भारतीय अर्थव्यवस्था
OECD-FAO एग्रीकल्चर आउटलुक 2025-2034
प्रिलिम्स के लिये:आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन, खाद्य और कृषि संगठन, जैव ईंधन, इथेनॉल मेन्स के लिये:खाद्य सुरक्षा बनाम जैव ईंधन उत्पादन, खाद्य प्रणालियों पर जैव ईंधन नीतियों का प्रभाव, कृषि उत्पादकता |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) तथा खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की एग्रीकल्चर आउटलुक 2025–2034 रिपोर्ट वैश्विक कृषि व मत्स्य बाज़ारों पर 10 वर्षों की पूर्वानुमान आधारित दृष्टि प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को मार्गदर्शन देना है।
OECD-FAO एग्रीकल्चर आउटलुक 2025–2034 के अनुसार वैश्विक बाज़ार प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
- अनाज उत्पादन और जैव ईंधन की मांग: वैश्विक अनाज उत्पादन में प्रतिवर्ष 1.1% की दर से वृद्धि होने की संभावना है, जो मुख्यतः 0.9% प्रतिवर्ष की उपज वृद्धि पर आधारित होगी। हालाँकि, फसल कटाई क्षेत्र का विस्तार वर्ष 2034 तक घटकर 0.14% प्रतिवर्ष रह जाएगा।
- वर्ष 2034 तक, अनाज उत्पादन का 40% सीधे मनुष्यों द्वारा उपभोग किया जाएगा, जबकि 33% का उपयोग पशु चारे के लिये किया जाएगा और शेष 27% का उपयोग जैव ईंधन और औद्योगिक उपयोग के लिये किया जाएगा।
- वर्ष 2034 तक, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया वैश्विक अनाज उपभोग वृद्धि में 39% की हिस्सेदारी रखेंगे, जबकि चीन का हिस्सा 32% से घटकर 13% हो जाएगा, जो उपभोग प्रवृत्तियों में बदलाव को दर्शाता है।
- जैव ईंधन की मांग में प्रतिवर्ष 0.9% की वृद्धि होने का अनुमान है, जिसका मुख्य कारण ब्राज़ील, भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में वृद्धि है।
- वर्ष 2034 तक, अनाज उत्पादन का 40% सीधे मनुष्यों द्वारा उपभोग किया जाएगा, जबकि 33% का उपयोग पशु चारे के लिये किया जाएगा और शेष 27% का उपयोग जैव ईंधन और औद्योगिक उपयोग के लिये किया जाएगा।
- कृषि और मछली उत्पाद वृद्धि: वैश्विक कृषि और मछली उत्पादन में वर्ष 2034 तक 14% की वृद्धि होने का अनुमान है, जो मुख्य रूप से मध्यम आय वाले देशों में उत्पादकता लाभ से प्रेरित है।
- हालाँकि, इस वृद्धि के परिणामस्वरूप कृषि से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 6% की वृद्धि भी देखने को मिलेगी।
- पशु उत्पादों की खपत में वृद्धि: अगले दशक में विश्व स्तर पर प्रति व्यक्ति कैलोरी खपत में पशुधन और मछली उत्पादों से 6% की वृद्धि होने की संभावना है। यह वृद्धि मुख्यतः निम्न-मध्यम आय वाले देशों में देखने को मिलेगी, जहाँ खपत लगभग 24% बढ़ेगी, जो वैश्विक औसत से चार गुना अधिक है।
- इससे इन देशों में दैनिक कैलोरी खपत 364 किलोकैलोरी तक पहुँच जाएगी, जबकि निम्न आय वाले देशों में यह अभी भी केवल 143 किलोकैलोरी रहेगी, जो कि स्वस्थ आहार के लिये निर्धारित 300 किलोकैलोरी प्रतिदिन के लक्ष्य से काफी कम है।
जैव ईंधन की बढ़ती मांग वैश्विक खाद्य सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है?
- भूमि उपयोग: जैव ईंधन वाली फसलें उगाने से खाद्य उत्पादन के लिये उपलब्ध भूमि कम हो सकती है। E20 लक्ष्य को पूरा करने के लिये, भारत को 7.1 मिलियन हेक्टेयर (कुल फसल क्षेत्र का लगभग 3%) की आवश्यकता होगी, जिससे भूमि उपयोग और खाद्य सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- जल और संसाधनों पर दबाव: जैव ईंधन फसलों को काफी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है (इथेनॉल उत्पादन में प्रति लीटर इथेनॉल में 8-12 लीटर जल का उपयोग होता है) और उर्वरकों की आवश्यकता होती है, जिससे खाद्य कृषि के लिये आवश्यक संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
- खाद्य महंगाई: जैव ईंधन के लिये फीडस्टॉक फसलों की मांग बढ़ने से खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं। भारत में मक्का और चावल से इथेनॉल बनाने की दिशा में बढ़ते कदम खाद्य आपूर्ति को प्रभावित कर सकते हैं। वर्ष 2023 में चावल की कीमतों में 14.5% की वृद्धि गरीब परिवारों को सबसे अधिक प्रभावित करती है।
- गरीब देशों में खाद्य असुरक्षा की स्थिति और गंभीर हो जाती है, क्योंकि उनकी पहुँच तथा क्रय शक्ति दोनों सीमित होती हैं।
- पर्यावरणीय समझौते: जैव ईंधन फसलों के विस्तार से वनों की कटाई और जैव विविधता में कमी हो सकती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य प्रणालियों को प्रभावित करती है।
सतत् बायोईंधन और खाद्य सुरक्षा नीतियों को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है?
- फीडस्टॉक विविधीकरण: तीसरी पीढ़ी (3G) के इथेनॉल (अपशिष्ट जल/सीवेज/समुद्री जल का उपयोग करके सूक्ष्म शैवाल से) पहली पीढ़ी (1G) के इंधनों (गन्ना, गेहूँ, चावल) और दूसरी पीढ़ी (2G) के इंधनों (फसल अवशेष) की तुलना में एक सतत् विकल्प प्रदान करता है। यह खाद्य और जल संकट से बचने में भी सहायक होता है।
- भारत विशेष रूप से बायोईंधन उत्पादन के लिये अनुकूलित आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के विकास में निवेश कर सकता है, जिससे उत्पादन बढ़ाया जा सके और खाद्य फसलों पर दबाव कम किया जा सके।
- क्षेत्र निर्धारण और भूमि उपयोग योजना: एक जैव ईंधन ज़ोनिंग नीति लागू करना जो उपजाऊ कृषि भूमि के उपयोग को रोकती है।
- सीमांत और परती भूमि का उपयोग बायोईंधन फसलों के लिये सख्त पारिस्थितिक सुरक्षा उपायों के अंतर्गत किया जाए, ताकि वनों की कटाई या जैव विविधता की हानि से बचा जा सके।
- फसल विविधीकरण प्रोत्साहन: बायोईंधन आधारित एकफसल खेती (मोनोकल्चर) को रोकने के लिये विविध अनाजों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और खरीद प्रणाली को मज़बूत किया जाए।
- इथेनॉल खरीद नीतियों को खाद्य अधिशेष के मौसम के अनुरूप बनाना ताकि बाज़ार में विकृति से बचा जा सके।
- उत्पादकता और स्थिरता में सुधार: कुपोषण को कम करने और GHG उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिये कृषि उत्पादकता में वृद्धि महत्त्वपूर्ण है।
- रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि 15% उत्पादकता सुधार और उत्सर्जन में कमी लाने वाली प्रौद्योगिकियों (जैसे, परिशुद्ध खेती, पशु आहार संवर्द्धन तथा फसल चक्र जैसी कम लागत वाली पद्धतियाँ) में निवेश करके वैश्विक कुपोषण को समाप्त किया जा सकता है तथा उत्सर्जन में 7% की कमी की जा सकती है।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)
- आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) एक अंतर-सरकारी निकाय है जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में आर्थिक विकास और वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है और इसके 38 सदस्य देश हैं, जिनमें से अधिकांश उच्च आय वाले देश हैं जिनका मानव विकास सूचकांक (HDI) उच्च है।
- भारत इसका सदस्य नहीं है अपितु एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।
- OECD कई महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट और सूचकांक जारी करता है, जिनमें गवर्नमेंट एट ए ग्लांस और बेटर लाइफ इंडेक्स शामिल हैं।
खाद्य और कृषि संगठन (FAO)
- FAO संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुरानी विशिष्ट एजेंसी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1945 में हुई थी और जिसका मुख्यालय रोम में है। इसका उद्देश्य भुखमरी से लड़ना, पोषण में सुधार करना और सतत् कृषि को बढ़ावा देना है।
- 194 सदस्य देशों और यूरोपीय संघ के साथ, FAO अनुसंधान, तकनीकी सहायता, शिक्षा तथा डेटा सेवाओं के माध्यम से देशों को समर्थन प्रदान करता है।
- यह कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन और संसाधन प्रबंधन पर केंद्रित है, लेकिन खाद्य राहत का काम विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा किया जाता है।
- प्रमुख रिपोर्टों में वैश्विक मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर की स्थिति (SOFIA), विश्व के वनों की स्थिति (SOFO), वैश्विक खाद्य सुरक्षा तथा पोषण की स्थिति (SOFI) एवं खाद्य व कृषि की स्थिति (SOFA) शामिल हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. चर्चा कीजिये कि कैसे जैव ईंधनों की बढ़ती वैश्विक मांग खाद्य सुरक्षा के साथ समझौते की स्थिति उत्पन्न कर रही है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. चार ऊर्जा फसलों के नाम नीचे दिये गए हैं। उनमें से किसकी खेती इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010) (a) जटरोफा उत्तर: (b) प्रश्न. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 5 और 6 उत्तर: (a) |


सामाजिक न्याय
दिव्यांग कैदियों को बुनियादी जेल सुविधाएँ न देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है: सर्वोच्च न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD अधिनियम), दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, हीमोफीलिया, सिकल सेल एनीमिया। मेन्स के लिये:दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताएँ, जेलों में दिव्यांगजनों के लिये समावेशिता और समान अधिकारों को बढ़ावा देने हेतु सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश। |
स्रोत: हिन्दुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
Tभारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने एल मुरुगनांथम बनाम तमिलनाडु राज्य मामले (2025) में फैसला सुनाया कि दिव्यांग कैदियों को जेलों में आवश्यक सुविधाओं से वंचित करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- इसमें जेलों में दिव्यांग कैदियों की गरिमा और देखभाल सुनिश्चित करने के लिये विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD अधिनियम) के अनुरूप सुधारों पर भी बल दिया गया।
संरचनात्मक बाधाएँ दिव्यांग कैदियों के हाशियेकरण को कैसे बढ़ाती हैं?
- संस्थागत दुर्गमता: अधिकांश जेल सुविधाएँ गतिशीलता, संवेदी या संज्ञानात्मक दिव्यांग वाले व्यक्तियों के लिये संरचनात्मक रूप से दुर्गम हैं।
- प्रशिक्षित देखभालकर्त्ताओं की अनुपस्थिति और उपयुक्त अभिरक्षा नीतियों के अभाव के कारण दिव्यांग कैदियों को दैनिक देखभाल — जैसे नहाने, खाना खाने और कपड़े पहनने में सहायता — से वंचित होना पड़ता है, जिससे उनकी परेशानियाँ और अधिक बढ़ जाती है।
- न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की दुर्गमता कैदियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनकी गरिमा भी शामिल है।
- न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की दुर्गमता कैदियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनकी गरिमा भी शामिल है।
- नौकरशाही की उदासीनता और संस्थागत संवेदनशीलता की कमी के कारण स्वतंत्र समाज में सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जो हिरासत में और भी तीव्र हो जाता है।
- प्रशिक्षित देखभालकर्त्ताओं की अनुपस्थिति और उपयुक्त अभिरक्षा नीतियों के अभाव के कारण दिव्यांग कैदियों को दैनिक देखभाल — जैसे नहाने, खाना खाने और कपड़े पहनने में सहायता — से वंचित होना पड़ता है, जिससे उनकी परेशानियाँ और अधिक बढ़ जाती है।
- प्रक्रियागत भेदभाव: दुभाषियों, सांकेतिक भाषा सुविधा प्रदाताओं और परीक्षण कार्यवाही में सुलभ प्रारूपों की कमी के कारण निष्पक्ष सुनवाई में बाधा उत्पन्न होती है।
- सहायक प्रौद्योगिकियों, देखभालकर्त्ताओं या संचार साधनों की अनुपस्थिति को "अप्रत्यक्ष भेदभाव" माना गया।
- चिकित्सीय आवश्यकताओं की उपेक्षा: जेलों में समर्पित फिजियोथेरेपी, मनोचिकित्सा या मनोरोग देखभाल सुविधाओं की अनुपस्थिति से स्वास्थ्य में अनावश्यक गिरावट आती है।
- आँकड़ों में कमी: NCRB कैदियों की विकलांगता की स्थिति दर्ज नहीं करता, जिससे नीति निर्माण और लक्षित हस्तक्षेप में बाधा उत्पन्न होती है।
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 का उल्लंघन: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 6, 25 और 38 के उल्लंघनों पर प्रकाश डाला गया है, जो जेलों सहित संस्थानों में सुलभ बुनियादी ढाँचे और उचित आवास की व्यवस्था को अनिवार्य बनाते हैं।
- न्यायालय ने जेल मैनुअल की आलोचना करते हुए कहा कि यह पुराना है तथा RPwD अधिनियम, 2016 या पूर्व न्यायिक निर्णयों के अनुरूप नहीं है।
हिरासत में दिव्यांगजनों के संवैधानिक और कानूनी अधिकार क्या हैं?
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: जब आधारभूत देखभाल से इनकार किया जाता है तो अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का सीधे तौर पर उल्लंघन होता है।
- न्यायालय ने पुष्टि की कि कारावास सम्मान, मानवीय व्यवहार या आवश्यक सुविधाओं से वंचित करने का औचित्य नहीं देता है।
- RPwD अधिनियम, 2016 के प्रावधान:
- धारा 6: जोखिम की स्थितियों में सुरक्षा और संरक्षा, जिसमें हिरासत की स्थितियाँ भी शामिल हैं।
- धारा 25: निवारक और पुनर्वास सेवाओं सहित स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच।
- धारा 38: कानून प्रवर्तन और न्याय प्रणालियों सहित सभी सार्वजनिक सेवाओं में समान अवसर का आदेश।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) का अनुच्छेद 15, जिस पर भारत भी हस्ताक्षरकर्त्ता है, हिरासत में विकलांग व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार के क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार को प्रतिबंधित करता है।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
- परिचय: यह अधिनियम दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) को प्रभावी बनाने के लिये भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था, जिसे भारत द्वारा वर्ष 2007 में अनुमोदित किया था।
- यह अधिनियम पहले के नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 का स्थान लेता है, जिसे भारत में दिव्यांगजनों की ज़रूरतों और चुनौतियों को संबोधित करने में अपर्याप्त तथा पुराना माना जाता था।
- जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांग व्यक्ति हैं, जो कुल जनसंख्या का 2.21% है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- दिव्यांगता की विस्तारित परिभाषा: दिव्यांगता के प्रकारों को मौजूदा 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है, जिसमें पहली बार एसिड अटैक पीड़ितों, हीमोफीलिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी रक्त संबंधी बीमारियों को भी शामिल किया गया है।
- अधिकार एवं पात्रता: विकलांग व्यक्तियों के समान अधिकार सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी संबंधित सरकारों की है।
- यह मानक विकलांगता वाले व्यक्तियों और उच्च सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिये अतिरिक्त लाभ भी प्रदान करता है, जिसमें उच्च शिक्षा में न्यूनतम 5% आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 4% और भूमि आवंटन में 5% आरक्षण शामिल है।
- सार्वजनिक भवनों के लिये अधिदेश: दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017 के तहत केंद्र सरकार को सार्वजनिक भवनों, परिवहन और आईसीटी अवसंरचना में दिव्यांगजनों के लिये सुगम्यता मानक निर्धारित करने की आवश्यकता है।
दिव्यांगजन के अनुकूल जेल बनाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य निर्देश क्या हैं?
- दिव्यांग कैदियों की पहचान: जेल अधिकारियों को कैदियों के प्रवेश के समय ही उनकी दिव्यांगता की पहचान करनी होगी, जिससे वे अपनी स्थिति और विशेष आवश्यकताओं की जानकारी दे सकें।
- सार्वभौमिक पहुँच: जेल के नियमों और आवश्यक जानकारी को ब्रेल, बड़े अक्षरों में प्रिंट, संकेत भाषा (साइन लैंग्वेज) या सरल भाषा जैसे सुलभ प्रारूपों में प्रदान किया जाना चाहिये ताकि सभी कैदियों के लिये जानकारी सुलभ हो सके।
- जेल परिसरों में व्हीलचेयर-अनुकूल स्थान, सुलभ शौचालय और रैंप होने चाहिये ताकि दिव्यांग कैदियों को स्वतंत्र रूप से आने-जाने में कोई कठिनाई न हो।
- चिकित्सीय सुविधाएँ: सभी जेलों में फिजियोथेरेपी, साइकोथेरेपी और अन्य आवश्यक उपचारात्मक सेवाओं के लिये समर्पित स्थान होने चाहिये।
- एक्सेस ऑडिट: तमिलनाडु की सभी जेलों का राज्य-स्तरीय एक्सेस ऑडिट छह महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिये। यह कार्य एक विशेषज्ञ समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें सामाजिक कल्याण विभाग, दिव्यांगजन कल्याण विभाग और प्रमाणित एक्सेस ऑडिटर्स के अधिकारी शामिल होंगे।
- जेल अधिकारियों का प्रशिक्षण और संवेदनशीलता: जेल कर्मचारियों को दिव्यांग कैदियों की आवश्यकताओं के संबंध में प्रशिक्षण और संवेदनशीलता प्रदान की जानी चाहिये, ताकि एक सहानुभूतिपूर्ण व जागरूक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जा सके।
निष्कर्ष
एल. मुरुगनंथम बनाम तमिलनाडु राज्य मामले (2025) में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय समावेशी जेल सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम को लागू करके और संवैधानिक व अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, यह निर्णय दिव्यांग कैदियों के लिये सम्मान, सुगम्यता और मानवीय व्यवहार को सुदृढ़ करता है तथा उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की जेल प्रणाली में दिव्यांग व्यक्तियों के सामने आने वाली संरचनात्मक चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। कौन से सुधार आवश्यक हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न: क्या निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में अभीष्ट लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन की प्रभावी क्रियाविधि को सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017) |


शासन व्यवस्था
कॉमन सर्विस सेंटर: ग्रामीण डिजिटल समावेशन के उत्प्रेरक
प्रिलिम्स के लिये:कॉमन सर्विस सेंटर, डिजिटल इंडिया , प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, UPI (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस), JAM (जन धन-आधार-मोबाइल) प्रणाली, उमंग, डिजीलॉकर, राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP), आधार, पैन, डिजीलॉकर मेन्स के लिये:डिजिटल इंडिया मिशन के तहत CSC का महत्त्व, भारत के डिजिटल पारिस्थितिकीय तंत्र की प्रमुख उपलब्धि। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
डिजिटल इंडिया मिशन के तहत एक प्रमुख पहल, कॉमन सर्विस सेंटर (CSC), जमीनी स्तर पर शासन, डिजिटल पहुँच और समावेशी ग्रामीण सशक्तीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरे हैं।
कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) क्या हैं?
- परिचय: CSC, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत एक प्रमुख पहल है, जिसने 16 जुलाई 2025 को 16 वर्षों की सेवा पूरी कर ली है, जिसे राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP) के हिस्से के रूप में वर्ष 2006 में मंजूरी दी गई थी।
- CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड, एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) है जिसकी स्थापना 16 जुलाई 2009 को कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा की गई थी।
- यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने के लिये CSC योजना की देखरेख करता है।
- कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) समावेशी एवं पारदर्शी शासन को बढ़ावा देते हैं और इनकी संख्या वर्ष 2014 में 83,000 से बढ़कर वर्ष 2025 में 6.5 लाख से अधिक हो गयी है — जो एक दशक में 680% की वृद्धि को दर्शाता है।
- उद्देश्य: ई-गवर्नेंस, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, वित्तीय सेवाओं और डिजिटल साक्षरता में उच्च गुणवत्ता वाली, लागत प्रभावी सेवाएँ प्रदान करना।
- G2C (सरकार से नागरिक) एवं B2C (व्यवसाय से नागरिक) दोनों सेवाओं के लिये ICT-आधारित बुनियादी ढाँचे का उपयोग करके एक आत्मनिर्भर वितरण तंत्र निर्मित करना।
- ग्राम स्तरीय उद्यमियों (VLE) को सशक्त बनाना और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देना।
- CSC का संरचना मॉडल: CSC योजना त्रि-स्तरीय संरचना के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल पर संचालित होती है:
- ग्राम स्तरीय उद्यमी (VLE): ग्राम स्तर पर सेवा वितरण का प्रबंधन करने वाला स्थानीय व्यक्ति।
- सर्विस सेंटर एजेंसी (SCA): एक क्षेत्र में 500-1000 CSC के समूह का प्रबंधन करती है।
- राज्य नामित एजेंसी (SDA): राज्य सरकारों द्वारा राज्य भर में कार्यान्वयन की निगरानी के लिये नामित।
- CSC 2.0: CSC 2.0 को वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था जिसका उद्देश्य 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से प्रत्येक में कम से कम एक CSC स्थापित करना था।
- CSC ढाँचा मौजूदा डिजिटल बुनियादी ढाँचे जैसे - स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क (SWAN), स्टेट डेटा सेंटर (SDC), नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (NOFN)/भारतनेट, ई-डिस्ट्रिक्ट पोर्टल एवं SSDG (स्टेट सर्विस डिलीवरी गेटवे) का उपयोग करता है, जिससे उद्यमिता-संचालित सेवा वितरण, डिजिटल साक्षरता और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
- वर्ष 2022 में, CSC ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) एवं LAMPS (लार्ज एरिया मल्टी-पर्पज सोसाइटीज) को CSC के रूप में संचालित करने में सक्षम बनाने के लिये नाबार्ड तथा सहकारिता मंत्रालय के साथ भागीदारी की, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच में वृद्धि हो।
ग्रामीण भारत के CSC का महत्त्व क्या है?
- डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों को साकार करना: CSC जमीनी स्तर पर डिजिटल बुनियादी ढाँचा सुनिश्चित करके, मांग आधारित शासन तथा आधार, पैन, डिजीलॉकर एवं उपयोगिता भुगतान जैसी सेवाओं को सुगम बनाकर और PMGDISHA, कौशल प्रशिक्षण के साथ-साथ 300 से अधिक डिजिटल सेवाओं तक पहुँच जैसे साक्षरता कार्यक्रमों के माध्यम से डिजिटल सशक्तीकरण को बढ़ावा देकर डिजिटल इंडिया के तीन प्रमुख स्तंभों को आगे बढ़ाते हैं।
- समावेशी विकास सुनिश्चित करना: 74,000 से अधिक महिला ग्राम स्तरीय उद्यमियों (VLE) के साथ, CSC ग्रामीण उद्यमिता के इंजन के रूप में कार्य करते हैं, विशेष रूप से महिलाओं, युवाओं और हाशिये के समुदायों के बीच।
- वे ग्रामीण-शहरी डिजिटल विभाजन को कम करने में सहायता प्रदान करते हैं, तथा अंतिम छोर तक सेवा वितरण सुनिश्चित करते हैं।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के साथ एकीकरण तथा बैंकिंग, बीमा, पेंशन योजनाओं एवं पीएम-किसान पंजीकरण जैसी सेवाएँ प्रदान करके, CSC ग्रामीण ऋण वितरण, वित्तीय सशक्तीकरण और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) दक्षता को बढ़ाते हैं।
- PPP मॉडल को सुदृढ़ बनाना: एक सफल पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर संचालित, कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSC) सरकार और नागरिकों के बीच डिजिटल इंटरफेस के रूप में कार्य करते हैं।
- IRCTC टिकट बुकिंग, राज्य IT प्लेटफार्मों के साथ एकीकरण और CSC ग्रामीण ई-स्टोर जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से ये ई-गवर्नेंस, ग्रामीण वाणिज्य व बड़े स्तर पर डिजिटल पहुँच को सुलभ बनाते हैं।
डिजिटल इंडिया मिशन क्या है?
- परिचय: डिजिटल इंडिया मिशन भारत सरकार द्वारा 1 जुलाई 2015 को शुरू किया गया एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य भारत को एक डिजिटली सशक्त समाज और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करना है।
- इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी सेवाएँ नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध कराई जाएँ, जिसके लिये ऑनलाइन अवसंरचना में सुधार और विशेष रूप से ग्रामीण एवं दूरदराज़ के क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी को बढ़ाया जाए।
- प्रमुख पहल: आधार, भारतनेट, डिजिटल लॉकर, BHIM UPI, ई-साइन फ्रेमवर्क, MyGov आदि।
- मुख्य उपलब्धियाँ:
- डिजिटल अवसंरचना: वर्ष 2014 से 2025 के बीच, टेलीफोन कनेक्शन 93.3 करोड़ से बढ़कर 120 करोड़ हो गए, टेली-डेंसिटी 84.49% तक पहुँची, जबकि इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की संख्या में 285% और ब्रॉडबैंड कनेक्शन में 1,452% की वृद्धि हुई।
- डिजिटल वित्त: अप्रैल 2025 में UPI के माध्यम से 1,867.7 करोड़ लेनदेन हुए, जिनका मूल्य 24.77 लाख करोड़ रुपए था। UPI ने वैश्विक रीयल-टाइम भुगतान में 49% का योगदान दिया और यह 7 से अधिक देशों तक फैल गया।
- AI और सेमीकंडक्टर (2024-2025): इंडियाAI मिशन ने AI नवाचार, स्टार्टअप और नैतिक AI को बढ़ावा देने के लिये 34,000 से अधिक GPU तैनात किये, जिन्हें इंडियाAI इनोवेशन सेंटर, AIकोश तथा फ्यूचरस्किल्स जैसे संस्थानों का समर्थन प्राप्त है।
- नागरिक सशक्तीकरण एवं शासन: कर्मयोगी भारत और iGOT ने 1.21 करोड़ अधिकारियों को प्रशिक्षित किया तथा 3.24 करोड़ प्रमाण पत्र जारी किये।
- डिजिलॉकर (53.92 करोड़ उपयोगकर्त्ता) और उमंग ऐप (23 भाषाओं में 2,300 से अधिक सेवाएँ; 8.34 करोड़ उपयोगकर्त्ता) ने डिजिटल पहुँच को बढ़ावा दिया।
- BHASHINI 35 से अधिक भारतीय भाषाओं के समर्थन, 1,600 AI मॉडल और IRCTC व NPCI के साथ एकीकरण के साथ भाषाई समावेशिता को बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष
कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSC) डिजिटल इंडिया पहल के प्रमुख स्तंभ हैं, जो अंतिम छोर तक सेवाओं की पहुँच, डिजिटल समावेशन और ग्रामीण सशक्तीकरण को सक्षम बनाते हैं। डिजिटल विभाजन को कम करते हुए और नागरिक-केंद्रित शासन को बढ़ावा देते हुए, CSC सेवा प्राप्ति के तरीके को रूपांतरित कर रहे हैं।
स्थायी प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल अवसंरचना और ग्राम स्तर उद्यमियों (VLE) को सुदृढ़ करना अत्यंत आवश्यक होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. डिजिटल इंडिया मिशन के अंतर्गत अंतिम छोर तक सेवा पहुँचाने, ग्रामीण सशक्तीकरण और समावेशी शासन को बढ़ावा देने में कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSC) की भूमिका पर चर्चा कीजिये। भारत में डिजिटल विभाजन को पाटने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त में से कौन-से ओपन-सोर्स डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बनाए गए हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न: कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले 'डिजीलॉकर' के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की"। चर्चा कीजिये। (2020) प्रश्न. 'डिजिटल भारत' कार्यक्रम कृषि उत्पादकता और आय को बढ़ाने में किसानों की किस प्रकार सहायता कर सकता है? सरकार ने इस संबंध में क्या कदम उठाए हैं? (2015) |

