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डेली न्यूज़

  • 21 Feb, 2022
  • 53 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

स्वामित्व योजना, भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी

मेन्स के लिये:

स्वामित्व योजना का ग्रामीण भारत के विकास में योगदान 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भू-स्थानिक डेटा (Geospatial Data) जारी करने की पहली वर्षगांँठ के अवसर पर सरकार द्वारा सूचित किया गया है कि स्वामित्व योजना (SVAMITVA Scheme) के तहत ड्रोन के साथ भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी (Geospatial Technology) के प्रयोग से सभी 6 लाख से अधिक भारतीय गांँवों का सर्वेक्षण किया जाएगा। साथ ही 100 भारतीय शहरों के लिये अखिल भारतीय त्रि-आयामी (3डी) मानचित्र तैयार किया जाएगा 

  • भू-स्थानिक नीति की घोषणा जल्द ही की जाएगी क्योंकि दिशा-निर्देशों के उदारीकरण के परिणामस्वरूप एक वर्ष के भीतर बहुत ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं।
  • स्वामित्व योजना ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों में संपत्ति का स्पष्ट स्वामित्व सुनिश्चित करने  की दिशा में एक सुधारात्मक कदम है।

प्रमुख बिंदु 

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी:

  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी में भौगोलिक मानचित्रण और विश्लेषण हेतु भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information System-GPS), ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (Global Positioning System- GPS) और रिमोट सेंसिंग जैसे उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
  • ये उपकरण वस्तुओं, घटनाओं और परिघटनाओं (पृथ्वी पर उनकी भौगोलिक स्थिति के अनुसार अनुक्रमित, जियोटैग) के बारे में स्थानिक जानकारी प्रदान करते हैं। किसी स्थान का डेटा स्थिर (Static) या गतिशील (Dynamic) हो सकता है।
  • किसी स्थान के स्थिर डेटा/स्टेटिक लोकेशन डेटा (Static Location Data) में सड़क की स्थिति, भूकंप की घटना या किसी विशेष क्षेत्र में बच्चों में कुपोषण की स्थिति के बारे में जानकारी शामिल होती है, जबकि किसी स्थान के गतिशील डेटा /डायनेमिक लोकेशन डेटा (Dynamic Location Data) में संचालित वाहन या पैदल यात्री, संक्रामक बीमारी के प्रसार आदि से संबंधित डेटा शामिल होता है।
  • बड़ी मात्रा में डेटा में स्थानिक पैटर्न की पहचान के लिये इंटेलिजेंस मैप्स  (Intelligent Maps) निर्मित करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है।
  • यह प्रौद्योगिकी दुर्लभ संसाधनों के महत्त्व और उनकी प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लेने में मददगार हो सकती है।

भारत का भू-स्थानिक क्षेत्र:

  • भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र में एक सुदृढ़ पारितंत्र मौजूद है जहाँ विशेष रूप से भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey Of India- SoI), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO), रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (RSACs) एवं राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) और सभी मंत्रालयों एवं विभाग सामान्य रूप से भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं।
  • वर्ष 2021 में भू-स्थानिक बाज़ार में रक्षा और खुफिया (14.05%) क्षेत्र, शहरी विकास (12.93%) एवं यूटिलिटीज़ सेगमेंट,(11%) का वर्चस्व रहा जिसका कुल भू-स्थानिक बाज़ार में 37.98% का योगदान था।
  • वर्ष 2021 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र हेतु नए दिशा-निर्देश जारी किये थे, जो मौजूदा प्रोटोकॉल को नियंत्रित करते हैं और इस क्षेत्र को अधिक प्रतिस्पर्द्धी व उदार बनाते हैं।

Geospatial-Technology

भारत के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का महत्त्व:

  • एक संभावित क्षेत्र: 'भारत भू-स्थानिक अर्थ रिपोर्ट-2021’ के अनुसार, इस क्षेत्र में वर्ष 2025 के अंत तक 12.8% की दर से 63,100 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी होने की क्षमता है।
  • रोज़गार: अमेज़न, ज़ोमेटो जैसी निजी कंपनियाँ अपने वितरण कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु इस तकनीक का उपयोग करती हैं, जिससे आजीविका सृजन में मदद मिलती है।
  • योजनाओं का क्रियान्वयन: गति शक्ति कार्यक्रम जैसी योजनाओं को भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सुचारू रूप से लागू किया जा सकता है।
  • मेक इन इंडिया: इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से भारतीय कंपनियाँ  गूगल मैप्स के भारतीय संस्करण की तरह स्वदेशी एप विकसित कर सकती हैं।
  • भूमि अभिलेखों का प्रबंधन: प्रौद्योगिकी का उपयोग कर बड़ी संख्या में जोत से संबंधित डेटा को उचित रूप से टैग और डिजिटाइज़ किया जा सकता है।
    • यह न केवल बेहतर लक्ष्यीकरण में मदद करेगा बल्कि न्यायालयों में भूमि विवादों की संख्या को भी कम करेगा।
  • संकट प्रबंधन: कोविड-19 टीकाकरण अभियान के दौरान भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का काफी बेहतरीन प्रयोग किया गया था।
  • इंटेलीजेंट मैप और मॉडल: भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग इंटेलीजेंट मैप और मॉडल बनाने हेतु किया जा सकता है, जिसे STEM (विज्ञान प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग और गणित) अनुप्रयोग में वांछित परिणाम प्राप्त करने हेतु अंतःक्रियात्मक रूप से या सामाजिक जाँच एवं नीति-आधारित अनुसंधान की वकालत करने हेतु उपयोग किया जा सकता है। .

