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OECD-FAO एग्रीकल्चर आउटलुक 2025-2034

  • 21 Jul 2025
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन, खाद्य और कृषि संगठन, जैव ईंधन, इथेनॉल

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा बनाम जैव ईंधन उत्पादन, खाद्य प्रणालियों पर जैव ईंधन नीतियों का प्रभाव, कृषि उत्पादकता

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) तथा खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की एग्रीकल्चर आउटलुक 2025–2034 रिपोर्ट वैश्विक कृषि व मत्स्य बाज़ारों पर 10 वर्षों की पूर्वानुमान आधारित दृष्टि प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को मार्गदर्शन देना है।

OECD-FAO एग्रीकल्चर आउटलुक 2025–2034 के अनुसार वैश्विक बाज़ार प्रवृत्तियाँ क्या हैं?

  • अनाज उत्पादन और जैव ईंधन की मांग: वैश्विक अनाज उत्पादन में प्रतिवर्ष 1.1% की दर से वृद्धि होने की संभावना है, जो मुख्यतः 0.9% प्रतिवर्ष की उपज वृद्धि पर आधारित होगी। हालाँकि, फसल कटाई क्षेत्र का विस्तार वर्ष 2034 तक घटकर 0.14% प्रतिवर्ष रह जाएगा।
    • वर्ष 2034 तक, अनाज उत्पादन का 40% सीधे मनुष्यों द्वारा उपभोग किया जाएगा, जबकि 33% का उपयोग पशु चारे के लिये किया जाएगा और शेष 27% का उपयोग जैव ईंधन और औद्योगिक उपयोग के लिये किया जाएगा।
      • वर्ष 2034 तक, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया वैश्विक अनाज उपभोग वृद्धि में 39% की हिस्सेदारी रखेंगे, जबकि चीन का हिस्सा 32% से घटकर 13% हो जाएगा, जो उपभोग प्रवृत्तियों में बदलाव को दर्शाता है।
    • जैव ईंधन की मांग में प्रतिवर्ष 0.9% की वृद्धि होने का अनुमान है, जिसका मुख्य कारण ब्राज़ील, भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में वृद्धि है।
  • कृषि और मछली उत्पाद वृद्धि: वैश्विक कृषि और मछली उत्पादन में वर्ष 2034 तक 14% की वृद्धि होने का अनुमान है, जो मुख्य रूप से मध्यम आय वाले देशों में उत्पादकता लाभ से प्रेरित है।
  • पशु उत्पादों की खपत में वृद्धि: अगले दशक में विश्व स्तर पर प्रति व्यक्ति कैलोरी खपत में पशुधन और मछली उत्पादों से 6% की वृद्धि होने की संभावना है। यह वृद्धि मुख्यतः निम्न-मध्यम आय वाले देशों में देखने को मिलेगी, जहाँ खपत लगभग 24% बढ़ेगी, जो वैश्विक औसत से चार गुना अधिक है।
    • इससे इन देशों में दैनिक कैलोरी खपत 364 किलोकैलोरी तक पहुँच जाएगी, जबकि निम्न आय वाले देशों में यह अभी भी केवल 143 किलोकैलोरी रहेगी, जो कि स्वस्थ आहार के लिये निर्धारित 300 किलोकैलोरी प्रतिदिन के लक्ष्य से काफी कम है।

जैव ईंधन की बढ़ती मांग वैश्विक खाद्य सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है?

  • भूमि उपयोग: जैव ईंधन वाली फसलें उगाने से खाद्य उत्पादन के लिये उपलब्ध भूमि कम हो सकती है। E20 लक्ष्य को पूरा करने के लिये, भारत को 7.1 मिलियन हेक्टेयर (कुल फसल क्षेत्र का लगभग 3%) की आवश्यकता होगी, जिससे भूमि उपयोग और खाद्य सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
  • जल और संसाधनों पर दबाव: जैव ईंधन फसलों को काफी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है (इथेनॉल उत्पादन में प्रति लीटर इथेनॉल में 8-12 लीटर जल का उपयोग होता है) और उर्वरकों की आवश्यकता होती है, जिससे खाद्य कृषि के लिये आवश्यक संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
  • खाद्य महंगाई: जैव ईंधन के लिये फीडस्टॉक फसलों की मांग बढ़ने से खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं। भारत में मक्का और चावल से इथेनॉल बनाने की दिशा में बढ़ते कदम खाद्य आपूर्ति को प्रभावित कर सकते हैं। वर्ष 2023 में चावल की कीमतों में 14.5% की वृद्धि गरीब परिवारों को सबसे अधिक प्रभावित करती है।
    • गरीब देशों में खाद्य असुरक्षा की स्थिति और गंभीर हो जाती है, क्योंकि उनकी पहुँच तथा क्रय शक्ति दोनों सीमित होती हैं।
  • पर्यावरणीय समझौते: जैव ईंधन फसलों के विस्तार से वनों की कटाई और जैव विविधता में कमी हो सकती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य प्रणालियों को प्रभावित करती है।

सतत् बायोईंधन और खाद्य सुरक्षा नीतियों को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है?

  • फीडस्टॉक विविधीकरण: तीसरी पीढ़ी (3G) के इथेनॉल (अपशिष्ट जल/सीवेज/समुद्री जल का उपयोग करके सूक्ष्म शैवाल से) पहली पीढ़ी (1G) के इंधनों (गन्ना, गेहूँ, चावल) और दूसरी पीढ़ी (2G) के इंधनों (फसल अवशेष) की तुलना में एक सतत् विकल्प प्रदान करता है। यह खाद्य और जल संकट से बचने में भी सहायक होता है।
    • भारत विशेष रूप से बायोईंधन उत्पादन के लिये अनुकूलित आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के विकास में निवेश कर सकता है, जिससे उत्पादन बढ़ाया जा सके और खाद्य फसलों पर दबाव कम किया जा सके।
  • क्षेत्र निर्धारण और भूमि उपयोग योजना: एक जैव ईंधन ज़ोनिंग नीति लागू करना जो उपजाऊ कृषि भूमि के उपयोग को रोकती है।
    • सीमांत और परती भूमि का उपयोग बायोईंधन फसलों के लिये सख्त पारिस्थितिक सुरक्षा उपायों के अंतर्गत किया जाए, ताकि वनों की कटाई या जैव विविधता की हानि से बचा जा सके।
  • फसल विविधीकरण प्रोत्साहन: बायोईंधन आधारित एकफसल खेती (मोनोकल्चर) को रोकने के लिये विविध अनाजों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और खरीद प्रणाली को मज़बूत किया जाए।
    • इथेनॉल खरीद नीतियों को खाद्य अधिशेष के मौसम के अनुरूप बनाना ताकि बाज़ार में विकृति से बचा जा सके।
  • उत्पादकता और स्थिरता में सुधार: कुपोषण को कम करने और GHG उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिये कृषि उत्पादकता में वृद्धि महत्त्वपूर्ण है।
    • रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि 15% उत्पादकता सुधार और उत्सर्जन में कमी लाने वाली प्रौद्योगिकियों (जैसे, परिशुद्ध खेती, पशु आहार संवर्द्धन तथा फसल चक्र जैसी कम लागत वाली पद्धतियाँ) में निवेश करके वैश्विक कुपोषण को समाप्त किया जा सकता है तथा उत्सर्जन में 7% की कमी की जा सकती है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)

  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) एक अंतर-सरकारी निकाय है जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में आर्थिक विकास और वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है और इसके 38 सदस्य देश हैं, जिनमें से अधिकांश उच्च आय वाले देश हैं जिनका मानव विकास सूचकांक (HDI) उच्च है।
    • भारत इसका सदस्य नहीं है अपितु एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।
    • OECD कई महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट और सूचकांक जारी करता है, जिनमें गवर्नमेंट एट ए ग्लांस और बेटर लाइफ इंडेक्स शामिल हैं।

खाद्य और कृषि संगठन (FAO) 

  • FAO संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुरानी विशिष्ट एजेंसी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1945 में हुई थी और जिसका मुख्यालय रोम में है। इसका उद्देश्य भुखमरी से लड़ना, पोषण में सुधार करना और सतत् कृषि को बढ़ावा देना है।
    • 194 सदस्य देशों और यूरोपीय संघ के साथ, FAO अनुसंधान, तकनीकी सहायता, शिक्षा तथा डेटा सेवाओं के माध्यम से देशों को समर्थन प्रदान करता है।
    • यह कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन और संसाधन प्रबंधन पर केंद्रित है, लेकिन खाद्य राहत का काम विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा किया जाता है।
    • प्रमुख रिपोर्टों में वैश्विक मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर की स्थिति (SOFIA), विश्व के वनों की स्थिति (SOFO), वैश्विक खाद्य सुरक्षा तथा पोषण की स्थिति (SOFI) एवं खाद्य व कृषि की स्थिति (SOFA) शामिल हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. चर्चा कीजिये कि कैसे जैव ईंधनों की बढ़ती वैश्विक मांग खाद्य सुरक्षा के साथ समझौते की स्थिति उत्पन्न कर रही है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स

प्रश्न. चार ऊर्जा फसलों के नाम नीचे दिये गए हैं। उनमें से किसकी खेती इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010)

(a) जटरोफा
(b) मक्का
(c) पोंगामिया
(d) सूरजमुखी

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020)

  1. कसावा   
  2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने
  3. मूँगफली के बीज    
  4. कुलथी (Horse Gram)    
  5. सड़ा आलू  
  6. चुकंदर  

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6  

उत्तर: (a)

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