ को तुरंत लागू किया जाए, जैसा कि रूस ने सुझाव दिया है।

मिन्स्क समझौते:

  • दो मिन्स्क समझौते हैं- मिन्स्क-1 और मिन्स्क-2, जिसका नाम बेलारूस की राजधानी मिन्स्क के नाम पर रखा गया है, जहाँ इस संबंध में वार्ता आयोजित हुई थी।
  • मिन्स्क-1:
    • मिन्स्क-1 को सितंबर 2014 में यूक्रेन त्रिपक्षीय संपर्क समूह [यानी यूक्रेन, रूस और यूरोप सुरक्षा एवं सहयोग संगठन (OSCE)] द्वारा तथाकथित ‘नॉरमैंडी प्रारूप’ में फ्राँस और जर्मनी की मध्यस्थता के साथ लिखा गया था।
    • मिन्स्क-1 के तहत यूक्रेन और रूस समर्थित विद्रोहियों ने 12-सूत्रीय युद्धविराम समझौते पर सहमति व्यक्त की, जिसमें कैदियों का आदान-प्रदान, मानवीय सहायता और भारी हथियारों की वापसी शामिल थी।
      • हालाँकि दोनों पक्षों द्वारा किये गए उल्लंघन के कारण समझौता लंबे समय तक नहीं चल सका।
  • मिन्स्क-2
    • जैसे ही विद्रोही यूक्रेन में आगे बढ़े, फरवरी 2015 में, रूस, यूक्रेन, OSCE के प्रतिनिधियों और डोनेट्स्क एवं लुहान्स्क के नेताओं ने एक नए 13-सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसे अब मिन्स्क-2 समझौते के रूप में जाना जाता है।
    • इस नए समझौते में यूक्रेनी कानून के अनुसार तत्काल युद्धविराम, भारी हथियारों की वापसी, OSCE निगरानी, डोनेट्स्क और लुहान्स्क हेतु अंतरिम स्वशासन पर वार्ता के प्रावधान थे।
    • इसमें संसद द्वारा विशेष दर्जे की स्वीकृति, लड़ाकों के लिये क्षमा एवं माफी, बंधकों एवं कैदियों के आदान-प्रदान, मानवीय सहायता आदि से संबंधित प्रावधान भी थे।
      • हालाँकि इन प्रावधानों को लागू नहीं किया गया है, क्योंकि लोकप्रिय रूप से इस 'मिन्स्क’ समझौते को  एक ‘पहेली' के रूप में जाना जाता है। इसका अर्थ है कि यूक्रेन और रूस के बीच समझौते की विरोधाभासी व्याख्याएँ हैं।

इस मुद्दे पर विभिन्न राष्ट्रों का रुख: 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका पहले ही दो अलग-अलग क्षेत्रों में अमेरिकी व्यक्तियों द्वारा  "नए निवेश, व्यापार, और वित्तपोषण’’ पर प्रतिबंधों की घोषणा कर चुका है।
  • जापान के अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों में शामिल होने की संभावना है, जबकि फ्रांँसीसी अधिकारियों के हवाले से रिपोर्टों में कहा गया है कि यूरोपीय संघ (European Union- EU) भी रूस के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई को लेकर चर्चा में है।
    • यूरोपीय संघ ने "अंतर्राष्ट्रीय कानून के साथ-साथ मिन्स्क समझौतों के घोर उल्लंघन" पर रूस की निंदा की है।
  • यूनाइटेड किंगडम ने और अधिक प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है। ऑस्ट्रेलिया ने भी रूस के कार्यों को अस्वीकार्य तथा अनुचित बताया है।

भारत का रुख: 

  • भारत पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप की निंदा में शामिल नहीं हुआ और इस मुद्दे पर अपना तटस्थ रुख रखा।
  • नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करके रूस का समर्थन किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की गई थी।
  • हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यह भी सुझाव दिया कि "शांत और रचनात्मक कूटनीति" समय की आवश्यकता है और तनाव को बढ़ाने वाले किसी भी कदम से बचना चाहिये।
    • रूस ने भारत के रुख का स्वागत किया है।