संबंधित चुनौतियाँ:

  • भारत की क्षमता और आकार से संबद्ध पैमाने पर भू-स्थानिक सेवाओं एवं उत्पादों की कोई मांग नहीं है।
    • यह मुख्य रूप से सरकारी एवं निजी क्षेत्र में संभावित उपयोगकर्त्ताओं के बीच जागरूकता की कमी के कारण है।
  • दूसरी बाधा कुशल जनशक्ति की कमी है।
  • उच्च-रिज़ॉल्यूशन पर आधारभूत डेटा की अनुपलब्धता भी एक बड़ी बाधा है।
    • अनिवार्य रूप से आधारभूत डेटा को सामान्य डेटा तालिकाओं के रूप में देखा जा सकता है जिसे  कई अनुप्रयोगों या प्रक्रियाओं के बीच साझा किया जाता है, इन्हें उचित सेवा और प्रबंधन हेतु एक मज़बूत आधार निर्माण के लिये जाना जाता है।
  • डेटा साझाकरण और सहयोग पर स्पष्टता की कमी सह-निर्माण एवं संपत्ति को अधिकतम करने से रोकती है।
  • भारत की समस्याओं को हल करने के लिये विशेष रूप से विकसित उपायों में रेडी-टू-यूज़ समाधान (Ready-To-Use Solutions) अभी उपलब्ध नहीं है।

आगे की राह

  • जियो-पोर्टल और डेटा क्लाउड की स्थापना: सभी सार्वजनिक-वित्तपोषित डेटा को सेवा मॉडल के रूप में बिना किसी शुल्क या नाममात्र शुल्क के सुलभ बनाने हेतु एक जियो-पोर्टल स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि डेटा साझाकरण, सहयोग और सह-निर्माण की संस्कृति को विकसित किया जाए।
  • आधारभूत डेटा का निर्माण: इसमें भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल उन्नयन मॉडल (Indian National Digital Elevation Model- InDEM), शहरों के लिये डेटा स्तर और प्राकृतिक संसाधनों का डेटा शामिल होना चाहिये।
  • भू-स्थानिक में स्नातक कार्यक्रम: भारत को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (NITs) में भू-स्थानिक विषय में भी स्नातक कार्यक्रम शुरू करना चाहिये। इनके अलावा एक समर्पित भू-स्थानिक विश्वविद्यालय भी स्थापित किया जाना चाहिये।
    • ऐसे कार्यक्रम अनुसंधान एवं विकास प्रयासों को बढ़ावा देंगे जो स्थानीय स्तर पर प्रौद्योगिकियों के विकास एवं समाधान हेतु उपाय खोजने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • विनियमन: भारतीय सर्वेक्षण विभाग एवं इसरो जैसे राष्ट्रीय संस्थानों को विनियमन और राष्ट्र की सुरक्षा एवं वैज्ञानिक महत्त्व से संबंधित परियोजनाओं की ज़िम्मेदारी सौंपी जानी चाहिये।
    • इन संगठनों को उद्यमियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा नहीं करनी चाहिये क्योंकि इनके लिये यह  नुकसानदेह हो सकता हैं।
  • नीतियों को अंतिम रूप देना: राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (NGP) और भारतीय उपग्रह नेविगेशन नीति (SATNAV Policy) के मसौदे को क्षेत्र के विकास एवं विस्तार के लिये विधिवत अंतिम रूप दिया जाना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

हरित हाइड्रोजन/हरित अमोनिया नीति

प्रिलिम्स के लिये:

हरित हाइड्रोजन, हाइड्रोजन के रूप, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन।

मेन्स के लिये:

ग्रीन हाइड्रोजन और वर्ष 2070 तक भारत के कार्बन तठस्थ बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने में इसका महत्त्व, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, संरक्षण।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ऊर्जा मंत्रालय ने ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करके हरित हाइड्रोजन या हरित अमोनिया के उत्पादन हेतु ‘हरित हाइड्रोजन/हरित अमोनिया नीति’ को अधिसूचित किया है।

  • वर्ष 2021 में शुरू किये गए ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन’ का उद्देश्य जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने और भारत को हरित हाइड्रोजन हब बनाने में सरकार की सहायता करना है।

हरित हाइड्रोजन/हरित अमोनिया नीति के प्रमुख प्रावधान:

  • नीति के तहत सरकार उत्पादन हेतु विशिष्ट विनिर्माण क्षेत्र स्थापित करने की पेशकश कर रही है, प्राथमिकता के आधार पर ISTS (इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम) से कनेक्टिविटी और जून 2025 से पहले उत्पादन सुविधा चालू होने पर 25 वर्ष के लिये मुफ्त ट्रांसमिशन की पेशकश की गई है।
    • इसका मतलब यह है कि हरित हाइड्रोजन उत्पादक असम में एक हरित हाइड्रोजन संयंत्र को नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति करने हेतु राजस्थान में एक सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने में सक्षम होंगे और उसे किसी भी ‘अंतर-राज्यीय संचरण शुल्क’ का भुगतान नहीं करना होगा।
    • इसके अलावा उत्पादकों को शिपिंग द्वारा निर्यात के लिये हरित अमोनिया के भंडारण हेतु बंदरगाहों के पास बंकर स्थापित करने की अनुमति होगी।
  • उत्पादन लक्ष्य भी वर्ष 2030 तक 10 लाख टन से 5 मिलियन टन तक पाँच गुना बढ़ा दिया गया है।
    • अक्तूबर, 2021 में यह घोषणा की गई थी कि भारत प्रारंभ में वर्ष 2030 तक लगभग 1 मिलियन टन वार्षिक हरित हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य बना रहा है।
  • ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया के विनिर्माताओं को पावर एक्सचेंज से नवीकरणीय ऊर्जा खरीदने या स्वयं या किसी अन्य डेवलपर के माध्यम से कहीं भी नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता स्थापित करने की अनुमति है।
  • इसके अलावा यह उत्पादकों को डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियों) द्वारा उत्पन्न किसी भी अधिशेष नवीकरणीय ऊर्जा को 30 दिनों तक के लिये भंडारित करने और आवश्यकतानुसार इसका उपयोग करने की सुविधा प्रदान करती  है।
  • डिस्कॉम हरित हाइड्रोजन उत्पादकों को आपूर्ति के लिये अक्षय ऊर्जा की खरीद भी कर सकता है, लेकिन वह रियायती दर पर ही ऐसा कर सकता है, जिसमें नई नीति के तहत राज्य आयोग द्वारा निर्धारित केवल खरीद की लागत, व्हीलिंग शुल्क और एक छोटा सा मार्जिन शामिल होगा।
    • इस तरह की खरीद की गणना राज्य के नवीनीकरण खरीद दायित्व (RPO) में की जाएगी, जिसके तहत नवीनीकरण ऊर्जा स्रोतों से अपनी आवश्यकताओं का एक निश्चित अनुपात प्राप्त करना आवश्यक है।
  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा व्यापार सुगमता के लिये समयबद्ध वैधानिक मंज़ूरी सहित सभी गतिविधियों हेतु एक एकल पोर्टल स्थापित किया जाएगा।

हरित हाइड्रोजन

  • परिचय:
    • यह पवन तथा सौर ऊर्जा जैसे नवीनीकरण ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके पानी के विद्युत अपघटन द्वारा हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पृथक करके उत्पादित की जाती है।
    • ईंधन भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये एक गेम-चेंजर हो सकता है, जो अपने तेल का 85% और गैस आवश्यकताओं का 53% आयात करता है।
    • स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के लिये भारत उर्वरक संयंत्रों और तेल रिफाइनरियों के लिये हरित हाइड्रोजन को अनिवार्य करने पर विचार कर रहा है।
  • महत्त्व:
    • भारत के लिये अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) लक्ष्यों को पूरा करने तथा क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा, पहुँच व उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु हरित हाइड्रोजन ऊर्जा महत्त्वपूर्ण है।
    • हरित हाइड्रोजन एक ऊर्जा भंडारण विकल्प के रूप में कार्य कर सकता है, जो भविष्य में (नवीकरणीय ऊर्जा के) अंतराल को भरने के लिये आवश्यक होगा।
    • गतिशीलता के संदर्भ में शहरों और राज्यों के भीतर शहरी वस्तुओं की ढुलाई या यात्रियों की लंबी दूरी की यात्रा के लिये रेलवे, बड़े जहाज़ो, बसों या ट्रकों आदि में ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग किया जा सकता है।
    • बुनियादी ढाँचे के समर्थन में हाइड्रोजन में प्रमुख नवीकरणीय लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता है।

हरित अमोनिया:

  • परिचय:
    • अमोनिया एक ऐसा रसायन है जिसका उपयोग मुख्य रूप से यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट जैसे नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के निर्माण में किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग अन्य उपयोगों जैसे कि इंजन संचालन के लिये भी किया जा सकता है। 
    • हरित अमोनिया का उत्पादन वहाँ होता है जहांँ अमोनिया बनाने की प्रक्रिया 100% नवीकरणीय और कार्बन मुक्त होती है।
    • हरित अमोनिया बनाने की एक विधि जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन को वायु द्वारा अलग करना है। फिर धारणीय/सतत् ऊर्जा का उपयोग करते हुए इन्हें हैबर प्रक्रिया (जिसे हैबर-बॉश के नाम से भी जाना जाता है) से गुज़ारा जाता है।
      • हैबर प्रक्रिया में अमोनिया (NH3) का उत्पादन करने हेतु उच्च ताप एवं दाव पर हाइड्रोजन और नाइट्रोजन की एक साथ क्रिया कराई जाती है। 
  • महत्त्व:
    • ग्रीन अमोनिया का उपयोग कार्बन-तटस्थ उर्वरक के उत्पादन, खाद्य मूल्य शृंखला को डीकार्बोनाइज़ करने और भविष्य के जलवायु-तटस्थ शिपिंग ईंधन (Climate-Neutral Shipping Fuel) के रूप में किया जा सकता हैl 
    • ग्रीन अमोनिया के उत्पादन में अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे- हाइड्रो-इलेक्ट्रिक, सौर ऊर्जा या पवन टरबाइन का उपयोग किया जाता है।
    • बढ़ती वैश्विक आबादी के लिये खाद्यान्न उपलब्ध कराने, CO2 मुक्त ऊर्जा उत्पादन तथा पर्याप्त भोजन का उत्पादन करने की मौजूदा चुनौतियों से निपटने में हरित अमोनिया महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह

  • भारत के पास कम लागत वाले नवीकरणीय उत्पादन संयंत्रों और लागत में कटौती कर हरित हाइड्रोजन की लागत को कम करने की क्षमता है।
    • युवा जनसांख्यिकी और संपन्न अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप एक विशाल बाज़ार की संभावना तथा हाइड्रोजन आधारित प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग को बढ़ाने से सरकार को एक दीर्घकालिक लाभ होगा।
  • हाइड्रोजन को अंतिम और एकमात्र समाधान के रूप में मानने की बजाय विकल्प के रूप में माना जाना चाहिये क्योंकि इसकी अपनी सीमाएँ  हैं।
    • वर्ष 2030 तक वर्तमान भंडारण और परिवहन प्रौद्योगिकियों के परिपक्व एवं लागत प्रभावी होने की उम्मीद है।
    • अत: एक ही स्थान पर हाइड्रोजन के उत्पादन और उसके वास्तविक समय पर उपयोग को अवांछित लागतों के विपरीत निवेश की सुरक्षा हेतु बढ़ावा दिया जा सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

सिंगल यूज़ प्लास्टिक और इसके उपयोग, एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR), पेरिस एग्रीमेंट, नेट ज़ीरो, प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट (संशोधन) नियम, 2022।

मेन्स के लिये:

सिंगल यूज़ प्लास्टिक और संबंधित चिंताएँ, सिंगल यूज़ प्लास्टिक के विकल्प की आवश्यकता, प्लास्टिक कचरा प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 की घोषणा की, जिसने प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी (EPR) पर निर्देशों को अधिसूचित किया।

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 में एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) के उन्मूलन और विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये संशोधन किया गया है।
  • विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी शब्द का अर्थ उत्पाद के जीवन के अंत तक पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन के लिये एक निर्माता की ज़िम्मेदारी से है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016

  • यह प्लास्टिक कचरे के उत्पादन को कम करने, प्लास्टिक कचरे को फैलने से रोकने और अन्य उपायों के बीच स्रोत पर कचरे का अलग भंडारण सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने पर ज़ोर देता है।
  • नियम प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन हेतु स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों, अपशिष्ट उत्पादक, खुदरा विक्रेताओं और पुटपाथ विक्रेताओं के लिये भी ज़िम्मेदारियों को अनिवार्य करते हैं।

नए नियमों के तहत प्रावधान:

  • प्लास्टिक का वर्गीकरण:
    • श्रेणी 1: कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग।
    • श्रेणी 2: सिंगल लेयर या मल्टीलेयर की लचीली प्लास्टिक पैकेजिंग (विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक के साथ एक से अधिक परत), प्लास्टिक शीट और प्लास्टिक शीट से बने कवर, कैरी बैग, प्लास्टिक पाउच या पाउच आदि ।
    • श्रेणी 3: बहु-स्तरीय प्लास्टिक पैकेजिंग (प्लास्टिक की कम-स-कम एक परत और प्लास्टिक के अलावा अन्य सामग्री की कम-से-कम एक परत) को इस श्रेणी में शामिल किया गया है।
    • श्रेणी 4: पैकेजिंग के लिये उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक शीट या कंपोस्टेबल प्लास्टिक से बने कैरी बैग इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
  • प्लास्टिक की पैकेजिंग:
    • पैकेजिंग हेतु प्लास्टिक सामग्री के उपयोग को कम करने के दिशा-निर्देशों में कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री का पुन: उपयोग अनिवार्य किया गया है।
      • EPR के तहत एकत्रित प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे के पुनर्चक्रण की प्रवर्तनीय विधि के साथ-साथ पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक सामग्री के उपयोग से प्लास्टिक की खपत में कमी आएगी और प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे के पुनर्चक्रण में मदद मिलेगी।
  • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व प्रमाणपत्र:
    • ये दिशानिर्देश अधिशेष विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व प्रमाणपत्रों की बिक्री एवं खरीद की अनुमति देते हैं।
      • इससे प्लास्टिक कचरा प्रबंधन हेतु एक बाजार तंत्र विकसित होगा।
  • केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल:
    • सरकार ने 31 मार्च, 2022 तक प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे के उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड-मालिकों, प्लास्टिक कचरा प्रसंस्करणकर्त्ताओं हेतु वार्षिक रिटर्न दाखिल करने के साथ-साथ पंजीकरण के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल स्थापित करने का भी आह्वान किया है।
      • यह प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये EPR के कार्यान्वयन से संबंधित आदेशों एवं दिशा-निर्देशों के संबंध में एकल डेटा भंडार के रूप में कार्य करेगा।
  • पर्यावरण मुआवज़ा:
    • पर्यावरण की गुणवत्ता की रक्षा एवं सुधार तथा पर्यावरण प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने एवं कम करने के उद्देश्य से उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों से लक्ष्यों को पूरा न करने के संबंध में प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ के आधार पर पर्यावरणीय मुआवज़ा लिया जाएगा।
      • ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ भुगतान का दायित्त्व एक ऐसे व्यक्ति पर डालता है, जो पर्यावरण को प्रदूषित करता है, इससे पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकेगी। 
  • उपायों की सिफारिश करने हेतु समिति:
    • CPCB अध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित एक समिति EPR के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु पर्यावरण मंत्रालय को उपायों की सिफारिश करेगी, जिसमें विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) दिशा-निर्देशों में संशोधन भी शामिल हैं।
  • EPR पोर्टल पर वार्षिक रिपोर्ट:
    • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) या प्रदूषण नियंत्रण समितियों (PCCs) को राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड-मालिकों एवं प्लास्टिक कचरा प्रसंस्करणकर्त्ताओं द्वारा इसकी पूर्ति के संबंध में ईपीआर पोर्टल पर एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौंपा गया है। 

दिशा-निर्देशों का महत्त्व:

  • यह प्लास्टिक के नए विकल्पों के विकास को बढ़ावा देगा और व्यवसायों को सतत् प्लास्टिक पैकेजिंग की ओर बढ़ने हेतु एक रोडमैप प्रदान करेगा।
  • दिशा-निर्देश प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे की चक्रीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिये एक ढांँचा प्रदान करते हैं
    • एक चक्रीय अर्थव्यवस्था क्लोज़्ड-लूप सिस्टम निर्मित करने, संसाधनों के उपयोग को कम करने, अपशिष्ट उत्पादन, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु संसाधनों के पुन: उपयोग, साझाकरण, नवीनीकरण, पुन: निर्माण और पुनर्चक्रण पर निर्भर करती है।
  • यह देश में फैले प्लास्टिक कचरे से होने वाले प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण  कदम है।
    • भारत में सालाना लगभग 3.4 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2024 तक भारत के 100 शहरों में उनके प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को लगभग तिगुना करना है।
    • प्लास्टिक कचरे का संचय पर्यावरण के लिये हानिकारक है और जब यह कचरा समुद्र में जाता है तो जलीय पारिस्थितिक तंत्र को भी बड़े स्तर पर नुकसान पहुँचाता है।

प्लास्टिक कचरे पर अंकुश लगाने हेतु अन्य पहलें: 

आगे की राह: 

  • पूर्ण प्रतिबंध निर्माताओं को सिंगल यूज़ प्लास्टिक उत्पादों के उत्पादन से नहीं रोकेगा।
  • यूज़-एंड-थ्रो प्लास्टिक के विकल्प तलाशने, उत्पादकों, कचरा बीनने वालों और प्लास्टिक व्यवसाय में शामिल अन्य समूहों के लिये वैकल्पिक आजीविका सुनिश्चित करने से समस्या का समाधान करने में काफी मदद मिलेगी।
  • सरकार को न केवल दिशा-निर्देशों के उल्लंघन पर जुर्माना लगाना चाहिये बल्कि उत्पादकों को अधिक टिकाऊ उत्पादों बनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। उचित निगरानी के साथ-साथ ज़िम्मेदार उपभोक्तावाद संस्कृति को बढ़ावा देना बहुत ज़रूरी है।
  • नागरिकों को भी व्यवहार में बदलाव लाना होगा तथा कचरा न फैलाकर अपशिष्ट पृथक्करण और अपशिष्ट प्रबंधन में मदद कर योगदान देना होगा।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अफगानिस्तान मानवीय संकट

प्रिलिम्स के लिये:

अफगानिस्तान, विश्व बैंक, दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद, तालिबान, इस्लामिक स्टेट।

मेन्स के लिये:

भारत और इसके पड़ोसी, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव,  अफगानिस्तान संकट और उसके प्रभाव।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व बैंक द्वारा अफगानिस्तान ट्रस्ट फंड में जमा (Frozen Afghanistan Trust Fund)  1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का उपयोग देश (अफगानिस्तान) के बिगड़ते मानवीय स्थिति और आर्थिक संकट को कम करने के लिये शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य एवं पारिवारिक कार्यक्रमों के लिये उपयोग करने को मंजूरी दी गई है।

  • इसका उद्देश्य कमज़ोर लोगों की रक्षा करना, मानव पूंजी और प्रमुख आर्थिक एवं  सामाजिक संस्थानों के संरक्षण में मदद करना और भविष्य में मानवीय सहायता की आवश्यकता को कम करना है।
  • इससे पहले अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता भारत में आयोजित की गई थी।

Afghanistan

प्रमुख बिंदु 

अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति:

  • अफगानिस्तान में व्याप्त अस्थिरता की स्थिति न केवल इस क्षेत्र के लिये बल्कि पूरी दुनिया के लिये चिंताजनक है।
  • अफगानिस्तान दशकों से अस्थिर और असुरक्षित रहा है, लेकिन अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने से पूरे क्षेत्र में एक नाज़ुक स्थिति बनी हुई है। 
    • अफगानिस्तान में वर्तमान स्थिति 1990 के दशक के अंत में उत्पन्न भू-राजनीतिक परिदृश्य के ही समान है।
    • वर्ष 1996 में तालिबान ने सत्ता पर कबज़ा कर लिया था तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय नए प्रतिमान के संभावित परिणामों को पूरी तरह से समझ नहीं पाया।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्त सहायता प्रदान करने वाले संगठनों द्वारा अफगानिस्तान को अपनी सहायता देना बंद कर दिया हैं। तालिबान सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र प्रतिकूल रूप से प्रभावित है।
  • युद्ध से तबाह देश एक अभूतपूर्व मानवीय संकट का सामना कर रहा है, जो एक और हिंसक संघर्ष में परिवर्तित हो सकता है।
  • ग्रामीण आबादी के अलावा शहरों में रहने वाले अफगानों के लिये भी गुज़ारा करना असंभव हो रहा है।
  • यदि तालिबान आर्थिक स्थिति में सुधार करने में असमर्थ रहता है, तो अफगानिस्तान को एक बड़ी तबाही का सामना करना पड़ सकता है, ऐसे स्थिति में तालिबान का शासन काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है और देश में गृहयुद्ध छिड़ सकता है।
  • प्रायः आर्थिक उथल-पुथल का सामना कर रहे देश में आतंकवादी समूहों के लिये काम करना आसान होता है और अफगानिस्तान इसका कोई अपवाद नहीं है।

अफगानिस्तान में मानवीय संकट के प्रभाव:

  • कई पश्चिमी देशों को लगता है कि अफगानिस्तान के कारण संपूर्ण विश्व पर एक तत्काल सुरक्षा खतरा पैदा हो गया है। तालिबान, जो कि अंतर्राष्ट्रीय मान्यता एवं वित्तीय सहायता हासिल करना चाहता है, हिंसक तरीके अपनाने की तुलना में ‘राजनयिक दृष्टिकोण’ की ओर बढ़ रहा है लेकिन यह शांति लंबे समय तक बनी नहीं रह सकती है।
    • यदि अफगानिस्तान में मानवीय संकट बढ़ता है, तो तालिबान भी स्थिति का प्रबंधन करने में सक्षम नहीं होगा, जैसा कि हिंसक ‘इस्लामिक स्टेट’ (IS) के मामले में देखने को मिला था।
  • अफगानिस्तान में एक संभावित हिंसक संघर्ष क्षेत्र के अन्य देशों में फैल सकता है।
    • यदि ऐसा होता है, तो क्षेत्रीय शक्तियाँ अफगानिस्तान की सीमाओं के भीतर हिंसा को बनाए रखने के लिये प्रॉक्सी समूहों का समर्थन करना शुरू कर देंगी लेकिन यह अफगान संघर्ष का केवल एक अल्पकालिक समाधान होगा।
    • तालिबान जितना अधिक सत्ता में रहेगा, उसके लिये क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखना उतना ही कठिन होगा।
  • तालिबान के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों से संबंध हैं। सत्ता में उनकी वापसी ने क्षेत्र में जिहादी संगठनों को उत्साहित किया है।
  • जैसे-जैसे वे स्वयं को मज़बूत करेंगे, आतंकवाद के वित्तपोषकों और प्रायोजकों के साथ उनके सामरिक एवं रणनीतिक संबंध बढ़ेंगे जो अंततः इस क्षेत्र तथा उसके बाहर शांति एवं सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।

अफगानिस्तान के लिये क्या किया जाना चाहिये?

  • अफगानिस्तान में मानवीय संकट को केवल मानवीय सहायता से हल नहीं किया जा सकता है।
  • अफगानों को गरीबी से बाहर निकालने के लिये अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को सुधारने की ज़रूरत है।
    • लेकिन अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तालिबान के साथ जुड़ने की ज़रूरत है।
  • यदि देश की मानवीय स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो आतंकवाद अफगानिस्तान की सीमाओं से अन्य देशों तक भी पहुँच जाएगा।

भारत के लिये निहितार्थ:

  • सामरिक चिंताएँ:
    • तालिबान के नियंत्रण का मतलब पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों के लिये देश के परिणामों को प्रभावित करने हेतु एक बड़ा कारक साबित होगा, जो पिछले 20 वर्षों में भारतीय विकास और बुनियादी ढाँचा कार्यों हेतु बहुत छोटी-सी भूमिका का निर्वहन करता है।
  • कट्टरपंथ का खतरा:
    • भारत के पड़ोस में बढ़ता कट्टरपंथ और अखिल इस्लामी आतंकवादी समूहों से क्षेत्र को खतरा है।

आगे की राह

  • समावेशी सरकार: सभी जातीय समूहों की भागीदारी के साथ एक समावेशी सरकार के गठन के माध्यम से ही समस्या का समाधान हो सकता है।
  • रूसी समर्थन: हाल के वर्षों में रूस ने तालिबान के साथ संबंध विकसित किये हैं। तालिबान के साथ किसी भी तरह के सीधे जुड़ाव में भारत को रूस के समर्थन की आवश्यकता होगी।
  • चीन के साथ संबंध: भारत को अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान और स्थायी स्थिरता के उद्देश्य से चीन के साथ बातचीत करनी चाहिये।
  • तालिबान से वार्ता: तालिबान से बातचीत करने से भारत निरंतर विकास सहायता या अन्य प्रतिबद्धताओं के बदले विद्रोहियों से सुरक्षा गारंटी लेने के साथ-साथ पाकिस्तान से तालिबान की स्वायत्तता का पता लगा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जापानी इंसेफेलाइटिस

प्रिलिम्स के लिये:

जापानी इंसेफेलाइटिस, एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम, यूनिवर्सल इम्यूनाइज़ेशन प्रोग्राम, NPPCJA

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, मानव संसाधन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, जापानी इंसेफेलाइटिस, संचरण एवं रोकथाम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी’ (NIAB), हैदराबाद ने गैर-संरचनात्मक-1 (NS1) स्रावी प्रोटीन का पता लगाने के लिये एक इम्यूनोसेंसर विकसित किया है, जो रक्त में मौजूद जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (JEV) के लिये एक उपयुक्त बायोमार्कर है।

  • एंटीबॉडी के बजाय NS1 का पता लगाने से एक अतिरिक्त फायदा होता है, क्योंकि एंटीजन संक्रमण के पहले दिन से ही मौजूद होता है और इसलिये इसका जल्दी पता लगाया जा सकता है। दूसरी ओर, एंटीबॉडी संक्रमण के 4/5 दिन बाद ही दिखाई देते हैं।
  • ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी’ (NIAB) जैव प्रौद्योगिकी विभाग (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय) का एक भारतीय स्वायत्त अनुसंधान प्रतिष्ठान है।

जापानी इंसेफेलाइटिस क्या है?

