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डेली न्यूज़

  • 22 Nov, 2022
  • 44 min read
इन्फोग्राफिक्स

UNFCCC कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP)

UNFCCC


भारतीय अर्थव्यवस्था

कोयले की बढ़ती मांग

प्रिलिम्स के लिये:

जीवाश्म ईंधन, कोयला।

मेन्स के लिये:

भारत में कोयले की बढ़ती मांग और संबंधित चिंताओं का कारण।

चर्चा में क्यों?

नवीकरणीय ऊर्जा के महत्त्व के बावजूद कोयला भारत का प्रमुख ऊर्जा स्रोत बना रहेगा।

देश की ऊर्जा क्षमता की स्थिति:

  • क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के अनुमानों के अनुसार, जीवाश्म ईंधन देश में स्थापित ऊर्जा क्षमता के आधे से अधिक हिस्सेदारी करता है और वर्ष 2029-2030 तक लगभग 266 गीगावाट तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2031-32 तक घरेलू कोयले की आवश्यकता वर्ष 2021-2022 के 678 मीट्रिक टन से बढ़कर 1,018.2 मीट्रिक टन होने की उम्मीद है।
    • इसका मतलब है कि भारत में कोयले की खपत 40% बढ़ जाएगी।

कोयले की मांग बढ़ने का कारण:

  • लोहा और इस्पात उत्पादन में कोयले का उपयोग किया जाता है, दूसरी तरफ इस ईंधन को तुरंत विस्तापित करने हेतु प्रौद्योगिकियाँ नहीं हैं।
  • वर्ष 2022-2024 के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था का निरंतर विस्तार4% की वार्षिक औसत सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि के साथ आंशिक रूप से कोयले से होने की उम्मीद है।
  • कोल इंडिया के माध्यम से घरेलू कोयला खनन पर भारत का ज़ोर और निजी कंपनियों को कोयला ब्लॉकों की नीलामी से भारत में कोयले का उपयोग बढ़ेगा क्योंकि यह चीन सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में स्थिर है।
  • केंद्र सरकार ने निजी क्षेत्र के लिये कोयला खनन को अनुमति दे दी है और सरकार का यह दावा है कि यह सबसे महत्त्वाकांक्षी कोयला क्षेत्र सुधारों में से एक है।
    • सरकार का अनुमान है कि इससे कोयला उत्पादन में दक्षता और प्रतिस्पर्द्धा लाने, निवेश आकर्षित करने तथा सर्वोत्तम तकनीक के आगमन एवं कोयला क्षेत्र में अधिक रोज़गार सृजित करने में मदद मिलेगी।

कोयला:

  • परिचय:
    • यह एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन है जो तलछटी चट्टानों के रूप में पाया जाता है और इसे अक्सर 'ब्लैक गोल्ड' के रूप में जाना जाता है।
    • यह सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं।
    • दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं।

भारत में कोयले का वितरण::

  • गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना):
    • भारत के लगभग 98% कोयला भंडार और कुल कोयला उत्पादन का 99% गोंडवाना क्षेत्रों से प्राप्त होता है।
    • भारत के धातुकर्म ग्रेड के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता वाला कोयला गोंडवाना क्षेत्र से प्राप्त होता है।
    • यह दामोदर (झारखंड-पश्चिम बंगाल), महानदी (छत्तीसगढ़-ओडिशा), गोदावरी (महाराष्ट्र) और नर्मदा घाटियों में पाया जाता है।
  • टर्शियरी कोयला क्षेत्र (15-60 मिलियन वर्ष पुराना):
    • इसमें कार्बन की मात्रा बहुत कम लेकिन नमी और सल्फर की मात्रा भरपूर होती है।
    • टर्शियरी कोयला क्षेत्र मुख्य रूप से अतिरिक्त प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तक ही सीमित है।
    • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग हिमालय की तलहटी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और केरल शामिल हैं।
  • वर्गीकरण:
    • एन्थ्रेसाइट (80-95% कार्बन सामग्री) जम्मू-कश्मीर में कम मात्रा में पाया जाता है।
    • बिटुमिनस (60-80% कार्बन सामग्री) झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
    • लिग्नाइट (40-55% कार्बन सामग्री, उच्च नमी सामग्री) राजस्थान, लखीमपुर (असम) एवं तमिलनाडु में पाया जाता है।
    • पीट [इसमें 40% से कम कार्बन सामग्री और कार्बनिक पदार्थ (लकड़ी) से कोयले में परिवर्तन के पहले चरण में प्राप्त होता है]।

आगे की राह

  • कोयले के बाद की अर्थव्यवस्था की स्थापना की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है कोयले पर ऊर्जा हेतु निर्भर समाज को फिर से प्रशिक्षित करना।
  • अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों के लिये अपने पेशे से विस्थापित हुए श्रमिकों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता को पहचानना भी आवश्यक है।
    • अमेरिकी संघीय परिवर्तन कार्यक्रम जैसे- पेशेवरों के लिये सौर प्रशिक्षण तथा शिक्षा का अवसर प्रदान के लिये भागीदारी, विस्थापित कार्यबल के लिये आर्थिक पुनरोद्धार अनुदान, भारत को अपनी योजनाओं को डिज़ाइन व विकसित करने में मदद कर सकता है।
  • नीतियों के प्रचार, हरित वित्तपोषण और क्षमता निर्माण हेतु जलवायु परिवर्तन वित्त इकाई द्वारा किये गए निवेश के साथ भारत के लिये स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण हेतु विकास वित्तपोषण संस्थानों द्वारा वित्तपोषित किया जा सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन वित्त इकाई जलवायु वित्त मामलों पर वित्त मंत्रालय की नोडल इकाई के रूप में कार्य करने के लिये उत्तरदायी है। यह बहुपक्षीय जलवायु परिवर्तन व्यवस्था के साथ-साथ G20 जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के भीतर जलवायु वित्त संबंधी मुद्दों पर चर्चा में भाग लेती है और साथ ही राष्ट्रीय जलवायु नीति ढाँचे को विश्लेषणात्मक इनपुट भी प्रदान करती है।

  UPSC सिल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण इंदिरा गांधी के कार्यकाल में किया गया था।
  2. वर्तमान में कोयला ब्लॉक का आवंटन लॉटरी के आधार पर किया जाता है।
  3. भारत हाल के समय तक घरेलू आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये कोयले का आयात करता था, किंतु अब भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • वर्ष 1972 में इंदिरा गांधी सरकार के तहत कोयला क्षेत्र का दो चरणों में राष्ट्रीयकरण किया गया था। अतः कथन 1 सही है।
  • कोयला ब्लॉक का आवंटन लॉटरी के आधार पर न होकर नीलामी के माध्यम से किया जाता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • कोयला क्षेत्र भारत में एकाधिकार क्षेत्र है। भारत के पास दुनिया का 5वाँ सबसे बड़ा कोयला भंडार है, लेकिन एकाधिकार फर्मों द्वारा कोयला उत्पादन की अक्षमता के कारण यह घरेलू आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये कोयले का आयात करता है। अत: कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प a सही उत्तर है


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय कोयले का/के अभिलक्षण है/हैं? (2013)

  1. उच्च भस्म अंश
  2. निम्न सल्फर अंश
  3. निम्न भस्म संगलन तापमान

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेंन्स

प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग प्रतिशत में अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बहुत कम प्रतिशत योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021)

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय राजनीति

अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों का संचालन

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकाय

मेन्स  के लिये:

भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकाय, अर्द्ध-न्यायिक निकायों की भूमिका और बेहतर संचालन के उपाय

चर्चा में क्यों?

प्रशासनिक और राजनीतिक नेतृत्त्व द्वारा उचित निरीक्षण एवं स्वामित्त्व का अभाव अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों के सामने सबसे गंभीर समस्या है।

  • कई राज्य लंबित मामलों की संख्या या निपटान की दर के बारे में जानकारी संकलित नहीं करते हैं।

अर्द्ध-न्यायिक निकाय:

  • परिचय:
  • शासन में भूमिका:
    • पारंपरिक न्यायिक प्रक्रिया में खर्च के डर से आबादी के एक बड़े हिस्से का न्यायालयों की ओर रुख करने से हिचकिचाना आम बात थी जो कि न्याय के उद्देश्य की विफलता दर्शाती है।
      • वहीं अर्द्ध-न्यायिक निकायों की कुल लागत काफी कम होती है जो लोगों को उनकी शिकायतों के निवारण के लिये प्रोत्साहित करती है।
    • अधिकरण और अन्य ऐसे निकाय आवेदन या साक्ष्य आदि जमा करने के लिये किसी लंबी या जटिल प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं।
    • अर्द्ध-न्यायिक निकाय, विशिष्ट मामलों को उठाते समय न्यायपालिका की सहायता उसके कार्यभार को साझा करने के रूप में करते हैं।
      • जैसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण पर्यावरण और प्रदूषण से संबंधित मामलों का फैसला करता है।
    • अर्द्ध-न्यायिक निकाय सुलभ, जटिलताओं से मुक्त, विवाद निपटान के साथ कुशल विशेषज्ञों द्वारा संचालित होते हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • लंबित मामलों पर बातचीत करने के संदर्भ में अर्द्ध-न्यायिक एजेंसियों पर विचार नहीं किया जाता है।
      • ये आमतौर पर राजस्व अधिकारियों द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं और बड़े पैमाने पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत भूमि, किरायेदारी, उत्पाद कर, हथियार, खनन या निवारक कार्यों से संबंधित होते हैं। आमतौर पर इनमें से कई कार्यालयों में कर्मचारियों की कमी देखी जाती है।
      • कानून और व्यवस्था, प्रोटोकॉल, समन्वय एवं अन्य प्रशासनिक कार्यों जैसे कर्तव्यों के चलते व्यस्तता के कारण उन्हें अदालत के काम के लिये बहुत कम समय मिल पाता है।
      • अदालत के क्लर्कों और रिकॉर्ड कीपरों तक उनकी पहुँच सीमित है। इनमें से कई साथ ही अदालतों में कंप्यूटर और वीडियो रिकॉर्डर की सुविधा उपलब्ध न होना।
      • पीठासीन अधिकारियों में से कई को कानून और प्रक्रियाओं की उचित जानकारी नहीं होती है, जो कई सिविल सेवकों के लिये हथियार लाइसेंस से संबंधित संवेदनशील मामलों में परेशानी का कारण बन जाता है।

अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों में सुधार के लिये:

  • सरकार को इन एजेंसियों के कुशल कामकाज को प्राथमिकता देनी चाहिये और इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये।
  • इन एजेंसियों के कामकाज पर विस्तृत डेटा समय-समय पर कम-से-कम वार्षिक रूप से एकत्र और प्रकाशित किया जाना चाहिये।
    • इन्हें संबंधित विधानमंडलों के समक्ष रखा जाना चाहिये
    • ये परिणाम कर्मचारियों की संख्या को तर्कसंगत बनाने के बारे में निर्णयों का आधार होना चाहिये।
  • न्याय प्रशासन से संबंधित सभी सहायक कार्यों जैसे कि शिकायतें दर्ज करना, समन जारी करना, अदालतों के बीच मामले के रिकॉर्ड के आदान-प्रदान, निर्णयों की प्रतियाँ जारी करना आदि को सुव्यवस्थित करने के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक मंच स्थापित किया जाना चाहिये।
    • यह इन निकायों के कामकाज़ का विश्लेषण करने और आँकड़ों के प्रकाशन की सुविधा के लिये एक ठोस आधार स्थापित कर सकता है।
  • अधीनस्थ न्यायालयों का वार्षिक निरीक्षण अनिवार्य किया जाए।
    • यह उच्च प्राधिकारी द्वारा मूल्यांकन के लिये एक महत्त्वपूर्ण संकेतक होना चाहिये। निरीक्षण पीठासीन अधिकारियों के अनुकूलित प्रशिक्षण का आधार बन सकता है।
  • इन न्यायालयों के कामकाज़ पर अंतःविषय अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये
    • यह सुधार के क्षेत्रों की पहचान करेगा जैसे कानूनी सुधार या स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करना।
  • समय-समय पर निर्णायक अधिकारियों का नियमित प्रशिक्षण और उन्मुखीकरण किया जाना चाहिये।
  • इन अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों के प्रदर्शन का राज्य सूचकांक बनाना और प्रकाशित किया जाए।
    • यह अन्य राज्यों की तुलना में उनके प्रदर्शन की ओर राज्यों का ध्यान आकर्षित करेगा और उन्हें कमज़ोर क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करेगा।
  • महत्त्वपूर्ण निर्णयों, दिशा-निर्देशों और निर्देशों को संकलित किया जा सकता है एवं राजस्व बोर्ड जैसे शीर्ष निर्णायक फोरम के पोर्टल पर प्रकाशित किया जा सकता है।
    • ये निचले स्तर की एजेंसियों के लिये मददगार होंगे।
  • न्यायिक कार्य संभालने वाले अधिकारियों का अधिक गहन प्रारंभिक प्रशिक्षण इसमें सहायक होगा।
    • प्रशिक्षुओं के बीच न्यायिक कार्य के महत्त्व को स्थापित किया जाना चाहिये और उनमें कौशल एवं आत्मविश्वास को विकसित किया जाना चाहिये।
  • प्रक्रियात्मक सुधार जैसे स्थगन को कम करना, लिखित बहस को अनिवार्य रूप से दाखिल करना और नागरिक प्रक्रिया संहिता में सुधार के लिये विधि आयोग जैसे निकायों द्वारा प्रस्तावित ऐसे अन्य सुधारों को इन सहायक निकायों द्वारा अपनाया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. "केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण जिसकी स्थापना केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा या उनके खिलाफ शिकायतों एवं परिवादों के निवारण के लिये की गई थी, आजकल एक स्वतंत्र न्यायिक प्राधिकरण के रूप में अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहा है।" व्याख्या कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय समाज

राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में आत्महत्या की स्थिति, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति, भारत में आत्महत्याओं की स्थिति, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने "राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति" की घोषणा की है।

  • यह देश में अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है, जिसमें वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी लाने के लिये समयबद्ध कार्ययोजना और बहु-क्षेत्रीय सहयोग शामिल है।
  • यह रणनीति आत्महत्या की रोकथाम के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र रणनीति के अनुरूप है।

राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति:

  • यह रणनीति मोटे तौर पर अगले तीन वर्षों के भीतर आत्महत्या के लिये प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करने का प्रयास करती है।
  • यह मनोरोग बाह्य रोगी विभाग स्थापित करेगा जो अगले पाँच वर्षों के भीतर सभी ज़िलों में ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के माध्यम से आत्महत्या रोकथाम सेवाएँ प्रदान करेगा।
  • इसका उद्देश्य अगले आठ वर्षों के भीतर सभी शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक कल्याण पाठ्यक्रम को एकीकृत करना है।
  • यह ज़िम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग और आत्महत्या के साधनों तक पहुँच को प्रतिबंधित करने हेतु दिशा-निर्देश विकसित कर आत्महत्याओं को रोकने की परिकल्पना करता है।

भारत में आत्महत्याओं की स्थिति:

  • राष्ट्रीय आँकड़े:
  • दैनिक वेतनभोगी:
    • वर्ष 2021 में आत्महत्या पीड़ितों के बीच दैनिक वेतनभोगी सबसे बड़ा पेशेवर समूह बना रहा, जो 42,004 आत्महत्याओं (25.6%) के लिये ज़िम्मेदार है।
    • आत्महत्या से दिहाड़ी मज़दूरों की मृत्यु का हिस्सा पहली बार चतुर्थांश आँकड़े को पार कर गया है।
    • राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्याओं की संख्या में वर्ष 2020 से वर्ष 2021 तक 7.17% की वृद्धि हुई।
      • हालाँकि इस अवधि के दौरान दैनिक वेतनभोगी समूह में आत्महत्या करने वालों की संख्या में 11.52% की वृद्धि हुई।

sucide-rate

  • कृषि क्षेत्र:
    • कुल दर्ज आत्महत्याओं में "कृषि क्षेत्र में लगे व्यक्तियों" की कुल हिस्सेदारी वर्ष 2021 के दौरान 6.6% थी।
  • व्यवसाय के अनुसार वितरण:
    • उच्चतम वृद्धि "स्व-नियोजित व्यक्तियों" द्वारा दर्ज की गई जो कि 16.73% थी।
    • "बेरोज़गार व्यक्तियों" का समूह एकमात्र ऐसा समूह था जिसने आत्महत्याओं में गिरावट दर्ज की, जो वर्ष 2020 में 15,652 से 12.38% घटकर वर्ष 2021 में 13,714 हो गई।

index

  • आत्महत्या का कारण:
    • 32.2%: पारिवारिक समस्याओं के कारण (विवाह से संबंधित समस्याओं के अलावा)।
    • 4.8%: विवाह से संबंधित समस्याओं के कारण।
    • 18.6%: बीमारी की समस्याओं के कारण।
  • राज्य:
    • वर्ष 2021 में रिपोर्ट की गई आत्महत्याओं की संख्या के मामले में महाराष्ट्र देश में सबसे ऊपर है, इसके बाद तमिलनाडु और मध्य प्रदेश हैं।
    • वर्ष 2021 में देश भर में दर्ज आत्महत्याओं की कुल संख्या में महाराष्ट्र का योगदान 13.5% था।
  • केंद्रशासित प्रदेश:
    • दिल्ली में सबसे अधिक 2,840 आत्महत्याएँ दर्ज की गईं।

आत्महत्याओं को कम करने के लिये भारत की क्या पहल है?

  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017:
    • MHA 2017 का उद्देश्य मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।
  • किरण:
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचारों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का सामना करने वाले लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन "किरण (KIRAN)" शुरू की है।
  • मनोदर्पण पहल:
    • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) (अब शिक्षा मंत्रालय) ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मनोदर्पण पहल लॉन्च की। इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को कोविड-19 के समय में उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB):

  • NCRB, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है, की स्थापना वर्ष 1986 में गृह मंत्रालय के तहत अपराध और अपराधियों संबंधी सूचना के भंडार के रूप में कार्य करने के लिये की गई थी ताकि अपराधियों के जाँचकर्त्ताओं को अपराध एवं अपराधी की कड़ी को समझने में सहायता मिल सके।
  • इसकी स्थापना राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) और गृह मंत्रालय की टास्क फोर्स (1985) की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
  • NCRB देश भर में अपराध का विस्तृत वार्षिक आँकड़ा ('भारत में अपराध' रिपोर्ट) प्रकाशित करता है।
    • वर्ष 1953 से प्रकाशित होने के बाद यह रिपोर्ट देश भर में कानून और व्यवस्था की स्थिति को समझने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करती है।

स्रोत: हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

2022 की गंभीर जलवायु आपदाएँ और COP27

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु आपदाएँ, मलेरिया, दस्त, चक्रवात, सूखा, हीटवेव, वज्रपात, बाढ़, भूस्खलन

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और इसका प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

चर्चा में क्यों?

विकासशील और कमज़ोर राष्ट्रों द्वारा COP27 में जलवायु वित्त की मांग जारी है, अतः इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि वैश्विक आपदा से वर्ष 2022 में जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

पिछले वैश्विक आपदाओं का प्रभाव:

  • पाकिस्तान में बाढ़:
    • पाकिस्तान में मार्च 2022 के महीने में सामान्य से 62% कम बारिश दर्ज की गई और मानसून से पहले अप्रैल माह सबसे गर्म रहा।
      • इन हीटवेव के कारण ग्लेशियर पिघल गए जिससे नदियाँ उफान पर आ गईं। पाकिस्तान की 22 करोड़ की आबादी में से 3.3 करोड़ लोगों के लिये बुनियादी ज़रूरतों तक पहुँच मुश्किल हो गई।
    • अत्यधिक वर्षा के कारण जून से सितंबर महीनों के दौरान विनाशकारी बाढ़ की समस्या उत्पन्न हुई।
      • यह बाढ़ देश के इतिहास में सबसे खराब आपदा थी।
      • इसमें 1,500 से अधिक लोग मारे गए, लाखों लोग विस्थापित हुए और त्वचा संक्रमण, मलेरिया एवं डायरिया जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि हुई।
  • अमेरिका में हरिकेन इयान:
    • नासा के आँकड़ों से पता चला है कि मेंक्सिको की खाड़ी में समुद्र के गर्म जल ने सितंबर 2022 के अंत में अमेरिका में हरिकेन इयान को उत्पन्न किया, जिससे यह हाल के दिनों में वहाँ आने वाले सबसे मज़बूत तूफानों में से एक है।
      • इसके परिणामस्वरूप 101 लोगों की जान चली गई और 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक की मौद्रिक हानि हुई।
      • यह आपदा वर्ष की सबसे घातक जलवायु-प्रेरित आपदा थी।
    • इस घटना के कारण दक्षिण-पश्चिमी फ्लोरिडा में भीषण बाढ़, लगातार बारिश और तेज हवाएँ चलीं।
  • यूरोपीय सूखा:
    • जून और जुलाई, 2022 में यूरोप दो चरम हीट की घटनाओं के कारण प्रभावित हुआ, जिसने लगभग 16,000 लोगों की जान ले ली।
      • इस साल के सूखे की 500 वर्षों में सबसे गंभीर होने की संभावना है।
    • यूरोप की सबसे बड़ी नदियों- राइन, पो, लॉयर और डेन्यूब में जल स्तर कम हो गया है, और महाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में शुष्क स्थिति बनी हुई है।
  • स्पेन और पुर्तगाल:
    • वायुमंडलीय उच्च दबाव प्रणाली, जो सर्दियों और वसंत के मौसम में उत्तरी गोलार्द्ध में उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में शुष्क हवा का कारण बनती है, जिसे अज़ोरेस हाई कहा जाता है, में आर्द्र मौसम के प्रवाह को अवरुद्ध करने की क्षमता होती है।
    • इससे दक्षिण-पश्चिमी यूरोप में इबेरियन प्रायद्वीप और भूमध्य क्षेत्र में शुष्क स्थिति पैदा हो गई।
      • इसलिये स्पेन और पुर्तगाल को जंगल की आग के साथ 1,200 वर्षों में सबसे शुष्क मौसम का सामना करना पड़ा।
  • भारत में प्राकृतिक आपदाएँ:
    • भारत ने वर्ष 2022 में लगभग प्रत्येक दिन प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया।
    • भारत ने वर्ष के पहले नौ महीनों में "273 में से 241 दिनों में चरम मौसमी घटनाएँ" दर्ज कीं।
    • कुल मिलाकर इन आपदाओं ने "2,755 लोगों की जान ली, 8 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र को प्रभावित किया, 416,667 घरों को नष्ट कर दिया और लगभग 70,000 पशुओं को मार डाला।"

COP27 के प्रमुख परिणाम:

  • कमज़ोर देशों के लिये लॉस एंड डैमेज फंड:
    • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP27 ने कमज़ोर देशों को लॉस एंड डैमेज वित्तपोषण प्रदान करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • प्रौद्योगिकी:
    • COP27 में विकासशील देशों में जलवायु प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ावा देने के लिये एक नया पंचवर्षीय कार्यक्रम शुरू किया गया था।
  • शमन:
    • शमन महत्त्वाकाँक्षा और कार्यान्वयन को तत्काल बढ़ाने के उद्देश्य से एक शमन कार्यक्रम शुरू किया गया।
    • कार्यक्रम COP27 के तुरंत बाद शुरू होगा और वर्ष 2030 तक ज़ारी रहेगा, जिसमें प्रतिवर्ष कम-से-कम दो वैश्विक संवाद होंगे।
    • सरकारों से यह भी अनुरोध किया गया कि वे वर्ष 2023 के अंत तक अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में 2030 के लक्ष्यों पर फिर से विचार करें और उन्हें मज़बूत बनाएँ, साथ ही बेरोकटोक कोयला विद्युत को चरणबद्ध करने तथा अक्षम जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को समाप्त करने के प्रयासों में तेज़ी लाएँ।।
  • ग्लोबल स्टॉकटेक:
    • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP27 में प्रतिनिधियों ने पेरिस समझौते के तहत महत्त्वाकाँक्षा बढ़ाने के लिये एक तंत्र पहले वैश्विक स्टॉकटेक की दूसरी तकनीकी वार्ता की।
    • अगले साल COP28 में स्टॉकटेक के समापन से पहले वर्ष 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव 'जलवायु महत्त्वाकाँक्षा शिखर सम्मेलन' आयोजित करेंगे।
  • शर्म-अल-शेख अनुकूलन एजेंडा:
    • यह 2030 तक सबसे अधिक जलवायु संवेदनशील समुदायों में रहने वाले 4 अरब लोगों के लिये लचीलापन बढ़ाने हेतु 30 अनुकूलन परिणामों की रूपरेखा तैयार करता है।
  • जल अनुकूलन और लचीलापन पहल पर कार्रवाई (AWARe):
    • यह एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन समस्या और संभावित समाधान दोनों के रूप में जल के महत्व को प्रतिबिंबित करने के लिये शुरू किया गया है।
  • अफ्रीकी कार्बन बाज़ार पहल (ACMI):
    • यह कार्बन क्रेडिट उत्पादन के विकास का समर्थन करने और अफ्रीका में नौकरियाँ पैदा करने के लिये शुरू किया गया था।
  • वैश्विक नवीकरणीय गठबंधन:
    • यह पहली बार एक त्वरित ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के लिये ऊर्जा संक्रमण के लिये आवश्यक सभी तकनीकों को एक साथ लेकर आता है।
    • इस एलायंस का उद्देश्य लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा को सतत् विकास और आर्थिक विकास के स्तंभ के रूप में स्थापित करना है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