आगे की राह 

  • स्थिति का एक व्यावहारिक समाधान मिन्स्क शांति प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना है, अत: पश्चिम (अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों) को दोनों पक्षों से बातचीत फिर से शुरू करने और सीमा पर सापेक्ष शांति बहाल करने हेतु मिन्स्क शांति समझौते (Minsk Peace Process) के अनुसार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
  • व्यवहार में  मिन्स्क समझौता आदर्श स्थिति से काफी दूर की बात है। यह एक आधार रेखा हो सकती है जिससे मौजूदा संकट का एक राजनयिक समाधान खोजा जा सकता है तथा इसे पुनर्जीवित करना 'एकमात्र मार्ग हो सकता है जिसका पालन करके शांति को स्थापित किया जा सकता है' जैसा कि फ्रांँसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा है।
  • यूक्रेन के लिये यह अपनी सीमाओं पर नियंत्रण हासिल करने तथा रूसी आक्रमण के खतरे को प्रतिसंतुलित करने में मदद कर सकता है, जबकि रूस के लिये यह सुनिश्चित करने का एक तरीका हो सकता है कि यूक्रेन कभी नाटो का हिस्सा न बने और यह सुनिश्चित करे कि रूसी भाषा व संस्कृति यूक्रेन में एक नए संघीय संविधान के तहत संरक्षित हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

मौलिक कर्त्तव्यों को लागू करना

प्रिलिम्स के लिये:

मौलिक कर्त्तव्य।

मेन्स के लिये:

मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व, स्वर्ण सिंह समिति, मौलिक कर्त्तव्यों को लागू करना।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यापक, अच्छी तरह से परिभाषित कानूनों के माध्यम से देशभक्ति और राष्ट्र की एकता सहित नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों को लागू करने के लिये एक याचिका का जवाब देने हेतु केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया।

  • मौलिक कर्त्तव्यों को संविधान के अनुच्छेद 51A (भाग IVA) के तहत निर्दिष्ट किया गया है, ये देश के आदर्शों को बनाए रखने और इसके विकास में योगदान करने का प्रयास करते हैं।

मौलिक कर्त्तव्य:

  • मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान (तत्कालीन सोवियत संघ) से प्रेरित है।
  • इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।
  • मूल रूप से मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 10 थी, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्तव्य जोड़ा गया था।
  • राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों की तरह, मौलिक कर्तव्य भी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
  • मौलिक कर्त्तव्यों की सूची:
    • संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
    •  स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
    •  भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
    •  देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
    •  भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
    •  हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
    •  प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं, की रक्षा और संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
    •  वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
    •  सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
    •  व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
    • छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया)।

मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व

  • अधिकार और कर्तव्य परस्पर संबंधित हैं।
    • मौलिक कर्तव्य देश के नागरिकों के लिये एक प्रकार से सचेतक का कार्य करते हैं, यद्यपि संविधान ने उन्हें विशेष रूप से कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं, इसके लिये नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण एवं लोकतांत्रिक व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
  • जो राष्ट्र का अपमान करते हैं, उन लोगों की असामाजिक गतिविधियों जैसे- झंडा जलाना, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति भंग करना आदि के खिलाफ ये कर्तव्य चेतावनी के रूप में काम करते हैं।
  • ये अनुशासन और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। ये केवल दर्शकों के बजाय नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से राष्ट्रीय लक्ष्यों को साकार करने में मदद करते हैं।
  • ये कानून की संवैधानिकता का निर्धारण करने में न्यायालय की सहायता करते हैं। उदाहरण के लिये विधायिकाओं द्वारा पारित कोई भी कानून, जब कानून की संवैधानिक वैधता के लिये न्यायालय में ले जाया जाता है और यदि वह किसी मौलिक कर्तव्य को बढ़ावा दे रहा है, तो ऐसे कानून को उचित माना जाएगा।

मौलिक कर्तव्यों को कानूनी रूप से लागू करने की आवश्यकता: 

  • प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति के 'कार्तव्य' पर बल दिया जाता रहा है।
    • ये शास्त्र समाज, देश और विशेष रूप से अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यों पर बल देते हैं।
  • गीता और रामायण लोगों को अपने अधिकारों की परवाह किये बिना कर्तव्यों का पालन करने का आदेश देते हैं।
  • तत्कालीन सोवियत संघ के संविधान में अधिकारों और कर्तव्यों को समान स्तर पर रखा गया था।
    • कम-से-कम कुछ मौलिक कर्तव्यों को कानूनी रूप से लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिये भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखने तथा भारत की रक्षा, राष्ट्रवाद की भावना का प्रसार करने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिये देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने संबंधी मौलिक कर्तव्य।
    • चीन के एक महाशक्ति के रूप में उभरने के बाद ये मौलिक कर्तव्य और भी महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।
  • नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों पर वर्मा समिति (1999) ने कुछ मौलिक कर्तव्यों के कार्यान्वयन हेतु कानूनी प्रावधानों का समर्थन किया। समिति द्वारा प्रस्तावित कुछ प्रावधान निम्नलिखित हैं:
    •  राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज, भारत के संविधान और राष्ट्रगान का अनादर नहीं कर सकता है।
    • नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम (1955) जाति और धर्म से संबंधित किसी भी अपराध के मामले में दंड का प्रावधान करता है।
  • याचिका में तर्क दिया गया था कि मौलिक कर्तव्यों का पालन न करने पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) 19 (भाषण की स्वतंत्रता के संबंध में कुछ अधिकारों का संरक्षण) और 21 (जीवन का अधिकार) के तहत प्रदान किये गए गारंटीकृत मौलिक अधिकारों पर सीधा असर पड़ता है।
    • उदाहरण के लिये भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में प्रदर्शनकारियों द्वारा विरोध की नई अवैध प्रवृत्ति के कारण मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की आवश्यकता को महसूस किया जाता है।

मौलिक कर्तव्यों पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख: 

  • रंगनाथ मिश्रा निर्णय (2003) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मौलिक कर्तव्यों को न केवल कानूनी प्रतिबंधों से बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों द्वारा भी लागू किया जाना चाहिये।
  • एम्स छात्र संघ बनाम एम्स मामले (2001) में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों की तरह समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
    • हालांँकि मौलिक कर्तव्यों को मौलिक अधिकारों की तरह लागू नहीं किया जा सकता है लेकिन उन्हें भाग IV A में कर्तव्यों के रूप में नज़रअंदाज भी नहीं किया जा सकता है।

आगे की राह

  • मौलिक कर्तव्यों के "उचित संवेदीकरण, पूर्ण संचालन और प्रवर्तनीयता" हेतु एक समान नीति की आवश्यकता है जो "नागरिकों को ज़िम्मेदार बनाने में काफी मददगार साबित होगी"।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, भारतीय भाषाओं की रक्षा हेतु पहलें, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, आठवीं अनुसूची।

मेन्स के लिये:

शिक्षा, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) प्रतिवर्ष 21 फरवरी को मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ का आयोजन करता है।

  • वर्ष 2022 के लिये इसकी थीम है: "बहुभाषी शिक्षा हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियाँ और अवसर।" यह थीम बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षण एवं सीखने की क्षमताओं के विकास का समर्थन करने हेतु प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर केंद्रित है।
  • दुनिया में 7,000 से अधिक भाषाएँ हैं, जबकि अकेले भारत में लगभग 22 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाएँ, 1635 मातृभाषाएँ और 234 पहचान योग्य मातृभाषाएँ हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’

  • यूनेस्को द्वारा इसकी घोषणा 17 नवंबर, 1999 को की गई थी और वर्ष 2000 से संपूर्ण विश्व में इस दिवस का आयोजन किया जा रहा है।
  • यह दिन बांग्लादेश द्वारा अपनी मातृभाषा बांग्ला की रक्षा के लिये किये गए लंबे संघर्ष को भी रेखांकित करता है।
  • 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का विचार कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा सुझाया गया था।
    • उन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में वर्ष 1952 में हुई हत्याओं को याद करने के लिये उक्त तिथि प्रस्तावित की थी।
  • इस पहल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की विविध संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा करना तथा मातृभाषाओं का संरक्षण करना एवं उन्हें बढ़ावा देना है।
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, प्रत्येक दो हफ्ते में एक भाषा लुप्त हो जाती है और मानव सभ्यता अपनी संपूर्ण सांस्कृतिक एवं बौद्धिक विरासत खो रही है।
    • वैश्वीकरण के कारण बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिये विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने का एक प्रमुख कारण है।

