शासन व्यवस्था
विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025
प्रिलिम्स के लिये: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005, पीएम गति शक्ति, गरीबी
मेन्स के लिये: भारत में ग्रामीण रोज़गार नीति, अधिकार-आधारित बनाम आपूर्ति-संचालित कल्याण मॉडल, गरीबी कम करने में सार्वजनिक कार्य कार्यक्रमों की भूमिका
चर्चा में क्यों?
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने विकसित भारत–रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) [VB-G RAM G] विधेयक, 2025 को लोकसभा में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (MGNREGA) के उन्नत रूप के रूप में प्रस्तुत किया।
- प्रस्तावित कानून अधिकार-आधारित, मांग-प्रेरित ग्रामीण रोज़गार योजना से हटकर बजट-सीमित, आपूर्ति-प्रेरित ढाँचे की ओर एक मौलिक परिवर्तन को दर्शाता है, जो विकसित भारत @2047 की परिकल्पना के अनुरूप है।
- ग्रामीण गरीबी में वर्ष 2011–12 के 25.7% से घटकर वर्ष 2023–24 में लगभग 5% तक तीव्र गिरावट आई है, जिससे संकट-निवारण कार्यक्रम के रूप में MGNREGA की आवश्यकता कम हुई है और उत्पादकता-आधारित रोज़गार की दिशा में बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
सारांश
- VB–G RAM G विधेयक, 2025 सार्वभौमिक, मांग-आधारित कार्य के अधिकार से हटकर बजट-सीमित, आपूर्ति-प्रेरित मॉडल की ओर परिवर्तन करता है, जिसमें योजनाबद्ध परिसंपत्ति सृजन पर ज़ोर दिया गया है।
- यद्यपि इसका उद्देश्य राजकोषीय पूर्वानुमेयता और आजीविका एकीकरण है, फिर भी यह कवरेज, राज्य वित्त तथा संवेदनशील ग्रामीण परिवारों की आय सुरक्षा को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करता है।
विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- वैधानिक मज़दूरी रोज़गार गारंटी: प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को, जो अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हों, प्रति वित्तीय वर्ष 125 दिनों के मज़दूरी रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
- सशर्त एवं गैर-सार्वभौमिक कवरेज: MGNREGA की सार्वभौमिक कवरेज के विपरीत, इस विधेयक के तहत रोज़गार केवल केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित ग्रामीण क्षेत्रों में ही उपलब्ध होगा, जिससे यह गारंटी राष्ट्रव्यापी न होकर सशर्त बन जाती है।
- VGPP के माध्यम से बॉटम-अप योजना: स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं (VGPPs) के निर्माण को अनिवार्य करता है, जिन्हें ब्लॉक, ज़िला और राज्य स्तर पर समेकित किया जाएगा तथा समन्वित अवसंरचना योजना के लिये पीएम गति शक्ति के साथ एकीकृत किया जाएगा।
- केंद्रीय प्रायोजित योजना (CSS) संरचना: लागत-साझेदारी पैटर्न को संशोधित कर अधिकांश राज्यों के लिये 60:40 (MGNREGA के तहत पहले 10% राज्य हिस्सेदारी के स्थान पर) कर दिया गया है, जिससे राज्यों पर वित्तीय भार में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 90:10 का पैटर्न यथावत रहेगा।
- राज्य-वार आवंटन केंद्र सरकार द्वारा वस्तुनिष्ठ मानकों के आधार पर प्रतिवर्ष निर्धारित किये जाएंगे, जिससे संकट की स्थिति या बढ़ती मांग के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप व्यय बढ़ाने में अनुकूलन सीमित हो जाएगा।
- कृषि ऋतुओं के दौरान सुविधा: यह विधेयक राज्यों को बुवाई और कटाई के चरम मौसम के दौरान, एक वित्तीय वर्ष में अधिकतम 60 दिनों तक कार्यक्रम को स्थगित करने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे कृषि गतिविधियों के लिये खेतिहर श्रम की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
- बेरोज़गारी भत्ता प्रावधान: यदि कार्य की मांग किये जाने के 15 दिनों के भीतर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो राज्य सरकारों द्वारा बेरोज़गारी भत्ता के भुगतान को अनिवार्य करता है।
VB–G RAM G विधेयक, 2025 की सीमाएँ:
- रोज़गार के अधिकार का क्षरण: आलोचकों का तर्क है कि यह विधेयक MGNREGA के अधिकार-आधारित ढाँचे को कमज़ोर करता है, क्योंकि यह मांग-आधारित, कानूनी रूप से लागू होने वाले अधिकार को आपूर्ति-आधारित, बजट-सीमित कार्यक्रम में परिवर्तित कर देता है।
- सार्वभौमिक कवरेज की हानि: अब रोज़गार सभी ग्रामीण क्षेत्रों में सुनिश्चित नहीं है और केवल उन क्षेत्रों तक सीमित है जिन्हें केंद्र द्वारा अधिसूचित किया गया है, जिससे ज़रूरतमंद परिवारों के बहिष्कार की चिंता उत्पन्न होती है।
- राज्यों पर बढ़ता वित्तीय बोझ: संशोधित लागत-साझाकरण पैटर्न (अधिकांश राज्यों के लिये 60:40) राज्यों की वित्तीय ज़िम्मेदारी को काफी बढ़ा देता है, जो विशेषकर गरीब राज्यों में प्रभावी क्रियान्वयन को सीमित कर सकता है।
- सीमित आवंटन प्रतिक्रियाशीलता को बाधित करता है: राज्य-वार निर्धारित मानक आवंटन संकट के समय रोज़गार बढ़ाने की क्षमता को सीमित करता है।
- कृषि ऋतुओं के दौरान 60 दिनों तक कार्य को निलंबित करने की अनुमति देने वाला प्रावधान, उस अवधि में आय समर्थन को कम करने के लिये आलोचना का विषय है जब ग्रामीण परिवारों को अभी भी रोज़गार की आवश्यकता हो सकती है।
ग्रामीण विकास और रोज़गार को बढ़ावा देने हेतु प्रमुख सरकारी पहलें
- दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY–NRLM): ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये स्वयं सहायता समूहों (SHG), वित्तीय समावेशन और आजीविका विविधीकरण को प्रोत्साहित करती है।
- दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY): ग्रामीण युवाओं के लिये कौशल विकास और रोज़गार-संबंधित प्लेसमेंट पर केंद्रित है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर प्रौद्योगिकी से सर्वेक्षण और मानचित्र योजना: ग्रामीण परिवारों को संपत्ति कार्ड प्रदान करता है, जिससे ऋण और निवेश तक पहुँच सक्षम होती है।
- प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना: कौशल विकास, उपकरण किट और ऋण संपर्क के माध्यम से पारंपरिक कारीगरों का समर्थन करती है ताकि ग्रामीण गैर-कृषि रोज़गार सृजित किया जा सके।
भारत में प्रभावी ग्रामीण विकास और रोज़गार को बाधित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- निम्न-गुणवत्ता रोज़गार का प्रभुत्व: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS 2022–23) के अनुसार, लगभग 45% ग्रामीण श्रमिक कम उत्पादकता वाली कृषि में स्व-नियोजित बने हुए हैं और प्रच्छन्न बेरोज़गारी बनी हुई है।
- मनरेगा पर वित्तीय एवं परिचालन दबाव: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने मनरेगा के खुली-समापन, मांग-आधारित प्रकृति के कारण मज़दूरी भुगतान में देरी, लगातार कोष की कमी और बढ़ती लंबित देनदारियों की समस्याओं को रेखांकित किया है।
- कौशल असंगति: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) की रिपोर्टें इंगित करती हैं कि ग्रामीण कौशल विकास कार्यक्रम अक्सर स्थानीय बाज़ार की मांग के अनुरूप नहीं होते, जिससे नियोजन और प्रतिधारण दरें कम होती हैं।
- जलवायु संवेदनशीलता: IPCC AR6 के अनुसार, कृषि-आश्रित ग्रामीण आजीविकाएँ जलवायु आघातों के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हैं, जो रोज़गार अस्थिरता और आय अनिश्चितता को बढ़ाती हैं।
भारत में ग्रामीण विकास और रोज़गार को और सुदृढ़ करने हेतु कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- योजनाओं में समन्वय को सुदृढ़ बनाना: DAY–NRLM, DDU-GKY और PM विश्वकर्मा के प्रभावी एकीकरण से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि अल्पकालिक वेतन आधारित रोज़गार कौशल विकास, ऋण पहुँच और बाज़ार से जुड़ाव के माध्यम से सतत् आजीविका में परिवर्तित हो।
- ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि रोज़गार को बढ़ावा देना: कृषि क्षेत्र में अतिरिक्त श्रम की खपत को कम करने के लिये ग्रामीण लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME), कृषि-प्रसंस्करण इकाइयों, हस्तशिल्प और सेवा उद्यमों का विस्तार आवश्यक है।
- क्लस्टर आधारित विकास, साझा सुविधा केंद्र एवं बेहतर लॉजिस्टिक्स ग्रामीण विनिर्माण एवं सेवाओं को बढ़ावा दे सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलनशील ग्रामीण आजीविका का निर्माण: जलवायु-अनुकूल कृषि, जलसंभर प्रबंधन, सूखा-रोधी उपायों और नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित आजीविका में निवेश से जलवायु संबंधी आघातों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के साथ-साथ ही ग्रामीण रोज़गार को स्थिर किया जा सकता है।
- पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को सशक्त बनाना: निधियों, कार्यों एवं पदाधिकारियों के अधिक हस्तांतरण के साथ-साथ PRI की क्षमता निर्माण से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की स्थानीय योजना, कार्यान्वयन एवं जवाबदेही में सुधार होगा।
- डिजिटल एवं वित्तीय समावेशन का लाभ उठाना: प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना, डिजिटल भुगतान, ग्रामीण ब्रॉडबैंड तथा स्वयं सहायता समूहों और परिवारिक संगठनों के माध्यम से ऋण तक पहुँच का विस्तार पारदर्शिता में वृद्धि कर सकता है, भ्रष्टाचार को कम कर सकता है और ग्रामीण उद्यमिता को समर्थन दे सकता है।
निष्कर्ष
यह सुधार ग्रामीण परिस्थितियों में हो रहे बदलावों को दर्शाता है, लेकिन इससे सबसे गरीब लोगों की आय संबंधी सुरक्षा के कमज़ोर होने का खतरा है। सतत विकास लक्ष्य 1 (गरीबी उन्मूलन) तथा सतत विकास लक्ष्य 8 (सम्मानजनक कार्य) को प्राप्त करने के लिये एक संतुलित मॉडल अत्यंत महत्त्वपूर्ण है जो उत्पादक और जलवायु-प्रतिरोधी संपत्तियों का निर्माण करते हुए कार्य करने के अधिकार की रक्षा करे ।
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दृष्टि मेन्स का प्रश्न: प्रश्न: जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम परिसंपत्तियों के निर्माण में ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रमों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. VB–G RAM G विधेयक, 2025 का उद्देश्य क्या है? इसका उद्देश्य एक अनिश्चितकालीन, मांग-आधारित रोज़गार गारंटी को बजट-सीमित, आपूर्ति-आधारित कार्यक्रम से बदलना है जो दीर्घकालिक ग्रामीण विकास लक्ष्यों के अनुरूप हो।
2. VB–G RAM G विधेयक, 2025 के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कितने दिनों के वेतनभोगी रोज़गार की गारंटी दी गई है? यह ढाँचा प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति वित्तीय वर्ष 125 दिनों के अकुशल वेतनभोगी रोज़गार की वैधानिक गारंटी प्रदान करता है ।
3. विकसित ग्राम पंचायत योजनाएँ (VGPP) क्या हैं? VGPP स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके तैयार की गई जमीनी स्तर की योजनाएँ हैं, जिन्हें उच्च स्तरों पर एकत्रित किया जाता है और समन्वित अवसंरचना नियोजन के लिये पीएम गति शक्ति के साथ एकीकृत किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011)
(a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य
(b) गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों के वयस्क सदस्य
(c) सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के वयस्क सदस्य
(d) किसी भी परिवार के वयस्क सदस्य
उत्तर: (d)
मेन्स
प्रश्न.“गरीबी उन्मूलन की एक अनिवार्य शर्त गरीबों को अभाव की प्रक्रिया से मुक्त करना है।” उपयुक्त उदाहरणों के साथ इस कथन को सिद्ध कीजिये। (2016)
प्रश्न.“भारत में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम तब तक मात्र दिखावटी ही बने रहते हैं जब तक उन्हें राजनीतिक इच्छाशक्ति का समर्थन प्राप्त न हो।” भारत में प्रमुख गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के प्रदर्शन के संदर्भ में इस पर चर्चा कीजिये। (2015)
भारतीय राजव्यवस्था
केंद्रीय सूचना आयोग को सशक्त करना
प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रपति, मुख्य सूचना आयुक्त, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, अर्द्ध-न्यायिक निकाय, प्रधानमंत्री, लाभ का पद, लोक सूचना अधिकारी।
मेन्स के लिये: केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) और सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के संदर्भ में मुख्य तथ्य। CIC से जुड़ी चिंताएँ और इसे सुदृढ़ करने हेतु आवश्यक कदम।
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति ने राज कुमार गोयल को मुख्य सूचना आयुक्त और 8 नए सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त किया, जिससे केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) को 9 वर्षों में पहली बार पूर्ण रूप से गठित किया गया।
सारांश
- RTI अधिनियम, 2005 के तहत गठित केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) नागरिकों को जानकारी तक पहुँच सुनिश्चित करती है, जिससे केंद्रीय सरकार और सार्वजनिक संस्थानों में पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ती है।
- CIC को सुदृढ़ बनाने के लिये समय पर नियुक्तियाँ, डिजिटल केस प्रबंधन, कठोर कार्यान्वयन शक्तियाँ और सक्रिय सूचना प्रकटीकरण पहल आवश्यक हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) क्या है?