ग्रेट निकोबार का विकास

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रेट निकोबार द्वीप समूह, बंगाल की खाड़ी, इंडो-पैसिफिक, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, कोरल रीफ।

मेन्स के लिये:

ग्रेट निकोबार का विकास और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ग्रेट निकोबार द्वीप पर 72,000 करोड़ रुपए की महत्त्वाकांक्षी विकास परियोजना के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी दी है।

  • इस परियोजना को अगले 30 वर्षों में तीन चरणों में लागू किया जाना है।

प्रस्ताव:

  • इसमें ग्रीनफील्ड शहर प्रस्तावित किया गया है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल (ICTT), ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और बिजली संयंत्र शामिल हैं।
  • बंदरगाह को भारतीय नौसेना द्वारा नियंत्रित किया जाएगा, जबकि हवाई अड्डे के दोहरे सैन्य-नागरिक कार्य के साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा देगा।
  • द्वीप के दक्षिण-पूर्वी और दक्षिणी तटों के साथ-साथ कुल 166.1 वर्ग किमी. की पहचान 2 किमी. और 4 किमी. के बीच चौड़ाई वाली तटीय पट्टी के साथ परियोजना के लिये की गई है।
  • करीब 130 वर्ग किमी. के जंगलों को डायवर्ज़न के लिये मंज़ूरी दी गई है, जहाँ 9.64 लाख पेड़ों के काटे जाने की संभावना है।

द्वीप को विकसित करने का उद्देश्य:

  • आर्थिक कारण:
    • ग्रेट निकोबार कोलंबो से दक्षिण-पश्चिम और पोर्ट क्लैंग एवं सिंगापुर से दक्षिण-पूर्व में समान दूरी पर है तथा पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग कॉरिडोर के करीब स्थित है, जिसके माध्यम से दुनिया के शिपिंग व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा संचालित होता है।
    • प्रस्तावित ICTT संभावित रूप से इस मार्ग पर यात्रा करने वाले मालवाहक जहाज़ों के लिये एक केंद्र बन सकता है।
    • नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रस्तावित बंदरगाह कार्गो ट्रांसशिपमेंट में एक प्रमुख खिलाड़ी बनकर ग्रेट निकोबार को क्षेत्रीय और वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था में भाग लेने की अनुमति देगा।
  • रणनीतिक कारण:
    • ग्रेट निकोबार को विकसित करने का प्रस्ताव पहली बार वर्ष 1970 के दशक में पेश किया गया था, और राष्ट्रीय सुरक्षा तथा हिंद महासागर क्षेत्र के समेकन के लिये इसके महत्त्व को बार-बार रेखांकित किया गया है।
    • बंगाल की खाड़ी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दावे ने हाल के वर्षों में इस अनिवार्यता को और बढ़ा दिया है।

संबंधित चिंताएँ:

  • पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण और नाजुक क्षेत्र में प्रस्तावित बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे के विकास ने कई पर्यावरणविदों को चिंतित कर दिया है।
  • वृक्षावरण की क्षति न केवल द्वीप पर वनस्पतियों और जीवों को प्रभावित करेगा बल्कि इससे समुद्र में अपवाह और तलछट जमाव में भी वृद्धि होगी जिससे क्षेत्र में प्रवाल भित्तियाँ प्रभावित होंगी।
  • पर्यावरणविदों ने विकास परियोजना के परिणामस्वरूप द्वीप पर मैंग्रोव के नुकसान को भी चिह्नित किया है।