भाषाओं के संरक्षण के लिये वैश्विक प्रयास:

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2022 से वर्ष 2032 के बीच की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया गया है।
    • इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (IYIL) के रूप में घोषित किया था।
  • वर्ष 2018 में चांग्शा (चीन) में यूनेस्को द्वारा की गई येलु उद्घोषणा (Yuelu Proclamation) भाषायी संसाधनों और विविधता की रक्षा के संदर्भ में दुनिया भर के देशों व क्षेत्रों के प्रयासों का मार्गदर्शन करने में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है।

मातृभाषाओं की रक्षा के लिये भारत की पहल:

  • हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक मुख्य पहल  है।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology-CSTT) क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा देने हेतु प्रकाशन अनुदान प्रदान कर रहा है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिये की गई थी।
  • केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL), मैसूर के माध्यम से राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (National Translation Mission- NTM) का क्रियान्वयन किया जा रहा है, जिसके तहत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में निर्धारित विभिन्न विषयों की पाठ्य पुस्तकों का आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
  • संकटग्रस्त भाषाओं के संरक्षण हेतुलुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना’
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने का प्रयास करता है और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं हेतु केंद्र की स्थापना से संबंधित योजना के तहत कुल नौ केंद्रीय विश्वविद्यालयों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • भारत सरकार की अन्य पहलों में भारतवाणी परियोजना और भारतीय भाषा विश्वविद्यालय (BBV) की स्थापना का प्रस्ताव शामिल है।
  • हाल ही में केरल राज्य सरकार की एक पहल नमथ बसई कार्यक्रम (Namath Basai Programme) आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को स्थानीय भाषाओं में शिक्षित करना बहुत फायदेमंद साबित हुई है।
  • मातृभाषा की सुरक्षा के लिये गूगल की परियोजना नवलेखा (Navlekha) प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है। इस परियोजना का उद्देश्य भारतीय स्थानीय भाषाओं में ऑनलाइन सामग्री की उपलब्धता को बढ़ाना है।

संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:

  • संविधान का अनुच्छेद 29 (Article 29- अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण) सभी नागरिकों को अपनी भाषा के संरक्षण का अधिकार देता है और भाषा के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
  • अनुच्छेद 120 (Article 120- संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा) के अनुसार, संसद की कार्यवाहियों के लिये हिंदी या अंग्रेज़ी का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन संसद सदस्यों को अपनी मातृभाषा में स्वयं के विचार व्यक्त करने का अधिकार है।
  • भारतीय संविधान का भाग XVII (अनुच्छेद 343 से 351) आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 350A (Article 350A- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा) के अनुसार, देश के प्रत्येक राज्य और प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी का प्रयास होगा कि वह भाषायी अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक चरण में मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करें।
    • अनुच्छेद 350B (भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारी): राष्ट्रपति को भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये भाषायी अल्पसंख्यकों हेतु एक विशेष अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान है।
      • राष्ट्रपति को ऐसी सभी रिपोर्ट संसद के सामने रखने तथा संबंधित राज्य सरकार को भेजने का प्रावधान।
  • आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ यथा- असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी शामिल हैं।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act), 2009 के अनुसार शिक्षा का माध्यम, जहाँ तक व्यावहारिक हो बच्चे की मातृभाषा ही होनी चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

कुष्ठ रोग

प्रिलिम्स के लिये:

कुष्ठ रोग और उससे संबंधित पहल, कोविड-19 महामारी, विश्व बैंक, महात्मा गांधी

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, कुष्ठ रोग, कोविड-19 महामारी

चर्चा में क्यों?

