इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

न्यायपालिका: समस्याएँ एवं समाधान

  • 27 Apr 2021
  • 11 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 24/04/2021 को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित लेख “A Court in Crisis” पर आधारित है। इस में न्यायपालिका से जुड़े मुद्दे एवं नए CJI के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई है।

न्याय का आशय नैतिक अधिकार, तर्कसंगतता, समानता और निष्पक्षता के आधार पर निर्णय लेने से है। देश के नागरिकों को समयोचित तरीके से न्याय प्रदान करने का दायित्त्व देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के कंधों पर होता है। भारत में यह भूमिका भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) द्वारा निभाई जाती है; इन्हें न्यायपालिका का 'मास्टर ऑफ द रोस्टर' कहा जाता है।

हाल ही में पूर्व CJI जस्टिस एस.ए. बोबडे की सेवानिवृत्ति के बाद सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस एन. वी. रमना (N. V. Ramana) ने देश के 48वें मुख्य न्यायालय के रूप में शपथ ली है। उन्होंने ऐसे समय में CJI के रूप में पदभार ग्रहण किया है, जब भारत कोविड-19 महामारी के कारण एक बड़े संकट से गुजर रहा है। ऐसे में उनके समक्ष सभी को समयोचित तरीके से न्याय प्रदान करने की दिशा में में कई संभावित चुनौतियाँ मौजूद हैं।

न्यायपालिका से संबंधित मुद्दे

  • सर्वोच्च न्यायालय की अक्षमता: सर्वोच्च न्यायालय, न केवल मौलिक और अन्य संवैधानिक अधिकारों के रक्षक रूप में, बल्कि विधि के शासन के संरक्षक के रूप में अपने दायित्त्वों को पूरा करने में विफल रहा है।
    • कई बार नागरिकों, विपक्षी दलों और कार्यकर्त्ताओं से जुड़े राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों के संदर्भ में, न्यायालय ने संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों को बहाल करने के बजाय इन मामलों को कार्यपालिका को स्थानांतरित कर दिया।
    • हाल ही में सेवानिवृत्त हुए 47वें CJI न्यायिक इतिहास में पहले CJI हैं, जो 1990 के दशक में कॉलेजियम सिस्टम के आगमन के बाद शीर्ष अदालत में एक भी नियुक्ति के लिये सिफारिश किये बिना सेवानिवृत्त हुए हैं।
  • न्यायाधीशों की कमी:  भारत में प्रति दस लाख जनसंख्या पर 20 न्यायाधीश मौजूद हैं, जबकि अन्य देशों में यह संख्या औसतन 50-70 के आसपास है।
  • उच्च न्यायालयों में रिक्तियाँ एवं लंबित मामले: उच्च न्यायालयों में लंबित मामले एवं रिक्तियों से संबंधित आँकड़े काफी चिंताजनक हैं। आँकड़ों की मानें तो कुल मिलाकर 40% रिक्तियाँ एवं 57 लाख से अधिक मामले न्यायालय में लंबित हैं। 
    • मद्रास उच्च न्यायालय में केवल 7% रिक्तियाँ हैं, किंतु फिर भी 5.8 लाख मामले लंबित है।
    • जबकि कोलकाता उच्च न्यायालय में लगभग 44% पद रिक्त हैं और 2.7 लाख मामले लंबित है। 
  • भर्ती प्रक्रिया में देरी: न्यायपालिका में पदों को आवश्यकतानुसार तेज़ी से नहीं भरा जाता है। 135 मिलियन जनसंख्या वाले देश के लिये, न्यायाधीशों की कुल संख्या केवल 25000 के आसपास है। उच्च न्यायालयों में लगभग 400 पद रिक्त हैं एवं निचली न्यायपालिका में लगभग 35% पद रिक्त हैं।
  • महिलाओं और अल्पसंख्यकों का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व:  यद्यपि देश में लिंग आधारित मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है एवं देश में महिलाओं की आबादी लगभग आधी हैं फिर भी सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान में केवल एक ही महिला न्यायाधीश हैं। 
    • वहीं वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में केवल एक ही मुस्लिम न्यायाधीश हैं, जबकि न्यायालय में न्यायाधीश के तौर पर सिख, बौद्ध, जैन या आदिवासी समुदाय का कोई भी प्रतिनिधि नहीं है।
  • न्यायिक विलंब के लिये कोई कठोर कार्रवाई का अभाव: यद्यपि न्यायिक प्रक्रिया में विलंब की समस्या सर्वविदित है, किंतु इसके बावजूद इस समस्या की बारीकियों को समझने के लिये एवं इसे हल करने के लिये कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया है।

