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डेली न्यूज़

  • 20 Sep, 2021
  • 38 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

वुली मैमथ

प्रिलिम्स के लिये:

वुली मैमथ, साइबेरियाई टुंड्रा, प्लेइस्टोसिन युग, होलोसीन युग

मेन्स के लिये:

वुली मैमथ का पारिस्थितिकी महत्त्व

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य अमेरिका के स्टार्टअप ‘कोलोसल बायोसाइंसेज़’ ने वुली मैमथ या उनके जैसे जानवरों को विलुप्त होने से बचाने और उन्हें साइबेरियाई टुंड्रा (वृक्षविहीन ध्रुवीय रेगिस्तान) के ठंडे परिदृश्य में लाने की अपनी योजना की घोषणा की है।

A-Mammoth-Undertaking

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • मैमथ (जीनस मैमथस) हाथियों के एक विलुप्त समूह से संबंधित हैं जिनके जीवाश्म प्लेइस्टोसिन युग में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका को छोड़कर प्रत्येक महाद्वीप में तथा उत्तरी प्रारंभिक होलोसीन युग में उत्तरी अमेरिका में पाए गए।
      • प्लेइस्टोसिन युग 2.6 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ और 11,700 वर्ष पहले समाप्त हुआ।
      • होलोसीन युग 11,700 वर्ष पहले शुरू हुआ और वर्तमान तक जारी है।
    • वुली मैमथ: वुली, उत्तरी या साइबेरियन मैमथ (मैमथस प्रिमिजेनियस) अब तक सभी मैमथ में सबसे प्रसिद्ध है।
      • साइबेरिया के स्थायी रूप से जमे हुए मैदान में पाए जाने वाली इस प्रजाति के शवों के माध्यम से मैमथ की संरचना और आदतों के बारे में बहुत जानकारी प्राप्त हुई है।
    • विलुप्त होने का कारण:
      • ऐसा माना जाता है कि मैमथ जलवायु परिवर्तन, बीमारी, मनुष्यों द्वारा शिकार या शायद इनमें से कुछ अन्य संयोजन के कारण विलुप्त हो गए।
  • वुली मैमथ का डीएक्सटिंक्शन
    • आवश्यकता:
      • पारिस्थितिक तंत्र की बहाली: जब लगभग 4,000 वर्ष पूर्व आर्कटिक से मैमथ गायब हो गए, तो सबसे पहले घास के मैदान का स्थान झाड़ियों ने ले लिया।
        • मैमथ जैसे विशाल जीव झाड़ियों को संकुचित करके और अपने मल के माध्यम से घास को उर्वरित करके पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में मदद कर सकते हैं।
      • जलवायु परिवर्तन को कम करना:
        • यदि वर्तमान साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, तो यह शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करेगा।
        • जलवायु परिवर्तन में कमी लाकर पर्माफ्रॉस्ट को पिघलने से रोका जा सकेगा। 
    • प्रयुक्त तकनीकी: एशियाई हाथी भ्रूण को संशोधित करने के लिये CRISPR जीन एडिटिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
      • एशियाई हाथी मैमथ के सबसे करीबी जीव हैं, इसलिये उनके जीनोम वुली मैमथ के समान होते हैं।
  • उठाई गई चिंताएंँ:
    • पारिस्थितिकी तंत्र को विक्षुब्ध करना: उन विलुप्त प्रजातियों को पारिस्थितिक तंत्र में वापस लाना जिनके निशान अब मौजूद नहीं हैं, मौजूदा पारिस्थितिकी तंत्र को विक्षुब्ध करेगा। 
    • अवसर लागत:
      • विलुप्त जीवों को वापस लाने से जैव विविधता की रक्षा या जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये किये जाने वाले प्रयास अधिक लागत प्रभावी हो सकते हैं। 
      • यदि लोग विलुप्त न होने की अवधारणा पर विश्वास करना शुरू कर देंगे तो इससे संभावित नैतिक खतरे भी उत्पन्न हो सकते हैं।
      • यहांँ तक ​​कि अगर विलुप्ति से बचने हेतु कार्यक्रम सफल होते हैं, तो मौजूदा विलुप्त होने वाली प्रजातियों को बचाने की तुलना में उनकी लागत अधिक होगी।
        • एक बार विलुप्ति से बचाव संभव हो जाने के बाद प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने की आवश्यकता कम ज़रूरी प्रतीत होगी।
    •  प्राचीन मैमथ के व्यवहार की कोई गारंटी नहीं: भले ही नए इंजीनियर मैमोफेंट्स में मैमथ डीएनए हो, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि ये संकर (hybrids) प्राचीन मैमथ के व्यवहार को अपनाएंगे।
      • उदाहरण के लिये हमें अपने माता-पिता से डीएनए अनुक्रमण से कहीं अधिक विरासत में मिला है। हमें एपिजेनेटिक परिवर्तन (Epigenetic Changes) विरासत में मिलते हैं, जो हमारे आस-पास के वातावरण को प्रभावित कर सकते हैं कि उन जीन को कैसे नियंत्रित किया जाता है।
      • हमें अपने माता-पिता के माइक्रोबायोम (आंँतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया की कॉलोनियांँ) भी विरासत में मिले हैं, जो हमारे व्यवहार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • जानवर अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों को देखकर व्यवहार करना सीखते हैं। परंतु प्रथम मैमोफेंट्स (First Mammophants) के सीखने के लिये उनके कोई  समकक्ष नहीं होंगे।

टुंड्रा

  • टुंड्रा जलवायु क्षेत्र 60° और 75° अक्षांश के मध्य का क्षेत्र होता है, इसमें ज़्यादातर उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया के आर्कटिक तट के साथ ग्रीनलैंड के तटीय किनारे का क्षेत्र शामिल है।
  • टुंड्रा क्षेत्र में सर्दियों का मौसम लंबा और ठंडी रातें होती हैं, जहांँ साल के 6 से 10 महीनों के दौरान औसत तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे होता है। सतह के नीचे स्थायी रूप से जमी हुई ज़मीन की एक परत होती है, जिसे पर्माफ्रॉस्ट कहा जाता है। 
  • संरचनात्मक रूप से टुंड्रा एक वृक्ष रहित (Treeless) विस्तृत क्षेत्र  है जिसमें सेज (एक प्रकार का पक्षी) और हीथ (छोटी झाड़ियों का स्थान/आवास) के समुदायों के साथ-साथ छोटी झाड़ियाँ पाई जाती हैं। 

स्रोत-डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

जी-20 कृषि मंत्रियों का सम्मेलन 2021

प्रिलिम्स के लिये :

G-20 लीडर्स समिट, सकल घरेलू उत्पाद, ज़ीरो हंगर, अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 

मेन्स के लिये : 

जी-20 कृषि मंत्रियों के सम्मेलन की विशेषताएँ एवं भारत का दृष्टिकोण 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के कृषि मंत्री ने जी-20 कृषि मंत्रियों के सम्मेलन को आभासी (Virtual) रूप से संबोधित किया।

  • यह अक्तूबर 2021 में इटली द्वारा आयोजित किये जाने वाले G-20 लीडर्स समिट 2021 के हिस्से के रूप में संपन्न होने वाली मंत्रिस्तरीय बैठकों में से एक है।

G-20

  • परिचय :
    • यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के प्रतिनिधियों के साथ 19 देशों और यूरोपीय संघ (EU) का एक अनौपचारिक समूह है।
      • इसका कोई स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं है।
    • सदस्यता के संदर्भ में यह दुनिया की सबसे बड़ी उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का मिश्रण है, जो दुनिया की आबादी का लगभग दो-तिहाई, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85%, वैश्विक निवेश का 80% और वैश्विक व्यापार का 75% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है।
  • सदस्य :
    • अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ।

G20

प्रमुख बिंदु

  • सम्मेलन  की मुख्य विशेषताएँ :
    • "फ्लोरेंस सस्टेनेबिलिटी चार्टर" (Florence Sustainability Charter) नामक एक अंतिम वक्तव्य पर हस्ताक्षर किये गए।
      • यह जानकारी साझा करने और स्थानीय ज़रूरतों के अनुकूल आंतरिक उत्पादन क्षमता विकसित करने में मदद हेतु खाद्य एवं  कृषि पर जी-20 सदस्यों तथा  विकासशील देशों के बीच सहयोग को मज़बूत करेगा, इस प्रकार यह कृषि व  ग्रामीण समुदायों के बीच लचीलेपन एवं रिकवरी में योगदान देगा।
    • इसने  ज़ीरो हंगर के लक्ष्य तक पहुँचने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की, जो कि कोविड-19 के कारण प्रभावित हुई है।
    • स्थिरता के तीन आयामों : आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के ढाँचे में खाद्य सुरक्षा हासिल करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
  • भारत का रुख :
    • पारंपरिक खाद्य पदार्थों पर बल :
      • लोगों के आहार में बाजरा, अन्य पौष्टिक अनाज, फल और सब्जियाँ, मछली, डेयरी व जैविक उत्पादों सहित पारंपरिक खाद्य पदार्थों को फिर से शामिल करने पर ज़ोर दिया गया।
        • हाल के वर्षों में भारत में उनका उत्पाद अभूतपूर्व रहा है तथा भारत, स्वस्थ खाद्य पदार्थों के लिये एक गंतव्य देश बन रहा है।
      • संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भारत के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है एवं वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया है तथा जी-20 देशों से पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के लिये बाजरा वर्ष के उत्सव का समर्थन करने का आग्रह किया है।
    • बायोफोर्टिफाइड फूड:
      • बायोफोर्टिफाइड किस्में प्रायः सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भरपूर मुख्य आहार का स्रोत हैं और कुपोषण को दूर करने के लिये इन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है।
        • विभिन्न फसलों की इस तरह की लगभग 17 किस्मों को खेती के लिये जारी किया गया है।
    • जल संसाधन
      • भारत ने जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग को बढ़ाने, सिंचाई के लिये बुनियादी अवसंरचना का निर्माण करने, उर्वरकों के संतुलित उपयोग के साथ मिट्टी की उर्वरता के संरक्षण और खेतों से बाज़ारों तक कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
    • कोविड के दौरान भारतीय कृषि क्षेत्र:
      • देश की आज़ादी के बाद भारतीय कृषि ने बड़ी सफलता हासिल की है और यह क्षेत्र भी कोविड महामारी के दौरान काफी हद तक अप्रभावित रहा।
    • भारत का संकल्प:
      • सतत् विकास लक्ष्यों के हिस्से के रूप में ‘गरीबी में कमी' और 'शून्य भूख लक्ष्य' को प्राप्त करने के लिये मिलकर काम करना जारी रखें।
      • उत्पादकता बढ़ाने के लिये अनुसंधान और विकास के साथ-साथ सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान में सहयोग करना।
  • संबंधित भारतीय प्रयास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

डिजिटल भुगतान प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस, G-20, उदारीकृत प्रेषण योजना,रुपे कार्ड 

मेन्स के लिये:

UPI और अन्य भारतीय भुगतान प्रणालियाँ

चर्चा में क्यों?   

भारत और सिंगापुर के केंद्रीय बैंक "त्वरित, कम लागत, सीमा पार से फंड ट्रांसफर" हेतु अपने संबंधित फास्ट डिजिटल पेमेंट सिस्टम - यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) और ‘पेनाऊ’ (PayNow) को लिंक करेंगे।

  • लिंकेज को जुलाई 2022 तक चालू करने का लक्ष्य है।

प्रमुख बिंदु 

  • UPI और PayNow के बारे में:
    • यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI)- पेनाऊ(PayNow) लिंकेज भारत और सिंगापुर के बीच सीमा पार भुगतान हेतु बुनियादी ढांँचे के विकास में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो  तीव्र, सस्ती व अधिक पारदर्शी सीमा पार भुगतान करने की G-20 की वित्तीय समावेशन प्राथमिकताओं से जुड़ा हुआ है। 
      • भारत G-20 का सदस्य है।
    • लिंकेज एनपीसीआई इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड (NIPL) एवं नेटवर्क फॉर इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर (एनईटीएस, सिंगापुर) के पूर्व के प्रयासों पर आधारित है, जो भारत और सिंगापुर के मध्य कार्ड तथा क्यूआर कोड का उपयोग कर भुगतान की सीमा पार अंतर-संचालनीयता को बढ़ावा देता है और दोनों देशों के मध्य व्यापार, यात्रा व प्रेषण को बढ़ावा देगा। 
      • NIPL विदेशों में यूपीआई और रुपे जैसी घरेलू भुगतान तकनीकों को लोकप्रिय बनाने तथा अन्य देशों के साथ भुगतान तकनीकों का सह-निर्माण करने हेतु NPCI की सहायक कंपनी है।
    • यह पहल भुगतान प्रणाली विज़न दस्तावेज़ 2019-21(Payment Systems Vision Document 2019-21) में उल्लिखित सीमा पार प्रेषण हेतु गलियारों और शुल्कों की समीक्षा करने के अपने दृष्टिकोण के अनुरूप है।
    • निवेशकों के नज़रिये से यह अधिक-से-अधिक खुदरा निवेशकों को वैश्विक बाज़ारों तक पहुंँचने हेतु  प्रोत्साहित करेगा। वर्तमान में खुदरा निवेशक अंतर-बैंक शुल्क में 3,000 रुपए तक का भुगतान करते हैं जो बैंकों द्वारा उदारीकृत प्रेषण योजना (LSR) प्रसंस्करण शुल्क से अधिक और उसके ऊपर है।
      • भारतीय रिज़र्व बैंक की उदारीकृत प्रेषण योजना निवासी व्यक्तियों को एक वित्तीय वर्ष के दौरान निवेश और व्यय के लिये दूसरे देश में एक निश्चित राशि भेजने की अनुमति प्रदान करती है।
  • UPI और अन्य भारतीय भुगतान प्रणालियाँ:
    • एकीकृत भुगतान इंटरफेस:
      • यह तत्काल भुगतान सेवा (IMPS) का एक उन्नत संस्करण है, जो कैशलेस भुगतान को तेज़ और आसान बनाने के लिये चौबीस घंटे सक्रिय फंड ट्रांसफर सेवा है।
      • UPI एक ऐसी प्रणाली है जो कई बैंक खातों को एक ही मोबाइल एप्लीकेशन (किसी भी भाग लेने वाले बैंक के) में कई बैंकिंग सुविधाओं, निर्बाध फंड रूटिंग और मर्चेंट भुगतान हेतु एक मंच प्रदान करती है।
      • नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने वर्ष 2016 में 21 सदस्य बैंकों के साथ UPI को लॉन्च किया।
    • नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर:
      • NEFT एक राष्ट्रव्यापी भुगतान प्रणाली है जो “वन-टू-वन” धन हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है। इस योजना के तहत व्यक्ति, फर्म और कॉरपोरेट किसी भी बैंक शाखा से किसी भी व्यक्ति, फर्म या कॉर्पोरेट को इलेक्ट्रॉनिक रूप से फंड ट्रांसफर कर सकते हैं, जिसका इस योजना में भाग लेने वाले देश की किसी अन्य बैंक शाखा में खाता हो।
      • NEFT का उपयोग करके हस्तांतरित की जा सकने वाली धनराशि की कोई न्यूनतम या अधिकतम सीमा नहीं है।
      • हालाँकि भारत-नेपाल प्रेषण सुविधा योजना के तहत भारत के लिये नकद आधारित प्रेषण और नेपाल को प्रेषण के लिये प्रति लेन-देन अधिकतम राशि 50,000 रुपए तक सीमित है। 
    • रुपे कार्ड योजना:
      • 'रुपया” और ‘पेमंट' शब्दों से व्युत्पन्न यह नाम इस बात पर ज़ोर देता है कि यह डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतान के लिये भारत की अपनी पहल है।
      • इस कार्ड का उपयोग सिंगापुर, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और सऊदी अरब में लेन-देन के लिये भी किया जा सकता है।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

विद्युत संबंधी योजनाओं के लिये ज़िला स्तरीय समितियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

ज़िला स्तरीय समितियाँ, समवर्ती सूची, संविधान की सातवीं अनुसूची, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना

मेन्स के लिये:

विद्युत संबंधी योजनाओं के लिये ज़िला स्तरीय समितियों के गठन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने देश में विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार के लिये ज़िला स्तरीय समितियों के गठन का आदेश जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • ज़िला स्तरीय समितियाँ:
    • परिचय:
      • सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को विद्युत मंत्रालय को सूचित करते हुए इन ज़िला विद्युत समितियों की स्थापना को अधिसूचित और सुनिश्चित करना होगा।
      • यह सरकार की सभी विद्युत संबंधी योजनाओं और लोगों को सेवाओं के प्रावधान पर इसके प्रभाव की निगरानी करेगा। इसकी तीन माह में कम-से-कम एक बार ज़िला मुख्यालय पर बैठक होगी।
    • संघटन:
      • समिति में ज़िले के सबसे वरिष्ठ संसद सदस्य (MP) अध्यक्ष के रूप में, ज़िले के अन्य सांसद सह-अध्यक्ष के रूप में, ज़िला कलेक्टर सदस्य सचिव के रूप में शामिल होंगे।
  • भारत में विद्युत क्षेत्र:
    • परिचय:
      • भारत का विद्युत् क्षेत्र दुनिया के सबसे विविध क्षेत्रों में से एक है। विद्युत उत्पादन के स्रोत पारंपरिक स्रोतों जैसे- कोयला, लिग्नाइट, प्राकृतिक गैस, तेल, जलविद्युत और परमाणु ऊर्जा से लेकर पवन, सौर एवं कृषि तथा घरेलू कचरे जैसे व्यवहार्य गैर-पारंपरिक स्रोतों तक हैं।
      • भारत दुनिया में विद्युत का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
      • विद्युत समवर्ती सूची का विषय है (संविधान की सातवीं अनुसूची)।
    • नोडल एजेंसी:
    • भविष्य के लिये रोडमैप:
      • सरकार ने वर्ष 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा में 175 गीगावाट क्षमता हासिल करने के लिये रोडमैप जारी किया है, जिसमें 100 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है।
        • सरकार वर्ष 2022 तक रूफटॉप सौर परियोजनाओं के माध्यम से 40 गीगावाट (GW) विद्युत पैदा करने के अपने लक्ष्य का समर्थन करने हेतु 'रेंट ए रूफ' नीति तैयार कर रही है।
        • नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित सभी मामलों के लिये नोडल मंत्रालय है।
  • संबंधित सरकारी पहल:
    • प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) : देश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में सभी इच्छुक घरों का विद्युतीकरण सुनिश्चित करना।
    • दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) : कृषि और गैर-कृषि फीडरों को अलग करना; वितरण ट्रांसफार्मर, फीडर और उपभोक्ताओं के स्तर पर मीटरिंग सहित ग्रामीण क्षेत्रों में उप-पारेषण तथा वितरण बुनियादी ढाँचे को मज़बूती प्रदान करने के साथ ही इनमें वृद्धि करना।
    • गर्व (ग्रामीण विद्युतीकरण) एप : विद्युतीकरण योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता की निगरानी के लिये सरकार द्वारा ग्रामीण विद्युत अभियंताओं (GVAs) को GARV एप के माध्यम से प्रगति को रिपोर्ट करने के लिये नियुक्त किया गया है।
    • उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (UDAY) : डिस्कॉम के परिचालन और वित्तीय बदलाव के लिये।
    • संशोधित टैरिफ नीति में '4 E' :  4 E में सभी के लिये विद्युत, किफायती टैरिफ सुनिश्चित करने की क्षमता, एक स्थायी भविष्य के लिये पर्यावरण, निवेश को आकर्षित करने और वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये व्यापार करने में आसानी शामिल है।

स्रोत : पीआईबी


शासन व्यवस्था

‘फ्रंट-ऑफ-पैक’ लेबलिंग

प्रिलिम्स के लिये

‘फ्रंट-ऑफ-पैक’ लेबलिंग, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये

‘फ्रंट-ऑफ-पैक’ लेबलिंग का महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने वर्ष 2018 में खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम मसौदा जारी किया था।

  • हालाँकि कई विशेषज्ञ पैनल की सिफारिशों और विनियमों के बाद भी भारत में एक स्पष्ट लेबलिंग या फ्रंट-ऑफ-पैक (FoP) लेबलिंग सिस्टम लागू नहीं हो पाया है, जो उपभोक्ताओं को प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में वसा, नमक और चीनी के हानिकारक स्तरों के बारे में चेतावनी देता है।

Journey-to-nowhere

प्रमुख बिंदु

  • फ्रंट-ऑफ-पैक (FoP) लेबलिंग सिस्टम के विषय में:
    • फ्रंट-ऑफ-पैक (FoP) लेबलिंग सिस्टम को उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन विकल्पों के प्रयोग हेतु प्रोत्साहित करने संबंधी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
      • यह ठीक वैसे ही काम करता है जैसे सिगरेट के पैकेट पर उपभोग को हतोत्साहित करने के लिये छवियों के साथ लेबल किया जाता है।
    • जैसे-जैसे भारत में आहार प्रथाओं में बदलाव आ रहा है, लोग तेज़ी से अधिक प्रसंस्कृत एवं अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन कर रहे हैं और इनका बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसके कारण देश में फ्रंट-ऑफ-पैक (FoP) लेबलिंग की आवश्यकता काफी बढ़ गई है।
      • यह बढ़ते मोटापे और कई गैर-संचारी रोगों से लड़ने में उपयोगी भूमिका निभा सकता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) फ्रंट-ऑफ-पैक (FoP) लेबल को एक ऐसे पोषण लेबलिंग सिस्टम के रूप में परिभाषित करता है जो पोषक तत्त्वों या उत्पादों की पोषण गुणवत्ता पर सरल और ग्राफिक जानकारी प्रस्तुत करते हैं।
      • यह खाद्य पैकेजों के पीछे प्रदान की गई अधिक विस्तृत पोषक सूचनाओं का पूरक होती है।
    • WHO तथा खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय खाद्य मानक निकाय- ‘कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन’ ने उल्लेख किया है कि ‘FAO लेबलिंग को पोषक तत्त्वों संबंधी सूचनाओं की व्याख्या करने में सहायता हेतु डिज़ाइन किया जाता है।
  •  खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम मसौदे के बारे में: 
    • नियम खाद्य पदार्थों की पैकिंग पर कलर-कोडित लेबल (colour-coded labels) को अनिवार्य करते हैं।
    • विनियमन मसौदा उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन का विकल्प खोजने के लिये प्रोत्साहित करने और उत्पाद में वास्तव में क्या शामिल है, इसके बारे में सूचित करने हेतु लाया गया है।
    • सभी पैक किये गए खाद्य पदार्थों के पैकेट्स पर कुल कैलोरी, संतृप्त और ट्रांस वसा, नमक एवं अतिरिक्त चीनी सामग्री के साथ-साथ खाद्य पदार्थ द्वारा पूरी की जाने वाली दैनिक ऊर्जा आवश्यकताओं के अनुपात को प्रदर्शित करना होगा।
    • FSSAI ने शाकाहारी भोजन के प्रतीक के रूप में प्रयोग होने वाले हरे गोले की आकृति को  हरी त्रिकोण आकृति में बदल दिया है ताकि नेत्रहीन लोगों को इसे मांसाहारी भोजन को दर्शाने वाले भूरे रंग के घेरे से अलग करने में मदद मिल सके।
    • प्रस्तावित नियमन के अनुसार, यदि कैलोरी, वसा, ट्रांस-वसा, चीनी और सोडियम की कुल मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक है, तो इसे लाल रंग में दर्शाया जाएगा।
  • इन नियमों से संबंधित मुद्दे:
    • पोज़िटिव न्यूट्रीयंटस  की मास्किंग/छिपाना: अधिकांश उपभोक्ता संगठनों ने आपत्ति जताई कि 'पोज़िटिव न्यूट्रीयंटस' (Positive Nutrients ) भोजन में उच्च वसा, नमक और चीनी जैसे नेगेटिव न्यूट्रीयंटस (Negative Nutrients) के प्रभावों की मास्किंग करने का कार्य करेंगे तथा उद्योग इसका उपयोग उपभोक्ता को गुमराह करने के लिये करेगा।
      • FSSAI  ने  FoP लेबल में 'पोज़िटिव न्यूट्रीयंटस एलीमेंट्स' पर भी विचार करने का प्रस्ताव रखा जो स्वस्थ खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देने के नाम पर प्रोटीन, नट, फल और सब्जियों जैसे 'पोज़िटिव न्यूट्रीयंटस एलीमेंट्स' को बढ़ावा देने से संबंधित था।
    • प्रतिबंधित लक्षित दर्शक: लेबलिंग प्रारूप केवल उन व्यक्तियों के लिये उपयोगी होता है जो साक्षर और पोषण के प्रति जागरूक हैं।
      • इसके अलावा सीमित और सामान्य पोषण साक्षरता का तात्पर्य है कि विषय की गहन पोषक तत्त्वों की जानकारी को समझना मुश्किल है।
    • खाद्य उद्योग की आपत्तियाँ: भारतीय खाद्य उद्योग ने प्रस्तावित प्रारूप पर ‘विशेष रूप से लाल रंग का उपयोग करने के संबंध में’ कई चिंताएँ व्यक्त की हैं क्योंकि यह खतरे का संकेत देता है और उपभोक्ताओं को उत्पादों से दूर कर सकता है।

आगे की राह

  • सचित्र प्रतिनिधित्व पर अधिक ध्यान: लगभग एक-चौथाई भारतीय आबादी निरक्षर है, इसलिये सचित्र प्रतिनिधित्व बेहतर जुड़ाव और समझ को बढ़ाएगा।
    • खाद्य छवियों, लोगो (Logos) और स्वास्थ्य लाभों के साथ भारत में फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग का प्रतीक आधारित होना फायदेमंद हो सकता है।
  • अधिक अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता: पैक लेबलिंग की अनिवार्यता से पहले गहन शोध और इसे एक ऐसे प्रारूप में होना चाहिये जो सभी के लिये समझने योग्य और स्वीकार्य हो।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

रेल कौशल विकास योजना

प्रिलिम्स के लिये :

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क, श्रेयस योजना 

मेन्स के लिये :

रेल कौशल विकास योजना का उद्देश्य एवं महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रेल मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के अंतर्गत रेल कौशल विकास योजना (RKVY) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय :
    • यह एक कौशल विकास कार्यक्रम है, जिसमें युवाओं को रेलवे की प्रासंगिक नौकरियों पर विशेष ध्यान देने के साथ प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
    • प्रशिक्षण चार ट्रेडों में प्रदान किया जाएगा अर्थात् इलेक्ट्रीशियन, वेल्डर, मशीनिस्ट और फिटर एवं अन्य ट्रेडों को क्षेत्रीय रेलवे के साथ-साथ उत्पादन इकाइयों द्वारा क्षेत्रीय मांगों तथा आवश्यकताओं के आकलन के आधार पर जोड़ा जाएगा।
    • अप्रेंटिस को अप्रेंटिस एक्ट 1961 के तहत यह प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • उद्देश्य :
    •  इस पहल का उद्देश्य कार्य में गुणात्मक सुधार लाने के लिये युवाओं को विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षण कौशल प्रदान करना है।
    • इसके तहत अगले तीन वर्षों में 50 हज़ार युवाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • पात्रता :
    • इसके लिये 10वीं पास और 18-35 वर्ष के बीच के उम्मीदवार आवेदन करने के पात्र होंगे। हालाँकि इस प्रशिक्षण के आधार पर योजना में भाग लेने वाले रेलवे में रोज़गार पाने का कोई दावा नहीं कर सकते।
  • महत्त्व :
    • यह योजना न केवल युवाओं की रोज़गार क्षमता में सुधार करेगी, बल्कि स्वरोज़गार हेतु कौशल को भी उन्नत करेगी। साथ ही पुन: कौशल और अप-स्किलिंग के माध्यम से ठेकेदारों के साथ काम करने वाले लोगों के कौशल में भी सुधार होगा।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना:

स्रोत: पीआईबी


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