‘कुष्ठ रोग मिशन ट्रस्ट इंडिया’ की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी और ‘सोशल डिस्टेंसिंग तथा लॉकडाउन जैसे उपायों के कारण अप्रैल और सितंबर 2020 के बीच चार राज्यों– आंध्र प्रदेश, ओडिशा, बिहार व मध्य प्रदेश में कुष्ठ रोग के सक्रिय मामलों की जाँच में 62.5% की गिरावट आई है।

  • महामारी की दूसरी लहर ने कुष्ठ रोग जाँच अभियान पर लगभग रोक लगा दी है और संस्थागत व्यवस्था में स्वास्थ्य देखभाल एवं विकलांगता प्रबंधन सेवाएँ प्राप्त करने की गुंजाइश काफी कम बची है।
  • इसके अलावा महामारी ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि 'संवेदनशील आबादी' एक समरूप इकाई नहीं है। उनकी भेद्यता कभी-कभी विभिन्न सामाजिक चरों जैसे- गरीबी, विकलांगता, कलंक, बहिष्करण आदि का एक जटिल प्रतिच्छेदन होती है।

Leprosy

कुष्ठ रोग:

  • जीवाणु संक्रमण: कुष्ठ रोग एक पुराना, प्रगतिशील जीवाणु संक्रमण है। यह ‘माइकोबैक्टीरियम लेप्रे’ नामक जीवाणु के कारण होता है, जो एक ‘एसिड-फास्ट रॉड’ के आकार का बेसिलस है।
    • इसे हैनसेन डिजीज़ के नाम से भी जाना जाता है।
  • सबसे पुराने रोगों में से एक: यह इतिहास में सबसे पुराने रोगों में से एक है, जो अनादि काल से मानव को पीड़ित करता रहा है।
    • कुष्ठ रोग का लिखित विवरण लगभग 600 ईपू. के दस्तावेज़ों में मिलता है।
    • इस रोग की जानकारी हज़ारों वर्ष पहले चीन, मिस्र और भारत की सबसे पुरानी सभ्यताओं में देखने को मिलती है।
  • संक्रमण के क्षेत्र: त्वचा, परिधीय तंत्रिकाएँ, ऊपरी श्वसन पथ और नाक।
    • यह एक ऐसी बीमारी है, जो पीड़ित व्यक्ति को पूरी तरह से समाज से अलग कर देती है।
  • संचरण का तरीका: मुख्य रूप से प्रभावित व्यक्तियों की साँस में मौजूद ड्रापलेट्स/बूंदों (Droplets) से। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है।
  • लक्षण:
    • त्वचा पर लाल धब्बे।
    • त्वचा पर घाव का होना 
    • हाथ और पैरों में सुन्नपन।
    • पैरों के तलवों में छाले।
    • मांसपेशियों की कमज़ोरी और वज़न का अत्यधिक घटना।
  • लॉंग इन्क्यूबेशन पीरियड्स: कुष्ठ रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया के संपर्क में आने के बाद लक्षण दिखने में आमतौर पर लगभग 3-5 साल लगते हैं।
    • लॉंग इन्क्यूबेशन पीरियड्स/लंबी ऊष्मायन अवधि डॉक्टरों के लिये यह निर्धारित करना मुश्किल बना देती है कि व्यक्ति कब और कहांँ संक्रमित हुआ।
    • यदि समय पर इलाज नहीं किया जाता है तो कुष्ठ रोग अक्षमता, विकृति, हाथों और पैरों में स्थायी तंत्रिका क्षति तथा यहांँ तक कि शरीर को संवेदहीन बना सकता है।
  • इलाज: कुष्ठ रोग के इलाज में मल्टी ड्रग थेरेपी ( Multi-Drug Therapy- MDT) काफी कारगर है।

कुष्ठ रोग के उन्मूलन हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम:

  • वर्ष 1955 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था। 1970 के दशक में ही मल्टी ड्रग थेरेपी के रूप में एक निश्चित इलाज की पहचान की गई थी।
  • वर्ष 1993-94 से विश्व बैंक समर्थित राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन परियोजना का पहला चरण  शुरू किया गया। 
  •  राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 में भारत सरकार ने कुष्ठ रोग के उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया जिसमें वर्ष 2005 तक कुष्ठ रोग के मामलों की संख्या को कम करके  <1/10,000 जनसंख्या तक सीमित करना था।
  • राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम ने दिसंबर, 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में कुष्ठ रोग के उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त किया जिसमें  प्रति 10,000 लोगों पर एक से कम मामलों की दर को कुष्ठ उन्मूलन के रूप में परिभाषित किया गया।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन 2016-2020 हेतु वैश्विक कुष्ठ रणनीति दस्तावेज़ देशों के भीतर अंतर-क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिये कहता है।
  • 2017 में जागरूकता को बढ़ावा देने और कलंक तथा भेदभाव के मुद्दों को संबोधित करने के लिये स्पर्श (SPARSH ) कुष्ठ जागरूकता अभियान शुरू किया गया था।
    • अभियान में शामिल उपायों जैसे- संपर्क अनुरेखण, परीक्षा, उपचार और कीमोप्रोफिलैक्सिस (chemoprophylaxis) से कुष्ठ मामलों की संख्या में कमी आने की उम्मीद है।
    • महिलाओं, बच्चों और विकलांग लोगों पर विशेष ज़ोर देने की उम्मीद है।
    • रोगियों को एमडीटी देना जारी रखने के अलावा नए निवारक दृष्टिकोण जैसे कि किमोप्रोफिलैक्सिस (Chemoprophylaxis) और इम्यूनोप्रोफिलैक्सिस (Immunoprophylaxis) को संचरण की शृंखला को तोड़ने और शून्य रोग की स्थिति तक पहुँचने पर विचार किया जा रहा है।
  • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों और केंद्र सरकार को कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने का निर्देश दिया।
    • अदालत ने कहा कि अभियान में ठीक हुए लोगों की सकारात्मक तस्वीरों और कहानियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
  • वर्ष 2019 में लोकसभा ने कुष्ठ रोग को हटाने के लिये एक विधेयक पारित किया।
  • 2 अक्तूबर 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में एनएलईपी (NLEP) ने अक्तूबर 2019 तक विकलांगता के ग्रेड को प्रति मिलियन लोगों पर एक मामले से कम करने के लिये व्यापक योजना तैयार की है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

नॉन-फंजिबल टोकन

प्रिलिम्स के लिये:

नॉन-फंजिबल टोकन (NFTs), क्रिप्टोकरेंसी, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी।.

मेन्स के लिये:

नॉन-फंजिबल टोकन (NFTs) का कार्य और संबंधित जोखिम, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी (लाभ तथा चुनौतियांँ)।

चर्चा में क्यों? 

  • हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में अपूरणीय टोकन/नॉन-फंजिबल टोकन (Non-Fungible Tokens- NFTs) की बिक्री 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ी क्योंकि क्रिप्टो संपत्ति की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई। हालांँकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एनएफटी में हुई वृद्धि क्षणिक है जिसकी विक्री में कभी भी गिरावट देखने को मिल सकती है।

प्रमुख बिंदु 

नॉन-फंजिबल टोकन:

  • नॉन-फंजिबल टोकन के बारे में: 
    • कोई भी चीज़ जिसे डिजिटल रूप में बदला जा सकता है, वह NFT हो सकती है।
    • ड्रॉइंग, फोटो, वीडियो, जीआईएफ, संगीत, इन-गेम आइटम, सेल्फी और यहांँ तक कि एक ट्वीट सभी को NFT में परिवर्तित किया जा सकता है, जिसे बाद में क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करके ऑनलाइन कारोबार किया जा सकता है।
  • NFT का कार्य: यदि कोई अपनी डिजिटल संपत्ति को NFT में परिवर्तित करता है, तो उसे ब्लॉकचेन द्वारा संचालित स्वामित्व का प्रमाण प्राप्त होगा।
    • NFT की खरीद और विक्री हेतु एक क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट और एक एनएफटी मार्केटप्लेस की आवश्यकता होती है।
      • OpenSea.io, Rarible, Foundation कुछ एनएफटी मार्केटप्लेस हैं।
    • एनएफटी अन्य डिजिटल रूपों से इस मायने में अलग हैं और वे ब्लॉकचेन तकनीक द्वारा समर्थित हैं।
    • NFT में एक समय में केवल एक ही मालिक हो सकता है।
    • अनन्य स्वामित्व के अलावा, एनएफटी मालिक अपनी कलाकृति पर डिजिटल हस्ताक्षर भी कर सकते हैं और अपने एनएफटी मेटाडेटा में विशिष्ट जानकारी संग्रहीत कर सकते हैं।
    • इसे केवल वह व्यक्ति देख सकेगा जिसने NFT खरीदी है।
  • एनएफटी (NFT) का इतिहास: टेरा न्यूलियस एथेरियम ब्लॉकचेन पर आधारित पहला NFT (2015 में शुरू) था, हालाँकि इस परियोजना का एकमात्र विचार एक छोटे संदेश को अनुकूलित करने की अनुमति देना था जिसे बाद में ब्लॉकचेन पर रिकॉर्ड किया गया था।
    • फिर 2017 में क्यूरियो कार्ड्स ( Curio Cards), क्रिप्टोपंक्स (CryptoPunks) और क्रिप्टो कैट्स (CryptoCats) का प्रयोग किया गया, इससे पहले NFTS धीरे-धीरे जन जागरूकता के साथ उपयोग में आने लगे, फिर वर्ष 2021 की शुरुआत में मुख्यधारा को अपनाने हेतु इसका विस्तार किया गया।