- परिचय: यह एक वैधानिक निकाय है, जिसे सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत गठित किया गया है। यह अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है तथा जानकारी तक पहुँच से संबंधित शिकायतों और अपीलों को सॅंभालता है।
- क्षेत्राधिकार: केंद्रीय सरकार के कार्यालय, वित्तीय संस्थान, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और संघ राज्य क्षेत्र (UT) इस आयोग के दायरे में आते हैं।
- संरचना: इसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्त (IC) शामिल होते हैं।
- नियुक्ति: भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, जिस पर निम्नलिखित समिति की सिफारिश होती है:
- प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
- लोकसभा में विपक्ष के नेता
- केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (वर्तमान में गृहमंत्री), जिन्हें प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है।
- पात्रता मानदंड: ऐसे व्यक्ति होने चाहिये जिनकी सार्वजनिक जीवन में ख्याति हो और जिनके पास कानून, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सामाजिक सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंचार, प्रशासन या शासन में व्यापक ज्ञान तथा अनुभव हो।
- अयोग्यता: संसद के सदस्य या किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की विधायिका के सदस्य नहीं हो सकते। कोई लाभकारी पद नहीं धारण कर सकते, राजनीतिक पार्टियों से जुड़े नहीं हो सकते, व्यवसाय नहीं चला सकते या कोई पेशा नहीं अपना सकते।
- कार्यकाल और सेवा शर्तें: मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त (IC) उस अवधि तक पद धारण करेंगे, जो केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है, या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो।
- कार्यकाल पूरा होने के बाद पुनर्नियुक्ति के योग्य नहीं।
- हटाना: राष्ट्रपति द्वारा विशेष परिस्थितियों में हटाया जा सकता है।
- दुर्व्यवहार या अक्षमता के कारण हटाने के लिये राष्ट्रपति द्वारा हटाए जाने से पहले सर्वोच्च न्यायालय (SC) की जाँच और अनुशंसा आवश्यक होती है।"
- शक्तियाँ और कार्य:
- शिकायतों की प्राप्ति और जाँच: RTI अधिनियम, 2005 के तहत सूचना अनुरोधों से इनकार, अपूर्ण, भ्रामक या गलत सूचना दिये जाने संबंधी नागरिकों की शिकायतों को प्राप्त करता है और उनकी जाँच करता है।
- सिविल कोर्ट के समकक्ष अर्द्ध-न्यायिक शक्तियाँ, जिनमें व्यक्तियों को समन जारी करना तथा उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करना शामिल है।
- अभिलेखों तक अप्रतिबंधित पहुँच: सार्वजनिक प्राधिकरण के नियंत्रणाधीन किसी भी अभिलेख की जाँच कर सकता है तथा जाँच के दौरान किसी भी आधार पर कोई अभिलेख रोका नहीं जा सकता।
- रिपोर्टिंग दायित्व: RTI अधिनियम, 2005 के क्रियान्वयन पर केंद्रीय सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जिसे संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act, 2005)
- परिचय: RTI अधिनियम, 2005 नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- इसका उद्देश्य सरकारी निकायों और सार्वजनिक प्राधिकरणों के कार्यों में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देना है।
- मुख्य प्रावधान: यह अधिनियम सरकार के सभी स्तरों पर लागू होता है, जिनमें केंद्र, राज्य और स्थानीय निकाय शामिल हैं।
- धारा 8(2) के तहत, जब सार्वजनिक हित सूचना की गोपनीयता से अधिक महत्त्वपूर्ण हो, तब सूचना के प्रकटीकरण की अनुमति दी जाती है।
- धारा 22 यह सुनिश्चित करती है कि अन्य कानूनों के साथ किसी भी असंगति की स्थिति में RTI अधिनियम, 2005 को प्रधानता प्राप्त होगी।
- सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019: RTI अधिनियम, 2005 के तहत मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, निर्धारित किया गया था। वर्ष 2019 के संशोधन के बाद, उनका कार्यकाल केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- मूल रूप से मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन और सेवा शर्तें मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) के समकक्ष थीं तथा सूचना आयुक्तों की वेतन एवं सेवा शर्तें निर्वाचन आयुक्त के समकक्ष थीं। संशोधन के बाद, CIC और IC दोनों के लिये वेतन, भत्ते तथा सेवा शर्तें केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- नियुक्ति में पारदर्शिता की कमी: सूचना आयुक्तों की चयन प्रक्रिया में मानदंडों और अभ्यर्थियों के विवरण के अपर्याप्त प्रकटीकरण को लेकर आलोचना हुई है। अंजलि भारद्वाज बनाम भारत संघ (2019) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक निगरानी सुनिश्चित करने हेतु नियुक्तियों में अधिक पारदर्शिता का निर्देश दिया था।
- स्वतंत्रता के समझौते की आशंका: सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 केंद्रीय सरकार को आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तें निर्धारित करने की अनुमति देता है, जिससे CIC की अर्द्ध-न्यायिक स्वायत्तता पर कार्यपालिका के प्रभाव की आशंका उत्पन्न होती है।
- अप्रभावी प्रवर्तन: यद्यपि मुख्य सूचना आयुक्त सूचना के प्रकटीकरण का आदेश दे सकता है और दंड भी लगा सकता है, परंतु उसकी शक्तियाँ पर्याप्त रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। विशेषकर तब, जब सार्वजनिक प्राधिकरण उसके निर्देशों की अनदेखी करते हैं, अनुपालन सुनिश्चित करने की क्षमता सीमित रहती है। रिपोर्टों के अनुसार, दंडात्मक प्रावधानों का उपयोग निपटाए गए मामलों में केवल लगभग 2.2% में ही किया गया।
- मामलों का लंबित रहना और देरी: नवंबर 2024 तक रिक्त पदों और कर्मचारियों की कमी के कारण केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में लगभग 22,000 मामले लंबित हैं, जिससे अपीलकर्त्ताओं को लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- निर्णयन संबंधी समस्या: निर्णय अत्यधिक प्रक्रियात्मक हो जाते हैं, जिनमें तकनीकी आधार पर खारिजीकरण, बार-बार स्थगन और गोपनीयता या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अपवादों का व्यापक उपयोग शामिल है। यदि इनका संतुलन सावधानीपूर्वक न किया जाए तो इससे सूचना का प्रकटीकरण घट सकता है और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में CIC की भूमिका कमज़ोर पड़ सकती है।
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) को सुदृढ़ करने हेतु किन उपायों की आवश्यकता है?
- समयबद्ध और पारदर्शी नियुक्तियाँ: अंजलि भारद्वाज बनाम भारत संघ (2019) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए आयुक्तों की नियुक्ति के लिये एक पूर्वानुमेय, समय-सीमाबद्ध और सहभागी प्रक्रिया स्थापित की जाए तथा रिक्त पदों को समय पर भरा जाए।
- लंबित मामलों में कमी: मामलों की संख्या के अनुपात में सूचना आयुक्तों (IC) की संख्या बढ़ाई जाए और क्षेत्र-विशेष पीठों (जैसे—रक्षा और वित्त) की स्थापना की जाए।
- मामलों के निपटान की अनिवार्य समय-सीमा लागू करें और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सहित एक व्यापक डिजिटल प्रबंधन प्रणाली स्थापित करें।
- प्रवर्तन और अनुपालन को सुदृढ़ करना: सार्वजनिक प्राधिकरणों से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये CIC को अवमानना या प्रत्यक्ष प्रवर्तन शक्तियाँ प्रदान की जाएँ। एक अनुपालन-निगरानी प्रणाली शुरू की जाए, जिसके तहत विभागाध्यक्ष निर्देशों पर अनुपालन की रिपोर्ट दें और जिसकी निगरानी संसदीय समितियाँ करें।
- सक्रिय प्रकटीकरण (Proactive Disclosure): अपीलों में कमी और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये RTI अधिनियम की धारा 4 के प्रभावी क्रियान्वयन को CIC द्वारा सक्रिय रूप से सुनिश्चित किया जाना चाहिये। CIC के प्रदर्शन से संबंधित विस्तृत आँकड़े जैसे पीठ-वार निपटान, दंड प्रवृत्तियाँ, अनुपालन दरें और तर्क/निर्णय के पैटर्न सार्वजनिक किये जाने चाहिये। जो संस्था पारदर्शिता लागू कराती है, उसे अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये स्वयं भी पारदर्शिता का पालन करना चाहिये।
- प्रशासनिक निर्भरता: यद्यपि CIC अर्द्ध-न्यायिक कार्य करता है, फिर भी वह स्टाफिंग और अवसंरचना के लिये कार्यपालिका पर प्रशासनिक रूप से निर्भर रहता है। आलोचकों का तर्क है कि यह द्वैतता प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के बिना भी संस्थागत व्यवहार को सूक्ष्म रूप से प्रभावित करती है।
निष्कर्ष
हाल ही में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का पूर्ण गठन एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता कुछ प्रमुख मुद्दों के समाधान पर निर्भर करती है जैसे कार्यपालिका के प्रभाव से वास्तविक स्वायत्तता सुनिश्चित करना, अनुपालन न करने पर रोक लगाने हेतु दंडों का प्रभावी प्रवर्तन तथा अपीलों के भारी लंबित बोझ को कम करने के लिये प्रणालीगत सुधारों को लागू करना, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों को कमज़ोर करता है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. CIC की प्रवर्तन शक्तियों को कैसे सुदृढ़ किया जा सकता है ताकि उसके आदेशों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके तथा कम दंड और कमज़ोर अनुपालन की समस्या का समाधान किया जा सके? |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) क्या है?
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत गठित एक वैधानिक अर्धो-न्यायिक निकाय है, जो सार्वजनिक प्राधिकरणों से नागरिकों को सूचना उपलब्ध कराने से संबंधित शिकायतों और अपीलों का निपटारा करता है।
2. मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति कौन करता है?
इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों पर आधारित होती है। इस समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री भी शामिल होते हैं।
3. अंजलि भारद्वाज बनाम भारत संघ (2019) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का क्या महत्त्व था?
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित की जाए तथा रिक्त पदों को सक्रिय रूप से भरा जाए, ताकि केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य में बाधा न आए और वह निष्क्रिय न हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
मेन्स
प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018)

मुख्य परीक्षा
वर्षांत समीक्षा-2025: जैव प्रौद्योगिकी विभाग
चर्चा में क्यों?
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) की वर्ष 2025 की वर्षांत समीक्षा के अनुसार, भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र वर्ष 2014 में 10 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 165.7 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है तथा वर्ष 2030 तक इसके 300 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- इस वृद्धि ने भारत को विश्व का 12वाँ सबसे बड़ा जैव प्रौद्योगिकी केंद्र, एशिया–प्रशांत क्षेत्र में तीसरा सबसे बड़ा, वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और सबसे बड़ा टीका निर्माता देश बना दिया है।
सारांश
- भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र वर्ष 2014 में 10 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 165.7 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है तथा वर्ष 2030 तक इसे 300 अरब अमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- प्रमुख प्रगतियों में स्वास्थ्य क्षेत्र में नवाचार, उच्च उपज वाली जीन-संपादित फसलें, अंतरिक्ष जैव-विनिर्माण तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण शामिल हैं।
- BioE3 नीति, राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क, विनियामक सुधार और E-YUVA योजना जैसी रणनीतिक पहलों ने नवाचार, व्यावसायीकरण और युवा-नेतृत्व वाले जैव प्रौद्योगिकी विकास को सुदृढ़ किया है।
भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रमुख पहलें क्या हैं?
- अवसंरचना और नीतिगत पहलें: स्वदेशी जैव-विनिर्माण क्षमताओं को सुदृढ़ करने हेतु भारत का प्रथम राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क लॉन्च किया गया।
- BioE3 नीति का 6 विषयगत क्षेत्रों में कार्यान्वयन, जिसमें जैव-आधारित रसायन, सटीक जैव चिकित्सकीय उपचार और जलवायु-सहनशील कृषि शामिल हैं।
- सतत् जैव अर्थव्यवस्था हेतु युवा-नेतृत्व वाले नवाचार को सशक्त बनाने के लिये D.E.S.I.G.N for BioE3 चैलेंज लॉन्च किया गया।
- स्टैक्ड पौधों पर दिशा-निर्देश: जैव सुरक्षा और नवाचार सुनिश्चित करने हेतु जेनेटिकली इंजीनियर्ड प्लांट्स कंटेनिंग स्टैक्ड इवेंट्स पर दिशा-निर्देश, 2025 अधिसूचित किये गए।
- स्टैक्ड से तात्पर्य दो या अधिक ट्रांसजीन (जैसे शाकनाशी-सहिष्णु (HT) और कीट प्रतिरोधकता) को एक ही फसल में संयोजित करना है।
- जीनोम इंडिया परियोजना 2020: जीनोम इंडिया परियोजना के अंतर्गत 10,000 सुलभ पूर्ण जीनोम नमूनों के साथ एक राष्ट्रीय जीनोमिक डाटाबेस का निर्माण किया गया है।
- वन डे वन जीनोम परियोजना 2024: यह भारत की अद्वितीय सूक्ष्मजीवी विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि और स्वास्थ्य में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं को उजागर करती है। इसकी एक मुख्य विशेषता भारत में पृथक किये गए जीवाणु उपभेदों पर केंद्रित, एक पूर्णतः व्याख्यायित सूक्ष्मजीवी जीनोम का दैनिक सार्वजनिक विमोचन है।
- बायोमेडिकल रिसर्च करियर प्रोग्राम (BRCP) चरण-3 (2025-26 से 2037-38): इसका लक्ष्य अत्याधुनिक और अनुवादात्मक बायोमेडिकल अनुसंधान हेतु शीर्ष वैज्ञानिक प्रतिभा का पोषण करना, अनुसंधान प्रणालियों को मज़बूत करना, क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना और वैश्विक रूप से प्रभावशाली अनुसंधान क्षमता का निर्माण करना है।
जैव प्रौद्योगिकी
- परिचय: जैव प्रौद्योगिकी, मानव जीवन को बेहतर बनाने और पर्यावरण की रक्षा करने वाले उत्पादों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिये कोशिकीय एवं जैव-आणविक प्रक्रियाओं का उपयोग करती है ।
- प्रकार:
- अनुप्रयोग:
- स्वास्थ्य सेवा (रेड): उन्नत दवाओं, टीकों (जैसे, कोविड-19 का तेज़ी से उत्पादन), व्यक्तिगत/जीन थेरेपी और ऊतक पुनर्जनन के लिये स्टेम सेल अनुसंधान को सक्षम बनाती है ।
- कृषि (ग्रीन): कीटों, सूखे और रोगों के प्रति प्रतिरोधी फसलें विकसित करती है और खाद्य सुरक्षा में सुधार के लिये पोषण संबंधी प्रोफाइल को बढ़ाती है (जैसे, विटामिन-A से भरपूर गोल्डन राइस ) ।
- पर्यावरण (व्हाइट): जैव उपचार (प्रदूषकों की सफाई) के लिये सूक्ष्मजीवों का उपयोग करता है और चक्रीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करने लिये सतत जैव ईंधन, बायोप्लास्टिक और जैव-अपघटनीय सामग्री का उत्पादन करता है ।
- आर्थिक विकास: रोज़गार सृजित करता है और नवाचार के माध्यम से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त प्रदान करता है ।
- जलवायु एवं सामग्री: CO₂ को अवशोषित करने में सहायता करता है, स्वच्छ जैव ईंधन का उत्पादन करता है तथा फैशन और एयरोस्पेस जैसे उद्योगों के लिये नवीन जैव-आधारित सामग्रियों का निर्माण करता है।
वर्ष 2025 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
- स्वास्थ्य सेवा एवं अनुसंधान: गर्भावस्था की तिथि निर्धारण और समय से पहले जन्म की भविष्यवाणी के लिये स्वदेशी AI-संचालित मॉडल विकसित किये गए हैं, जिनमें 66 आनुवंशिक पदचिन्हों की पहचान की गई है ।
- Dare2eraD TB कार्यक्रम : व्यापक दवा-प्रतिरोधी टीबी मानचित्रण के लिये 18,000 माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (MTB) आइसोलेट्स का अनुक्रमण किया गया।
- GARBH-INi समूह: 12,000 गर्भवती महिलाओं को नामांकित किया गया, जिनके 14 लाख जैव नमूने और 1 लाख अल्ट्रासाउंड छवियाँ संग्रहीत की गईं।
- लैक्टोबैसिलस क्रिस्पेटस का व्यावसायीकरण: लाभकारी लैक्टोबैसिलस क्रिस्पेटस (लैक्टिक एसिड उत्पादक बैक्टीरिया) के आइसोलेट्स के कंसोर्टिया विकसित किये गए हैं और उन्हें एक प्रमुख भारतीय न्यूट्रास्यूटिकल कंपनी को न्यूट्रास्यूटिकल और कॉस्मेटिक उत्पादों में उपयोग के लिये स्थानांतरित कर दिया गया है ।
- कृषि जैव प्रौद्योगिकी नवाचार: उच्च उपज देने वाली जीन-संपादित चावल की किस्म (DEP1 उत्परिवर्तन) विकसित की गई है, जो जंगली किस्म की तुलना में 20% अधिक उपज देती है।
- जलमग्नता सहनशीलता वाली चावल की किस्म ADT 39-Sub1 को वर्ष 2025 में जारी किया गया। परिवर्तनशील जलवायु परिस्थितियों के लिये विकसित सूखा प्रतिरोधी चावल की किस्म 'अरुण' ।
- सूखे को सहन करने वाली चने की दो किस्मों (ADVIKA और SAATVIK) ने विकसित किये गए कुल ब्रीडर बीज इंडेंट में 30% का योगदान दिया ।
- अंतरिक्ष जैव-विनिर्माण: सूक्ष्म शैवाल ने सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में दोगुनी वृद्धि प्रदर्शित की ।
- सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में यूरिया पर सायनोबैक्टीरिया उगाने की अवधारणा का प्रमाण प्राप्त कर लिया गया है, जिससे संभावित रूप से मानव अपशिष्ट (CO2 और यूरिया) का उपयोग दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिये पोषण संबंधी पूरक तैयार करने में सक्षम हो सकता है।
- भारत के पहले मानव मांसपेशी स्टेम-सेल प्रयोग से पता चला है कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण मांसपेशियों की उम्र बढ़ने (सार्कोपेनिया) का एक त्वरित मॉडल है।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं व्यावसायीकरण: 1 ग्राम इथेनॉल उत्पादन के लिये विकसित इंजीनियर ग्लूकोएमाइलेज स्रावित करने वाली खमीर उपभेद (बाह्य ग्लूकोएमाइलेज की आवश्यकता में 50% कमी)।
- आठ बीज कंपनियों को सफेद जंग प्रतिरोधी सरसों की किस्मों सहित कई प्रौद्योगिकी हस्तांतरण किये गए ।
- ई-युवा (E-YUVA) योजना का विस्तार 15 राज्यों में 19 प्री-इन्क्यूबेशन केंद्रों तक किया गया, जिसके अंतर्गत 460 से अधिक फेलोज़ को सहयोग प्रदान किया गया।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास: जंगली सेबों से मूल्यवर्द्धित उत्पाद तथा थीफ्लेविन निष्कर्षण प्रौद्योगिकी विकसित की गई। लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से किसानों सहित 218 लाभार्थियों को प्रशिक्षण दिया गया।
- बड़ी इलायची (Large Cardamom) पर एक नेटवर्क परियोजना सिक्किम राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के साथ iBRIC+ के सहयोग से क्रियान्वित की जा रही है।
- रणनीतिक साझेदारियाँ: केंद्र-राज्य BioE3 सेल्स की शुरुआत की गई। अंतर्राष्ट्रीय सहयोगों में यूनाइटेड किंगडम (FEMTECH—महिला-केंद्रित स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी) और स्विट्ज़रलैंड (वन हेल्थ) शामिल हैं।
निष्कर्ष
BioE3 जैसी नीतियों, अत्याधुनिक अनुसंधान तथा सशक्त सार्वजनिक–निजी साझेदारियों के बल पर भारत का जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र रूपांतरकारी रूप से विकसित हुआ है, जिसने देश को सतत जैव-अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में एक वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित किया है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न.जीन-एडिटिंग फसलों और सूखा-प्रतिरोधी किस्मों में हालिया प्रगतियों के संदर्भ में, भारत में जलवायु-सहिष्णु कृषि के लिये जैव-प्रौद्योगिकी के योगदान का विश्लेषण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. वर्ष 2030 तक भारत के जैव-प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नोलॉजी) क्षेत्र का अनुमानित मूल्य क्या है?
भारत का जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र वर्ष 2030 तक लगभग 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे भारत विश्व के शीर्ष बायोटेक हब्स में शामिल हो जाएगा।
2. नेशनल बायोफाउंड्री नेटवर्क क्या है?
नेशनल बायोफाउंड्री नेटवर्क, जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) की एक पहल है, जिसका उद्देश्य स्वदेशी बायो-मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को सुदृढ़ करना तथा बायोटेक स्टार्टअप्स में नवाचार को समर्थन देना है।
3. BioE3 नीति के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
BioE3 नीति छह विषयगत क्षेत्रों पर केंद्रित है, जिनमें जैव-आधारित रसायन, सटीक जैव-उपचार (प्रिसीजन बायोथेरैप्यूटिक्स) और जलवायु-सहिष्णु कृषि शामिल हैं। इसका लक्ष्य एक सतत जैव-अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012)
- सूखा सहन करने के लिये सक्षम बनाना
- उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना
- अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में उन्हें उगाने तथा प्रकाश संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना
- उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास-सम्बन्धी उपलब्धियाँ क्या हैं ? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी ? (2021)
प्रश्न. किसानों के जीवन मानकों को उन्नत करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी किस प्रकार सहायता कर सकती है? (2019)
प्रश्न. क्या कारण है कि हमारे देश में जैब प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यधिक सक्रियता है? इस सक्रियता ने बायोफार्मा के क्षेत्र को कैसे लाभ पहुँचाया है? (2018)