Viral-Amplification

  • परिचय:
    • यह फ्लेविवायरस के कारण होने वाली एक बीमारी है, जो मस्तिष्क के आसपास की झिल्लियों को प्रभावित करती है।
    • जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (JEV) भी भारत में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) का एक प्रमुख कारण है।
  • संचरण:
    • यह रोग क्यूलेक्स प्रजाति के संक्रमित मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है।
    • ये मच्छर मुख्य रूप से चावल के खेतों और जलीय वनस्पतियों से भरपूर बड़े जल निकायों में प्रजनन करते हैं।
    • समुदाय में सुअरों के साथ प्रवासी पक्षी भी एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस के संचरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • लक्षण:
    • जेई (JE) से संक्रमित अधिकांश लोगों में लक्षण नहीं दिखाई देते हैं या केवल हल्के लक्षण होते हैं।
    • हालाँकि संक्रमित लोगों के एक छोटे प्रतिशत में मस्तिष्क की सूजन (Encephalitis) की समस्या देखी जाती है, जिसमें अचानक सिरदर्द, तेज़ बुखार, कोमा में जाना, कंपकंपी और आक्षेप जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
  • इलाज: 
    • JE के रोगियों के लिये कोई एंटीवायरल उपचार नहीं है। उपलब्ध उपचार केवल लक्षणों को दूर करने और रोगी को स्थिर करने में सहायक हैं।
  • निदान: 
    • रोग से बचाव के लिये सुरक्षित और प्रभावी JE टीके उपलब्ध हैं।
    • भारत में JE वैक्सीन के साथ सामूहिक टीकाकरण वर्ष 2005 में बड़े प्रकोप के बाद चरणबद्ध तरीके से शुरू किया गया था।
    • भारत सरकार के यूनिवर्सल इम्यूनाइज़ेशन प्रोग्राम में  JE टीकाकरण भी शामिल है।

जापानी इंसेफेलाइटिस (JE) से संबंधित सरकारी पहलें:

  • संबंधित मंत्रालयों के अभिसरण के साथ JE/AES के कारण बच्चों में रुग्णता, मृत्यु दर और विकलांगता को कम करने हेतु जापानी इंसेफेलाइटिस (JE)/एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention and Control of Japanese Encephalitis(JE)/ Acute Encephalitis Syndrome- NPPCJA) के तहत भारत सरकार ने एक बहुआयामी रणनीति विकसित की है
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय: JE टीकाकरण का विस्तार, सार्वजनिक स्वास्थ्य गतिविधियों को मज़बूत करना, JE/AES से संबंधित मामलों का बेहतर नैदानिक प्रबंधन आदि।
    • सुरक्षित जल आपूर्ति के प्रावधान हेतु जल शक्ति मंत्रालय।
    • कमज़ोर बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाला पोषण प्रदान करने के लिये महिला एवं बाल विकास मंत्रालय।
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय: विकलांगता प्रबंधन और पुनर्वास के लिये  ज़िला विकलांगता पुनर्वास केंद्र स्थापित करना।
    • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा झुग्गी-झोपड़ियों और कस्बों में सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
    • शिक्षा मंत्रालय: विकलांग बच्चों को उनकी शिक्षा के लिये विशेष सुविधाएंँ उपलब्ध कराना।

स्रोत: पी.आई.बी. 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला, न्यूट्रिनो, पश्चिमी घाट, संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र, पेरियार टाइगर रिज़र्व, शोला नेशनल पार्क, वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट, सुपरनोवा।

मेन्स के लिये:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक नवाचार और  खोजें , भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला, न्यूट्रिनो, आईएनओ के विपक्ष में तर्क, भविष्य में न्यूट्रिनो के अनुप्रयोगों में भारतीयों की उपलब्धियांँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में तमिलनाडु सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में  स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकार नहीं चाहती है कि भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला (Indian Neutrino Observatory- INO) को पश्चिमी घाट के इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zones) में स्थापित किया जाए।

  • स्थानीय विरोध  के बावजूद INO की स्थापना से वन्य जीवन और जैव विविधता को भारी क्षति हो सकती है।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास के 10 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्र हैं।

TamilNadu

प्रमुख बिंदु 

तमिलनाडु सरकार की दलील:

  • सरकार ने ज़ोर देकर कहा कि यह परियोजना पश्चिमी घाट के उस हिस्से के  पहाड़ी ढलानों पर पड़ती है, जिसके भीतर एक महत्त्वपूर्ण बाघ गलियारा, अर्थात् मथिकेत्तन-पेरियार बाघ गलियारा (Mathikettan-Periyar tiger corridor) स्थित है।
    • यह गलियारा केरल और तमिलनाडु की सीमाओं के साथ पेरियार टाइगर रिज़र्व और मथिकेत्तन शोला राष्ट्रीय उद्यान को जोड़ता है।
    • उत्खनन और निर्माण गतिविधियाँ उन जंगली जानवरों को परेशान करेंगी जो मौसमी प्रवास के लिये इस गलियारे का उपयोग करते हैं।
  • यह क्षेत्र संभल और कोट्टाकुडी नदियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण वाटरशेड व जलग्रहण क्षेत्र है।
  • हालांँकि वेधशाला में परीक्षण एक किलोमीटर की गहराई (भूमिगत) में किये जाएंगे जिसमें बड़े पैमाने पर विस्फोट, परिवहन, खुदाई और सुरंग जैसी गतिविधियांँ शामिल हैं जो पश्चिमी घाट क्षेत्र की पारिस्थितिक स्थिरता को खतरे में डाल देगी।
  • पश्चिमी घाटों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है क्योंकि यह  क्षेत्र एक वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट और जैविक विविधता का खजाना हैं।
    • विशिष्ट क्षेत्र में बड़ी संख्या में हाथियों और बाघों के अलावा फूलों के पौधों, मछलियों, उभयचरों, सरीसृपों, पक्षियों, स्तनधारियों और अकशेरुकी जीवों की कई स्थानिक प्रजातियांँ विद्यमान हैं।

भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला (INO):

  • यह एक प्रस्तावित कण भौतिकी अनुसंधान मेगा परियोजना है।
  • परियोजना का उद्देश्य 1,200 मीटर गहरी गुफा में न्यूट्रिनो का अध्ययन करना था।
  • इस परियोजना को तमिलनाडु में थेनी ज़िले के पोट्टीपुरम गाँव में स्थापित करने का प्रस्ताव है।
  • इस परियोजना को शुरू में गणितीय विज्ञान संस्थान और फिर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च द्वारा प्रस्तावित किया गया था।

INO

प्रस्तावित स्थल का महत्त्व:

  • प्रस्तावित स्थल की पहचान थेनी ज़िले में इसलिये की गई क्योंकि सभी दिशाओं में 1 किमी. से अधिक क्षेत्र में फैली चट्टानें डिटेक्टर को अन्य ब्रह्मांडीय किरणों से सुरक्षित करती हैं।
    • चूँकि न्यूट्रिनो किसी भी वस्तु से आसानी से गुज़र सकते हैं,जिससे वे डिटेक्टर तक आसानी से पहुँच सकते है जबकि अन्य कण पहाड़ी चट्टानो द्वारा फील्टर किये जा सकते हैं।
  • इसकी भौगोलिक स्थिति काफी भिन्न है क्योंकि सभी मौज़ूदा न्यूट्रिनो डिटेक्टर (अन्य देशों में) 35 डिग्री उत्तर या दक्षिण से उच्च अक्षांश पर स्थित हैं।
    • जिनमें से कोई भी डिटेक्टर अभी तक भूमध्य रेखा के समीप नहीं है।

न्यूट्रिनो:

  • न्यूट्रिनो एक मौलिक प्राथमिक कण है और जब सौर विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल से टकराता है तो वायुमंडलीय न्यूट्रिनो का अध्ययन किया जा सकता है।
  • उनका पता लगाना बहुत कठिन होता है क्योंकि वे विद्युत आवेश की कमी के कारण पदार्थ के अन्य रूपों के साथ मुश्किल से परस्पर मिलते हैं।
    • हालाँकि वे ब्रह्मांड के प्राथमिक भौतिकी में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसे भौतिक विज्ञानी कुछ दशकों से समझने की कोशिश कर रहे हैं।
  • इनका निर्माण उच्च-ऊर्जा प्रक्रियाओं जैसे सितारों के भीतर और सुपरनोवा से होता है तथा पृथ्वी पर वे कण त्वरक और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों द्वारा निर्मित होते हैं।
  • दूरस्थ तारों और आकाशगंगाओं से न्यूट्रिनो का अवलोकन करने के लिये अब तक न्यूट्रिनो भौतिकी ज़्यादातर बाहरी अंतरिक्ष स्रोतों तक ही सीमित रही है।

न्यूट्रिनो के भविष्य के अनुप्रयोग:

  • सूर्य के गुण: प्रकाश सूर्य की सतह से उत्सर्जित होता है और न्यूट्रिनो जो प्रकाश की गति के करीब यात्रा करते हैं, सूर्य के केंद्र में उत्पन्न होते हैं।
    • इन न्यूट्रिनो का अध्ययन करने से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि सूर्य के आंतरिक भाग में क्या चल रहा है।
  • ब्रह्मांड के घटक: दूरस्थ तारों से आने वाले प्रकाश का अध्ययन खगोलविदों द्वारा किया जा सकता है, उदाहरण के लिये नए ग्रहों का पता लगाने हेतु।
    • इसी तरह यदि न्यूट्रिनो के गुणों को बेहतर ढंग से समझा जाए, तो उनका उपयोग खगोल विज्ञान में यह पता लगाने के लिये किया जा सकता है कि ब्रह्मांड किससे बना है।
  • प्रारंभिक ब्रह्मांड की जाँच: न्यूट्रिनो अपने आस-पास मौजूद तत्त्वों के साथ काफी कम क्रिया करते हैं, इसलिये वे लंबी दूरी तक निर्बाध यात्रा कर सकते हैं। एक्सट्रैगैलेक्टिक (मिल्की वे आकाशगंगा के बाहर उत्पन्न होने वाले) न्यूट्रिनो जो हम देखते हैं, वे काफी दूर से आते हैं।
    • ये न्यूट्रिनो हमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति और बिग बैंग के तुरंत बाद ब्रह्मांड के शुरुआती चरणों के बारे में जानकारी दे सकते हैं।
  • मेडिकल इमेजिंग: प्रत्यक्ष उपयोग के अलावा इसका अध्ययन करने हेतु प्रयोग किये जाने वाले डिटेक्टरों के तकनीकी अनुप्रयोग भी हैं।
    • उदाहरण के लिये एक्स-रे मशीन, एमआरआई स्कैन आदि।
    • इसलिये INO संसूचकों के चिकित्सा इमेजिंग में अनुप्रयोग हो सकते हैं।

इको-सेंसिटिव ज़ोन क्या हैं?

  • इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्र हैं।
    • संवेदनशील गलियारे, संपर्क और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से अधिक क्षेत्र को भी इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
  • ESZ को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
  • इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


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