 NFT तथा क्रिप्टोकरेंसी:

  • ब्लॉकचेन पर आधारित NFTs और क्रिप्टोकरेंसी दोनों एक दूसरे से अलग हैं।
  •  क्रिप्टोकरेंसी एक परिवर्तनीय मुद्रा है, जिसका अर्थ है कि यह विनिमय करने योग्य है। 
    • उदाहरण के लिये यदि आप एक क्रिप्टो टोकन रखते हैं, तो उसे एक एथेरियम कहेंगे, आपके द्वारा धारित अगला एथेरियम भी उसी मूल्य का होगा।
  • हालाँकि NFTs अपूरणीय हैं जिसका अर्थ है कि एक NFTs का मूल्य दूसरे के बराबर नहीं होता है।
    • अपूरणीय का अर्थ है कि NFTs परस्पर विनिमेय नहीं हैं।
    • हर कला दूसरों से अलग होती है, जो इसे अपूरणीय और अद्वितीय बनाती है।

NFTs की खरीद से जुड़े ज़ोखिम:

  • धोखाधड़ी का जोखिम: हाल के दिनों में NFT घोटालों की कई घटनाएँ सामने आई हैं जिनमें नकली बाज़ारों का उदय, असत्यापित विक्रेता अक्सर वास्तविक कलाकारों का प्रतिरूपण करते हैं और उनकी कलाकृतियों की प्रतियाँ आधी कीमत पर बेचते हैं।
  • पर्यावरणीय जोखिम: लेन-देन को मान्यता प्रदान करने हेतु क्रिप्टो माइनिंग किया जाता है, जिसके लिये उच्च क्षमता वाले कंप्यूटर की आवश्यकता होती है जो अति उच्च क्षमता पर चलते हैं और अंततः पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।

ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी क्या है?

  • ब्लॉकचेन एक प्रकार का साझा डेटाबेस है जो एक सामान्य डेटाबेस से भिन्न होता है, एक सामान्य डेटाबेस डेटा को प्रत्यक्ष तौर पर संग्रहीत करता है; जबकि ब्लॉकचेन के तहत डेटा को ब्लॉक में संगृहीत किया जाता है, जो क्रिप्टोग्राफी के माध्यम से एक साथ जुड़े होते हैं।
  • जैसे ही नया डेटा आता है, इसे एक नए ब्लॉक में दर्ज कर लिया जाता है। एक बार जब ब्लॉक डेटा से भर जाता है, तो इसे पिछले ब्लॉक से संलग्न कर दिया जाता है, जो डेटा का कालानुक्रमिक क्रम में एक साथ लिंक बना देता है।
  • ब्लॉकचेन पर विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को एक साथ संग्रहीत किया जा सकता है, लेकिन प्रायः इसका उपयोग लेनदेन को रिकॉर्ड करने हेतु एक ‘खाता बही’ के रूप में किया गया है।
  • बिटकॉइन के मामले में ब्लॉकचेन का उपयोग विकेंद्रीकृत तरीके से किया जाता है ताकि इस पर किसी एक व्यक्ति या समूह का नियंत्रण न हो, बल्कि सभी उपयोगकर्त्ताओं को सामूहिक रूप से नियंत्रण प्राप्त हो।
  • विकेंद्रीकृत ब्लॉकचेन अपरिवर्तनीय हैं, जिसका अर्थ है कि दर्ज किये गए डेटा को बदला नहीं जा सकता है। बिटकॉइन के लिहाज़ से इसका अर्थ है कि लेन-देन स्थायी रूप से रिकॉर्ड किये जाते हैं और इन्हें बाद में बदला नहीं जा सकता है।

Blockchain

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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