ध्यान दें:





डेली अपडेट्स


सामाजिक न्याय

दिव्यांग कैदियों को बुनियादी जेल सुविधाएँ न देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है: सर्वोच्च न्यायालय

  • 21 Jul 2025
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD अधिनियम), दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, हीमोफीलिया, सिकल सेल एनीमिया

मेन्स के लिये:

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताएँ, जेलों में दिव्यांगजनों के लिये समावेशिता और समान अधिकारों को बढ़ावा देने हेतु सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश।

स्रोत: हिन्दुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

Tभारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने एल मुरुगनांथम बनाम तमिलनाडु राज्य मामले (2025) में फैसला सुनाया कि दिव्यांग कैदियों को जेलों में आवश्यक सुविधाओं से वंचित करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

संरचनात्मक बाधाएँ दिव्यांग कैदियों के हाशियेकरण को कैसे बढ़ाती हैं?

  • संस्थागत दुर्गमता: अधिकांश जेल सुविधाएँ गतिशीलता, संवेदी या संज्ञानात्मक दिव्यांग वाले व्यक्तियों के लिये संरचनात्मक रूप से दुर्गम हैं।
    • प्रशिक्षित देखभालकर्त्ताओं की अनुपस्थिति और उपयुक्त अभिरक्षा नीतियों के अभाव के कारण दिव्यांग कैदियों को दैनिक देखभाल — जैसे नहाने, खाना खाने और कपड़े पहनने में सहायता — से वंचित होना पड़ता है, जिससे उनकी परेशानियाँ और अधिक बढ़ जाती है।
      • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की दुर्गमता कैदियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनकी गरिमा भी शामिल है।
    • नौकरशाही की उदासीनता और संस्थागत संवेदनशीलता की कमी के कारण स्वतंत्र समाज में सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जो हिरासत में और भी तीव्र हो जाता है।
  • प्रक्रियागत भेदभाव: दुभाषियों, सांकेतिक भाषा सुविधा प्रदाताओं और परीक्षण कार्यवाही में सुलभ प्रारूपों की कमी के कारण निष्पक्ष सुनवाई में बाधा उत्पन्न होती है।
    • सहायक प्रौद्योगिकियों, देखभालकर्त्ताओं या संचार साधनों की अनुपस्थिति को "अप्रत्यक्ष भेदभाव" माना गया।
    • चिकित्सीय आवश्यकताओं की उपेक्षा: जेलों में समर्पित फिजियोथेरेपी, मनोचिकित्सा या मनोरोग देखभाल सुविधाओं की अनुपस्थिति से स्वास्थ्य में अनावश्यक गिरावट आती है।
  • आँकड़ों में कमी: NCRB कैदियों की विकलांगता की स्थिति दर्ज नहीं करता, जिससे नीति निर्माण और लक्षित हस्तक्षेप में बाधा उत्पन्न होती है।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 का उल्लंघन: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 6, 25 और 38 के उल्लंघनों पर प्रकाश डाला गया है, जो जेलों सहित संस्थानों में सुलभ बुनियादी ढाँचे और उचित आवास की व्यवस्था को अनिवार्य बनाते हैं।
    • न्यायालय ने जेल मैनुअल की आलोचना करते हुए कहा कि यह पुराना है तथा RPwD अधिनियम, 2016 या पूर्व न्यायिक निर्णयों के अनुरूप नहीं है।

हिरासत में दिव्यांगजनों के संवैधानिक और कानूनी अधिकार क्या हैं?

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: जब आधारभूत देखभाल से इनकार किया जाता है तो अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का सीधे तौर पर उल्लंघन होता है।
    • न्यायालय ने पुष्टि की कि कारावास सम्मान, मानवीय व्यवहार या आवश्यक सुविधाओं से वंचित करने का औचित्य नहीं देता है।
  • RPwD अधिनियम, 2016 के प्रावधान:
    • धारा 6: जोखिम की स्थितियों में सुरक्षा और संरक्षा, जिसमें हिरासत की स्थितियाँ भी शामिल हैं।
    • धारा 25: निवारक और पुनर्वास सेवाओं सहित स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच।
    • धारा 38: कानून प्रवर्तन और न्याय प्रणालियों सहित सभी सार्वजनिक सेवाओं में समान अवसर का आदेश।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) का अनुच्छेद 15, जिस पर भारत भी हस्ताक्षरकर्त्ता है, हिरासत में विकलांग व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार के क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार को प्रतिबंधित करता है।

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016

  • परिचय: यह अधिनियम दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) को प्रभावी बनाने के लिये भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था, जिसे भारत द्वारा वर्ष 2007 में अनुमोदित किया था। 
    • यह अधिनियम पहले के नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 का स्थान लेता है, जिसे भारत में दिव्यांगजनों की ज़रूरतों और चुनौतियों को संबोधित करने में अपर्याप्त तथा पुराना माना जाता था।
    • जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांग व्यक्ति हैं, जो कुल जनसंख्या का 2.21% है।
  • प्रमुख विशेषताएँ: 
    • दिव्यांगता की विस्तारित परिभाषा: दिव्यांगता के प्रकारों को मौजूदा 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है, जिसमें पहली बार एसिड अटैक पीड़ितों, हीमोफीलिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी रक्त संबंधी बीमारियों को भी शामिल किया गया है।
    • अधिकार एवं पात्रता: विकलांग व्यक्तियों के समान अधिकार सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी संबंधित सरकारों की है।
      • यह मानक विकलांगता वाले व्यक्तियों और उच्च सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिये अतिरिक्त लाभ भी प्रदान करता है, जिसमें उच्च शिक्षा में न्यूनतम 5% आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 4% और भूमि आवंटन में 5% आरक्षण शामिल है।
    • सार्वजनिक भवनों के लिये अधिदेश: दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017 के तहत केंद्र सरकार को सार्वजनिक भवनों, परिवहन और आईसीटी अवसंरचना में दिव्यांगजनों के लिये सुगम्यता मानक निर्धारित करने की आवश्यकता है।

दिव्यांगजन के अनुकूल जेल बनाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य निर्देश क्या हैं?

  • दिव्यांग कैदियों की पहचान: जेल अधिकारियों को कैदियों के प्रवेश के समय ही उनकी दिव्यांगता की पहचान करनी होगी, जिससे वे अपनी स्थिति और विशेष आवश्यकताओं की जानकारी दे सकें।
  • सार्वभौमिक पहुँच: जेल के नियमों और आवश्यक जानकारी को ब्रेल, बड़े अक्षरों में प्रिंट, संकेत भाषा (साइन लैंग्वेज) या सरल भाषा जैसे सुलभ प्रारूपों में प्रदान किया जाना चाहिये ताकि सभी कैदियों के लिये जानकारी सुलभ हो सके।
    • जेल परिसरों में व्हीलचेयर-अनुकूल स्थान, सुलभ शौचालय और रैंप होने चाहिये  ताकि दिव्यांग कैदियों को स्वतंत्र रूप से आने-जाने में कोई कठिनाई न हो। 
  • चिकित्सीय सुविधाएँ: सभी जेलों में फिजियोथेरेपी, साइकोथेरेपी और अन्य आवश्यक उपचारात्मक सेवाओं के लिये समर्पित स्थान होने चाहिये।
  • एक्सेस ऑडिट: तमिलनाडु की सभी जेलों का राज्य-स्तरीय एक्सेस ऑडिट छह महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिये। यह कार्य एक विशेषज्ञ समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें सामाजिक कल्याण विभाग, दिव्यांगजन कल्याण विभाग और प्रमाणित एक्सेस ऑडिटर्स के अधिकारी शामिल होंगे।
  • जेल अधिकारियों का प्रशिक्षण और संवेदनशीलता: जेल कर्मचारियों को दिव्यांग कैदियों की आवश्यकताओं के संबंध में प्रशिक्षण और संवेदनशीलता प्रदान की जानी चाहिये, ताकि एक सहानुभूतिपूर्ण व जागरूक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जा सके।

निष्कर्ष

एल. मुरुगनंथम बनाम तमिलनाडु राज्य मामले (2025) में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय समावेशी जेल सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम को लागू करके और संवैधानिक व अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, यह निर्णय दिव्यांग कैदियों के लिये सम्मान, सुगम्यता और मानवीय व्यवहार को सुदृढ़ करता है तथा उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की जेल प्रणाली में दिव्यांग व्यक्तियों के सामने आने वाली संरचनात्मक चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। कौन से सुधार आवश्यक हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा।
  2.  व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन।
  3.  सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1               
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3      
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न: क्या निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में अभीष्ट लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन की प्रभावी क्रियाविधि को सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017)

close
Share Page
images-2
images-2