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भारतीय राजनीति

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC)

  • 08 Jul 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय सूचना आयोग, सूचना का अधिकार

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं 

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने भारत संघ और सभी राज्यों को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) एवं राज्य सूचना आयोगों (SIC) में रिक्तियों तथा पेंडेंसी के संबंध में नवीनतम घटनाओं पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख बिंदु:

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के संदर्भ में:

  • स्थापना: CIC की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा  की गई थी। यह संवैधानिक निकाय नहीं है।
  • सदस्य: इसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त होता है और दस से अधिक सूचना आयुक्त नहीं हो सकते हैं।
  • नियुक्ति: उन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
  • क्षेत्राधिकार: आयोग का अधिकार क्षेत्र सभी केंद्रीय लोक प्राधिकरणों तक है।
  • कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर रह सकता है।
    • वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
  • CIC की शक्तियाँ और कार्य:
    • आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
    • आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
    • आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।

राज्य सूचना आयोग:

  • इसका गठन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
  • इसमें एक राज्य मुख्य सूचना आयुक्त (State Chief Information Commissioner- SCIC) तथा मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जाने वाले अधिकतम 10 राज्य सूचना आयुक्त (State Information Commissioners- SIC) शामिल होते हैं।

मुद्दे:

  • देरी और बैकलॉग:
    • CIC को आयोग के समक्ष दायर की गई अपील/शिकायत के निपटान में औसतन 388 दिन (एक वर्ष से अधिक) लगते हैं।
    • पिछले वर्ष जारी एक रिपोर्ट बताती है कि केंद्र और राज्य सूचना आयोगों (IC) में सूचना के अधिकार के अब तक 2.2 लाख से अधिक मामले लंबित हैं।
  • दंड का कोई प्रावधान नहीं: 
    • रिपोर्ट में पाया गया कि कानून के उल्लंघन के लिये सरकारी अधिकारियों को शायद ही किसी सज़ा का सामना करना पड़ता है।
    • पिछले विश्लेषण में लगभग 59% उल्लंघनों के बावजूद केवल 2.2% मामलों में जूर्माना लगाया गया था, जो कि जूर्माना लगाना चाहिये।
  • रिक्तियाँ:
    • न्यायालय के बार-बार निर्देश के बावजूद CIC में अभी भी तीन रिक्तियाँ हैं।
  • पारदर्शिता की कमी:
    • चयन के मानदंड आदि का भी रिकॉर्ड नहीं रखा गया है।

सूचना का अधिकार अधिनियम:

  • श्री कुलवाल बनाम जयपुर नगर निगम मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से वर्ष 1986 में आरटीआई कानून की उत्पत्ति हुई, जिसमें यह निर्देश दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान की गई भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्पष्ट रूप से सूचना का अधिकार है, जैसा कि सूचना वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नागरिकों द्वारा पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सकता है
  • इसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों को व्यावहारिक रूप से सरकार और विभिन्न सार्वजनिक उपयोगिता सेवा प्रदाताओं से कुछ प्रासंगिक प्रश्न पूछने के अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाना है।
  • सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम 2002 को आरटीआई अधिनियम में बदल दिया गया।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य नागरिकों को सरकारी एजेंसियों की त्वरित सेवाओं का लाभ उठाने में मदद करना था क्योंकि यह अधिनियम उन्हें यह सवाल पूछने में सक्षम बनाता है कि किसी विशेष आवेदन या आधिकारिक कार्यवाही में देरी क्यों होती है।
  • इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को साकार करना है।

मांगी जा सकने वाली जानकारी

  • कोई भी भारतीय नागरिक किसी सरकारी प्राधिकरण से विलंबित आईटी रिफंड, ड्राइविंग लाइसेंस या पासपोर्ट के लिये आवेदन करने या बुनियादी ढाँचा परियोजना के पूर्ण होने या मौजूदा विवरण की प्राप्ति के लिये आवेदन करने हेतु स्वतंत्र है।
  • मांगी गई जानकारी देश में विभिन्न प्रकार के राहत कोषों के तहत आवंटित राशि से भी संबंधित हो सकती है।
  • यह अधिनियम छात्रों को इस अधिनियम के तहत विश्वविद्यालयों से उत्तर पुस्तिकाओं की प्रतियाँ प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।

आगे की राह   

  • लोकतंत्र जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन है। तीसरे प्रतिमान को प्राप्त करने हेतु राज्य को जागरूक जनता के महत्त्व और एक राष्ट्र के रूप में देश के विकास में उसकी भूमिका को स्वीकार करना करना होगा। इस संदर्भ में RTI अधिनियम से संबंधित अंतर्निहित मुद्दों को हल किया जाना चाहिये, ताकि यह समाज की सूचना आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
  • विशेष रूप से कोविड -19 के दौरान सूचना आयोगों की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोग स्वास्थ्य सुविधाओं, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों  एवं संकट के समय लोगों हेतु आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के वितरण के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।
  • 2019 के आदेश में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को पारदर्शी व समयबद्ध तरीके से केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में रिक्त पदों को भरने के लिये कई निर्देश जारी किये थे।
  • अभिलेखों का त्वरित रूप से डिजिटलीकरण और उचित रिकॉर्ड प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि लॉकडाउन में अभिलेखों तक दूरस्थ पहुँच  (Remote Access) की कमी को व्यापक रूप से आयोगों द्वारा अपीलों तथा शिकायतों की सुनवाई करने में बाधक होने का कारण बताया गया है।

स्रोत: द हिंदू

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