चिंताओं को दूर करने हेतु सरकार के कदम:

  • भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (ZSI) वर्तमान में यह आकलन करने की प्रक्रिया में है कि परियोजना के लिये कितनी प्रवाल भित्ति को स्थानांतरित करना होगा।
  • लेदरबैक कछुए के लिये एक संरक्षण योजना भी बनाई जा रही है।
  • सरकार के अनुसार परियोजना स्थल कैंपबेल खाड़ी और गलाथिया राष्ट्रीय उद्यान के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों के बाहर है।

ग्रेट निकोबार द्वीप समूह:

  • परिचय:
    • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सबसे दक्षिणी भाग ग्रेट निकोबार का क्षेत्रफल 910 वर्ग किमी. है।
      • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बंगाल की पूर्वी खाड़ी में लगभग 836 द्वीपों का एक समूह है, जिसके दो समूह 150 किलोमीटर चौड़े दस डिग्री चैनल द्वारा अलग किये गए हैं।
      • चैनल के उत्तर में अंडमान द्वीप और दक्षिण में निकोबार द्वीप समूह स्थित हैं
    • ग्रेट निकोबार द्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित इंदिरा पॉइंट भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु है, जो इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के सबसे उत्तरी द्वीप से 150 किमी. से भी कम दूरी पर है।
    • इसमें 1,03,870 हेक्टेयर अद्वितीय और संकटग्रस्त उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।
    • यह एक बहुत समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें एंजियोस्पर्म, फ़र्न, जिम्नोस्पर्म, ब्रायोफाइट्स की 650 प्रजातियाँ शामिल हैं।
    • जीवों के संदर्भ में यहाँ 1800 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जिनमें से कुछ इस क्षेत्र के लिये स्थानिक हैं।
  • पारिस्थितिक विशेषताएँ:  
    • ग्रेट निकोबार बायोस्फीयर रिज़र्व पारिस्थितिक तंत्र के एक विस्तृत स्पेक्ट्रम को आश्रय देता है जिसमें उष्णकटिबंधीय गीले सदाबहार वन, समुद्र तल से 642 मीटर (माउंट थुलियर) की ऊंचाई तक पहुँचने वाली पर्वत  शृंखलाएँ और तटीय मैदान शामिल हैं
    • ग्रेट निकोबार में दो राष्ट्रीय उद्यानों, एक बायोस्फीयर रिज़र्व हैं
    • राष्ट्रीय उद्यान: कैंपबेल बे नेशनल पार्क और गैलाथिया नेशनल पार्क
    • बायोस्फीयर रिज़र्व: ग्रेट निकोबार बायोस्फीयर रिज़र्व।
  • जनजाति:
    • लगभग 200 की संख्या में मंगोलॉयड शोम्पेन जनजाति, विशेष रूप से नदियों और नालों के किनारे बायोस्फीयर रिज़र्व के जंगलों में रहते हैं।
    • एक अन्य मंगोलियाई जनजाति, निकोबारी, लगभग 300 की संख्या में, पश्चिमी तट के साथ बस्तियों में रहती थी
      • वर्ष 2004 में सुनामी ने जिन पश्चिमी तट की बस्तियों  को तबाह कर दिया था, उन्हें उत्तरी तट और कैम्पबेल खाड़ी में अफरा खाड़ी क्षेत्र में पुनःस्थापित कर दिया गया था।

Southernmost-point

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल-भित्तियाँ हैं? (2014)

  1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
  2. कच्छ की खाड़ी
  3. मन्नार की खाड़ी
  4. सुंदरबन

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c)  केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. बैेरन द्वीप ज्वालामुखी भारतीय क्षेत्र में स्थित एक सक्रिय ज्वालामुखी है।
  2. बैेरन द्वीप ग्रेट निकोबार से लगभग 140 किमी. पूर्व में स्थित है।
  3. पिछली बार वर्ष 1991 में बैरन द्वीप ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ था और तब से यह निष्क्रिय है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा द्वीप युग्म 'दस डिग्री चैनल' द्वारा एक-दूसरे से विभाजित होता है? (2014)

(a) अंडमान और निकोबार
(b) निकोबार और सुमात्रा
(c) मालदीव और लक्षद्वीप
(d) सुमात्रा और जावा

उत्तर: (a)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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