नए CJI के लिये चुनौतियाँ

नवनियुक्त CJI के सम्मुख निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं:

  • कोविड-19 महामारी के कारण वर्तमान में मौजूद अभूतपूर्व संकट के दौरान अदालत का कामकाज जारी रखना।
  • शीर्ष अदालत की प्रशासनिक मशीनरी को सुधारना और कॉलेजियम के कामकाज को सुव्यवस्थित करना।
  • न्यायिक बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना और बड़े पैमाने पर लंबित मामलों को निपटाना।
  • सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस रमना के कार्यकाल में लगभग 13 पद खाली होंगे क्योंकि वर्ष 2021 के अंत तक कई जज रिटायर होने वाले हैं।
  • सबसे बड़ी चुनौती उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ उच्च न्यायालयों में नियुक्ति प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना होगा जो न्यायाधीशों की कमी के कारण बड़ी संख्या में लंबित मामलों से जूझ रहे हैं।
  • राजधानी में बड़े पैमाने पर कोविड-19 संक्रमण को देखते हुए शारीरिक रूप से सुनवाई के लिये अदालतों के खुलने की संभावना नगण्य है।
  • अदालतों में सुनवाई को डिजिटल रूप से करना होगा जबकि तकनीकी समस्याओं के कारण वकीलों द्वारा इसकी आलोचना की गई है।

आगे की राह

  • सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका: जिस तरह से विधायिका और कार्यपालिका अपनी शक्ति लोगों से प्राप्त करती है, उसी तरह न्यायपालिका भी अपनी शक्ति देश के लोगों से से ही प्राप्त करती है। अतः एक बिलियन से अधिक आबादी वाले देश की जनता को अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिये उच्च न्यायालयों की ज़रूरत है।
    • सर्वोच्च न्यायालय में पाॅंच वरिष्ठतम न्यायाधीशों की कॉलेजियम व्यवस्था को अधिक पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिये और न्यायपालिका में विश्वास को बढ़ावा देने के लिये अधिक जवाबदेह बनाया जाना चाहिये।
  • CJI की भूमिका: नए मुख्य न्यायाधीश को अपने पूर्ववर्तियों के कार्यों की गहनता से समीक्षा करनी चाहिये एवं बेंचों को मामले आवंटित करने में पूर्वाग्रह से मुक्त होकर न्याय व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये ठोस कदम उठाने चाहिये। इसके बाद ही विधि का शासन बहाल होगा एवं संविधान का अनुपालन होगा।
  • नियुक्ति प्रणाली को सुव्यवस्थित करना: रिक्तियों को बिना किसी अनावश्यक विलंब के तेज़ी से भरना चाहिये।
    • न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक उचित समय-सीमा निर्धारित की जानी चाहिये और पहले से सिफारिशें दी जानी चाहिये।
    • संविधान में अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं का प्रावधान है अतः इसके गठन की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिये। यह निश्चित रूप से भारत में एक बेहतर न्यायिक प्रणाली स्थापित करने में मदद कर सकता है।
  • उचित प्रतिनिधित्व: सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों मे महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त होना चाहिये।
    • कॉलेजियम का कर्तव्य है कि वह बेंच को विविधता प्रदान करने के लिये समाज के सभी वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दे ताकि जनता का विश्वास, जो न्यायपालिका की सबसे बड़ी ताकत है, को बनाया रखा जा सके।

निष्कर्ष

भारत के मुख्य न्यायाधीश बिना किसी शर्त, पक्षपात एवं विलंब के भारत की जनता को न्याय प्रदान कर न्यायपालिका के प्रति जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये जवाबदेह हैं। न्यायालय के अंदर मौजूद चुनौतियों के अलावा न्यायालय के बाहर मौजूद चुनौतियों में से सबसे बड़ी चुनौती कोविड-19 का बढ़ता संक्रमण है।

एक ऐसी न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता हमेशा बनी हुई है, जहाँ सबूतों एवं गवाहों की निष्पक्ष जाँच हो, आँकड़ों का निष्पक्ष विश्लेषण हो, न्याय प्रक्रिया में विलंब न हो।

सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम व्यवस्था को न्यायाधीशों की नियुक्ति पर विशेष ध्यान देते हुए रिक्तियों एवं लंबित मामलों को तेज़ी से निपटना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: न्यायिक व्यवस्था के प्रमुख होने के नाते एवं नागरिकों को निष्पक्ष तथा समय पर न्याय दिलाने में, साथ ही देश की न्यायिक व्यवस्था में जनता का विश्वास बहाल करने में भारत के मुख्य न्यायाधीश के योगदान की विवेचना कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow